हिन्दी ब्लोगिंग का इतिहास या इतिहास में ब्लोगिंग? राजीव तनेजा

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दोस्तों!…जैसा कि आप जानते हैं कि आगामी 30 अप्रैल,2011 को दिल्ली के हिन्दी भवन में एक कार्यक्रम होने जा रहा है जिसमें हिन्दी ब्लोगिंग के अब तक के कार्यकाल पर श्री रवीन्द्र प्रभात जी द्वारा लिखी गई  “हिन्दी ब्लोगिंग का इतिहास" नामक पुस्तक का विमोचन किया जा रहा है| इसके अलावा “हिन्दी ब्लोगिंग-अभिव्यक्ति की नई क्रान्ति" नामक एक अन्य पुस्तक का भी लोकार्पण हो रहा है | इस किताबों को प्रकाशित करवाने में होने वाले व्यय की पूर्ती के लिए इन्हें Rs.450(दो पुस्तकों का सैट) के मूल्य पर इच्छुक ब्लोगरों को दिए जाने की योजना है लेकिन…..वो कहते हैं ना कि अच्छे काम भला बिना किसी विध्न या बाधा के पूरे हो जाया करते हैं?…..जो इस बार पूरे हो जाएंगे?….

वही हुआ जिसका अंदेशा था…सड़क बनने से पहले ही खड्ढे खोदने वाले आ गए…

इन स्वयंभू जनाब को पहले तो एतराज इस बात का था कि…हमने इन्हें “बांगलादेश में हुए प्रथम अंतराष्ट्रीय हिन्दी ब्लोगर सम्मलेन” में आने के लिए विशेष तौर पर आमंत्रित क्यों नहीं किया?…

अब ये होली के अवसर पर हमारी हँसी-ठिठोली को सच मान अपना बोरिया…बिस्तरे समेत बाँध कर बैठ गए तो भय्यी…इसमें हम का करे?… ;-)

जब सच्चाई से इन्हें अवगत कराया कि… “जनाब ये तो बस…ऐसे ही महज़ थोड़ी सी चुहलबाज़ी चल रही है” ….

तो खिसियाते हुए इन जनाब की भाषा अभद्र होने को आई तो …हम तो पतली गली से कन्नी काटते हुए निकल लिए  

अब ये जनाब इस बात पर गरिया रहे हैं कि… “हम…इत्ते बड़े हिन्दी ब्लोगिंग की तोप(भले ही स्वयंभू सही)….भला पईस्से दे के अपना नाम क्यों छपवाएँ?…जिसकी सौ बार खुजाएगी….अपने आप छाप देगा”…

ठीक है भईय्या…मानी आपकी बात कि अपने आप छाप देगा लेकिन पहले उस लायक तो बन जाओ कि आपका नाम छापे बिना उनका गुज़ारा ना हो…

आपको नहीं छपवाना है…मत छपवाओ….कोई डाक्टर थोड़े ही कहता है कि मेरे पास आ के इंजेक्शन लगवाओ और तन्दुरस्त हो जाओ….लेकिन भईय्ये…यहाँ-वहाँ बेकार की उलटी-सीधी…बेकार की जुगाली कर दूसरों का जायका तो मत खराब करो कम से कम…

खैर!…इस सब से हमें क्या?…अपना काम तो हँसना और हँसाना है…तो इसी कड़ी में लीजिए जनाब कुछ नए चित्र और मज़े-मज़े से इनमें खुद को तथा अन्य ब्लोगरों को खोज-खोज के खोजिये :-) 

नोट: इन चित्रों को बनने का मूल आईडिया श्री रवि रतलामी जी का है

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नोट: इन चित्रों को बनने का मूल आईडिया श्री रवि रतलामी जी का है

महिमा ए माईक -राजीव तनेजा

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ये माईक स्साला… भी बड़ी ही कुत्ती चीज़ है…अच्छे-अच्छों के छक्के छुडा देता है..बड़े-बड़ों को पसीने ला देता है…सूरमाओं को धरती चटा पल भर में रुला देता है|सामने आ जाओ इसके तो साँस ऊपर-नीचे…नीचे-ऊपर होने लगती है…हाथ-पाँव फूलने लगते हैं…बदन कंपकपाने लगता है…

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जुबान तालू से चिपक जाती है…आँखों के आगे अँधेरा ही अँधेरा नज़र आने लगता है …यूं समझिए जनाब कि अच्छे-भले बंदे की आधी ताकत एक अकेला माईक ऐसे निगल जाता है मानों माईक…माईक ना हो गया रामायण काल का बाली हो गया

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या फिर उससे भी बढकर बरसों पुरानी बुड्ढी-खूसट घरवाली हो गया….

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आधी ताकत तो इसको देख के ही निकल जाती है और बाकी की बची आधी ताकत सामने श्रोताओं को और उनकी पल-पल…प्रतिपल बदलती भाव-भंगिमाओं को देख के निकल जाती है…

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बचा रह जाता है मेरे जैसा शुद्ध एवं निखालिस टट्टू…

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लेकिन  आप लोग कहेंगे कि सभी उगलियाँ एक बराबर नहीं होती…बिलकुल नहीं होती जनाब…कुछ-एक दिलेर टाईप के फूँ-फां करने वाले लोग भी होते हैं इस दुनिया में जो अपनी जाबांजी के चलते हर फ़िक्र और दुनिया-जहाँ की चिंता को बिलकुल भुला…बेफिक्र होकर घंटों तक माईक से ऐसे चिपक जाते हैं जैसे वो माईक…माईक ना होकर उनकी नई-नवेली दुल्हन हो गया…पीछा ही नहीं छोड़ते…

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कुछ-एक तो तजुर्बेकार टाईप के फन्ने खाँ लोग भी होते हैं इस दुनिया में जो अपनी अच्छी-भली एक के होते हुए उधार स्वरूप स्वरूप पडोसी की मांग उसे अपने दरबार में सजा लेते हैं..

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या फिर कई बार स्वत: ही दूसरों द्वारा उन्हें अपना सामान मुफ्त में इस्तेमाल करने के लिए एज ए गिफ्ट दे दिया जाता है..ऐसा बीवी के साथ नहीं बल्कि माईक के साथ होता है|

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वैसे!..होने को तो कुछ भी हो सकता है… :-)

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और हाँ!…अगर किन्हीं अप्रत्याशित कारणों फिर भी तसल्ली ना हो पा रही हो तो आस-पड़ोस से मांग कर दो-चार और को भी अपने आजू-बाजू में लगा…महफ़िल को सजा…उसे रौशन किया जा सकता है

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लेकिन!…लेकिन ऐसा करने में रिस्क और जोखिम कुछ ज्यादा ही होता है..शार्ट सर्किट के जरिये करेंट लगने से सब कुछ स्वाहा होने का डर जो हमेशा बना रहता है…

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अच्छा…अगर कहीं सुनाने के कड़े मापदंड हों…माल अपने पास झंण्ड हो…ऊपर से श्रोता बड़ा ही उद्दंड हो…तो कई बार पैंट के ढीले होकर गीले होते हुए खिसकने तक की भी नौबत आ जाती है…इसलिए हे बंधुओ…इससे पहले कि मेरी भी पैंट के ढीले हो के गीले होते हुए खिसकने की नौबत आ जाए…मैं पहले ही कलटी मार….नौ दो ग्यारह होते हुए खिसक लेता हूँ…

Running_Away

जय हिंद

***राजीव तनेजा***

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नोकिया बनाम एरिक्सन- राजीव तनेजा

santa

संता(असमंजस भरे स्वर में): यार…एक बात समझ नहीं आ रही…

बंता: क्या?…

संता: यही कि जब मैं अपनी बीवी के मोबाईल से उसकी सहेली का नंबर मिलाता हूँ तब तो कुछ नहीं होता लेकिन जब उसी नंबर को मैं अपने मोबाईल से मिलाता हूँ तो उसकी सहेली के नाम के बजाय उसके पति का नाम आता है…

बंता: अरे!…यार…सिम्पल सी बात है…तेरा फोन नोकिया का और उनका सोनी एरिक्सन का है…

संता: ओह!..

 
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