***राजीव तनेजा*** "हैलो गुप्ता जी?"..
"हाँ राजीव जी...बोलिए"...
"कैसे हैँ?"...
"एकदम फर्स्ट क्लास"...
"कहिए!...कैसे याद किया?"...
"वो आपने आज का दिन मुकर्रर किया था ना...
"निकाह के लिए?"...
"नहीं!...पेमेंट के लिए"...
"ओह!...
"तो मैँने सोचा कि...
"अभी तो यार!...मैँ आउट ऑफ स्टेशन हूँ...दो-चार दिन ज़रा ठहर जाओ...वापिस आ के कोई ना कोई जुगाड़ करता हूँ"...
"अभी आप कहाँ पर हैँ?"...
"बालाजी"...
"क्या गुप्ता जी!..सुबह-सुबह मैँ ही मिला था झूठ बोलने के लिए?"...
"क्क्या?..क्या मतलब?"...
"यही कि मैँ यहाँ...आपकी दुकान के सामने खड़ा हुआ...पिछले दो मिनट से आप ही को निहार रहा हूँ और आप हैँ कि...
"ओह!...तो इसका मतलब वो टकटकी लगाए...बदनुमा से दागदार शक्स
आप ही हैँ?"...
"जी!...जी हाँ...वो मैँ ही हूँ"मैँ फूल के कुप्पा होता हुआ बोला...
"उफ!..कितनी बार समझा चुका हूँ इस स्साले...रामदीन के बच्चे को कि नज़रबट्टू तो ठीक से टाँगा करे"...
?...?..?...?..
"हर समय कोई ना कोई ऐरा-गैरा...नत्थू-खैरा आँख गड़ाए पाता है"...
"आप!...आप मुझ से कुछ कह रहे हैँ?"...
"नहीं-नहीं...आप से नहीं...आप तो मेरे देवता हैँ...मेरे भगवान हैँ...आप से भला मैँ ऐसा कैसे कह सकता हूँ?"...
"जी"...
"वैसे आप वहाँ धूप में खड़े-खड़े क्यूँ सूख रहे हैँ?...इधर आ जाईए ना"...
"जी!...आता हूँ"...
"बचना ऐ कमीनों...लो मैँ आ गया"....
"मैँ बस!...बस अभी निकल ही रहा था...इसलिए सोचा कि...
"सोचा कि राजीव तो बच्चा है...नादान है...दो-चार दिन की गोली और दे देता हूँ"...
"न्नहीं!..मेरा ये मतलब नहीं था"...
"तो फिर क्या मतलब था आपका?"...
"मैँ तो बस ऐसे ही...
"आप खुद ही बताईए कि ज़रा सी रकम के लिए आप पिछले दो महीनों में कितने चक्कर कटवा चुके हैँ मुझे?...
"यही कोई दस-बारह...या फिर शायद...पन्द्रह-बीस"गुप्ता जी माथे पे हाथ रख कुछ सोचते हुए बोले...
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"क्या मैँने आपको माल दे के कोई गुनाह किया?"...
"नही!...बिलकुल नहीं...गुनाह तो आपसे नहीं बल्कि मुझ से हुआ है जनाब...मुझसे..जो मैँने आपके सड़े-गले माल को ठिकाने लगाने की सोची"..
"ये तो आपको माल खरीदने से पहले देखना चाहिए था कि वो सोना है या फिर मिट्टी"...
"जी!...यही तो गल्ती हो गई"...
"तो फिर भुक्तो"...
"जी!...रोज़ सुबह-शाम उसी की धूप-बत्ती तो किया करता हूँ"...
"गुड!...वैरी गुड...तो इसका मतलब आप अपनी गल्ती का बदला मुझ से ले रहे हैँ?"...
"मतलब?"...
"ये मुझे पेमेंट ना दे के आप उसी का बदला निकाल रहे हैँ ना?"...
"ज्जी...बिलकुल...सही पहचाना"...
"ओ.के!...नॉट ए बैड आईडिया"...
"वैसे क्या दोस्त के साथ ऐसा करना आपको शोभा देता है?"...
"नहीं!...बिलकुल नहीं"...
"तो फिर?"...
"वो दरअसल क्या है कि....
"मैँ जब भी आऊँ...हर बार आपके पास मेरे लिए कोई ना कोई बहाना हमेशा तैयार मिलता है....
"मतलब?"...
- कभी आपकी नानी मर जाती है...
- तो कभी आप गल्ले की चाबी पड़ौसन के पलंग पे भूल आते हैँ...
- किसी दिन आपकी बोहनी नहीं हुई होती...
- तो किसी दिन आप ताबड़तोड़ बिज़ी होते हैँ..
- किसी दिन आपकी लेबर हड़ताल किए पाती है...
- तो किसी दिन स्वयं आप मौन व्रत धारण किए पाते हैँ...
"आप कहो तो उसे भी छोड़ दूँ?"...
"आपके बोलने..ना बोलने से कौन सा पुण्य?...या फिर कौन सा पाप हो गया?"...
"अरे वाह!..ये जो मैँ अपनी दूषित एवं कलुषित वाणी से अपने आस-पड़ौस के माहौल को खराब कर उसे गन्दा करता हूँ कि नहीं?...
"जी!...करते तो हैँ"...
"तो ये पाप नहीं तो और क्या है?"...
"जी"...
"और हफ्ते में एक दिन चुप रह के मैँ सबको अपने ताप से बचाता हूँ तो ये पुण्य नहीं तो और क्या है?"...
?...?..?...?...
"और शनिवार?...शनिवार को क्या हो जाता है आपको?"...
"मतलब?"...
"शनिवार को भी तो आप किसी को पेमेंट देते नहीं हैँ"...
"कुल देवता समेत ब्रह्मान्ड के सभी देवता तो मुझ से रुष्ट और नाराज़ हैँ ही"...
"तो?"...
"आप चाहते हैँ कि शनिवार के दिन अपनी जेब से धेल्ली-रुपैय्या निकाल मैँ शनिदेव के भी कोपभाजन का शिकार बन जाऊँ?"...
"नहीं!...बिलकुल नहीं...लेकिन मैँने अपनी आँखों से खुद देखा है"...
"क्या?"...
"यही कि शनिवार के दिन भी आप दूसरों से पेमेंट तो खूब ले रहे होते हैँ"...
"तो क्या धन का अनादर कर...लक्ष्मी मैय्या की नाराज़गी को और बढा दूँ?"...
"नहीं!...बिलकुल नहीं"...
"लेकिन ये भी तो याद कीजिए ना कि पिछली बार जब मैँ आपके पास आया था तो आपने क्या कहा था?"...
"क्या कहा था?"...
"यही कि ...अभी थोड़ी देर में माल लोड होना है...आप कल आ जाईए"...
"तो फिर आप कल आए क्यों नहीं?"...
"आया ना...तो फिर आपने...फिर कल का नाम ले के टाल दिया"...
"ओह!...तो फिर ऐसे बिन बुलाए मेहमान की तरह अचानक टपकने के बजाए आपको फोन कर के आना चाहिए था ना"...
"अभी फोन करने का नतीजा देख तो लिया"...
"अभी तो यार!...मैँ ज़रा जल्दी में था"...
"जल्दी में तो गुप्ता जी..आप हमेशा होते हैँ"...
"पहले माल लेने की जल्दी होती है ...बाद में पार्टी को टरकाने की जल्दी होती है"...
"ओफ्फो!...मैँने कहा ना कि पहले फोन कर के आया करो...तभी पेमेंट मिला करेगी"...
"क्यों?...इससे पहले क्या मैँने आपको कभी फोन नहीं किया?"...
"कब किया?"..
"अपनी यादाश्त पे ज़ोर दे के सोचिए गुप्ता जी..अपनी यादाश्त पे ज़ोर दे के"...
"जी!...कोशिश कर के देखता हूँ"गुप्ता जी अपने माथे पे हाथ रख गहरी सोच में मग्न हो गए...
"पहले जब भी मैँने आपको फोन किया...कभी आपने अपनी बीवी को पकड़ा दिया तो कभी अपनी इसराणा वाली माशूका के दूध पीते न्याणे को"...
"अब अगला अगर कुआँ...कुआँ कर के ज़िद पकड़ ले कि...अँटल से बात करनी है...अँटल से बात करनी है ....तो मैँ क्या करूँ?"...
"ओह!...रियली?"...
"जी"...
"वैरी स्वीट"...
"जी!...बहुत ही प्यारा है...बिलकुल अपने बाप पे गया है"गुप्ता जी अपने चेहरे की तरफ इशारा कर खुद ही अपने मुँह मियाँ मिट्ठू होते हुए बोले...
"ओह!...दैन इट्स ओ.के"...
"मैँ कहाँ जाता हूँ?...किसके पास जाता हूँ?...क्यों जाता हूँ?....
?...?..?...?...
?...?..?..
"किसके साथ?...क्या-क्या?...कैसे-कैसे?... कितनी देर तक?...और क्यों करता हूँ?"...
?...?..?...?...
?...?..?..
"इस सब में आपका तो कोई इंटरफियरैंस नहीं होना चाहिए ना?"..
"बिलकुल होना चाहिए"...
?...?...?...?..
?...?...?...
"म्मेरा मतबल्ल!...नहीं होना चाहिए"...
"तो फिर आप ये मुझ पे ऐसे चौतरफा निगरानी क्यों रखे हुए हैँ?"...
"वो तो बस ऐसे ही....शौकिया तौर पे...नथिंग सीरियस"...
"ओह!...दैन इट्स ओ.के...मुझे कोई ऐतराज़ नहीं"...
"थैंक्यू"...
"हमेशा याद रखो कि....किसी का लिया मैँने कभी दिया नहीं और तुम्हारा ले के भागूँगा नहीं"...
"मैँने कब कहा कि आप भागे जा रहे हैँ?"...
"वोही तो"...
"लेकिन अफसोस!...दे भी तो नहीं रहे"...
"अभी कहा ना कि दो-चार दिन ज़रा ठहर जाओ"...
"गुप्ता जी!..आप खुद सोचिए कि इस तरह दो-चार दिन...दो-चार दिन कर के टरकाते हुए आपने पूरे दो महीने लंघा दिए"...
"तो?"...
"अब इसमें 'तो'...से क्या मतलब?"...
"आपको तो मेरे टैलेंट की दाद देनी चाहिए"...
"मतलब?"...
"दाद दीजिए मेरे हुनर की जनाब...दाद दीजिए"...
"मतलब?"...
"मतलब कि मैँने आप जैसे घिस्सू इनसान को भी दो महीने के लिए टाँग दिया"...
"हुँह!...बड़े आए मुझसे दाद दिलवाने वाले"...
"क्यो?...क्या मेरा ये टैलेंट...आपकी दाद हासिल करने के लिए नाकाफी है?..या फिर इस लायक ही नहीं है कि इस बारे में बात भी की जाए?"गुप्ता जी अपने माथे पर बल डाल परेशान होते हुए बोले...
"टैलेंट तो बच्चू!...आपने अभी मेरा देखा ही कहाँ है?"मैँ गर्व से अपना सीना फुला...उन्हें चैलेंज कर...उन पर हावी होते हुए बोला...
"मतलब?"...
"फिलहाल मैँ ज़रा जल्दी में हूँ...ये किस्सा फिर कभी"..
"ओ.के...जैसी आपकी मर्ज़ी"गुप्ता जी ठंडी साँस लेते हुए बोले
"हाँ!..तो गुप्ता जी...बातें तो आज बहुत हो ली"...
"जी"...
"अब ज़रा काम की बात कर ली जाए?"...
"जी!...ज़रूर....शौक से"...
"तो आप कितनी देर में दे रहे हैँ?"मैँ अपनी घड़ी में टाईम देखता हुआ बोला...
"क्या?"...
"पेमेंट"...
"फिर वही बात?...कह तो दिया कि आजकल काम नहीं है...दो-चार दिन बाद आना"..
"गुप्ता जी!...बात को समझिए ज़रा...मेरा भी काम नहीं है...इसलिए तो आपके दर पे चक्कर दर चक्कर काटे जा रहा हूँ"...
"चलो!...शुक्र है ऊपरवाले का....पुण्य का एक काम तो किया"...
"मतलब?"...
"एक बेरोज़गार को सही ठिकाने लगा दिया"...
"मतलब?"...
"काम पे लगा दिया"...
"हें...हें...हें...क्यों सवेरे-सवेरे मज़ाक करते हो गुप्ता जी?"...
"ठीक है!...तो फिर दोपहर को आना"...
"पक्का?"...
"बिलकुल पक्का"...
"पेमेंट तैयार मिलेगी?"...
"उसके लिए तो मैँने आपको दो-चार दिन सब्र रखने के लिए बोला है ना?"...
"फिर आप दोपहर को मुझे क्यूँ बुला रहे हैँ?"...
"मज़ाक करने के लिए"...
"मतलब?"...
"कमाल है राजीव जी...आपकी यादाश्त भी"...
"मतलब?"...
"अभी-अभी तो आप मुझे सवेरे-सवेरे मज़ाक करने के लिए ताना दे रहे थे"...
"तो?"..
"तो आपकी नाराज़गी दूर करने के लिए ही तो मैँने आपको दोपहर का न्योता दिया"...
"हें...हें...हें..गुप्ता जी...आप भी ना बस...पूरे लतीफा हो लतीफा"...
"अरे हाँ!...लतीफे से याद आया कि वो कृपलानी मुझसे आपका नम्बर माँग रहा था"...
"कौन?...वो लिफाफे वाला?"..
"अजी छोड़िए!...लिफाफे वाला...लिफाफे तो किसी ज़माने में उसका बाप बेचा करता था"...
"क्या?"...
"जी!...
"तो इसका मतलब वो बस ऐसे ही...फोकट में...उनके काम को अपने नाम के साथ जोड़ के एंजॉय कर रहा है?"...
"और नहीं तो क्या?"...
"तो इसका मतलब तो वो बिलकुल पक्का...महा झूठा...फ्राडिया किस्म का इनसान है?"...
"अजी!...झूठा नम्बर वन कहिए...झूठा नम्बर वन"...
"हुँह!...ना काम का...ना काज का...बड़ा आया दुश्मन समाज का"...
"जी"...
"वैसे कह क्या रहा था?"...
"आपका फोन नम्बर माँग रहा था...और क्या कह रहा था?"...
"तुमने दिया तो नहीं?"...
"इतना लुल्लु समझ रखा है क्या?"...
"मैँ तो उससे साफ नॉट गया कि मेरा राजीव के साथ कोई लिंक ही नहीं है आजकल"...
"गुड!...अच्छा किया...थैंक्स फॉर दा सपोर्ट"...
"इसमें थैंक्स की क्या बात है?...दोस्त ही दोस्त के काम आते हैँ"...
"जी"...
"वैसे कितने बाकी रह गए हैँ उसके?"...
"कुछ खास नहीं...बस यही कोई दो...पौने दो लाख...एक-दो साल में चुका दूँगा"...
"बाप रे!...पौने दो लाख?"..
"जी"...
"और आप कह रहे हैँ कि ...कुछ खास नहीं"...
"अरे!..इससे ज़्यादा तो पानीपत के चने-मुरमुरे वालों का मुझ पे बकाया है लेकिन मजाल है जो उन्होंने कभी भी ...ज़रा सी चूँ भी करी हो"...
"भलमनसत देखो बेचारों की!...उफ तक नहीं करते"...
"तनेजा जी!...आपकी बात सोलह ऑने सही है लेकिन मेरा मानना है कि ऐसे छोटे लोगों को ज़्यादा मुँह नहीं लगाना चाहिए...सर पे चढ आते हैँ"...
"जी!...बिलकुल सही कहा आपने"...
"वैसे एक राज़ की बात बताऊँ?"...
"ज़रूर"...
"उन्होंने मुझे नहीं बल्कि मैँने उनके चने-मुरमुरों को मुँह लगाया था...तभी तो ये कर्ज़ा चढा"....
"हे...हे...हे...तनेजा जी!...वैरी फन्नी...आप खुद जोक पे जोक मारते हैँ और मुझे बिलावजह बदनाम करते हैँ"...
"क्या करूँ?...मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है"...
"वैसे मेरी राय मानें तो इस कृपलानी के बच्चे का सारा हिसाब जल्द से जल्द नक्की कर दें"...
"वो किसलिए?"...
"व्यर्थ में बदनामी करता फिरता है"...
"तो करने दो...मैँ कौन सा डरता हूँ?"...
"तनेजा जी!...डरता तो मैँ भी आपसे नहीं हूँ लेकिन बात होती है इज़्ज़त की...आबरू की...इसलिए तो मैँ हमेशा आपके साथ तमीज़ से पेश आता हूँ"...
"तो मैँ ही कौन सा उसके सामने धोती खोल के खड़ा हो जाता हूँ?"...
"जी"...
"ये नहीं कि नंगपना मुझे नहीं आता...आता है...खूब आता है...भली भांति आता है लेकिन मेरे संस्कार ....मेरे आदर्श...मेरी अपनी मर्यादाएँ मुझे इस सब की इज़ाज़त नहीं देती"...
"गुड!...वैरी गुड"...
"और फिर मेरे ख्याल से ऐसे छोटे लोगों की तरह अगर हम भी गन्दी और ओछी हरकतें करने पे उतर आए तो उनमें और हम में फर्क ही क्या रह जाएगा भला?"...
"तो फिर दे-दिला के पास्से क्यों नहीं मारते?"...
"गुप्ता जी!..बात यहाँ पेमेंट की नहीं है...वो तो मैँ जब जी चाहे...अपनी मर्ज़ी से....आपकी जेबें खंगाल...उन्हें खाली कर के दे दूँ.... बात यहाँ है उसूलों की...उसूलों पे टिके रहने की"...
"मतलब?"..
"पागल के बच्चे को भली भांति पता है कि वीरवार के दिन मैँ नहीं नहाता"...
"तो?"...
"भगवान के बनाए सारे खूबसूरत दिनों को छोड़ के उस बावले को यही एक मनहूस दिन सूझता है तकादे के लिए"....
"ओह!...लेकिन एक बात मेरी समझ नहीं आई"...
"क्या?"...
"यही कि पेमेंट ना देने का वीरवार से क्या सम्बन्ध है?"...
"बड़ा गहरा सम्बन्ध है"...
"क्या?"...
"वीरवार के दिन मैँ नहाता नहीं हूँ ना"...
"तो?"...
"गुप्ता जी!...पैसे के मामले में मैँ बेशक लाख कमीना सही लेकिन फिर भी मेरे कुछ उसूल है...कुछ आदर्श हैँ जिन से मैँ कभी डिग नहीं सकता"...
"जैसे?"..
"बिना नहाए...हाथ लगा...लक्ष्मी मैय्या को मैँ कभी भी अपवित्र नहीं करता"..
"ओह!...
"ये तो आपका पहला उसूल हो गया कि वीरवार के दिन आप नहीं नहाते"...
"जी"...
"और आपका दूसरा उसूल?"...
"और मेरा दूसरा उसूल है कि मैँ कभी झूठ नहीं बोलता"...
"कभी भी नहीं?"...
"बिलकुल नहीं"...
"फोन पर भी नहीं?"...
"नहीं!...फोन पर तो बिलकुल नहीं"...
"कमाल है!...जब तक दिन में मैँ दो-चार झूठ ना बोल लूँ...मुझे तो रोटी भी हज़म नहीं होती है"...
"यही तो सबसे बड़ा फर्क है गुप्ता जी..आप में और मुझ में...आप हमेशा झूठ पे झूठ बोलते चले जातें है और मैँ हूँ कि मैँने झूठ के नाम से ही तौबा कर रखी है"...
"कब से?"...
"जब से मेरी बीवी ने मुझे तलाक का नोटिस थमाया है...तब से"...
"ओह!...लेकिन....
"आप एक बार मेरे बालों में हाथ फिरा के देखिए....देखिए तो सही"मैँ गुप्ता जी का हाथ पकड़ अपने सिर में फिराने की कोशिश करते हुए बोला
"लेकिन क्यों?"...
"आप देखिए तो सही...अपने आप पता चल जाएगा"
"ओ.के"...
"लैट मी चैक"....
"हम्म!...नाईस स्मैल...खुश्बू अच्छी है"...
"अच्छी?"...बहुत अच्छी कहिए जनाब...बहुत अच्छी"...
"जी!...बहुत अच्छी"...
"नाओ इट साउंडज़ बैटर"...
"कौन सा शैम्पू इस्तेमाल करते हैँ?"...
"पैंटीन"...
"हम्म!...अच्छा है"...
"अच्छा है?"...
"काफी अच्छा!...बहुत अच्छा कहिए जनाब...बहुत अच्छा"...
"जी!...बहुत....बहुत ही अच्छा"...
"अब खुश?"...
"जी"...
"वैसे आप कंडशीनर कौन सा इस्तेमाल करते हैँ?"...
"कोई भी नहीं"...
"यही तो आप में सब से बड़ी कमी है तनेजा जी कि आप हमेशा आधा-अधूरा काम ही करते हैँ"...
"मतलब?"...
"मतलब कि होटल से खाना मँगवाया....आधा पेट खाया और सलाद बीच में ही छोड़ दिया"...
"तो?"...
"लड़की पटाई...उसको घुमाया-फिराया...खिलाया-पिलाया और फिर ऐसे ही सूखे-सूखे छोड़ दिया"...
"मतलब?"...
"यही कि शैम्पू किया लेकिन कंडीशनर करना भूल गए"...
"ओह!...
"लेकिन शैम्पू तो आप काफी सालों से इस्तेमाल कर रहे हैँ ना?"...
"जी!...पिछले पच्चीस सालों से"...
"ओ.के"...
"तो फिर आज आपके सर में ऐसी कौन सी अनोखी बात हो गई जो आप मुझको दिखाना चाह रहे थे?"...
"दिखाना नहीं...महसूस कराना"....
"एक ही बात है"...
"अरे वाह!..एक ही बात कैसे है?...दिखाना-दिखाना होता है और महसूस कराना..महसूस कराना होता है"...
"मतलब"...
"किसी लड़की की नैट पे पुट्ठी तस्वीरें देखना और उसी लड़की को...उसी पोज़ में साक्षात अपने सामने...रुबरू देखना क्या एक ही बात है?"...
"नहीं!...बिलकुल नहीं"...
"तो फिर देखने और महसूस करने में फर्क क्यों नहीं है?"...
"जी"...
"हाँ!..तो अब बताओ कि मेरी टांड पे हाथ फिराते वक्त आपने कुछ अलग सा...कुछ जुदा सा महसूस किया के नहीं?"...
"कुछ अलग सा?...कुछ जुदा सा?...लैट मी थिंक अगेन"...
"अरे हाँ!...याद आया"...
"शिट!...शिट...शिट...शिट"...
"क्या बक रहे हैँ आप?"मैँ अपने सर पे हाथ फिरा...उसे सूँघता हुआ अविश्वास भरे स्वर मे बोला...
"कल ही तो मैँने काली मेंहदी....
"नहीं-नहीं...मेरा मतलब वो नहीं था...जो आप समझ रहे हैँ"...
"तो फिर क्या मतलब था तुम्हारा?"...
"यही कि मैँने आपके सर पे कुछ सख्त-सख्त सा...उभरा-उभरा सा...अलग सा हिस्सा महसूस किया था"...
"हाँ-हाँ!...वही...उसी की बात कर रहा हूँ मैँ....मेरे सर पे परमानैटली सैटल हो चुका ये वो मनहूस गूमड़ है जिसके बारे में ना किसी को बताते बनता है और ना ही किसी से अपना दुखड़ा छिपाते बनता है"..
"मतलब?"...
"इतना परेशान हूँ...इतना परेशान हूँ कि यूँ समझिए कि अपने दुख को ना तो बाहर उगलते बनता है और ना ही उसे निगलते बनता है"
"ओह!...
"और ये सब मेरे उसी टैलीफोन पे झूठ बोलने का नतीजा है"..
"ओह मॉय गॉड...एक झूठ की इतनी बड़ी सज़ा?"..
"जी!...ये तो शुक्र करो कि उसने मुझे बस इतने से ही बक्श दिया वर्ना उसकी जगह कोई और होता तो मैँ आज यहाँ..आपके सामने खड़ा होकर ये ज्ञान ना बाँट रहा होता"...
"वैसे आपकी ये हालत किसने की?"...
"मेरी बीवी ने"..
"क्या?"...
"और नहीं तो क्या?"...उसके अलावा और भला पूरे ब्र्ह्मांड में किसमे इतना साहस है कि वो मुझ गरीब पर अपना बेलन आज़मा सके?"...
"आखिर हुआ क्या?...आप मुझे सारी बात बताईए"...
"होना क्या था...पिछले हफ्ते बीवी दो दिन के लिए मायके गई हुई थी"...
"ओ.के"...
"तो मैँने अपनी माशूका...जो उसकी सहेली भी थी...के साथ स्पलैश वाटर पार्क में एंजॉय करने की सोची"...
"गुड!...मौके का फायदा उठाने से कभी चूकना नहीं चाहिए"...
"जी"...
"मैँ खुद भी चाँस मिलने पे ऐसे ही किया करता हूँ"...
"रियली?"...
"जी"...
"उसके बाद क्या हुआ?"...
"मैँने उसे कह दिया कि वो सुबह मेरे घर पर ही आ जाए...एक साथ चलेंगे...पैट्रोल बचेगा"...
"ओ.के"..
"मैँने उसे सख्त हिदायत दे दी कि अपने घर से चलने से पहले मुझे फोन ज़रूर कर ले"...
"वो किसलिए?"...
"ताकि उसे मेरे तैयार होने तक इंतज़ार ना करना पड़े"...
"गुड!...समझदारी से काम लिया आपने"...
"जी"...
"उसके बाद क्या हुआ?"...
"होना क्या था?...रात को देर तक फिल्म देखता रहा...सो!...सुबह जल्दी आँख ना खुल सकी"...
"इसमें कौन सी बड़ी बात है?....ये तो अक्सर मेरे साथ भी हो जाता है"...
"अरे!..आप सुनिए तो सही"...
"सुबह जैसे ही फोन की घंटी घनघनाई...मैँने उसकी नाराज़गी के डर से नींद में ही बोल दिया कि मैँ नहा रहा हूँ"...
"ओ.के"...
"फिर क्या हुआ?"...
"अब मुझे क्या पता कि वो लेटलतीफ की बच्ची..ऐन टाईम पे...मेरे घर के बाहर खड़ी हो कर ही मुझे कॉल कर रही थी?"...
"ओह!...
"मेरे नहाने की बात सुनते ही बावली की बाँछे खिल उठी"....
"ओ.के"...
"पागल की बच्ची ने आव देखा ना ताव और अपने सारे कपड़े उतार...शम्मी कपूर की तरह ...याहू!...करते हुए सीधा बॉथटब में कूद पड़ी"...
"लेकिन उसके पास आपके घर की चाबी आई कैसे?"...
"मैँने उसे एक दिन पहले ही चाबी पकड़ा दी थी कि बिना कॉलबैल बजाए चुपचाप अन्दर आ जाए"...
"यू नो!...पडौसियों की बुरी नज़र...वगैरा...वगैरा"...
"जी!...उसके बाद क्या हुआ?"...
"जैसा कि मैँ बता रहा था कि...वो पागल की बच्ची अपने सारे कपड़े उतार सीधा बॉथटब में कूद पड़ी"...
"याहू!...करते हुए?"...
"जी!...याहू करते हुए"...
"वाह...फिर तो तुम्हारे मज़े हो गए होंगे?"...
"अजी काहे के मज़े?...मैँ बॉथरूम में थोड़े ही था?"...
"तो फिर आपने भी बॉथरूम में घुस जाना था"...
"ऐसे कैसे घुस जाना था?"...
"कोई शर्म ओ हया नाम की चीज़ भी होती है कि नहीं?"..
"लेकिन इस सारी बात में ये बात मुझे कहीं समझ नहीं आई कि आपकी बीवी ने आपको तलाक का लव- लैटर ऊप्स!...सॉरी नोटिस क्यूँ थमाया?"...
"ओह!...बातों-बातों में सबसे ज़रूरी बात तो मैँ आपको बताना भूल ही गया"...
"क्या?"...
"यही कि मेरी बीवी अपनी छुट्टी बीच में ही कैंसिल करके रात को ही घर आ गई थी"...
"ओह!...मॉय गॉड"...
"और उस समय बॉथरूम में मेरे बजाय वो नहा रही थी"...
"क्या?"...
***राजीव तनेजा***
नोट:इस कहानी को मैँने रात 11.00 बजे से लेकर
सुबह के 5.30 बजे तक नॉन स्टाप लिख कर साढे छै
घंटे में पूरा किया है
Rajiv Taneja
Delhi(India)
rajiv.taneja2004@yahoo.com
rajivtaneja2004@gmail.com
http://hansteraho.blogspot.com
+919810821361
+919213766753
12 comments:
मस्त लेखन!
लम्बाई इतनी, मगर बँधे रहे । मजेदार प्रविष्टि । आभार ।
बिल्कुल सही कहा है राजीवजी ने उन्हों ने ये कहानी लिखने में काफ़ी वक़्त निकाला है। तभी तो जड से लिखते हैं राजीव जी। मुज़े तो भाभीजी पे तरस आता है चूपचाप सो जाती होगी। ऐसा ज़ुल्म माता किया करो। वरना आपको पता है ना महिलाएकता ज़िन्दाबाद।
हा!!हा!!हा!!!
फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी
Kagad Kaare made a comment about your note "झूठा कहीं का":
achha pryas hai...Bhut khub likha hai...
फेस बुक पर अमेरिका में रह रही मेरी भांजी द्वारा दी गई टिप्पणी
Ayushi Kukreja made a comment about your note "झूठा कहीं का":
mamu? ye kya likha hai?
vishaay kahan kahans e laate hain aap bhayee kamal hai
ई-मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी
from shefaliii.pande
pande.shefali@gmail.com
इसे कहते हैं छठी इन्द्रिय ....जो ऊपर वाले ने सिर्फ बीबियों को ही प्रदान की है ....बढिया कहानी है , बेलन साबुत बचा या नहीं ?
शेफाली जी जैसा ही मैं भी पूछने लगा था कि बेलन बचा या नहीं :-)
मज़ेदार
बी एस पाबला
ई-मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी
from RAJEEV THEPRA
bhootnath.r@gmail.com
Re: झूठा कहीं का
अरे यार.......... तुम आदमी हो या घनचक्कर.....??ज़रा-सी बात को रबड़ जैसा फैला-फैला कर हमारी जान ही ले लेते हो....साला तब भी मज़ा ही आता है.....बाप रे बाप...उफ़....!!!
आज के टरकाने के बहाने। ढेरों अच्छे जुमलों का इस्तेमाल कर एक मजेदार पोस्ट। फोंट साईज कम कर दीजिए जिससे पोस्ट थोडी बडी नही लगेगी।
ई-मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी
from vijay arora
vijay.arora1111@hotmail.com
rajiv.taneja2004@yahoo.com,
rajivtaneja2004@gmail.com
date Mon, Sep 14, 2009 at 12:21 AM
subject झूठा कहीं का
taneja ji
kamaal kar diya aapne
aap ko hajaro salaam
vijay arora dwarka delhi
Thursday, 10 September 2009
राजीब जी जवाब नहीं आपका सोचा था थोडी सी पढूंगा पढा तो पढ़ते चला गया | दिन भर की सारी घटना अपने उतार दी |हा...हा..हा.. बहुत ही खूब
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