यार ने ही लूट लिया कच्छा यार का- राजीव तनेजा
"उफ़्फ़!…ये कमर का दर्द तो मेरी जान ले के रहेगा"मेरा कराहते हुए डाक्टर के क्लीनिक में प्रवेश...
"डाक्टर साहब...नमस्कार"....
"कहिए!...तनेजा जी...कैसे हैं आप?"....
"अब...यकीनन...बढ़िया तो हूँ नहीं...तभी तो आपके पास आया हूँ"....
"जी!...ये तो मैं क्लीनिक में आपके एंट्री लेते ही समझ गया था"....
"जी!...
"बताइये!...क्या तकलीफ है आपको?"...
"तकलीफ का तो क्या बताऊँ डाक्टर साहब?...अजीब-अजीब किस्म के रंगहीन सपने आ रहे हैं आजकल...कभी मैं बाईक पे तो कभी बाईक मुझ पर सवार नज़र आती है".....
"इसके अलावा और कोई तकलीफ?"...
"इंजर-पिंजर...सब ढीले हुए पड़े हैं"...
"बाईक के?"...
"नहीं!...मेरे"....
"मोबिल ऑइल चैक किया?"...
"अपना?"...
"नहीं!...बाईक का"...
"नहीं!...
"तो फिर करवा लो"....
"जी!....
"और कोई दिक्कत?"...
"पूरा बदन दुख रहा है"...
"बाईक का?"...
"नहीं!...मेरा"...
"और कोई परेशानी?"...
"दर्द के मारे बुरा हाल है"...
"डैन्ट-वैन्ट चैक किया?"...
"ऊपरी तौर पर तो कुछ नहीं दिख रहा है लेकिन अन्दर का कुछ पता नहीं"...
"हम्म!...तुम एक काम करो"...
"जी!...
"वहाँ...उस कमरे में जा के स्ट्रेचर पे लेट जाओ...इत्मीनान से सबकुछ चैक करना पड़ेगा"....
"जी!....
"मैं बस... अभी दो मिनट में कच्छा ढीला करके आता हूँ"...
"क्क...कच्छा?"....
"जी!....
"किसका?"...
"तुम्हारी भाभी का"....
"वो टाईट पहनती हैं?"......
"आमतौर पर तो नहीं"...
"लेकिन आज पहना है?"मेरे चेहरे पर जिज्ञासा थी...
"पता नहीं"...
"पता नहीं...फिर भी जा रहे हैं?"...
"कहाँ?"....
"कच्छा ढीला करने?"...
"हाँ!....
"आपको इंट्यूशन हुआ?"...
"किस चीज़ का?"....
"कच्छे के टाईट होने का"....
"इसमें इंट्यूशन की क्या बात है?.....मैंने खुद चैक किया है"....
"कच्छा?"...
"हाँ!...
"कब?"....
“कब...क्या?...अभी तुम्हारे आने से जस्ट दो मिनट पहले"....
"ओह!...अच्छा...इसका मतलब भाभी जी यहीं कहीं आस-पास ही हैं"मैं सतर्कता भरी नज़र से इधर-उधर ताकता हुआ बोला....
"मेरे क्लीनिक में भला उसका क्या काम?....अपना सुबह आती है और झाड़ू-पोंछा करके वापिस चली जाती है"....
"भाभी?"...
"नहीं!...नौकरानी"....
"तो?"....
"तो तुम्हारी भाभी का मेरे क्लीनिक में भला क्या काम?"...
"जी!...लेकिन वो कच्छा.....
"ओह!...अच्छा...वो तो मैं भूल ही गया था...तुम चलो...जा के उस कमरे में लेटो...मैं बस...दो मिनट में कच्छा ढीला करके आता हूँ"...
"दो मिनट में हो तो जाएगा ना?"मैं उठने का उपक्रम करता हुआ बोला....
"अरे!...कमाल करते हो यार तुम भी.... दो मिनट में तो पूरी मैग्गी उबल जाती है और यहाँ तो बस... नाड़े के बाएँ सिरे को ज़रा हाथ से पकड़ के थोड़ा सा झटका दे...कच्छा ही तो ढीला करना है....कोई पलंग पे बैठ कूद-कूद के हु तू तू थोड़े ही खेलनी है?".....
"जी!...ये बात तो है"....
"ठीक है...तो तुम जा के आराम से उस कमरे में स्ट्रेचर पे लेटो...मैं बस अभी दो मिनट में आया"डाक्टर साहब भी उठने का उपक्रम करते हुए बोले....
"जी!...वैसे.... कच्छा तो भाभी जी का ही है ना?"मेरे स्वर में संशय था....
"अब यार...तुमसे भला क्या छुपाना?.... दरअसल... कच्छा तेरी भाभी का नहीं बल्कि उसकी सहेली का है"....
"भय्यी!...वाह....बहुत बढ़िया....ये हुई ना बात....कच्छा भाभी जी का नहीं बल्कि उनकी सहेली का है"मैं उछल कर ताली बजाता हुआ बोला...
"जी!....
"और उसे ढीला कर रहे हैं आप?"...
"जी!....
"फिर तो भय्यी...पार्टी बनती है हमारी"...
"वो कैसे?"...
"बड़े ही बेशर्म किस्म के इनसान जो हैं आप"....
"इसमें बेशर्म की क्या बात है?...हक बनता है मेरा"....
"वो कैसे?"...
"कैसे....क्या?...वो खुद भी तो कई बार....
"आपका कच्छा ढीला कर देती है?"...
"नहीं!....टाईट....ढीला तो मैं अपने आप खुद ही कर लेता हूँ"....
"ओह!...अच्छा...समझ गया"....
"क्या?"...
"यही की आपका उससे और उसका आपसे टांका भिड़ा हुआ है"....
"पागल हो गए हो क्या तुम जो उस जैसी नेक एवं पावन... सती-सावित्री टाईप की स्त्री पर ऐसी घटिया तोहमत लगा रहे हो?"...
"मैं लगा रहा हूँ?"...
"और नहीं तो क्या मैं लगा रहा हूँ?"...
"कच्छा ढीला किसने करना है?"...
"मैंने"....
"तो फिर घटिया कौन हुआ?"...
"कौन हुआ?"...
"तुम हुए"....
"वो कैसे?"...
"कच्छा किसका है?"....
"मेरी बीवी का"...
"बीवी का या उसकी सहेली का?"...
"एक ही बात है"....
"एक ही बात कैसे है?...बीवी...बीवी होती है और सहेली...सहेली"...
"जी!...सो तो है"...
"तो फिर कच्छा किसका है?"...
"मेरा"....
"मेरा?"...
"नहीं!...मेरा"...
"लेकिन कैसे?"...
"कैसे...क्या?...जिसकी लाठी...उसकी भैंस"...
"मैं कुछ समझा नहीं"....
"क्या नहीं समझे?...लाठी या भैंस?"...
"भ्भ...भैंस"....
"भैंस?"...
"न्न... नहीं!...लाठी?".....
"लाठी?"...
"न्न!.... नहीं...कच्छा"....
"कच्छा?"...
"ह्ह...हाँ!...कच्छा?"...
"बहुत अच्छा"...
"क्या बहुत अच्छा?"....
"कच्छा"....
"मैं कुछ समझा नहीं"...
"अरे!...भाई...कच्छा तो सचमुच में बड़ा ही अच्छा था....तभी तो मेरा दिल उस पर आ गया था"...
"यू मीन टू से दैट आपका दिल अपनी बीवी की सहेली पर नहीं बल्कि उसके उस कच्छे पर आ गया था जो उसने पहना हुआ था?"...
"तुम पागल हो?"...
"कैसे?"...
"उसने कौन सा कच्छा पहना है?...इस बारे में मुझे कैसे पता होगा?"...
"तो फिर तुम्हें किस बात का पता था?"...
"इसी बात का कि उस कच्छे को...उस दिन उसने नहीं पहना था"मैं एक-एक शब्द को चबा कर बोलता हुआ बोला...
"वो कैसे?"...
"कैसे...क्या?....मैंने उस दिन उसे...उसकी बालकनी में नहा कर सूखते हुए देख लिया था"....
"सहेली को?"....
"नहीं!...उसके कच्चे को"...
"तो?"...
"तो क्या?...आँधी आई और....
"और उड़ गया कच्छा?"...
"जी!...
"बहुत अच्छा"....
"क्या बहुत अच्छा?"...
"यही कि उसका कच्छा उड़ा और आपने लपक लिया"...
"जी!...
"गुड!....ये तो वही बात हुई कि यार ने ही लूट लिया कच्छा यार का"...
"जी!...बिलकुल...
"आपको लाज ना आई?"...
"जब उसे नहीं आई तो मुझे भला क्यों आएगी?"...
"मैं कुछ समझा नहीं"...
"पिछली बार जब हमारा कच्छा उड़ा था तो उसने लपक लिया था"....
"दैट्स नाईस".....
"क्या नाईस?....पूरे तीन दिन बाद वापिस किया था वो भी...
"ढीला करके?"....
"नहीं!...टाईट करके"...
"तो?"...
"तो क्या?...हम भी उसे तीन दिन बाद वापिस कर देंगे"...
"ढीला करके?"...
"नहीं!...टाईट करके"...
"ओह!...अच्छा"...
"जी!....
"वैसे!...अब कहाँ है?"...
"बीवी?"...
"नहीं!...
“उसकी सहेली?"...
"नहीं!... उसका कच्छा"...
"यहीं है"...
"नर्स ने पहना है?"मैं जाती हुई नर्स को ऊपर से नीचे तक गौर से देखता हुआ बोला... ...
"नहीं!...मैंने"...
"अ...आपने?"...
"हाँ!...मैंने"...
"आप मेरे साथ मज़ाक कर रहे हैं ना?"...
"तुम क्या मेरे साली हो जो मैं तुम्हारे साथ मज़ाक करूंगा?...मज़ाक तो उलटा मेरे साथ मेरी बीवी ने किया है"डाक्टर साहब रूआँसे स्वर में बोले...
"वो कैसे?"...
"मेरा कच्छा ना धो के"...
"ओह!...
"इसलिए तो आज मजबूरी में ये टाईट वाला लेडीज कच्छा पहन के काम चलाना पड़ रहा है"... ..
"ओह!...
"मजबूरी जो कराए...कम है"...
"जी!...ये बात तो है... मजबूरी जो कराए...कम है"....
क्रमश:
***राजीव तनेजा***
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