"बिन् माँगे मोती मिले"

"बिन माँगे मोती मिले"

***राजीव तनेजा***


"बात सर के ऊपर से निकले जा रही थी"....

"कुछ समझ नहीं आ रहा था कि...

"आखिर!...माजरा क्या है?"..


"जिस बीवी को मैँ फूटी आँख नहीं सुहाता था,वो ही मुझ पर मेहरबान हुए जा रही थी और...

इस सब का कोई वाजिब कारण भी तो दिखाई नहीं दे रहा था"


"जो कल तक मुझे देख'नाक-भों'सिकोडा करती थी,...

वही अब मौका देख मुझ से जाने-अनजाने लिपटने की कोशिश करती"


"मेरी पसन्द के पकवानों का तो मानो तांता लगा था"...

"मेरी हर छोटी-बडी खुशी का ख्याल रखा जा रहा था"


"एक दिन आखिर सब राज़ खुल ही गया जब बीवी...

'इठलाती'हुई...

'बल खाती'हुई चली आयी और बडे ही प्यार से बोली...

"जी!...इस बार'वैलैंटाईन'पर'गोवा'घुमाने ले चलो"


"मेरा माथा तो पहले से ही सनका हुआ था....

'वैलैंटाईन'के नाम से ही भडक खडा हुआ"...

"ऊपर से'गोवा'के नाम ने मानों आग में घी का काम किया"

"क्या बकवास लगा रखी है?"...

"कोई काम-धाम है कि नहीं?"...

"अपनी औकात...मत भूल"


"हिन्दुस्तानी'है...

'हिन्दुस्तानी'की तरह ही ..रह"


"पर इसमें!..आखिर गलत ही क्या है?"


"गलत!....?"...

"अरे!...ये बता कि सही ही क्या है इसमें?"


"ये तो प्यार करने वालों का दिन है"...

"मनाने में आखिर हर्ज़ा ही क्या है?"


"अरे!...अगर मनाना ही है तो फिर...

'लैला-मजनू'...या फिर...

'सस्सी-पुन्नू'को याद करते हुए उनके दिन मनाओ"

"ये क्या?...कि बिना सोचे-समझे सीधा मुँह उठाया और नकल कर डाली'फिरंगियों'की"


"बीवी कुछ ना बोली...

लेकिन मेरा ध्यान..पुरानी यादों की तरफ जाता जा रहा था"


"कोई दो-चार साल पुरानी ही तो बात थी....


"वैलैंटाईन'आने वाला था और...

दिल में उमंगे जवाँ हुए जा रही थी कि...

"पिछली बार तो'मिस'हो गया था लेकिन...इस बार नहीं"


"अब की बार तो..दिल की हर मुराद पूरी होकर रहेगी"..

"कोई कसर बाकी नहीं रहने दूंगा"


"लेकिन कुछ-कुछ डर सा भी लग रहा था कि अगर कहीं...

'भगवान'ना करे ...किसी भी तरह से बीवी को पता चल गया तो?"...


"मैँ तो कहीं का ना रहूँगा"....

"मेरी हालत तो धोबी के कुत्ते जैसी हो जाएगी...


'ना घर का....ना घाट का"


"अरे!...यार..किसी को कानों-कान भी खबर नहीं होगी"....

"बस तुम खर्चा भर किए जाओ"...


"एक से एक'टाप'की'आईटम'के दर्शन ना करवा दूँ तो...मेरा भी नाम...

'सूरमा भोपाली'नहीं"


"अब दिन-रात...

सोते-जागते...यही'ख्वाब'देखे जा रहा था मैँ कि...

सब की सब मुझ पर फिदा हैँ"....


"दिल बस यही गाए जा रहा था कि...

"मैँ अकेला....मैँ अकेला...

मेरे चारों तरफ...हसीनों का मेला"


"हर तरफ बस लडकियाँ ही लडकियाँ"...

"दूजा कोई नहीं"...

"कोई इधर से छेडे जा रही थी तो कोई...उधर से"


"अपनी बल्ले-बल्ले हो ही रही थी कि अचानक ऐसे लगा जैसे ...


"दिल के अरमाँ...आँसुओ में बह गए..."

"सब के सब ख्वाब टूट के बिखर चुके थे"...

"कुछ धर्म के ठेकेदार जो सरेआम ...

'रेडियो'...

'टीवी चैनलों'और...

'अखबारों' के जरिए धमकी दे रहे थे कि...

"जिस किसी ने भी कुछ उलटा-सीधा करने की कोशिश की..उसे...

'सरेआम'...

'मुँह काला कर'...

'गधे पे बिठा'...पूरे शहर का चक्कर कटवाया जाएगा"


"गधे पे बिठाने की बात सुन दोस्त खुद ही...

अपना'मुँह'काला करता हुआ ऐसे गायब हुआ जैसे'गधे'के सर से सींग"


"और अपुन रह गए फिर...

'वैसे के वैसे'...

'प्यासे के प्यासे"


"लेकिन दिल ने हिम्मत ना हारी...खुद को समझाया...और...

'बीवी'से ज़रूरी काम का बहाना बना..जा पहुँचा सीधा'गोवा'


'गोवा'माने!...'जन्नत'...

"यहाँ किसी का कोई डर नही"....

"जैसे मर्ज़ी ..वैसे घूमो-फिरो"....

"जो मर्ज़ी करो"...

"कोई देखने वाला नही"...

"कोई रोकने-टोकने वाला नहीं"


"सो!...मै भी पूरे रंग में रंग चुका था"

"इधर-उधर...पूछताछ करके पता लगाया कि...

'सब कुछ दिखता है'वाला'बीच'कहाँ है?"


"जा पहुँचा!...सीधा वहीं"

"एक हाथ में'बीयर'की बोतल और...

दूसरे हाथ में'गुलाब'थामे मै कभी इधर डोल रहा था तो कभी उधर कि ...

कहीं ना कहीं तो अपुन की'च्वाईस'की मिलेगी ज़रूर"


"लेकिन जिसे देखो...साली!....वही अपने'लैवेल'से नीचे की दिखाई दे रही थी"

"और मै था कि...

'हाई क्लास'से नीचे उतरने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता"


"सुबह से दोपहर और...

दोपहर से शाम होने को आई लेकिन...

जो साली!...समझ में बैठती...

वो पहले से ही किसी का हाथ थामे नज़र आती"...


"हाय री!...फूटी किस्मत"...

"सब की सब...'आलरेडी बुक्कड'थी"


"काम बनता ना देख मैने फैसला किया कि..

अब की बार कोई नखरा नहीं"...

"जैसी भी मिलेगी ...काम चला लूंगा"...


"किस्मत में जो होगा...मिल जाएगा"


"मैँ अभी यही सब सोच ही रहा था कि ...

देखा तो तीन लडकियाँ खडी-खडी सबके साथ ...

'स्विम सूट'पहने-पहने फोटू खिंचवा रही थी"...

"क्या गज़ब की'आईटम'थी रे बाप!....."


"करना क्या था?...मैँ भी लग गया लाईन में"...

"थोडी-बहुत...टूटी-फूटी अंग्रेज़ी आती थी...

सो!...बात आगे बढाई और'इनवाईट'कर डाला अगले दिन'डेट'के लिए"

"हैरानी की बात ये कि वो तीनों झट से मान गयी"


"ये तो वही बात हुई कि...

"बिन माँगे मोती मिले...माँगे मिले ना भीख"

"कहाँ एक तरफ तो मैँ तरसता फिर रहा था लेकिन...

कोई भाव देने को तैयार नहीं...और कहाँ ये बिना कोई खास मेहनत किए ही...

अपने आप ही बे-भाव टपक पडी"


"हे प्रभू!...तेरी लीला अपरम्पार है"

"थोडी'काली'हुई तो क्या हुआ?...

"अपने'श्री क्रष्ण'माहराज भी कौन सा गोरे थी?"

"काले ही थे ना?"

"सो!...मैने भी यही सोचा कि आज तो'रास-लीला'मना ही डाली जाए"


"मजबूरी का नाम'महत्मा गान्धी'ही सही"

"अगले दिन मिलने की जगह'फिक्स'हुई और वो अपने'होटल'चली गयीं"...

"आफकोर्स!..रात का खाना मेरे साथ खाने के बाद"


"अब ये भी कोई पूछने वाली बात है कि....

'नोट'किसने खर्चा किए?"


"समझदार हो.....खुद जान लो"

"पूरी रात नींद नहीं आई...

"कभी इस करवट लेटता...

तो कभी उस करवट"

"घडी-घडी...उठ-उठ कर'घडी'देखता कि अभी कितनी देर है सुबह होने में?"


"अल्सुबह ही उठ गया था मैँ ..लेकिन...

इंतज़ार की घडियाँ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी"


"खैर!..किसी तरीके से वो आ पहुँची"

"एक की तबियत कुछ ठीक नहीं थी ...

सो!...उसने..जाने से इनकार कर दिया"

"अच्छा हुआ ...साली!...ने खुद ही मना कर दिया"

"चौखटा भी तो कोई खास नहीं था उसका"

"उसे होटल में आराम करने की कह हम चल दिए मंज़िल की ओर"...

'बीच'पे पहुँचते ही मेरी तो निकल पडी"


"दोनों की दोनो सीधा पानी में कूद पदी और...

इशारे कर-कर मुझे बुलाने लगी"

"मै भी झट से हो लिया उनके पीछे-पीछे"...

"मगर!..बुरा हो इस कम्भख्त मारी यादाश्त का"..


'कास्ट्यूम'लाना तो मैँ भूल ही गया था...

"दिल उदास हो चला था कि ..उम्मीद की एक किरण दिखाई दी"....

"नज़दीक ही'कास्ट्यूम'बिक रहे थे"

"जा पहुँचा सीधा वहीं"...

"मेरा चौखटा देख...उल्टे-सीधे दाम बताए"...

"लेकिन...मैँ कहाँ पीछे हटने वाला था?"


"जितने माँगे...पकडा दिए चुपचाप"

"और चारा भी क्या था मेरे पास?"

"फटाफट तौलिया लपेटा और बदल डाले कपडे"

"कूद पडा सीधा पानी में"

"बस...यही गल्ती हो गयी मुझसे"..

"शायद..कुछ ज़्यादा ही उतावला हो उठा था मैँ"...

"पर्..रर...र्र'...अवाज़ आई...

"देखा तो...एक तरफ से मेरी'निक्कर'जवाब दे चुकी थी"


"मैने परवाह नहीं की और एक हाथ से'निक्कर'थामे जा पहुँचा उनके पास"

"मज़े आ ही रहे थे कि....दूसरी तरफ से भी'निक्कर'ने साथ छोड दिया"

"मजबूरन...मुझे उनसे कुछ दूर जाना पडा"...

"लेकिन कोई गम नहीं...अभी-अभी ही नया'चश्मा'बनवाया था"...

"सो!...दूर से भी सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा था...और...

"राज़ की बात तो ये कि ...

ऐसी चीज़े तो मैँ घुप्प अँधेरे में भी बिना किसी मुश्किल के ढूढ लूँ"...

"फिर यहाँ तो...ऊपरवाले की दया से खूब धूप खिली हुई थी"...

"अजीब हालत हो रही थी मेरी"...

"बाहर से तो ठंड लग रही थी लेकिन...

अन्दर ही अन्दर मैँ गर्मी से परेशान था"

"बुरा हो इस कम्भख्त मारी'निक्कर'का...

"आज ही जवाब देना था इसे"

"साला!...थक चुका था मै...दोनों हाथों से'निक्कर'थामे-थामे"

"जिस हाथ को ज़रा सा भी आराम देने की सोचूँ..

तो साली!...'निक्कर'ऊपर उठ के तैरने लगे"


"झट से हाथ वापिस...वहीं का वहीं पुरानी'पोज़ीशन'पर"

"कर तो कुछ नहीं पा रहा था मैँ लेकिन...तसल्ली थी कि आँखें तो'सिक'ही रही हैँ कम से कम"

"चलो!...अभी इसी भर से ही काम चला लिया जाए"

"अभी ठीक से आँखे सेंक भी नहीं पाया था कि ...

एक बावली ने मेरी तरफ'गेंद' से खेलते-खेलते..उसे मेरी तरफ उचाल दिया"...

"पता नहीं ध्यान कहाँ था मेरा?"...


"साली! ...गल्ती हो गयी...

और मैँ'निक्कर'छोड दोनों हाथो से'गेंद'की तरफ लपक लिया"....


"वही हुआ ...जिसका अँदेशा था"....

'पर...र्..र..र.र्र'...की आवाज़ आई और...

हो गया काम"...

'निक्कर' ने ऐन मौके पे मुझे मंझधार में अकेला छोडते हुए हाथ खडे कर दिए....

"सारी की सारी सिलाई उधड चुकी थी"...

"अब वो'निक्कर'कम'स्कर्ट'ज़्यादा दिखाई दे रही थी"...

"वो भी'मिनी'नही..'माइक्रो'...


'माइक्रो'समझते है ना आप?"


"सही कहा है किसी नेक बन्दे ने कि...

"मुसीबत कभी अकेले नही आती...आठ-दस को हमेशा साथ लाती है"..

"दर असल..हुआ क्या कि अब'स्कर्ट'के नीचे तो अपुन ने कुछ पहना नहीं था ..हमेशा की तरह"

"जैसे ही पानी में आगे बढा...

साली!...खुद बा खुद तैर के ऊपर आ गयी और नीचे...सारा का सारा'ताम-झाम'...


"अब अपने मुँह से कैसे कहूँ?"

"जवान पट्ठे हो....खुद ही अन्दाज़ा लगा लो मेरी हालत का"

"यूँ तो पक्का बेशर्म हूँ मैँ, लेकिन...यहाँ...खुले आम....

"बाप..रे...बाप"

"अरे यार!...हिन्दुस्तानी हूँ...

कोई'फिरंगी'नहीं कि ...

आव देखूँ ना ताव और ....झट से बीच बज़ार ही कर डालूँ...

"एक....दो...तीन"


"अब तरसती निगाहों से सिर्फ और सिर्फ ताकते रहने के अलावा कोई और चारा भी तो न था"


"मैँ अभी सोच ही रहा था कि...क्या करूँ?और..क्या ना करूँ?"कि...

दोनों शरारती मुस्कान चेहरे पे लिए मेरी तरफ बढी"...


"कहीँ मेरी हालत का अन्दाज़ा तो नही हो गया था उन्हें?"

"अपनी तरफ बढता देख मैँ भाग लिया बाहर की तरफ"

"कुछ होश नहीं कि...

क्या दिखाई दे रहा है और क्या नहीं..."


"बाहर पहुँचते ही झटका लगा"...

"देखा तो ...कपडे गायब"

"साला!...कोई मुय्या हाथ साफ कर चुका था"

"पीछे मुड के देखा तो दोनों मेरी ही तरफ चली आ रही थी"


"उनकी परवाह न करता हुआ ..मैँ दोनों हाथों से अपनी'निक्कर'थामे सरपट भाग लिया'होटल'की ओर"


"मुसीबतो का खेल अभी खत्म कहाँ हुआ था?"...

"पहुँचते ही एक झटका और लगा"....

वो'कल्लो'मेरे सामान पे झाडू फेर चुकी थी"...

"सब कुछ बिखरा-बिखरा था....

मेरा'कैश'....

'कपडे-लत्ते'...

'क्रैडिट कार्ड'...

'ए-टी-एम कार्ड'..कुछ भी तो नहीं बचा था"...


"सब का सब लुट चुका था"

"उन दोनों का नम्बर ट्राई किया तो..

'मोबाईल स्विचड आफ'की आवाज़ मानों मेरा मुँह चिढा रही थी"


"लगता था कि तीनों की मिलीभगत थी"

"दिल तो कर रहा था कि ...

अभी के अभी दाग दूँ पूरी की पूरी'छै'इनके सीने में"

"मैँ लुटा-पिटा चेहरा लिए उस घडी को कोस रहा था जब मुझे'वैलैनटाईन'मनाने की सूझी"

"बडी मुशकिल से'होटल'वालो से पीछ छुडा मैँ,..

भरे मन से वापिस लौट रहा था"


"अगर मै ऐश नहीं कर सकता तो..और भला कोई क्यूँ करे?"

"सही है ये धर्म के ठेकेदार"....


"ये'वैलैंटाईन-शैलेंटाईन'अपने देश के लिए नहीं बने हैँ"

"ढकोसला है ढकोसला...सब का सब..."


"देखते ही देखते मैँ भी'पेंट'का डिब्बा हाथ में लिए...

प्यार करने वालों का मुँह काला करने को बेताब भीड में शामिल था"


***राजीव तनेजा***

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