डार्क हॉर्स- नीलोत्पल मृणाल- समीक्षा
मिसेज फनीबोन्स - ट्विंकल खन्ना
घुसपैठ-लघुकथा
भाई जान
"सुनो!...रात का वक्त है और पहली बार तुम पर विश्वास कर के तुम्हें अकेला भेज रहे हैं। हमें ग़लत साबित मत करना बेटा।"
"जी...अब्बू जान।"
"ध्यान से जाना और किसी से फ़ालतू बात मत करना और अगर कोई कुछ खाने या पीने के लिए भी दे तो बिलकुल मत लेना।"
"जी!..
"और हाँ!...वहाँ उस लफंगे तैय्यब से ज़रा दूर रहना। नीयत ठीक नहीं उसकी...जब भी देखो..तुम्हें घूरता रहता है।"
"जी!...अब्बू जान।" इन नसीहतों के खत्म होते ही ट्रेन ने धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ ली।
"सुनो!... क्या कह रहे थे तुम्हारे अब्बू जान?" धम्म से पास वाली सीट पर बेतकल्लुफी से पसरते हुए एक आकर्षक नौजवान हँसता हुआ बोला।
"परे हटो...तुमसे ही दूर रहने के लिए कह रहे थे।" कहते हुए उसने भी खिलखिला कर लड़के के गले में बाहें डाल दी और फिर उस खाली कूपे में दोनों आलिंगनबद्ध हो गए। रात के और गहराते ही दोनों को एक बिस्तर में जाते देर ना लगी।
सुबह स्टेशन के आते आते दोनों के चेहरों के रंग और भाव बदल चुके थे। एक तनाव सा लड़के के चेहरे पर जोंक की मानिंद चिपक सा गया था जबकि अपनी तरफ से लड़की खुद को नार्मल रखने का प्रयास करती हुई बार-बार अपने ढुलक आए आंसुओं को दुपट्टे के किनारे से पोंछ रही थी। स्टेशन से बाहर निकल कर युवक ने ऑटो किया और बुझे मन से उसे बाय कर अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया। लड़की ने बिना कोई जवाब दिए कुछ देर इधर उधर देखा मानों किसी का उसे इंतज़ार हो लेकिन कुछ देर तक किसी को आता ना देख उसने भी रिक्शा किया और अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ गयी।
काफ़ी देर से संकोच में डूबे आँसूओं ने अब और लिहाज़ करने से इनकार कर दिया। हिचकियों और सिसकियों के बीच रिक्शा जब तय मंजिल पर रुका तो वहाँ हर तरफ मातम पसरा हुआ था और किसी के जनाज़े की तैयारी चल रही थी। मृत शरीर के आसपास काफी लोग इकट्ठा थे और ज़ोर ज़ोर से सबके रोने तथा विलाप करने की आवाज़ें आ रही थी।
रिक्शेवाले को पैसे दे लड़की से भी अब रुका न गया और वो भाग कर दहाड़ें मार रोती हुई अंदर गयी और मृत शरीर के पास विलाप कर रहे एक युवक को झंझोड़ कर ज़ोर-ज़ोर से रोती हुई बोली “हम सब तो अनाथ हो गए भाई जान। ये सब कैसे हो गया भाई जान?...बोलो ना तैय्यब भाई जान..ये सब कैसे हो गया?”
***राजीव तनेजा***