बचपन से ही आमतौर पर ऐसे किस्से या कहानियाँ हमारे आकर्षण, उत्सुकता एवं जिज्ञासा का सदा से ही केंद्र बनते रहे हैं जिनमें किसी राजा की अद्वितीय प्रेम कहानी अथवा शौर्य गाथा का विशुद्ध रूप से तड़केदार वर्णन होता था। ऐसे ही किस्से कभी कहानी/उपन्यास या फिर फिल्म के रूप में हमें रोमांचित..उत्साहित करने को अब भी यदा कदा हमारे सामने आते रहते हैं।
अभी कुछ दिन पहले इसी तरह की राजघरानों से जुड़ी एक अद्वितीय प्रेम कहानी मुझे पढ़ने को मिली प्रसिद्ध लेखिका गीताश्री के उपन्यास 'राजनटनी' में। इसमें मूलतः कहानी है एक बंजारे परिवार के अपने घुमंतू जीवन से आज़िज़ आ..मिथिला में स्थायी रूप से बसने और उसे ही अपना देश..अपना सब कुछ मान.. उसके लिए अपनी जान तक दे देने की।
इसमें बात है गांव-गांव...गली- गली घूम कर अपनी नट विद्या, कला और मनमोहक नृत्य से करतब दिखा..सर्व साधारण का दिल जीत लेने वाली, रूप, गुण, ज्ञान और बुद्धि की खान, मीना उर्फ मीनाक्षी के साधारण नटी से, अपनी शर्तों पर, राजनटनी के ओहदे तक पहुँचने के सफ़र की।
इसमें बात है पिछली हार का बदला लेने को आतुर राजा और उससे किए वादे को पूरा करने के बेटे के दृढ़ संकल्प की। इसमें बात है बंग देश के सेन वंशीय राजकुमार बल्लाल के, अपने पिता को दिए वचन और मिथिला की राजनटनी मीनाक्षी की प्रेम कहानी के बीच डांवाडोल होते मन की।
इस उपन्यास में बात है माँ की ममता और पिता के स्नेह के बीच फँसी उनकी मजबूरी और बेबसी की। इसमें एक तरफ़ बात है ज्ञान..प्रेम..ईर्ष्या..द्वेष..गद्दारी और बदले से ओतप्रोत मिल जुली भावनाओं की। तो दूसरी तरफ़ इसमें बात है साहित्य..प्रेम..ज्ञान और देशप्रेम की। इसमें बात है भावुकता और विवेक के बीच निरंतर होती रस्साकशी की। इसमें बात है साहित्यिक पोथियों की लूट और उन्हें बचाने से जुड़ी सारी कवायद के सफ़ल असफ़ल होते प्रयास की।
किस्सागोई शैली में लिखे गए बारहवीं शताब्दी के इस रोचक उपन्यास में एक जगह लिखा दिखाई दिया कि..
" मिट्टी पर लिखा, हवा में उँगलियाँ घुमाई... कपड़ों पर लिपियों का डिज़ाइन बनाया, बस लगन थी, सो कुछ-कुछ काम भर सीख लिया।
उस समय के समयानुसार मेरे हिसाब से यहाँ पर 'डिज़ाइन' शब्द का प्रयोग सही नहीं है क्योंकि यह एक अँग्रेज़ी शब्द है। इसके साथ ही इसी तरह पेज नम्बर 97 पर लिखा दिखाई दिया कि..
"इस तरह लाइन खींच..."
'लाइन' भी अंग्रेजी शब्द है।
साथ ही उपन्यास का अहम किरदार 'सौमित्र' अचानक या फिर अंत में अस्पष्ट रूप से समेटा गया सा लगा। ये अहम किरदार मेरे हिसाब से एक स्पष्टता वाला वाजिब अंत माँगता था।
हालांकि बहुत ही रोचक एवं धाराप्रवाह शैली में लिखा गया यह उपन्यास अपने आप में संपूर्ण है लेकिन फिर भी वो कहते हैं ना कि..
"ये दिल माँगें मोर।"
तो उसी 'मोर' के मद्देनज़र मेरे पाठकीय नज़रिए से कुछ सुझाव जैसे कि..
*इस उपन्यास की मूल कहानी में बंग देश और मिथिला के बीच युद्ध एक अहम स्थान रखता है जबकि युद्ध के दृश्यों को साधारण ढंग से बस निबटा भर दिया गया जैसा मुझे प्रतीत हुआ। युद्ध के दृश्यों को और अधिक रोचक एवं रोमांचक ढंग से अगर लिखा जाता तो इसकी पठनीयता में और अधिक वृद्धि होना तय था।
*पूरी कहानी पढ़ते वक्त वाक्यों के अंत में 'था' या 'थे' अथवा 'थी' लगा दिखाई दिया। जिससे यह भान हो रहा था कि भूतकाल की इस कहानी को कोई और जैसे कि ..सूत्रधार कह रहा हो लेकिन कहीं भी ऐसा कोई सूत्रधार दिखाई नहीं दिया। कहानी को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए मेरे ख्याल से इसमें सूत्रधार को भी स्थान दिया जाता या फिर कहानी को इस तरह लिखा जाता कि सब कुछ मानों अभी याने के वर्तमान बारहवीं शताब्दी में ही घट रहा हो, तो कहानी और ज़्यादा प्रभाव छोड़ती।
*किताब के अंत तक आते आते पहले से ही संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं कि अब मीनाक्षी कोई चाल चलने वाली है। संकेत के पहले से ही मिल जाने से पाठक अपने मन में पहले से ही कयास लगाने में जुट जाता है कि..अब आगे क्या होगा या हो सकता है?
तमाम पठनीयता..रोचकता एवं उत्सुकता जगाने वाला होने के बावजूद, उपन्यास का अंत याने के क्लाइमेक्स, पहले से सांकेतिक होने के बजाय अगर आकस्मिक एवं हतप्रद करते हुए चौंकाने वाला होता तो यह एक लेवल और ऊपर चढ़ गया होता।
बतौर पाठक मेरे हिसाब से होना यह चाहिए था कि नायिका के किसी क्रियाकलाप से बिल्कुल भी संकेत नहीं जाना चाहिए था कि उसके मन मे क्या चल रहा है? उसे अगर एकदम भोली..काम से वशीभूत हो..प्रेम में आकंठ डूबी दिखाया जाता और उसके अंत समय में एक रहस्यमयी मुस्कान छोड़, आगे सोचने का काम पाठकों को के जिम्मे ही छोड़ दिया जाता।
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