"पूरे चौदह साल"
***राजीव तनेजा***
"आज वक़्त नहीं था मेरे पास",..
"इधर-उधर भागता फिर रहा था" ,...
"सारे काम मुझे ही जो संभालने थे"...
"मेहमानों का जमघट लग चुका था,...
"उनकी खातिर् दारी में ही फंसा हुआ था सुबह से"
"खूब रौनक-मेला लगा था"...
"बच्चे उछल कूद रहे थे"...
"मैँ कभी टैंट वाले को,तो कभी हलवाई को फोन घुमाए चला जा रहा था"..
"साले पता नहीं कहाँ मर गये सब के सब ?"
"कम्भखत जब से फ्री इनकमिंग का झुनझुना थमाया है इन मुय्ये मोबाईल वालों ने जिसे देखो....
कान पे लगाए लगाए तमाशबीनी करता फिरता है गली गली"
"मानो फोन ना हुआ माशूका का लव-लैटर हो गया"
"जी ही नहीं भरता सालों का "
"और ऊपर से कुछ कंपनियों ने आपस में अनलिमिटिड टाक टाईम दे के तो...
अपनी और साथ-साथ दूसरों की भी वाट लगा डाली"
"अरे बेवाकूफो अपना...लिमिट में बातें करो"
"ये क्या कि...माशूका से मतलब की बातें करने के बजाय...
'क्या बनाया है'या फिर...
'क्या पकाया है ?'....
'कौन से कपडे पहने हैँ?"...
"कितने बजे सोई थी?"
"और जब कुछ ना मिले कहने को तो 'और सुनाओ'....
'और सुनाओ'करके गेंद सामने वाले के पाले में डाल दो कि....
ले बेटा अब तू ही नई-नई बातें ढूंढ करने के लिये"
"अपना कोटा तो हो गया पूरा"
"उफ: कितना बिज़ी रखते हैँ फोन?"
"ढोलवाला पूरी लगन से मगन हो ढोल बजाए चला जा रहा था और. ...
बजाता भी क्यों न?" ...
"मनमानी दिहाडी जो मिल रही थी"...
"सब मेहमान ढोल की ताल पे नाचे चले जा रहे थे
"इंगलिश की पेटियाँ तो एडवांस में ही मंगवा ही चुका था मैँ,....
इसलिए दारू-शारू की कोई चिंता नहीं थी कि ...
बीच में ही खत्म हो गयी तो मज़ा किरकिरा ना हो जाए कहीं"
"दुलहन की तरह सजा हुआ था मेरा बंगला"
"मज़े ले ले कर तर माल पे हाथ साफ किया जा रहा था"...
"किसी की बाप का कुछ जा जो नहीं रहा था"
"जा तो अपुन का रहा था ना?
"लेकिन बरसों बाद मिली खुशी के आगे सब कुर्बान"
"बस सबके चेहरे पे एक ही सवाल घूमडता दिखाई दे रहा था कि ...
आखिर माजरा क्या है ?"
"ये कंजूस-मक्खी चूस आखिर इतना दिलदार कैसे हो गया?"
"कहीं कोई लाटरी तो नहीं लग गयी ?
"कहीं ना कहीं दाल में काला है ज़रूर"
"अरे तुम क्या जानो यहाँ तो पूरी दाल ही काली है" मैँ मन ही मन खुश हुए जा रहा था
"मुफ्त में माल जो मिल रहा था तो सभी खामोश थे कि... .
"अपुन को क्या?"
"कोई मरे या जिए"वाला भाव उनके चेहरे पर था
"क्या कोई लाटरी लगी है?"
"किस खुशी के मौके पे दावत दी जा रही है जनाब?"कोई ना कोई इस तरह के बेतुके सवाल दागे ही दे रहा था बीच-बीच में
"अरे तुम्हें टटटू लेना है?"
"अपना खा-पी और मौज कर "
"क्यूं फटे छेद में से बोरी के भीतर घुसने में वक्त ज़ाया कर रहे हो ?"
"कुछ समझ्दार इंसान भी थे जो खाओ-पिओ और अपना रास्ता नापो की पालिसी पे चल रहे थे "
"बीच-बीच में कोई ना कोई ढीठ बन के पूछ ही बैठता तो उसे जवाब तैयार मिलता कि...
"ये सब ना पूछो,बस मौज करो"
"मेहमान-नवाज़ी के चक्कर में थकान के मारे हालत पतली हुए जा रही थी लेकिन...
खुशी का मौका ही ऐसा था कि उछलता फिर रहा था मैँ"
"आखिर खुश क्यों नहीं होता मैँ?"
"पूरे चौदह साल बाद खुशी के ये पल जो नसीब हुए थे"
"लगता था जैसे चौदह साल का वनवास काट मैँ राजगद्दी संभाल रहा हूँ "
"खुशी से मन ही मन इस गीत के बोल फूट रहे थे ....
"दुख:भरे दिन बीते रे भईया ,अब सुख: आयो रे"...
"नौकर-चाकर भी तो कम ही पड गये थे आज"
"सब के सब मेरी खातिर पूरे जी-जान से हर काम में हाथ बटा रहे थे,....
अच्छे ईनाम का लालच जो था"
"इस सब आपा-धापी के चक्कर में शायद कही मैँ कुछ भूले जा रहा था",
"कहीं कोई यार-दोस्त,रिश्तेदार बुलाए जाने से तो नहीं रह गया है कहीं कि बाद मे ताने सुनने पडें सो अलग "
"बडी ही बारिकी से लिस्ट को चैक करने के बाद भी कहीं कोई गल्ती या कमी नज़र नहीं आ रही थी"
"लेकिन कुछ ना कुछ तो छूटा है ज़रूर"मैँ अपने आप से बातें करता हुआ बोला
माथे पे ज़ोर डाल मैँ सोचे चला जा रहा था कि अचानक सब याद आ गया...
"ओह!"..
"हे भगवान!अब क्या होगा?....
"ये मैने क्या किया?"
"कहाँ मति मारी गयी थी मेरी जो इतनी ज़रूरी बात दिमाग से उतर गयी?"
"बेवाकूफी के भी हद होती है"
"इतना ना-समझ मैँ कैसे हो गया?"
"रौंगटे खडे होने को आए थे"
"लेकिन हिम्मत तो करनी ही होगी"....
"जितने जल्दी हो सके इस काम को निबटा ही दूँ"
"साँप के बिल से निकलने से पहले ही लाठी भांज देता हूँ"
"बस यही सोचकर फोन घुमा दिया"...
"वही हुआ जिसका मुझे डर था",
"सामने से कडकती हुई अवाज़ आई,..
"कब?"...
"कहाँ?"...
"कितने बजे?"
"पहले फोन क्यों नहीं किया?"
"पता नही साला दिमाग को क्या हुए बैठा था जो वहाँ भी यही निकल पडा...
"तुम्हें टट्टू लेना है? अपना खाओ-पिओ और मौज करो"
"साले!...सीधी तरह बताता है कि नहीं?"उधर से गुर्राते हुए अवाज़ आई
"और ये बैण्ड बाजे का क्या शोर हो रहा है ?"
"मैँ सकपका गया और धीरे से बोला "जी मेरी बीवी भाग गयी है ना...सो थोडा बहुत इंजाय कर रहे थे"
"जल्दी से पूरा नाम-पता बता, अभी तेरी खबर लेते हैँ "
"साले जब रिमांड के आगे तो अच्छों के बोल बचन फूट पडते हैँ तेरी क्या औकात ?"
"बैण्ड तो अब तेरा बजेगा बच्चू"
"हमें बरगलाता है "कहते हुए दूसरी तरफ से फोन पटक दिया गया
"कुछ और नहीं बक सकता था मैँ?"
"शेर की दहाड सुन हिरन बावला हो उठा"
"कंठ सूखे जा रहा था ",...
"मन ही मन काँप रहा था कि पता नहीं साले क्या -क्या पूछेगे?"
"और मै क्या-क्या जवाब दूंगा?"
"टटटू जवाब दूगा?"
"फ़टी तो अपनी पहले से पडी है"
"इसी उधेड्बुन में ही था कि पुलिस का सायरन सुनाई दिया",
"क्या सिर्फ हिन्दी फिल्मों में ही पुलिस देर से आती है?"
"असल ज़िन्दगी में पुलिस इतनी तेज़ होती है ?"
"इस से तो फिल्में ही अच्छी हैँ "
"कम से कम ,कुछ पल के लिये ही सही लेकिन दर्द-ओ-गम तो भुला देती हैँ"
"एस.एच.ओ'साहब खुद ही दल-बल के साथ ही पधारे थे"
"एक कडक अवाज़ सुनाई दी "ओए ..ये राजीव का बच्चा कौन है?"
"कोई नहीं बोला"..
"'एस.एच.ओ'चिल्लाया "ओए राजीव के बच्चे ...बाहर निकल"
"मैँ डरते -डरते आहिस्ता से सामने आया"
"सर्दी के मौसम मे भी पसीने छूटे चले जा रहे थे"
"जी....मै ही हूँ राजीव "
"चल तेरे से प्राईवेट मेँ कुछ बात करनी है"वो मेरा हाथ थामे कोने में ले गया
"इधर-उधर देखने के बाद फुसफुसाते हुए बोला"यार!... ये कमाल तूने कैसे कर दिखाया?"
"जी वो...जी वो...."
"अबे ये जी वो...जी वो से आगे भी बढेगा या वहीं चिपक गया?"पुलसिया रौब झाडता हवलदार बोल पडा
"चुप...बिलकुल चुप" एस.एच.ओ' हवलदार इशारा करा हुआ बोला
"तुम बताओ" एस.एच.ओ. की मीठी अवाज़ सुनाई दी
"बात दर असल ये है कि"....मेरी ज़ुबान लडखडा रही थी
"एस.एच.ओ. साहब ने इधर-उधर देखते हुये चुपचाप हज़ार-हज़ार के दो कडकडाते हुए नोट मेरी हथेली पे धर दिए"
"मै मना करता रहा लेकिन वो नहीं माना"
"मेरी ना-नुकर देखते हुए उन्होंने आँखो ही आँखो में आपस में बात की और फिर ....
खुद 'एस.एच.ओ' साहब ने आठ नोट और मेरी जेब के हवाले कर दिए और बोले...
"आज तो बस इतनी ही दिहाडी बनी है " ....
"समझा करो"...
"ये भी मैँ और चारों हवलदार मिलकर दे रहे हैँ"
"कौन कहता है कि अपने देश में एकता नहीं है ?"
"यहाँ सब मिल-बांट के खाते हैँ"
"हाथ-कंगन को आरसी क्या?" और ...
"पढे लिखे को फारसी क्या?"
"जीता-जागता नमूना तो मैँ खुद अपनी खुली आँखो देख रहा था"
"आजकल मंदा बहुत चल रहा है यार "
"कोई दे के राज़ी ही नहीं है"
"ये भी किसी गरीब मानस के ड्ण्डा चढाया तो जा के बडी मुशकिल से इक्ट्ठा हुए हैँ"
"इसी भर से काम चला लो गुरू"
"हम सब की यही प्राबल्म है ....कोई जुगाड बताओ "
"अरे आप तो मेरे ही भाई-बन्धु निकले.....
आपको तो बताना ही पडेगा"खिसियाते हुए मैँ नोट अपनी जेब के हवाले करता हुआ बोला
"कुछ ना कुछ आप हर रोज़ ऐसा करें कि मुसीबत खुद ही एक ना एक दिन ...
परेशान हो के अपने आप ही भाग जाये"
"किसको पढा रहे हो गुरू?"
"ये सब तो हमें भी पता है"...
"आज़मा चुके हैँ कई बार"
"लेकिन क्या करें?.....
"साली .. अपनी है कि भागने का नाम ही नहीं लेती है"वो सब के सब एक साथ बोल पडे
"अरे यार पहले पूरी बात तो सुन लो....
लगे बीच में ही टोका-टाकी करने "
"जहाँ करनी है टोका-टाकी वहाँ तो बोल नहीं फूटते होंगे ज़बान से "
"सब चुप ....लगे टकटकी बाँध मेरी तरफ देखने"
"उसके हर काम में 'टोका-टाकी' करो ....
"घडी भर भी चैन से बैठने ना दो"
"कभी 'ये ...ला'.... तो कभी....
'वो...ला' करते रहो"...
"खाना जितना मर्ज़ी स्वादिष्ट बना हो लेकिन एक बात गांठ बांध लो कि....
तारीफ तो कभी भूल के भी करनी ही नहीं है ना"
"खाने की तरफ देख के नाक-भोहं ज़रूर सिकोडो"....
"पडोसन की बार-बार और... जी भर तारीफ करो".....
"राह में आती-जाती हर किसी की....माँ-बहन एक करो "
"इस सब में तो हम सभी एकदम एक्सपर्ट हैँ"एक हवलदार बोल पडा
"उसकी बात को अन-सुना करता हुआ मैँ आगे बोला "हर लडकी/औरत को छेडो...
"चाहे वो उमर में तुमसे दुगनी ही क्यों ना हो"
"बेशक माँ बराबर हो, फिर भी उसे ज़रूर घूरो"
"बीवी की कोई बहन या सहेली हो तो उसे बिना नागा लाईन मारो"..
"उलटी-सीधी फब्तियाँ कसो "
"अपने लिये नए-नए कपडे खरीदो और उसके लिये फूटी-कौडी भी नहीं खर्चा करो "
दहेज के नाम पे बार-बार तंग करो"
"उसके हर काम में कोई ना कोई नुक्स ज़रूर निकालो"
"इससे बात नहीं करनी है, उसको नहीं देखना है" वगैरा वगैरा अपने पैट डायलाग बना लो"
"उसके रिश्तेदारों को हर् वक्त बे-इज्जत करो"
"और सबसे इम्पोर्टैंट बात कि ...
चाहे उसका मन (*&ं%$#@ के लिये करे ना करे लेकि न तुम (*&ं%$#@ .... तुम ज़रूर करो"
"अरे यार ये सब तरीके तो आज़माए हुये है लेकिन....कोई फायदा नहीं"एस.एच.ओ.बोला
"कोई नया जुगाड बताओ जिसके काटे का इलाज ना हो "
"अरे अगर ऐसी बात है फिर 'पुल्सिया हाथ'है आपका ....
दिखा दो...
एक-दो में ही शैंटी-फ्लैट हो जाएगी "...
"दो सीधा खींच के ...कान के नीचे.....
"झटाक...."कहते हुए मैने गलती से 'एस.एच.ओ.'साहब के ही कान पे एक धमाकेदार रसीद कर दिया
"साले!.....पुलिस पे हाथ उठाता है" ....
"ले 'थपाक'....और ले ...'थपाक'...
"गाल पे पाँचो उंगलियाँ छप चुकी थी"
"पता नहीं मार का असर था के फिर कुछ और....
'एस.एच.ओ.'साहब की अवाज़ कुछ-कुछ ..बदली-बदली सी लगने लगी थी
"शायद कुछ-कुछ 'ज़नाना' सी"
"ध्यान से आँखे मिचमिचाते हुए देखा कि मैँ गाल पे हाथ धरे धरे पलंग से नीचे गिरा पडा हूँ और...
सर पे बीवी खडी-खडी चिल्ला रही है ....
"उठ ...उठ...'कुंभकरण' की औलाद... उठ ....
"किसको शैंटी-फ्लैट कर रहे थे?"
"और ये किसे उल्टी पट्टी पढाई जा रही थी?"
"मैँ घडी दो घडी के लिये बाहर क्या गयी....
सब काम-धन्धा छोड अराम फरमाया जा रहा है "
"बरतन कौन मांजेगा?"
"तुम्हारा बाप?"
"और ये कपडे कैसे धोए हैँ?...
"किसी पे 'नील'नहीँ लगा है और किसी का 'कालर' गंदा "
"पूरे चौदह साल हो चुके हैँ तुम्हें समझाते-समझाते लेकिन ...
दिमाग जैसे घास चरने गया रहता है हर-दम "
"लगता है जब ऊपरवाला अक्ल बांट रहा था तब भी तुम सो ही रहे होगे"
"हुँह!....बडे आए 'शैंटी-फ्लैट' करने"
***राजीव तनेजा***
1 comments:
बीवियों से प्रताडित लोग ।
Post a Comment