"राम नाम सत्य"

"राम नाम सत्य"

***राजीव तनेजा***

"कई दिनों से बीवी की तबियत दुरस्त नहीं थी"....

"कई बार कहा भी कि ..डाक्टर के पास ले चलो लेकिन....

मुझे अपने काम-धन्धे से फुरसत हो तब ना"

"हर बार किसी ना किसी बहाने से टाल देता"

एक दिंन बीवी ने खूब सुनाई कि "मेरे लिये ही तो टाईम नहीं है जनाब के पास"

"वैसे पूरी दुनिया की कोई भी....

'बेकार से बेकार'...

'कण्डम से कण्डम' भी आ के खडी हो जाए सही...

लार टपक पडती है जनाब की"

"लट्टू की तरह नाचते फिरते हैँ चारों तरफ"


"अब भला कैसे समझाऊँ इस बावली को कि...

आजकल इंडिया में 'बर्ड फ्लू'फैला हुआ है...

सो घर की मुर्गी की तरफ ताकना भी हराम है"

"इसलिये कभी-कभार जीभ का स्वाद बदलने की खातिर...

इधर-उधर मुँह मार ही लिया तो कौन सी आफत आन पडी?"

"अब यार इसमें मेरा भला क्या कसूर?"

"क्या मैँ पकड के लाया था इस मुय्ये 'फ्लू'को?"

"अब भूख चाहे पेट की हो या फिर दिल की,बात तो एक ही है ना?"

"अमां यार!...जब ऊपरवाले ने पेट दिया है तो वो तो भूख के मारे तडपेगा ही"

"कोई रोक सके तो रोक ले"

"मैँ या आप भला इसमें क्या कर सकते हैँ?"और...

"अगर पेट तडपेगा तो उसे भरना तो ज़रूरी है ही"

"अब ये औरतें क्या जाने कि भूख आखिर होती क्या है?"

"इनको क्या पता कि मंडी में आलू क्या भाव बिकता है?"

"इन्हे तो घर बैठे बिठाए जो हुकुम का ताबेदार मिल गया है ....

सो आव देखती हैँ ना ताव देखती हैँ...

बस झट से मुँह खोला और कर डाली फर्माइश"

"इनके बाप का क्या जाता है?"


"और जैसे मैँ इसी इंतज़ार में बैठा हूँ कि "कब हुकुम मिले और कब मैँ बजाऊँ"

"कोई और काम-धन्धा है कि नहीं मुझे?"

"आखिर तंग आ के बोल ही दाला एक दिन..."चल आज ही करा देता हूम तेरा पोस्ट-मार्टम"

"ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बाँसुरी"

"ले गया उसे सीधा 'नत्थू'पंचर वाले की दुकान पर"

"अरे बाबा नाम है उसका 'नत्थू'पंचर वाला"...

"कभी लगाया करता था 'पंचर-शंचर'...

"पर अब तो डाक्टर है डाक्टर"

"पता नहीं कब उसने रातों-रात पढाई की और बन बैठा डाक्टर"

"वैसे भी कई दिनो से दिली तमन्ना थी कि एक बार मिल तो आऊँ...पुराना यार जो है"

"पहुँच के देखा तो बाहर लम्बी लाईन लगी हुई थी"

"टोकन बांटे जा रहे थे कि अब इसका नम्बर तो अब इसका "

"रिसैपशनिस्ट बडी ही पटाखा रखी थी पट्ठे ने"

"अरे पटाखा क्या...पूरी फुलझडी थी फुलझडी"

"मुझे तो अफसोस होने लगा था कि...

"आखिर इतने दिन तक 'झख'क्यों मारता रहा मैँ?"

"मिलने क्यों नहीं आया?"

"मति मारी गयी थी मेरी"

"अन्दर पहुँचा था कि नर्स को देख दिल झूम-झूम गाने लगा"

"क्या अदा,क्या जलवे तेरे पारो?...हो पारो"

"पट्ठा पता नहीं कहाँ से 'धांसू' आईटम छांट लाया था?"

"डाक्टर लंगोटिया यार था अपना,..पता चलते ही सीधा अन्दर ही बुलवा लिया"

"बीवी की तकलीफ बताई तो उसने किसी दूसरे डाक्टर का नाम सुझा दिया"

मैँ चौंका कि "यार तुम तो खुद ही इतने बडे डाक्टर हो"...

"फिर किसी और के पास भेजने की भला क्या तुक है?"

"समझा कर यार ...

घर का मामला है ...सो क्वालीफाईड ही ठीक है"

"मैने कुछ देर से आने की कह बीवी को रिक्शा से घर वापिस भेज दिया"

"हाँ...अब बताओ कि चक्कर क्या है आखिर?"

"अब यार तुम तो अपने लंगोटिया यार हो" ...

"तुमसे क्या छिपाना"...

"जानते तो हो ही कि मैँ पहले पंचर लगाया करता था"

"फिर इस डाक्टरी की लाईन में कैसे कूद पडे?"मैँ बीच में ही बोल पडा

"अरे यार वो ही तो बता रहा हूँ"तुम तो जानते ही हो कि ...

'माधुरी दीक्षित'कितनी पसन्द है मुझे"...

"बस वही ले आई यार इस डाक्टरी के धन्धे में"

"माधुरी दीक्षित'ले आई?"

"समझा नहीं...ज़रा तफ्तीश से समझाओ"

"बता रहा हूँ बाबा "...

"ज़रा सब्र तो रख"

"सुबह-सुबह आए हो,पहले कुछ खा-पी तो लो"

"ज़रा चाय-नाश्ता तो लाना"डाक्टर साहब कंपाऊडर को हुकुम बजाते हुए बोले

"हाँ तो दर-असल हुआ क्या कि...

"एक दिन 'वी.सी.आर'किराए पे लिया और पूरी रात ...

सिर्फ और सिर्फ 'माधुरी'की ही फिल्में देखता रहा बस"

"अच्छा फिर?"

"बस जैसे नशा सा छा गया हो"...

"जहाँ देखूँ..वहाँ बस वो और मैँ "....

"दूजा कोई नहीं"


"धक-धक करने लगा...ओ मोरा जिया डरने लगा..."


"अगले दिन नींद पूरी ना होने की वजह से सर कुछ भारी-भारी सा था"..

"ऊपर से 'नास-पीटे'मालिक का बुलावा आ गया ड्यूटी बजाने के लिए"

"माधुरी का जलवा ही ऐसा था कि...कुछ सूझे नहीं सूझ रहा था"

"आँखो के आगे से उसकी...

'लचकती'...

'बल खाती'...

नाज़ुक कमर हटने का नाम ही नहीं ले रही थी"

"टायर में हवा भरते-भरते होश ही नहीं रहा कि कितनी हवा भरनी है और कितनी नहीं?"

"अचानक धढाम आवाज़ आई और'ट्यूब'चारों खाने चित्त "

"राम नाम सत्य हो चुका था ट्यूब का"

"खूब सुनाई मालिक ने...लेकिन मैने भी टका सा जवाब दे दिया कि...

"सम्भालो अपनी धर्मशाला"

"नहीं बजानी है तुम्हारी नौकरी"

"मेरी हिम्मत देख दिल ही दिल में माधुरी ने पीठ ठोंक डाली...

'शाबाश!'...

'ये की ना मर्दों वाली बात"

"असली जवां मर्द हो तुम तो "


"मैने अपना झुल्ली-बिस्तरा उठाया और जा पहुँचा सीधा डाक्टर साहब के यहाँ"

"कई बार बुलावा जो आ चुका था लेकिन बस मेरा मन ही नहीं करता था"

"मालिक की बेटी की शक्ल कुछ-कुछ माधुरी से मिलती जो थी"

"सो टिका रहा वहीं"

"फिर नौकरी को लात क्यों मार दी?"

"पट्ठे ने अपनी बेटी जो ब्याह दी उस मुय्ये गंगू तेली के साथ"

"तो अब वहाँ रुक कर भला मैँ कौन सा कद्दू पाडता?"

"सो छोड जाना ही बेहतर लगा"

"डाक्टर साहब के यहाँ भी क्या'पंचर'ही लगाते थे?"

"बावला तो नहीं है कहीं तू?"

"या फिर भांग चढा रखी है?"

"अरे यार इंजैकशन ठोकता था इंजैकशन"

"पर ये सब तुम्हे आता कहाँ था?"

"अरे यार कोई पेट से ही सीख के थोडी आता है ये सब"

"यहीं...इसी दुनिया में रहकर सीखा जाता है सब का सब"


"फिर भी?"मेरे चेहरे पे असमंजस का भाव था

"अरे यार!...सीधी सी बात है,पहले टायर में से कील उखाडता था अब बदन मे कील घुसेडता हूँ"

"वैरी सिम्पल"

"शुरू-शुरू में तो डाक्टर ने पर्ची काटने पे बिठा दिया था"

"कई बार तो ये भी लगा कि कहाँ आ के फंस गया ,लेकिन...

"सब्र का फल मीठा होता है "

"कैसे?"

"हुआ क्या कि एक दिन कंपाउडर छुट्टी मार गया"....

"बस उसका छुट्टी मारना था और मेरी किस्मत का दरवाज़ा खुलना था"

"डाक्टर साहब ने उसकी जगह मुझे ड्यूटी पर लगा दिया"

"फिर?"

"पट्टी-वट्टी करना तो मैँ जान ही चुका था अब तक"...

"बस डाक्टर साहब की सेवा करता गया और धीरे-धीरे सारे दाव-पेंच सीखता गया कि...

किस मर्ज़ के लिये कौन से 'गोली'थमानी है और ....

किस मर्ज़ के लिये कौन सी"

"ज़्यादातर अनपढ-गंवार ही आते थे हमारे क्लीनिक में ,...

सो,ज़्यादातर कोई दिक्कत पेश नहीं आती थी"

"राज़ की बात तो ये कि अपने डाक्टर साहब को भी कुछ खास आता-जाता नहीं था"

"फिर इलाज वगैरा कैसे करते थे?"

"अरे यार एक-दो पुरानी किताबें छांट लाए थे कहीं रद्दी से,...

उन्हीं से पढ कर अलग-अलग तजुर्बे करते फिरते थे मरीज़ों पे जैसे कि...

कभी किसी को 'यूनानी'दवा थमा दी तो कभी किसी को..

'आयुर्वेदिक'...

तो कभी किसी को 'एलोपेथिक'"

"कभी-कभी तो 'होमियोपेथिक'के भी गुण गाने लगते थे"

"पता नहीं कमरा बन्द करके क्या-क्या पीसते रहते थे?"

"कई बार तो उनके हाथ ताज़े गोबर से भी सने देखे थे मैने"

"एक बार तो मेरी हँसी ही छूट गयी थी जब मैने देखा कि ...

डाक्टर साहब एक गाय के पीछे-पीचे 'लौटा'लिये डोल रहे थे"

"अब ये तो ऊपरवाला जाने कि किस घडी का इंतज़ार था उन्हें?"

"जब हाथ में लौटा लिये बैरंग लौटे तो सारा बदन कीचड से सना था और कपडे फटेहाल"

"पता नहीं उस गाय की बच्ची ने कहाँ-कहाँ चाटा होगा ...

या फिर कहाँ-कहाँ सींग मारे होंगे?"

"मरीज़ का चौखटा देख अलग-अलग तजुर्बे करते रह्ते थे कि ..

इस पर 'यूनानी'फिट बैठेगी और इस पर 'आयुर्वेदिक'"

"ये तो शुक्र है ऊपरवाले का कि उनका वास्ता सिर्फ अनपढ-गवारों से ही पडता था"

"जो कोई भी मरियल सा आता,सीधा उसे पानी चढाने की कहते"

"बेचारा गरीब मानुस जल्दी ठीक होने की आस में हामी भर देता"

"उस बेचारे को क्या मालुम?कि ..

दाम तो लिए जा रहे हैँ 'ग्लूकोज़'के और चढाया जा रहा है 'निरा'पानी"


"निरा पानी?"


"और नहीं तो क्या?"

"यही तो असली कमाई का फंडा है"

"ना हींग लगी न फिटकरी और रंग चढा चोखा"


"अरे यार तुमको इस सब की खबर कैसे हो गयी?"

"क्या डाक्टर साहब खुद ही इतना मेहरबान हो गये कि ...

सारे भेद खुद-बा-खुद बताते चले गये?"

"अरे डाक्टर के बच्चे का बस चलता तो वो इस सब की हवा तक भी ना लगने देता"


"फिर?"


"अरे यार सीधी सी बात है,मैँ अपने आंख-कान सब खुले रखता था"

"खुद को अनपढ बता खूब फुद्दू खींचा डाक्टर का,पट्ठा सोचता था कि ये अँगूठा छाप भला उसका क्या उखाड लेगा?"

"वो मेरी तरफ से बेपरवाह बना रहा और मैँ अन्दर ही अन्दर उसकी ही कब्र खोद्ता चला गया"

"आहिस्ता-आहिस्ता सब दवाईयो के नाम मुँह ज़बानी रट लिए मैने"

"बस एक बात ही समझ नहीं आ रही थी कि ये डाक्टर का बच्चा एक ही बिमारी के लिये कभी...

'लाल'गोली पकडाता है तो कभी'हरी'....

तो कभी 'पीली'"

"कहने का मतलब ये कि बिमारी कोई भी हो लेकिन दवा एक ही"

"ये चक्कर मुझे घन-चक्कर किए जा रहा था"...

"मैने भी अक्ल के घोडे दौडाए और जान लिया सब राज़"

"दूध का दूध और पानी का पानी कर डाला"

"साला डाक्टर बडा ही छुपा-रुस्तम निकला..."

"सारी की सारी गोलियों के रंग अलग-अलग लेकिन माल एक"


"माल एक?"मैने हैरानी से पूछा


"हाँ यार सब की सब गोलियों में खालिस मिट्टी थी"

"फिर डाक्टर साहब इलाज कैसे करते थे?"

"अरे काहे का डाक्टर?"दोस्त को अब तक ताव आ चुका था

"पहले हलवाई था साला हलवाई"


"हलवाई?"मुझे जैसे विश्वास ही ना हुआ

"हाँ भाई... हलवाई"

"एक बार किसी को खराब मिठाई खिला दी और वो बन्दा गया लुढक"

"कोर्ट-कचहरी का चक्कर पडा तो पट्ठे ने ले-दे के सरकारी डाक्टर से पूरी रिपोर्ट ही बदलवा दी"

"अच्छे खासे चढाने पडे"...

"बस तभी से यारी हो गयी उस डाक्टर से"

"उसी से सीखा होगा ये सब"

"हाँ तो बात हो रही थी कि जब सारी की सारी गोलियों में निरी मिट्टी होती थी तो,...

ये डाक्टर इलाज कैसे करता था?"

"जी"

"अरे यार असली दवा का नाम लिख देता था पर्ची पर कि बाज़ार से ले लो "...

"जल्दी ठीक हो जाओगे"

"उसी से बन्दा ठीक हो जाता और सोचता कि...

डाक्टर साहब के हाथ में....

'जादू'है,.....

'शफा'है"


"तो आजकल अपने ये डाक्टर साहब हैँ कहाँ?"


"अरे यार अब तो वो बडे आदमी बन गये हैँ"

"कई-कई तो फैक्ट्रियाँ है दवाईयों की"


"अरे वाह!...बडी तरक्की कर ली उन्होने"

"काहे की तरक्की?मेरे यार"...

"ये तो भला हो उस पुलिस वाले का जिसने इन्हें जेल पहुँचाया था"


"भला हो जेल पहुँचाने वाले का?"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था


"और नहीं तो क्या?"

"आया तो वो था डाक्टर साहब को जेल की हवा खिलाने,...

'नकली डिग्री' और 'नकली सर्टीफिकेट'के चक्कर में और...

खुद ही बन बैठा पचास टके का पार्टनर दवाई वाली फैक्ट्री में "

"बात पूरी समझ नहीं आ रही है",....

"सर के ऊपर से निकले जा रही है"...

"ज़रा खुल के समझाओ"


"बस यार ऊपर से वारंट इशू हुए थे डाक्टर के ,सो जेल तो जाना ही पडा"

"पुलिस वाले ने वहाँ भी ऐसी सैटिंग बिछा रखी थी कि डाक्टर साहब को कोई दिक्कत पेश नहीं आई"

"बाकी केस को कमज़ोर करने का काम तो पहले ही कर दिया था इंस्पैक्टर ने"

"सो तीन महीने में ही बाहर थे अपने डाक्टर साहब"

"अब खूब छन रही है दोनों मेँ, ...

"मानो एक ही लंगोट में खेला-कूदा करते थे दोनो बचपन में "

"ठाठ से जी रहे हैँ दोनो"


"हूँ!...तो क्या ये सर्टीफिकेट वगैरा भी नकली तैयार हो जाते हैँ?"

"अरे तुम कहो तो'न्यूरो सर्जन'की डिग्री थमा दूँ अभी के अभी"...

"हाथोँ-हाथ"

"पहले तो होता था किडिग्री लेनी है तो 'बिहार'जाओ,...

"'दो-चार'दिन काले करो"...

"तब कहीं जा के बडी मुशकिल से सर्टीफिकेट हाथ लगता था"


"कहीं गल्ती से कुछ मिस्टेक हो गयी तो फिर नये सिरे से खर्चा करो और समझो की पूरा हफ्ता गया काम से "


"और अब?"

"अब तो यार कंप्यूटर का ज़माना है"...

"इस हाथ दे और इस हाथ ले"

"सब कुछ आल्-रैडी तैयार होता है"...

"बस 'नाम-पता',...

'उमर'...

'फोटू'वगैरा बदलो और तुरंत ही डिग्री हाथ में"

"मुन्ना भाई नहीं देखी है क्या?"दोस्त हँसते हुए बोला

मै भी खिलखिला के हँस दिया

"तो डाक्टर साहब ...कब आऊँ मैँ कंपाउडरी करने?"


"हा...हा...हा....हा..."और हम दोनों की हँसी फूट पडी"


"अभी यार बातें तो बहुत हैँ कहने-सुनने के लिए"...

"लेकिन क्या करूँ?"...

"मजबूरी है"...

"पापी पेट का सवाल है"...

"रोज़ी-रोटी का ख्याल तो रखना ही पडेगा"

"बाहर मरीज़ों की लाईन लम्बी होती जा रही है "दोस्त बोला

"फिर कभी आओ फुरसत निकाल के"

"खूब मज़े करेंगे"


"मैँ फिर आने की कह वापिस चला आया"

"अभी तो बहुत कुछ पूछना-सुनना बाकि था"

"भरपूर दावत के साथ-साथ नर्स को जी भर के ताडने का मौका भला कौन गंवाना चाहेगा?"


***राजीव तनेजा***

2 comments:

Anonymous said...

bahot badhiya hai maza aa gaya

Anonymous said...

चटाखेदार ।

 
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