बन्द दरवाज़ों का शहर- रश्मि रविजा


अंतर्जाल पर जब हिंदी में लिखना और पढ़ना संभव हुआ तो सबसे पहले लिखने की सुविधा हमें ब्लॉग के ज़रिए मिली। ब्लॉग के प्लेटफार्म पर ही मेरी और मुझ जैसे कइयों की लेखन यात्रा शुरू हुई। ब्लॉग पर एक दूसरे के लेखन को पढ़ते, सराहते, कमियां निकालते और मठाधीषी करते हम लोग एक दूसरे के संपर्क में आए। बेशक एक दूसरे से हम लोग कभी ना मिले हों लेकिन अपने लेखन के ज़रिए हम लोग एक दूसरे से उसके नाम और काम(लेखन) से अवश्य परिचित थे। ऐसे में जब पता चला कि एक पुरानी ब्लॉगर साथी और आज के समय की एक सशक्त कहानीकार रश्मि रविजा जी का नया कहानी संग्रह "बन्द दरवाज़ों का शहर" आया है तो मैं खुद को उसे खरीदने से रोक नहीं सका। 

धाराप्रवाह शैली से लैस अपनी कहानियों के लिए रश्मि रविजा जी को विषय खोजने नहीं पड़ते। उनकी पारखी नज़र अपने आसपास के माहौल से ही चुन कर अपने लिए विषय एवं किरदार खुदबखुद छाँट लेती है। दरअसल... यतार्थ के धरातल पर टिकी कहानियों को पढ़ते वक्त लगता है कि कहीं ना कहीं हम खुद उन कहानियों से...किसी ना किसी रूप में खुद जुड़े हुए हैं। इस तरह के विषय हमें सहज...दिल के करीब एवं देखे भाले से लगते हैं। इसलिए हमें उनके साथ, अपना खुद का संबंध स्थापित करने में किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होती। आइए!...अब बात करते हैं उनके इस कहानी संग्रह की।

इस संकलन की एक कहानी में सपनों की बातें हैं कि हर जागता.. सोता इंसान सपने देखता है मगर सपने अगर सच हो जाएँ तो फिर उन्हें सपना कौन कहेगा? अपने सपनों के पूरा ना हो पाने की स्थिति में अक्सर हम अपने ही किसी नज़दीकी के ज़रिए अपने सपने के पूरे होने की आस लगा बैठते हैं। ऐसे में अगर हमारा अपना ही...हमारा सपना तोड़ चलता बने तो दिल पर क्या बीतती है? 

बचपन की शरारतें..झगड़े,  कब बड़े होने पर हौले हौले प्रेम में बदल जाते हैं...पता ही नहीं चलता। पता तब जा के चलता है जब बाज़ी हाथ से निकल चुकी या निकल रही होती है। ऐसे में बिछुड़ते वक्त एक कसक...एक मलाल तो रह ही जाता है मन में और ज़िंदगी भर हम उम्मीद का दामन थामे..अपने प्यार की बस एक झलक देखने की आस में बरसों जिए चले जाते हैं।

इस संकलन की एक अन्य कहानी में कॉलेज के समय से एक दूसरे के प्रेम में पड़े जोड़े के सामने जब जीवन में कैरियर बनाने की बात आती है तो अचानक ही पुरुष को अपने सपनों...अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के सामने स्त्री की इच्छाएँ...उसकी भावनाएँ गौण नज़र आने लगती हैं। ऐसे में क्या स्त्री का उस पुरुष के साथ बने रहना क्या सही होगा?
इसी संकलन की एक दूसरी कहानी में नशे की गर्त में डूबे युवा की मनोस्थिति का परत दर परत विश्लेषण है कि किस तरह  घर में किसी नयी संतान के जन्म के बाद पहले वाली संतान कुदरती तौर पर माँ- बाप की उपेक्षा का शिकार होने लगती है। ऐसे में उसे बहकते देर नहीं लगती और नौबत यहाँ तक पहुँच जाती है कि स्थिति , लाख संभाले नहीं संभालती। जब तक अभिभावक चेतते हैं बात बहुत आगे तक बढ़ चुकी होती है।

इसी संकलन की किसी कहानी में स्कूल की मामूली जान पहचान बरसों बाद कॉलेज की रीयूनियन पार्टी फिर से हुई मुलाकात पर प्यार में बदलने को बेताब हो उठती है। तो किसी कहानी में मैट्रो शहरों में खड़ी ऊँची ऊंची अट्टालिकाओं के बने कंक्रीट जंगल में सब इस कदर अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं कि किसी को किसी की सुध लेने की फुरसत ही नहीं होती। ऐसे में घरों में बचे खुचे लोग अपनी ज़िंदगी में स्थाई तौर पर बस चुकी बोरियत से इतने आज़िज़ आ जाते हैं कि सुकून के कुछ पलों को खोजने के लिए किसी ना किसी का साथ चाहने लगते हैं कि जिससे वे अपने मन की बात...अपने दिल की व्यथा कह सकें मगर हमारा समाज स्त्री-पुरुष की ऐसी दोस्ती को भली नज़र से भला कब देखता है?

इस संकलन की किसी कहानी में पढ़ाई पूरी करने के तीन साल बाद भी बेरोज़गारी की मार के चलते आस पड़ोस एवं नाते रिश्तेदारों के व्यंग्यबाणों को झेल रहे युवक की कशमकश उसका बनता काम बिगाड़ देती है। तो किसी कहानी में इश्क में धोखा खा चुकने के बाद, ब्याह में भी असफल हो चुकी युवती के दरवाजे पर फिर से दस्तक देता प्यार क्या उसके मन में फिर से उमंगे जवां कर पाता है? 

इसी संकलन की एक कहानी इस बात की तस्दीक करती है कि...हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। दरअसल हम इंसानों को जो हासिल होता है, उसकी हम कद्र नहीं करते और जो हासिल नहीं होता, उसे पाने...या फिर उस जैसा बनने के लिए तड़पते रहते हैं। 

नयी बहु बेशक घर की जितनी भी लाडली हो लेकिन उसके विधवा होते ही उसको ले कर सबके रंग ढंग बदल जाते हैं और उसका दर्जा मालकिन से सीधा नौकरानी का हो उठता है। ऐसे में शारीरिक तथा मानसिक यंत्रणा झेलती उस स्त्री के जीवन में राहत के क्षण तभी आते हैं जब उसके अपने बच्चे लायक निकल आते हैं।

अच्छी नीयत के साथ देखे गए सपने ही जब बदलते वक्त के साथ नाकामयाबी में बदलने लगे और अपनों द्वारा ही जब उनकी...उनकी सपने की कद्र ना की जाए तो कितना दुख होता है। ऐसे में प्रोत्साहन की एक हलकी सी फुहार भी मन मस्तिष्क को फिर से ऊर्जावान कर उठती है।

इस कहानी संकलन में कुल 12 कहानियाँ हैं।  रश्मि रविजा जी की भाषा शैली ऐसी है कि एक बार शुरू करने पर वह खुद कहानी को पढ़वा ले जाती है। आखिर की कुछ कहानियाँ थोड़ी भागती सी लगी। उन पर थोड़ा तसल्लीबख्श ढंग से काम होना चाहिए था। काफ़ी जगहों पर अंग्रेज़ी तथा हिंदी के कुछ शब्द आपस में जुड़े हुए लगे जैसे:

जाकर, पाकर, लाकर, पीकर,भरकर, कसकर इत्यादि। मुझे लगता है कि सही शब्द में शब्द से  'कर' अलग लिखा जाना चाहिए। अब पता नहीं मैं सही हूँ या नहीं लेकिन मुझे इस तरह लिखे गए शब्द थोड़ा अखरे। कुछ जगहों पर अंग्रेज़ी शब्दों को इस तरह लिखा देखा कि उसके मायने ही बदल रहे थे जैसे..एक जगह लिखा था 'फिलिंग वेल' जिसका शाब्दिक अर्थ होता है कुएँ को भरना लेकिन असल में लेखिका कहना चाहती है 'फीलिंग वैल'-feeling well). एक जगह अंग्रेज़ी शब्द 'आयम' दिखाई दिया जिसे दरअसल 'आय एम' या फिर 'आई एम' होना चाहिए था। खैर!...ये सब छोटी छोटी कमियां हैं जिन्हें आने वाले संस्करणों तथा नयी किताबों में आराम से दूर किया जा सकता है।

180 पृष्ठों के इस कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹225/- जो कि किताब की क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

अभ्युदय-1- नरेंद्र कोहली(समीक्षा)

मिथकीय चरित्रों की जब भी कभी बात आती है तो सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के बीच भगवान श्री राम, पहली पंक्ति में प्रमुखता से खड़े दिखाई देते हैं। बदलते समय के साथ अनेक लेखकों ने इस कथा पर अपने विवेक एवं श्रद्धानुसार कलम चलाई और अपनी सोच, समझ एवं समर्थता के हिसाब से उनमें कुछ ना कुछ परिवर्तन करते हुए, इसके किरदारों के फिर से चरित्र चित्रण किए। नतीजन...आज मूल कथा के एक समान होते हुए भी रामायण के कुल मिला कर लगभग तीन सौ से लेकर एक हज़ार तक विविध रूप पढ़ने को मिलते हैं। इनमें संस्कृत में रचित वाल्मीकि रामायण सबसे प्राचीन मानी जाती है। इसके अलावा अनेक अन्य भारतीय भाषाओं में भी राम कथा लिखी गयीं। हिंदी, तमिल,तेलुगु,उड़िया के अतिरिक्त  संस्कृत,गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, नेपाली, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाएँ भी राम कथा के प्रभाव से वंचित नहीं रह पायीं।

राम कथा को इस कदर प्रसिद्धि मिली कि देश की सीमाएँ लांघ उसकी यशकीर्ति तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान, इंडोनेशिया, नेपाल, जावा, बर्मा (म्यांम्मार), थाईलैंड के अलावा कई अनेक देशों तक जा पहुँची और थोड़े फेरबदल के साथ वहाँ भी नए सिरे से राम कथा को लिखा गया। कुछ विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य इलियड, रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता है। राम कथा को आधार बना कर अमीश त्रिपाठी ने हाल फिलहाल में अंग्रेज़ी भाषा में इस पर हॉलीवुड स्टाइल का तीन भागों में एक वृहद उपन्यास रचा है तो हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री नरेन्द्र कोहली भी इस अद्भुत राम कथा के मोहपाश से बच नहीं पाए हैं।

दोस्तों.... आज मैं बात करने जा रहा हूँ श्री नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित "अभ्युदय-1" की। इस पूरी कथा को उन्होंने दो भागों में संपूर्ण किया है। इस उपन्यास में उन्होंने  देवताओं एवं राक्षसों को अलौकिक शक्तियों का स्वामी ना मानते हुए उनको आम इंसान के हिसाब से ही ट्रीट किया है। 

उनके अनुसार बिना मेहनत के जब भ्रष्टाचार, दबंगई तथा ताकत के बल पर कुछ व्यक्तियों को अकृत धन की प्राप्ति होने लगी तो उनमें नैतिक एवं सामाजिक भावनाओं का ह्रास होने के चलते लालच, घमंड, वैभव, मदिरा सेवन, वासना, लंपटता तथा दंभ इत्यादि की उत्पत्ति हुई। अत्यधिक धन तथा शस्त्र ज्ञान के बल पर अत्याचार इस हद तक बढ़े कि ताकत के मद में चूर ऐसे अधर्मी लोगों द्वारा सरेआम मारपीट तथा छीनाझपटी होने लगी। अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए राह चलते बलात्कार एवं हत्याएं कर, उन्हीं के नर मांस को खा जाने जैसी अमानवीय एवं पैशाचिक करतूतों को करने एवं शह देने वाले लोग ही अंततः राक्षस कहलाने लगे।

शांति से अपने परिश्रम एवं ईमानदारी द्वारा जीविकोपार्जन करने के इच्छुक लोगों को ऐसी राक्षसी प्रवृति वालों के द्वारा सताया जाना आम बात हो गयी। आमजन को ऋषियों के ज्ञान एवं बौद्धिक नेतृत्व से वंचित रखने एवं शस्त्र ज्ञान प्राप्त करने से रोकने के लिए शांत एवं एकांत स्थानों पर बने गुरुकुलों एवं आश्रमों को राक्षसों द्वारा भीषण रक्तपात के बाद जला कर तहस नहस किया जाने लगा कि ज्ञान प्राप्त करने के बाद कोई उनसे, उनके ग़लत कामों के प्रति तर्क अथवा विरोध ना करने लगे।

वंचितो की स्थिति में सुधार के अनेक मुद्दों को अपने में समेटे हुए इस उपन्यास में मूल कहानी है कि अपने वनवास के दौरान अलग अलग आश्रमों तथा गांवों में राम,  किस तरह ऋषियों, आश्रम वासियों और आम जनजीवन को संगठित कर, शस्त्र शिक्षा देते हुए राक्षसों से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। पढ़ते वक्त कई स्थानों पर मुझे लगा कि शस्त्र शिक्षा एवं संगठन जैसी ज्ञान की बातों को अलग अलग आश्रमों एवं स्थानों पर बार बार घुमा फिरा कर बताया गया है। जिससे उपन्यास के बीच का हिस्सा थोड़ा बोझिल सा हो गया है जिसे संक्षेप में बता कर उपन्यास को थोड़ा और चुस्त दुरस्त किया जा सकता था। लेकिन हाँ!...श्रुपनखा का कहानी में आगमन होते ही उपन्यास एकदम रफ्तार पकड़ लेता है।

इस उपन्यास में कहानी है राक्षसी अत्याचारों से त्रस्त ऋषि विश्वामित्र के ऐसे राक्षसों के वध के लिए  महाराजा दशरथ से उनके पुत्रों, राम एवं लक्षमण को मदद के रूप में माँगने की। इसमें कहानी है अहल्या के उद्धार से ले कर ताड़का एवं अन्य राक्षसों के वध, राम-सीता विवाह, कैकयी प्रकरण, राम वनवास, अगस्त्य ऋषि एवं  कई अन्य उपकथाओं से ले कर सीता के हरण तक की। इतनी अधिक कथाओं के एक ही उपन्यास में होने की वजह से इसकी मोटाई तथा वज़न काफी बढ़ गया है। जिसकी वजह इसे ज़्यादा देर तक हाथों में थाम कर पढ़ना थोड़ा असुविधाजनक लगता है।

700 पृष्ठों के इस बड़े उपन्यास(पहला भाग) को पढ़ते वक्त कुछ स्थानों पर ऐसा भी भान होता है कि शायद लेखक ने कुछ स्थानों पर इसे स्वयं टाइप कर लिखने के बजाए किसी और से बोल कर इसे टाइप करवाया है क्योंकि कुछ जगहों पर शब्दों के सरस हिंदी में बहते हुए प्रवाह के बीच कर भोजपुरी अथवा मैथिली भाषा का कोई शब्द अचानक फुदक कर उछलते हुए कोई ऐसे सामने आ जाता है।

धाराप्रवाह लेखन से सुसज्जित इस उपन्यास को पढ़ने के बाद लेखक की इस मामले में भी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इसके हर किरदार के अच्छे या बुरे होने के पीछे की वजहों का, सहज मानवीय सोच के साथ मंथन करते हुए उसे तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया है।

700 पृष्ठों के इस उपन्यास के पेपरबैक संस्करण की कीमत ₹450/- रुपए है और इसके प्रकाशक हैं डायमंड बुक्स। उपन्यास का कवर बहुत पतला है। एक बार पढ़ने पर ही मुड़ कर गोल होने लगा। अंदर के कागजों की क्वालिटी ठीकठाक है।फ़ॉन्ट्स का साइज़ थोड़ा और बड़ा होना चाहिए था। इन कमियों की तरफ ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। आने वाले भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।


 
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