एक समंदर मेरे अन्दर- मधु अरोड़ा

कोई लंबी कहानी या उपन्यास अगर एक बार में ही आपके ज़रिए खुद को पूरा पढ़वा जाए तो इसे लेखक/ लेखिका की सफलता ही कहेंगे कि उसने अपनी रचना में इतने विविध रंग भर दिए कि पढ़ना वाला उनसे सराबोर हुए बिना रह नहीं सका। इस बार ऐसा ही हुआ जब मैंने मधु अरोड़ा जी का उपन्यास "एक समंदर मेरे अन्दर" पढ़ने के लिए उठाया। उनसे मेरा परिचय 2014 के पुस्तक मेले के दौरान साहित्य मंच की दर्शक दीर्घा में बैठे हुए हुआ  था। जाने क्या सोच के बिना किसी जान पहचान के  मैंने उन्हें नमस्ते कहा तो प्रतिउत्तर में सामने से स्नेहसिक्त मुस्कान के साथ उन्होंने भी नमस्ते के साथ मेरा अभिवादन स्वीकार किया। कुछ देर बाद पता चला कि मधु अरोड़ा जी प्रख्यात साहित्यकार सूरज प्रकाश जी की अर्द्धांगिनी हैं।

 बाद में खैर फेसबुक पर भी हम लोग मित्र बने। हमारे द्वारा संचालित सुरभि संगोष्ठी के एक कहानी पाठ में भी उन्होंने अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करवाई। मेरे दोनों कहानी संकलनों पर उनकी समीक्षाओं ने मेरा हौंसला भी बढ़ाया। 

अब बात करते हैं उनके उपन्यास की। तो इसमें एक तरफ कहानी में नायिका की अब तक की जीवन यात्रा को उसके दुखों, तकलीफों, शिक्षा, बेरोज़गारी, प्यार, मोहब्बत, हिम्मत और दृढ़ निश्चय  के दर्शाया गया है तो दूसरी तरफ बार बार घर बदलने की मजबूरी से जुड़े हुए विस्थापन के दर्द को भी प्रभावी ढंग से उठाया गया है। इसी उपन्यास में नायिका की कहानी के साथ साथ एक और कहानी भी बिना कहे ही हमारे साथ चलती रहती है और वो कहानी है बम्बई की जो कि अब मुम्बई बन चुका है। 

इसमें पुरानी बम्बई के तौर तरीके हैं तो वहाँ बारिशों के बाद आने वाली बाढ़ की विभीषिका भी है, इसमें गैंग वॉर भी है तो दंगों और विस्थापितों का दर्द भी है। इसमें लोकल ट्रेन में एक दूसरे को धकियाते हुए धक्के हैं तो ट्रेन में सफर के दौरान आपसी बातचीत और भजन कीर्तन के ज़रिए यात्रियों का उल्लास भी देखते बनता है। इसमें रहने को पुरानी टूटी फूटी चाल भी हैं तो नए पुराने बड़े बड़े बंगलों की बड़ी बड़ी रौनकें भी हैं। इसमें मतलबी लोगों की भरमार भी है तो निस्वार्थ भाव से दोस्ती निभाने वाले लोग भी हैं। इसमें एक तरफ चमकती मुंबई के चमकदार इलाके हैं तो दूसरी तरफ कमाठीपुरा जैसे रेडलाईट एरिया के नंगपने वाले अड्डे भी पूरी शिद्दत के साथ मुंबई को आबाद रखे हुए हैं। 

इसमें एक तरफ अय्याश लोगों की भरमार है तो दूसरी तरफ अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है। इसमें ईमानदार पिता भी है तो घृणित तरीकों से पैसा बनाने वाला मामा भी है। इस उपन्यास में कहीं ईमानदारी का जज़्बा है तो कहीं पर बेईमानी भी कम नहीं है। इसमें गरीब इलाकों में पानी की दिक्कतें हैं तो तो पॉश इलाकों में खुल कर खुले दिल से पानी की बरबादी भी है। 

इस उपन्यास में पुरानी यादों के ज़रिए पूरी कहानी को विस्तार दिया गया। एक तरह से कह सकते हैं कि मुम्बई शहर ही पूरे उपन्यास की जान है। बाकी के सभी पात्र तो कहानी को आगे बढ़ने में सहायता देने वाले निमित मात्र हैं। अगर आप बम्बई शहर के मुंबई होने तक के विस्तार को जानने के इच्छुक हैं तो ये उपन्यास आपके मतलब का है। 

पूरे उपन्यास का ताना बाना सरल...आम बोलचाल की भाषा में बुना गया है, इसलिए आम पाठक को इसकी तरफ आकर्षित होना चाहिए।कहानी मुंबई की है तो स्वाभाविक है इसमें विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए मराठी में संवाद भी हैं। मुख्य किरदार का परिवार चूंकि उत्तरप्रदेश से है तो कहीं कहीं पर वहाँ की भाषा का समावेश भी है। किरदारों की मांग के अनुसार कुछ संवाद पंजाबी में भी लिखे गए है।अच्छा होता अगर अन्य भाषा के संवादों के साथ उनका हिंदी में अनुवाद भी दिया जाता तो मुझ जैसे उन भाषाओं को ना समझने वाले पाठकों को काफी मदद मिलती मगर चूंकि पाठक उपन्यास के साथ जुड़ चुका होता है, इसलिए काफी हद तक वो खुद अंदाज़ा लगाने का प्रयास करता है कि क्या कहा जा रहा है। अब ये विचार करने वाली बात है कि वो उन संवादों पर कहानी का मर्म कितना समझ पाता है और कितना नहीं।

158 पृष्ठीय इस उपन्यास को छापा है इंडिया नेटबुक्स ने और इसकी कीमत ₹150/- रखी गयी है जो कि पुस्तक की क्वालिटी और कंटैंट को देखते हुए ज़्यादा नहीं है। हालांकि फ्लिपकार्ट पर अभी ये उपन्यास डिस्काउंट के बाद ₹130/- का मिल रहा है। आने वाले भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

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