"ठण्डे-ठण्डे पानी से नहाना चाहिए"

"ठण्डे-ठण्डे पानी से नहाना चाहिए"

***राजीव तनेजा***


"क्या मियाँ!....?"...

"अब तो दिवाली को गुज़रे हुए भी कई घंटे हो गए"...

"अब तो ये आलस-शालस को मारो गोली और सीधा बाथरूम में जा घुसो"...

"बाल्टी,साबुन.तेल,शैम्पू सब याद कर रहे हैँ"

"बाजुएँ अकड गयी हैँ उनकी तुमसे मिले बिना"

"और तुम हो कि....कोई फिक्र ना फ़ाका"..


"याद है ना...

'शानू जी'के कवि सम्मेलन में जाना है?"और...

दो दिन बाद अपनी शायर फैमिली वाली'श्रधा जी'भी तो आ रही है सिंगापुर से"...


"उनसे भी तो मिलने जाना है पटपडगंज"

"आज ही तो पता और फोन नम्बर नोट कराया है उन्होंने"


"कहीं भूले तो नहीं बैठे हैँ जनाब?"

"कहा भी था कि अच्छी तरहा नक्शा-वक्शा बना लो दोनों पतों का"

"कहीं हम गली-गली भटकते फिरें और भूखे-प्यासे तब पहुँचे मँज़िल पे जब...

जूठे पत्तल चाटने के अलावा कोई और जुगाड ही न बचा हो"


"जल्दी से हो जाओ तैयार"...

"इंतज़ार हो रहा होगा हमारा वहाँ"...


"अब ये कोई ज़रूरी तो नहीं कि खुद ही फोन करें शानू जी और श्रधा जी कि....

"आ जाओ!...हम इंतज़ार कर रहे हैँ"


"इतने वी.आई.पी भी नहीं हम"


"सौ तरह के सौ-सौ काम होंगे उन्हें"


"हमारी तुम्हारी तरह वेली थोडी हैँ वो दोनों कि न्यौता आ जाए सही कहीं से और...

बस मुँह उठाएँ और चल दें "


"याद है ना पिछली बार जब चंबल से न्योता आया था अपुन को ?"...

"बडे मज़े से पहुँच गए थे अगली ही गाडी से लॉलीपॉप चूसते-चूसते"...


"ये तो वहाँ जा के पता चला था कि वो 'इनवीटेशन कार्ड'नहीं बल्कि...

फिरौती के लिए लिखा गया पत्र था जिसे हम न्योता समझ कूदे-कूदे फिर रहे थे"


"ये तो शुक्र है कि उसी दिन पुलिस ने धावा बोल मुठभेड में'लाखन सिंह'को मार गिराया था"...

"वर्ना हम तो कब के लग गए होते 'खुड्डल लाईन'"


"सब तुम्हारी बेवाकूफी का नतीज़ा था"...

"ना खुद खत ढंग से पढा और ना ही मुझे ठीक से पढने दिया"


"और नतीजे में!..याद है ना कैसे बीहडों में जाग-जाग काटी थी रात?"


"साले!...उन गीदडों ने भी तो हुआँ-हुआँ कर जीना हराम कर डाला था"


"हुह!...बडे आए कहने वाले तुम कि....

"पापा जी!..आप चिंता ना करें"...

"मैँ सब सम्भाल लूंगा"...


"कहीं उस दिन मेरी दौलत याने मेरी बीवी को ही संभालने की नहीं सोच रहे थे ना ?"


"ऐसा सोचने के बारे में सोचना भी मत"...


"इसलिए नहीं कि पराई नॉर पे नज़र डालना पाप है...गुनाह है "

"बल्कि इसलिए कि ऐसी सोच सोच के भी तुम पछताओगे"


"उफ!...किस मनहूस की याद दिला दी?"

"रोयाँ-रोयाँ तक काँप उठता है आज भी जब माथे पे हाथ फेरता हूँ"


"देख रहे हो ना?"


"अभी भी सूजन नहीं गई है उस दिन वाले बेलन की मार की"


"पट्ठी का निशाना ही इतना पक्का है कि बस पूछो मत"...

"सौ गज़ के फासले से भी अचूक वार करती है"...

"बचपन में मारन पिट्टी जो खेला करती थी"


"वैसे एक बात समझ नहीं आ रही कि मैँ ये सब राज़ की बातें मैँ तुमसे क्यों करता जा रहा हूँ?"

"खैर छोडो इन बेफिजूल की बातों को"...

"कुछ नहीं धरा इनमें"


"हाँ!...तो मैँ कह रहा था कि....

बेचारी शानू जी तो काम के बोझ से अधमरी हुई जा रही होंगी और श्रधा जी सफर की थकान के मारे चूर"


"शानू जी ही तो सब इंतज़ामात कर रही हैँ कवि सम्मेलन का"


"अपनी श्रधा जी भी कौन सी कम हैँ?"

"पूरा फोरम और ब्लॉग संभाल रही हैँ अपने दम पे"


"बहुत टैंशन हो जाती होगी इन दोनों को तो"...


"पता नहीं कैसे मैनेज कर लेती होंगी ये सब ?"...

'बिज़िनस'संभालना...

'घर-परिवार'देखना...

'कविता' लिखना....

'शायरी' झाडना....

'ब्लॉग' अप टू डेट रखना...

'दूसरों के चिट्ठों पे टिपियाना वगैरा...वगैरा. .."


"और अपुन?"...

"अपुन ठहरे रमते जोगी"...


"अपना क्या है...

"ऐन टाईम पे जाना है"...

"चाय-नाश्ता पाडना है"

"दो-चार बार जहाँ सबने ताली बजाई....

सो!...हमने भी बजा देनी है "


"थोडी बहुत वाह-वाह भी कर देंगे अपने गुरुदेव 'समीर लाल जी'के लिए...

"वो भी तो आ रहे हैँ ना कनेडा से"


"सो!...तैयार हो जाओ फटाफट"


"कोई ज़रूरी नहीं कि पिछली होली और दिवाली की तरह इस बार भी तुम्हें ज़बर्दस्ती ही नहलाया जाए"


"अबकि बार तो आपको एक्दम से गोरा-चिट्टा बना के ही दम लेना है"...

"बॉय गॉड...कसम से"...

"अपनी श्रधा जी जो आ रही हैँ"


"उफ!...क्या गज़ब के क्यूट और हैंडसम लगोगे"


"पता है ना!....पिछली बार जो हैदराबाद वाली ऑंटी ताना मारा था कि...

खुद तो इतना बन-संवर के रहते हो और अपने दोस्त का कोई ख्याल नहीं"



"तो बन्धु मेरे..इस बार किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं"

"अब ये उनींदी आँखो से नींद का पर्दा हटाओ और चौखटे पे पानी के छींटे मारते हुए सीधे जा घुसो नहाने को"...


"क्या कहा?"

"नींद आ रही है?"

"वाह रे!..मेरे कुम्भकरण...वाह"


"रामलीला कब की खत्म हो गयी और अब भी कुम्भकरण के पात्र को ही जिए चले जा रहे हो?"


"वाह!..."...


"ये तुम राजेश खन्ना कब से बन गए कि चाहे दस बरस पहले से ही बुढाए पडे हो लेकिन. ..

रोल 'हीरो'का ही करना है उस्ताद ने"


"रजनीकाँत समझ रखा है क्या खुद को ?"

"अरे!...झंडू का च्यवनप्राश खाता है वो दिन में तीन-तीन दफा और तुम हो कि...

पैग पे पैग चढाए रहते हो हरदम"


"पता भी है कि दारू पीने से 'लीवर'खराब होता है लेकिन अब इस बुड्ढे 'काका'को समझाए कौन?"

"डिम्पल जी की बात तो सुनते ही कहाँ हैँ?"


"उफ!...किसका नाम ले लिया?"

"लुट गया ना सब सुख चैन मेरा?"

"याद दिला ना'बॉबी'की?"...

"अब रातें करवटें बदल-बदल ही काटनी पडा करेंगी"


"अपनी 'बॉबी डार्लिंग'उर्फ श्रीमति मायके जो गयी हुई है"


"रात काटने से याद आया कि मियाँ!...कब तक यूँ कुँभकरण की नींद उँघाते रहोगे?"

"डाक्टर ने नहीं कहा था कि रामलीला में कुंभकरण का रोल करो?"...

"कोई और रोल नहीं था क्या करने को?"

"ह्म्म!...तो यहाँ भी तुम्हारे आलस ने ही ज़ोर मारा होगा कि...

'सोने'को खूब मिलेगा और नाम का नाम होगा"...


"खाक!..सोना मिलेगा"....

"दिहाडी तो पूरी दी नहीं गयी इन मुय्ये रामलीला वालों से"...


"हुँह!...बडे आए सोना देने वाले"..

"एक पीतल का पानी चढी गद्दा थमाई...

वो भी 'डिब्ब-खडिब्बी' कि..

"ले बेटा!...चढ जा स्टेज पे"...

"छुडा दे छक्के"...

"मार ले मैदान"


"तुमने भी सोचा होगा कि चलो इसे ही बेच कुछ दाम वसूल लूगा"

"पर वो भी तो पट्ठों ने वापिस छीन ली और उल्टा पुलिस में जाने की धमकी देने लगे सो अलग"...


"और ले लो वडेंवे!..."...


"वाह!..रे मेरे बंटुक नाथ"...

"वाह"...

"बडे आए थे कहने वाले कि अब होंगे आम के आम और गुठलियों के भी पूरे-पूरे दाम"


"दिखा दी न तुमने अपनी बनिया बुद्धी"...

"हर चीज़ में फायदा ढूंढते हो"...


"अब!...ये जो दो-दो महीने नहीं नहाते हो"...

"तो!...इसमें भी कोई न कोई फायदा ही ढूँढते होंगे महाशय...?"


"है ना!...?"


"हाय!...अब क्या करूँ तुम्हारी इस मूढ बुद्धी का?"अब कह रहे हो कि....

'साबुन'बचता है...

'तेल' बचता है...

'तौलिया-कंघी'कम घिसते हैँ"



"और!..ये जो दो-दो महीने की मैल को जब चाकू से खुरच-खुरच के उतारते हो ?"

"वो सब क्या होता है?"


"याद है ना पिछली बार का?"...

"जब धार कुंद पड गयी थी चाकू की तो बीच में ही पिताश्री से 'ब्लेड'माँग काम चलाना पडा था किसी तरह"..

"और ऊपर से कँजूसों के महा कँजूस तुम्हारे पिताजी"...

"थमा दिया उन्होंने दो साल से पडा-पडा जंग खा रहा ब्लेड"...

"वो भी पूरा नहीं...आधा ही थमाया था कि बचा हुआ आधा वक्त-बेवक्त काम आएगा"

"बचत में कैसी शर्म?"


"अगर 'सैप्टिक-शैप्टिक'हो जाता तो उनकी बला से?"..


"फिर पता चलता बच्चू को"

"ट्ट्टू पता चलता तुम्हारे पिताश्री को?"

"उन्होंने तो उसी घसियारे 'डाक्टर'के बच्चे से ही ठुकवा देने थे 'इंजैक्शन'धडाधड"


"हाँ!..ठुकवाने ही तो थे"..

"कौन सा डिग्रीधारी था वो डाक्टर ?"...

"पट्ठा!..पंचर जो लगाया करता था पहले"...

"पुरानी आदतें इतनी जल्दी कहाँ पीछा छोडती हैँ?"

"पहले 'टायर'से कील निकाला करता था अब अब बदन में कील घुसेडा करता है"..

"खैर छोडो...क्या रखा है टाईम खोटी करने में?"

"ये आलस का पुलिंदा छोडो और उठ के नहा लो फॅटाक से फटाफट "...


"नहीं तो!...पता है ना मेरा?"


"क्या कहा?"...

"नहीं पता?"


"तो!..तुम ऐसे नहीं मानोगे?"

"लगता है!..'थर्ड डिग्री'ही अपनानी पडेगी?"


"थर्ड डिग्री से याद आया कि स्कूल तो 'थर्ड' में ही छोड दिया था मैंने"..


"बस!..तभी तो पड गया था दो नम्बर के धन्धे में"...

"फिर आना-जाना तो लगा ही रहा ताउम्र"...

"कभी अपने देश में तो कभी परदेस में"...


"अब अपने देश वालों में इतना दम कहाँ कि वो अपने पर थर्ड डिग्री अपना सकें?..

"ये तो वो साले फिरंगी पुलिस वाले ही नहीं समझते किसी को कुछ"...

"ज़रा सी!..बस ज़रा सी 'चूं-चपड'करुं सही...

उन्हें तो बस मौका भर चाहिए हाथ साफ करने का"...


"साले!...बन्दे को बन्दा नहीं समझते हैँ"...

"पता नहीं मेरे चौखटे में ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैँ जो देखते ही...

अपने-अपने लट्ठों को तेल पिलाना चालू कर देते हैँ"


"अब कुछ ना पूछो कि कैसे बचते बचाते जुगाड-पानी से दे-दिला कर...

उनका 'तौलिया'गायब करवाया है खास तुम्हारे लिए"


"देख लिया ना?"

"आखिर दोस्त ही दोस्त के काम आता है!...दुशमन नहीं"


"अब तुम्हारे इस चक्कर में मेरी हालत का मुझे ही पता है कि क्या-क्या हुआ मेरे साथ"...

"आह!...पराया तन क्या जाने मेरी पीड"

"बडी मुशकिल से उसे 'हिन्दोस्तानी' ज़बान सिखाई है"...

"अब तो बेटे लाल!...इशारे पे नाचता है...इशारे पे"..


"तौलिया?"...

"नाचता है?"...

"इशारे पे?"दोस्त एक झटके से कई सवालों को चेहरे पे लिए उठ खडा हुआ


"हाँ!...मेरे प्यारे 'बंटुक नाथ'..

"इशारे पे"...


"और आज इसी के दम पे ठान लिया है कि...

चाहे लाख तूफाँ आएँ...

चाहे जान भी अब तेरी चली जाए...

तुझे नहला के ही लेंगे हम दम...

ऐ सनम"...


"क्या कहा?"...

"ज़रा फिर से तो कहना"


"अच्छा!...नहीं नहाओगे?"...


"देखो!..हर फैसला यूँ जल्दबाज़ी में लेना ठीक नहीं"...

"अच्छी तरह सोच-विचार लो"


"फिर वो ही बात?"...

कह रहे हो कि....

"हमको नहला सके ...ये ज़माने में दम नहीं...

हमसे है ज़माना...ज़माने से हम नहीं"


"कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ तुम्हें नहला सकने वाला?"


"ठीक है!...आज ही और अभी ही फैसला हो जाए फिर तो"...


"कल किसने देखा है?"...

"क्या मालुम कल को तुम ही...हो न हो"


"देखो!...दोस्त हो तुम मेरे,इसीलिए कह रहा हूँ फिर से"...

"मेरी बात मान लो और अच्छे बच्चों की तरह जा के चुपचाप से नहा लो"



"मालुम था मुझे!..."...

"हाँ!...मालुम था मुझे"


"तो फिर!...नहीं मानोगे तुम?"


"अच्छा!...एक बार....

बस एक बार...नज़र भर देख तो लो 'तौलिए'को"


"फिर ये न कहना कि मौका नहीं दिया 'राजीव'ने बचाव का"


"बच्चू!...किस फिराक में हो तुम?"

"भागने का मौका तक ना मिलेगा"...

"किस हवा में उडे-उडे फिर रहे हो तुम?"कि...

मैँ ये कर दूंगा...

मैँ वो कर दूंगा"


"बेटे लाल!...देसी नहीं...

खालिस सोलह ऑने शुद्ध विलायती तौलिया है...खालिस विलायती"

"बडों-बडों को तिगनी का नाच नचा दे ये तो"...

"तुम किस खेत की गाजर-मूली हो?"...


"ये क्या?...तुमने तो लपेटना चालू कर दिया?"

"अरे!...फैंक नहीं रहा हूँ मैँ..जो तुम लपेटे चले जा रहे हो"


"पता चल जाएगा कुछ ही पल में कि मैँ सच्ची बात कर रहा हूँ कि झूठी"...

"हाथ कँगन को आरसी क्या...पढे लिखे को फारसी क्या"

"खुद ही देख लो और भली भांति जाँच लो"...


"ठण्डे-ठण्डे पानी से नहाना चाहिए...

ओ पुत्रा!..लिखना आए या ना आए...लिखना चाहिए"...


"अब ये!...लिखना-लिखाना तो तुम्हारे बस का है नहीं"


"तो!...क्या कहते हो?"...

"कर आऊँ गीज़र ऑन?"


"नहाना तो तुम्हें है ही"..

"दो मिनट पहले सही...दो मिनट बाद में सही"

"कहीं यही बहाना न मिल जाए बाद में तुम्हें कहीं कि...

"ठण्ड लग रही है"..

"अगली दिवाले पे नहा लूंगा"...

"पक्का!...'गॉड प्रामिस'


***राजीव तनेजा***











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