"कुछ जतन करो मेरे भाई"


"कुछ जतन करो मेरे भाई"


***राजीव तनेजा***

ना रहा अब दिन को चैन
ना रही अब रातों की नींद
सुख-चैन लुट गया है मेरा
कब-कब आओगे तुम रघुवीर

पढने वाले पढ-पढ रहे
समझ रहा ना कोई
कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

पहले मैने इसे पिया
अब ये मुझे पीने लगी
ज़िन्दगी पहले सी कहाँ
बोझिल अब होने लगी

कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई


खुशी-खुशी मैँ इसे पीता था
हर गम भी सह-सह जाता था
बे-स्वाद बे-असर है अब
ना बचा इसमें कुछ बाकी है

कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

क्यों जान इसी में अटकी है
क्यों तलवार गले पे लटकी है
समझ रहे मुझे किस जैसा
मैँ नहीं रहा कभी उन जैसा

कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

सोच तुम्हारी है उल्ट-पुल्ट
बात है जबकि सीधी सच्ची
रास्ते हमारे अलग-अलग है
विचार हमेशा रहे जुदा-जुदा

कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

बात सुरा की तुम करते हो
मैँ पान सुधा का करता हूँ
तुम विष का सेवन करते हो
अमृत का प्याला मैँ छकता हूँ


कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

चाय की प्याली प्यारी मुझे
अद्धा-पव्वा है न्यारा तुम्हे
चाय को मन मेरा भटक रहा
पैग तुम्हारा अब छलक रहा


कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

राधा-स्वामी नाम लिया है
जीवन उनके नाम किया है
छोड के तुम सारे व्य्सन
इष्ट का अपने जाप करो

कुछ जतन करो मेरे भाई
कुछ जतन करो मेरे भाई

***राजीव तनेजा***

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी रचना है।बढाई।



राधा-स्वामी नाम लिया है
जीवन उनके नाम किया है
छोड के तुम सारे व्य्सन
इष्ट का अपने जाप करो

दीवाली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ।

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत सुंदर और सारगर्भित !ज्योति - पर्व की ढेर सारी बधाईयाँ !

Pramendra Pratap Singh said...

अच्‍छी रचना है,

दीपावली की शुभकामनाएं

 
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