उंगलियाँ - मेघ राठी
मृत्य के बाद के जीवन को लेकर विभिन्न लोगों के बीच भिन्न-भिन्न मत या भ्रांतियाँ हैं। कुछ का कहना है कि मृत्यु की प्राप्ति अगर शांतिपूर्वक ढंग से ना हुई हो या मरते वक्त कोई अथवा कुछ इच्छाएँ अधूरी रह जाएँ तो आत्मा/रूह
को मुक्ति नहीं मिल पाती है और वो तब तक इस संसार में भटकती रहती हैं जब तक कि उनकी वे मनवांछित इच्छाएँ पूरी नहीं हो जाती।
इन्हीं भटकती आत्माओं के डर के आगे बहुतों ने भयभीत हो घुटने टेक दिए तो इनसे निजात दिलाने के नाम पर कईयों ने तंत्र-मंत्र के ज़रिए इन आत्माओं साधने का दावा किया तो किसी ने झाड़-फूँक के ज़रिए इन पर काबू पाने के उपाय बता इस काम को अपनी कमाई का ज़रिया बना लिया तो किसी ने समाज सेवा के नाम पर इस काम को बिना किसी लालच के करना शुरू किया।
दोस्तों...आज भूत-प्रेत और आत्माओं से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं इसी विषय पर आधारित एक ऐसे उपन्यास का यहाँ जिक्र करने जा रहा हूँ जिसे "उंगलियाँ" के नाम से लिखा है मेघा राठी ने।
इस उपन्यास की मूल में कहानी है उस कमल की जो मिहिर से अपने ब्याह के बाद उसके साथ रहने के लिए पहली बार उस शहर में आयी है जहाँ उसके पति की नौकरी है। पहली रात से ही उनके साथ कुछ ऐसी अप्रत्याशित घटनाएँ घटने लगती हैं कि वे घबरा जाते हैं। अनिष्ट की आशंका से डरे हुए दंपत्ति के घर अनुष्ठान के लिए आया पंडित घर में हो रही असामान्य घटनाओं का कारण प्रेतबाधा बताता है। जिससे मुक्ति के सफ़र में उनकी मुलाकात एक अन्य तंत्र साधक लड़की से होती है जिसके द्वारा वे अपनी समस्या के समाधान के लिए उसके गुरूजी से मिलते हैं। जो तांत्रिक क्रियाओं के ज़रिए उनके कष्ट दूर करने का प्रयास करते हैं।
वर्तमान और भूत के बीच भटकती इस कहानी में कहीं राजे-रजवाड़ों और ज़मींदारों से जुड़ी बातें पढ़ने को मिलती हैं तो कहीं स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी बातों से पाठक दो चार होता नजर आता है। पुनर्जन्म के गलियारों के बीच विचरती इस कौतूहल भरे रोमांच से लबरेज़ कहानी में कहीं आपका सामना औघड़, डाकिनी एवं पिशाचिनी से होता है तो कहीं कहानी के बीच कोई शापित वृक्ष अपनी मौजूदगी दर्ज कराने को उतावला हो उठता है। कहीं अतृप्त प्रेम की याद में तड़पती कोई यक्षिणी बदला लेने कोई उतारू दिखाई देती है तो कहीं पाठक अचानक टपक पड़ी रहस्यमयी घटनाओं से रूबरू होता नज़र आता है। इसी उपन्यास में कहीं मरणोपरांत आत्मा की गति, पुनर्जन्म, कापालिक एवं औघड़ अनुष्ठानों से जुड़ी बातों के ज़रिए पाठकों को रहस्य एवं जिज्ञासाभरे माहौल के बीच सिहरन, रोमांच, भय और वीभत्स रस की मिश्रित अनुभूतियों से दोचार होना पड़ता है।
उपन्यास पढ़ते वक्त वर्तनी की त्रुटियों एवं वाक्य विन्यास की कमियों के अतिरिक्त प्रूफरीडिंग की ग़लतियाँ भी दिखाई दीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 103 में लिखा दिखाई दिया कि..
'हर तरफ से आश्वस्त होने के बाद उन्होंने कमल और मिहिर को पूजा घर में बैठ कर काली माँ का गायत्री मंत्र जपने के लिए कहा'
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि 'गायत्री मंत्र' का जाप काली माँ के लिए नहीं बल्कि वैदिक ऋचाओं की देवी, जिन्हें वेद माता के नाम से भी जाना जाता है, को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। 'वेद माता' यानी कि 'गायत्री' के तीन सिर होने की वजह से उन्हें त्रिमूर्ति की देवी भी कहा जाता है जो कि देवी सरस्वती, देवी पार्वती और देवी लक्ष्मी का ही अवतार हैं।
पेज नम्बर 135 में बाज़ार से गुजरते हुए साधना और कमल को एक दुकान में एक शॉल पसन्द आ जाती है लेकिन उस वक्त उनका उसे खरीदने का कोई इरादा नहीं होता। दुकानदार के खरीदने के लिए कहने पर भी वे इनकार कर देती हैं। तभी उन्हें दुकान के भीतर बने हुए दुकानदार के घर में एक बुढ़िया दिखाई देती है लेकिन उनके पता करने पर दुकानदार घर में किसी बुढ़िया के होने से इनकार कर देता है।
इसके बाद छठे पेज में अचानक दुकानदार के नाम 'नवीन' का जिक्र टपक पड़ता है। जो कि पहले कहीं नहीं था।
आमतौर पर होता क्या है कि लेखक अपनी कहानी का आरंभ और अंत सोच लेता है कि उसे कहाँ से शुरू करेगा और कहाँ ले जा कर ख़त्म करेगा। मगर यह उपन्यास मुझे आजकल के डिमांड एण्ड सप्लाई वाले तरीके के जैसे लगा कि कहानी को चैनल, प्रोड्यूसर या एप की डिमांड के हिसाब से लंबा खींचना है, तो लो जी आप जितना लंबा चाहो, लंबा खींच देते हैं।
इसी वजह से यह उपन्यास मुझे एक मुकम्मल कहानी के बजाय किश्तों में बँटी हुई कहानी जैसा लगा मानो एकता कपूर सरीखा कोई सीरियल चल रहा हूँ कि हर एपिसोड में कोई नयी तांत्रिक विधि या किसी अलग ही विधान का कोई नया पंगा डाल कर कहानी को जबरन आगे बढ़ाया जा रहा हो।
उपन्यास के कवर पेज के आकर्षक और छपाई के बढ़िया होने के बावजूद इस तरह की कमियाँ अखरती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि लेखिका एवं प्रकाशक इस तरह की कमियों को दूर करने का यथासंभव प्रयास करेंगे। इस 204 पृष्ठीय उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशंस ने और इसका मूल्य रखा गया है 249/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।