कालो थियु सै- किशोर चौधरी

इस बार के पुस्तक मेले में हिन्दयुग्म के स्टॉल पर जब मैंने किशोर चौधरी जी की किताब "कालो थियु सै" ली तो यही ज़हन में था कि इसमें शीर्षकानुसार कुछ अलग सा पढ़ने को मिलेगा। ज़्यादा उम्मीद मुझे राजस्थानी कलेवर और वहाँ की मिट्टी की खुशबू में रची बसी कहानियों की थी मगर इस किताब में यात्रा संस्मरण, बिछड़े दोस्त, बाड़मेर जिले, मृत्यु, प्रेम, दार्शनिकता के साथ साथ भांग और विज्ञान के संगम से उपजी विशुद्ध गप्पबाज़ी भी है। 

भाषाशैली रोचक है। आप एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो पढ़ते चले जाते हैं। कहीं कहीं ऐसा आभास होता है जैसे लेखक पुरानी यादों को सहेजने के बहाने अपनी आत्मकथा लिख रहा है। इस पुस्तक में एक तरफ यार की यारी है तो साथ ही बाड़मेर जिले के चप्पे चप्पे की यादें भी अपनी मौजूदगी दर्शा रही हैं। इसमें रेगिस्तान की रेतीली कहानियाँ हैं तो कहीं कहीं मायानगरी बम्बई का जिक्र भी है। इसमें नागौर और बीकानेर के मन को बहलाने वाले किस्से हैं तो ठेठ दार्शनिकता का पुट भी कई जगह दिखाई देता है।

 इस सारे रेतीले सफर के दौरान बीच बीच में जानकारी से परिपूर्ण रोचक किस्से शीतलता प्रदान करने को ताज़ा हवा के झोंके के समान यदा कदा अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने को आते रहते हैं। उदाहरण के लिए अपनी किताब में किशोर चौधरी जी बताते हैं कि बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लड़ाई लड़ी गयी थी जो कि एक तरबूज के लिए लड़ी गयी थी और इतिहास के पन्नों में "मतीरे की राड़" (वॉर फ़ॉर ए वॉटर मेलन) के नाम से प्रसिद्ध है। उसका किस्सा कुछ इस प्रकार है कि तरबूज़ की बेल एक रियासत में उगी लेकिन उसका तरबूज़ दूसरी रियासत में जा कर उगा और फिर दोनों रियासतों ने उस तरबूज़ पर अपना अपना दावा ठोंक दिया। 
 
वे बताते हैं कि  नागौर जिले की सूखी मेथी बहुत मशहूर है। पाकिस्तान के कसूर इलाके की सूखी मेथी ही कसूरी मेथी कहलाती है। महाशिया दी हट्टी के नाम से मशहूर अंतराष्ट्रीय ब्रैंड MDH ने भी अपना धंधा देगी मिर्च और नागौर की सूखी मेथी बेच कर जमाया था जो कि पाकिस्तानी कसूर जिले की सूखी मेथी से भी बेहतर थी। इनके अलावा और भी कई किस्से साथ साथ चलते हुए रोचकता बनाए रखते हैं। विज्ञान और भांग में गप्पबाज़ी के तड़के से उपजे किस्से तो आपको औचक ही हँसने पर मजबूर कर देते हैं। 

अगर आप बाड़मेर जिले समेत राजस्थान की यात्रा कुछ रोचक किस्सों के और यादों के ज़रिए करना चाहते हैं तो यह संस्मरणात्मक/ रेखाचित्रीय टाइप की किताब आपके मतलब की है। 144 पृष्ठीय इस किताब के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹125/-..
आने वाले भविष्य के लिए लेखक और प्रकाशक को बहुत बहुत बधाई।

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