"सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे "
***राजीव तनेजा***
करास्तानी कुछ बेशर्मों की
शर्मसार है पूरा इंडिया
अपने में मग्न बेखबर हो
वीणा तार झनकाऊँ कैसे
नव वर्ष की है पूर्व सन्ध्या
नाच नाच कमर मटकाऊँ कैसे
ह्रदयविदारक द्र्श्य देख बार बार
मीडिया की कमर थपथपाऊँ कैसे
झूठे नकली स्टिंग ऑप्रेशन देख
स्वच्छ मीडिया के गुण गाऊँ कैसे
बगल में कत्ल होता लोकतंत्र
सपुर्द ए खाक होती बेनज़ीर देख
दुखी हूँ भयभीत हूँ लाचार हूँ
जग जहाँ को बतलाऊँ कैसे
नन्दी ग्राम जलते देख
चीतकार करते मन को समझाऊँ कैसे
नतीजन...एकजुट हो
समर्थन में लाल झण्डे के हाथ उठाऊँ कैसे
करुणानिधी और बुद्धदेव की कथनी देख
तडपते दिल को समझाऊँ कैसे
राम सेतू रूपी आस्था को टूटता देख
गुजरात हिमाचल विजयी बिगुल बजाऊँ कैसे
अपने देश में अपनों से
अपनों को ही मिटता देख
मैँ खुश हो खुशी के गीत गाऊँ कैसे
हिन्दी हूँ मैँ वतन है हिन्दोस्ताँ मेरा
निष्ठा पे अपनी प्रश्न चिन्ह लगवाऊँ कैसे
लम्बा है सफर कठिन है डगर
अपनों के बीच स्वदेश में
सरेआम खुलेआम
सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे
***राजीव तनेजा***
4 comments:
कविता भी सार्थकता भी
हंसना भी चटकना भी
मित्र मेरे कविता का
अर्थ पा लिया है अब
लिखते रहो हंसते रहो
हंसाते रहो जमाते रहो
रंग अपने संग सपने
लेकर सच्चाई के तीखे
गीत गाते रहो
गुनगुनाते रहो
टिप्पणियां अच्छी अच्छी
पाते रहो,
नाम अपना यशाते रहो
यशाते का अर्थ बतलाएं
इसकी एक-एक पंक्ति पठनीय है. बहुत प्रशंसनीय.
दीपक भारतदीप
अपने देश में अपनों से
अपनों को ही मिटता देख
मैँ खुश हो खुशी के गीत गाऊँ कैसे
ye to katu satya kah diya aapne...
apne aas-paas jo bhi ho raha hai, uska sajeev chitran aur akatya lekha-jokha hai aapki kavita..
badhai..
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