राजनैतिक तुकबन्दियाँ

करारी मात के बाद....अब क्या करेगी कांग्रेस
दुम दबा मुँह छुपाएगी या..हालात करेगी फेस

सुना था किसी विज्ञापन में कि....चीता भी पीता है
केजरीवाल मगर देखो...बिना खाए पिए ही जीता है

अपनी इज्ज़त.............................अपने हाथ
आप को नहीं चाहिए..कांग्रेस-भाजपा का साथ

ना भाजपा से दोस्ती..ना कांग्रेस से यारी
अपनी इज्ज़त.................आप को प्यारी

ख़ुशी बढ़ कर इससे और बताओ..क्या होगी
जब दिल्ली में झाडू और केंद्र में होगा मोदी

दिल्ली में झाडू..........केंद्र में मोदी
नहीं बैठना..गन्दी कांग्रेस की गोदी

साथ अन्ना और किरण का भी होता..तो नज़ारा कुछ और होता
सरकार आसानी से अपनी बनती.........मन में नाचता मोर होता

जोश..जोश में जोश दिला दिया.........अब पछता रहे हैं
सुना है..अगले बरस..संसद में भी..आप वाले आ रहे हैं

ना डरेंगे......ना सह्मेंगे और.......ना ही शरमाएंगे
झाडू अपने से..साफ़ हम दिल्ली..कर के दिखाएँगे

कुछ बदल दिया.................कुछ बदल कर दिखाएँगे
सही से काम किया अगर..सब आप को ही जिताएंगे

एक झटका और.....उड़ी चारों गिल्ली
खम्बा अब नोचेगी..इटैलियन बिल्ली

हाउ स्टुपिड................हाउ सिल्ली
कटखनी बिल्ली से..दूर हुई दिल्ली

हो गयी ना अब दूर तुमसे........दिल्ली
और दिखाओ आम आदमी को..तिल्ली

गुजरात......मध्यप्रदेश.......छत्तीसगढ़ और दिल्ली
हर जगह कांग्रेस ही दिख रही..जैसे भीगी बिल्ली

कर्मों से अपने.........अपनी कीमत खुद घटा दी
देख लो..नयी नवेली पार्टी ने..कैसे धुल चटा दी

देश में मोदी..दिल्ली में..केजरीवाल
दोनों बढ़िया......भारत माँ के लाल

कहा था कभी गुरूर से मद में चूर हो उसने...जो महंगे बिजली के बिल नहीं भर सकते...वो दिल्ली छोड़ दें
अरे..आम आदमी की ताकत को नहीं पहचान पाए ना..मौका मिले अगर..वो तो आँधियों के रुख भी मोड़ दें

सिल ना पाया बेशक..सूट मुख्यमंत्री के नाप का
धन्यवाद फिर भी मगर.....आप करेगी....आपका

चुनाव नतीजों के बाद...........शीला को कमेन्ट मिला..मिला एकदम फाडू
जब नौकरानी ने कहा..मैं तो काम छोड़ जा रही..लो..संभालो अपना झाड़ू 

राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...



 सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !

मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 


आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !
 
 



 यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :-

सेवा में,
अखिलेश यादव, 

माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 
प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।
2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।
31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।

2. मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।
3. भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।
वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।
जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।
भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।
भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।
खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।

2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।

3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

5.सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.
हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक

चक्रव्यूह फेसबुक का

***राजीव तनेजा***

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फेसबुकिया नशा ऐसा नशा है कि एक बार इसकी लत लग गई तो समझो लग गयी...बंदा बावलों की तरह बार बार टपक पड़ता है इसकी साईट पर कि..."जा के देखूँ तो सही मुझे कितने लाईक और कितने कमेन्ट मिले हैं?"...


"अरे!...तुझे क्या लड्डू लेने हैं इन लाईक्स और कमैंट्स से जो बार बार फुदक कर पहुँच जाता है फिर से उसी नामुराद ठिकाने पे?"....

 

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"क्या कहा?....दिल नहीं मानता?"....


"हुंह!...दिल नहीं मानता....अरे!...अगर दिल की सुनने का इतना ही शौक है तो क्यों नहीं सुनी तब अपने दिल की जब वो लम्बू का छोरा..हाँ-हाँ...वही (अभिषेक का बच्चा और कौन?) तेरी एश्वर्या को ब्याह के अपने बंगले पर ले गया?"...


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"म्म्म...दरअसल....


"तब क्यों नहीं सुनी अपने दिल की जब कसाब को बीच चौराहे पे फाँसी लगाने को तेरा मन करता था?"....


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"व्व्व...वो दरअसल ब्बात य्य्य....ये है कि...


"मैं पूछता हूँ...तब क्यों नहीं सुनी दिल की जब वो 'ओवैसी' का बच्चा 'यूट्यूब' पे पूरे देश को खुलेआम....बीच चौराहे....चुनौती दे रहा था?"....


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"वव.....वो दरअसल बात ऐसी थी कि.....


"बस्स!...निकल गयी सारी हवा?....फुर्र हो गयी सारी हेकड़ी?...बात करेंगे".....


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"छोड़ो...रहने दो....सब बेकार के ड्रामे हैं कि...एक बार बन जाने के बाद एकाउंट क्लोज नहीं कर सकते....सिर्फ डीएक्टीवेट कर सकते हैं"....


"जी!....


"अरे!...काहे नहीं कर सकते हैं?...बाप का राज़ है क्या?"....


"ब्बाप....का नहीं...'ज़ुकरबर्ग' का"....


"क्क...क्या कहा?...कौन से 'शतुरमुर्ग' का?".


"शतुरमुर्ग नहीं...'ज़ुकरबर्ग'"....


"अरे!...क्या फर्क पड़ता है...'शतुरमुर्ग' हो या 'ज़ुकरबर्ग'...है तो बर्ग ही ना.....ससुरे को कच्चा चबा जाओ...बिना टिक्की वाला सूखा...सडकछाप बर्गर समझ के"....


"अच्छा!...एक बात बताओ"....


"जी!....


"क्या वाकयी में...एक बार बन जाने के बाद फेसबुक एकाउंट को बन्द नहीं किया जा सकता?"...


"जी!...नहीं किया जा सकता?"....


"कोई जबरदस्ती है का?"...


"कुछ ऐसा ही समझ लें"...


"नहीं!...मैं नहीं मानता...कोई ना कोई तो तोड़ ज़रूर होगा इस बात का"....


"प्प...पता नहीं".....


"मुझे पता है"....


"क्या?"...


"इस 'ज़ुकरर्बर्गीय' जोड़ का तोड़"


"वो क्या?"...


"यही कि कैसे किसी के फेसबुकिये खाते को चक्रव्यूह में बाँधा जाए कि बंदा लाख चाहने के बावजूद भी अपने ही खाते को ना खोल सकते"...


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"नामुमकिन...ऐसा कभी नहीं हो सकता"...


"हो सकता है बेटे लाल...हो सकता है...बस दिमाग थोड़ा खुराफाती होना चाहिए"...


"वो कैसे?"...


"वो ऐसे मेरे लाल कि...कोई मरीज़ भला खुद...अपनी मर्ज़ी से अपना इलाज करवाने के लिए खुशी खुशी कहाँ राजी होता है?"...


"जी!...


"अब कोई खुद तो अपना फेसबुक एकाउंट तो डीएक्टीवेट करेगा नहीं और परमानैंटली वो डिलीट हो नहीं सकता"....


"जी!....


"इसलिए किसी भी एकाउंट को नाकारा करने के मेरा फेसबुकिया कायदा तो यही कहता है कि किसी और व्यक्ति (उसका भरोसेमंद होना कतई ज़रुरी नहीं है) को अपना फेसबुक पासवर्ड बता कर उससे पासवर्ड बदलवाया जाए और

फिर बिना सोचे समझे ..आँखें मूंद कर (अपनी नहीं बल्कि उसकी)उस व्यक्ति को तड से गोली मार दी जाए"...

 

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"क्क...क्या?".....

***राजीव तनेजा***
http://hansteraho.com
rajivtaneja2004@gmail.com

+919810821361
+919213766753

FM Rainbow पर मेरी कविता ‘दिल से दिल तक' कार्यक्रम में

 

तुकबंदियां मेरे मन की -4

रात कह रही है चुपके से…कानों में मेरे
सो जा चुपचाप…बहुत हो लिए ड्रामे तेरे

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अन्ना रामदेव कर रहे....दिल्ली में मंथन
हाथ लगेगा कुछ या..रह जाएँगे ठन ठन

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भंग और छंग की...तरंग में
कूदें..बिना कपड़ों के जंग में

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इश्क अंधा....भला कहाँ सुनता किसी की
जिसकी होती जीत...बजती तूती उसी की

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मुद्दा ए इश्क.............मैं सुलझाऊँ कैसे
बाप उसका साथ खड़ा...पास जाऊँ कैसे

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अढाई आखर.....……............इश्क के
कैसे बोलूँ मैं..बिना किसी रिस्क के

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मैल मन का मेरे........…....कभी साफ हुआ ही नहीं
कैसे कह दूँ कि ये बात झूठी नहीं...सच में है..सही

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जिंदगी अभी तुझे समझने की मुझे..........फ़ुर्सत कहाँ
फुर्सत निकाल भी लूँ तो समझ पाऊँ..ऐसी जुर्रत कहाँ

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कभी दिन जैसी.....खुशनुमा थी मेरी रातें
बची अब उनमें कहाँ..वो पहले जैसी बातें

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मुझे प्यार करो या मुझसे नफ़रत करो
प्लीज़!...…......तुम कोई तो हरकत करो

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इश्क नहीं है मुझे तुझसे...ना ही तेरी किसी बात से
बस!...मुझे गुस्सा आ जाता है….अपनी इसी बात से

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छटी हुई मेरी छठी इंद्री…....दिखा रही मुझे तुझमें खूबियाँ कुछ
फिर सोच क्या रही..तब अपनाएगी..जब लुट जाएगा सब कुछ

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तेरी मदमस्त.....बाहों के दरमियाँ
आ..ढूँढें तुझमें कितनी हैं कमियाँ

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इल्म नहीं था इतनी जल्दी खत्म..फसाने हो जायेंगे
मुझको फँसाने पिंजरा ले....आशिक नए..चले आएँगे

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आज तलक शायद किसी से मुझे.....मोहब्बत नहीं हुई
ऐसे ही बेकार में उछल उछल कर करता रहा..हुई...हुई

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अगर तेरे दिल के सन्नाटे को..मैं समझ पाता
तो माँ कसम..तेरे धोरे कदी ना फिर..मैं आता

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दाढी इश्क की..मैं खुजाऊँ कैसे
माशूका रूठ गयी..मनाऊँ कैसे

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हमारा भारत था...है और रहेगा महान
हम जो हैं लुच्चे...लफंगे और बेईमान

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तुझसे मोहब्बत..मुझसे वफ़ा
ठीक नहीं ये...कर इसे दफा

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व्यथा सुन मुझसे तू….उस नेक बुढिया की
भरी जवानी में जो कभी..चालू चिड़िया थी 

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अंजाम जानते जो अगर.….....बेवफाई का
ख्याल दिल में नहीं लाते..दूजी लुगाई का

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पीठ पीछे बीवी की.......……….........हमने किया तो क्या किया
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा..सर पे फूटेगा कद्दू या फिर..घिया
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तुकबंदियां मेरे मन की- 3

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एक कटता पेड़ बचा.....आज मैंने धरती का क़र्ज़ चुकाया है
पड़ोसी मकान ना बना सके..रिपोर्ट कर तभी उसे फँसाया है 

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कट जाएगा जिंदगी का बचा खुचा सफर सुकुन से
बस!.................डरा मत तू मुझे….सख्त क़ानून से

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चैन मेरा हर पल...…...छिनता रहा
वो दाग दामन पे मेरे..गिनता रहा

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‎तेरे चन्द कदमो की आहट......मुझे संजीदा करती है
किसकी मानूँ....बाकियों की आहट बेपरवाह करती है

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तुम्हारे ख्याल में.....इतना हलकान हुआ हूँ
शाही बंगला छोड़..दुमंजिला मकान हुआ हूँ

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रूप हजारों इश्क के.....बच के रहें इनसे आप
जाने कब भड़क खड़ी हो..माशूका अपने आप

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तुम्हारे लब पे हँसी बन के रहूँ.....ये वादा है मेरा
पर महंगाई के चक्कर में..पूरा नहीं..आधा है मेरा
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जब कोई रस्ता न सूझे.....................तुम मेरा बस नाम लेना
मार मार लोग रस्ता समझा देंगे..तुम बस अक्ल से काम लेना

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तुम्हारी तकदीर से हम जुड गये
मुसीबत देखी.....वापिस मुड गए

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समझ आया ये मुझे..….....बहुत देर में
कुछ नहीं धरा है...निन्यानवे के फेर में

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अजीब मुसीबत है................जी तो बहुत चाहता है कि सच बोलें
मगर दिमाग कहता है कि कौन से लड्डू मिलने हैं..हम क्यूँ बोलें

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सैम्पल तिवारी के ने उफ्फ...ये क्या कर दिया
तिवारी को ही सैम्पल देने पे मजबूर कर दिया
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कवाब में हड्डी सा लगे है...ये बेशर्म
उठा के रखो तवे पे और..कर दो गर्म

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अन्ना......रामदेव और मुझमें बताओ..कुछ क्यों नहीं नाता है
वो दोनों चिर कुंवारे और मुण्डा ये पन्द्रह साल से ब्याहता है

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ख्वाहिशों का काफिला भी कितना अजीब है
जितना चाहे जी भर लूटो..ना होता गरीब है

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प्रेम ही एक दिन........अंत कर देता है प्रेम का
ऐसे भी कभी होता है अंत..इत्ते अच्छे गेम का

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तुकबंदियां मेरे मन की–2

कुछ लोग महान पैदा होते हैं.........कुछ पर महानता थोप दी जाती है
कुछ चाकुओं से खेलते हैं और…कुछ को जबरन सौंप..तोप दी जाती है

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अजीब रिश्ता है मेरा तुमसे और......…...........तन्हाई से
दिन में झिझक और..रात में प्यार तुम्हारी बेहय्याई से

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जिन्दगी के रंगों ने रोक लिया कदम
वर्ना चलते हम अभी और दस कदम

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मेरी फितरत में नहीं.......…....अपना गम बयां करना
ज़बान अगर खुद फिसल जाए तो..हमको क्या करना

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तेरी हर आहट पे मैं..उफ्फ उफ्फ करता हूँ
बरतन मांजते मांजते....पानी भी भरता हूँ

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बता मुझे ए ज़ालिम......कैसे कोई तुझसे प्यार करे
ए कुल्फी..खा के तुझे कोई खुद को क्यूँ बीमार करे

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जिन्दगी.......मिले ना मिले दोबारा
आ के साफ़ तो कर जाओ चौबारा

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अक्ल से काम ले.…......मत कर गलतियाँ…..........दुःख होता है
गलतियाँ कर कर तू सीख जाएगा..इसी बात का दुःख होता है

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काहे का गम..ज़िन्दगी नहीँ है कम
खोलो ढक्कन.........…......पिओ रम

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माना कि आज की रात ज़रा काली और.......................लंबी है
तुझे क्या फरक पड़ता इससे..नाखून तेरे लम्बे..ऊपर से गंजी है

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अपनों ने दी जितनी ही मुश्किलें राह उतनी ही आसान सी लगी
भय्यी….बात ये मुझे कुछ जंची नहीं………..महज़ भाषण सी लगी

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तेरी रूह से उसकी रूह का.........अगर होना ही था मिलन
तो चार सौ किलोमीटर दूर से..मुझे क्यों बुलाया था बेशर्म

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नन्हा सा मन मेरा.……………......सपना देखे खास
तीर्थ यात्रा जाए..फिर वापिस ना आए मेरी सास

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कोई रोने को तरसता है और किसी को रोने से फुरसत नहीं
खुशनसीब है मेरा नसीब.....खाते में इसके ऐसी ग़ुरबत नहीं

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जीने का मेरा अंदाज़..….......निराला है
हाथों में माईक और..होंठों पे ताला है

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परवाह नहीं मुझे अपने आदर्शों..........…...............अपने उसूलों की
तोड़ने से खुद को रोकूँ कैसे..बड़ी कमी है यहाँ दिल्ली में..फूलों की

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तुकबंदियां मेरे मन की- 1

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बिसात इश्क की आज फिर.......................मैंने बिछा दी
भाइयों ने उसके रोली चन्दन के साथ अर्थी मेरी सजा दी

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मर के नाम रौशन किया.....तो क्या किया
जिन्दगी भर तरसते रहे..बुढ़ापे में घी पिया

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सत्ता पे काबिज.........आज मैं हो तो लूँ
रुको...पहले हाथ..मुँह..पैर सब धो तो लूँ

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हिल गई सत्ता........सत्ता के गलियारों की
पौ बारह फिर बन आई निपट घसियारों की

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जश्न ए चराग....पहले तुम रौशन तो करो
फिर ईमानदारी से बिल भरो या..चोरी करो

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बदलना खुद को था लेकिन.....उम्मीदें उससे पाले था
दिमाग मेरा खराब लेकिन ढूँढता उसके यहाँ जाले था

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angry-wife

अजीब रिश्ता है मेरा आजकल...............तेरी माँ से
कभी प्यार आता..कभी डर लगता उसकी काँ काँ से

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ना मुझे साहित्य का ज्ञान..ना मैं साहित्य रच रहा हूँ
शायद..लिख तो कुछ रहा हूँ पर..कहने से बच रहा हूँ

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अजीब रिश्ता है मेरा आजकल ...............भूख से
कभी मिल जाती है..कभी काम चलाता हूँ थूक से

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भूख से मरुँ मैं या अपनी नीतियों से सरकार मारे
कोई तो आ के..एहसान करे...............मुझको तारे

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