"बधाई हो बधाई"
***राजीव तनेजा***
"बधाई हो बधाई....आप बाप बनने वाले हो"...
"ऊप्स सॉरी!..."..
पता नहीं कैसे जब भी किसी को बधाई देनी होती है तो इस मुँह से बस यही निकलता है मानो...
सामने वाला बाप ही बनने वाला हो"...
"और तो कोई काम हो ही नहीं सकता ना जैसे इसके अलावा बधाई के लायक?"
"अब आपको तो पता ही है इस ...
छोटी सी...
नन्ही सी...
प्यारी सी चमडे की ज़बान का"...
"मौका भर मिले सही इसे और मज़े से ठुमके लगाते हुए इसका कुछ भी उल्टा-सीधा बके चले जाना शुरू"
"अपने में ही मदमस्त हो...
कभी-कभार फिसल भी जाती है बेचारी"
"उफ!...
एक तो कम जगह....
ऊपर से ये मुय्या फिसलन भरा रास्ता"...
"और लगे हाथ!..ये जन्मजात ऊछल-कूद की आदत"
"तो फिसलना तो पक्का ही पक्का समझो...
भले ही आज फिसले...
या फिर कल...
या फिर किसी और दिन"
"अमाँ यार!..आप भी कहाँ मेरी ज़बान के साथ-साथ ठुमके लगाने लगे?"..
"कोई काम-धाम है कि नहीं?"
"खैर!...अब ये कमर लचकाना छोड...मेरी बात ध्यान से सुनो"...
"हाँ!..तो मैँ क्या कह रहा था?"
"उफ!..
लगता है मुझे भी ये नेताओं की भूलने वाली बिमारी होती जा रही है...दिन पर दिन"...
"लेकिन यार!...अब तो इलैक्शन आने वाले हैँ कुछ ही महीनों में"...
"ऐसे आडे वक़्त में भूल जाना तो....गुनाह है...पाप है"
"इन दिनो तो...
छोटे से छोटे...
बडे से बडे...
टुच्चे से टुच्चे और...
छुटभिय्ये नेताओं तक को भी कुछ नहीं भूलता है जैसे....
गली-मोहल्लों के बाईस-बाईस चक्कर लगाना"....
"सडकछाप गुण्डों की फौज पालना"...
"दंगे करवाना"...
"भिखारियों की तरह हाथ में कटोरा ले गली-गली वोटों की भीख मांगना"...
"झुग्गी बस्तियों में नोटों और दारू की बारिश करवाना वगैरा-वगैरा"
"सो!..मैँ कैसे भूल गया?"
"अरे यार!...ये हम किनकी बातें ले के बैठ गये?"
"ये ना कल सुधरे थे...
ना आज सुधरे हैँ और...
ना ही आने वाले कल में इनके सुधरने की कोई संभावना है"...
"अब ये 'संभावना'से कहाँ याद आ गयी 'भावना'...
"अरे वही'भावना'जिसने कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझा"
"हाँ-हाँ वही!..जो कभी मेरे साथ पहले स्कूल और फिर कॉलेज में पढा करती थी"...
"वो दिन भी क्या दिन थे"...
"हमारा एक दूसरे से बातें करना"...
"वो साथ कैंटीन में वक़्त गुज़ारना"..
"बातों ही बातों में पैदल कहीं दूर निकल जाना"
"कमाल है!...आज भी उसकी यादें हैँ मेरे साथ"..
"वैसे भूला भी कब था मैँ उसे?"
"हर पल...हर घडी..वो मेरे साथ ही तो थी"...
"लेकिन फिर!..पता नहीं क्या हुआ और वो मुझसे दूर होती चली गयी"...
"अगर मेरा साथ गवारा नहीं था उसे....
तो खुद ही कह देना था ना"...
"किसी और से मैसेज भिजवानी की क्या ज़रूरत थी?"...
"खैर!...वो न थी हमारी किस्मत"
"ज़रूर एकतरफा चाहत रही होगी मेरी"..
"उफ!...कर दिया ना सैंटी मुझे"....
"आप भी ना...
"खैर छोडो!...
क्या रखा है कल की बातो में?"...
"कल की बात पुरानी...नए दौर में लिखेंगे...मिलकर नई कहानी"
"हाँ तो!...हम बात कर रहे थे बधाई की ...
तो यार!...'बधाई हो बधाई' बनायी थी अनिलकपूर ने"...
"वैसे फिल्लम तो कुछ खास नहीं लगी थी मुझे लेकिन...
फिर भी अपने अनिल कपूर बधाई के पात्र तो हैँ ही"...
"इतना जोखिम उठा कर लीक से हट के फिल्म बनाने का माद्दा हर किसी में कहाँ होता है?"
"कलाकार तो एक्दम उम्दा क्वालिटी के हैँ अपने अनिल कपूर"
'नो एंट्री'में क्या गज़ब की परफार्मेंस दी है पट्ठे ने"
"नो एंट्री से याद आया कि इस दिवाली...
उनकी बेटी 'सोनम'भी उन्ही के नक्शे कदम पे चलते हुए फिल्मों में एंट्री ले रही है"...
"वो भी छोटे 'कपूर' यानी'रणवीर कपूर'के साथ"
"अरे!..वही 'रणवीर'....
हाँ...हाँ...वही 'रणवीर'
जो अपने'ऋषी कपूर'का बेटा...
'राज कपूर'का पोता.....
'प्रिथ्वीराज कपूर'का पडपोता...
शशि कपूर,रणधीर कपूर,करिशमा कपूर,करीना कपूर,बबिता कपूर,कर्ण कपूर,जनिफर कपूर ,
शम्मी कपूर और ना जाने किस-किस 'कपूर' का क्या-क्या है"
"अब किस-किस के नाम और रिश्ता गिनवाऊँ?"...
"पूरा खानदान ही तो घुसा पडा है फिल्म इंडस्ट्री में"
"तो इस दिवाली ...खूब धमाचौकडी का इरादा है इन फिल्लम वालों का"
"दो-दो महारथी जो टकरा रहे हैँ"
"अपने किंग खान और भंसाली साहब"
"ओम शांति ओम और साँवरिया के माध्यम से"
"दोनों का अपना-अपना रुत्बा है"
"कोई किसी से कम नहीं"
"देखो...
किसकी दिवाली मनती है और किसका दिवाला?"
अपनी तो दुआ है ऊपरवाले से के इस दिवाली....
दोनों ही दिवाली मनाएं खूब धूम-धडाके से"
"अपुन को क्या फर्क पडता है?"
"अपुन ने कौन सा नोट खर्चा कर के देखनी है फिल्लम?"
"नोट खर्चा करें मेरे दुश्मन"
"अपुन ने तो नैट से ही डाउनलोड कर लेनी है जी"...
"हफ्ते भर में ही नैट पे धांसू से धांसू फिल्लम भी'अवेलेबल' जो हो जाती है 'टौरेंट' के जरिए"
"तो फिर खर्चा कौन कम्भख्त करता फिरे?"
"टारेंट ज़िन्दाबाद"...
"पाईरेसी ज़िन्दाबाद"
"खर्चा वो करें जिसे कंप्यूटर की समझ नहीं है या फिर वो जिसे...
माशूका के साथ कोई एकांत जगह नहीं मिलती"
"अपुन का क्या है?"....
"अपुन ठहरे रमते जोगी"...
"ऊपरवाले की दया और अपनी लेखनी के दम पे...
ना अपने पास जगह की कमी है और ना ही पैसे की"
"अब ज़्यादा क्या कहूँ?...
"किसी नेक बन्दे ने कहा भी तो था कि बन्धुवर आपकी लेखनी बडी सशक्त है"
"इस उल्टा-पुल्ता लिखने भर से ही पता नहीं कितनी सैंटी हो चुकी हैँ"
"जब सीरियसली लिखना शुरू करूँगा तो सोचो...क्या-क्या जलवे बिखेरूँगा"
"नाम बताऊँ?"
"छड्ड यार!...अब किस-किस का नाम और काम याद करता फिरूँ?"
"कोई और काम-धाम है कि नहीं मुझे?"
"क्या यार!...?"...
"आप भी ना बस!.."...
"तौबा हो...बस तौबा"
"वैसे कहते फिरते हो कि टाईम नहीं है और ...
अब इन बेफिजूल की बातों से खुद ही अपना और मेरा टाईम खराब कर रहे हो"...
"ऊपर से सौ झूठ हमसे भी बुलवाते हो सुबह-सुबह"
तौबा...तौबा"
"आपका तो पता नहीं लेकिन मेरा समय बहुत कीमती है"
"अब बेफिजूल की बातें करने की आदत तो है नहीं अपनी कि...
कोई बात हो न हो लेकिन लिखना ज़रूर है"...
"बडे-बूढों से सुन जो रखा है कि...
"टाईम वेस्ट इझ मनी वेस्ट"
"मनी की तो अपुन को कौनू चिंता नाही लेकिन...
"टाईम कहाँ है अपुन के पास?"
"कभी इसे डेट के लिए प्र्पोज़ करुं तो कभी उसे"
"और आपने कर दिया ना वैल्यूएबल टाईम वेस्ट मेरा?"
"खैर छोडो!...
अब क्या रखा है इन बातों में"...
"जो बीत गया सो बीत गया"
"हाँ!..तो मैँ कह रहा था कि "बधाई हो बधाई"...
"आपका ईनाम निकला है...ईनाम"
"ईनाम...वो भी छोटा-मोटा नहीं...तगडा निकला है"...
"क्या कहा?"...
"उम्मीद से दुगना?"..
"अरे यार!...वो तो बांटा करते थे अपने 'बच्चन जी' किसी ज़माने में"
"वो समय कुछ और था...ये समय कुछ और है"
"अपने 'बच्चन जी' का दौर तो कब का खत्म हो गया"
"उसके बाद तो'किंग खान'आए-गए हो लिए कब के"...
"उदती-उडती खबर सुना हूँ कि शायद वो फिर से आने वाले हैँ"...
"अउर आपको ईनाम भी देंगे टीवी पर"...
"वो भी तब जब...
आप घंटो तक उस के लिए बावलों की तरह फोन मिलाते रहो"...
"नॉलेज की किताबों पे चढी धूल फांकते रहो और....
अखबारों की रद्दी कबाडी को बेचने के बजाय संभाल के रखो कि...
पता नहीं 'बच्चन साहब'...
ऊप्स सॉरी...
अपने किंग खान कौन सा सवाल कर डालें"...
"अगर किस्मत गल्ती से मेहरबान हो भी गयी और फोन मिल भी गया तो ये डर कि...
कहीं ये साले!...'एम.टी.एन.एल' या फिर....
'बी.एस.ए.एल' वाले दगा ना दे जाए बीच मंझधार में अकेला छोड"
"सरकारी जो ठहरे"...
"आज हैँ"...
"कल की खबर नहीं"
"क्या मालुम कल हो ना हो"
"सरकारी काम है"...
"सरकारी ढंग से ही होगा ना?"
"तो फिर इतने औखे क्यूं हुए जा रहे हैँ आप?"
अब आप कहेंगे कि "इस मुय्ये बेसिक फोन को मारो गोली"....
"मोबाइल है ना?"...
"तो भैय्या मेरे....
फिर लगे रहना 'एयरटैल' वालों की मिनट दर मिनट के हिसाब से झोली भरने"
"अब यार!...किसी भले मानस ने किसी मेल या अखबार में पोल तो खोली तो थी इनकी कि....
कितने के वारे न्यारे करते हैँ ये एक-एक एपीसोड में"...
"अब अखबार के पन्ने तो आप पलटने से रहे तो कभी-कभार फुरसत निकाल के मेल-वेल ही चैक कर लिया करो"..
"कोई ज़रूरी नहीं कि हर वक़्त टीवी पे इन नंगी-पुंगी ठुमके लगाती लडकियों को ही ताक-ताक के ही टाईम खोटी करो"
"कोई शर्मो-लिहाज बाकि है कि नहीँ?"
"या वो भी मंदे बाज़ार में बेच खाई?"
"क्या यार?...
आप भी ऐसा सोचने लगेगी ना कि ये अच्छे भले 'राजीव' को क्या होता जा रहा है?"
"आप तो ऐसे न थे"
"वैसे मैँ बन्दा बडा ही ग्रेट हूँ ...बस पैदा हुआ थोडी लेट हूँ"
"अब लेट से आप ही कहीं मेरा ये ब्लाग पढना छोड बोर हो लेट ही नहीं जाना बिस्तर पे"
"आपके लेटने से अपुन को तो याद आ गई अपनी भारतीय रेल"...
"वाह!...क्या लेट हुआ करती है अपनी भारतीय रेल"
वाह!....वाह"
"अब आप घर से बेशक ऊँघते-ऊँघाते दो घंटे देरी से निकलें लेकिन...
ट्रेनवा के छूटने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता ना"
"अपने बडे-बुज़ुर्ग भी तो कहाँ गए हैँ कि...
जो वेले हैँ वो ही जल्दी पहुँचा करते हैँ"...
"कोई काम-धाम तो होता नहीं है इन्हें"...
"हुँह!...नहाना तो दूर की बात है...
ना ठीक से मुँह धोया और ना ही कुल्ला किया ढंग से "
"बस सडा सा मुँह उठाया और पहुँच लिए सीधा रेलवे स्टेशन"
"अरे भाई!..ज़रा बन के निकलो...
ज़रा ठन के निकलो"...
"क्या मालुम तुम्हें तुम्हारी 'बिप्स'...
और आपकी'ऐश'मिल जाए रेलवे स्टेशन पे?"
"जल्दी पहुँचने से कौन सी फीतियाँ लग जाएँगी तुम्हारे कन्धो पर?"
"अरे भाई...हाम्फते-हाँफते जो गाडी पकदने में मज़ा है...वो आराम से तसल्ली से...पकदने में कहाम?"
वो तुम्हारा हाँफते-हाँफते गाडी पकडना...
वो उसका तरस खाते हुए हाथ बढा तुम्हेँ चलती गाडी के अन्दर खीँचना"
"उफ!...किसकी याद दिला दी यार?"
" ये अपनी काजोल भी ना!...
पता नहीं कितनों की जान ले के छोडेगी"
"शादी हो गई...लेकिन जलवा वही का वही"
"अरे भय्यी!...बहुत हो गया"
"अब तो बक्श दो"...
"खाली-खाली झुनझुना क्यों दिखा ललचा रही हो ?"
"बच्चे की जान लोगी क्या?"
"लाहोल विला उलकुव्वत ...
बहुत हो गया ये लेट-शेट का ड्रामा"...
"बाकि किसी और वक्त...किसी और घडी"...
"फिलहाल कहीं ये ना हो कि मौका हाथ से निकल जाए और आप...
अतना टाईम खोटी करने के बाद भी ईनाम से वंचित रह जाएँ...
महरूम रह जाएँ"
"देखी मेरी उर्दू!...?"...
"इसे कहते हैँ सही मायनों में....
हिन्दी फिल्लमों का आम जनजीवन पे असर"
"अब!..खरबूजे को देख खरबूजा रंग नहीं बदलेगा तो क्या कद्दू रंग बदलेगा?"
"उफ!...
क्या होता जा रहा है मुझे?"
"उतार दी ना फिर पटरी से रेल?"
"लगता है!...अगली कहानी में ये रेलवे बिना अपनी ऐसी-तैसी करवाए नहीं मानेगी"
"फिलहाल इन बातों को यहीं विराम देते हुएसबसे पहले ईनाम ही बाँट लिया जाए तो बेहतर "
"ये रेलवे-शेलवे की कहानी कभी और बाँच लेंगे"
"अपुन का क्या है...वेले के वेले"
"हाँ!..तो बात हो रही थी ईनाम की...
"तो यार!...इस बार क्रिसमस और दिवाली के बंपर मौके पे....
खुशी से मैने भी अपनी दिल रूपी तिजोरी का मुँह खोल दिया है और...
आप सब के लिए एक-एक जैकपॉट.....
...
...
....
"अब अपने मुँह से कैसे ब्याँ करूँ अपनी दिलदारी का?"
वरना सब कह उठेंगे कि "ये पट्ठा ईनाम बाँट रहा है या अपनी दिलदारी का ढिंढोरा पीट रहा है?"
"अब यार!...आप मेरी तरह यूँ टुकुर-टुकुर ताकने के बजाए खुद ही देख लो ना"...
"अब अगर!..जैकपॉट पसन्द आ जाए तो ...
वैल एण्ड गुड...
नय्यी ते ....
वडो 'ढट्ठे खू'विच
"जय हिन्द"
***राजीव तनेजा***
2 comments:
कलर प्रिंट निकाल लिया है.
:)
भाई हंसाने में आपका जवाब नहीं (हिन्दी में बोले तो उत्तर नहीं)।
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