फेसबुक हाय हाय…हाय हाय…बन्द करो ये फेसबुक- राजीव तनेजा
इस बात में रत्ती भर भी संदेह नहीं कि आजकल चल रही सोशल नेटवर्किंग साईट्स जैसे याहू..ट्विटर और फेसबुक वगैरा में से फेसबुक सबसे ऊपर है...
यहाँ पर हर व्यक्ति अपने किसी ना किसी तयशुदा मकसद से आया है...बहुत से लोग यहाँ पर सिर्फ मस्ती मारने के उद्देश्य से मंडरा रहे हैं..कईयों के लिए ये फेसबुक प्रेमगाह या प्रेम करने के लिए सर्वोत्तम अखाड़ा साबित हो रहा है...
हम जैसे लेखक टाईप के लोग फेसबुक जैसी सोशल साईट्स पर आए ही इसलिए हैं कि हमें अपने पंख फ़ैलाने के लिए एक नया आसमां...एक नया माहौल मिले..मुझ जैसे बहुत से सडकछाप लेखकों के लिए तो फेसबुक जैसे एक वरदान साबित हुआ है..खुद मुझे ही फेसबुक के जरिये एक नई पहचान तथा अपनी ऊट पटांग कहानियों तथा टू लाईनर्ज़ के लिए नए पाठक भी मिले हैं लेकिन हम लेखकों या कवियों में से भी सभी इससे खुश हों...ऐसी बात नहीं है...
यहाँ हमारी जमात में बहुत से ऐसे लोग भी है जो यहाँ महज़ अपनी हांकना चाहते हैं दूसरों की सुनना नहीं...ऐसे लोगों के लिए मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि...
"यहाँ सभी अपने मन की बातें कहने आएँ है मित्र लेकिन ये सवाल भी तो साथ ही साथ उठ खड़ा होता हैं ना कि अगर सब अपने मन की बातें कहने आएँ हैं तो फिर उन बातों को सुनेगा कौन?...क्या स्वयं जुकरबर्ग?...अगर हाँ...तो उसे हिन्दी आती होगी क्या?....अगर नहीं आती होगी तो क्या इसके लिए वो दुभाषिए का जुगाड या सब टाईटल युक्त हिन्दी फिल्मों के जरिये वो हिन्दी सीखने का प्रयास करेगा?...हिन्दी फिल्मो के जरिये अगर हिन्दी सीख भी ली तो फेसबुक के लिए वो किस काम की?...क्योंकि यहाँ पर तो सब लिखत्तम चलता है...बकत्तम के लिए ना के बराबर गुंजाईश है यहाँ . इसका मतलब सीधे सीधे उसे हिन्दी लिखना और समझना सीखना होगा... लिख और समझ लिया तो बोलना तो वो खुद बा खुद ही सीख लेगा... लेकिन ऐसी परिस्तिथि में जिसके होने कि संभावना लगभग ना के बराबर है ...किसी कारणवश चलो चलो मान भी लिया जाए कि फेसबुक का मालिक याने के खुद जुकरबर्ग फेसबुक पर हमारी आपकी बात सुनने के लिए बिना किसी लालच के ये सब पापड बेल भी लेता है तो भी इस बात की क्या गारंटी है कि अपनी तमाम व्यस्तताओं के चलते वो सबकी बात सुन ही पाएगा?...
कहीं बीच में ही किसी एक आध बुद्धिजीवी टाईप के कवि या व्यंग्य सम्राट ने उसे दुनिया भर के मीन मेख निकाल कविता या व्यंग्य के प्रकार...शब्द संयोजन...उसकी संरचना एवं कलात्मकता की पूर्ण रूप से रसहीन व्याख्या करते हुए उसके दिमाग का दही कर दिया तो?...खुद अपने सामने दिमाग को दही होता देखने से बचने के लिए ये भी हो सकता है कि वो हिन्दी सीखने या इसके नाम से बिदकने लग जाए तो हम लोग तो रह गए ना फिर वहीँ के वहीँ?...इसलिए हे मित्र दुनिया जहाँ तक अपने मन की बात पहुँचाने का सर्वोत्तम तरीका तो यही है कि
हम अपनी कहें तो दूसरों के भी मन की सुनें...
आमीन "
खैर हम बात कर रहे थे फेसबुक के गुण तथा दोष की ...
तो जहाँ एक तरफ फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साईट्स के हमें अनेंकनेक फायदे नज़र आ रहे हैं तो इसमें कमियां भी कई हैं… कई सिरे से फिरे हुए सिरफिरे टाईप के लोग इसे आभासी दुनिया को जंग का मैदान बनाने से भी बाज़ नहीं आ रहे हैं.. दुनिया भर की भड़ास.. कुंठाएँ...विकृतियाँ यहाँ इस फेसबुकिये मंच के जरिये हमारे समाज में चौबीसों घंटे अनवरत रूप से परोसी जा रही हैं..इन्हीं चंद गिनी चुनी बुराइयों की वजह से समाज में इनके खिलाफ आवाजें भी उठनी शुरू हो गई हैं कि... 'फेसबुक हाय हाय…हाय हाय ‘…या बन्द करो ये फेसबुक'
लेकिन क्या महज़ फेसबुक या ट्विटर को बन्द करवा देने से ये सब बुराइयां मिट जाएँगी?...खतम हो जाएँगी? ...
नहीं...बिलकुल नहीं...
फेसबुक को या ऐसी ही अन्य सोशल साईट्स को लेकर सबसे ज़्यादा हाय तौबा मचने वाले हमारे देश के नेता लोग हैं...उनकी इस बौखलाहट से ही साफ़ साफ़ पता चल जाता है कि भीतर से ये लोग कितने डरे हुए हैं...इनके इस डर का सबसे बड़ा कारण ये है कि ये आम आवाम की ताकत को पहचान गए हैं कि ट्विटर पर इनके किसी भी घोटाले का एक ज़रा सा ट्वीट कर देने से या फेसबुक पर किसी नेता या मंत्रालय में हुए भ्रष्टाचार का जिक्र कर देने से
पूरी दुनिया में इनके खिलाफ तुरंत ही एक आभासी मुहिम सी शुरू हो जाती है|इसी सब से बौखला कर सरकार अपना दमन चक्र भी चलने से बाज़ नहीं आ रही है...
किसी को उसकी नौकरी छीन लेने की बात कह धमकाया जा रहा है या किसी प्रोफैसर को महज़ इसलिए जेल की काल कोठरी में ठूस दिया जा रहा है क्योंकि उसने किसी स्वयंभू टाईप की माननीय(?) मुख्यमंत्री खिलाफ कार्टून बना कर उसे फेसबुक पर अपडेट कर दिया था|
इन नेताओं से तो खैर उनका खुदा या भगवान खुद निबटेगा..हमें क्या?…
हम लोग तो हर बार इस बात का पुरजोर विरोध करेंगे कि 'फेसबुक हाय हाय…हाय हाय’…या बन्द करो ये फेसबुक'
***राजीव तनेजा***
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