यार ने ही लूट लिया कच्छा यार का- राजीव तनेजा

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"उफ़्फ़!…ये कमर का दर्द तो मेरी जान ले के रहेगा"मेरा कराहते हुए डाक्टर के क्लीनिक में प्रवेश...
"डाक्टर साहब...नमस्कार"....   
"कहिए!...तनेजा जी...कैसे हैं आप?"....
"अब...यकीनन...बढ़िया तो हूँ नहीं...तभी तो आपके पास आया हूँ"....
"जी!...ये तो मैं क्लीनिक में आपके एंट्री लेते ही समझ गया था"....
"जी!...
"बताइये!...क्या तकलीफ है आपको?"...
"तकलीफ का तो क्या बताऊँ डाक्टर साहब?...अजीब-अजीब किस्म के रंगहीन सपने आ रहे हैं आजकल...कभी मैं बाईक पे तो कभी बाईक मुझ पर सवार नज़र आती है".....
"इसके अलावा और कोई तकलीफ?"...
"इंजर-पिंजर...सब ढीले हुए पड़े हैं"...
"बाईक के?"...
"नहीं!...मेरे"....
"मोबिल ऑइल चैक किया?"...
"अपना?"...
"नहीं!...बाईक का"...
"नहीं!...
"तो फिर करवा लो"....
"जी!....
"और कोई दिक्कत?"...
"पूरा बदन दुख रहा है"...
"बाईक का?"...
"नहीं!...मेरा"...
"और कोई परेशानी?"...
"दर्द के मारे बुरा हाल है"...
"डैन्ट-वैन्ट चैक किया?"...
"ऊपरी तौर पर तो कुछ नहीं दिख रहा है लेकिन अन्दर का कुछ पता नहीं"...
"हम्म!...तुम एक काम करो"...
"जी!... 
"वहाँ...उस कमरे में जा के स्ट्रेचर पे लेट जाओ...इत्मीनान से सबकुछ चैक करना पड़ेगा"....
"जी!....
"मैं बस... अभी दो मिनट में कच्छा ढीला करके आता हूँ"...
"क्क...कच्छा?"....
"जी!....
"किसका?"...
"तुम्हारी भाभी का"....
"वो टाईट पहनती हैं?"......
"आमतौर पर तो नहीं"...
"लेकिन आज पहना है?"मेरे चेहरे पर जिज्ञासा थी...
"पता नहीं"...
"पता नहीं...फिर भी जा रहे हैं?"...
"कहाँ?"....
"कच्छा ढीला करने?"...
"हाँ!....
"आपको इंट्यूशन हुआ?"...
"किस चीज़ का?"....
"कच्छे के टाईट होने का"....
"इसमें इंट्यूशन की क्या बात है?.....मैंने खुद चैक किया है"....
"कच्छा?"...
"हाँ!...
"कब?"....
“कब...क्या?...अभी तुम्हारे आने से जस्ट दो मिनट पहले"....
"ओह!...अच्छा...इसका मतलब भाभी जी यहीं कहीं आस-पास ही हैं"मैं सतर्कता भरी नज़र से इधर-उधर ताकता हुआ बोला....
"मेरे क्लीनिक में भला उसका क्या काम?....अपना सुबह आती है और झाड़ू-पोंछा करके वापिस चली जाती है"....
"भाभी?"...
"नहीं!...नौकरानी"....
"तो?"....
"तो तुम्हारी भाभी का मेरे क्लीनिक में भला क्या काम?"...
"जी!...लेकिन वो कच्छा.....
"ओह!...अच्छा...वो तो मैं भूल ही गया था...तुम चलो...जा के उस कमरे में लेटो...मैं बस...दो मिनट में कच्छा ढीला करके आता हूँ"...
"दो मिनट में हो तो जाएगा ना?"मैं उठने का उपक्रम करता हुआ बोला....
"अरे!...कमाल करते हो यार तुम भी.... दो मिनट में तो पूरी मैग्गी उबल जाती है और यहाँ तो बस... नाड़े के बाएँ सिरे को ज़रा हाथ से पकड़ के थोड़ा सा झटका दे...कच्छा ही तो ढीला करना है....कोई पलंग पे बैठ कूद-कूद के हु तू तू थोड़े ही खेलनी है?".....
"जी!...ये बात तो है"....
"ठीक है...तो तुम जा के आराम से उस कमरे में स्ट्रेचर पे लेटो...मैं बस अभी दो मिनट में आया"डाक्टर साहब भी उठने का उपक्रम करते हुए बोले....
"जी!...वैसे.... कच्छा तो भाभी जी का ही है ना?"मेरे स्वर में संशय था....
"अब यार...तुमसे भला क्या छुपाना?.... दरअसल... कच्छा तेरी भाभी का नहीं बल्कि उसकी सहेली का है"....
"भय्यी!...वाह....बहुत बढ़िया....ये हुई ना बात....कच्छा भाभी जी का नहीं बल्कि उनकी सहेली का है"मैं उछल कर ताली बजाता हुआ बोला...
"जी!....
"और उसे ढीला कर रहे हैं आप?"...
"जी!....
"फिर तो भय्यी...पार्टी बनती है हमारी"...
"वो कैसे?"...
"बड़े ही बेशर्म किस्म के इनसान जो हैं आप"....
"इसमें बेशर्म की क्या बात है?...हक बनता है मेरा"....
"वो कैसे?"...
"कैसे....क्या?...वो खुद भी तो कई बार....
"आपका कच्छा ढीला कर देती है?"...
"नहीं!....टाईट....ढीला तो मैं अपने आप खुद ही  कर लेता हूँ"....
"ओह!...अच्छा...समझ गया"....
"क्या?"...
"यही की आपका उससे और उसका आपसे टांका भिड़ा हुआ है"....
"पागल हो गए हो क्या तुम जो उस जैसी नेक एवं पावन... सती-सावित्री टाईप की स्त्री पर ऐसी घटिया तोहमत लगा रहे हो?"...
"मैं लगा रहा हूँ?"...
"और नहीं तो क्या मैं लगा रहा हूँ?"...
"कच्छा ढीला किसने करना है?"...
"मैंने"....
"तो फिर घटिया कौन हुआ?"...
"कौन हुआ?"...
"तुम हुए"....
"वो कैसे?"...
"कच्छा किसका है?"....
"मेरी बीवी का"...
"बीवी का या उसकी सहेली का?"...
"एक ही बात है"....
"एक ही बात कैसे है?...बीवी...बीवी होती है और सहेली...सहेली"...
"जी!...सो तो है"...
"तो फिर कच्छा किसका है?"...
"मेरा"....
"मेरा?"...
"नहीं!...मेरा"...
"लेकिन कैसे?"...
"कैसे...क्या?...जिसकी लाठी...उसकी भैंस"...
"मैं कुछ समझा नहीं"....
"क्या नहीं समझे?...लाठी या भैंस?"...
"भ्भ...भैंस"....
"भैंस?"...
"न्न... नहीं!...लाठी?".....
"लाठी?"...
"न्न!.... नहीं...कच्छा"....
"कच्छा?"...
"ह्ह...हाँ!...कच्छा?"...
"बहुत अच्छा"...
"क्या बहुत अच्छा?"....
"कच्छा"....
"मैं कुछ समझा नहीं"...
"अरे!...भाई...कच्छा तो सचमुच में बड़ा ही अच्छा था....तभी तो मेरा दिल उस पर आ गया था"...
"यू मीन टू से दैट आपका दिल अपनी बीवी की सहेली पर नहीं बल्कि उसके उस कच्छे पर आ गया था जो उसने पहना हुआ था?"...
"तुम पागल हो?"...
"कैसे?"...
"उसने कौन सा कच्छा पहना है?...इस बारे में मुझे कैसे पता होगा?"...
"तो फिर तुम्हें किस बात का पता था?"...
"इसी बात का कि उस कच्छे को...उस दिन उसने नहीं पहना था"मैं एक-एक शब्द को चबा कर बोलता हुआ बोला...
"वो कैसे?"...
"कैसे...क्या?....मैंने उस दिन उसे...उसकी बालकनी में नहा कर सूखते हुए देख लिया था"....
"सहेली को?"....
"नहीं!...उसके कच्चे को"...
"तो?"...
"तो क्या?...आँधी आई और....
"और उड़ गया कच्छा?"...
"जी!...
"बहुत अच्छा"....
"क्या बहुत अच्छा?"...
"यही कि उसका कच्छा उड़ा और आपने लपक लिया"...
"जी!...
"गुड!....ये तो वही बात हुई कि यार ने ही लूट लिया कच्छा यार का"...
"जी!...बिलकुल...
"आपको लाज ना आई?"...
"जब उसे नहीं आई तो मुझे भला क्यों आएगी?"...
"मैं कुछ समझा नहीं"...
"पिछली बार जब हमारा कच्छा उड़ा था तो उसने लपक लिया था"....
"दैट्स नाईस".....
"क्या नाईस?....पूरे तीन दिन बाद वापिस किया था वो भी...
"ढीला करके?"....
"नहीं!...टाईट करके"...
"तो?"...
"तो क्या?...हम भी उसे तीन दिन बाद वापिस कर देंगे"...
"ढीला करके?"...
"नहीं!...टाईट करके"...
"ओह!...अच्छा"...
"जी!....
"वैसे!...अब कहाँ है?"...
"बीवी?"...
"नहीं!...
“उसकी सहेली?"...
"नहीं!... उसका कच्छा"...
"यहीं है"...
"नर्स ने पहना है?"मैं जाती हुई नर्स को ऊपर से नीचे तक गौर से देखता हुआ बोला... ...
"नहीं!...मैंने"...
"अ...आपने?"...
"हाँ!...मैंने"...
"आप मेरे साथ मज़ाक कर रहे हैं ना?"...
"तुम क्या मेरे साली हो जो मैं तुम्हारे साथ मज़ाक करूंगा?...मज़ाक तो उलटा मेरे साथ मेरी बीवी ने किया है"डाक्टर साहब रूआँसे स्वर में बोले...
"वो कैसे?"...
"मेरा कच्छा ना धो के"...
"ओह!...
"इसलिए तो आज मजबूरी में ये टाईट वाला लेडीज कच्छा पहन के काम चलाना पड़ रहा है"... ..
"ओह!...
"मजबूरी जो कराए...कम है"...
"जी!...ये बात तो है... मजबूरी जो कराए...कम है"....
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क्रमश:
***राजीव तनेजा***
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rajivtaneja2004@gmail.com
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अपना हाथ…जगन्नाथ- राजीव तनेजा

विचार इटली के...कहानी भारत की और ज़ुबान यू.पी की
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"हद हो गई यार ये तो बदइंतजामी से भरी भारी भरकम  लापरवाही की...मैं क्या आप सबकी जर  खरीदी हुई गुलाम हूँ?  या फिर छुट्टी से लौट आई कोई नाबालिग बँधुआ मजदूर हूँ?... ...

  • क्या मैं अपनी मर्ज़ी से कहीं देर-सबेर आ-जा भी नहीं सकती?....
  • क्या मेरे अपने कुछ निजी सपने एवं स्वार्थ भरे अरमान नहीं हो सकते?....

मेरी अपने...अपने बच्चों के प्रति भी कुछ जिम्मेदारियाँ...कुछ कर्तव्य हैं... आप चाहते हैं कि मैं इन सबको तिलांजलि दे बस...आप सबकी सेवा-श्रुषा में ही अपना पूरा जीवन बिता दूँ और भूले से भी कभी उफ़्फ़ तक ना करूँ?" ...

"न्न...नहीं तो"....

"तो फिर मैं चार दिनों के लिए चाँदनी चौक जा... बीमार क्या पड़ गई...एक देश नहीं संभाला गया तुम लोगों से?”….

“व्व...वो दरअसल मैडम.....

"क्या व्व...वो दरअसल मैडम?..... शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को....वो सरेआम तुम लोगों के आगे....मीडिया के आगे उछलते...कूदते और फाँदते रहे और तुम लोग हाथ पे हाथ धर के ऐसे बैठे रहे मानों अनशन पे वो लोग नहीं बल्कि तुम लोग बैठे थे"....

"व्व...वो दरअसल मैडम...माहौल ही कुछ ऐसा बन गया था हमारे खिलाफ कि....

"बन गया था या फिर बना दिया गया था?"....

"ज्ज...जी!...बना दिया गया था"... 

"तो फिर क्या किया तुम लोगों ने अपने बचाव के लिए?"...

"जी!....धारा 144 तो फर्स्ट एड के तौर पे तुरत-फुरत में लगा दी थी हमने लेकिन…

“लेकिन फायदा क्या हुआ इस सबसे?...छोटा सा ये घाव तो अब नासूर बन चला है"...

"जी!...मैडम...वोही तो"....

"वहीँ के वहीँ...रालेगन सिद्धि में क्यों नहीं दबोच लिया उस कबूतर के बच्चे को?”…

"ज्ज...जी!...मैडम....सोचा तो हमने भी यही था कि वहीं के वहीं टेंटुआ दबा...पर कतर देंगे पट्ठे के लेकिन....

"हुंह!...सोचा तो हमने भी यही था....बस...सोचते ही रहा करो...काम कुछ मत किया करो"मैडम ताना मारते हुए बोली....

"जी!...मैडम"...

"टपका क्यों नहीं दिया स्साले को वहीं के वहीं... कह देते कि... ‘पुलिस की आँख फोड़ने के चक्कर में था.... काउंटर अटैक में मारा गया"...

"ज्ज...जी!....मैडम लेकिन.....

"लेकिन तुम लोग तो बन्ना और उसकी टीम की मांगों के आगे...उनकी बेतुकी डिमांडों के आगे झुक खुशी-खुशी उनके साथ 'टोफ़्फ़ी विद चरण' खेलते रहे?...  ..

"नो मैडम"....

"अच्छा?...  उन्होने कहा... 'अनशन करना है' और तुमने कहा... 'घर की ही बात है... कर लो'...भय्यी!...वाह....बहुत बढ़िया...ये 'टोफ़्फ़ी विद चरण' नहीं तो और क्या है?"...

"यैस्स मैडम"...

"कल को कहेंगे ...'सर पे चढ़ कर मूतना है'...तो भी राज़ी-राज़ी खुशी से कह देना कि... 'मूत लो बड़े आराम से....दिमाग तो है नहीं.... सारी जगह खाली है' ....

"ल्ल...लेकिन मैडम....उन्हें कैसे पता कि....

"कैसे...क्या?....साफ दिख रहा है दूर से ही... अगर दिमाग होता तो कुछ सोचते.... दूरदृष्टि अपनाते"....

"ज्ज...जी!...मैडम....लेकिन कैसे?"....

"कैसे...क्या?.... आमदेव की तरह इसे भी विश्वास में ले कोरे कागजों पे साईन करवाते और बाद में बड़े आराम से...मज़े-मज़े में तेल पिले डंडे से मार-मार सीधे पवेलियन तक घुर्र-घुर्र कर धकियाते....सिम्पल"...

"जी!...कोशिश तो सच्ची... हमने बहुत की थी कसम से...बाय गॉड लेकिन जब किस्मत अपनी शुरू से ही झण्ड हो...पास अपने बचा ओनली श्रीखण्ड हो तो कोई कर भी क्या सकता है?"...

"चुल्लू भर पानी में डूब के तो मर सकता है?"...

"जी!...बात तो सचमुच डूब के मरने वाली ही हो रही थी हमारे साथ"....

"अच्छा?"मैडम के स्वर में व्यंग्यात्मक पुट था....

"जी!...कभी ऐन मौके पे हमारे छिब्बल ब्राण्ड जैल पैन की इंक खत्म हुए जा रही थी….

तो कभी...'भिग्गी' ब्राण्ड बॉल प्वाइंट  बिना किसी पूर्व चेतावनी के लीक होना शुरू कर देता"...

"तो 'लिदम्बरम' ब्राण्ड कलाम-दवात ले.... हुल्ले-हुल्लारे करते हुए उनके चरणों में चरण कमल बन बिछ जाते"... ...

"जी!... वोही तो.... लेकिन इस 'लिदम्बरम' ब्राण्ड दवात की हर पल स्याह होती स्याही भी तो पूरी एकदम जमा(पक्का) ताखी सावंत निकली"....

"मैं कुछ समझी नहीं"....

"कमबख्तमारी हर पल...प्रति पल बिना किसी वजह के कभी मलखान बुर्शीद की तरफ तो कभी कनीष बिमारी की तरफ लुढ़क कर खुद बा खुद ढुलके जा रही थी"...

"हुंह!...खुद बा खुद ढुलके जा रही थी....काम कुछ होता नहीं है तुम लोगों से और बहाने बेशक लाख बनवा लो"...

"जी!...मैडम"....

"मैडम के बच्चे.... जबरन अँगूठा नहीं लगवा सकते थे उस बन्ना के बच्चे से"...

"देखिये!... मैडम....बस... बहुत हो गया...लिमिट में सिमट के बात करें आप"....

"हाँ!... अब और इन्सल्ट नहीं.... लोग जो देख-देख के हँस रहे हैं"...

"तो देखने दो.... पता तो चले सबको कि मेरे पीछे से क्या-क्या गुल खिलाए हैं मेरे महारथियों ने?"...

"गुल तो मैडम जी...आपके सपूत ने खिलाए हैं उन प्रदर्शनकारियों में समोसे और कोल्ड ड्रिंक बँटवा कर"...

"तो?...उन्हीं से लूटा माल...उन्हीं को खिला दिया तो क्या गुनाह किया?"...

"नहीं!...बहुत बढ़िया काम किया...घर का भेदी ही जब सरेआम लंका ढ़हाने पे तुला हो तो हम क्या कर सकते हैं?"...  

"हुंह!...हम क्या कर सकते हैं?.... वो तो अभी बच्चा है...नासमझ है...राजनैतिक दूध के चुलबुले दाँत नहीं टूटे हैं उसके"....

"फॉर यूअर काईंड इन्फोर्मेशन मैडम जी..... लूटा हुआ माल खैरात में नहीं बांटा जाता"....

"अरे!...बेवाकूफ़ों....कुछ तो डरो ऊपरवाले के कहर से... शक्ल अच्छी नहीं दी है भगवान ने तो कम से कम बातें तो अच्छी करो"...

?...?...?...?....

"उफ़्फ़!...तौबा...पता नहीं कहाँ से पकड़ के ले आई मैं इन लंगूर छाप नमूनों को?... इतना भी नहीं जानते कि आने वाले चुनावों की अभी से तैयारी कर रहा है मेरा लाड़ला"....

"ओह!...अच्छा....समझ गए मैडम".... 

"अब क्या सोचा है?"...

"हे...हे...हे....सोचने का काम तो मैडम जी...आपका है...हम इसमें बेवजह क्यों दखलंदाज़ी करें?"...

"फिर भी...कुछ निचोड़ तो सोचा होगा इस सबका?"...

"जी!...सोचा है ना"....

"क्या?"...

"यही कि...जितना हो सके लटकाए रखते हैं इस सारे मामले को.....यादाश्त बहुत कमजोर है हमारे देश की जनता की...कुछ दिनों बाद अपने आप सब भूल जाएंगे"...

"वो सब तो चलो.... भूल जाएंगे...लेकिन क्या तुम लोग भूल सकोगे मेरे-अपने अपमान को?...हम सबके घेराव को?"...

"जी!...है तो बड़ा ही मुश्किल लेकिन किया ही क्या जा सकता है?"...

"ये भी मैं ही बताऊँ?"मैडम आँखें तरेरती हुई बोली....

?….?…?…?…?….

हम्म!…तुम लोगों के बस का तो कुछ है नहीं…. मुझे ही अपना हाथ…जगन्नाथ बन कुछ करना पड़ेगा"…

“जी!…

"तीन!...तीन साल बचे हैं ना अभी इलैक्शन में?"...

"जी!... मैडम"....

"एक-एक की अक्ल ठिकाने लगा दो”...

“जड़ से?"...

"नहीं!...दूध से"...

"दूध से?"...

"हाँ!....दूध से... दूध...दूध पी के ताकत आती हैं ना इन स्साले मध्यम वर्गीय लोगों में अनशन करने की?"...

"जी!... मैडम"...

"तो दूध-घी...फल-सब्जियाँ.... सब कुछ इतना महँगा कर दो की इनकी रूह तक उसे पीने के...खाने के नाम से काँप उठे"....

"जी!... मैडम"...

"सूंघने...सूंघने को तरसे ये इस सबको"...

"जी!....मैडम"...

"बाईक-कार चलाने का बड़ा शौक है ना इन्हें?".....

"यैस्स मैडम"....

"तो पैट्रोल भी महँगा कर दो"....

"जी!...मैडम"....

"इसके बाद धीरे-धीरे...कपड़े-लत्ते...होम लोन....बैंक लोन....गैस सिलिंडर सब का सब....

"जी!...समझ गए मैडम…हो जाएगा ये सब आराम से... घर की ही बात है”…..

“हम्म!….कोई मुश्किल तो नहीं आएगी ना?”…

“अजी!…काहे की मुश्किल….हमारे साथ…’अपना हाथ…जगन्नाथ’ जो है”….

2009: A year of triumph for Congress and MNS rise

हा…हा…हा….सबका एकसाथ खिलखिलाता हुआ समवेत स्वर...

"तख़लिया"...

(और फिर सबके प्रस्थान के साथ पर्दा गिरता है)

नोट: आप चाहें तो इसे काल्पनिक कहानी समझ सकते हैं.. :-)

***राजीव तनेजा***

rajivtaneja2004@gmail.com

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सुख भरे दिन बीते रे भइय्या...अब दुख आयो रे- राजीव तनेजा

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"ओहो!...शर्मा जी आप... लीजिये... लीजिये... मोतीचूर के लड्डू लीजिये"....

"क्यों भय्यी?....किस खुशी में लड्डू बांटे जा रहे हैं?"...

"खुशी तो ऐसी है शर्मा जी की आप भी सुनेंगे तो खुशी के मारे उछल पड़ेंगे"...

"ओह!...तो इसका मतलब ये कि घर में चौथा मेहमान आ गया है या फिर आने वाला है?"....

"अब तो शर्मा जी चौथा क्या और पाँचवाँ क्या?...जितने भी मर्ज़ी मेहमान आ जाएँ बेशक ...कोई दिक्कत नहीं...कोई वांदा नहीं...अपना आराम से सबके सब एक ही कमरे में एडजस्ट हो जाएंगे"...

"नया घर ले लिया है क्या?"...

"नहीं!...दीवारें तोड़...कमरा चौड़ा कर दिया है"...

"ओह!...लेकिन अगर बुरा ना मानें तो एक बात कहूँ तनेजा जी?"...

"जी!.... ज़रूर..शर्मा जी... आप तो मेरे दोस्त हैं...बीवी नहीं इसलिए... आपकी बात का भला क्या बुरा मानना?"....

"जी!...शुक्रिया...

"बीवी को एक-दो बार टोक दो या फिर ठोक दो तो वो सुधर जाती है लेकिन ये दोस्त कमबख्त मारे ऐसे होते हैं जैसे....

"कुत्ते की पूंछ?"...

"जी!...बिलकुल... कितना भी समझा के देख लो... अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते हैं"....

"जी!....सो तो है लेकिन एक बात तो आप भी मानेगे कि दोस्त हमेशा काम की बातें करते हैं और बीवियाँ हमेशा…..

“कायदे की बात करती हैं?"...

"नहीं!... अपने फायदे की बात करती हैं"...

"जी!.... सो तो है”….

“लेकिन मैं तो यही कहूँगा की तीन-तीन जवान होते बच्चों के बाद अब और बच्चे पैदा करना ठीक नहीं"...

"जी!....लेकिन इसमें हम-आप भला क्या कर सकते हैं?...ये तो उसे खुद समझना चाहिए कि बहुत हो गया...बस...अब और नहीं"...

"तो फिर आप उसे समझाते क्यों नहीं?"...

"इसमें मैं या आप भला क्या कर सकते हैं?...ये तो उनके बीच... आपस का मामला है...अपने आप सोचेंगे कि क्या करना है और क्या नहीं करना है"...

"ओह!...तो क्या इसका मतलब आप इस सबके लिए जिम्मेदार नहीं?"...

"मैं भला क्यों जिम्मेदार होने लगा इस सबका?...हम तो भय्यी दूर बैठ के तमाशा देखने वालों में से हैं...कभी आराम से सोफ़े पे बैठ के देख लिया तो कभी कोने से उचक-उचक के देख लिया"....

"कोने से उचक-उचक के देख लिया?"...

"जी!...

"लेकिन क्यों?"...

"ये सब तो तुम जुम्मन मियां से जा के पूछो कि उन्हें इस बुढ़ापे में बार-बार पलंग की पोजीशन चेंज करने में क्या मज़ा आता है?"...

"मज़ा उन्हें आता है?"...

"उनका तो पता नहीं लेकिन मुझे ज़रूर आता है"...

"ओह!...फिर तो बड़े बेगैरत हैं आप"...

"अब आप कुछ भी कह लें लेकिन हमें तो भय्यी... ऐसे ही.....

"घर फूँक के तमाशा देखने में मज़ा आता है?"...

"जी!...बिलकुल"...

"लेकिन क्या महज़ चंद लम्हों के मज़े के लिए आप अपने घर की इज्ज़त यूं सस्ते में दाव पे लगा देंगे?"...

"इस बात की शिकायत तो मुझे भी है जुम्मन मियां से कि हर बार उनका बजट पहले के मुक़ाबले कम होता जा रहा है"...

"ओह!... लेकिन अगर ऐसी ही बात है तो फिर आपने अपनी बीवी को जुम्मन मियां के घर भेजा ही क्यों?"...

"अरे!...भय्यी....ईद का दिन था.... तो खुशी के मारे...

"तो खुशी के मारे बतौर तोहफा आपने अपनी बीवी को ही भेज दिया?"...

"मैं भला क्यों भेजने लगा?... वो अपनी मर्ज़ी से खुशी-खुशी गई थी"...

"ओह!...

"बेचारी को बड़ा शौक है ना इस सबका"...

"और आपको?"...

"अब शौक तो मुझे भी बहुत है शर्मा जी लेकिन हम ठहरे महा आलसी टाईप के आदमी..अपना आराम से सोफ़े पे बैठ के पूरा तमाशा एंजाय करते हैं"...

"आपकी तो खैर...मैं रग-रग से वाकिफ हूँ लेकिन भाभी जी को इस सब का शौक कैसे चढ़ा?"...

"अब क्या बताऊँ शर्मा जी... यूं समझिए कि जब से होश संभाला है...

“तब से ही बदचलन हो गई?"...

"एग्जैक्टली!...

"ओह!....

"हद होती है हर चीज़ की...अपना एक-आध पार एज़ ए चेंज...आज़मा लिया लेकिन ये भी क्या बात हुई कि इसे हर बार की आदत बना.... कटोरा ले...भिखमंगों की तरह पड़ोसियों के यहाँ पहुँच जाओ कि... जुम्मन मियां...ईदी दे दो...ईदी दे दो"...

"ईदी दे दो?"...

"और नहीं तो क्या बीड़ी दे दो?"...

"और वो तमाशा?...उसका क्या?"...

"वो तो होता है ना हर साल उनके घर में ईद के मौके पर...तो इस बार भी हुआ... कमाल की कारीगरी है उनके हाथों में...कठपुतलियों को तो ऐसे नचाते हैं...ऐसे नचाते है अपनी उँगलियों के इशारों पर कि बस...पूछो मत"... 

"ओह!...लेकिन वो पलंग की पोजीशन.....

"वोही तो... कई बार तो इतनी भीड़ इकट्ठी हो जाती है उनके यहाँ कि पैर रखने भर की जगह भी नहीं मिलती है"....

"तो?"...

"तो क्या?...सबको एडजस्ट करने के चक्कर में पलंग को कभी इधर तो कभी उधर खिसकाना पड़ जाता है"...

"ओह!...और वो आपका उचक-उचक के देखना.....

"वो तो जिस दिन थोड़ी देर हो जाए पहुँचने में तो......

"ओह!...अच्छा....समझ गया"...

"जी!....

"तो इसका मतलब ये जुम्मन मियां के घर से आए मुफ्त के लड्डू हैं जिन्हें बाँट कर आप अपनी हवा बना रहे हैं?"...

"दिमाग खराब हो गया है क्या आपका?...य...ये आपको चार दिन पुराने बासी लड्डू दिखाई दे रहे हैं?...आँखें खराब हो गई हैं क्या आपकी?"...

"व्व....वो तो मैं...दरअसल....

"आँखें खराब हो गई हों बेशक...कोई वांदा नय्यी लेकिन नाक तो सही सलामत होगी ना आपकी?....सूंघ के ही देख लो कि ये लड्डू बासे हैं या फिर एकदम ताज़े"...

"त्... ताज़े हैं...."...

"तो?...आपने ऐसे कैसे कह दिया कि मैं ईद के बचे हुए लड्डू बाँट रहा हूँ?"....

"सोर्री!... यार...मैंने सोचा कि...

"हुंह!....सोर्री यार...मैंने सोचा कि..... क्या सोचा?"...

"म्म....मैंने तो दरअसल....

"अरे!...बेवाकूफ... अभी ताज़े आर्डर दे कर बनवाए हैं छुन्नामल हलवाई से...विश्वास नहीं है तो बेशक ये लो उसका नंबर और खुद ही पूछ के तसल्ली कर लो"...

"कमाल कर रहे हैं तनेजा जी आप भी.....जब आप खुद अपने मुंह से कह रहे हैं तो सच ही कह रहे होंगे...झूठ थोड़े ही कह रहे होंगे"...

"वोही तो"...

"लेकिन ये तो आपने बताया ही नहीं की लड्डू बांटे किस खुशी में जा रहे हैं?"...

"अमा यार!... आप चुपचाप आम खाओ ना...गुठलियाँ गिनने के फेर में क्यों पड़ते हो?"...

"बात तो यार तुम्हारी एकदम सही है... गुठलियों से भला मेरा क्या लेना-देना?"...

"वोही तो"....

"लेकिन यार... इस खुशी का कोई ओर-छोर.... कोई पता-ठिकाना तो मालूम हो कम से कम"...

"बस!... यूँ समझ लो कि लाटरी लग गई है"....

"तुम्हारी?"...

"नहीं!... पूरे दिल्ली शहर की"...

"प्प...पूरे दिल्ली शहर की?"....

"हाँ!...पूरे दिल्ली शहर की"...

"कितने की लगी है?"...

"कितने की क्या?...बस...यूँ समझ लो कि अब इस शहर में न कोई भूखा और ना ही कोई नंगा रहेगा"....

"तो क्या सब के सब मार दिये जाएंगे?"शर्मा जी की आवाज़ में व्यंग्य का पुट था....

"हुश्श!....पागल हो गया है क्या?.....भला मार क्यों दिये जाएंगे?"....

"तो क्या ज़िंदा ज़मीन में गाड़ दिये जाएंगे?"...

"नहीं!....रे बाबा"....

"ओह!...अच्छा...समझ गया... दीवार में ज़िंदा......

"हुश्श!...पागल हो गया है क्या?...यूँ समझ लो कि अब पूरी दिल्ली भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से मुक्त हो जाएगी"...

"क्या सच?"...

"हाँ!...बिलकुल"...

  • कोई कर्मचारी अब रिश्वत नहीं लेगा...सभी काम समय पर पूरे होंगे...
  • सड़कें हर साल टूटने के बजाय सालों साल चलेंगी...
  • ट्रैफिक हवादार अब बेवजह लोगों को तंग नहीं करेंगे...
  • राशनकार्ड...पासपोर्ट वगैरा सब तय समय सीमा के अन्दर बिना रिश्वत दिये बन जाएंगे... rupee33-300x211

"क्यों जागते हुए को सपने दिखा रहे हो तनेजा जी?...आप बेशक कुछ भी कह लें लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा"....

"अरे!...हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे को फारसी क्या?...खुद ही देख लेना अपनी आँखों से दिल्ली का कायापलट होते हुए"...

"ओह!...अच्छा...अब समझा"... 

"क्या?"...

"कहीं ये अण्णा इफैक्ट तो नहीं कि ...मैं भी अण्णा...तू भी अण्णा"... 

anna 

"हुश्श!....पागल हो गया है क्या?....इसमें अण्णा कहाँ से आ गया?....ये कमाल तो अपनी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कर दिखाया है"...

sheila-dixit

"ओह!...अच्छा...वो कैसे?"...

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"दिल्ली विधानसभा के सभी विधायकों का वेतन दुगना करके उन्होने हमें ये खुशी मनाने का मौका दे दिया है"...

"वो कैसे?"...

"कैसे क्या?... अभी बताया तो कि पहले के मुक़ाबले उनकी तनख्वाह दुगनी करके"...

"तो?...उससे क्या होगा?"...

"भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा"...

"खत्म हो जाएगा या और अधिक बढ़ जाएगा?"...

"बढ़ भला क्यों जाएगा?....वो तो पूरी तरह से खत्म हो जाएगा"...

"वो कैसे?"...

"ऐसे...(मैं चुटकी बजा उसे इशारा करता हुआ बोला) ..

"मैं कुछ समझा नहीं"शर्मा जी के चेहरे पे असमंजस का भाव था...

"उफ़्फ़!...क्या मोटा दिमाग पाया है मेरे यार ने"...

"म्म...मोटा?"...

"अरे!...बेवाकूफ... ये रिश्वत लेना वगैरा कोई पेट से नहीं सीख के आता है...मजबूरी कराती है ये सब...अगर सीधी उंगली से घी निकलने लग जाए तो ये लोग अपनी उंगली टेढ़ी करें ही क्यों?"...

"हम्म!....

"महंगाई ही इतनी ज़्यादा है आज के जमाने में कि कोई करे भी तो आखिर क्या करे?"...

"जी!...सो तो है....बेईमानी ना करो...तो भूखों मरो"...

"चिंता ना करो....अब कोई भूखा नहीं मरेगा..... दुख भरे दिन बीते रे भइय्या ...अब सुख आयो रे"...

?....?...?...?...

"अच्छा!...ये बताओ कि हमारे देश में सबसे बड़े चोर कौन?"...

"हमारे नेता....और कौन?"...

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"गुड!... अब जब सीधे तरीके से उन्हीं के मुँह पर नोटों का जूता मार.... उनका पेट भर दिया जाएगा तो फिर घूस खाने की गुंजाईश ही कहाँ बचेगी उनमें?"...

"हुश्श!...पागल हो गए हो क्या तुम?.... अब तो उनके मुँह और खुल जाएंगे...पहले से डबल-ट्रिपल रिश्वत की मांग करेंगे कि.... 

"इतने के लिए हम अपने देश से ....अपनी जनता से गद्दारी थोड़े ही करेंगे?...इससे से ज़्यादा तो हमें अब तनख्वाह ही मिल जाती है... काम करवाना है तो नज़राना हमारी मर्ज़ी का...काम तुम्हारी मर्ज़ी का"... 

"क्क....क्या?"...

"हाँ!...भूल जाओ हमेशा-हमेशा के लिए इस गीत को कि 'दुख भरे दिन बीते रे भइय्या ...अब सुख आयो रे' और मय सुर ताल के अपनी माँ-बहन एक करते हुए गाओ कि ....

'सुख भरे दिन बीते रे भइय्या ...अब दुख आयो रे"...

***राजीव तनेजा***

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ये तो सच्ची…कसम से…टू मच हो गया… राजीव तनेजा

India_Against_Corruption_300
हद हो गई यार ये तो नासमझी की...पगला गए हैं सब के सब...दिमाग सैंटर में नहीं है किसी का... . बताओ!...जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी दूसरों को टोपी पहनाने में...उसे टोपी पहनने की नसीहत दे रहे हैं?.... टोपी!...वो भी किसकी?....अण्णा की...
क्यों भय्यी?....और कोई भलामानस नहीं मिला क्या इस भरी-पूरी दुनिया में या मेरे साथ ही अपनी सारी दुश्मनी निकालने की सोची है आपने?...हुंह!...बड़े आए कहने वाले कि....पहन के टोपी हो जाओ तुम भी अण्णा"....
अरे!....भय्यी...क्यों हो जाओ अण्णा?...काहे को हो जाओ अण्णा?...और कोई काम नहीं है क्या मुझे?...
मैं तो भय्यी...जैसा हूँ...जिस हाल में हूँ...उसी में खुश हूँ..परम संतुष्ट हूँ...मुझे नहीं बनना है अण्णा-फण्णा... आपको  बनना है तो बेशक…चूस के गन्ना आप भी बन जाओ अण्णा....
ये भी भला क्या बात हुई कि.... "मैं भी अण्णा....तू भी अण्णा...अब तो सारा देश है अण्णा"...
अरे!...ऐसे-कैसे सारा देश है अण्णा?....बोलो तो गिन के कितने दिखाऊँ अब भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में रिश्वत लेते और देते हुए लोग? ये तो कसम से टू मच हो गया कि...“हो जाओ रिश्वत से दूर...भ्रष्टाचार से दूर”...
   Lokpall bill battle against corruption
अरे!...अगर सभी कुतिया काशी चली गई तो यहाँ बैठ के हरे-हरे नोटों की माला कौन जपेगा?...
दिमाग की नसें कमजोर हो गई हैं अण्णा की...कोतवाल से कह रहे हैं कि चोरी ना कर....अफसर से कह रहे हैं कि... हेराफेरी ना कर.. कर्मचारियों से कह रहे हैं कि... 'कामचोरी ना कर'... व्यापारी से कह रहे हैं कि मक्कारी ना कर....
अरे!...काहे को ना करें कामचोरी?...काहे को ना करें हेराफेरी?... खून का स्वाद लग चुका है हमारे मुंह को... आदत पड़ गई है हमें इस सबकी...हमारी रगों में लहू बन के दौड़ता है ये सब...हमारी साँसों में बसती है बेईमानी और मक्कारी...
अखबारों....टी॰वी वगैरा में इधर-उधर बाँच के चार कंठ माला क्या फेर ली...बन बैठे पूरे हिंदोस्तान के खुदा?... भय्यी वाह...बहुत बढ़िया...
आप बात करते हैं कामचोरी की...उस पर हमारी दिन पर दिन बढ़ती सीनाजोरी की....तो क्या जानते हैं आप कामचोरी के बारे में?...कितनी नालेज है आपको दफ्तरी काम-काज और उसके तौर-तरीकों की?....फॉर यूअर काईंड इन्फार्मेशन....एक प्रोसीजर होता है हर काम को करने का..हम उस पे चलने की कोशिश कर आपकी मुश्किलें बढ़ा दें तो आपको लगता है कि…ये अफसर तो जानबूझ के तंग कर रहा है...बिना लिए नहीं मानेगा और अगर सीधे एवं सपाट तरीके से आपके काम को आसान करते हुए खुद ही मुंह फाड़ के अपना हक समझ मांग लें तो आपको हमारी सीनाजोरी से तकलीफ होने लगती है...
जब आपको भी साफ-साफ पता है कि बिना लिए अफसर नहीं मानेगा और हमें भी एकदम क्लीयर कट मालुम है कि बिना लिए हम कोई काम करेंगे नहीं तो फिर इसमें दिक्कत क्या है?...ये तो हमारी आपस की म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग है...इसी के चलते अगर हम आपस में कुछ ले-दे लेते हैं तो इसमें अण्णा के पेट में क्यों अपच हो…तकलीफ होने लग जाती है?...
सैलिब्रिटियों को बुला...बेफालतू की हवा बनाने से...मंच पे चढ़ ऊल-जलूल बकियाने से या चंद सुने-सुनाए जुमले और नारे गढ़...इधर-उधर कैन्डल मार्च कर लेने से रातों रात इंकलाब नहीं आ जाता...बदलाव नहीं आ जाता.. लौंडे-लपाड़ों से भरी इस बेतरतीब भीड़ को सरकार के खिलाफ आंदोलित कर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं अण्णा कि वो संसद से भी बड़े हो गए?...सांसदों से भी सर्वोच्च हो गए?....
sansad
चलो!...मानी आपकी बात कि रिश्वत ना लेने और ना देने की बात कर देश हित की सोच रहे हैं अण्णा...तो क्या हम इस देश के नागरिक नहीं?... हमारे भले के बारे में सोचना क्या अण्णा की ज़िम्मेदारी नहीं?...अच्छा!…चलो बताओ कि क्या हमारे रिश्वत ना लेने से ये देश सुधार जाएगा?... क्या जनलोकपाल बिल के कानूनी रूप अख्तियार कर लेने से पूर्ण कायाकल्प हो जाएगा?...
अरे!...खुद तुम्हारे…हाँ…तुम्हारे अण्णा जी भी मान रहे हैं कि इससे पूर्ण काया-पलट संभव नहीं है... 30 से 35 % तक भ्रष्टाचार तो फिर भी…कैसे ना कैसे करके रह ही जाएगा… अगर ऐसी ही बात है तो फिर भय्यी…हम गरीबों के हक का निवाला छीन… क्यों हमारे भरे पेट पे लात मारते हो?… जा के पहला जूता उन मोटी मुर्गियों के सर पे मारो ना जिनका दो नम्बर का लाखों लाख करोड़ रुपया बाहरले मुल्कों के विभिन्न बैंकों में पड़ा-पड़ा सड़ रहा है…उन्हीं पर काबू पा लिया तो इतना पैसा आ जाएगा हमारे देश में कि हम जैसी चिल्लर और रेजगारी को गिनने-संभालने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी…
क्यों?…क्या हुआ?…बस!…निकल गई हवा?….फुस्स हो गया सारा जोश?….
नहीं डाल सकते ना हाथ उन मोटे चोरों के गिरेबाँ पर?… शर्म आ रही है या फिर डर लग रहा है उनके ताप और प्रताप से?…कहीं ऐसा तो नहीं कि मोटी मुर्गी हमेशा भींच के अण्डा देती है…इसलिए कतरा रहे हो?चलो!…छोडो…अण्णा जी…आपके बस का नहीं है इन बेलगाम घोड़ों को अपने बस में करना… इस जन्म में तो वो सब सुधरने वाले नहीं…चलो….आप भी क्या याद करेंगे….हम ही सुधर लेते हैं…
“क्यों?…ठीक रहेगा ना?”…
“ठीक है!…तो फिर आज से…अभी से …इसी पल से..रिश्वत लेना और देना…दोनों बन्द…आप भी खुश…हम भी खुश"….
क्या हुआ?…विश्वास नहीं हो रहा है आपको मेरी बात का?”…
चलिए!…आपकी तसल्ली के लिए बाकियों की तरह मैं भी ये नारा बुलंद कर देता हूँ कि….
"मैं भी अण्णा....तू भी अण्णा...अब तो सारा देश है अण्णा"...
mainn bhi anna
अब तो ठीक है ना अण्णा?…सच कहूँ तो मुरीद हो गया हूँ मैं दृढ इच्छाशक्ति का…परिपक्व विचारधारा का" …
बातों ही बातों में ये आलेख भी काफी बड़ा होता जा रहा है  अण्णा…इसलिए इसे यहीं पर पूर्ण विराम देते हुए एक आख़िरी बात कह मैं आप सबसे विदा लेता हूँ…
“अण्णा!…चलते-चलते एक आखिरी विनती है आपसे कि अब जब आपकी दुआ से ऊपर की कमाई तो हम जैसों की बन्द ही हो जाएगी हमेशा…हमेशा के लिए तो आप कृपा करके हर महीने टाईम से मेरी कमेटी... कार और हाउस लोन की किश्त जमा करवा दिया करें अपने पल्ले से...और हाँ!...बेटे का एडमिशन करवाना है ना अगले महीने इंजीनियरिंग कालेज में?...दो लाख उसके लिए भी पहले से तैयार रख लेना ताकि ऐन वक्त पे आपके इस भक्त को…आपके इस मुरीद को कोई दिक्कत या परेशानी ना हो जाए...
"क्यों?...क्या हुआ?....साँप सूंघ गया या नानी मर गई?...."अरे!...अभी से ये आपका हाल हुए जा रहा है तो आगे क्या होगा?...अभी तो मैंने आपको चंद मोटे-मोटे खर्चे ही बताए हैं ...बाकी की पूरी लंबी फेहरिस्त गिनाना तो अभी बाकी है जैसे…
  • बेटी के लिए बढ़िया वाले एंडरायड मोबाईल का लेटेस्ट वर्जन..आई पैड जैसे सैंकडों की तादाद में रोजाना आते-जाते गिज्मोज़….
  • डिजायनर कपड़ों से लबालब भरी हुई कई-कई वार्डरोबज तथा ब्रैंडिड फुटवियर की ढेर सारी कलेक्शन….
  • श्रीमती जी के लिए चम्पालाल ज्वैलर के यहाँ से सुनहरी आभा लिए रियल डायमंड ज्वैलरी के आठ-दस बड़े-बड़े सैट...
  • मोड्यूलर किचन…
  • जकूज़ी एवं सौना बात से सुसज्जित लेटेस्ट टाईप का वाशरूम…
  • चुन्नू और मुन्नू के लिए आई पैड 4 …लेटेस्ट कंप्यूटर…44 इंच का L.E.D टी.वी …55000 वाट का होम थिएटर सिस्टम वगैरा…वगैरा…
चौंकिये मत… बिड़ला…टाटा या अम्बानी नहीं बनना है मुझे… सीधा…सरल….सादा एवं सच्चा जीवन है मेरा… बच्चों की खुशी में ही मेरी खुशी है…अपने लिए मुझे कुछ नहीं चाहिए..बस…इस सारे सामान को रखने के लिए 500 गज की एक चार मंजिला कोठी हर महानगर के पाश इलाके में  और इन सब छोटी-छोटी इच्छाओं के अलावा अगर मारीशस में भी….
“ओह!….ओह माय गाड”….
“य्य….ये क्क्क…क्क्या हुआ?….क्क्या हुआ मेरे  अण्णा को?”…
“अभी-अभी तो एकदम ठीकठाक ….शांतचित्त स्वभाव से मेरी बात सुन रहे थे कि अचानक गश खा के ऐसे गिरे धड़ाम कि…बस!….पूछो मत"…
“ये तो सच्ची…कसम से…टू मच हो गया"…
***राजीव तनेजा***
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