मून गेट - पूनम अहमद


ऊपरी तौर पर ईश्वर ने सभी मनुष्यों (स्त्री-पुरुष) को एक समान शक्तियाँ तो दी हैं मगर गुण-अवगुण सभी में अलग-अलग प्रदान किए। गौर करने पर हम पाते हैं कि जहाँ एक तरफ़ कोई मनुष्य दया..मानवता..मोह..ममता से ओतप्रोत दिखाई देता है तो वहीं दूसरी तरफ़ कोई अन्य मनुष्य लोभ..लालच..स्वार्थ..घमंड इत्यादि से भरा नज़र आता है। यह गुण या अवगुण स्त्री-पुरुष रूप में समान रूप से पाया जाता है। 

आमतौर पर महिलाओं को उनके मृदभाषी स्वभाव एवं दया..ममता के मानवीय गुणों की वजह से जाना जाता है लेकिन ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है जिन्होंने समाज की इन तथाकथित मान्यताओं को धता बताते हुए अपने हितों..अपनी इच्छाओं को ही सर्वोपरि रखा। 

दोस्तों..आज मैं ऐसी ही कुछ स्त्रियों को केंद्रीय भूमिका में रख  प्रसिद्ध लेखिका पूनम अहमद के 'मून गेट' के नाम से लिखे गए एक कहानी संकलन की बात करने जा रहा है। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाली पूनम अहमद जी अब तक 550 से ज़्यादा कहानियाँ और विभिन्न विषयों पर आधारित दो सौ से ज़्यादा लेख लिख चुकी हैं।

इस संकलन की कहानियों में कहीं एक ऐसी स्वावलंबी स्त्री नज़र आती है जिसका मकसद ही अपनी खूबसूरती और जवानी के बल पर ऐश करना है। तो कहीं किसी ऐसी युवती से भी पाठक रूबरू होते नज़र आते हैं जो अपने हित साधने के लिए बात-बात पर झूठ बोलने से भी नहीं चूकती है। 

इसी संकलन की एक कहानी छोटे शहर से मुंबई आ कर प्राइवेट दफ़्तर में काम करने वाली तेज़तर्रार एवं खूबसूरत मोही की बात करती दिखाई देती है। उस मोही की, जिसका मकसद ही अपनी खूबसूरती और दिलकश अदाओं के बल पर अमीर युवकों को फाँस ऐशोआराम की ज़िन्दगी बसर करना है। एक पार्टी में मोही की मुलाक़ात शातिर प्रवृत्ति के हैंडसम हंक, देव चौधरी से होती है जिसका मकसद ही खूबसूरत लड़कियों के साथ ऐश करने के बाद मन भर जाने पर उन्हें छोड़ देने का है। ऐसे में जब एक जैसे दो शातिर व्यक्ति आपस में टकराते हैं तो देखने वाली बात यह है कि इन दोनों में से कौन अपने मकसद में सफल हो पाता है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में पलाश के घर और उसके परिवार के सदस्यों के बीच उनकी होने वाली बहू के रूप में अपनी पैठ बना चुकी उस, पलाश से उम्र में बड़ी, अनीशा की बात करती दिखाई देती है। जो हर तरह से उस परिवार के सदस्यों के बीच इस हद तक घुलमिल चुकी है कि वे सब भी उसे अपने परिवार का ही एक अंग मानने लगे हैं। ऐसे में जब अनीशा की कही हर बात बारी-बारी से झूठ साबित होने लगती है तो सब चौंक जाते हैं। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी बैंगलोर में अकेले रह कर नौकरी कर रही अमीर घर की दो बहनों इरा और नीरा में से जब इरा बिना किसी को बताए अचानक ग़ायब हो जाती है तो सभी दोस्त और परेशान हो उठते हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठ खड़ा होता है कि क्या इरा कभी वापिस लौट पाएगी अथवा कहीं वह किसी धोखे..षड़यंत्र या किसी किस्म के बहकावे का शिकार तो नहीं हो गयी? 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी आमोदिनी नाम की उस युवती के महिला और फिर महिला से प्रौढ़ा बनने तक के सफ़र की कहानी कहती नज़र आती है जिसने अपनी इच्छाओं के आगे परिवार और समाज की बिलकुल भी परवाह नहीं की और अपने जीवन को अपनी मर्ज़ी से खुल कर जिया। 

बतौर एक सजग पाठक एवं स्वयं भी एक लेखक होने के नाते मुझे इस संकलन की उत्सुकता जगाती कहानियों के अंत प्रभावित करने में थोड़े असफल रहे। तेज़ रफ़्तार से चलती दिलचस्प कहानी  'मोही' को जहाँ एक तरफ़ आसान सा अंत दे कर सस्ते में समाप्त कर दिया गया। तो वहीं दूसरी तरफ़ 'वो झूठी' कहानी अच्छी शुरुआती पकड़ के बाद शिथिल पड़ती दिखाई दी और अव्वल आते-आते अपने ढीले क्लाइमैक्स की वजह से मात्र औसत ही रह गयी।

 इसी तरह इस संकलन की शीर्षक कहानी 'मून गेट' भी तगड़ी हाइप क्रिएट करने के बाद मुझे बिना किसी सार्थक अंत के के अचानक समाप्त कर दी गयी जैसी लगी। साथ ही इस संकलन की अंतिम कहानी 'आमोदिनी' में कहीं-कहीं दार्शनिकता भरा ज्ञान खामख्वाह उड़ेला जाता दिखाई दिया। उम्मीद की जानी चाहिए कि लेखिका इस तरफ़ तवज्जो देंगी।
 
प्रूफरीडिंग की कमी के रूप में पेज नंबर 114 में लिखा दिखाई दिया कि..

'इरा को डर था कि कहीं पुलिस के लोग देख कर इरा कहीं और गायब ना हो जाए इसलिए उसने फैसला किया कि वह खुद उधर जाएगी और और उसे ढूँढ निकालेगी'

यहाँ 'इरा को डर था' की जगह 'नीरा को डर था' आएगा। साथ ही इसी वाक्य के अंत में ग़लती से दो बार 'और' शब्द छप गया है जबकि ज़रूरत एक की ही थी। 

हालांकि सहज..सरल एवं धारा प्रवाह शैली में लिखा गया यह कहानी संकलन मुझे लेखिका की तरफ़ से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इसके 165 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है साहित्य विमर्श प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 195/ रुपए। जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं। 

दिसंबर संजोग - आभा श्रीवास्तव

वैसे अगर देखा जाए तो हमारे आसपास के माहौल में इतनी कहानियाँ अपने किसी न किसी रूप में मौजूद रह इधर-उधर विचरती रहती है। जिन्हें ज़रूरत होती है पारखी नज़र..सुघड़ हाथों एवं परिपक्व सोच की, जो उन्हें किसी कहानी या उपन्यास का मुकम्मल जामा या फिर कोई छोटा सा हिस्सा ही बना सजा..संवार कर उभार सके।

आँखों के ऑपरेशन की वजह से लगभग 15 दिनों तक किताबों से दूरी के बाद ऐसे ही जिस उम्दा कहानी संकलन को पढ़ने का मौका मिला, उसे 'दिसंबर संजोग' के नाम से लिखा है प्रसिद्ध लेखिका आभा श्रीवास्तव ने। 650 से ज़्यादा रचनाएँ लिख चुकी आभा श्रीवास्तव जी अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। 

धारा प्रवाह शैली में लिखी गयी इस संकलन की कहानियों में कहीं ज़िंदादिल स्वभाव की खूबसूरत प्रिया बनर्जी का अपने सगे मामा के दिलफैंक फौजी बेटे से प्रेम के बाद विवाह तो हो जाता है मगर कुछ ही महीनों के बाद वो एक विधवा के रूप में अपने मायके वापिस लौट आती है। इसके बाद कॉलेज में लैक्चरार लग चुकी प्रिया का अपने से कम उम्र के स्टूडेंट के अफ़ेयर होने के बाद विवाह तो हो जाता है मगर..

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में तीन बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी रत्ना के ब्याह की तैयारियों में जुटे उसके गरीब माँ-बाप उस वक्त चिंता मुक्त नज़र आने लगते हैं जब ब्याह से एन पहले बुखार की वजह से रत्ना की मृत्यु हो जाती है कि अब उसके दहेज के लिए सहेजा गया सामान छोटी बेटी के दहेज में काम आ जाएगा।  

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ जब तीन खूबसूरत एवं गुणी बहनों में से दो बहनें अपने विवाह के पश्चात लड़का पैदा ना कर पाने की वजह से उपेक्षा/ कमज़ोरीवश मर जाती हैं तो सबसे छोटी बहन पूरी ज़िंदगी विवाह न करने के अपने फैसले पर अडिग हो जाती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में आँधी तूफ़ान से भरी अँधेरी रात में शहर के नामी गिरामी डॉक्टर श्रीवास्तव को एक बूढ़ा व्यक्ति बेहद गिड़गिड़ा कर मरणासन्न हालात में पड़ी अपनी बेटी का इलाज करने के लिए अपने साथ चलने के लिए राज़ी कर लेता है मगर वहाँ पहुँचने पर पता चलता है कि असल कहानी तो कुछ और ही है। 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ सब कुछ जानते समझते हुए भी अमीर घर के कैसेनोवा प्रवृति के गौतम का विवाह, उसकी माँ खूबसूरत दिव्या से कर देती है मगर किसी एक खूँटे से बँध कर रहना गौतम को मंज़ूर नहीं। अपनी गर्भवती पत्नी का त्याग कर गौतम के हमेशा-हमेशा के लिए घर छोड़ कर चले जाने पर गौतम की माँ पछतावे स्वरूप बुरी तरह से टूट कर डिप्रेशन में आ चुकी दिव्या के लिए संबल बनती है। ठीक होने के बाद गौतम की माँ उसका विवाह डॉ. शशांक से करवा देती है। ऐसे में क्या दिव्या, गौतम के साथ गुज़रे  लम्हों और पुरानी बातों को भूल नए सिरे..नयी शुरुआत कर पाएगी? तो वहीं एक अन्य कहानी में बिना अपनी किसी ग़लती के शोभा को अपने ही घर में अपने परिवार से इस हद तक उपेक्षित जीवन जीना पड़ा कि माता-पिता की उदासीनता के चलते अपनी पसन्द के लड़के से विवाह करने पर उसके लिए घर के दरवाजे हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं। अब पिता की मृत्यु के बाद असहाय हो चुकी माँ शोभा से उसे अपने साथ..अपने घर बाकी की बची ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए ले जाने की गुहार लगा रही है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी विवाह के छह महीनों बाद ही विधवा हो चुकी उस कल्याणी की बात करती दिखाई देती है। जिसके पड़ोस में रहने वाली भाभी के घर में उनका भाई, अमोल आ कर ठहरा हुआ है। शुरुआती परिचय के बाद कल्याणी के मन में अमोल के प्रति कुछ कोमल भावनाएँ जन्म लेने को होती हैं कि इतने में अमोल का रिश्ता कहीं और तय हो जाता है। क्या कल्याणी कभी अपनी भावनाएँ अमोल के समक्ष व्यक्त कर पाएगी अथवा मूक रह कर अपने मन की बात को मन में ही दबा रहने देगी? 

इसी संकलन की एक अन्य कहानी अधेड़ उम्र के अच्युत और कमसिन अरुंधति की बेमेल जोड़ी के बहाने से इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि समय के साथ जीव-निर्जीव में बदलाव तो हो कर ही रहते हैं। इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ दबंग जेठानी बन कर कोई औरत अपनी देवरानी के जीवन को नर्क बनाती दिखाई डेट तो वहीं दूसरी ओर कर्कश सास बन कर अपने दब्बू बेटे का जीवन भी तबाह करती नज़र आती है। लेकिन यह भी तो सच का ना कि अपने कर्मों का हिसाब हमें यहीं..इसी जन्म में भुगतना पड़ता है। 

कुछ एक जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त कुछ एक स्थानों पर मुझे प्रूफरीडिंग की कमियां भी दिखाएं दी जैसे कि..

पेज नंबर 60 में लिखा दिखाई दिया कि..

'उसी पार्टी में सुनयना को एक और बात पता चली कि सुनयना के साथ गौतम की गहरी दोस्ती थी'

यहाँ 'सुनयना' को नहीं बल्कि 'दिव्या' को पता चलता है कि 'सुनयना के साथ गौतम की गहरी दोस्ती थी' इसलिए सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

' उसी पार्टी में दिव्या को एक और बात पता चली कि सुनयना के साथ गौतम की गहरी दोस्ती थी'

इसी तरह पेज नंबर 61 में एक जगह लिखा है लिखा दिखाई दिया कि..

'मिस फ्रेशर का खिताब जीतने के बाद जब पहले सेमेस्टर में उसके सर्वाधिक अंक आए तो उसने 'ब्यूटी विद ब्रेन' की उक्ति को सार्थक कर दिया था।
 
लेकिन इसी पैराग्राफ में इसके बाद एक और पंक्ति लिखी हुई दिखाई दी जो पहली पंक्ति को ही काटती नज़र आयी कि..

'स्कूल से कॉलेज तक वह पढ़ाई के अलावा हर गतिविधि कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी'
जो कि सही नहीं है। अतः सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'स्कूल से कॉलेज तक वह पढ़ाई के साथ-साथ हर गतिविधि, कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी'

हालांकि 148 पृष्ठीय यह उम्दा कहानी संकलन मुझे लेखिका की तरफ़ से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इसके पेपरबैक संस्करण को छापा है सन्मति पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 160 /- जोकि कंटेंट एवं क्वालिटी के हिसाब से जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
 
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