मुंबई नाइट्स - संजीव पालीवाल

थ्रिलर, मिस्ट्री और क्राइम बेस्ड फ़िल्मों, कहानियों एवं उपन्यासों का मैं शुरू से ही दीवाना रहा। एक तरफ़ ज्वैल थीफ़, गुमनाम, विक्टोरिया नम्बर 203 या फ़िर ऑक्टोपुसी जैसी देसी एवं विदेशी फ़िल्मों ने मन को लुभाया तो दूसरी तरफ़ वेद प्रकाश शर्मा के थ्रिलर उपन्यासों के रोमांच ने मुझे कहीं किसी और दिशा में फटकने न दिया। 


बरसों बाद जब फ़िर से पढ़ना शुरू हुआ तो थ्रिलर उपन्यासों के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक की लेखनी ने इस हद तक मोहित किया कि मैं पिछले लगभग 4 सालों में उनके लिखे 225 से

ज़्यादा उपन्यास पढ़ चुका हूँ और निरंतर उनका लिखा बिना किसी नागे के पढ़ रहा हूँ। 


दोस्तों... आज थ्रिलर फ़िल्मों और कहानियों की बातें इसलिए कि आज मैं यहाँ इसी तरह के विषय से संबंधित एक ऐसे उपन्यास का जिक्र करने जा रहा हूँ, 

जिसे 'मुंबई नाइट्स' के नाम से लिखा है संजीव पालीवाल ने। संजीव पालीवाल अब तक तीन हिट उपन्यास लिख चुके हैं। जिनमें से पहले दो उपन्यास थ्रिलर बेस्ड और एक उपन्यास प्रेम कहानी के रूप में है। 


मुंबई फ़िल्मनगरी की रंगीन दुनिया के काले सच को उजागर करती इस तेज़ रफ़्तार कहानी में एक तरफ़ बड़े फ़िल्म स्टार रोहित शंकर सिंह द्वारा ख़ुदकुशी किए जाने के केस की जाँच को लेकर कॉलेज में पढ़ने वाली एक ग़रीब मगर खूबसूरत लड़की दिल्ली के अय्याश तबियत जासूस विशाल सारस्वत की सेवाएँ हायर करती है। तो दूसरी तरफ़ शक के घेरे में आयी रोहित की प्रेमिका अनामिका त्रिपाठी भी इसी केस की निष्पक्ष जाँच के लिए, कभी विशाल सारस्वत की माशूका रह चुकी, मुंबई की जासूस अमीना शेख़ को नियुक्त करती है। 


आपसी मतभेदों के बावजूद ये दोनों इस केस पर एकसाथ काम करने के लिए तैयार होते हैं और संयुक्त रूप से की गई इनकी जाँच के दौरान शक के छींटे जब फ़िल्म एवं राजनीति से जुड़ी कुछ ताकतवर हस्तियों पर पड़ते हैं तो एक के बाद एक सिलसिलेवार हत्याएँ एवं जानलेवा हमले होते चले जाते हैं। अब देखना यह है कि हत्याओं के इस जानलेवा सिलसिले के बीच अंततः वे मुजरिम को उसके अंजाम तक पहुँचा पाते हैं या नहीं। 


इस उपन्यास में कहीं कास्टिंग एजेंसीज़ के बाहर रोज़ाना फिल्मों में नाम कमाने के इच्छुक सैंकड़ों लड़के-लड़कियों की लाइन लगने की बात होती नज़र आती है तो कहीं कास्टिंग डायरेक्टर को पटा फिल्में हथियाने की कवायद में खूबसूरत लड़कियाँ मोहरा बन यहाँ-वहाँ दिखाई देती हैं। कहीं हीरोइन बनने की चाह में मुंबई में आई खूबसूरत नवयुवतियां काम न मिलने पर स्वेच्छा अथवा मजबूरी में अपनी देह बेचती दिखाई पड़ती हैं।


इसी उपन्यास में कहीं एशिया की सबसे बड़ी स्लम बस्ती 'धारावी' के निर्माण के बारे में पता चलता है कि 1895 में पहले पहल अँग्रेज़ सरकार द्वारा ये ज़मीन चमड़े का काम करने वाले मुस्लिम और नीची जाति के लोगों को 99 साल की लीज़ पर दी गयी थी। 


इसी उपन्यास में कहीं किसी ग़रीब को धोखे में रख उसके नाम पर ऐसा गैरकानूनी धंधा चलता दिखाई देता है जिसके बारे में उसे रत्ती भर भी पता नहीं होता है। तो कहीं नारियल के पेड़ लगाने के नाम पर हासिल की गई सस्ती ज़मीन पर सरकारी मिलीभगत एवं राजनैतिक हस्तक्षेप के ज़रिए करोड़ों की कीमत वाला आलीशान नाइट क्लब चलता दिखाई देता है। कहीं लेखक अपने किरदारों के ज़रिए फिलॉसफ़िकल चिंतन करते नज़र आते हैं तो कहीं ऑर्गी सैक्स (सामूहिक सैक्स) जैसी विकृत मानसिकता से अपने पाठकों को रु-ब-रु करवाते दिखाई पड़ते हैं।


कहीं इस क्राइम थ्रिलर में राजनीति का पदार्पण होता नज़र आता है तो कहीं राजनीति और पुलिस के गठजोड़ का घिनौना चेहरा उजागर होता दिखाई देता है। कहीं पुत्रमोह में पड़ कर राज्य की गृहमंत्री अपने अय्याश बेटे के काले कारनामों पर अपनी आँखें मूँदती हुई नज़र आती है तो कहीं गठबंधन की राजनीति में होने वाली दिक्कतों की बात होती दिखाई देती है। 


कहीं फर्ज़ी एनकाउंटर के केस में सज़ा से बचने के लिए कोई बड़ा अफ़सर गृहमंत्री और उसके बेटे की जी-हजूरी भरी चाकरी करता दिखाई पड़ता है। तो कहीं तफ़्तीश के नाम पर स्वयं पुलिसवाले ही सबूत नष्ट, ग़ायब अथवा फर्ज़ी सबूत गढ़ते दृष्टिगोचर होते हैं। कहीं बड़े ब्यूरोक्रेट्स से लेकर नेता, सांसद और धनाढ्य वर्ग के तथाकथित नामी गिरामी शरीफ़ लोग अपनी अय्याशियों के लिए मुंबई नाइट्स जैसी आलीशान और भव्य जगह का धड़ल्ले से बेहिचक इस्तेमाल करते दिखाई देते हैं। तो कहीं हिडन एवं स्पाई कैमरे के ज़रिए ब्लैकमेल का खेल जाता नज़र आता है। 


■ पेज नंबर 149 में लिखा दिखाई दिया कि..


'इसकी वजह शायद यह भी थी कि विशाल भी वैसे हालातों से दो चार हो चुका था' 


इसके बाद पेज नंबर 151 में लिखा दिखाई दिया कि..


'इन हालातों में पुलिस को चिंता हुई बेटे की'


और आगे बढ़ने पर पेज नंबर 156 में लिखा दिखाई दिया कि..


'जब अदालत उसे पिछले केस में असली नाम पर सजा ना सुन सकी, तो कुणाल वाधवा का अब के हालातों में जहां सबूत भी हमारे पक्ष में नहीं हैं, क्या कर सकती है' 


यहाँ यह बात ग़ौरतलब है कि इन तीनों उदाहरणों में एक कॉमन शब्द 'हालातों' का इस्तेमाल किया गया है जबकि असलियत में ऐसा कोई शब्द होता ही नहीं है। 'हालत' शब्द का बहुवचन 'हालात' शब्द होता है। इसलिए इन तीनों जगहों पर 'हालातों' की जगह 'हालात' आना चाहिए।


■ धाराप्रवाह शैली में लिखे गए इस रोचक उपन्यास में पढ़ते वक्त कुछ एक जगहों पर प्रूफरीडिंग की कमियाँ एवं वर्तनी की त्रुटियाँ भी देखने को मिलीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 16 में लिखा दिखाई दिया कि..


'मुझे यही जानना है कि किस हालात में उसने यह फैसला किया'


यहाँ 'किस हालात में' की जगह 'किन हालात में' आना चाहिए।


पेज नंबर 20 में लिखा दिखाई दिया कि..


'मेरे आने के बाद एक हफ्ते में आखिर ऐसा क्या हुआ जो वह फांसी के फंदे पर झूल गया'


कहानी के हिसाब से यहाँ 'मेरे आने के बाद एक हफ्ते में' की जगह 'मेरे जाने के बाद एक हफ्ते में' आना चाहिए।


पेज नंबर 62 में लिखा दिखाई दिया कि..


'अमीना ने रुख किया आराम नगर का। वर्सोवा का आराम नगर एक ऐसा इलाका जहां गली-गली में एक्टर रहते हैं। यहां हर रोज कास्टिंग एजेंसी के बाहर लाइन लगी रहती है। यहां दिन भर एक्टर बनने की ख्वाहिश लिए लड़के और लड़कियां एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे पर सिर्फ यह जानने के लिए भटकते रहते हैं कि वहां ऑडिशन हो रहा है क्या।'


इससे अगले पेज यानी कि पेज नंबर 63 पर लिखा दिखाई दिया कि..


'आराम नगर की गलियों में सिल्वर कास्टिंग एजेंसी का ऑफिस खोजने में ज्यादा देर नहीं लगी। पिछले 10 सालों में यहां कास्टिंग एजेंसियों की संख्या काफी बढ़ गई है'


इन दो पैराग्राफ़स को पढ़ कर पता चलता है कि वर्सोवा के आराम नगर इलाके में कास्टिंग एजेंसियों के काफ़ी दफ़्तर खुले हुए हैं जबकि पहले पैराग्राफ के शुरू में बताया गया है कि वर्सोवा के आराम नगर इलाके की गली-गली में एक्टर रहते हैं। कायदे से यहाँ एक्टरों के रहने की बजाय कास्टिंग एजेंसियों के दफ़्तरों के होने की ही बात आनी चाहिए थी।


पेज नंबर 81 में दिखा दिखाई दिया कि..


'कहां से चले थे कहा आ गये'


यहाँ 'कहा आ गये' की जगह 'कहां आ गये' आएगा। 


पेज नंबर 83 में लिखा दिखाई दिया कि..


'विशाल ने देखा कि कुणाल वाधवा एक कोने कुछ लोगों के साथ खड़ा है'


यहाँ 'एक कोने कुछ लोगों के साथ खड़ा है' की जगह 'एक कोने में कुछ लोगों के साथ खड़ा है' आएगा। 


पेज नंबर 94 में लिखा दिखाई दिया कि..


'लेकिन मनीष मेहरा तो पिछले वीकेंड तो वह नहीं गया था'


यहाँ 'मनीष मेहरा तो पिछले वीकेंड तो वह नहीं गया था' की जगह 'मनीष मेहरा तो पिछले वीकेंड में नहीं गया था' आएगा। 


पेज नंबर 115 में लिखा दिखाई दिया कि..


'वह यह जानते हैं कि तुम्हारा और रोहित शेखर का झगड़ा हुआ था'


यहाँ पहले शब्द 'वह' के ज़रिए विशाल और अमीना की बात हो रही है जो कि एक नहीं बल्कि दो अलग-अलग शख़्सियत हैं। इसलिए यहाँ उनके लिए 'वह' शब्द का नहीं बल्कि 'वे' शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..


'वे यह जानते हैं कि तुम्हारा और रोहित शेखर का झगड़ा हुआ था'


पेज नंबर 126 में लिखा दिखाई दिया कि..


'लड़की देखने में एकदम बच्ची जैसी ही होगा'


यहाँ 'बच्ची जैसी ही होगा' की जगह 'बच्ची जैसी ही होगी' आएगा। 


पेज नंबर 149 में लिखा दिखाई दिया कि..


'सेना में रहने के दौरान अपने भी तो कई ऑपरेशन में भाग लिया होगा'


यहाँ 'कई ऑपरेशन में भाग लिया होगा' की जगह 'कई ऑपरेशनों में भाग लिया होगा' आएगा।


इसी पेज पर और आगे दिखा दिखाई दिया कि..


'हर हत्या अपना दाग छोड़ती है, और थोड़ा सा जीवन अपने साथ ले जाती है। भले ही जिसकी हत्या हुई है वह शख्स क्यों ना आपकी ही जान लेने की कोशिश में आत्मरक्षा में मारा गया हो'


इन वाक्यों में दूसरा वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य कुछ इस तरह का होना चाहिए कि..


'भले ही आपकी जान लेने की कोशिश करने वाला कोई शख़्स आपके द्वारा किए गए अपनी आत्मरक्षा के प्रयासों के तहत स्वयं मारा गया हो'


पेज नंबर 155 में लिखा दिखाई दिया कि..


'अमीना ने सिर से अपने हाथ हटाया'


यहाँ 'अमीना ने सिर से अपने हाथ हटाया' की जगह 


'अमीना ने अपने सिर से हाथ हटाया' या फ़िर 'अमीना ने सिर से अपना हाथ हटाया' आए तो बेहतर। 


पेज नंबर 170 में लिखा दिखाई दिया कि..


'विशाल ने आगे बढ़कर देखा तो वहा एक छोटा सा कमरा बना हुआ है'


यहाँ 'वहा' की जगह 'वहां' आएगा। 


पेज नंबर 186 में लिखा दिखाई दिया कि..


'ये लिस्ट है उन सारे एंडोर्समेंट की यानी विज्ञापन की जो रोहित शेखर सिंह ने किए हैं'


यहाँ चूंकि विज्ञापन एक से ज़्यादा हैं, इसलिए यहाँ 'एंडोर्समेंट' की जगह 'एंडोर्समेंट्स' और 'विज्ञापन' की जगह 'विज्ञापनों' आएगा। 


पेज नंबर 190 में लिखा दिखाई दिया कि..


'एक बार भी उसे ये पता नहीं चला की अपहरण करने वाले क्या चाहते हैं' 


यहाँ 'पता नहीं चला की' में 'की' शब्द की जगह 'कि'

आएगा। 


पेज नंबर 194 में लिखा दिखाई दिया कि..


'कई फैसले ऐसे होते हैं जिसके नतीजे में हम दुनिया का संवारना और बिखरना एक साथ देखते हैं'


यहाँ चूंकि एक से अधिक फ़ैसलों की बात हो रही है, उसलिए यहाँ 'जिसके नतीजे में हम दुनिया का संवारना और बिखरना एक साथ देखते हैं' की जगह 'जिनके नतीजे में हम दुनिया का संवारना और बिखरना एक साथ देखते हैं' आएगा। 


• बामारी - बीमारी

• जनम - जन्म 

• सक्रिप्ट - स्क्रिप्ट

• प्राइवेसी ब्रिच - प्राइवेसी ब्रीच

• कहा - कहाँ

• नीचि - नीची

• कव्वालिटी - क्वालिटी

• मारजिन - मार्जिन

• पहुंतने - पहुँचने/पहुंचने

• तव्वजुह - तवज्जो 

• आई एस सॉरी - आई एम सॉरी 

• लिखायी - लिखाई 

• वहा - वहाँ/वहां

• बहशीपन - वहशीपन

• बैगर - बग़ैर



बढ़िया क्वालिटी में छपे इस 200 पृष्ठीय तेज़ रफ़्तार रोचक उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली ने और इसका मूल्य रखा गया है 299/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

 
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