"धोबी का कुत्ता"

"धोबी का कुत्ता"

***राजीव तनेजा***



आखिर एक दिन बीवी को मुझ गरीब पर तरस आ ही गया,दर असल हुआ ये के एक दिन उसके हुकुम के मुताबिक
पूरे घर मे मै पोछा लगा रहा था कि अचानक मेरी सास बिन बुलाये मेहमान की तरह आ धमकी
अब मुझे क्या पता था कि वो कम्भखत मारी सीधे दौड्ती चली आएगी अपनी औलाद से मिलने .........
(जॆसे बिना मिले उसकी बाजुएँ अकड गयी हो)

बस फिर क्या था जनाब उसका दौड्ते हुए आना था और सीधे बाल्टी से टकराते हुए मुझ सीकियाँ पहलवान पे गिरना था कि ....
मै लुडकता-पुडकता चारो खाने चित्त.

डाँ.को बुलाया तो शुक्र है ऊपर वाले का कि उसने मुझ बेचारे पर तरस खाते हुए बिलकुल ही हिलने-डुलने से मना कर दिया.

अब बीवी के साथ-साथ सास भी परेशान हो उठी कि ...
"अब घर के सारे काम कौन करेगा?" क्योकि ...
"बीवी बेचारी तो नाज़ुक कली थी सो काम कैसे करती?

जब कोई चारा समझ नही बैठा तो अनमने मन से बीवी ने नौकरानी रखने की सोची
मेरा दिल खुशी के मारे झूमने लगा क्योकि मै भी रोज़-रोज़ दाल खाते-खाते तंग आ चुका था.

क्या यार आप तो उलटा सोचने लगे, मै घर की मुरगी दाल बराबर वाली बात नही कर रहा हूँ बल्कि
सचमुच की दाल की बात कर रहा हूँ

अरे यार रोज़-रोज़ मुझे ही तो दाल बनाने पड्ती थी.
सोचने लगा कि अब नौकरानी के हाथ से तर माल पाडने का अच्छा मौका हाथ लगेगा

पास मे ही एक 'प्लेस्-मैंट एजेंसी' थी,वहाँ गये तो एक सुन्दर सी लडकी दिखाई दी बिलकुल अपनी .....
'सानिया मिरज़ा' की तरह
वोही छोटी सी स्कर्ट ....
दिल खुशी के मारे फुदकने लगा था कभी इधर तो कभी उधर कि अब तो तर माल के अलावा और भी बहुत कुछ.....

( अब बहुत कुछ का मतलब खुल कर लिखने कि ज़रूरत नही है मेरे ख्याल से सब समझदार लोग है यहाँ अपने आप समझ जाएगे )....

सीधा उसी क तरफ इशारा करता हुए मेरे मुँह से यही निकला कि "ये वाली नौकरानी चलेगी"

मेरा इतना कहना था कि तपाक से मुँह पे एक झापड पडा और आवाज़ आई......
"मै तुझे नौकरानी दिखती हूँ?".....

"तेरे जैसे छ्त्तीस तो मेरे जूते साफ करते है"

"गधे के बच्चे मै यहाँ अपने कुत्ते के लिए नौकर ढूढने आई हूँ"

मन ही मन मै सोच रहा था कि काश मै ही इसका नौकर होता

मै सोच ही रहा था कि मैने पाया कि वो तो गायब हो चुकी है

इतने मे बीवी कि कडकती आवाज़ सुनाई दी"अब यही खडे रहोगे क्या?"
"और खबरदार एक शब्द भी मुँह से निकाला तो"

बीवी ने अन्दर जा के बात की तो उन्होने एक नौकरानी दिखाई,....

दिखाई क्या....बिलकुल जैसे तवे का उल्टा हिस्सा

ना चाहते हुए भी मुँह से निकल पडा कि....

"ये तो बिलकुल काली है" तो जवाब मिला कि......

"आपने काम ही तो करवाना है कौन सा इसे चाटना है?"

मुझ पागल से रहा नही गया और मुँह से ना चाहते हुए निकल ही पडा कि "होने को तो कुछ भी हो सकता है"

बस मेरा इतना केहना था की अब मैं आगे-आगे और .....
पीछे-पीछे "प्लेसमेंट " वाले "लठ" "ले कर और...
उनके पीछे- पीछे मेरी बीवी..

ख़ैर् किसी तरह चकमा दे कर पिछली दीवार फान्द कर्....
जैसे तैसे मैं अन्दर् पहुँचा...
अब बीवी के " हाथ पाँव " जोड़े तो उसको थोड़ा तरस आया .

अगले वो किसी और "नौकरानी" को दूसरी एजेन्सी से ले आई...
वो तो पिछ्ली वाली से भी "गई-बीती" थी ....

साथ ही पत्ता चला कि प्लेसमेंट वालों ने पूरे....
5000. का फटका लगा दिया था.
कुछ "रेजिस्ट्रेशन" के नाम पे तो कुछ
तो कुछ
"कमिशन"के नाम पे...

इसके अलावा "तेल",शैम्पू" ,कंघी ,"ब्रश"....

कलर टी.वी केबल के साथ...",

गर्मी मैं "कूलर" और .......

हर दो महीने मैं एक "सूट'या साडी
का वादा भी ले लिया था उन् करम जलो ने

एक दो दिन् मे पता चला की उसको "काम- धाम" तो कोई ख़ास ....
आता नही था...लेकिन "नखरे" किसी "महारानी" से कम नही

टी.वी देखने का बड़ा "शौक" था उसको ...बोली
मैं तो "जस्सी" की दीवानी हूँ और "सास-बहू के सीरियल तो
कभी छोड़ती नही और . ...

अभिजीत सावंत " तो मेरा भी "आइडल " है...

पेहले ही दिन् "दूध से मलाई ग़ायब " हो चुकी थी...
धीरे धीरे छोटे मोटे समान भी "ग़ायब" होने लगे थे लेकिन ...
मैं चुप् लगा के बैठ गया क्योकि . ..

उसके जाने के बाद फ़िर् से मेरी हालत वैसे ही जो हो जाती.

उसको इशारे बहुत किए मैने पर अपनी दाल नही गली...

पता नही किस मिट्टी की बनी थी

उसका "ध्यान" पता नही कहाँ रेहता था...?

कुछ दिन् बाद पता चला कि उसकी "सेटिग" "

तो अपने पड़ोसी से हो गयी है..
(कपडे सूखने डालने के बहाने कंभखत मारी....
छत्त पे जो जाती थी बार बार...)

मुझे खुन्दक आ गयी कि "साली खाती तो हमारे घर् का है...
और गुल-छ्र्रे उड़ाती है दूसरे के साथ ..

" मैं भला क्या मॅर गया हूँ....?"..

अब काम काज वो सीख चुकी थी तो...
उसके नखरे और बढने चालू हो गये ...

एक दिन बोली की "ट्रेड फेयर देखने जाउंगी"

ना चाहते हुए भी उसे "ख़र्चा पानी " दे के भेजना पड़ा ....

रात हो गयी थी लेकिन वो वापिस नही आई ..

अगले दिन पता चला की अपने पडोसी .. का भी कुछ अता -पत्ता नही है...

बस फ़िर् क्या था अब प्लेसमेंट वालो की बारी थी बोले....

" आपने ग़ायब कर् दिया है हमारी बेटी को..."

"कोर्ट-कचहरी " तक की नौबत आ पहुँची...

बडी मुशकिल से कुछ ले दे के पीछा छुड़ाया..
तो जान मैं जान आई...."

लगा कि सारे तीरथो के दर्शन् कर् लिए.....

अब मेरा तो वही हाल है जैसे ....
धोबी का कुत्ता ...ना घर् का ना घाट का "


पहले तो कभी कभी बीवी से .......' #@#@#@#@' ...

अब अपने मुँह से कैसे कहूँ ? ..

"मेलोडी खाओ... ख़ुद जान जाओ"...


अब उस कम्भख्त नौकरानी के चक्कर मे उसका'( @#@#@#@)' तो
सवाल ही पैदा नहीं होता ना...


अब मैं ऊपर वाले से यही पूछता हूँ बार बार कि ...

क़ब् इस 'झाड़ू'और 'पोछे 'से पीछा छूटेगा?"

तो पीछे से बीवी की आवाज़ आती "कभी नही ..कभी नहीं..."

***राजीव तनेजा***

3 comments:

सुनीता शानू said...

शाबाश मजा आ गया...एसा ही होना चाहिये था, आप सीखेंगे पत्नी भक्त बनना,..वैसे होता तो कोई नही मगर बनते सब है...

अच्छा लगा पढ़ कर...:)

सुनीता(शानू)

राजीव तनेजा said...

शुक्रिया सुनीता जी(शानू जी) आपकी हौसला-अफज़ाई के लिये बहुत बहुत धनयावाद .... वैसे भी आपका ये कमैंट मेरे लिये बहुत ही महत्व्पूर्ण है क्योंकि ये मेरे ब्लाग पर किसी ने पहली बार कमैंट किया है ...एक बार फिर से धन्यावाद

Anonymous said...

सही

 
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