"बिना खडग बिना ढाल"
***राजीव तनेजा***
" बस नहीं चलता मेरा इन साले ट्रैफिक वाले हवलदारों पर"......
"मेरा!...मेरा चालान काट मारा"...
"लाख समझाया कि ले दे के यहीं मामला निबटा ले लेकिन नहीं"...
"साले को!..ईमानदारी के कीडे ने जो डंक मारा था"...
"कैसे छोड देता?"
"कोर्ट का चालान किए बिना नहीं माना"...
"क्या ज़ुर्म था मेरा?"...
"बस!..ज़रा सी लाल बत्ती ही तो जम्प की थी मैँने और...
कौन है ऐसा जिसने कभी जम्प ना की हो?"...
"ठीक है!..माना कि मैँ जल्दी में था और वैसे भी आजकल जल्दी किसे नहीं है?"...
"ज़रा बताओ तो"..
"मैँ मासूम करता भी क्या?"...
"बार बार माशूका का जो फोन पे फोन आए जा रहा था"...
"मोबाईल पे उससे बतियाते बतियाते ध्यान ही नहीं रहा कि कब लाल बत्ती जम्प हो गई"...
"अब!..हो गई तो हो गई"...
"कौन सा तूफान टूट पडा?"...
"एक को बक्श देता तो क्या घिस जाता?"...
"पूरी दिहाडी गुल्ल हो गई इस मुय्ये चालान को भुगतते भुगतते"...
"कभी इस कोर्ट जाओ तो कभी उस कोर्ट जाओ"....
"कभी इस कमरे में जाओ तो कभी उस कमरे में"...
"कभी इसके तरले करो तो कभी उसके"....
"जैसे मुझे कोई और काम ही नहीं है"
"वेला समझ रखा है क्या?"...
"इसी भागदौड में कब सुबह से दोपहर हो गई पता ही नहीं चला"..
"आखिर में बात बनी जब सही अफसर तक जा पहुँचा लेकिन...
वो बाबू तो लंच टाईम होने की वजह से अपना टिफिन खोलने को था"...
"मैँने सोचा कि लो!...एक और घंटा गया इसी नाम का"
"लाख मान मनौवल की लेकिन ज़िद्दी इतना कि...नहीं माना"
"बहुत रिक्वैस्ट की"...
"एक दो जानकारों का नाम लिया तो साफ मना कर गया कि "मैँ नहीं जानता इन्हें"..
पता नहीं फिर क्या सोच बोला "अच्छा!...जा किसी ऐसे बन्दे को ले आ जिसे मैँ जानता हूँ और उसे तू भी जानता हो"...
"तेरा काम कर दूंगा"...
"अब यहाँ!...साला मैँ अनजानी जगह किसको ढूँढता फिरूँ?और...
कोई मिल भी गया तो वो भला मेरी बात क्यों मानने लगा?"
"चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया". ..
"और कर भी क्या सकता था मैँ?"
"थक हार के जब कुछ ना सूझा तो पता नहीं क्या सोच मैँ वापिस बाबू के कमरे में चला गया"
"सीधा जेब में हाथ डाल पाँच सौ का करारा नोट निकाल बोला"देख ले इसे ध्यान से"...
"गान्धी है!...इसे तू भी जानता है और इसे मैँ भी जानता हूँ"...
"बाबू मुस्कुराया और नोट खीसे के हवाले करता हुआ बोला" बडी देर से समझ आई तेरे बात।"
"समझ तेरा काम हो गया"कह मोहर लगा रसीद मेरी हथेली पे धर दी
"पहले ही बहुत देर हो चुकी थी सो!..झट से बाईक उठाई और चल दिया"
"हाँ!...
हाँ डार्लिंग...
बस पहुँच गया"...
"बस दो मिनट"....
"यहीं पास में ही हूँ"कह मैँने बाईक की रफ्तार और बढा दी....
"एक तो मैँ पहले से शादी शुदा और ऊपर से तीन बच्चे..
बडी मुश्किल से सैटिंग हुई है"....
"ज़्यादा देर हो गई तो कहीं बिदक ही ना जाए"
"कुछ पता नहीं आजकल की लडकियों का"
"ओफ्फो!...ये क्या?"...
"फिर लाल बत्ती हो गई"...
"पता नहीं सुबह सुबह किसका मुँह देखा था ...देर पे देर हुए जा रही है आज तो"...
"जो होगा देखा जाएगा सोच मैँने बिना रोके गाडे आडी तिरछी ...ज़िग-ज़ैग चलाते हुए लाल बती जम्प करा दी"
"अब रोज़ की आदत जो ठहरी"
"इतनी आसानी से कैसे छूटेगी?"
"ये क्या?....
ये साले ठुल्ले तो यहाँ भी खडे हैँ"...
"पागल का बच्चा!...कूद के बीच में आ गया"...
"अभी ऊपर चढ जाती तो?"
"सब यही कहते कि बाईक वाले की लापरवाही से कांस्टेबल की टाँग टूटी"...
"अब टूटी तो टूटी"...
"मैँ क्या करू?"
"बडी बदनामी हो जाएगी ये तो ...कल के अखबार में मेरी फोटो जो छपेगी"
"सब मेरी ही गल्ती निकालेंगे"...
"कोई ये नहीं छापेगा कि वही पागल कांस्टेबल का बच्चा कूद के बीच में आ गया था"
"साले!.. छब्बीस जनवरी के चक्कर में बडॆ मुस्तैद हो के ड्यूटी दे रहे हैँ"...
"अपनी जान की खैर तो करो कम से कम"...
"ये क्या कि अपनी जान हथेली पे लिए-लिए ड्यूटी बजा रहे हो?"...
"इतना भी नहीं जानते कि ...जान है तो जहान है"
"क्यों बे?...बडी जल्दी में है?"
"कहीं डाका डाल के निकला है क्या?"..
"वो जी!..बस ऐसे ही"....
"थोडा लेट हो गया था...इसलिए"...
"इतनी जल्दी होती है तो घर से जल्दी निकला कर"
"कही दारू तो नहीं पी हुई है साले ने"एक मुझे सूंघता हुआ बोला
"पट्ठे ने इंपोर्टेड सैंट लगाया हुआ है"....
"ज़रूर इश्क-मुश्क का चक्कर होगा"वो बोला...
" साले!..क्या अकेले-अकेले ही मज़े करेगा?"दूसरा बोल उठा
"मतलब!...
मतलब क्या है आपका?"
"सेवा-पानी तो करता जा"
"ओह!...
मैँने सकपकाते हुए जेब में हाथ डाला
गान्धी का पत्ता निकालते हुए मन ही मन सोच रहा था
" एक वो थे जो लेने को राज़ी नहीं थे और ये!...बिना लिए मानने को राज़ी नहीं हैँ"
"वाह!...
वाह रे गान्धी....वाह"...
"तेरी महिमा अपरम्पार है"...
"तू पहले भी बडा काम आया अपने देश के और अब भी बडा काम आ रहा है"
"दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल...साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल"
"सच!...साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल"
***राजीव तनेजा***
4 comments:
100 दुखों की एक दवा है
प्यारे अपना
न्यारे अपना
जा रे अपना
सपना अपना
मनी मनी
सबका सपना
मनी मनी
500 का नोट
बना हनी (शहद)
VERY NICE....SAHI KHA APNEY..
वैसे इसमें अपने तेज गाडी चलाने वालों पर भी खूब कसा है.
दीपक भारतदीप
बस, हो गया छुटकारा । ले दे के...।
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