"आओ तौबा करें"
***राजीव तनेजा***
"कभी सोचा भी ना था कि ऐसा होगा"...
"इंसानियत का सरे बाज़ार'कत्लेआम'होगा"....
"हम इंसान के बजाए शैतान बनते जा रहे हैं"...
"कोई'शर्म-ओ-हया'बाकी नहीं रही अब"...
"जब इनसान ही इनसान के साथ ऐसा बर्ताव करेगा तो फिर...
उसमें और जानवर में क्या फर्क बाकी रहेगा?"...
"किसी को अगर उसके किए की सज़ा देनी भी है तो ...
उसकी कोई ना कोई'लिमिट'तो ज़रूर होनी चाहिए"...
"ये नहीं की बदले की आग में हम इस कदर अन्धे हो जाएँ कि खुद को
'भगवान'...
'अल्लाह'...
'यीशू'...समझने की गुस्ताखी कर बैठें"
"ऐसा बर्ताव तो कोई शैतान भी किसी शैतान के साथ नहीं करता जैसा...
हमने इस'रब्ब'के बन्दे के साथ किया है"....
"चाहे उसने...'जो भी'...
'जैसा भी'...
'जिसके साथ भी'किया हो लेकिन हम सब को तो सोचना चाहिए था कि ...
"क्या सही है?और क्या गलत?"...
"क्या अच्छा है?और क्या बुरा?"
"ऊपरवाला....
"सब देखता है"...
"सब सुनता है"....
"सब जानता है"...
"उस से...
"कुछ भी"...
"कभी भी"...
"कहीं भी"छुपा नहीं है
"वैसे भी ये कहाँ का इंसाफ है कि एक ही जुर्म के लिए दो-दो बार सज़ा दी जाए?"
"क्या हम सबको इस कदर नीचे गिरना शोभा देता है?"....
"क्या हम कभी'अमन'और'सकून'की ज़िन्दगी जी पाएँगे?"...
"क्या हम'हर समय'..'हर वक़्त'....अपने किए पर पछ्ताते नहीं रहेंगे?"...
"क्या हम चैन से कभी घडी दो घडी सो भी पाएँगे?"...
"क्या हमें हर वक़्त ये डर नहीं सताता रहेगा कि...
कहीं हमारे साथ भी कभी ऐसा ही ना हो जाए"...
"इसलिए आओ दोस्तो!..हम सब मिलकर तौबा करें कि...
फिर हमसे कोई ऐसा गुनाह नहीं होगा कभी"
"ऊपरवाला किसी की भी ऐसी नौबत ना लाए कि उसे भी ऐसे ही दिन देखने पडें"
***राजीव तनेजा***
3 comments:
यह साईज परफेक्ट है राजीव. अब मजा आया. बधाई. इसे मेन्टेन करो.
बहुत बढिया।
दीपक भारतदीप
लोगों का भरोसा कैसा ?
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