"आसमान से गिरा"

"आसमान से गिरा"

***राजीव तनेजा***

"हाँ आ जाओ बाहर..."...

"कोई डर नहीं है अब"....

"चले गये हैँ सब के सब"

"मैँ कंपकपाता हुआ आहिस्ता से'जीने'के नीचे बनी पुरानी कोठरी से बाहर निकला"

"एक तो....कम जगह...

ऊपर से'सीलन'और'बदबू'भरा माहौल"...


"रही-सही कसर इन कम्भख्त मारे चूहों ने पूरी कर दी थी"


"जीना दूभर हो गया था मेरा"

"पूरे दो दिन तक वहीं बन्द रहा मैँ"


'ना खाना'.....

'ना पीना'...

ना ही कुछ और"


"डर के मारे बुरा हाल था"

"सब ज्यों का त्यों मेरी आँखो के सामने'सीन'दर'सीन'आता जा रहा था"

"मानों किसी फिल्म का'फ्लैश बैक'चल रहा हो जैसे"


"बीवी बिना रुके चिल्लाती चली जा रही थी....

"अजी सुनते हो?"....

"या आप भी'बहरे'हो चुके हो इन नालायकों की तरह?"


"सम्भालो अपने लाडलों को"

"हर वक़्त मेरी जान पे बने रहते हैँ"


"तंग आ चुकी हूँ मैँ"....

"काबू में ही नहीं आते"


"हर वक़्त बस ऊछल कूद और...बस उछल कूद और कुछ नहीं"


"ये नहीं कि टिक के बैठ जाएं घडी दो घडी आराम से"


"ना'पढाई'की चिंता ना ही किसी और चीज़ का फिक्र"


"हर वक़्त सिर्फ और सिर्फ शरारत ...बस और कुछ नहीं"


"ऊपर से ये मुय्या'होली'का त्योहार क्या आने वाला है....

मेरी तो जान ही आफत में फंसा डाली है इन कम्भखतों ने"


"बच्चे तो बच्चे ....बाप रे बाप"

"जिसे देखो रेंग से सराबोर है"...


"कपडे कौन धोएगा?"....

"तुम्हारा बाप?"


"भगवान बचाए ऐसे त्योहार से"

"रोज़ कोई ना कोई शिकायत लिए चली आती है कि....

इसने मेरी'खिडकी'का'काँच'तोड दिया और ...

इसने मेरी'नई साडी'की ऐसी-तैसी कर डाली"


"अरे डाक्टर ने कहा था कि ...'काँच'लगवाओ खिडकी में?"...


'प्लाई'नहीं लगवा सकती थी क्या?"


"कोई ज़रूरी नहीं कि सामने वाले'मनोज बाबू'को...

'छुप-छुप'के ताकती फिरो खिडकी से हर दम "


"ज़्यादा ही आग लगी हुई है तो भाग क्यों नहीं खडी होती उनके साथ?" और...

"ये'साडी-साडी'क्या लगा रखा है?"


"कोई ज़रूरी नहीं है कि हर वक़्त अपना'पेट'दिखाती फिरो"


"शरीफों का मोहल्ला है ये"

"लटके-झटके दिखाने हैँ तो कहीं और जा के मुँह काला करो अपना"


"दफा हो जाओ सब के सब"

"बीवी ने तो अपनी नौटंकी दिखा सबको चलता कर दिया"


"पर शर्मा जी खडे रहे....

"टस से मस ना हुए"...बोल्रे..

"मेरे चश्मे का हाल तो देखो"...

"अभी-अभी ही तो नया बनवाया था".....

"दो दिन भी टिकने नहीं दिया इन कम्भखतो ने "


"बस मारा गुब्बारा खींच के'झपाक'और कर डाला काम-तमाम"

"टुकडे-टुकडे कर के रख दिया"

"अब पैसे कौन भरेगा?"शर्मा जी गुस्से से बिफरते हुए बोले


"बीवी ने अवाज़ सुन ली थी शायद"...

"लौटे चली आई तुरंत"बोली....

"अब शर्मा जी..... बुढापे में काहे अपनी'मिट्टी पलीद'करवाते हो?और मेरा मुँह खुलवाते हो"


'राम कटोरी'बता रही थी कि ...

'चश्मा'लगा है'आँखे'खराब होने से और'आँखे'खराब हुई हैँ...

दिन-रात'कंप्यूटर'पे उलटी-पुलटी चीज़ें देखने से"


"इसीलिए तो काम छोड चली आयी ना आपके यहाँ से?"

शर्मा जी बेचारे सर झुकाए पानी-पानी हो लौट गये


"शर्मा जी की हालत देख मेरी मन ही मन हँसी छूट रही थी"

"अभी दो दिन बचे थे होली में...लेकिन अपनी होली तो जैसे कब की शुरू हो चुकी थी"

"बस छत पर चढे और लगे....

'गुब्बारे'पे'गुब्बारा'मारने हर आती-जाती लडकी पर"


"ले'दनादन'और...दे'दनादन'"


"पापा!,,,पापा!...सामने वालों की हिम्मत तो देखो ...

अपुन के मुकाबले पर उतर आए हैँ"अपना चुन्नू बोल पडा


"हूँ....अच्छा!...तो पैसे का रौब दिखा रहे हैँ साले!...."


"इम्पोर्टेड पिचकारियाँ क्या उठा लाए सदर बाज़ार से ....

सोचते हैँ कि पूरी दिल्ली को भिगो डालेंगे"


"अरे बाप का राज़ समझ रखा है क्या?"

"अपुन अभी ज़िन्दा है ....मरा नहीं"


"क्या मजाल जो हमसे कोई...बाज़ी मार ले जाए"

"दाँत खट्टे ना कर दिए तो अपुन भी एक बाप की औलाद नहीं"मैँ गुस्से से भर उठा


"बस फिर क्या था ....मुकाबला शुरू...."

"कभी वो हम पे भारी पडते तो....

कभी हम उन पे"


"कभी वो बाज़ी मार ले जाते तो....कभी हम"

"कभी हमारा'निशाना'सही बैठता तो...कभी उनका"


"गली मानो तालाब बन चुकी थी लेकिन....

कोई पीछे हटने को तैयार नहीं"


"कभी अपने'चुन्नू'को गुब्बारा पडता तो कभी उनके'पप्पू'को"

"धीरे-धीरे वो हम पे भारी पडने लगे"


"वजह?"....

"सुबह से कुछ खाया-पिया जो नहीं था"

"बीवी जो तिलमिलाई बैठी थी

"और वो साले!...बीच-बीच में ही चाय-नाश्ता करते हुए...

वार पे वार किए चले जा रहे थे"


"बिना रुके उनका हमला जारी था"


"और इधर अपनी श्रीमति ..नराज़ क्या हुई....

'चाय-नाश्ता'तो क्या?....

हम तो पानी तक को तरस गए"


"हिम्मत टूटने लगी थी कुछ-कुछ"

"थक चुके थे हम"

"और इधर ये नामुराद चूहे साले! नाक में दम किए हुए बैठे थे"

"भूख के मारे दम निकले जा रहा था"...

"बदन मानो हडताल किए बैठा था कि ....

"माल बन्द तो काम बन्द"


"ठीक कहा है किसी ने बन्दे ने कि....

"अपने मरे बिना'जन्नत'नसीब नहीं होती"

"सो...मन मार,खुद ही बनानी पडी चाय"


"ये देखो!....सालो....

हम खुद ही बनाना और पीना जानते हैँ"...


"मोहताज नहीं हैँ किसी'औरत'के"


"चूडियाँ पहन लो चूडियाँ"


"जिगर में दम नहीं...हम किसी से कम नहीं"


"तुम्हारी तरह नहीं है हम"...

"हम में है दम"


"ये नहीं कि चुपचाप हुकुम बजाया और कर डाली फरमाईश"


"तुम्हें क्या पता कि'अपने हाथ की'में क्या मज़ा है?"


"बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद"


"अभी पहली चुस्की ही भरी थी कि ....

'फटाक'से आवाज़ आई और सारे के सारे'कप-प्लेट'हवा में उडते नज़र आए"


"चाय बिखर चुकी थी"....और...

'कप-प्लेट'मानों अपने आखरी सफर के'कूच'की तैयारी में जुटे थे"


"ऐसा लगा जैसे मानों ...'समय'थम सा गया हो"


"खून भरा घूंट पी के रह गया"


"लेकिन एक मौका ज़रूर मिलेगा और सारे हिसाब-किताब पूरे हो जाएँगे"...

"बस यही सोच मै खुद को तसल्ली दिए जा रहा था"

"सौ सुनार की सही...लेकिन...

जब एक लोहार की एक पडेगी तो..

सारी की सारी हेकडी'खुद-ब-खुद'बाहर निकल जाएगी"


"देखो....

देखो...साला!...

कैसे बाहर खडा-खडा...

'गोलगप्पे'पे'गोलगप्पा'खाए चला जा रहा है"अपना चुन्नू बोल पडा

'निर्लज्ज'कहीं का....


"ना तो सेहत की चिंता और ना ही किसी और चीज़ का फिक्र"

"पहले अपनी सेहत देख......फिर उस गरीब बेचारे'गोलगप्पे'की सेहत देख"


"कोई मेल भी है?"....

"कुछ तो रहम कर"


"साला!...'चटोरा'कहीं का"


"देख बेटा....देख"....

"अभी मज़ा चखाता हूँ"

"ले साले!...ले.....और खा'गोलगप्पे'.."


"चिढाता है मेरे'चुन्नू'को"


"और मैने निशाना साध...खींच के फैंक मारा'गुब्बारा'"...


"ये गया....और....वो गया...."


"फचाक्क"....

"आवाज़ आई और कुछ उछलता सा दिखाई दिया"



"मगर ये क्या?"....

"जो देखा....देख के विश्वास ही नहीं हुआ"

"पसीने छूट गए मेरे"

"थर-थर...काँपने लगा"...

"हाथ-पाँव ने काम करना बन्द कर दिया"

"दिमाग जैसे'सुन्न'सा हुए जा रहा था"...


"पकडो साले को"...

"भागने ना पाए"जैसी आवाज़ों से मेरा माथा ठनका


"कुछ समझ नहीं आया...

ध्यान से आँखे मिचमिचाते हुए फिर से देखा तो अपना पडोसी ...

'सही सलामत'....

'भला चंगा'...

'पूरा का पूरा'....

'जस का तस'खडा था और....

बगल में'शम्भू'गोलगप्पे वाला.....

'सोंठ'से सना चेहरा और बदन लिए गालियों पे गालियां बके चला जा रहा था"

"उसका नया कुर्ता'झख सफेद'से 'चाकलेटी'हो चुका था"

"दर असल हुआ क्या कि ...बस पता नहीं कैसे....

एक'छोटी'से'बहुत बडी'गल्ती हो गयी और....

ना जाने कैसे'निशानची'का'निशाना'चूक गया"


"'गुब्बारा'सीधा'दनदनाता'हुआ...

'गोलगप्पे'वाले के चटनी भरे डिब्बे में जा गिरा"..

'धडाम'...और बस हो गया'काम'"


"पापा!...भागो"....

"सीधा ऊपर ही चला आ रहा है...लट्ठ लिए"चुन्नू की'मिमियाती'आवाज़ सुनाई दी


"मैने आव देखा ना ताव...

'कूदता-फांदता'..जहाँ रास्ता मिला...भाग लिया"

"कुछ होश नहीं कि...

'कहाँ-कहाँ'से गुज़रता हुआ...

'कहाँ का कहाँ'जा पहुँचा"


"हाय री मेरी फूटी किस्मत".....

"साला!...यही आना था मुझे?"

"जैसे ही छुपता-छुपाता किसी के घर में घुसा ही था कि ....

वो'लट्ठ'बरसे ...बस..वो'लट्ठ'बरसे कि बस पूछो मत...


"कोई गिनती नहीं"...


"उफ..कहाँ-कहाँ नहीं बजा'लट्ठ'?"


"सालो!...कोई जगह तो बक्श देते कम से कम "


"सूजा के रख दिया पूरा का पूरा बदन"


"ऐसे खेली जाती है ?होली!..."


"अरे'रंग'डालो...और बेशक'भंग'डालो लेकिन ज़रा...

'सलीके'से...

'स्टाईल'से ...

'नज़ाकत'से "....


"ये क्या कि'आव'देखा ना'ताव'और बस सीधे-सीधे'भाँज'दिया'लट्ठ'?"


"ठीक है... माना कि'रिवाज़'है आपका ये लेकिन...

पहले देखो तो सही कि सामने...

'कौन है?'...

'कैसा है?'...

'कहाँ का है?"


"कुछ'जान-वान'भी है कि नही?"...


"स्टैमिना तो देखो कि'सह'भी सकेगा या नहीँ?"


"स्सालों !..खेलना है तो....

'टैस्ट मैच'खेलो...

'आराम से खेलो'...

'मज़े से ...'मज़े-मज़े'में खेलो"...


'ये क्या कि सीधा ही'टवैंटी-टवैंटी'?"

"ये'बल्ला'घुमाया....वो'बल्ला'घुमाया...और

कर डाली'चौकों-छक्कों'की बरसात"


"ठीक है बाबा....माना कि इसमें.. .

'जोश'है...

'ज़ुनून है'

'एक्साईट्मैंट है'...

'दिवानापन है ...

खालिस एंटरटेनमैंट है.. लेकिन...

'असल'तो'असल'ही रहेगी ना?"

"उसका क्या मुकाबला"

"वो दिन भी क्या दिन थे"

जब सामने वाले को भी मौका दिया जाता था कि...

"ले बेटा!...हो जाएँ 'दो-दो हाथ'"

"कमर कस,तू भी कर ले तू भी'हाथ-साफ'

"ये क्या कि सामने वाले को मौका भी ना दो और बरसा दो'ताबड-तोड'?"

"इंसान है वो भी...

कुछ तो हक बनता है उसका भी"

"चीटिंग है ये तो सरासर...चीटिंग"

"सालो!..ने अपनी प्रैक्टिस-प्रैक्टिस के चक्कर में अपुन पर ही हाथ साफ कर डाला"


"जानी!...'होली'खेलने का शौक तो हम भी रखते है और...

खेल भी सकते हैँ'होली'लेकिन...

तुम'छक्कों'के साथ होली खेलना हमारी शान के खिलाफ है "


"बडी मुश्किल से पीछा छुडा जैसे ही बाहर निकला तो जैसे ...

"आसमान से गिरा और खजूर पे अटका"


"बाहर'लट्ठ'लिए'नत्थू'गोलगप्पे वाला जो पहले से ही मौजूद था

"मेरा ही इंतज़ार था उसे"

"दौड फिरे शुरू हो चुकी थी...

"मै आगे-आगे और वो पीछे-पीछे"


"ये तो शुक्र है उस कुत्ते का जिसे मैने कुछ खास नहीं बस'तीन'या'चार'गुब्बारे ही मारे थे कुछ दिन पहले"


"साले!...को'सफेद'से'बैंगनी'बना डाला था पल भर में"

"वही मिल गया रास्ते में"....

"मुझे देख ऐसे उछला जैसे'बम्पर लाटरी'लग गयी हो"

"पीछे पड गया मेरे"

"पैरों में जैसे पर लग गये हों मेरे"

"हाथ कहाँ आने वाला था मैँ"

"ये गया और...वो गया"

"नत्थू क्या उसका बाप भी नहीं पकड पाया"

"हाँफते-हाँफते सीधे 'जीने'के नीचे बनी'कोठरी'में डेरा जमाया"

"और् आखिर चारा भी क्या था?"

"साला!...'नत्थू'जो दस-बीस को साथ लिए चक्कर पे चक्कर काटे जा रहा था बार-बार"

"ये तो बीवी ने समझदारी से काम लिया और...

कोई ना कोई बात बना उन्हें चलता कर दिया तो कहीं जा के जान में जान आई"

***राजीव तनेजा***

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