बड़े दिन हो गए थे खाली बैठे बैठे… कोई काम-धाम तो था नहीं अपने पास.. बस कभी-कभार कंप्यूटर खोला और थोडी-बहुत ‘चैट-वैट’ ही कर ली। सच पूछो तो यार बेरोज़गार था मैं और इसमें अपनी सरकार का कोई दोष नहीं, दरअसल!…अपनी पूरी जेनरेशन ही ऐसी है। अब कोई छोटी-मोटी नोकरी तो हम करने से रहे क्योंकि हर किसी ऐरे-गैरे…नत्थू-खैरे को घड़ी-घड़ी कौन सलाम बजाता फिरे ? और फिर कोई छोटा- मोटा धंधा करना तो अपने बस की बात नहीं इसलिए बाप-दादा जो थोडी-बहुत पूंजी छोड गए थे…वो भी आहिस्ता-आहिस्ता खत्म होने को आ रही थी। आखिर!…वो भी भला कब तक साथ देती ? बीवी के तानों का तो शुरू से ही मुझ पर कोई असर होता नहीं था। उसकी हर बात को मैं एक कान से सुनता और दूसरे से बाहर निकाल देता। कई बार तो कान में घुसने तक ही ना देता।
पहले नकदी खत्म हुई फिर गहने-लत्तों का नंबर भी आ गया। एक-एक करके चीज़ें खत्म होती जा रही थीं लेकिन मेरी अकड़ ढीली होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक दिन मज़े से टीवी पर ‘ नो-एंट्री ‘ फिल्म देखते-देखते अचानक मैं खुशी के मारे उछल पडा। इसलिए नहीं कि फिल्म अच्छी थी बल्कि…अपुन के भेजे मे आइडिया आ गया था नोट कमाने का। अरे नोट कमाने का क्या,?…वो तो नोट छापने का आइडिया था। जैसे ही बीवी को बताया कि…
“एक आइडिया मिला है नोट छापने का”…तो वह गश खा कर धड़ाम करती हुए ऐसे गिरी कि वहीं के वहीं बेहोश हो गई। होश मे आने के बाद बोली….
“बस जेल जाने की कसर ही बाकी रह गई थी …. नोट छाप कर वह भी पूरी करने का इरादा है जनाब का? ”
मेरी हंसी रोके ना रुकी। बोला,…
“अरी भागवान!…नोट छापने का असली मतलब सचमुच में नोट छापना नहीं है”..
“तो फिर?”
“देखा नहीं, फिल्म में उस ज्योतिषी को?…. कितनी सफाई से ‘सलमान’ से पैसे ऐंठ लेता है और अनिल कपूर को बेवकूफ बनाता है”
“तो क्या हुआ?”
” अपुन का भी बस यही आइडिया है” …
” तुम्हारे पूरे खानदान में भी कोई ज्योतिषी हुआ है जो तुम बनोगे?”..
” हुआ तो नहीं लेकिन हमारी आनेवाली नस्लें ज़रूर ‘राज ज्योतिषी’ कहलाएगी”…
“पर ये सब करोगे कैसे?”…
“अरे!…कुछ खास मुश्किल नहीं है ये सब…बस…थोड़ा-बहुत त्याग मुझे करना होगा” …
“तो क्या दारू छोड़ दोगे?”बीवी के चेहरे पे खुशी के बादल आने को थे…
“पागल हो गई है क्या?…वो भी कोई छोड्ने की चीज़ है?”…
“तो फिर?” बीवी कुछ मायूस सी होती हुई बोली
“अरे!…ये हीरो-कट बाल छोड़ सीधे-सीधे लम्बे बाल रखूंगा”
“अरे वाह!..उसमें तो नाई का खर्चा भी बचेगा” बीवी चहक उठी
“कर दी ना तुमने दो कौड़ी वाली बात?…. अरे!…मैं लाखों में खेलने की सोच रहा हूं और तुम इन छोटी-छोटी बातों पर नज़र गड़ाए बैठी हो”मैं आगबबूला होने का नाटक सा करता हुआ बोला
“लेकिन आता-जाता तो तुम्हें कुछ है नहीं…खाली वेष बदलने से क्या होगा?” बीवी फिर बोल पड़ी
“अरे यार!..पहले पूरी प्लानिंग तो सुन ले…बाद मे अपनी बकबक करती रहिओ”
“जी!…बताऒ” बीवी आतुर नज़रों से मेरी तरफ ताकते हुए बोली
“हां!…तो मैं त्याग करने की बात कह रहा था…तो दूसरा त्याग ये करना पडेगा कि….ये गोविंदा-छाप चटक-मटक वाले कपड़े छोड़ सिम्पल धोती-कुरता पहनना पड़ेगा”
“वो तो शादी का पड़ा-पड़ा अभी तक सड़ रहा है अलमारी में” बीवी चहकते हुए फिर बोल पड़ी
“चलो!…ये काम तो आसान हुआ…अब कोने वाले कबाड़ी की दुकान से रद्दी छांटनी पड़ेगी”
“आय-हाय।…अब क्या रद्दी भी बेचोगे?” बीवी हैरान हो परेशान होती हुई बोली
“जब पता नहीं होता …तो बीच में चोंच मत लड़ाया कर” मैं आँखे तरेर गुस्से से लाल-पीला होता हुआ बोला
“बेवाकूफ!..पुराने अखबारों में जो भविष्यफल आता है… उन्ही की कतरनों को सम्भालकर रखूंगा, वक्त-बेवक्त काम आएंगी और अगर एस्ट्रॉलजी से रिलेटेड कोई किताब मिल गई तो…अपनी पौ-बारह समझो”
“पौ-बारह मतलब?”…
“अरी बेवकूफ!… पौ-बारह मतलब…लॉटरी लग गई समझो”…
“लेकिन ये ’जन्तर-मन्तर’ वगैरा कहां से सीखोगे भला?”
“कोई खास मुश्किल नहीं है ये सब भी…बस!…’बल्ली सागू’ या फिर ‘बाबा सहगल’ के किसी भी पुराने रैप सॉन्ग को कुछ इस अन्दाज़ से तेज़ी से…होंठो ही होंठो मे बुदबुदाना होगा कि किसी के पल्ले कुछ ना पड़े”…
?…?….?…?….बीवी कि समझ मे कुछ नहीं आ रहा था
“बस!…हो गया…. ‘ जन्तर-मन्तर काली कलन्तर”…
“ऒह!…समझ गई…समझ गई”..बीवी का ट्यूबलाईटी अचनक फक्क से रौशन हो उठा
बस!..फिर क्या था?…मोटी कमाई के चक्कर में बीवी के बटुए का मुंह खुल चुका था। इसलिए ज़रूरी सामान इकट्ठा करने के बहाने उससे पैसे ले मैं चल पड़ा बाज़ार। पहले ठेके से दारू की बोतल खरीदी और फिर जा पहुंचा बाज़ू वाले कबाड़ी की दुकान पर। एक-दो पेग मरवाए उसे और अपने मतलब की रद्दी छांट लाया। अब दिन-रात एक करके हम मियां-बीवी उन कतरनो का एक-एक अक्षर चाट गए और इस नतीजे पर पहुंचे कि…पूरी दुनिया में इससे आसान काम तो कोई और हो ही नहीं सकता।
अब आप पूछोगे कि….”वो भला कैसे?”
तो ये भाला मैं आपको क्यों बताऊं और अपने पैरों पे ख़ुद ही कुलहाड़ी मार लूं?….कहीं मुझसे ही कॉम्पिटीशन करने का इरादा तो नहीं है ना आपका?”..
“क्या कहा?…. चिंता ना करूँ?
“ठीक है!…जब बीवी पर विश्वास करते हुए उसे सब कुछ सच बता दिया था तो आपसे क्या छिपाना?…आपको भी उसी टोन…उसी लैंगवेज़ मे सब कुछ वैसे ही समझा देता हूँ जैसे बीवी को समझाया था”..
“आप भी तो अपने ही हैं…कौन सा पराए हैं?”.
“कुछ ख़ास मुश्किल नहीं है ये सब…. बस!…सिम्पल-सी कुछ बातें गांठ बांध लो कि…
- हर बंदा अपने को अच्छा और बाक़ी सबको बुरा समझता है…
- हर-एक को यही लगता है कि वह सही है और बाक़ी सब ग़लत…
- कोई उसे सही ढंग से समझ ही नहीं पाया आज तक…
- वह अपनी तरफ़ से कड़ी मेहनत करता है लेकिन उसे उसका पूरा फल नहीं मिलता…
- सब के सब उसकी कामयाबी से जलते हैं…
- कोई उसका भला नहीं चाहता…
- दोस्त-यार…रिश्तेदार…भाई-बहन…पड़ोसी…सब के सब मतलबी हैं…कोई उसकी ख़ुशी से ख़ुश नहीं हैं…
- वह सब पर तरस ख़ाता है, लेकिन कोई उस पर नहीं…
- किसी ने उस पर कोई जादू-टोना किया हुआ है… या फ़िर…
- उसकी दुकान या मकान को बांध दिया है…
“यहाँ मेरी इस बात से कहीं ये मतलब ना निकाल लेना कि सामने वाले का चौखटा देखते ही उस पर ज़ोर से हथौड़ा धर देना है…ऐसा करने कि कभी सोचना भी मत…हमेशा के लिए अंदर हो जाओगे”…
“समझ गए ना कि चौखटा देख के सिर्फ डायलाग ही मारने हैं..ईंट-पत्थर या हथौड़े नहीं?”…
“ओ.के!…मुझे आपसे यही उम्मीद भी थी”..
“अगर तीर सही निशाने पर लगा तो समझो कि अपनी तो निकल पड़ी”..
“अब आप पूछेंगे कि …अगर निशाना ग़लत लगा तो?”
“तो उसके लिए…फिकर नॉट… घुमा-फिरा कर 2-4 डायलॉग और मार दो बस…कोई ना कोई तो अटकेगा ज़रूर”..
“और हाँ!… अगर ऊंचे लैवल का गेम खेलना है…तो दो-चार चेले-चपाटे भी साथ रख लो…एक-आध चेली भी मिल जाए तो कहना ही क्या?”…
“अगर कोई ना मिले तो?”..
“चौक से ही दिहाड़ी पर पकड़ लाओ…बड़े बे-रोज़गार हैं अपने देश मे…कोई ना कोई अपने मतलब का मिल ही जाएगा पर हाँ!…इतना ज़रूर ध्यान रखना कि….चेला रखना है…गुरु नहीं”…
?…?…?..?..
“कहीं ऐसा ना हो कि अगले दिन ही वो तुम्हारे सामने तेल की शीशी और चटाई लिए बैठा…तुम्हारा ही बंटाधार करता नज़र आए”…
“एक ज़रूरी बात…चौक पर बिकने वाला तोता अगर मिल जाए, तो धंधे में और रौनक आ जाएगी”…
“वो कैसे?”…
“कुछ खास नहीं..बस!..तोते को भूखा रखना है और… भविष्य की पर्चियों पर अनाज का दाना चिपका देना है।पंछी बेचारा तो भूख के मारे अनाज के दाने वाली पर्ची उठाएगा और बकरा बेचारा बस यही समझेगा कि मिट्ठू महाराज ने उसका नसीब बांच दिया है”..
“और उस पर्ची के अंदर लिखा क्या होगा?” …
” हे भगवान!…आप तो हूबहू मेरी बीवी के ही अंदाज़ मे पूछ रहे हैं…इरादा तो ठीक एव नेक है न आपका?…
“कमाल है!…जैसे पूरी रामायण खत्म होने के बाद वो पूछ रही थी कि …” सीता…राम की कौन थी?”
“आप भी उसी टोन …उसी लय मे पूछ रहे हैं कि पर्ची के अंडा क्या लिखा होगा?”…
“मेरा सर लिखा होगा”..
“चढ़ा दिया न बिना बात के गुस्सा?….अब खुश?”….
“ठंडक मिल गई न आपके कलेजे को?”..
“क्या कहा?…खामख्वाह नाराज़ हो रहा हूँ मैं?…गुस्से को थूक दूँ?”…
“ठीक है!…जब कभी मैं अपनी बीवी कि बात नहीं टाल सका तो आपकी कैसे टाल दूँ?”…
“ओ.के!..जैसे मैंने उसे टुट्टा सा जवाब दिया था…आपको भी वैसे ही दे देता हूँ”….
“अरी भागवान!…अभी ऊपर इतने सारे मन्तर तो बताता आया हूँ…उन्ही मे से कोई ना कोई तो ज़रूर फ़िट बैठेगा” मैं दाँत किटकिटा का उन्हे गुस्से से पीसता हुआ बोला
“हम्म!…
“लगता है कि आपकी भी समझ मे बात आ चुकी है”…
“जी”…
“तो फिर आगे कि कथा बांचू?”…
“जी”..
कैसे लोगों का फुददु खींचना है?…ये सब तरीका तो अब तक समझ आ ही चुका था इसलिए बिना किसी प्रकार के देरी किए एक दिन ऊपरवाले का नाम ले बीच बाज़ार पहुँच…ऊँचे वाले बरगद के पेड़ के नीचे अपना डेरा जा जमाया। कोई न कोई कोई असामी रोज़ टकराने लगी। किसी को कुछ , तो किसी को कुछ इलाज बताता उसकी हर तक़लीफ़ या बीमारी का। एक से तो मैने एक ही झटके में पूरे बारह हज़ार ठग डाले थे। बड़ी आई थी मज़े से कि…
“महाराज!…बच्चा नहीं होता है…कोई उपाय बताओ”
मैंने सोचा कि…”अगर नहीं होता है तो कुछ ‘ओवर-टाइम’ लगाओ….’माल-शाल’ खाओ और अगर फिर भी बात नहीं बनती है तो किसी अच्छे डॉक्टर-शॉक्टर के पास जाओ। ये क्या कि सीधे मुंह उठाया और ज्योतिषी के पास चली आई?”
“अब यार!..अपने घर की ड्यूटी तो ढंग से बजाई नहीं जाती अपुन से,…ऊपर से ओवरटाइम कौन कमबख्त करता फिरे??”…
“लेकिन मंदा है…फिर भी…धंधा तो धंधा है”…
“सो!…उस बेचारी को कुछ उलटी-पुलटी चीज़ें बताई लाने के लिए जैसे…
- काली शेरनी का दूध…
- जंगली भैंसे का सींग …
- शुतुर्मुर्ग का कलेजा और न जाने क्या-क्या…
“कहाँ से लाऊंगी ये सब?”…
“मौके कि नज़ाकत को भाँप मैंने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा…” आप चिंता ना करें…परसों…मेरा शागिर्द नेपाल कि तराई के जंगलो से आनेवाला है…उसे ही संदेशा भिजवा देता हूँ…वही लेता आएगा”…
उसने हामी भर दी…और चारा भी क्या था उसके पास? नकद गिन के पूरे बारह हज़ार धरवा लिए…फिर जाने दिया उसे। मोटी-कमाई तो हो ही चुकी थी…सो!…मैंने भी वक्त गँवाना ठीक नहीं समझा और झट से अपना झुल्ली- बिस्तरा संभाल चल पड़ा घर की ओर। रस्ते में विलायती की पेटी ले जाना नहीं भूला। ख़ुश बहुत था मैं उस दिन, बस!…पीता गया, पीता गया। कुछ होश नहीं कि कितनी पी और कितनी नहीं पी?…जब होश आया तो बीवी ने बताया कि…
” पूरे तीन दिन तक टुल्ली रहे आप…ख़ूब उठाने की कोशिश की लेकिन कोई फ़ायदा नहीं…इधर से उठाऊँ तो उधर जा के पसर जाओ…उधर से उठाऊँ तो इधर आ के लंबलेट हो जाओ”
“तो क्या?…पूरे तीन दिन दुकान बन्द रही?”
“और नहीं तो क्या?”…
“ओह!…मैं एक झटके से खुद को झटक कर उठ खड़ा हुआ और भाग लिया सीधा दुकान की ओर। पूरे रास्ते यही सोचे जा रहा था कि तीन दिन में पता नहीं कितने का नुक़सान हो गया होगा? कुछ दिनो कि जीतोड़ मेहनत के बाद हाथ कुछ जमने सा लगा था। नतीजन!…गलती से या पता नहीं कैसे मेरे तुक्के सही निशाने पे लगने लगे थे”…
मैंने भी सोच जो लिया था कि….
“लग गया तो तीर…नहीं तो तुक्का सही…बीड़ी नहीं…तो हुक्का सही”..
“मेरे अजीबोगरीब इलाजों से किसी-किसी को थोड़ा-बहुत फ़ायदा भी होने लगा लेकिन 8-10 बार शिकायत भी आई कि…
“महाराज!…आपकी तरकीब तो काम न आई…कोई और जुगाड बताओ”…
ऐसे बकरों का तो मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता था। एक ही पार्टी को दो-दो दफा जो शैंटी-फ्लैट करने का मज़ा कुछ और होता है। उनके द्वारा किए गये इलाज में कोई न कोई कमी ज़रूर निकालता और नये सिरे से बकरा हलाल होने को तैयार। पुरानी कहावत भी तो है कि…
“खरबूजा चाहे छुरी पर गिरे या फ़िर छुरी खरबूजे पर… कटना तो खरबूजे को ही पड़ता है”…
अपुन का कॉन्फिडेंस ‘टॉप-ओ-टॉप’ बढता ही जा रहा था कि एक दिन अचानक एक ‘जाट-मोलढ’ टकरा गया….
पूरी राम कहानी सुनने के बाद मैंने उससे…उसकी परेशानी का इलाज बताने के नाम पर 2 हज़ार माँग लिए। जाट ठहरा जाट…पट्ठा..सौदेबाज़ी पर उतर आया। खूब हील-हुज्जत के बाद आख़िर में सौदा 450 रुपये में पटा। उसने धोती ढीली करते हुए जो नोट निकाले, तो जनाब…मेरी आंखें तो फटी की फटी ही रह गईं। नज़र धोती में बंधी नोटों की गड्डी पर जो जा अटकी थी लेकिन अब क्या फ़ायदा?…जब चिड़िया चुग गयी खेत। मैं तो यही सोचे बैठा था कि बेचारा ग़रीब मानुस है…इसे तो कम से कम बख्श ही दूं”…
“आख़िर!…ऊपर जाने के बाद वहाँ भी तो अपने हर अच्छे-बुरे कर्म का हिसाब देना पड़ेगालेकिन यह बांगड़ू तो मोटी आसामी निकला”…
“उफ़!…यहीं तो मार खा गया इंडिया”…
साढ़े चार सौ जेब के हवाले करते हुए मुंह से बस यही निकला…”ताऊ!…काम तो करवा रहे हो पूरे अढाई हज़ार का और नोट दिखा रहे हो टट्टू?”
“बेटा!…टट्टू तो तुमने अभी देखा ही कहाँ है?..वो तो अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा” कहते हुए उसने किसी को इशारा किया और तुरंत ही मेरे चारों तरफ़ पुलिस ही पुलिस थी…
“स्साले हरामखोर!…पब्लिक का फुद्दू खींचता है?….अब बताएंगे तुझे…चल थाने”…
“बड़ी शिकायतें मिली हैं तेरे खिलाफ़”…
“स्साले!…वो S.H.O साहेब की मैडम थीं, जिससे तूने बारह हज़ार ठगे थे”…
“चल!…चल अब थाने…हम तुझे बताएंगे कि ….
“बच्चा कैसे होता है?”…
राजीव तनेजा
4 comments:
बढिया लिखा है लेकिन जेल से कब छूटे:(
बढ़िया तो लिखा है पर थोडा ज्यादा लिखा है।
परमजीत जी की बात हम भी पूछते है। :)
खैर कुछ दे दिला कर मामला सुलटाओ और दूसरे शहर मे जाकर काम जमाओ।
सच। हमारे देशमेँ ऐसै रोजगार बहुत चलते हैँ ।
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