"बिना खडग बिना ढाल"

"बिना खडग बिना ढाल"

***राजीव तनेजा***

" बस नहीं चलता मेरा इन साले ट्रैफिक वाले हवलदारों पर"......

"मेरा!...मेरा चालान काट मारा"...

"लाख समझाया कि ले दे के यहीं मामला निबटा ले लेकिन नहीं"...

"साले को!..ईमानदारी के कीडे ने जो डंक मारा था"...

"कैसे छोड देता?"

"कोर्ट का चालान किए बिना नहीं माना"...


"क्या ज़ुर्म था मेरा?"...

"बस!..ज़रा सी लाल बत्ती ही तो जम्प की थी मैँने और...

कौन है ऐसा जिसने कभी जम्प ना की हो?"...


"ठीक है!..माना कि मैँ जल्दी में था और वैसे भी आजकल जल्दी किसे नहीं है?"...


"ज़रा बताओ तो"..


"मैँ मासूम करता भी क्या?"...

"बार बार माशूका का जो फोन पे फोन आए जा रहा था"...

"मोबाईल पे उससे बतियाते बतियाते ध्यान ही नहीं रहा कि कब लाल बत्ती जम्प हो गई"...


"अब!..हो गई तो हो गई"...

"कौन सा तूफान टूट पडा?"...

"एक को बक्श देता तो क्या घिस जाता?"...


"पूरी दिहाडी गुल्ल हो गई इस मुय्ये चालान को भुगतते भुगतते"...

"कभी इस कोर्ट जाओ तो कभी उस कोर्ट जाओ"....

"कभी इस कमरे में जाओ तो कभी उस कमरे में"...

"कभी इसके तरले करो तो कभी उसके"....


"जैसे मुझे कोई और काम ही नहीं है"

"वेला समझ रखा है क्या?"...


"इसी भागदौड में कब सुबह से दोपहर हो गई पता ही नहीं चला"..

"आखिर में बात बनी जब सही अफसर तक जा पहुँचा लेकिन...

वो बाबू तो लंच टाईम होने की वजह से अपना टिफिन खोलने को था"...


"मैँने सोचा कि लो!...एक और घंटा गया इसी नाम का"

"लाख मान मनौवल की लेकिन ज़िद्दी इतना कि...नहीं माना"

"बहुत रिक्वैस्ट की"...

"एक दो जानकारों का नाम लिया तो साफ मना कर गया कि "मैँ नहीं जानता इन्हें"..


पता नहीं फिर क्या सोच बोला "अच्छा!...जा किसी ऐसे बन्दे को ले आ जिसे मैँ जानता हूँ और उसे तू भी जानता हो"...

"तेरा काम कर दूंगा"...


"अब यहाँ!...साला मैँ अनजानी जगह किसको ढूँढता फिरूँ?और...

कोई मिल भी गया तो वो भला मेरी बात क्यों मानने लगा?"

"चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया". ..

"और कर भी क्या सकता था मैँ?"


"थक हार के जब कुछ ना सूझा तो पता नहीं क्या सोच मैँ वापिस बाबू के कमरे में चला गया"

"सीधा जेब में हाथ डाल पाँच सौ का करारा नोट निकाल बोला"देख ले इसे ध्यान से"...

"गान्धी है!...इसे तू भी जानता है और इसे मैँ भी जानता हूँ"...


"बाबू मुस्कुराया और नोट खीसे के हवाले करता हुआ बोला" बडी देर से समझ आई तेरे बात।"

"समझ तेरा काम हो गया"कह मोहर लगा रसीद मेरी हथेली पे धर दी


"पहले ही बहुत देर हो चुकी थी सो!..झट से बाईक उठाई और चल दिया"

"हाँ!...

हाँ डार्लिंग...

बस पहुँच गया"...

"बस दो मिनट"....

"यहीं पास में ही हूँ"कह मैँने बाईक की रफ्तार और बढा दी....


"एक तो मैँ पहले से शादी शुदा और ऊपर से तीन बच्चे..

बडी मुश्किल से सैटिंग हुई है"....

"ज़्यादा देर हो गई तो कहीं बिदक ही ना जाए"

"कुछ पता नहीं आजकल की लडकियों का"


"ओफ्फो!...ये क्या?"...

"फिर लाल बत्ती हो गई"...

"पता नहीं सुबह सुबह किसका मुँह देखा था ...देर पे देर हुए जा रही है आज तो"...


"जो होगा देखा जाएगा सोच मैँने बिना रोके गाडे आडी तिरछी ...ज़िग-ज़ैग चलाते हुए लाल बती जम्प करा दी"

"अब रोज़ की आदत जो ठहरी"

"इतनी आसानी से कैसे छूटेगी?"


"ये क्या?....

ये साले ठुल्ले तो यहाँ भी खडे हैँ"...


"पागल का बच्चा!...कूद के बीच में आ गया"...

"अभी ऊपर चढ जाती तो?"

"सब यही कहते कि बाईक वाले की लापरवाही से कांस्टेबल की टाँग टूटी"...

"अब टूटी तो टूटी"...

"मैँ क्या करू?"

"बडी बदनामी हो जाएगी ये तो ...कल के अखबार में मेरी फोटो जो छपेगी"

"सब मेरी ही गल्ती निकालेंगे"...

"कोई ये नहीं छापेगा कि वही पागल कांस्टेबल का बच्चा कूद के बीच में आ गया था"


"साले!.. छब्बीस जनवरी के चक्कर में बडॆ मुस्तैद हो के ड्यूटी दे रहे हैँ"...

"अपनी जान की खैर तो करो कम से कम"...

"ये क्या कि अपनी जान हथेली पे लिए-लिए ड्यूटी बजा रहे हो?"...

"इतना भी नहीं जानते कि ...जान है तो जहान है"


"क्यों बे?...बडी जल्दी में है?"

"कहीं डाका डाल के निकला है क्या?"..


"वो जी!..बस ऐसे ही"....

"थोडा लेट हो गया था...इसलिए"...


"इतनी जल्दी होती है तो घर से जल्दी निकला कर"

"कही दारू तो नहीं पी हुई है साले ने"एक मुझे सूंघता हुआ बोला


"पट्ठे ने इंपोर्टेड सैंट लगाया हुआ है"....

"ज़रूर इश्क-मुश्क का चक्कर होगा"वो बोला...


" साले!..क्या अकेले-अकेले ही मज़े करेगा?"दूसरा बोल उठा


"मतलब!...

मतलब क्या है आपका?"


"सेवा-पानी तो करता जा"


"ओह!...

मैँने सकपकाते हुए जेब में हाथ डाला

गान्धी का पत्ता निकालते हुए मन ही मन सोच रहा था

" एक वो थे जो लेने को राज़ी नहीं थे और ये!...बिना लिए मानने को राज़ी नहीं हैँ"


"वाह!...

वाह रे गान्धी....वाह"...

"तेरी महिमा अपरम्पार है"...

"तू पहले भी बडा काम आया अपने देश के और अब भी बडा काम आ रहा है"


"दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल...साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल"

"सच!...साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल"


***राजीव तनेजा***

"रहेगा वर्चस्व हमेशा दिल्ली का"

"रहेगा वर्चस्व हमेशा दिल्ली का"

***राजीव तनेजा***


सोनिया फँसी दुविधा में
कांग्रेस करे गहन विचार
कैसे बाँटे किसको बाँटे
भारत रत्न नामी अचार

किसको दें किसको न दें
कैसे बाँटे है एक अनार
लेने को खडे कई कई
दिख रहे सैंकडो बिमार

अडवाणी कहे करो फैसला
टूटे ना कभी हमारा हौसला
भारत रत्न का दावेदार रहे
कुँवारा निपट'अटल'अकेला



गुलामी से अब तक की सेवा
नहीं मिला कभी ढंग का मेवा
देवीलाल को मिले भारत रत्न
मनाएं हम खुशी और जश्न


रहे संग गान्धी जय प्रकाश तलक
पैठ इनकी बिग बी से अंबानी तक
करो ना तुम अब कोई गहन विचार
मुलायम सिंह को चुन लो इस बार


हुह!..
'काशीराम' को मिले भारत रत्न
करूँ मैँ कुँवारी नित घनघोर जतन
मायावती की सुन लो पुकार
दे दो भारत रत्न बस एक बार

सुन अजीत रोए चिंघाडे मार
चौधरी चरण सिंह के नाम पर
कर लो तुम कुछ गहन विचार
मेवा ना करो अब हम से दूर

पैंशन दे पूरा हुआ कर्तव्य
नादानों ये तुम ना जानो
बहादुर शाह है असल हकदार
मिले भारत रत्न हमें इस बार

खोली पोथियाँ बाँचा इतिहास
दुविधा का पाया अचूक इलाज
गूढ सवाल मिला सरल जवाब
फूट डाल शासन किया निर्बाध

नहीं मिलेगा अब भारत रत्न
चाहें कर ले कोई लाख जतन
मिलेगा हर प्रदेश को प्रतिनिधित्व
जिसने किया प्रदेश को गौरवानित

यू पी रत्न तो कोई बिहार रत्न
कोई गोवा रत्न तो कोई पंजाब रत्न
कोई रत्न हुआ अब महराष्ट्र का
बुरा हष्र सब में गुजरात का

सोनिया संग कांग्रेस मुस्काई
होगी नहीं कभी अब जग हँसाई
नहीं डर रास्ता काटती बिल्ली का
रहेगा वर्चस्व हमेशा दिल्ली का

रहेगा वर्चस्व हमेशा दिल्ली का


***राजीव तनेजा***


नोट: कविता का आईडिया किर्तिश भट्ट जी के कार्टून से लिया गया है

"थमा दो गर मुझे सत्ता"

"थमा दो गर मुझे सत्ता"

***राजीव तनेजा***

"ओफ्फो!...पता नहीं कब अकल आएगी तुम्हें?'

"चलते वक्त देख तो लिया करो कि पैर कहाँ पड रहे हैँ और नज़र कहाँ घूम रही है।" बीवी चिल्लाई

"कुछ तो शर्म करो ...दिखाई नहीं देता कि तुम्हारी बच्ची की उम्र की है।"

"किसी को तो बक्श दिया करो कम से कम"...

"तुम्हें तो बस लडकी दिखनी चाहिए..भले ही जैसी भी हो आडी-तिरछी... टेढी-मेढी....कोई भी चलेगी।"....

"क्यों!...हैँ ना?"

"लडकी दिखी नहीं कि बस चल दिए सीधा नाक की सीध में मुँह उठा के"

"उसने मुस्कुरा के क्या देख लिया...हो गए झटाक से शैंटी फ्लैट".. .

"पहले नज़र फिसला करती थी जनाब की ...अब तो खुद ही फिसलने लगे हैँ"

"माशा अल्लाह...क्या तरक्की की जा रही है"

"आ गए मज़े?"....

"गिर पडे ना धडाम।"

"अब उसी को बुला लेना ये गोबर से लिप-पुते जूते साफ करने"बीवी बोले पे बोले चली जा रही थी


"अब क्या मैँ बोलता हूँ इन गाय-भैंसो को कि यूं रास्ते में गोबर करती फिरें?"मुझे ताव आ गया

"अच्छी भली डेयरियाँ बसा कर दी हैँ सरकार ने,अपना आराम से दुहो और लोड कर ले आओ दूध शहर में"...

"लेकिन नहीं!..लोगों को कीडा जो काटता है कि 'प्योर' माल होना चाहिए।"


"माँ दा सिर्र मिलता है प्योर"


"पता कितना पानी पहले से मौजूद रहता है इन दूधियों के डोल्लू में"

"पब्लिक को तो बस थन से धार निकलती दिखाई देनी चाहिए"

"डाईरैक्ट फ्राम दा सोर्स"

"भले ही सुबह शाम इंजैक्शन ठुकवा ठुकवा के भैंस बेचारी का पिछवाडा सूजा पडा हो"

"इन्हें कोई फर्क नहीं पडता"


"पता नहीं अपनी मेनका कहाँ गायब हो जाती है ऐसे वक्त?"


"शायद उसे भी डाईरैक्ट फ्राम दा सोर्स की आदत पडी हो"बीवी उसकी भद्द पीटती हुई बोली

"इनसान भी ना!...पैसे के लालच में कितना अन्धा हो गया है"....


"पता नहीं क्या-क्या 'स्टेरायड' मिलाते हैँ चारे में दूध बढाने के वास्ते"

"कोई शराफत नाम की चीज़ ही नहीं बची है दुनिया में"

"दूध तो बच्चों ने पीना होता है...उनके भविष्य के साथ तो खिलवाड ना करें कम से कम"बीवी तमक के बोली


"बस तुम्हें कोई टॉपिक मिलना चाहिए..हो जाती हो शुरू"

"अब!..गाय भैंस को क्या पता कि कहाँ गोबर करना है और कहाँ नहीं"

"उन्हें बस हूक उठी और उन्होंने पूंछ उठा देनी है"


"तुम गाय भैंस का रोना रो रहे हो...सामने देखो दिवार कैसी सनी पडी है"बीवी इशारा करती हुई बोली


"साले न दिन देखते हैँ ना रात देखते हैँ" ...

"जहाँ खाली दिवार देखी....बेशर्मों की तरह पैंट की ज़िप पे हाथ गया"मैँने हाँ में हाँ मिलाई


"कोई कंट्रोल-शंट्रोल भी होता है कि नहीं?"बीवी खुन्दक भरे स्वर में बोली


"लाख लिखवा दो कि यहाँ मूतना मना है लेकिन साले वहीं खडे होकर धार मारेंगे"मैँ भी शुरू हो गया


"औरत-मर्द में कोई फर्क ही नहीं करते...ना देखते हैँ कि कौन गुज़र रहा है पास से और कौन नहीं "

"शर्म-वर्म तो बेच खाई है सबने "मुँह बनाते हुए बीवी बोली


"सालों ने पूरे देश को खुले शौचालय में तब्दील कर रखा है।"

"किसी और देश में कर के दिखाएँ ऐसा तो पता चले"मैँ भी भडकता हुआ बोला


"काट के ना रख देगा वहाँ का कानून" बीवी हँसते हुए बोली

"बिना डण्डे के कोई नहीं सुधरता है"...


"इन्हें बस डंडॆ का डर दिखे...तभी सीधे होंगे साले"मेरा पारा भी लाल हो चला था


"तुम भी कौन सा कम हो?...तुम भी तो कई बार.....


"अरे!...तब तो मेरी तबियत ठीक नहीं थी"मैँ झेंपता हुआ बोला

"एक आध दिन की बात हो तो अलग बात है"

"यहाँ तो सालों ने रोज़ की आदत बना रखी है"


"ऊपर से ज़बान पे गालियाँ ऐसी छाई रहती हैँ लोगों के कि बस पूछो मत"

"छोटी मोटी गाली देना तो शान के खिलाफ समझते हैँ लोग"बीवी का गुस्सा बढता ही जा रहा था


" माँ-बहन की गाली तो आजकल प्रशादे में प्रसाद स्वरूप देने लगे हैँ लोग"मैँ हँसता हुआ बोला


"रहने दो...तुम भी कुछ कम नहीं हो"बीवी ताना मारते हुए बोली


"तुम तो हर चीज़ में मुझे ही घसीट लिया करो"...

"क्या मैँ कहता फिरता हूँ लोगों से कि यूँ सडक पे कूडा-करकत फैंकते फिरो?"...

"या फिर थूक-थूक के पूरी दिल्ली को यूँ थूकदान बना डालो?"अपने ऊपर आरोप लगता देख मेरा भडकना जायज़ था


"क्या मैँ कहता फिरता हूँ इन पैसों के लालची गुटखा खैनी वालों से कि बच्चे-बच्चे को चस्का लगवा नशेडी बनवा दो?"

"मेरा बस चले तो सब सालो को जेल की चक्की पीसने पे मजबूर कर दूँ"


"दूसरों पे कीचड उछालना कितना आसान है?"....

"तुम्हारे हाथ में 'पावर' हो तो तुम ही क्या उखाड लोगे?"


"मैँ!...?"


"हाँ तुम?"बीवी माखौल उडाते हुए बोली


"अरे!...मैँ तो दो दिन में...

हाँ!..दो दिन में सुधार के रख दूँ दिल्ली को"

"एक बार मुझे सत्ता थमा के तो देखो...उम्मीदों पे खरा न उतरूँ तो कहना"...

"यूँ!...चुटकी में......

हाँ!..चुटकी में दिल्ली का चौखटा ठीक ना कर दूँ तो मेरा भी नाम राजीव नहीं"...


"ये!...ये साले?"...

इन्हें तो मैँ एक ही दिन में सिखा दूँ कि दिल्ली में कैसे रहा जाता है"...

"कैसे सडकों पे चला जाता है"...

"कैसे सडकों पे थूका जाता है"...

"कैसे कचरा फैला दिल वालों की दिल्ली का बेडागर्क किया जाता है।"मैँ बोलता चला गया


"कैसे सरे आम कानूनों की धज्जियाँ उडाई जाती हैं।"

"कैसे खुलेआम सिग्रेट-बीडी के कश लगा सबकी नाक में दम किया जाता है"मैँ आखरी कश लगा सिगार पैर से मसलते हुए बोला


"सालों को नाम के लिए भी ट्रैफिक सैंस नहीं है"...

"ना पैदल चलने की अकल है...ना गाडी-घोडा दौडाने की"...

"बस मुँह उठाते हैँ और चल देते हैँ सीधा नाक की सीध में"...

"भले ही कोई पीछे सौ-सौ गाली बकता फिरे...इन्हें कोई मतलब नहीं"...

"कोई सरोकार नहीं कि पीछे कोई इनकी गाडी के नीचे आते-आते बचा"


"या!...ये खुद ही किसी गाडी से कुचले जाते अभी"बीवी ने बात पूरी की

"ऊपर से ये पैदल चलने वाले...

उफ!...तौबा...

पता नहीं कौन सी दुनिया में खोए रहते हैँ?"

"ये तो ग्यारह नम्बर की बस पे सवार होते हैँ...यानी कि पैदल चलते हैं"


"और!..गलती तो हमेशा बडी गाडी की ही मानी जाती है"मैँ व्यंग्यपूर्वक चिढता हुआ बोला...


"उल्टा!..मुआवज़ा और ले मरते हैं साले"बीवी का पारा भी हाई हो चला था


"अरे!...हाथ में सत्ता आ जाए एक बार...इन्हें तो दिल्ली का रुख करना तक भुलवा दूँ"


"हुह!...थोथा चना...बाजे घना....


"क्या?"...


"क्या कर लोगे तुम?"बीवी मानों मुझे जोश दिलाने पे तुली थी


"मेरा बस चले तो सबसे पहले इन फाईनैंस कम्पनियों को ही ताला लगवा दूँ"...

"ना बन्दा देखते हैं..ना बन्दे की जात" ..

"बस फाईल बनवाओ और ले जाओ"

"साले!...पाँच-पाँच हज़ार में 'स्पलैंडर' बाँटते फिरते हैँ कि...ले बेटा!....मौज कर"...

"बाकि देता रहियो किश्तों में"....

"क्या कहा?....नही दे पाएगा?"...

"फिक्र नॉट वरी करी"...

"चिंता ना कर".....

"हमने गुण्डे-पहलवान...

ऊप्स!...सॉरी रिकवरी ऐजेंट पाले हुए हैँ इसी खातिर"...


"पता भी है कुछ?...

अब तो नया स्यापा खडा होने वाला है"बीवी बोल पडी


"वो क्या?".....


"इस टाटा के बच्चे की 'नैनो' ने तो और नाक में दम कर देना है"...


"वो कैसे? ...इतना अच्छा काम कर रहा है अगला"

"दुनिया की सबसे सस्ती कार"...


"वोही तो!......"बीवी के चेहरे पे असमंजस का भाव था

"जिसे देखो....वही 'नैनो' पे सवार दिखाई देगा"...


"फिर बुरा क्या है इसमें?"


"भला क्या फर्क रह जाएगा अमीर और गरीब में?"बीवी अपनी मँहगी साडी का पल्लू ठीक करते हुए बोली

"दोनों एक ही गाडी में घूमते नज़र आएंगे....कोई स्टेटस-व्टेटस भी होता है कि नहीं?"


"काम वाली बाईयां तक घरों में काम करने गाडी में आया करेंगी"मैँ मुस्कुराता हुआ बोला...


"नए बहाने मिल जाएंगे उन्हे काम चोरी के...कभी टायर पैंचर तो कभी ट्रैफिक जाम"बीवी बुरा सा मुँह बनाते हुए बोली



"ऊपर से पुलिस का चालान हो गया तो समझो माई की दो दिन की छुट्टी"मैँने मन ही मन सोचा


"अभी तो हर किसी को नया-नया चाव चढ रहा है ना 'नैनो' का" ...

पता तब चलेगा बच्चू!...जब पार्किंग की समस्या सर चढ के बोलेगी"बीवी मानों भविष्य की तरफ ताकती हुई बोली


"अभी से बुरे हाल हैँ आगे रखने तक को जगह तक ना मिलेगी"

"इस मामले में ये जापान वाले सही हैँ...पूरी दुनिया को गाडियों पे सवार कर दिया और खुद घूमते हैँ बाई-साईकिल पे"....

तुर्रा ये कि सेहत ठीक रहती है...साले!...कंजूस कहीं के"मैँ बीच में ही बोल पडा


"सुना है!...वहाँ बन्दे को गाडी तब मिलती है जब वो पक्का सबूत दे देता है कि इसे रखेगा कहाँ पर"बीवी के चेहरे प्रश्नवाचक चिन्ह मंडरा रहा था


"और नहीं तो क्या. .."मैँ उसकी जिज्ञासा शांत करता हुआ बोला


"अभी नौकरियों में 'रिज़र्वेशन' माँगा जा रहा है...

आने वाले समय में 'पार्किंग' का भी कोटा फिक्स करने की 'डिमांड' उठने लगें तो कोई ताज्जुब नहीं"बीवी बोली


"ताजुब्ब नहीं कि कल को कोई जेबों में हाथ डाले मज़े से यूँ ही टहलता-टहलता 'शो-रूम' जा पहुँचे और...

जेब से दो तीन बण्डल मेज़ पे धरता हुई बोले"दो 'नैनो' देना....'डीलक्स' वाली"



"साले जय शनि देव.. जय बजरंग बली....का हुँकारा लगाते बिखारी तक 'नैनो' में भीख माँगते नज़र आएँगे"आने वाले समय का मंज़र मेरी आँखो के आगे नाचने लगा


"कल को नज़र बट्टू के नाम पर दफ्तर-दुकानों पे नींबू मिर्च टांगने वाले भी 'नैनो' पे आने लग जाएँ तो कोई अजब की बात न होगी।"


"बस!..थोडा सा स्टाईल बदल जाएगा उनका...गले में सोने की चेन...माथे पे गॉगल...

धन्धे का नाम मौडीफाई करके 'लैमन चिली' हो जाएगा"बीवी मज़ाक में बोली

"मुझे तो अपने पप्पू की चिंता हो रही है"बीवी परेशान हो बोली


"वो क्यों?"मेरे चेहरे पे सवाल था


"कल को वो भी खिलौनों से आज़िज़ आ नैनो की ही डिमांड ना करने लगें"मेरी तरफ देख बीवी बोली


"कोई बडी बात नहीं"मैँने जवाब दिया

"कहीं बच्चों के लिए सस्ते पैट्रोल की डिमांड भी ना उठने लगे"


"उफ!...क्या ये 'नैनो' का पंगा ले के बैठ गए?...जब आएगी तब की तब देखी जाएगी"

"तुम तो बात कर रहे थे दिल्ली सुधारने की"...

"क्या हुआ उसका?"...

"बस!...बातों बातों में ही हवा कर दी बात"


"अरे!...हवा कहाँ?...पहले मौका मिले तो सही"...

"सिखा दूंगा इन्हें कि कैसे थूका जाता है खुलेआम"...

"वहीं थूके हुए को चटवा ना दिया तो मेरा भी नाम राजीव नहीं"......

"अपने घरों में....दफ्तरों में थूक के देखो...तब पता चलेगा"...

"खुद से ही घिन्न ना आ जाए तो कहना"


"बता दूंगा इन ठेकेदारों को कि कैसे लूटा जाता है सरकारी माल"...

"हथकडियां ना लगवा दी तो कहना"

"डंडा चलेगा जब मेरा तो बडे बडे सीधे हो जाएंगे"


"किस किस को सुधारोगे तुम?....सारा ढाँचा ही बिगडा पडा है दिल्ली का"

"अब!..इन रिक्शाओं को ही लो...रोज़ तो जब्त करते फिरते हैँ 'एम सी डी' वाले"...

मगर अगले दिन फिर सडक पे नाचते नज़र आते हैँ"रिक्शेवालों की मनमानी से त्रस्त आम भारतीय नारी की आवाज़ थी ये

"सुना है!...पूरा मॉफिया होता है इस गोरखधन्धे के पीछे"

"रजिस्ट्रेशन के नाम पे एक-एक पर्ची पे बीस-बीस रिक्शे रजिस्टर करवा रखे हैँ सालों ने"


"अरे!...लाखों का खेल है ये ....एक एक के पास हज़ार-हज़ार रिक्शे हैँ"

"बीस रुपए फी रिक्शे के हिसाब से लगा ले अपने आप हिसाब कि कितने का गेम बजता होगा हर रोज़"

"लेकिन!...जो हो गया सो हो गया...

सारी 'मॉफिया गिरी' धरी की रह जाएगी जब मेरा कटर चलेगा"


"कटर चलेगा?"बीवी चौंकती हुई बोली

"हाँ!...'कटर'....

'कटर' चलवा दूंगा...इन अवैध रिक्शाओं पर"...

"ये नहीं कि जब्त कर गोदाम में फिकवा दूँ सडने के लिए ताकि कुछ ले-दे के सडको पर फिर से उछल-कूद मचाते फिरें?"

"एक ही बार में टंटा खतम कर दूंगा इनका"...

"ना रहेगा बाँस और ना ही बजने दूंगा इनकी बाँसुरी"

"काट के इतने टुकडे करवा दूंगा कि कबाडी भी दो रुपए किलो से ऊपर का भाव ना लगाए"


"वो सब तो ठीक है लेकिन......इन पैदल चलने वालों का क्या करोगे?"

"कैसे सिखाओगे इन्हें तमीज़ से चलना?"

"इनका क्या है बस मुँह उठाते हैँ और चल देते हैँ सीधा नाक की सीध में"


"लठैत पहलवानों की भर्ती करूँगा इन साले सडक पार करने वालों के लिए"...

"इधर गलत तरीके से सडक पार की...उधर लट्ठ बरसा...

दे दनादन....सडाक....सडाक"

"पट्ठों को हथकडी लगवा वहीं 'रेलिंग' से ही बँधवा ना दिया तो मेरा नाम भी राजीव नहीं"

"फोटो अलग से खिंचवाउंगा ऐसे नमूनों के कि जान ले पूरा इंडिया...मान ले पूरा इंडिया"


"पूरा इंडिया?"प्रश्न फिर बीवी के चेहरे पे था


"हाँ!...पूरा इंडिया कि देख लो...जान लो... क्या हष्र होने जा रहा है अब बद्द-दिमागों का"


"इस सब से फायदा?"....

"बहुत!...पडेगी एक को..लगेगी सबको...सभी सीधे हो जाएंगे"...

"बहुत देख लिया आराम से समझा समझा के"


"हम्म!...लातों के भूत बातों से भला कब माने हैँ जो अब मानेंगे?"


"बिलकुल!...यही इलाज है इनका"

"डंडा सर पे हो तो बडे बडे सीधे हो जाते हैँ"...

"यहाँ ना डर है और ना ही कानून की परवाह है किसी को"


"सही है बाहरले देशों का कानून...इधर जुर्म किया और उधर पुलिस सज़ा को तत्पर"

"यहाँ!.....यहाँ साला जुर्म आज करो...सज़ा का कोई पता नहीं...कब मिले...मिले ना मिले..कोई गारैंटी नहीं"

"सालों तक लंबे केस चलते हैं....किसी को सज़ा होते देखा है?"...

"नहीं ना?....


"इसी से तो बेडागर्क हुए जा रहा है पूरे हिन्दोस्तां का"...

"आम जनता भी तो इन्हें नेताओं से सबक लेती है"...

"देखती है कि जब इनका बाल भी बांका नहीं हो पा रहा तो अपना क्या बिगडेगा"बीवी भी मेरे रंग में रंग चुकी थी


"मुझे तो अरब देशों का कानून बहुत पसन्द है जी"...

"जैसा जुर्म...वैसी सज़ा....चोरों के हाथ काट दिए जाते हैं" बीवी की आवाज़ में आवेग था

"नशे के सौदागरों को पूरी ज़िन्दगी जेलों में सडने के लिए छोड दिया जाता है और ब्लातकारियों के..."मैँने बात अधूरी छोड दी


"पता नहीं क्या मिलता है लोगों को अच्छी खासी चल रही लाईफ को बिगाड के"...


"किसकी बात कर रही हो?"अब प्रश्न मेरे चेहरे पे आसीन था


"बेडागर्क कर के रख दिया है इन मसाज पार्लरों ने"मेरी बात सुने बिना ही बीवी बोलती चली गई

"दिन पर दिन उगते भी तो कुकुर मुत्तों की तरह गली-गली जा रहे हैँ "...

"कोई गली...कोई मोहल्ला तक अछूता नहीं है इनसे"

"पता नहीं कहाँ से ये फिरंगी कल्चर इंडिया का बेडागर्क करने पे तुला है"

"पता नहीं क्या आग लगी है आज के नौजवानों को"बीवी का आवेश बडता ही जा रहा था



"पार्लर की आड में सारे उल्टे काम" मुझे अपने बैंकाक के दिन याद आ गए


"खुल के क्यों नहीं कहते कि रंडीखाना बना रखा है"...


"मेरे हाथ में पावर आ जाए तो पुलिस का पहरा ना बिठवा दूँ इन मसाज पार्लरों पर तो कहना"

"एक एक की ऐसी ठुकाई करवाउंगा की आने वाली सात नस्लें तक जान जाएँगी कि 'मसाज' कैसे करवाई जाती है"


"मेरा बस चले तो सबसे पहले ये सब लेटेस्ट मोबाईल बन्द करवाउंगी"

"बडे गन्दे-गन्दे 'एम.एम.एस' बनाने का चलन चल निकला है आजकल"


"हर बन्दा मोबाईल में कुछ ना कुछ पुट्ठा सामान लिए फिरता है"मैँने बात पूरी की


"जिसे देखो चोरी से किसी ना किसी लडकी की छुप के उसकी मर्ज़ी के बिना फोटो खींच रहा होता है"


"सही है..." मैँने सहमति जता दी


"तुम कौन सा कम हो...तुम ने भी तो उस दिन"बीवी आँखे तरेर मुझसे बोली....


"वो?....वो तो बस!...ऐसे ही मज़ाक-मज़ाक में"मैँ झेंपता हुआ बोला....


"बस ऐसे ही!...सभी मज़ाक मज़ाक में खींच लिया करते हैँ"....


"ये तो सोचो कि कोई इसी तरह तुम्हारी भी माँ-बहन या बीवी एक कर रहा होगा"बीवी भडकते हुए बोली

"ये साले!...सभी मर्द एक से होते हैँ"

"लडकी देखी नहीं कि लार टपकने लगती है....काबू में नहीं रख पाते अपने जज़्बात"


"अरे!...तुम भी किनकी बात ले के बैठ गई?"

"अगर सामने से थोडी बहुत लिफ्ट मिलती है तभी हम मर्दों की हिम्मत होती है...

वर्ना हमारे जैसा दब्बू पूरे जहाँ में कोई नहीं मिलेगा "मैँ बिगडी बात सम्भालता हुआ बोला

"तुम भी ना उल्टे-सीधे टॉपिक बीच में घुसेड के असली बात ही गोल कर देती हो"

"बात हो रही थी दिल्ली सुधारने की"...

"तो सुनो!...सब साले कामचोर बाबुओं को सस्पैंड कर बता दूंगा कि कैसे बिना ड्यूटी पे आए हाज़री लगवाई जाती है"


"वो तो ठीक है पर इन नेताओं का क्या करोगे?"

"जीना हराम कर रखा है इन्होंने आम पब्लिक का...इन्हें तो बस पैसे वाले ही नज़र आते हैँ"


"इनकी तो मैँ...."बिना बोले मैँने बात अधूरी छोड दी

"जेल की रोटी खाने और चक्की पीसने पे मजबूर ना कर दिया तो कहना"

"सब सीख जाएंगे वहीं पे कि...

"कैसे बड़ी बड़ी मॉलों को लाईसैंस दे आम छोटे दुकानदार से जीने का लाईसैंस ही छीन लिया जाता है?"

"कैसे बडे-बडे लाल हरे नीले फ्रैश स्टोरों को कोठियों में खोलने की इज़ाज़त दे आम आदमी की रोज़ी-रोटी पे लात मारी जाती है"...

"सिखा दूंगा इन्हें कि कैसे पिछले दरवाज़े से मज़दूर वर्ग का सर्वेसर्वा होने पर भी नंदी को ग्राम में भेजा जाता है"...

"सिखा दूंगा कि कैसे गिने चुने निशानों का डिमालिशन कर पूरी पैसे वाली जमात को बचाया जाता है"

"सिखा दूंगा कि कैसे अपने धूल फाँकते उजाड बंजर खेतों पे सरकारी पैसे से हॉट बज़ार या सुभाष चन्द्र बोस स्मारक बनवा अपनी तिजोरियां भरी जाती हैँ"

"कैसे सरकारी गोपनीय दस्तावेजों का नाजायज़ इस्तेमाल कर आने वाले समय में एक्वायर होने वाली ज़मीन गरीब किसानों से कौडियों के दाम ले

बाद में लाखों करोडों नहीं बल्कि अरबों कमाए जाते हैं"


"कैसे अपने नेम फेम की खातिर मैट्रो का रूट तब्दील करवाया जाता है"बीवी भी पिल पडी


"कैसे सौ के ऊपर सीधा पाँच सौ का टैक्स लगा ट्रैफिक चॉलान की फीस को बढाया जाता है"...

"कैसे सरकारी जमीन पे रातों रात झुग्गी बस्तियँ बसवा अपना वोट बैंक मज़बूत किया जाता है"...


"कैसे उन्हें नई जगह बसाने की आड में हज़ारों लाखों जाली पर्चियाँ अपने लोगों में पैसे ले ले बाँटी जाती हैँ"

"कैसे सरकारी ड्रा में मलाईदार प्लॉट अपनों के नाम किए जाते हैँ"बीवी का गुस्सा कम होने को ही नहीं था


"कैसे पैसे ले ले कुक्करमुत्ते की भांति उगने वाली जाली फ्राड कंपनियो को राज्य में काम करने की छूट दी जाती है"

"कैसे प्राईवेट बिजली कम्पनी को नए तेज़ भागते मीटर लगाने की छूट देकर करोडों के वारे-न्यारे किए जाते हैँ"

"कैसे ऑटो टैक्सी के इलैक्ट्रानिक मीटरों के जरिए पब्लिक की जेब से पैसा खींचा जा सकता है"बिना रुके मैँ भी बोलता रहा


"इतना सब कुछ हो रहा है लेकिन पब्लिक कुछ कहती ही नहीं है"


"अरे!...ये फुद्दू पब्लिक है...ये कुछ नहीं जानती है"

" हमारे यहाँ डर नहीं है ना किसी को कानून और समाज का"

"मौका मिले सही हर बंदा कानून तोडने से गुरेज़ नहीं करता"

"मज़ा आता है ...शेखी दिखाई देती है इसमें...भीड में सबसे अलग...सबसे जुदा होने की चाहत होती होगी शायद इस सब की वजह"


"अब ये ट्रैफिक पुलिस वालों का आलम तो देखो...हर एंटरी के नाम पे जहाँ पचास का पत्ता झटकते थे टैम्पो वालों से...

सरकारी चॉलान बढने से इन्होंने भी अपना रेट बढा दिया है...

ऊपर से सीनाजोरी देखो इनकी...कहते हैँ कि हम यहाँ क्या मुफ्त में.......

"मेरा बस चले तो इन साले सभी रिश्वतखोरों के 'एम.एम.एस' बनवा के इनके दूध धुले चेहरों का 'लाईव टैलीकास्ट' करवा दूँ"


"साले!...खुदा समझते हैँ अपने आप को"....

"जिसे देखो!....वही दिल्ली की कब्र खोदने पे उतारू है"

"अब इन ब्लू लाईन वालो को ही लो...बन्दे की जान की कोई कीमत ही नहीं है इनकी नज़र में....जब चाहे रौंद डालते हैँ"


"इन साले!...ब्लू लाईन वालो की तो मैँ...."

"सुना है!...सब की सब बडे नेताओ की हैँ इसिलिए लाख इनके खिलाफ आवाज़ें उठने के बावजूद भी रौंदे चली जा रही हैँ पब्लिक को"

"मेरे हाथ में ताकत आ जाए बस एक बार...

सब के परमिट कैंसल करवा के दिल्ली से बाहर फिंकवा दूंगा कि चलो अब...यू.पी....बिहार"

"अरे!...तब तो बहुत दिक्कत हो जाएगी"....

"इतनी भीड...इतनी पब्लिक"....

"बाप रे!....


"होती रहे मेरी बला से....

कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी ज़रूरी होता है"

"इतना भी नहीं जानती?"

"तुम तो निरी बुद्धू हो...

अरे!..एक ही झटके में नहीं साफ होगा पत्ता इन 'ब्लू लाईनों' का बल्कि सिलसिलेवार ढंग से कुछ ही महीनों में सबकी बत्ती गुल कर दूंगा दिल्ली से"


"तब तक पब्लिक क्या घर बैठी रहेगी?"....

"अरी बेवाकूफ!....'कार्पोरेट सिस्टम' लागू करूगा मुम्बई के माफिक"...

"एक ही कम्पनी की दो दो हज़ार बसें होंगी कम से कम"....

"पब्लिक भी खुश...कम्पनी भी खुश और...लगे हाथों हम भी खुश"

"अब कौन हर बस से अलग अलग मंथली इकट्ठी करता फिरे?"

"हमें तो बस एक मुश्त रकम मिल जाए पूरे साल भर की तो ही जा के चैन पडे"...

"ये छुट्टी रकम का होना ना होना बेकार ही है...कब आती है कब जाती है कुछ पता ही नहीं चलता"...

"अपना!.. एक बार में ही पूरे मिल जाए तो कहीं ढंग से ठिकाने भी लगें"

"छोटे-मोटे बण्डल तो वैसे ही 'बीयर बार' बालाओं को ही खुश करने में साफ हो जाएंगे"मेरे चेहरे पे वासना चमक उठी थी


ये क्या कि...खेत का खेत जुता...फसल की फसल कटी और.....अनाज कब चूहे ले गए पता भी ना चला"


"मैँ दिखाउंगा पूरी दिल्ली को कि कैसे खेला जाता है खेल...

"कैसे सबकी नज़रें बचा लाखों करोडों के वारे-न्यारे किए जाते हैं"मेरी आँखों की शैतानी चमक सारी कहानी खुद ब्याँ कर रही थी

"कैसे हर छोटी-बडी ठेकेदारी में अपना हिस्सा फिट किया जाता है"


"सही कह रहे हो"बीवी की आँखों में भी लालच का परचम लहरा चुका था


"कैसे पुलिस और ट्रैफिक की कमाई में अपनी गोटी फिट की जाती है"...

"कैसे नौकरी जाने के साथ-साथ जेल जाने का डर दिखा बे-ईमान अफसरों से अपनी मंथली सैट की जाती है"...

"कैसे हर फैक्ट्री वाले की बैलैंस शीट के हिसाब से अपना परसैंट तय किया जाता है"...


"बातें तो तुम सारी एकदम एकूरेट कर रहे हो लेकिन.... ये साली!...सत्ता हाथ आएगी कैसे?"

"इसके लिए तो बहुत नोटों की ज़रूरत पडेगी और वो तो हैँ नहीं ना अपने पास"

"ज़्यादा उडो मत...बडी पावर पावर की बातें किए जा रहे हो...

यहाँ रिलायंस की पावर खरीदने लायक पैसे भी नहीं हैँ"बीवी बैंक की पासबुक देख निराश होते हुए बोली


"बस यही तो एक कमी रह गई....

बाकी सारा 'मास्टर प्लान' तो मुँह ज़बानी रटा पडा है हम दोनों को"मेरी आवाज़ में हताशा का पुट था

"काश!...कहीं से पैसा आ जाए इलैक्शन लडने के लिए"मैँ ठण्डी आह भरता हुआ बोला...

"बस पैसा आ जाए किसी तरह ...बाकि सब दावपेच पता है कि...

"कैसे लडा जाता है चुनाव?"...

"कैसे झटके जाते हैँ विरोधी खेमे के वोट?"...

"कैसे दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाई जाती है?"


"अरे!...बैंक से याद आया...अपने गुप्ता जी तो बैंक में ही हैँ ना"...

"पता करो!..कोई लोन-शोन का ही जुगाड बन जाए शायद"...

"आजकल तो धडाधड बाँट रहे हैँ ये बैंक वाले लोन"...

"रोज़ ही तो लोन ले लो... लोन ले कह कर सिर खा रही होती हैँ फोन पे"

"दुनिया भर की तो छम्मक छल्लो भर्ती कर रखी हैँ इन्होंने इसी खातिर"....

"एक मिनट रुको....कह मैँ अपने मोबाईल की फोन बुक खंगालने में जुट गया"

"अभी परसों ही तो फोन आया था 'रूबी' का"...

अरे वही!...बैंक वाली...और कौन?"


***राजीव तनेजा***

नोट:नैनो कार्टून और आईडिया किर्तिश भट्ट से साभार

"कोई नहीं है हीरो इनमें"

"कोई नहीं है हीरो इनमें"

***राजीव तनेजा***



गर मिल जाए सत्ता इन्हें
तोड डालें सारे नियम
रच डाले नित नए प्रपंच
तोडें कुर्सी खींचे मंच

ना पंचायत को पंच मिलेगा
ना शातिर को अब महादंड
मिलकर लूटेंगे खुलकर खाएंगे
मचाएंगे हल्ला और हुडदंग

कोई नहीं है हीरो इनमें
रहे तीनों हमेशा विलेन
अपने नेता उनके गुण्डे
और उनकी पुलिस

गढा मिल कर तीनों ने
ऐसा अजब-गज़ब त्रिकोण
फैला चहूँ ओर भर्ष्टाचार
आंतक हुआ कण-कण

पेट हैँ इनके बडे- बडे
खाल सख्त गैंडे सी मोटी
समझा है देश को अपना
जायदाद हुई ये बपौती

खुल कर वो खेलेंगे
सहमे सहमे हम झेलेंगे
वो झूठी आस जगाएंगे
हमें तिगनी नाच नचाएंगे

गद्दी के हकदार हैँ वो
लूटे खसोटे हमेशा जो
पुलिस नेता कैसे हों
गुण्डे मवाली जैसे हों

हाँ!....ऐसे हों ऐसे हों


***राजीव तनेजा***

"धीर धरो बस धीर धरो"


"धीर धरो बस धीर धरो"

***राजीव तनेजा***

चारों तरफ छाई है मुर्दंनगी
हुए सबके बुरे हाल
कैसे रोकें गिरते सूचकांक को
जीना हुआ मुहाल
कहत राजीव सुनो भई निवेशको
बेच के औने पौने में
न तुम कडवा घूंट भरो
धीर धरो बस धीर धरो

***राजीव तनेजा***


नोट:अविनाश वाचस्पति जी को समर्पित

"टीस सी दिल में सौ बार उठी है"


"टीस सी दिल में सौ बार उठी है"

***राजीव तंनेजा***

टीस सी दिल में सौ बार उठी है
साथ मेरे बेबसी मेरी चली है
जुटा रहा जोडने यहाँ वहाँ दौलत
व्यस्त रहा भोगने तमाम शोहरत

भूला हुआ था मैँ उसे
याद नहीं इक पल मुझे
कब मैँने उसे याद किया
हरि नाम का जाप किया

अंत समय जब है आया
खोकर सब यही है पाया
मिथ्या है नश्वर है
बेकार है सब जग संसार

दिल का सौदा सौदा नहीं
बना है ये खेल व्यापार
रिश्ते नाते यारी दोस्ती
सब बेमानी सब बेकार

खाली हाथ आया था मैँ
खाली हाथ है जाना मुझे
छोड कर.. तोड कर...
मुँह मोड कर...
सब रिश्ते नातों के तार

छूटता देख रूठता देख
सब तन मन धन यहीं
टीस सी दिल में सौ बार उठी है
साथ मेरे बेबसी मेरी चली है

***राजीव तनेजा***

"सर पे लटकती ये तलवार है "

"सर पे लटकती ये तलवार है "

***राजीव तनेजा***



'सेंसेक्स' की छाई बहार में
सोमवार से लेकर इतवार में
हर किसी को जब डूबे देखा...
दीन दुनिया से ऊबे देखा
कौतूहल सा भाव जाग उठा
गूढ सवाल का सरल जवाब
क्या है ये दिल माँग उठा

बाज़ार भाव देख रहे पिताजी से
जब उत्सुकतावश पूछा...
क्या होता है उतार ...
क्यूँ चढता है चढाव...
क्या होता है मुनाफा...
क्या होता है लॉस
हारे हुए जुआरिओं को
कैसे बँधाए हम आस

क्या खरीदें कितना खरीदें
कैसे करें हम सही चुनाव
बात मेरी सुन वो मंद-मंद मुस्काए
जिज्ञासा मेरी देख कर
खुशी हर्ष के बादल चेहरे पे छाए

हकीकत ए 'सेंसेक्स' उन्होंने कुछ यूँ ब्याँ कर दी...
मानो ज्ञान रूपी गंगा से झोली मेरी भर दी

'सेंसेक्स' की माया बेटा!..है अजब निराली
कर दे किसी की तिजोरी बिलकुल खाली
तो किसी की छप्पर फाड झोली भर....
ला दे बिन मौसम होली और दिवाली

'कंस्ट्रक्शन' में लगाओ ऊँचा जाएगा
'सिमेंट' में ना फँसा घाटा खाएगा
जैसे जुमले रोज़ सुनने को मिलते है
तगडे मुनाफे के फूल तो बेटा.....
यदा कदा ही खिलते हैँ

साम,दाम, दंड और भेद अपना नाजायज़
जला दिए थे हाथ हमारे उस 'हर्षद' और 'केतन' ने
भूले कैसे याद है सब दर्द सहा है कितना
छाछ को भी हमने अब फूंक फूंक कर है पीना

कोई 'रिलायंस' की 'पावर' के पीछे बडा बावला है
शायद वो पिछले घाटे पूरे करने को उतावला है
वो पिछला 'स्टाक' बेच बेच माल बटोर रहा है
'रिलायंस पावर' खरीद 'स्टॉक' का इरादा कर रहा है

जिसे देखो उसी का हाल बेहाल है...
इसी आपाधापी में सबका हुआ बुरा हाल है
ज़िन्दगी का मज़ा हुआ कब का खत्म...
ना बचा सुर ना ही बची अब ताल है

कोई हाँफ-हाँफ फोन पे हाल अपना बतिया रहा है
तो कोई कम्प्यूटर में आँख गडाए चुपचाप खिसिया रहा है
किसी की नज़र 'फाईनैंशल' अखबारों से नहीं हट रही
तो किसी की दूजे 'चैनलों' पे दो पल नहीं टिक रही...

लग गया है चश्मा बढ गया है नम्बर
उफ!...ये काम भी कितना दुश्वार है
फिर भी सभी को इसी से प्यार है
हाँ!...हरदम इसी से प्यार है

कोई 'ट्रांसफार्मर्स'. ..
तो कोई 'बी जी आर' को पा कर मुस्कुरा रहा है
कोई 'मुन्द्रा पोर्ट बेच मनचाही मुद्रा कमा रहा है
तो कोई 'स्वराज इंजन' के पिछले शेयरों पे इतरा रहा है
जिसे देखो वही सुनहरे मौके को भरपूर भुना रहा है

कूद रहे हैँ मैदान ए जंग में रोज़ाना खिलाडी नए नए
ऑफर उनके लुभावने कोई बेचे सिमेंट तो कोई बेचे पेय
कोई ढेरो मुनाफे के वायदे को पकाए बारम्बार
कोई 'फिक्स डिविडैंड' का झुनझुना थमाए लाखों बार

कोई प्यारा सज्जन बोनस पे बोनस बाँट रहा है
तो कोई रावण हक का 'डिविडैंड' भी खाए जा रहा है
कोई लंपट बरगला औने पौने में 'शेयर' हथिया रहा है
तो कोई 'बोनस' में 'शेयर' दे दे सबको लुभा रहा है

कोई ढेरों मुनाफा पा अपने में खुद मदमस्त है
तो कोई अपने अनचाहे घाटों से ही बेदम त्रस्त है
कोई लाखों कमा शुक्र ऊपरवाले का मना रहा है
तो कोई किस्मत अपनी फूटी का रोना गा गा सुना रहा है


दिन को चैन नहीं रातों को आराम नहीं
बेचैन ना हो इतना दिल को थाम यहीं
रट ले बेटा राजीव ये मूल मंत्र...
नहीं कोई जादू है ना ही कोई तंत्र
माल कमाने का बस यही असल एक है जंत्र...

'आई पी ओ' में लगाओ बहार ही बहार है
'ट्रेडिंग' के पीछे ना भागो सर पे लटकती ये तलवार है

हाँ!...सर पे लटकती ये तलवार है
हाँ!...सर पे लटकती ये तलवार है

***राजीव तनेजा***

नोट:अविनाश वाचस्पति जी को समर्पित

"क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ"

"क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ"

***राजीव तनेजा***



कैसी हो रही खेल भावना
कैसा चल रहा अजब खेल
अंधो को भी दिख रहा यहाँ
खुलेआम धांधली का घालमेल

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

ठिठुरती ठंड में सुबह उठ
मैच देखना बेकार हो गया
अंपायरों की बद करनी से
क्रिकेट बदनाम हो गया

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

सचिन सौरव और द्रविड मिल
क्रिकेट खेले जब खिल खिल
बकनर संग जो मेल किया
बिना बात सबको फेल किया

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

फीफा ने ठुकराया जिसे
क्रिकेट ने अपनाया उसे
भूलें वो बडी करता गया
सीढी दर सीढी चढता गया

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

नहीं मानवीय भूल है ये
शातिराना मंसूबी डील है ये




घबरा बाहर किया भज्जी को
नहीं कभी आई लज्जा तुमको

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

खेल भावना का नाम नहीं
कंगारू हुए बहुत मगरूर
वर्ल्ड कप नशा उतरा नही
सर चढ बोल रहा सरूर


देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

शातिराना ढंग से चाल चली
फिक्सिंग का खड्डा खुदा
पॉटिंग ने ताबूत गढा
बकनर ने मिट्टी डाली

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

शर्म करो शर्म करो कह
मीडिया ने जब दुत्कारा
आस्ट्रेलियाई मीडिया ने
भी लांछन भरपूर लगाया

देखो!.. क्रिकेट ज़िन्दा कफन हुआ
हाँ!...क्रिकेट ज़िन्दा दफन हुआ

पॉंटिंग के सपने रहे अधूरे
शर्मसार हुए कंगारू सारे
बकनर को तब बोल्ड किया
भज्जी को अब होल्ड किया

देखो!..चन्द साँसे अभी बाकी हैँ
शायद क्रिकेट अभी ज़िन्दा है

निराश है हर भारतीय
हताशा अभी बरकरार है
देखो आगे क्या होता है
सबकी यही दरकार है

हाँ!...सबकी यही दरकार है

***राजीव तनेजा***

"कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ"

"कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ"

***राजीव तनेजा***



सुप्त भावनाओं के अशांत अथाह गहरे समुद्र में
विचारों के भंवर हरदम गोते लगाने लगे हैँ
पंछी पौधे पेड नदी नाले सब मुझे भाने लगे हैँ
मैँ शब्दों को और शब्द मुझे अपनाने लगे हैँ

शायद कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ

काम धन्धा व्यापार पैसा जैसे निष्ठुर कठोर शब्द
मेरी डायरी से एक एक कर मिटने लगे हैँ
प्रेम प्यार बेवफाई जैसे शब्द रोज़ जुडने लगे हैँ
आशिक माशूका जैसे पात्र अब मुझे लुभाने लगे हैँ

शायद कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ

उल्टे सीधे आडॆ तिरछे सवालों की लप लपालप
बेतुके बेडौल विचारों के किलोल करते जमघट
वक्त बेवक़्त मुझे तिगनी का नाच नचाने लगे हैँ
शक नहीं अब तो पक्का यकीन है मुझे कि

कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ

शेर शायरी ओ नज़्म जैसे लेख रास आने लगे हैँ
गीत मेरे ब्लॉगजगत में यदाकदा मंडराने लगे हैँ
आस पडोस के बच्चे तक उन्हें गुनगुनाने लगे हैँ
मैँ उनको और वो मुझे कुछ प्यारे से लगने लगे हैँ

शायद कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ

नए विष्यों को ढूँढने तलाशने की चाह में
बोझिल कदमों को सफर अब रास आने लगे हैँ
लेखक कवि ब्लॉगिया कह लोग मुझे बुलाने लगे हैँ
इसी नाते लोग मुझे पहचानने लगे हैँ

सच...कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ

हाँ...कविता के किटाणु कुलबुलाने लगे हैँ

"अविनाश वाचस्पति जी को समर्पित"

***राजीव तनेजा***

"रिश्वतखोरी जेबें"


"रिश्वतखोरी जेबें"


***राजीव तनेजा***


"रेल पटरियों सी लम्बी
अजगर मानिंद लपलपाती
रिश्वतखोरी जेबें...
डस डस बस यही कहती हैँ
और देवें...और देवें"

***राजीव तनेजा***

"आठ चालीस की पसैंजर अभी बाकी है"

"आठ चालीस की पसैंजर अभी बाकी है"

***राजीव तनेजा***



छाया है अब नूतन हर्ष
बीत गया जो पिछला वर्ष
खाली हुए हैँ पैमाने कई
बिखरी पडी हैँ बोतलें सही
टूटा नहीं है उन्मादी नशा
सांप्रदायिक सरूर अभी बाकी है


चाँद छुप गया
सूरज सर पे है आ खडा
फिज़ा में ठिठुरती ठण्डक
माहौल में कसैली कडवाहट
लहू में खून खौलती गर्मी अभी बाकी है


पा लिया...कर दिया
भाजपामय गुजरात और हिमाचल
संपूर्ण भारत की चाह अभी बाकी है
फिरंगी पंजा दिखा मनमोह
काबू कर लिया केन्द्र
अखण्ड इंडिया की लगाम अभी बाकी है


तोड के सारे कायदे औ नियम
लगा कर आपातकाल
बुझा दिया चिराग ए बेनज़ीर
चाहत ए कत्लेआम अभी बाकी है


खा ली कई बार मुँह की
क्या चाहत ए कश्मीर अभी बाकी है


गाय भैंस बन खा के भूसा
हज़म कर लिया चारा
लूट खसोट कर बिहार
कहते हैँ पेट अभी खाली है
अरे!..अरे...
रेलवे तो अभी बाकी है


कडी मेहनत बुलन्द हौसला कर
बन लिए विकासशील
विकसित हो अग्रिम पंक्ति में अब
खडॆ होने की तमन्ना अभी बाकी है


जीत के टवैंटी-टवैंटी
बटोर के सतही वाहावाही
अरे!...
वर्ल्ड कप के सपने छोडो
कंगारुओं पे जीत अभी काफी है


हैराँ परेशाँ न हो ए सलमान
संगीता सोमी...
ऐश को देख लिया तो क्या
कैटरीना की चाह अभी बाकी है


अमर संग कर के दर्शन
टेक के मत्था
पूरी हुई मुरादें सारी
अभी बस क्यों करते हो
बिग बी....
चार धाम तो अभी बाकी है


देखी मुलायम की मुलायमियत
मायावती की कसरें अभी बाकी है
भर-भर तिजोरियाँ
खोल दिए बेनामी खाते
कहते हैँ दोनों
देखो हमारे दोनों हाथ तो खाली हैँ


शायद....
आवाम में समझ अभी बाकी है
हाँ!....
आवाम में समझ अभी बाकी है


सीलिंग डिमालिशन कर
उजाड दिए घर-व्यापार
उफ!...शीला...
पैरिस बना दिल्ली सजा
खेल कराने की चाह अभी बाकी है


देख लिया सह लिया
टेलीफोन से नैट
ब्रॉडबैंड की चाह अभी बाकी है
पा लिया बहुत कुछ
सब कुछ पाने की चाह
अभी बाकी है


बहुत हो ली
ऐश ओ आराम भरी ज़िन्दगी
उठ ले बेटा राजीव
डॆली पैसैंजरी अभी बाकी है
क्या हुआ जो हिमालयन छूट गई
परेशाँ न हो
आठ चालीस की पैसैंजर अभी बाकी है

***राजीव तनेजा***

"सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे"




"सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे "


***राजीव तनेजा***

करास्तानी कुछ बेशर्मों की
शर्मसार है पूरा इंडिया
अपने में मग्न बेखबर हो
वीणा तार झनकाऊँ कैसे

नव वर्ष की है पूर्व सन्ध्या
नाच नाच कमर मटकाऊँ कैसे

ह्रदयविदारक द्र्श्य देख बार बार
मीडिया की कमर थपथपाऊँ कैसे
झूठे नकली स्टिंग ऑप्रेशन देख
स्वच्छ मीडिया के गुण गाऊँ कैसे

बगल में कत्ल होता लोकतंत्र
सपुर्द ए खाक होती बेनज़ीर देख
दुखी हूँ भयभीत हूँ लाचार हूँ
जग जहाँ को बतलाऊँ कैसे

नन्दी ग्राम जलते देख
चीतकार करते मन को समझाऊँ कैसे
नतीजन...एकजुट हो
समर्थन में लाल झण्डे के हाथ उठाऊँ कैसे

करुणानिधी और बुद्धदेव की कथनी देख
तडपते दिल को समझाऊँ कैसे
राम सेतू रूपी आस्था को टूटता देख
गुजरात हिमाचल विजयी बिगुल बजाऊँ कैसे

अपने देश में अपनों से
अपनों को ही मिटता देख
मैँ खुश हो खुशी के गीत गाऊँ कैसे

हिन्दी हूँ मैँ वतन है हिन्दोस्ताँ मेरा
निष्ठा पे अपनी प्रश्न चिन्ह लगवाऊँ कैसे

लम्बा है सफर कठिन है डगर
अपनों के बीच स्वदेश में
सरेआम खुलेआम
सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे

***राजीव तनेजा***
 
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