"मंगल-कामना"
***राजीव तनेजा***
"दिपावली की शुभ मंगल-कामनाएँ आप सभी को....
"ऊप्स!...सॉरी...
'मंगल' सिर्फ लड्कियों के लिए और....
'कामना' सिर्फ लडकों के लिए"
"बिकाझ उल्टी गंगा इझ नॉट अलाउड हीयर इन मॉय ब्लॉग"
"हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा"
"समझा करो यार"...
"वैसे भी उलटे बाँस बरेली कहाँ जाता है आजकल?"
"देसी है हम...विलायती नहीं"...
"सुनो लडकियो!...पते की बात"..
"फिर न कहना कि मौका नहीं दिया और कर डाला झट से एक दो तीन"
"बेशक!...खुशी से सारे के सारे 'मंगल' तुम ले लो"...
"जी भर ले लो"...
"झोली भर-भर ले लो"...
"आखिर!..भाई है हमारा"...
"तुम्हारे काम नहीं आएगा तो फिर क्या 'ताडका' के काम आएगा?"
"याद है ना?...कि ताडका'के लिए तो अपने'लक्षमण जी'भी नकार दिए थे"
"लेकिन!..मजाल है जो ये अपना'मँगल'ज़रा सी भी चूँ-चपड कर जाए"...
"बखिया न उधेड डालेंगे पट्ठे की?"
"देख लेना!...उफ तक नहीं करेगा"...
"बहुत दम है पट्ठे में"
"आखिर बचपन का पिया 'बौर्नवीटा-शौर्नवीटा' किस दिन काम आएगा?"
"लेकिन हाँ!...एक बात कान खोल के सुन लें आप भी कि...
इन 'कामनाओ' की तरफ भूले से भी भूलकर नहीं ताकना है आपने"...
"वर्ना!..."...
"समझदार को इशारा कॉफी"...
"गुड!....
पल्ले पड गई आपके भेजे में भेजी हुई बात"...
"अच्छा है...
नहीं तो!...वहीं के वहीं कर डालते शैंटी फ्लैट क्योंकि...
ये 'मेनकाएँ'...ये 'कामनाएँ'हमारी है"...
"सिर्फ हमारी"
"अब ये अगला पैगाम सभी लडकों के नाम...
"चाहे ये 'पिंकी-शिंकी'...
'चेतना-वेतना'...
'सीता-गीता'...
'रेशमा-सेशमा'...
'हेमा-शेमा'...
'विनीता-सुनीता'...
'मोनिका-शोनिका'सब ले लो"
लेकिन!...
किंतु....
परंतु....
बाजू वाली'कामना'को मेरे लिए छोड देना प्लीज़!...."
"सुनो गौर से तुम भी लडको सारो...
बुरी नज़र न इस 'कामना' पे डालो"
"चूँकि ...सबसे आगे हूँ मैँ"...
"हाँ!...मैँ"...
"देखो!...इनकार न करना"..
"वो मेरी है!....सिर्फ मेरी"...
"समझा करो यार!...भाभी लगती है तुम्हारी"
"अच्छा बाबा!...ओ.के"....
"बाकि सब तुम्हारी"...
"हाँ!...गॉड प्रामिस"
"ठीक रहेगा ना?"
"कोई ट्ण्टा नहीं ना अब?"
"तो डील रही पक्की?"
"कोई गिला?"...
"कोई शिकवा तो नहीं ना?"
"ओ.के!...तो फिर तुम...
अपनी 'बिप्स-शिप्स'...
'मल्लिका-शल्लिका'..
के साथ 'ऐश-वैश'करो"...
"ऊप्स!..सॉरी अगेन"...
"इस 'ऐश'को तो आप बक्ष ही दें अब खरबूजा खा के"
"करने दो 'अभिषेक' को भी 'ऐश'के साथ ऐश"
"अपना ही बन्दा है"...
"कौन सा पराया है?"
"जाएँ अब आप भी अउर...
ई दिपावली की मौजवा के समुन्द्र में गोते लगाएँ एकदम से खुल के..."
"खुश रहें"...
"आबाद रहें"...
"बेशक!...यहाँ रहें या 'फरीदाबाद' रहें"
"आप चाहें तो बेशक 'मुरादाबाद' या फिर 'बरेली' में भी अपना तम्बू का बम्बू गाड लें"
"बेकाझ ई आज़ाद भारत में कौनु रोकने-टोकने वाला नहिंए है ना"
"एक ठौ बार फिर से दिपावली की शुभ व मँगल कामानाएँ आपके लिए"
"कर दी ना बुरबक वाली बात?"
"अरे बाबा!...हर वक्त थोडे ही चलता है मज़ाक-शज़ाक"
"अबकि बार सचमुच में दिपावली की शुभकामनाएँ आप ही के लिये शुद्ध व खालिस देसी घी में तैयार"
"अब विश्वास नहीं है ना आपको इस 'राजीव' की बात पर?"
"तो!..चख कर देख ही लें आप खुद ही"
"मज़ा न आए तो पूरे पैसे वापिस"
"अरे बाबा!...ई गूगलवा के एडसैस पे चटखा लगा के पहिले पैसा तो दिलवा दीजिए"
फिर कीजिए ना आप हमसे पैसे वापसी की खुल के बात"
"भय्यी देखिए...सीधी-सच्ची बात तो ये है बन्धुवर के...
अगर आप ई 'एड-वैड' पे 'क्लिक' नाही करेंगे तो समझ लीजिए कि...
आपका तो कुछ जाएगा नहीं और अपना कुछ रहेगा नहीं ई 'ब्लोगिंग-व्लॉगिंग' के चक्कर में"
"सो!..मार दीजिए ना दो-चार 'क्लिक'..
झोली भर-भर दुआएँ दूँगा आपको"...
"सच्ची!...सच्ची-मुच्ची"
"ओ.के बाबा!..."
"काले कुत्ते की कसम"...
"क्यूँ!..ठीक है ना?"
विनीत:
राजीव तनेजा
1 comments:
बहुत प्रभावपूर्ण रचना. दीपावली की हार्दिक बधाई
दीपक भारतदीप
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