भोगी को क्या भोगना…भोगी मांगे दाम- राजीव तनेजा
“हैलो!…इज इट 9810821361?”…
“यैस!…
“आप वर्ल्ड फेमस टैंशन गुरु(Tention Guru) ‘राजीव जी' बोल रहे हैं?”…
“जी!…जी…हाँ…मैं वर्ल्ड फेमस टैंशन गुरु(Tention Guru) ‘राजीव' ही बोल रहा हूँ…आप कौन?”…
“सर!…मैं पप्पू….पानीपत से"…
“कहिये!…पप्पू जी…कैसे हैं?”…
“एकदम बढिया…फर्स्ट क्लास"..
“कहिये!…पप्पू जी…मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ"..
“सेवा तो सर…मैं आपकी करूँगा पर्सनली…आपसे मिलने के बाद"…
“इट्स माय प्लेज़र…मुझे आपसे मिलकर बड़ी खुशी होगी"…
“खुशी तो सर…मुझे भी बहुत होगी जब मैं तबियत से…आपकी तबियत को हरा-भरा करूँगा"…
“हरा-भरा करूँगा?…मैं कुछ समझा नहीं"..
“दरअसल मैं कोठे पे झंडू बाम सप्लाई करता हूँ"…
“कोठे पे?”…
“जी!..
“लेकिन क्यों?…वहाँ पे झंडू बाम का क्या किया जाता है?”..
“आप समझे नहीं…वो कैमिस्ट की शॉप पहली मंजिल पर है ना"..
“तो?”…
“उसी को मैं झंडू बाम सप्लाई करता हूँ"…
“लेकिन मेरा तुम्हारे इस झंडू बाम के साथ क्या कनेक्शन?”…..
“बड़ा गहरा कनेक्शन है"…
“कैसे?”..
“उसी की मसाज से आपकी तबियत को मैं एकदम हरा-भरा कर दूंगा"…
“ओह!…इट्स माय प्लेज़र…तो कहिये…कब और कैसे मिलना चाहेंगे आप मुझसे?”…
“कब का तो क्या है सर…जब भी आप फुर्सत में हों लेकिन मुआफ कीजिये आपके इस ‘कैसे’ का मतलब मैं समझ नहीं पाया"…
“अरे!…यार…मेरे कहने का मतलब था कि…आप मुझसे फेस टू फेस…आमने-सामने मिलकर..रूबरू हो…खुद को कृतार्थ करना चाहेंगे या फिर गूगल टॉक के जरिये…वैब कैम का इस्तेमाल करते हुए चैट के दौरान मुझसे आँखें चार करना चाहेंगे?”..
“वैब कैम के जरिये आँखें तो चार…सर…बुजदिल किया करते हैं और मैं ऐरा-गैरा…नत्थू-खैरा…कुछ भी होऊँ लेकिन बुजदिल तो कतई नहीं"..
“दैट्स नाईस….आई लाईक यूअर स्पिरिट"…
“थैंक्स!…फॉर दा काम्प्लीमैंट"…
“जी!…
“और सर…आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आँखें तो मेरी बचपन से ही बाय डिफाल्ट…चार हैं…यू नो हैरीडिटी?”…
“वैरी वेळ…मैं खुद भी इसी बीमारी से पीड़ित हूँ"…
“हैरीडिटी की?”…
“नहीं!…ऊंचे बोल…बड़े बोल बोलने की"…
“ओह!…सेम पिंच…मैं खुद भी इसी बीमारी से….
“दिख रहा है”…
“दिख रहा है?…लेकिन कैसे?”फोन को गौर से देखते हुए…
“ऊप्स!…सॉरी…सुनाई दे रहा है…
“देट साउंडज बैटर"…
“जी!…
“और सर…जैसा कि मैंने कहा….मेरी आँखें बचपन से ही….
“बाय डिफाल्ट चार हैं?”..
“जी!…सर…और मंदी के इस अनचाहे दौर में उन्हें चार से आठ करने का फिलहाल मेरा कोई इरादा नहीं है"…
“हें…हें…हें…बड़ा ही नेक इरादा है"…
“जी!…सो तो है"…
“हाँ!…तो पप्पू जी…कहिये…मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ?”..
“खिदमत के बारे में तो सर…मैंने पहले भी आपसे कहा कि वो मैं आपकी करूँगा…आप मेरी नहीं"...
“जी!…तो फिर कहिये ना पप्पू जी…मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?”..
“मुझे नींद नहीं आती है"…
“रात को?”…
“नहीं!…दिन को"…
“आप उल्लू हैं?”…
“नहीं!…सिक्योरिटी गार्ड"…
“बैंक के"..
“नहीं!…
“जूलरी शॉप के?”…
“नहीं!..
“ए.टी.एम मशीन के?”..
“नहीं!…
“तो फिर आप कहाँ के सिक्योरिटी गार्ड हैं?”..
“मैं अपनी बीवी का सिक्योरिटी गार्ड हूँ और उसी की सिक्योरिटी करता हूँ"…
“ओह!…इसका मतलब उसकी जान को खतरा है?”..
“नहीं!…मुझे अपने मान का खतरा है"…
“ओह!..तो इसका मतलब बदचलन है"..
“शायद!…
“शायद क्या?…पक्की बात…चाल-चलन ठीक नहीं होगा उसका"…
“आप तो अंतर्यामी हैं प्रभु…वाकयी में उसकी चाल का चलन ठीक नहीं है"…
“कब से?”…
“जब से वो पोलियो से ग्रस्त हुई…तब से"…
“ओह!..लेकिन इस सबसे आपकी नींद का क्या कनेक्शन?”...
“वो रात को देने से जो मना कर देती है"..
“क्या?”…
“थपकी"..
“रात को?”…
“जी!…
“और आपका उसे लिए बिना मन नहीं मानता है?”…
“उसे लिए बिना नहीं…उसकी लिए बिना मन नहीं मानता है"..
“लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है?…इसकी हो या उसकी…आप किसी की भी ले सकते हैं…बात तो एक ही है"…
“अरे!…वाह एक ही बात कैसे है?…इसकी…इसकी होती है और उसकी…उसकी होती है”…
“लेकिन ये भी तो कुछ लोग कहा करते हैं ना कि …जैसी थपकी रानी की…वैसी थपकी काणी की"…
“तो आप ही ले लिया करो ना काणी की थपकी"..
“म्म…मैं?..म्म…मैं तो बस…ऐसे ही…
“पहली बात तो ये कि अपनी अच्छी-भली एक के घर में होते हुए हम पराई की क्यों लें?…और फिर चलो खुदा ना खास्ता…कैसे ना कैसे करके…किसी ना किसी मजबूरी या कारणवश ले भी ली तो कितने दिनों तक?…आखिर!…कब तक ओट पाएंगे हम बाहर वालों के नखरे?”..
“जी!…सो तो है"…
“और फिर महान कवि संत निजामुद्दीन जी भी तो कह गए हैं ना अपने किसी प्रवचन में कि…
“भोगी को क्या भोगना… भोगी मांगे दाम…खुद की भोगी भोगिये…झुक-झुक करे सलाम”….
“बोलSsss…सिया पति राम चन्द्र जी की जय"..
“जय!…
“और फिर ये भी तो निर्विवाद रूप से सत्य है ना कि जो मज़ा अपनी की लेने में है…वो पराई की लेने में नहीं?”..
“जी!…लेकिन ये कोई ज़रुरी तो नहीं कि आप हर रोज ही लें…कभी-कभी नागा भी तो मारा जा सकता है"…
“बात कभी-कभी की हो तो मुझे या किसी को भी क्या ऐतराज़ हो सकता है? लेकिन इसे अगर विरोधी पक्ष द्वारा रोजाना का रूटीन या आदत ही बना लिया जाए तो कोई कब तक सहन कर सकता है?…और फिर करे भी क्यों?”..
“जी!..सो तो है"…
“आखिर!..इनसान इस दुनिया में आया ही क्यों है?”…
“क्यों है?”…
“आराम से थपकी भरी नींद सोने के लिए ही ना?”..
“जी!…सो तो है लेकिन…
“एक्चुअली मुझे बचपन से ही आदत है"…
“लेने की?”..
“जी!…उसके बिना नींद नहीं आती है"…
“नींद नहीं आती है या मज़ा नहीं आता है?”…
“एक ही बात है?”..
“अरे!…वाह…एक ही बात कैसे है?…नींद…नींद होती है और मज़ा…मज़ा होता है"…
“लेकिन मज़े के बाद भी तो नींद ने ही आना होता है"….
“जी!…सो तो है लेकिन….
“सर!…क्या मैं आपको बाद में फोन करूँ?”…“क्यों?…क्या हुआ?”..
“यहाँ पी.सी.ओ पे मेरे पीछे लाइन बढ़ती ही जा रही है"..
“किसलिए?”…
“सब आपसे बात करने के लिए बेताब हुए जा रहे हैं"…
“ओह!…अच्छा?…कौन-कौन दिख रहा है लाइन में?…मे आई नो हू इज इन दा लाइन?”..
“लाइन में तो सर…नेहा…टिंकू…मुन्नी और शीला….सब की सब जमी खड़ी हैं……मैं किस-किसका नाम लूँ?…व्यर्थ में बदनाम हो जाएंगी”…
“हम्म!…तो फिर ठीक है…हम बाद में मिलते हैं"…
“जी!…ज़रूर"…
“आपको मेरा पता मालुम है?”..
“जी!…अच्छी तरह से”..
“गली नंबर?”…
“मालुम है"…
“मकान नंबर?”…
“वो भी मालुम है"…
“ओह!…तो इसका मतलब आप मेरे बारे में काफी कुछ जानते हैं"….
“काफी कुछ नहीं…सब कुछ"..
“फिर तो आपसे मिलकर मुझे ज़रूर खुशी होगी”…
“जी!…मुझे भी"…
“ठीक है..तो फिर मिलते है…जल्द ही…ब्रेक के बाद"…
“जी!…ज़रूर”…
“बाय"…
“ब्बाय"…
(तीन दिन बाद)
ट्रिंग…ट्रिंग…ठक्क…ठक्क…
ट्रिंग-ट्रिंग…ठक्क…ठक्क..
“अरे!…भाई या तो घंटी ही बजा लो या फिर दरवाजा ही खडका लो…एक साथ दोनों चीज़ों का बंटाधार करने पे क्यों तुले हो?”….…
“सर!…आपसे मिलने की उतावली ही इतनी है कि सब्र नहीं हो रहा….जल्दी से खोलिए ना"…
“एक मिनट”..
“क्क…क्या?…क्या कर रहे हैं सर?…प्प…पैन्ट नहीं…मेन गेट खोलिए"…
“ओह!…सॉरी…एक मिनट"(मेन गेट खोलते हुए)..…
“हाँ!…जी…कौन?”…
“सर!…मैं पप्पू….
“पानीपत से?"…
“जी!…सर…मैं पप्पू…पानीपत से"…
“ओहो!…तो आप हैं पप्पू जी”ऊपर से नीचे तक गौर से देखते हुए…
“जी!…जी मैं ही पप्पू"..
“कहिये…कैसे हैं?”…
“बहुत बढ़िया…फर्स्ट क्लास…आप सुनाएं"…
“मैं भी एकदम मस्त…कहिये…आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?”..
“आपके होते हुए भला तकलीफ ना हो…ऐसा कैसे हो सकता है?”…
“ओह!…मैंने आपको बताया तो था कि मेरा घर स्टेशन के एकदम नज़दीक है"…
“लेकिन ये तो नहीं बताया था कि उस पर मालगाड़ी के अलावा कोई और ट्रेन नहीं रुकती है"…
“ओह!…सॉरी…मेरे ध्यान से उतर गया होगा शायद"…
“कोई बात नहीं जी…ये सब तो चलता ही रहता है"…
“जी!..सो तो है…कहिये…घर में सब कैसे हैं?”…
“एकदम बढ़िया….फर्स्ट क्लास"..
“वहाँ नहीं…यहाँ…यहाँ सोफे पे बैठिये”…
“जी!…
“आप ठण्डा या गर्म…क्या लेना पसंद करेंगे?”…
“जी!…वैसे तो कुछ खास इच्छा नहीं है लेकिन फिर भी आप कहते हैं तो अपनी इच्छा से…दोनों ही मंगवा लीजिए"…
“एक साथ?"मैं उठने का उपक्रम करता हुआ बोला….
“अच्छा!….छोडिये….रहने दीजिए”…
“जी!…जैसा आप उचित समझें"मैं वापिस बैठता हुआ बोला…..
“अच्छा!..आप एक काम कीजिये…दो कप गर्म चाय बनवा लीजिए”….
“जी!…ज़रूर लेकिन मैंने तो अभी-अभी ही पी है…जस्ट आपके आने से दो मिनट पहले ही…एक ही बनवा लेता हूँ"…
“नहीं!…आप समझे नहीं…आप दो कप गर्म चाय बनवा लीजिए और एक को फ्रीज़र में रखवा दीजिए…मैं बाद में ठण्डा होने पर पी लूँगा…ठन्डे का ठण्डा भी हो जाएगा और गर्म का गर्म भी"…
“हें…हें…हें…बात तो यार…तुम एकदम सही कह रहे हो”…
“शुक्रिया"…
“किस बात का?”..
“मेरी तारीफ़ करने का"…
“ओ!…हैलो…ऐसी किसी गलतफहमी में मत रहना…ये मेरे तकिये का कलाम है”..
“तकिये का कलाम?”…
“हाँ!…तकिये का कलाम"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“मैं अपनी बीवी को तकिया बना के सोता हूँ"…
“तो?”…
“उसी का कलाम है ये"…
“कौन सा?….अब्दुल वाला?”…
“अब्दुल कौन?”…
“इतना भी नहीं पता?”..
“उम्हूँ!…नहीं पता"…
“अखबार…टी.वी…रेडियो वगैरा…कुछ भी नहीं देखते?”…
“अखबार…टी.वी वगैरा तो नहीं लेकिन हाँ!….रेडियो जरुर हर रोज…सुबह-सवेरे…मेरे मत्थे आ के लगता है"..
“कैसे?”…
“बीवी…उठा के सर पे जो मारती है"…
“रेडियो?”…
“नहीं!…बेलन"…
“वो किसलिए?”…
“वही रोज की चिक-चिक…घड़ी-घड़ी का ड्रामा”…
“उसे ड्रामा पसंद है?”…
“बहुत"…
“कौन सा वाला?”…
“आंधी आई…उड़ गया छप्पर"…
“ये कब रिलीज़ हुआ था?”…
“जिस दिन आँधी में आडिटोरियम का छप्पर उड़ गया था"…
“ओह!…और क्या कहती है?”…
“आँधी?”…
“नहीं!…आपकी बीवी?”..
“वो कहती कहाँ है?…वो तो सीधा खींच के बेलन ऐसे घुमा के मारती है कि बस…पूछो मत"…
“ओ.के…नहीं पूछता"…
“क्यों?”…
“अभी आप ही ने तो कहा"…
“क्या?”..
“यही कि…बस…पूछो मत"…
“ओ…हैलो…ये तो मैं बस ऐसे ही…कभी-कभी कह देता हूँ…जब मूड में होता हूँ"…
“आप मूड में कब होते हैं"…
“सुबह से लेकर शाम तक और शाम से लेकर रात तक”……
“आप हर वक्त मूड में होते हैं?"..
“नहीं!…इस सारे वक्त मैं मूड में नहीं होता हूँ"…
“क्यों?”..
“मूड में होना क्या कोई हँसी-ठट्ठे का खेल है कि बजाई डुगडुगी और हो गए मूड में?…भतेरे पापड बेलने पड़ते हैं इसके लिए…बीवी को खुश रखना पड़ता है"…
“उसे नई साड़ी या फिर ब्लाउज दिला के?”……
“नहीं!…वो तो मैं अपनी माशूका को दिलाता हूँ"…
“फ्री में?”…
“तो क्या हुआ?…वो भी तो कई बार फ्री में मुझे अपनी….
“अपनी…क्या?”…
“अपनी मधुर आवाज़ में मीरा का सुमधुर भजन सुनाती है"…
“तो फिर बीवी को कैसे खुश करते हैं?”…
“बीवियों को कोई आजतक खुश कर पाया है जो मैं कर पाऊंगा?”…
“क्यों नहीं?…मैंने खुद कई बार खुश किया है बीवी को लेकिन बाय डिफाल्ट वो होती किसी और की है"..
“ओSsss…हैलो…मैं किसी और की नहीं बल्कि अपनी बीवी की बात कर रहा हूँ"…
“उसे मैं कैसे खुश करूँगा?…मुझे तो उसका फोन नंबर भी नहीं मालुम"…
“तो फिर पूछ लो ना यार"…
“फोन नम्बर?”…
“नहीं!…मार कैसे खानी है?…ये पूछो"…
“म्म…मैं तो बस…अ…ऐसे ही मजाक कर रहा था"…
“हम्म!…फिर ठीक है…मुझे सीरियस बातें पसंद नहीं"..
“लेकिन अपनी बीवी को कैसे खुश रखा जा सकता है?”..
“उसे खुला छोड़ के"..
“आप उसे बाँध के रखते हैं?”..
“हाँ!…
“क्यों?”…
“वो एकदम गऊ के माफिक जो है”…
“गऊ के माफिक है…इसलिए आप उसे बाँध के रखते हैं?”…
“हाँ!…
“लेकिन क्यों?”..
“बिना सींग मारे बात जो नहीं करती है"…
“आपने उससे बात करके क्या करना होता है?”…
“हें…हें…हें…बात क्या करके क्या करना होता है…बिना बात किये भी कहीं मज़ा आता है?”…
“किस बात में?”..
“उसी बात में"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“शादी हो गयी तुम्हारी"…
“जी!…हो गई"..
“फिर भी नासमझ हो?"..
“शायद….
“शायद क्या?…मुझे पक्का यकीन है"…
“किस बात का?”…
“तुम्हारी सील अभी तक नहीं टूटी है"…
“किस चीज़ की?”…
“दिमाग की"…
“थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट"…
“ओSss…हैलो…ये काम्प्लीमैंट नहीं है"…
“ओह!…माय मिस्टेक”…
“जी!…
“आप बता रहे थे कि बिना बात किये मज़ा नहीं आता है"…
“हाँ!…
“तो फिर बताइए ना कि किस चीज़ में बिना बात किये मज़ा नहीं आता है?”…
“इसी में कि…मैं अपने काम से थका-मांदा घर आऊँ…वो बाहर गेट पे मेरा इंतज़ार करती मिले"…
“ओ.के"…
“मैं उसको देख के मुस्कुराऊँ…वो मुझे देख के मुस्कुराए"…
“ओ.के…फिर?"…
“मैं उसको देख के शरमाऊँ… वो मुझे देख के इतराए"…
“फिर?”…
“फिर वो अपने घर में घुस जाए…मैं अपने घर में घुस जाऊँ"…
“क्क्या?”…
“हाँ!…
“आप दोनों अलग-अलग घर में रहते हैं?”..
“हाँ!…
“साथ-साथ क्यों नहीं रहते?”..
“हुँह!…साथ-साथ क्यों नहीं रहते?…उसके पति का पता है?…जल्लाद है जल्लाद…कच्चा चबा जाएगा"...
“आप उसके पति नहीं है?”…
“उसके…किसके?”..
“वही जो आपको देख के मुस्कुराती है"…
“ऐसी हसीन मेरी किस्मत कहाँ कि कोई मुझ गरीब को देख के सिर्फ मुस्कुराए?”….
“सिर्फ मुस्कुराए?…मैं कुछ समझा नहीं"…
“हाँ!…मुस्कुराने के साथ-साथ वो माथे पे हाथ मार कुछ बडबडाती भी है"…
“क्या?”…
“यही कि… आ गया मुय्या फिर…पागल का बच्चा"…
“ओह!…लेकिन आप तो कह रहे थे कि आपको बहुत मज़ा आता है"…
“हाँ!…तो?…आता है ना"…
“वो आपको पागल कहती है और आपको मज़ा आता है?”..
“धत्त!…पागल कहीं का…मज़ा तो मुझे अपनी बीवी के साथ आता है"…
“बात कर के?”..
“हाँ!…बात कर के"…
“क्या बात करके?”..
“अरे!…वही रोज की किट-किट वाली बातें और क्या?”..
“आपको उनमें मज़ा आता है?”..
“सच पूछो तो यार…अब आदत सी पड़ गयी है"…
“बातें सुनने की?”…
“नहीं!..गालियाँ सुनने की"..
“ओह!…
“उनके बिना नींद ही नहीं आती है"..
“आपको?”…
“नहीं!…बीवी को?”..
“ओह!…
“मुझे गालियाँ दिए बिना उसे नींद ही नहीं आती है"..
“और आपको इसमें मज़ा आता है?”.
“अरे!…जब वो चैन से सोएगी तभी तो मैं भी सो पाऊंगा ना आराम से"..
“लेकिन आप तो कह रहे थे कि आप उसे बाँध के रखते हैं?”…
“तो?…बाँध के नहीं रखूँ तो क्या गले में बाहें डाल के रखूँ?”…
“लेकिन ऐसी खतरनाक आईटम को आप बाँध के कैसे रखते हैं?”…
“तजुर्बा…तजुर्बा हो गया है बरखुरदार मुझे इस सब का…सालों से झेलता आया हूँ मैं इस सब यातना-प्रतारणा को…अब जा के नहीं सीखूंगा तो फिर कब जा के सीखूंगा?”…
“आपने कहीं जा के सीखा है ये सब?”…
“नहीं!…मेरे घर में ही ट्यूशन देने आए थे इस सब की"…
“कौन?”..
“वही…पत्नी मुक्ति क्लब वाले और कौन?”…
“ओह!…आपकी बीवी ने ऐतराज़ नहीं किया इस बात का"…
“वो मायके में थी उन दिनों"…
“ओह!….
“लेकिन आप उसे प्यार से समझा के क्यों नहीं देखते?”…
“क्या?”…
“यही कि वो ऐसे बिना किसी बात के आपको सींग ना मारा करे"…
“अरे!…बार-बार समझाने पर भी जब इतने बड़े देश पाकिस्तान की समझ में ये बात नहीं आती तो मेरी बीवी के छोटे से दिमाग में क्या ख़ाक आएगी?”..
“ओह!…
“एंड फॉर यूअर काईंड इन्फार्मेशन…मेरी बीवी सींग नहीं…बेलन मारती है"…
“लेकिन क्यों?”…
“अभी कहा ना"…
“क्या?”…
“वही रोजाना की चिक-चिक"..
“कि मुझे नई घड़ी ले के दो?…
“नहीं!…
“शापिंग करवाने ले चलो?”…
“नहीं!…
“फिल्म दिखाने ले चलो?”..
“नहीं!..
“तो फिर?”…
“यही कि इस मुय्ये रेडियों को किसी कबाड़ी को बेच आओ…बेकार में खामख्वाह…जगह घेर के खडा है”…
“खडा है?”…
“नहीं!..वो तो पड़ा है"…
“कब से?”…
“जब से लिया है…तब से"……
“क्यों?”..
“मेरी बीवी से पूछ लो"…
“क्या?”…
“यही कि उसे कैचम कैच क्यों पसंद है?”…
“वो रेडियो से कैचम कैच खेल रही थी?”…
“नहीं!…बेलन से"…
“तो?”…
“निशाना चूक गया"…
“तो बेलन रेडियो से जा टकराया?”…
“नहीं!…मैं"…
“वो कैसे?”…
“आपके पास बेलन है?”…
“नहीं!…
“रेडियो?”…
“नहीं!…
“तो फिर कैसे बताऊँ?”…
“क्या?”…
“यही कि मैं कैसे बेलन की मार से बचने के चक्कर में रेडियो से जा टकराया"…
“ओह!…रेडियो का तो चलो…समझ में आ गया लेकिन आप टी.वी…अखबार वगैरा क्यों नहीं देखते हैं?”….
”बिजी ही इतना रहता हूँ कि टाईम ही नहीं मिलता"…
“लिखने-लिखाने से?”…
“नहीं!…घास छीलने से"….
“घास छीलने से?”……
“हाँ!…घास छीलने से"…
“आप घसियारे हैं?”…
“नहीं!…मैं तो लेखक हूँ"…
“तो फिर आप घास क्यों छीलते हैं?”….
“बिना किसी कमाई के लिखना भी तो व्यर्थ की घास छीलने के सामान है"…
“ओह!…लेकिन ऐसी भी क्या बिज़ीनैस कि आप अखबार…टी.वी वगैरा के लिए भी समय ना निकाल सकें"…
“एक्चुअली!…मेरा ज़मीर मुझे इस सब की गवाही नहीं देता"…
“अखबार…टी.वी वगैरा को बांचने की?”…
“जी!…
“वो किसलिए?”…
“दरअसल!…मुझे नक़ल पसंद नहीं"..
“तो?”…
“इसीलिए ना मैं अखबार देखता हूँ और ना ही टी.वी पढता हूँ"…
“ओSsss…हैलो…फॉर यूअर काईंड इन्फार्मेशन….अखबार को देखा नहीं जाता और टी.वी को पढ़ा नहीं जाता"…
“तुम्हें ज्यादा पता है कि मुझे पता है?”..
“क्या?”…
“यही कि मेरी नज़दीक की नज़र कमजोर है जबकि दूर की एकदम दुरस्त है"…
“तो?”..
“इसलिए अगर मैं चाहूँ भी तो अखबार को पढ़ नहीं सकता…सिर्फ देख सकता हूँ”…
“लेकिन आप तो टी.वी को भी पढ़ने की बात कर रहे थे"…
“तो?…उसमें सब टाईटलज़ और कैप्शनज़ को क्या आरती उतारने के लिए दिया जाता है?"…
“तो उन्हें तो आप देख…सुन और पढ़ भी सकते हैं”…
“मैंने कहा ना कि मुझे नकल पसंद नहीं"…
“मैं कुछ समझा नहीं"…
“मुझे इधर-उधर से माल उठा…उसे चोरी से अपना बना…पोस्ट करना पसंद नहीं"..
“हम्म!…तो इसका मतलब टी.वी…रेडियो…सिनेमा और अखबार वगैरा में सर खपाने के बजाय आप हर वक्त घास छीलने में…मेरा मतलब लिखने-लिखाने में ही व्यस्त रहते हैं?”…
“जी!…
“इसीलिए आपकी बीवी मौज ले रही है"…
“बीवीयां तो मौज लेने के लिए ही होती हैं"…
“ओSsss…हैलो…मैं आपकी बीवी की बात कर रहा हूँ"..
“क्क्या?…क्या बकवास कर रहे हो?”…
“अभी बताऊँ?”…
“हाँ!…अभी बताओ"…
“झेल पाओगे?”…
“बड़े आराम से"…
“लेकिन पाठक तो नहीं झेल पाएंगे हमारी बकवास को?”…
“फॉर यूअर काईंड इन्फार्मेशन ब्लोगजगत की भाषा में इस बकवास को बकवास नहीं बल्कि…‘राजीव तनेजा' की कहानी कहा जाता है"….
“ओह!..सॉरी…माय मिस्टेक"…
“यू मस्ट बी"…
“अब क्या करें?”…
“करना क्या है?…अगली कहानी में पकाते हैं?”…
“क्या?”…
“कढी-चावल"…
“कोई खाने आएगा?”…
“पाठकों से ही पूछ के देख लेते हैं"..
“जैसी तुम्हारी मर्जी"…
“हाँ!…तो दोस्तों…आएँगे ना आप हँसते-हँसते हमारी रसोई के कढी-चावल खाने…ऊप्स!…सॉरी…हमारी बकवास झेलने के लिए?”…
“पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे वो नहीं आएँगे तो तुम पकाना ही छोड़ दोगे"…
“हें…हें…हें….वैरी फन्नी…टांग खींचना तो कोई तुमसे सीखे"…
“और बात में से बात निकालना कोई तुमसे"…
“थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट"….
“ओSss…हैलो…ये काम्प्लीमैंट नहीं है"..
“क्या सच?”…
“बिलकुल"…
“दोस्तों से पूछ लूँ?”..
“बेशक”….
“ठीक है…तो फिर देखते हैं कि ऊँट किस करवट बैठता है?”…
“हाँ!..टिप्पणियों से ही पता चल जाएगा कि उन्हें आपकी ये बकवास…ऊप्स!…सॉरी…अंदाज़ पसंद है कि नहीं"..
क्रमश:
नोट: दोस्तों!…इस बार कहानी कुछ ज्यादा ही लंबी खिची जा रही थी…इसलिए ना चाहते हुए भी मुझे इसे बीच में ही रोकना पड़ रहा है|अगले भाग में ज़रूर आपको टैंशन गुरु और उससे जुड़े हंगामों की दुनिया में ले चलूँगा |
***राजीव तनेजा***
+919810821361
+919213766753
+919136159706