या तो नूँ ऐ चालेगी

“हद हो गयी ये तो एकदम पागलपन की…नासमझ है स्साले सब के सब….अक्ल नहीं है किसी एक में भी…लाठी..फन फैलाए..नाग पर भांजनी है मगर पट्ठे..ऐसे कमअक्ल कि निरीह बेचारी जनता के ही एक तबके को पीटने की फिराक में हाय तौबा मचा…अधमरे हुए जा रहे हैं"… “किसकी बात कर रहे हैं तनेजा जी?”… “हर एक को बस..अपनी ही पड़ी हुई है..बाकी सब जाएँ बेशक…भाड़ में…(मेरा बडबडाना जारी था) “हुआ क्या तनेजा जी?…कुछ बताइए तो सही"… “पेट पे लात लगी तो लगे अम्मा..अम्मा चिल्लाने…यही अगर पहले ही अक्ल से काम लिया होता तो काहे को इतनी दिक्कत…इतनी...
 
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