लुगदी साहित्य से जब मेरा पहले पहल परिचय हुआ तो वेदप्रकाश शर्मा के थ्रिलर उपन्यासों ने मुझ पर अपना इस कदर जादू चलाया कि मैं मंत्रमुग्ध हो कई मर्तबा उनके एक एक दिन में दो दो उपन्यास पढ़ जाया करता था। तब कईयों ने मुझे कहा कि एक बार सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का लिखा भी पढ़ो तो जाने क्या सोच कर मैंने तब उनके लेखन को तवज्जो नहीं दी। अब जब मुझे सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की आत्मकथा का पहला भाग पढ़ने को मिला तो पाया कि सुरेन्द्र मोहन पाठक जी भी जादुई लेखनी के स्वामी हैं। उनके उपन्यास परत दर परत इन्वेस्टिगेटिव नेचर के होते हुए हर क्रिया प्रतिक्रिया के पीछे तर्कसंगत लॉजिक ले कर चलते हैं। ये उनका 299वां उपन्यास है।
अब हाल ही में मुझे उनका उपन्यास "कॉनमैन" पढ़ने को मिला। कॉनमैन अर्थात एक ऐसा शातिर ठग जो बहुत ही आत्मविश्वास से कुछ इस तरह..आपको अपने पूरे विश्वास में ले कर ठगता है कि आप अपना बहुत कुछ गंवा बस..ठगे से रह जाते हैं। सुनील सीरीज़ के इस उपन्यास में कहानी है सुनील नाम के एक खोजी पत्रकार की जिसके पास एक युवती अपनी व्यथा ले कर आती है कि किस तरह एक शातिर ठग(कॉनमैन) ने उसकी भावनाओं से खेलते हुए उसके साथ उन्नीस लाख की ठगी की है और संयोग से इन दिनों वो शातिर ठग उसी शहर के फाइव स्टार होटल में उसे दिखाई दिया है।
अपनी तफ़्तीश के दौरान होटल के कमरे में सुनील उस कॉनमैन को मरा हुआ पाता है। वहाँ से बरामद सुरागों में उसे एक फोटो फ्रेम में पाँच लड़कियों के फोटो एक के पीछे एक लगे मिलते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर..कातिल कौन है? बढ़ती कहानी के साथ शक के दायरे में इन पाँच युवतियों के अलावा अन्य लोग भी आ जाते हैं। पृष्ठ दर पृष्ठ अनेक रोमांचक मोड़ों से गुज़रती हुई सुनील और पुलिस की मिली जुली खोजबीन इस कदर कसे हुए अंदाज़ में लिखी गयी है कि अंत तक पाठक भी संशय में पड़े रह जाते हैं कि आखिर..असली कातिल कौन है?
1 comments:
रोचक। उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।
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