"मेरी कहानी नवभारत टाईम्स पर"

"मेरी कहानी नवभारत टाईम्स पर"

22.10.2007 को नवभारत टाईम्स में मेरी कहानी छपी है "बताएँ तुम्हे बच्चा कैसे होता है" के नाम से

www.navabharattimes.com -पाठकपन्ना-कहानियाँ - बताएँ तुम्हें बच्चा कैसे होता है
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2480094.cms




जिसे एक ब्लॉगर बन्धु श्री पवन कुमार मल्ल जी ने जस का तस कॉपी-पेस्ट कर डाला है अपने ब्लॉग पे ...
http://pawankumarmall.blogspot.com/
उनका मैँ अत्यंत आभारी हूँ कि उन्होने कहानी के साथ मेरा नाम नहीं लिखा..जिसके लिए मैंने उन्हें कमैंट भी किया और उन्होंने इसके लिए सॉरी भी कहा ...




लेकिन अभी भी वहाँ से मेरा नाम नदारद है ...


चलो इसी बहाने एक पोस्ट और लिखने का मौका मिला और मेरी कहानी एक बार फिर से आप सभी ब्लॉगर बन्धुओं के सामने पेश है


बताएं तुझे कैसे होता है बच्चा...


बड़े दिन हो गए थे। खाली बैठे बैठे , कोई काम-धाम तो था नहीं, बस कभी-कभार कंप्यूटर खोला और थोडी-बहुत ' चैट-वैट ' ही कर ली। सच पूछो तो यार बेरोज़गार था मैं और इसमें अपनी सरकार का कोई दोष नहीं , दरअसल अपनी पूरी जेनरेशन ही ऐसी है। अब कोई छोटी-मोटी नोकरी तो हम करने से रहे। अब यार हर किसी ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे को घड़ी-घड़ी कौन सलाम बजाता फिरे ? कोई छोटा- मोटा धंधा करना तो अपने बस की बात नहीं। बाप-दादा जो थोडी-बहुत पूंजी छोड गए थे , वो भी आहिस्ता-आहिस्ता खत्म होने को आ रही थी। आखिर वह भी भला कब तक साथ देती ? बीवी के तानों का तो शुरू से ही मुझ पर कोई असर होता नहीं था। उसकी हर बात को मैं एक कान से सुनता और दूसरे से बाहर निकाल देता। कई बार तो कान में घुसने तक ही ना देता।
पहले नकदी खत्म हुई फिर , गहने-लत्तों का नंबर भी आ गया। एक-एक करके चीज़ें खत्म होती जा रही थीं लेकिन मेरी अकड़ ढीली होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक दिन मज़े से टीवी पर ' नो-एंट्री ' फिल्म देखते-देखते अचानक खुशी के मारे उछल पडा। इसलिए नहीं कि फिल्म अच्छी थी बल्कि...अपुन के भेजे मे आइडिया आ गया था नोट कमाने का। अरे नोट कमाने का क्या, वह तो नोट छापने का आइडिया था। जैसे ही बीवी को बताया कि एक आइडिया मिला है नोट छापने का तो वह गश खा कर गिरी और वहीं बेहोश हो गई।

होश मे आने के बाद बोली, " बस जेल जाने की कसर ही बाकी रह गई थी .... नोट छाप कर वह भी पूरी करने का इरादा है जनाब का? "
मेरी हंसी रोके ना रुकी। बोला, " अरी भागवान , नोट छापने का असली मतलब सचमुच में नोट छापना नहीं है। "
" तो फिर ?"
" देखा नहीं, फिल्म में उस ज्योतिषी को ?.... कितनी सफाई से सलमान से पैसे ऐंठ लेता है और अनिल कपूर बेवकूफ बनाता है। "
" तो क्या हुआ ?"
" अपुन का भी बस यही आइडिया है। "
" तुम्हारे पूरे खानदान में भी कोई ज्योतिषी हुआ है जो तुम बनोगे ?"
" है तो नहीं लेकिन हमारी आनेवाली नस्ल ज़रूर राज ज्योतिषी कहलाएगी। "
" पर ये सब करोगे कैसे ?"
" अरे कुछ खास नहीं, बस थोड़ा-बहुत त्याग तो मुझे करना ही होगा। "
" वह भला कैसे ?"
अरे ये हीरो-कट बाल छोड़ सीधे-सीधे लम्बे बाल रखूंगा। "
" उसमें तो नाई का खर्चा भी बचेगा, " बीवी चहक उठी ।
" कर दी ना तुमने दो कौड़ी वाली बात .... अरे मैं लाखों में खेलने की सोच रहा हूं और तुम इन छोटी-छोटी बातों पर नज़र गड़ाए बैठी हो। "
" लेकिन आता-जाता तो कुछ है नहीं, खाली वेष बदलने से क्या होगा ?" बीवी फिर बोल पड़ी।
" अरे यार, पहले पूरी प्लानिंग तो सुन ले। "
" जी बताऒ, " बीवी आतुर नज़रों से मेरी तरफ ताकते हुए बोली।
" हां, तो मैं त्याग करने की बात कह रहा था। तो दूसरा त्याग यह करना पडेगा कि....ये गोविंदा-छाप कपड़े छोड़ धोती-कुरता पहनना पड़ेगा। "
" वह तो शादी का पड़ा-पड़ा अभी तक सड़ रहा है अलमारी में, " बीवी चहकते हुए फिर बोल पड़ी।
" चलो, यह काम तो आसान हुआ. अब कोने वाले कबाड़ी की दुकान से रद्दी छांटनी पड़ेगी। "
" आय-हाय। अब क्या रद्दी भी बेचोगे ?"
" जब पता नहीं होता , तो बीच में चोंच मत लड़ाया कर, " मैं आँखे तरेरता हुआ बोला, " बेवकूफ, पुराने अखबारों में जो भविष्यफल आता है, उसकी कतरनों को सम्भालकर रखूंगा, वक्त-बेवक्त काम आएंगी और अगर एस्ट्रॉलजी से रिलेटेड कोई किताब मिल गई तो... पौ-बारह समझो। "
" पौ-बारह मतलब ?"
" अरे बेवकूफ, पौ-बारह मतलब लॉटरी लग गई समझो। "
" लेकिन यह जन्तर-मन्तर कहां से सीखोगे भला ?"
" कोई खास मुश्किल नहीं है यह सब भी , बस...बल्ली सागू या फिर बाबा सहगल के किसी भी रैप सॉन्ग को कुछ इस अन्दाज़ से तेज़ी से होंठो ही होंठो मे बुदबुदाना होगा कि किसी के पल्ले कुछ ना पडे। बस हो गया.... ' जन्तर-मन्तर काली कलन्तर... "
" ऒह समझ गई.... समझ गई। "

बस फिर क्या था मोटी कमाई के चक्कर में बीवी के बटुए का मुंह खुल चुका था। ज़रूरी सामान इकट्ठा करने के बहाने पैसे ले मैं चल पड़ा बाज़ार। पहले ठेके से दारू की बोतल खरीदी और फिर जा पहुंचा बाज़ू वाले कबाड़ी की दुकान पर। एक-दो पेग मरवाए उसे और अपने मतलब की रद्दी छांट लाया।
अब दिन-रात एक करके हम मियां-बीवी उन कतरनो का एक-एक अक्षर चाट गए और इस नतीजे पर पहुंचे कि " पूरी दुनिया में इससे आसान काम तो कोई हो ही नहीं सकता। " अब आप पूछोगे कि , " वो भला कैसे ?"
तो ये मैं आपको क्यों बताऊं ? और अपने पैर पर ख़ुद ही कुलहाड़ी मार लूं ? कहीं मुझसे ही कॉम्पिटीशन करने का इरादा तो नहीं है आपका ?
क्या कहा ?.... चिंता ना करूँ ?
तो सुन लीजिए...कुछ ख़ास मुश्किल नहीं है यह सब.... बस सिम्पल-सी कुछ बातें गांठ बांध लो कि... " हर बंदा अपने को अच्छा और बाक़ी सबको बुरा समझता है। "
हर-एक को यही लगता है कि वह सही है और बाक़ी सब ग़लत, कोई उसे सही ढंग से समझ ही नहीं पाया आज तक, वह अपनी तरफ़ से कड़ी मेहनत करता है लेकिन उसका पूरा फल नहीं मिलता, सबके सब उसकी कामयाबी से जलते हैं, कोई उसका भला नहीं चाहता ... दोस्त-यार ... रिश्तेदार .. भाई-बहन ... पड़ोसी ... सब के सब मतलबी हैं ... कोई उसकी ख़ुशी से ख़ुश नहीं हैं...वह सब पर तरस ख़ाता है, लेकिन कोई उस पर नहीं खाता ... किसी ने उस पर कोई जादू-टोना किया हुआ है ... या फ़िर उसकी दुकान या मकान बांध दिया है...
बस कुछ सामने वाले का चौख़टा देख कर अंदाज़ा लगाओ कि उस पर कौन-कौन से डायलॉग फ़िट बैठेंगे। बस चौखटा देखो और मार दो हथौड़ा। अगर तीर सही निशाने पर लगा तो समझो कि अपनी तो निकल पड़ी।
" और अगर निशाना ग़लत लगा तो ?"
फिकर नॉट... घुमा-फिरा कर 2-4 डायलॉग और मार दो बस... " कोई ना कोई तो अटकेगा ज़रूर। और हाँ... अगर ऊं चे लेवल का गेम खेलना है, तो दो-चार चेले-चपाटे भी साथ रख लो, एकाध चेली हो तो कहना ही क्या। अगर कोई ना मिले तो चौक से ही दिहाड़ी पर पकड़ लाओ।
बड़े बे-रोज़गार हैं , कोई ना कोई अपने मतलब का मिल ही जाएगा पर इतना ज़रूर ध्यान रखना कि....चेला रखना है गुरु नहीं ... । कहीं अगले दिन ही वह तुम्हारे सामने तेल की शीशी और चटाई लिए बैठा तुम्हारा ही बंटाधार करता न मिला। चौक पर बिकने वाला तोता अगर मिल जाए, तो धंधे में और रौनक आ जाएगी।
बस तोते को भूखा रखना है और... भविष्य की पर्चियों पर अनाज का दाना चिपका देना है। पंछी बेचारा तो भूख के मारे अनाज के दाने वाली पर्ची उठाएगा और बकरा बेचारा बस यही समझेगा कि मिट्ठू महाराज ने उसका नसीब बांच दिया है।
" और उस पर्ची के अंदर लिखा क्या होगा ?" बीवी बोल पड़ी।
" हे भागवान, पूरी रामायण खत्म होने को आई और यह पूछ रही है कि ... सीता , राम की कौन थी ?"
" अरी भागवान, अभी ऊपर सारे मंतर तो बताता आया हूँ...कोई ना कोई तो फ़िट बैठेगा ज़रूर।"
" हुं! " बीवी की समझ मैं बात आ चुकी थी।

सो एक दिन ऊपरवाले का नाम लिया और जा पहुंचा बीच बाज़ार और बरगद के पेड़ के नीचे डेरा जमाया। " कोई न कोई कोई असामी रोज़ टकराने लगी। किसी को कुछ , तो किसी को कुछ इलाज बताता उसकी हर तक़लीफ़ या बीमारी का। एक से तो मैने एक ही झटके में पूरे बारह हज़ार ठग डाले थे। बड़ी आई थी मज़े से कि " महाराज बच्चा नहीं होता है , कोई उपाय बताओ। "
मैंने सोचा, अरे नहीं होता है तो कुछ ' ओवर-टाइम ' लगाओ , ' माल-शाल खाओ और अगर फिर भी बात नहीं बने तो किसी डॉक्टर-शॉक्टर के पास जाओ। यह क्या कि सीधे मुंह उठाया और ज्योतिषी के पास चली आई। अब यार, अपने घर की ड्यूटी तो बजाई नहीं जाती अपुन से, ओवरटाइम कौन कंबख्त करता फिरे ? लेकिन धंधा तो धंधा है सो , उस बेचारी को कुछ उलटी-पुलटी चीज़ें बताई लाने के लिए जैसे ' काली शेरनी का दूध... जंगली भैंसे का सींग ... शुतुर्मुर्ग का कलेजा और न जाने क्या-क्या...
मुंह उतर आया उस बेचारी का कि मैं अबला नारी... " कहाँ से लाऊंगी ये सब ?"
मैंने कहा, " आप चिंता ना करें। परसों मेरा शागिर्द नेपाल से आनेवाला है, उसको फ़ोन किए देता हूँ , वही सब इंतज़ाम कर देगा। " उसने हामी भर दी।
और चारा भी क्या था उसके पास ?
नकद गिन के पूरे बारह हज़ार धरवा लिए मैने। फिर जाने दिया उसे।
मोटी-कमाई हो चुकी थी, सो मैने अपना झुल्ली बिस्तरा संभाला और चल पड़ा घर की ओर।
रास्ते में विलायती की पेटी ले जाना नहीं भूला।

ख़ुश बहुत था मैं, बस पीता गया, पीता गया। कुछ होश नहीं कि कितनी पी और कितनी नहीं पी। होश आया तो बीवी ने बताया , " पूरे तीन दिन तक टुल्ली थे आप। ख़ूब उठाने की कोशिश की लेकिन कोई फ़ायदा नहीं। "
" तो क्या पूरे तीन दिन दुकान बन्द रही ?"
" और नहीं तो क्या ?"
मैं झट से खड़ा हुआ और भाग लिया सीधा दुकान की ओर। पूरे रास्ते यही सोचे जा रहा था कि तीन दिन में पता नहीं कितने का नुक़सान हो गया होगा ?
कई बार तो पता नहीं कैसे मेरा तुक्का सही लगने लगा था और किसी-किसी को थोड़ा-बहुत फ़ायदा भी होने लगा लेकिन 8-10 बार शिकायत भी आई कि " महाराज आपकी तरकीब तो काम न आई, कोई और जुगाड बताओ। " ऐसे बकरों का तो मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता था। एक ही पार्टी को 2-2 दफा शैंटी-फ्लैट करने का मज़ा ही कुछ और है। उसके द्वारा किए गये इलाज में कोई न कोई कमी ज़रूर निकलता और नये सिरे से बकरा हलाल होने को तैयार। पुरानी कहावत भी तो है कि " खरबूजा चाहे छुरी पर गिरे या फ़िर छुरी खरबूजे पर , कटना तो खरबूजे को ही पड़ता है।

अपुन का कॉन्फिडेंस ' टॉप-ओ-टॉप बढता ही जा रहा था कि एक दिन एक ' जाट-मोलढ ' टकरा गया ....
पूरी कहानी सुनने के बाद मैंने उससे , उसकी परेशानी का इलाज बताने के नाम पर 2 हज़ार माँग लिए। जाट सौदेबाज़ी पर उतर आया। आख़िर में सौदा 450 रुपये में पटा। उसने धोती ढीली करते हुए जो नोट निकाले, तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। नज़र धोती में बंधी नोटों की गड्डी पर जा अटकी, लेकिन अब क्या फ़ायदा, जब चिड़िया चुग गयी खेत। मैं तो यही सोचे बैठा था कि बेचारा ग़रीब मानुस है, इसे तो कम से कम बख्श ही दूं। आख़िर ऊपर जाने के बाद वहां भी तो हिसाब देना पड़ेगा। लेकिन यह बांगड़ू तो मोटी आसामी निकला। यहीं तो मार खा गया इंडिया।

साढ़े चार सौ जेब के हवाले करते हुए मुंह से बस यही निकला, " ताऊ काम तो करवा रहे हो पूरे ढाई-हज़ार का और नोट दिखा रहे हो टट्टू ।"
" बेटा टट्टू तो तुमने अभी देखा ही कहाँ है ?"
" वो तो अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा, " कहते हुए उसने किसी को इशारा किया और तुरंत ही मेरे चारों तरफ़ पुलिस ही पुलिस थी। " साले! पब्लिक का फुद्दू खींचता है। अब बताएंगे तुझे...चल थाने। बड़ी शिकायतें मिली हैं तेरे खिलाफ़। साले! वो S.H.O साहेब की मैडम थीं, जिससे तूने बारह हज़ार ठगे थे । चल अब हम तुझे बताते हैं कि बच्चा कैसे होता है।
राजीव तनेजा

1 comments:

Girish Kumar Billore said...

आइये इन हराम खोरों को आईना दिखाएं आप लिंक मेल भी कीजिये

 
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