"सजन रे बूट मत खोलो"

"सजन रे बूट मत खोलो"


***राजीव तनेजा***


"सजन रे'बूट'मत खोलो....अभी'बाज़ार'जाना है,

ना'दालें'हैँ ना'सब्ज़ी'है ...अभी तो'राशन'लाना है"


"अरे ये क्या?"...

"ये तो मै असली गीत गुनगुनाने के बजाए उसकी'पैरोडी'ही गाने लगा"


"असली गाना तो शायद कुछ अलग तरह से था ना?"

"अरे हाँ!..याद आया,वो तो इस तरह से था...


"सजन रे'झूठ'मत बोलो,..'खुदा'के पास जाना है,

ना'हाथी'है ,ना'घोडा'है...वहाँ तो बस'पैदलजाना है"


"वाह!..वाह..क्या गाना था...वाह!"

"गुज़रा ज़माना याद आ गया"


"कोई वक़्त होता था इस तरह के गानों का भी "


'लेकिन'...

'किंतु'...

'परंतु'..

अब तो'ज़माना'बदल गया है...

'लोग'बदल गये है...

शब्दों के'मतलब'बदल गए हैँ"


"सब'उल्टा-पुल्टा'हो गया है"

"पता नहीं ज़माना किधर का किधर जाए जा रहा है"


"कभी लडकियों के लम्बे बाल हुआ करते थे लेकिन...

अब लडके चोटी बनाए फिर रहे है"


"पहले लडके'पतलून'पहन घूमा करते थे,...अब लडकियाँ"

"कभी लडकियाँ लबादे से ढकी नज़र आती थी ...

अब कपडे दिन पर दिन छोटे होते जा रहे हैँ"


"पहले मधुर'गीत'बजा करते थे....

अब'रीमिक्स'कान फाडे डाल रहा है"


"पहले'रोटी'...तो अब'पिज़्ज़ा'...

"अब ना कोई बहन..ना कोई जिज्जा"


"तब तब था ....अब अब है"...

"पहले'इज्जत-आबरू'....अब निरी'बे-हय्याई'


"खैर छोडो क्या रखा है इन भूली-बिसरी बातों मे?"


"ये गाना भी तो पहले ज़माने का ही है..कौन सा अब का है?"


"अब हर बात के'मायने'बदल गए है...'मतलब'बदल गए हैँ"


"तब'झूठ'से तौबा और'सच'का बोलबाला था"..

"अब सिर्फ'झूठ'और'झूठों'का ही ज़माना है"


"अब तो जितना बोल सकते हो...बोलो...

"जी भर के बोलो"..

"बेधडक बोलो"...


"जितना दम में है दम...उतना बोलो"...

"बिना रुके बोलते चले जाओ"



"अब मालुम भी है कि...क्या बोलना है?"

"या फिर आदत पड चुकी है बिना कुछ जाने-बूझे दूसरों की हाँ में हाँ मिलाने की?"


"क्या कहा?"

"ज़रा ज़ोर से....

"साफ-साफ कहो...सुनाए नहीं दे रहा है ठीक से "


"हुह!...रह गए ना तुम वही के वही पुराने ज़माने की पैदाईश"

"अभी भी यही गा रहे हो कि सिर्फ और सिर्'सच'बोलना है...'हर घडी'...'हर वक़्त'..."


"वाह रे मेरे'बटुंकनाथ'....वाह!..."


"भईय्या मेरे...वो ज़माना तो कब का रफूचक्कर हो गया जब...

'टके सेर'भाजी'और टके सेर'खाजा'मिला करता था"


"अब तो सिर्फ और सिर्फ झूठ बोलो

"खूब दबा के बोलो"...

"बढ-चढ के बोलो"...

"भला कौन रोकता है तुम्हें?"

और रोके भी क्यों?"

"भला इसमें कौन सा टैक्स लग रहा है?"


"अब वो एक'फिल्लम'में अपने'चीची'भैय्या भी तो यही समझा रहे थे ना"...

"देखा!....कितनी सफाई से झूठ पे झूठ बोल रहे थे पूरी'फिल्लम'में और कोई पकड भी नहीं पा रहा था"..

"इसे कहते हैँ पूर्ण रूप से समर्पित कलाकार"


'अरे यार!...अब आखिर में तो'सच'बोलना ही पडेगा ना'फिल्लम'में


'रील लाईफ'है वो'रियल लाईफ'नही कि....

आप डंके की चोट पे झूठ् पे झूठ बोलते चले जाओ और कोई रोके-टोके भी ना"


"और कुछ'आदर्श-वादर्श'नाम की भी बिमारी भी तो होती है ना हमारे फिल्मकारों को"...


"सो दिखाना पडा सच"

"ऊपर से'सैंसर बोर्ड'का डण्डा भी तो तना रहता है हरदम"

"वैसे भी अपनी'शर्मीला आँटी'भी तो पुराने ज़माने की ठहरी"...

"बिना काँट-छाँट के पास कैसे होने देती?"


"अहम के साथ-साथ'प्रोफैशनल'मजबूरी भी कुछ होती है कि नहीं?"...


"अब थोडा-बहुत'कम्प्रोमाईज़'तो चलता ही रहता है'लाईफ'में"

"सो करना पडा समझौता"...

"नहीं तो पास कहाँ होने देना था'पट्ठी'ने'फिल्लम'को"


"भगवान ना करे अगर अड गयी होती जंगली भैंसे की तरह ,तो आज...

'गोविन्दा'और'एकता कपूर'ही बैठ के देख रहे होते'फिल्लम'बाकी'एक्टरों'के साथ"


"हाल पे तो'रिलीज़'ही कहाँ होती?"


"समझे कुछ?"..


"दिखाना पडता है कभी-कभार...थोडा-बहुत..'सच-झूठ'..


"वैसे अब भी भला कौन सी नयी बात हुई थी?"

"हाल तो अब भी'सफाचट मैदान'ही थे"

"खाली पडे रहे ...कोई आया ही नही'फिल्लम'देखने"


"हुह...ठीक से'नकल'करना भी पता नहीं कब सीखेंगे?"

"फिर कहतें हैँ कि हमारी फिल्में चलती नहीं"

"अरे!...खाक चलेंगी"

"कुछ दम भी तो हो'स्टोरी'में....'एक्टिंग' में...'डाईरैक्शन'में"....

"ये क्या?कि चार-पाँच'फिरंगी'फिल्में उठाई ...

"मिक्सी में'घोटा'लगाया...

"पाँच'गाने'ठूसे"....

"दो'रेप'सीन"..

"एक आध'आईटम'नम्बर"...

एक वक़्त-बेवक़्त टपक पडने वाला'मसखरा'...

और लो जी...हो गयी'फिल्लम'पूरी"


"ना जाने कब अकल आएगी"


"लेकिन एक बात तो आप भी मानेंगे कि ....

'फिल्लम'भले ही चली ना हो लेकिन अपनी'सुश्मिता'लग बडी मस्त रही थी"


"अब यार'आईटम गर्ल'ना होते हुए भी'आईटम'ऐसी है कि...बस कुछ ना पूछो"


"सुबह-सुबह'रब्ब'झूठ ना बुलवाए ...

"अपुन तो एक ही झटके में'शैंटी-फ्लैट'हो गये थे"


"क्या यार!...

किसकी याद दिला दी?"


"कुछ तो तरस खाओ मेरी जवानी पे"

"आपका कुछ बिगडेगा नहीं और मेरा कुछ बचेगा नहीं"


"किसी काम का नहीं रहूँगा"


"ये'सुश्मिता'कहाँ से टपक पडी अपुन की'गुफ्त्गू'में?"


"आप भी ना ...बस सुनते ही चले जाते हैँ चुप-चाप"...

"कुछ अपना भी दिमाग होता है कि. ...

गाडी अगर पटरी से उतर रही है तो कम से कम..

'ड्राईवर'या फिर'गार्ड'को ही...

'इतला'कर दो....

'सूचित'कर दो...

'खबर'कर दो"

"ये क्या?कि बस'टुकुर-टुकुर'ताकते फिरो सामने वाले का चौखटा"


"कहने को कहते हैँ कि'गान्धी-नेहरू'की संन्तान हैँ हम लेकिन...

मजाल है जो किसी को कभी टोक भी दें तो"


"हद हो यार!..तुम भी ...

बात हो रही थी सच-झूठ की और ये'महारानी'जी कहाँ से टपक पडी"


"मियाँ!...कहाँ गुम हो तुम?"...

"होश में आओ"


"उफ...तौबा!...ये लडकियाँ भी पता नही क्या'कयामत'बरपाएँगी?"


"गज़ब ये ढाती हैँ और'तोहमत'..हम बेचारे लडकों के जिम्मे आती है"


"पता नहीं इन'हिरनियों'में क्या नशा है?...


"क्यूँ इनके पीछे-पीछे डोलने में मज़ा मिलता है हम मर्दों को?"...


"क्यूँ इनके चक्कर में अपना'टाईम'और'पैसा'ज़ाया करते फिरते हैँ हम?"

"पता भी है कि'टाईम वेस्ट इज़ मनी वेस्ट"

"फिर भी लगे रहते हैँ लाईन में"


"और ऊपर से ये कमभख्त मारियाँ फिरती भी तो'ग्रुप'में हैँ कि..

कोई ना कोई तो...किसी ना किसी के साथ'सैट'हो ही जाएगी"


"किसी ना किसी का नम्बर तो आएगा ज़रूर"


"मानों दुकान ना हुई'लेटेस्ट 'माल'हो गया...

सब की सब'वैराईटी'एक ही जगह हाज़िर"

"ले बेटा चुन ले मनपसन्द"


"जब अगले दुकान सजा के बैठे हैँ तो कुछ ना कुछ तो ले ही लो"


"अब हम ठहरे'आदम ज़ात'...लडकी देखी नहीं कि बस टपक पडी लार...


"क्या करें'कंट्रोल'ही नहीं होता?"

"जब विश्वामित्र'ही बचे नहीं रह पाए तो हमारी क्या औकात?"

"उनके लिए तो बस एक 'मेनका'थी...और यहाँ....

"एक से भला मेरा क्या होगा वाली बात है"


"जैसे कोई किसी बडी शादी में पहुँच के बन्दा बावला हो उठता है कि...

"क्या खाया जाए?और...

"क्या ना खाया जाए?"


"ज़्यादातर इसी चक्कर में ओवर-ईटिंग भी हो जाती है ...

"हाज़मा जो नही रहता इस उम्र में"...

"पहले बात और थी...अब बात और है"...

"पहले तो'लक्कड-पत्थर'सब हज़म"

"किसी को कभी ना नहीं कहा"


"अब पहले जैसी बात कहाँ है यार ?"

"अब तो एक ही टिक जाए ढंग से...यही बहुत है"


"लेकिन सच तो ये है कि दिल कहाँ भरता है एक से ?"


"वो तो'शम्मी कपूर'का वही पुराना गीत गुनगुनाने को बेताब रहता है ...


"किस?...किसको?...किसको प्यार करूँ?"...

"कैसे प्यार करू?"...

"ये भी है...वो भी है...हाय!"...

"किसको?...किसको प्यार करूँ?"


"उफ!...

ये'सुहानी-चाँदनी'रातें हमें सोने नहीं देती"


"बस कुछ ना पूछो...

एक दिन बैठे बिठाए एक'आईडिया'सा'कौंधिया के कौंधा अपुन के भेजे में और...

'मगज'में घुस गयी सारी प्लानिंग"

"बस फिर क्या था...

इधर-उधर से कुछ शायरी लपेटी और दाग दी सीधा...

लडकियों के'मेल बाक्स'में अपनी कंप्यूटर रूपी दोनाली से "


"उसने असर दिखाय और अपनी निकल पडी"

"आठ-दस रिप्लाई आए तो दिल'गार्डन-गार्डन'हो उठा"


"पर ये क्या?"

उनमें से तीन तो'चार-चार'बच्चों वाली निकली"और एक ने फटाक से भैय्या कह दिया"

"बस उसी के डर से ये बन्दा'आनलाईन'नहीं हो पा रहा है कई दिन से कि...

कही'दशहरे'और'दिवाली'के सीज़न में भी कही राखी का त्योहार ना मनाना पद जाए

"बाकी बची चार...?"

उनमें से एक तो यार!...बिलकुल ही बच्ची निकली...

"सीधे ही'अँकल'कह शुरूआत की तो अपुन तो खिसक लिए पतली गली से"


"दो तो ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सिर से सींग...

पति को जो मालुम हो गया था उनके"

"अब यार जब'बची-खुची'एक इकलौती बची तो...

अपुन ने भी ठान ही लिया कि इसको तो'सैट'कर के ही दम लेना है"...


"सो..बडे ही ध्यान से ....

सोची-समझी रणनीति के तहत...

बडी ही मीठी...प्यारी-प्यारी बातें करता रहा"

"पता जो था कि...'फर्स्ट इम्प्रैशन इस लास्ट इम्प्रैशन'

"अपुन ने दाना डाला और चिडिया बिना चुगे रह ना प आई"

"खूब इम्प्रैस हुई"


"सावधानी पूरी थी कि किसी भी वजह से कहीँ बिदक ना जाए बावली घोडी की तरह"

"मेहनत रंग लाई और'मेल-शेल'का सिलसला शुरू हुआ"

"तीन-चार बडे ही प्यारे'रिप्लाई'भी आए मेरी'मेलज़'के जवाब में"...


"आना ज़रूरी भी तो था....

अपुन ने भी जैसे सारा का सारा प्यार उढेल डाला था अपनी हर'मेल'में"


"दु:ख भरे दिन बीते रे भैय्या ...अब सु:ख आयो रे"


"लेकिन शायद होनी को कुछ् और ही मंज़ूर था...

उस दिन शायद'बिल्ली'रास्ता कांट गई थी'सपने'में....और...

मैँ वहम समझ चल दिया था अपने रस्ते"


"कहीँ ना कहीं ज़रूर मन में खटक रहा था कि कोई'अपशकुन'ना हो जाए"


"बेवाकूफ!...दो पल ठहर नहीं सकता था मैँ?"

"क्या जल्दी थी?"

"अगर थी भी तो घर से ही जल्दी निकलना था "


"पानीपत ही तो जाना था ...कौन सा इंग्लैंड जाना था?"


"गाडी छूट जाती...तो छूट जाती..."


"वैसे भी वहाँ भला कौन सा तीर मार के आते हो रोज़?"

"खाली ही आते हो न?"....


"शुक्र है ऊपरवाले का कि दिन सही सलामत गुज़र गया"

"हुह!...वैसे ही'वहम-शहम'करते फिरते हैँ लोग"

"पुराने...दकियानूसी विचार"

"दुनिया पता नहीं कहाँ कि कहाँ जाती जा रही है और...

ये बैठे है अभी भी कुएँ के मेंढक की तरह"


"अरे!...आगे बढो ....दुनिया देखो"....

"लोग चाँद पे'कालोनियाँ'बसाने की सोच रहे हैँ और ये हैँ कि...

कोई बस'छींक'मार दे सही..पूरा दिन इसी इंतज़ार में बिता देंगे कि...

'अनहोनी'अब आई और...तब आई"

"घर पहुँच कर कंप्यूटर ही अपना इकलौता और आखिरी ठिकाना है...

सो..खाना खाते-खाते'मेल-बाक्स'खोला....

"बाँछे खिल उठी"....

"उसी का मेल जो था"

"दिल झूम -झूम गाने लगा...


"जिसका मुझे था इंतज़ार...

वो घडी आ गई...आ गई"..


"बडी ही प्यारी-प्यारी बाते लिखती है".. .

"पता नहीं ये लडकियाँ इतनी भोली और सीधी क्यूँ होती हैँ?"

"ज़माना जो ठीक नहीं"

"एक-एक'हरफ'प्यार भरी चासनी में लिपटा था...

"मन तो कर रहा था कि ये प्यार भरी 'पाती'कभी खत्म ना हो...

"पढता जाऊँ"....

"बस पढता जाऊँ"


हैँ!....ये क्या?"

"उफ!...ये तूने क्या किया?"


"कुछ समय और तो रुक जाती इन सब बातों के लिए"

"अभी बहुत वक़्त था मेरे पास"

"कैसे ना कैसे करके'मैनेज'कर लेता मै सब का सब"

"अभी तो सिर्फ'चिट्ठी-पत्री'तक ही सीमित थे हम"

"कुछ और तो बढने दी होती बात"..

"कम से कम एक दो बार'पर्सनली'मिलती...

"जान-पहचान बढती"...

"थोडा-बहुत...घूमते-फिरते"...

"एक-आध 'फिल्लम-शिल्लम'देखते"

"पार्क-शार्क जाते"...

"माल-शाल' जा के 'शापिंग-वापिंग करते"

"तब जा के इस मुद्दे पे आना था"

"ये क्या बात हुई कि इधर प्यार के'इंजन'ने ढंग से'सीटी'भी नहीं मारी...

और उधर'चेन'खींच दी'फच्चाक'से"


"कर दी तुरंत ही पूछ्ताछ चालू"

"सीधे-सीधे ही पूछ डाला कि...

"उम्र कितनी है?"...


"तुम्हें'टट्टू'लेना है?"


"शादी-वादी हुई कि नही?"...


"अब तुमसे पूछ के शादी करूँगा?"


"बच्चे कितने है?"

"अरे बेवाकूफ!...एक तरफ तो पूछ रही हो कि शादी हुई कि नही?और...

अगला सवाल दाग रही हो कि बच्चे कितने हैँ?"


"मैडम ये'इंडिया'है'इंडिया"....

"यहाँ रिवाज़ नहीं है ये सब?"कि...

बच्चे भी बारात में'ठुमके'लगाते फिरें और सबसे बडी बात ये ...कि ...


"आई लव माई इंडिया"


"अब कौन समझाए इन बावलियों को कि कम से कम सवाल तो ढंग का पूछो?"


"और ऊपर से मैँ साला!...राजा हरीश्चन्द्र की अनजानी औलाद ...

साफ-साफ ही कह बैठा कि ...

"जी!...शादीशुदा हूँ और....

ऊपरवाले की दुआ से सात बच्चे भी हैँ"


"बस यहीं तो मार खा गया'इंडिया'.."

"पता नहीं क्या'एलर्जी'थी उसे शादी-शुदा मर्दों से?"

"अब क्या हुआ?"और..."क्या नहीं हुआ?"...


"बीती बातों पे मिट्टी डालो"...

"बस...कुछ ना पूछो"


"होनी को शायद यही मंज़ूर था" "

"नसीब में मेरे सु:ख नहीं लिखा था "

"बस इतना ही साथ था शायद हमारा"

"शायद यही किस्मत थी मेरी"


"आज बात बेशक पुरानी हो गयी है लेकिन ...भूला नहीं हूँ मैँ...


आज भी दिल के किसी कोने से ये आवाज़ निकलती है....

यही पुकारता है आज भी दिल....


"किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है....

ओ..किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है"


"लेकिन उसे ना आना था और...वो नहीं आई"

"उस दिन से ऐसे गायब हुई कि फिर कभी'आनलाईन'ही नहीं दिखाई दी"

"शायद'ब्लैक लिस्ट'कर डाला हो मुझे?"


"पता नहीं..ये नयी'फसल'कब समझेगी कि ...

दोस्ती किसी'कुँवारे'या फिर...किसी'कुँवारी'से करने के बजाय...

किसी'शादीशुदा'से करने में ही समझदारी है"


"तजुर्बा...तजुर्बा होता है"

"अपुन ने ये बाल यूँ ही धूप में सफेद नहीं किए है"


"अरे यार !....सीधी सी बात है...

सबसे बडा'प्ल्स पाइंट'कि एक तो'शादीशुदा'..'एक्सपीरियंसड' होते हैँ ...

सो..कोई दिक्कत पेश नहीं आती है ...

और ऊपर से'चेप'होने का डर भी ना के बराबर होता है"


"अब ये ज्ञान की बातें उस बेचारी को समझाता भी तो कौन?"


"मेरी शक्ल तक देखने को राज़ी जो नहीं थी"


"किसी मेल का जवाब तक देना उचित नहीं समझा उस नामुराद ने"


"कभी-कभी सोच में पड जाता हूँ कि...

क्या मैने उसे सब सच बता कर गल्ती की?"...

"गुनाह किया?"

"इस से तो अच्छा यही रहता कि...

मैँ उसे प्यार कि चासनी में लिपटे झूठ पे झूठ बोले चला जाता और वो मेरी बाँहो में होती"


"यही समझ में भी बैठता उसके"

"खैर जो बीत गया...सो...बीत गया"

"मेरी बातें छोडो और अपनी जवानी पे तरस खाते हुए एक बात गाँठ बाँध लें आप सब लोग कि...

आज के बाद सिर्फ और सिर्फ शुद्ध'झूठ'...वो भी बिना किसी मिलावट के ...और कुछ नहीं..

"भले ही ये कलियाँ एक ही बात को घुमा-फिरा कर सौ-सौ बार क्यूँ ना पूछ लें

लेकिन जवाब हमेशा क्या रहेगा?"...



"झूठ...बिलकुल झूठ...सोलह आने पक्का झूठ"


"बिलकुल सही.....

"तालियाँ"....


***राजीव तनेजा***

2 comments:

Vikash said...

पूरा पढ़ने का साहस तो ना हुआ लेकिन जितना भी पढ़ा मजेदार था. :) खासकर पहली पैरोडी.

Anonymous said...

बराबर मझेदार

 
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