कोई खुशबू उदास करती है- नीलिमा शर्मा

आमतौर पर मानवीय स्वभाव एवं सम्बन्धों को ले कर बुनी गयी अधिकतर कहानियों को हम कहीं ना कहीं..किसी ना किसी मोड़ पर..खुद से किसी ना किसी बहाने कनैक्ट कर लेते हैं। कभी इस जुड़ाव का श्रेय जाने पहचाने या देखे भाले किरदारों को मिलता है तो कभी इसमें किसी देखी सुनी कहानी का भी थोड़ा बहुत योगदान नज़र आता है। 

दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ कई कहानी संग्रहों में बतौर संपादक अपनी धाक जमा चुकी नीलिमा शर्मा जी के प्रथम संपूर्ण कहानी संग्रह 'कोई खुशबू उदास करती है' की। स्त्री मन के विभिन्न मनोभावों एवं आयामों को अभिव्यक्त करती इस संकलन की किसी कहानी में कोरोना काल में दुबई से लौटने पर एक फैशनेबल..गुस्सैल युवती को जबरन 14 दिनों के लिए क्वरैंटाइन कर किसी छोटे से होटल में शिफ़्ट कर दिया जाता है। हताशा..निराशा और अवसाद के बीच उसका खास दोस्त भी उससे मिलने..बात करने से कतराने लगता है। ऐसे में अकेलेपन से जूझती एक दिन वो अपने घर के सीसीटीवी कैमरे में अपनी नौकरानी को, अपने ही कपड़े पहने..अपनी ही तरह मौजमस्ती करते..नाचते कूदते देख, उसे डाँटने डपटने के बजाय, उससे ही जीने के लिए संबल प्राप्त करती है मगर...

अगली कहानी बेटे की चाह में खोख में ही अजन्मी बेटियों को मार देने की प्रवृति और भविष्य में इसकी वजह से उत्पन्न होने वाले भयावह दृश्यों के प्रति अभी से हमें आगाह करती है। 

एक अन्य कहानी में एक युवती को जब अपने मायके के व्हाट्सएप ग्रुप में अपने दिवंगत पिता के खास क़रीबी..पिता समान दोस्त की तबियत खराब होने और फिर उनके देहांत की ख़बर मिलती है। अफ़सोस के लिए मायके पहुँचने पर घर के सदस्यों के आम मानवीय व्यवहार एवं धारणा के ठीक विपरीत, वो दुखी हो..अफ़सोस प्रकट करने या सांत्वना देने के बजाय हर समय पुलकित एवं खुश नज़र आती है।

एक अन्य कहानी में घर बाहर के हर काम मे अहम दखल रखने वाले अनुशासनप्रिय गुप्ता जी के घर में उनकी टोकाटाकी और धौंस भरे दबदबे की वजह से बच्चों समेत डरी सहमी रहने वाली बेढब पत्नी भी अचानक खुश रहने और, जहाँ तक संभव हो, खुद में बदलाव लाने का प्रयास करने लगती है। विवाह के इतने सालों बाद होने वाली इस बदलाव को क्या गुप्ता जी आसानी से स्वीकार कर पाते हैं अथवा...

अगली कहानी में अस्पताल की लिफ़्ट में अचानक इशिता की मुलाक़ात एक अनजान युवती रेनू से होती है जो दावा करती है कि वो उसे अपने बीमार पति शेखर की वजह से जानती है। वो शेखर, जो कि उसकी बहन की रिश्तेदारी से है और फिलहाल मृत्यु शैय्या पर लेटा उसी अस्पताल में अपनी अंतिम घड़ियों का इंतज़ार कर रहा है। शेखर का हाल जानने के लिए उसके साथ जाने पर इशिता को पता चलता है कि शेखर ने अपने मोबाइल में उसका नम्बर 'माय लाइफ' के नाम से सेव किया हुआ है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी, विवाह के बाद बेटी/बहन का असली घर कौन सा? के महत्त्वपूर्ण सवाल को उठाती है। जिसमें विवाहित बहन जायदाद में हिस्सा ना माँग ले कहीं, इस डर और आशंका में जीता हुआ युवक, मेहमान बन, घर आने वाली अपनी बहन की खास ख़ातिर करने के लिए अपनी पत्नी को निर्देश तो देता है मगर...

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अगर  अस्पताल के आई.सी.यू वार्ड में मृत शैय्या पर लेटी पत्नी को याद कर के एक बुजुर्ग, उसके साथ अपने अब तक के किए गए बुरे बर्ताव पर, पछताता हुआ पुरानी बातों को याद कर पश्चाताप की आग में जल रहा है। तो किसी अन्य कहानी में नाकारा पति से तंग आ चुकी पत्नी और अपनी अक्खड़ पत्नी से आज़िज़ आ चुके जेठ के बीच आपस में समय और हालात को देखते हुए परिस्थितिवश अवैध सम्बंध बन तो जाते हैं मगर...

प्रयोगात्मक कहानी के रूप में अनचाहे कन्या भ्रूण के गर्भ में पनपने..पलने से ले कर उसके पैदा होने और बाद में जन्म लेने वाले अपने छोटे भाई को ले कर सदा पक्षपात झेलती युवती की कहानी को उसी के माध्यम से कहने का तरीका लेखिका ने अपनाया है। जिसमें बड़े होने पर युवती अपने पैरों पर खड़े हो..अपने जीवन के फैसले खुद करने का प्रण लेती है। 

अगली कहानी में अपने हनीमून पर प्यार में अँधी नवविवाहिता, अपने पति के बार बार आग्रह पर झूठ सच कुछ भी बोल कर उसे अपने क्रश के बारे में अनाप शनाप बता देती है। नतीजन.. शादी के बरसों बाद भी उसका शक्की पति हर बात में उसे तब तक ताने देना नहीं छोड़ता जब तक किसी कार्यक्रम में उस युवक की उपहास उड़ाती बेढब हालात को स्वयं नहीं देख लेता। मगर इसके बाद भी क्या सब कुछ शांत एवं सही हो पाता है? 

यूँ तो इस संकलन की हर कहानी अपने आप में अहम है मगर मेरे पाठकीय नज़रिए से कुछ कहानियाँ मुझे बेहद उम्दा लगी। उनके नाम इस प्रकार हैं..

*टुकड़ा-टुकड़ा ज़िंदगी
*कोई रिश्ता ना होगा तब
*इत्ती-सी खुशी
*कोई खुशबू उदास करती है
*अंतिम यात्रा और अंतर्यात्रा
*लम्हों ने ख़ता की
*मन का कोना
*आखिर तुम हो कौन?
*उधार प्रेम की कैंची है

धाराप्रवाह शैली में कहानी कहने के अपने शिल्प और अनूठे भाषायी प्रयोगों से कहीं कहीं नीलिमा शर्मा चौंकाती है। कुछ जगहों पर वाक्य थोड़े टूटते से लगे। साथ ही एक सार्थक होती कहानी का अचानक से नाकारात्मक हो जाना थोड़ा खला। किसी भी कहानी में उसके प्रभावी शीर्षक की भूमिका बड़ी ही अहम होती है। इस नज़रिए से मुझे कहानियों के शीर्षक थोड़े कमज़ोर लगे। उन्हें और अधिक आकर्षक एवं क्रिस्प होना चाहिए था। 

11 कहानियों के इस 144 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है शिवना पेपरबैक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 150/- रुपए जो कि किताब की क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। किताब का कवर अगर थोड़ा मोटा एवं मज़बूत होता तो ज़्यादा बेहतर था। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

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