विहान की आहट - वंदना बाजपेयी

किसी चीज़ का जब आपको कोई नशा हो जाता है या आप किसी चीज़ के आदि हो जाते हैं तो आप उसके बिना नहीं रह पाते हैं जैसे कि मुझे चाय पीने की इस हद तक आदत लग चुकी है कि मैंने अपने कमरे में ‘चाय बिना चैन कहाँ रे’ नाम का एक कट आउट भी लगाया हुआ है। ठीक इसी तरह पिछले कुछ सालों से मेरा पढ़ने का शौक फ़िर से जागा है और मैं अमूमन एक साल में ऑनलाइन तथा ऑफलाइन मिला कर लगभग 100-105 किताबें पढ़ लेता हूँ। मेरा प्रयास रहता है कि मैं कैसे भी कर के रोज़ाना कम से कम कुछ समय पढ़ने के लिए ज़रूर निकालूँ। इसी वजह से मैं अपने लगभग 1 महीने के दुबई प्रवास के लिए भी कुछ किताबें दिल्ली से अपने साथ ले कर आया हूँ।

इसी कड़ी में पढ़ी गयी पहली किताब जिसका मैं यहाँ जिक्र करने वाला हूँ, उसे लिखा है प्रसिद्ध लेखिका वंदना बाजपेयी ने ‘विहान की आहट' के नाम से। इसी संकलन की एक कहानी जहाँ एक तरफ़ उस कृति की बात कहती है जिसके जीवन में उसके पति, जयंत के देहांत के बाद एक रिक्तता सी आ चुकी है। मरने से पहले जयंत और कृति की आपसी सहमति से जयंत ने अपने स्पर्म एक अस्पताल में फ्रीज़ करवा कर रखे थे कि भविष्य में जब उन्हें बच्चे की चाह होगी, तब वे काम आ जाएँगे। अब एक तरफ़ जयंत की माँ की इच्छा है कि अपने बेटे के उन्हीं स्पर्म्स के ज़रिए कृतिका एक बच्चे को यानी कि उनके खानदान के वारिस को जन्म दे तो दूसरी तरफ़ कृतिका की माँ इस रिश्ते से आगे बढ़ उसे फ़िर से घर बसाने की सलाह दे रही है। अब देखना यह है कि पशोपेश में पड़ी कृति क्या निर्णय लेती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी बूढ़ी अम्मा और सिम्मो नाम की गाय के बीच के आपसी रिश्ते, समझ और प्रेम की बात करते-करते भारतीय गौशालाओं में व्यापत अव्यवस्थाओं, गंदगी तथा उनकी दुर्दशा पर भी बात करती दिखाई देती है कि किस तरह गायों के चारे के लिए आया पैसा भी आपसी मिल बाँट के ज़रिए हज़म कर लिया जाता है। साथ ही इस कहानी के माध्यम से लेखिका बाहर आवारा घूमने के लिए विवश कर दी गायों की दारुण स्थिति पर भी चिंता व्यक्त करती दिखाई देती हैं कि किस तरह भोजन के लालच में गायें और अन्य पशु  कूड़े से भरी पॉलीथीन निग़ल जाते हैं।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ अपनी कैंसर की बीमारी से टूट चुकी मिताली की मुलाकात अस्पताल में हँसती खिलखिलाती ज्योत्सना से होती है तो उसके फैशनेबल रंग ढंग देख कर मिताली को उस पर बहुत गुस्सा आता है कि ऐसी जगह पर कोई कैसे हँस-खेल या खिलखिला सकता है? मगर जब वह स्वयं जब ज्योत्सना से रु-ब-रु मिलती है तो उसे अपनी तमाम धारणा को बदलने पर मजबूर होना पड़ता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी स्त्री विमर्श की राह पर चलने के साथ-साथ साहित्यिक आयोजनों के ज़रिए संपर्क बढ़ाने एवं उन्हें अपने हिसाब से साधने के खेल की पोल खोलने के साथ-साथ तमाम तरह के दाँव पेचों एवं बनने बिगड़ने वाली गुटबाज़ियों के भीतर भी झाँकने का प्रयास करती नज़र आती है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' के स्लोगन को सार्थक करते हुए स्त्री शिक्षा की महत्ता को दर्शाने के साथ-साथ गाँव में सोलर प्लांट लगने की वजह से किसानों को मिले मुआवज़े एवं गाँव के विकास की बात करते-करते काश्तकारों की दिक्कतों का भी प्रभाव ढंग से वर्णन करती है। तो वहीं एक अन्य कहानी में कामवाली बाई 'कविता' के ना आने से घर के काम स्वयं कर रही सौम्या को उसकी पड़ोसन प्रैक्टिकल होने का ज्ञान दे तो देती है मगर क्या सौम्या स्वयं भी उसकी तरह हो पाती है?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ घर की छोटी बहू, मेघना अपनी सास के साथ गाँव में ही रह कर अपनी सास की सेवा श्रुषा करती है जबकि घर की बड़ी बहुएँ अपने-अपने पतियों के बाहर जा कर बस चुकी हैं। सास-बहू के इस नोकझोंक भरे खट्टे-मीठे रिश्ते के बीच उन दोनों में प्यार बना रहता है। बुढ़ापे में एक साथ अनेक बीमारियों से लड़ रही सास अपने मरने से पहले सोने के कुछ गहने मेघना के नाम लिख कर दे जाती है परंतु मेघना उनकी मृत्यु के बाद भी उन गहनों पर अपना अकेले का हक़ नहीं जताती है कि इससे तीनों भाइयों के बीच आपस में झगड़ा हो जाएगा। उसके लिए सास के दिए अच्छे संस्कार ही उसकी विरासत हैं। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति को अपना किसी भी तरह से अपने जीवन में सफ़लता प्राप्त करना चाहता है और उसकी यही चाहत उससे एक ऐसी मेधावी लड़की का दिल तुड़वा बैठती है जो उसकी झूठी बातों में आ, उससे प्रेम करने लगी थी।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में सोशल मीडिया पर औरों द्वारा ज़ाहिर की जा रही आभासी खुशियों से प्रभावित हो कर कहानी की नायिका अपने जीवन में तमाम तरह का तनाव एवं दुख भर लेती है। अब देखना ये है कि क्या वह इस सब से मुक्त हो पाती है अथवा नहीं।

धाराप्रवाह शैली में लिखी गयी बेहद प्रभावी कहानियों से लैस इस कहानी संकलन में ज़रूरी जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला। साथ ही जहाँ पर ज़रूरत नहीं है, वहाँ भी नुक्ते लगे दिखाई दिए जैसे कि 'मैसेज़'। यहाँ 'मैसेज़' नहीं बल्कि 'मैसेज' आना चाहिए। इसके साथ ही बहुत सी जगहों पर प्रूफरीडिंग की छोटी-छोटी कमियों के अतिरिक्त वर्तनी की कुछ त्रुटियाँ भी दृष्टिगोचर हुईं। उदाहरण के तौर पर पेज नम्बर 25 में लिखा दिखाई दिया कि..

'उत्तर में राहते हथेलियों में आने लगीं'

यहाँ 'राहते' के बजाय 'राहतें' आएगा।

■ पेज नम्बर 30 में लिखा दिखाई दिया कि..

‘मन के तालाब पर एक कंकण फेंका गया’ 

यहाँ ‘कंकण’ की जगह ‘कंकर/कंकड़’ आएगा।

पेज नम्बर 50 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

‘इसलिए सेफ्टी पिन में जकड़ी साड़ी की साँस भले ही घुटती रहे पर उसे आत्मविश्वास तभी आता जब उसका पल्लू उसके अंडर कंट्रोल हो’

यहाँ ‘सेफ्टी पिन में जकड़ी साड़ी की साँस भले ही घुटती रहे’ की जगह पर ‘सेफ्टी पिन में जकड़ी साड़ी से साँस भले ही घुटती रहे’ आएगा।

पेज नम्बर 55 में लिखा दिखाई दिया कि..

‘दुख और दुखियारों की भीड़ में इससे ज़्यादा संवेदना की चिल्लर किसी की पास बची नहीं थी’ 

यहाँ ‘संवेदना की चिल्लर किसी की पास बची नहीं थी’ की जगह पर ‘संवेदना की चिल्लर किसी के पास बची नहीं थी’ आएगा।

पेज नम्बर 62 में लिखा दिखाई दिया कि..

‘हम कैसर पेशेंट ही क्यों उसे आँखें खोल कर घूरे’

यहाँ ‘कैसर पेशेंट’ की जगह ‘कैंसर पेशेंट’ और ‘घूरे’ की जगह पर ‘घूरें’ आएगा।

पेज नम्बर 63 में लिखा दिखाई दिया कि..

‘सही चयन के महत्व को सीखा देता है’
यहाँ ‘सीखा देता है’ की जगह ‘सिखा देता है’ आएगा। 

पेज नम्बर 72 में लिखा दिखाई दिया कि..

'क्रोध को ज़ब्ज कर मैंने लैपटॉप खोला'

यहां ध्यान देने वाली बात है कि 'ज़ब्ज' कोई शब्द ही नहीं है। असली शब्द 'जज़्ब' है जिसका अर्थ है 'चूस लेना' । इसलिए यहाँ 'ज़ब्ज' की जगह 'जज़्ब' आएगा। 

इसी तरह की ग़लती मुझे पेज नम्बर 75 में भी छपी दिखाई दी। 

इसके बाद पेज नम्बर 82 में भी यही ग़लती फ़िर से दोहराई जाती दिखी। 

■ पेज नम्बर 73 में लिखा दिखाई दिया कि..

'उनके हिसाब से नौकरी, नाम, पैसा से कहीं अधिक प्यार करने वाला साथी बहुत ज़रूरी होता है, जीवन के लिए'

इस वाक्य में 'पैसा' की जगह 'पैसे' आना चाहिए। 

■ पेज नम्बर 76 में लिखा दिखाई दिया कि..

'जाते-जाते अपने जैसा धैर्य, सबको साध कर चलने की कला, और मेरी उंगलियों में वहीं स्वाद खुलेआम दे गईं'

यहां 'वहीं स्वाद खुलेआम दे गईं' की जगह 'वही स्वाद खुलेआम दे गईं' आएगा। 

■ पेज नम्बर 85 में लिखा दिखाई दिया कि..

'टाँगे काट डालिबे अब अगर पढ़ाई की बात करी तो...'

यहाँ 'टाँगे' की जगह 'टाँगें' आएगा।

■ पेज नम्बर 87 में लिखा दिखाई दिया कि..

'मायके आई हुई बेटियाँ बैलगाड़ी से ही आती बाक़ी को तो सब तो अपने पैरों की ग्यारह नम्बर बस का ही सहारा था'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'मायके आई हुई बेटियाँ बैलगाड़ी से ही आतीं बाक़ी को तो बस अपने पैरों की ग्यारह नम्बर बस का ही सहारा था'

■ पेज नम्बर 92 के अंत में लिखा दिखाई दिया कि..

'पुरखों द्वारा बनवाए गई इस हवेली में उनके दादा- परदादा के समय बहुत रौनक रहती थी'

यहाँ 'पुरखों द्वारा बनवाए गई इस हवेली में' की जगह 
'पुरखों द्वारा बनवाई गई इस हवेली में' आएगा।

■ पेज नम्बर 93 में लिखा दिखाई दिया कि..

'कई साल पहले तक तो बस प्राइमरी तक पाठशाला थी जिसमें गांव के बच्चे खाना-पूरी करने जाते'

यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि 'खाना-पूरी' सही शब्द नहीं है बल्कि 'खानापूर्ति' सही शब्द है। जिसका अर्थ केवल दिखावा करना होता है। अतः ये वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'कई साल पहले तक तो बस प्राइमरी तक पाठशाला थी जिसमें गांव के बच्चे खानापूर्ति के लिए जाते'

■ इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..

" 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का दवाब बना"

यहाँ 'दवाब बना' की जगह 'दबाव बना' आएगा। 

■ पेज नम्बर 94 में लिखा दिखाई दिया कि..

'बड़े हो क्या रौब जमाओगे'

यहाँ 'बड़े हो क्या रौब जमाओगे' की जगह 'बड़े हो तो क्या रौब जमाओगे' आएगा। 

■ पेज नम्बर 107 में लिखा दिखाई दिया कि..

'कितना चलेगा तब एक और दरवाज़ा और खुलेगा सब्जी लेने को'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'कितना चलेगा तब जा कर एक और दरवाज़ा खुलेगा सब्ज़ी लेने को'

■ पेज नम्बर 111 में लिखा दिखाई दिया कि..

'मैं ही आज ही निकाल बाहर करती हूँ इसे'

यहाँ 'मैं ही आज ही' की जगह 'मैं आज ही' आएगा।

■ पेज नम्बर 111 में और आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'जिनकी रिपोर्ट जीवन को न जाने किस दशा में घुमा सकती थी'

यहाँ 'किस दशा में घुमा सकती थी' की जगह अगर किस दिशा में घुमा सकती थी' आए तो बेहतर।

■ पेज नम्बर 119 में लिखा दिखाई दिया कि..

'चिंटू को संभलती अम्मा'

यहाँ 'चिंटू को संभलती अम्मा' की जगह 'चिंटू को संभालती अम्मा' आएगा।

■ पेज नम्बर 120 में लिखा दिखाई दिया कि..

'घर जैसे रस्सी से बांध दिया गया हो उसके पैर'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'घर जैसी रस्सी से बाँध दिए गए हों उसके पैर'

■ पेज नम्बर 124 में लिखा दिखाई दिया कि..

'वो स्नेह से भीगे मन लिए अम्मा से चिपट गई'

यहाँ 'स्नेह से भीगे मन लिए' की जगह 'स्नेह से भीगा मन लिए' आएगा। 

■ पेज नम्बर 132 में लिखा दिखाई दिया कि..

'बच्चे कोचिंग सेंटर के पीछे ऐसे भागते हैं जैसे गुण के पीछे मक्खियाँ'

यहाँ 'गुण' के बजाय 'गुड़' आएगा।

■ पेज नम्बर 143 में लिखा दिखाई दिया कि..

'और वह यह खुशी उसके के साथ बैठना चाहता था'

यहाँ 'उसके के साथ बाँटना चाहता था' की जगह 'उसके साथ बाँटना चाहता था' आएगा।

■ पेज नम्बर 159 में लिखा दिखाई दिया कि..

'क्या सोचती होंगी और सहेलियाँ? यहीं ना कि ये फ़ोटो नहीं डालती'

यहाँ 'यहीं ना' की जगह 'यही ना' आएगा। 

 पेज नम्बर 161 में लिखा दिखाई दिया कि..

'फूल ना नहीं फूलों का प्रिंट ही सही'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'फूल ना सही, फूलों का प्रिंट ही सही'

इस संकलन में बहुत सी जगहों पर ‘कि’ की जगह पर त्रुटिवश ‘की’ भी लिखा दिखाई दिया तथा दो-एक जगह पर ठीक इसका उलटा भी लिखा दिखाई दिया। उदाहरण के तौर पर पेज नम्बर 89 में लिखा दिखाई दिया कि..

'जाने कौन-कौन से रंगन का लगावे रहत है। जाने खात है की चाट जात है'

यहाँ 'की' की जगह 'कि' आएगा। 

■ ■ पेज नम्बर 91 में लिखा दिखाई दिया कि..

'पर सुने हैं की या तो सूरज देवता की रोशनी से बिजली बनइहे'

यहाँ 'पर सुने हैं की' में 'की' की जगह 'कि' आएगा।

■ ■ पेज नम्बर 97 में लिखा दिखाई दिया कि..

'पढ़ने-लिखने और नौकरी करने का ये अर्थ नहीं की लड़कियां घर तोड़ देंगी'

यहाँ 'ये अर्थ नहीं की लड़कियाँ घर तोड़ देंगी' की जगह 'ये अर्थ नहीं कि लड़कियाँ घर तोड़ देंगी' आएगा। 

■ ■ पेज नम्बर 100 में लिखा दिखाई दिया कि..

'का है की बालिग है बिटिया, थाना कचहरी में रिपोर्ट कर दी तो का करिहो'

यहाँ 'की' की जगह 'कि' आएगा। 

■ ■ पेज नम्बर 101 में लिखा दिखाई दिया कि..

'वह देर तक वहीं खड़ी बाबूजी कि आँखों में पल को झलकती वात्सल्य से भीगती रही'

यहाँ 'बाबूजी कि आँखों में' की जगह 'बाबूजी की आँखों में' आएगा।

■ ■ पेज नम्बर 116 में लिखा दिखाई दिया कि..

'उन दोनों को उंगली ऊपर से नीचे कि ओर लानी होती थी'

यहाँ 'ऊपर से नीचे कि ओर लानी होती थी' की जगह 'ऊपर से नीचे की ओर लानी होती थी' आएगा। 

■ ■ पेज नम्बर 146 में लिखा दिखाई दिया कि..

'अलबत्ता वो ये समझते हुए भी की सोनाक्षी उसे देख रहीं है, पूरी कोशिश करता उसकी तरफ़ ना देखे'

यहाँ 'अलबत्ता वो ये समझते हुए भी की सोनाक्षी उसे देख रहीं है' की जगह 'अलबत्ता वो ये समझते हुए भी कि सोनाक्षी उसे देख रही है' आएगा।

■ ■ पेज नम्बर 160 में लिखा दिखाई दिया कि..

'जिससे वो सबको ये एहसास दिला सके की उसके और अनिल जी के बीच अभी भी पंद्रह साल पुराना प्यार,..नया नया सा है'

यहाँ 'एहसास दिला सके की' की जगह 'एहसास दिला सके कि' आएगा। 

■ ■ इसी पेज पर और आगे बढ़ने पर लिखा दिखाई दिया कि..

'फ़ोटो डालने के नाम पर उसके दिल में गुदगुदी हुई थी की पूछो मत'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'फ़ोटो डालने के नाम पर उसके दिल में इतनी गुदगुदी हुई थी कि बस पूछो मत'

■ ■ पेज नम्बर 162 में लिखा दिखाई दिया कि..

'शादी को पंद्रह साल हुए नहीं की सारा प्यार उड़ गया'

यहाँ 'की' की जगह 'कि' आएगा।

■ ■ पेज नम्बर 164 में लिखा दिखाई दिया कि..

'देखो मैं समझता हूँ की तुम फ़ोटो डालना चाहती हो'

यहाँ भी 'की' की जगह 'कि' आएगा। 

■ ■ पेज नम्बर 165 में लिखा दिखाई दिया कि..

'जी में आता की जी भर के लड़े पर सेल्फ लव की प्रैक्टिस बीच में आ जाती'

यहाँ भी 'की' की जगह 'कि' आएगा और 'लड़े' की जगह पर 'लड़ें' आएगा।

■ ■ पेज नम्बर 165 की अंतिम पंक्तियों में देखा दिखाई दिया कि..

'आज ही शीशे में देखकर कहना तो उसे था की आई लव यू राधा, तुम कितनी सुंदर हो'

यहाँ 'कहना तो उसे था की' की जगह 'कहना तो उसे था कि' आएगा। 

■ पेज नम्बर 168 में लिखा दिखाई दिया कि..

'बहुत पहले कभी कहीं गए भी से तो अम्मा, बाबूजी, अनिल की बहन-बहनोई, उनके बच्चे, अपने बच्चे यानी की पूरी फौज'

इस वाक्य में 'पहले कभी कहीं गए भी से' में 'से' की जगह पर 'थे' आएगा और 'उनके बच्चे, अपने बच्चे यानी की पूरी फौज' की जगह पर 'उनके बच्चे, अपने बच्चे यानी की पूरी फौज के साथ' आएगा। 

* राजी- राज़ी
* हाथ पोछते - हाथ पोंछते
* ज़ब्ज - जज़्ब
* ज़िरह (बहस करना) - जिरह (बहस करना)
* आहवाहन - आह्वान
* पोड़ियम - पोडियम
* मगज़मारी - मगजमारी
* (पढ़ें लिखे) - (पढ़े-लिखें)
* कुए - कुँए
* खारिज़ - ख़ारिज
* पोछ कर (नम आँखों को) - पोंछ कर (नम आँखों को)
* गई गुजरी - गई गुज़री
* रस्सा कसी - रस्साकशी
* स्टाइयलिश - स्टाइलिश/स्टायलिश
* और; - और
* फ़क्र - फ़ख्र
* फक्र - फ़ख्र
* ऐक्टिव - एक्टिव
* ऐटीट्यूड - एटीट्यूड ‍‌‌‌
* कारू का खजाना - कारूं का खज़ाना
* दवाब – दबाव 
* गुड – गुड़ 
* ब्लड़ प्रेशर – ब्लड प्रेशर 
* मष्तष्क– मस्तिष्क 
* रस्टोरेंट – रेस्टोरेंट
* रिशेप्शन – रिसेप्शन 
* कैसर – कैंसर 
* मुसकुराते – मुस्कुराते

168 पृष्ठीय इस रोचक कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है भावना प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 250/- रूपए। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
 
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