"सलाम-नमस्ते"
"सलाम-नमस्ते"
***राजीव तनेजा***
"हॉय!...."..
"हैलो!...."..
"सलाम!...."..
"नमस्ते!..."...
"आदाब!...."
"इन सब में से दोस्तों!...मैँ आपको कुछ भी नहीं कहने वाला"...
"वो दर असल बात कुछ यूँ है कि अब ये अपने हिन्दी ब्लॉग तो ऊपरवाले की दया से और....
आप जैसे दोस्तों की कडी मशक्कत से दिन दूनी रात चौगुनी तेज़ी से बढते ही जा रहे हैँ और...
अपुन के ब्लॉग पे भी ट्रैफिक कुछ बढता ही जा रहा है"
"ब्लागज़ पे ट्रैफिक यूँ ही बढता रहेगा गर...तुम पढोगे प्यार से लेकिन...
एक चीझ नोट किया हूम ने कि सिर्फ 'तीने ठौ डॉलर' भर ही इकट्ठा हो पाया है...
पूरे तीन महीने कीबोर्ड पे उंगलियाँ चटखाने के बाद"...
"उसके बाद भी भेजवा में कुलबुलाती हुई कशम्कश जारी के...
"ई 'गूगल' वाले 'चैक' भेजेंगे के 'कैश' भेजेंगे?"
"कौनु खबर नाही"...
"के बेरा घर के पते पे भेजेंगे के आफिसवा के पते पे?"
"और अगर नहीं भेजेंगे तो हम उनका!...कॉ उखाड लेंगे?"
"बहुत ना इंसाफी करत हैँ ई गूगल वाले तो...
किसी को रबडी और मॉल-पुआ तो...किसी के पल्ले सूखी जलेबी भी नहीं"
"तो भैय्या मेरे!...गाँठ में तनिक सी बात बाँध लो कि जहाँ भी जाओ...
'एडसैंस' की 'ऐडज़' पे चटखा ज़रूर लगाओ और अपुन जैसे महारथियों से भी लगवाओ"
"कहीं इन एडज़ को'एडस'बिमारी समझ के ही ना बिदक लेना दूर से"
"क्योंके!..क्या कर बैठो..कुछ पता नहीं तुम्हारा"
"समझा करो यार!...पापी पेट का सवाल जो है"
"कहाँ तक अपुन अकेला बोझा ढोता फिरेगा अपने सभी खर्चो का?"
"भाई-बन्दी भी कोई चीज़ होती है कि नहीं?"
"एक अकेला थक जाएगा...मिलकर बोझ उठाना". ..
"साथी हाथ बढाना...साथी रे!..."
"और ऊपर से मुय्ये दिन रात हैँ कि...
दिन पर दिन छोटे होते जा रहे हैँ अपनी बॉलीवुड सुन्दरियों के कपडों की तरह"
"अब!..ये सिर्फ बॉलीवुड सुन्दरियों को ही नाहक बदनाम क्योंकर करें अपुन लोग?"...
"ये सीरियल वाली मेनकाएँ भी तो इसी ढर्रे पे चल निकली हैँ" ...
"और तो और उनके पीछे-पीछे अपने गली-मोहल्ले की बालिकाएँ भी...
इन खरबूजियों को देख-देख उन्हीं के माफिक रंग बदलते हुए हम मर्दों की ऐसी-तैसी करने पे उतारू हैँ... .
खम्बा उखाड के"
"अब यार!...अगर मैँ यूँ ही मुफ्त में ज्ञान बाँटता फिरा तो फिर हो ली कमाई इस ब्लॉग-व्लॉग से"
"और फिर बाकि बचे हुए कामों को क्या गुरूद्वारे से ग्रंथी आ के करेगा?"
"वैसे भी यार!...ब्लॉग-व्लोग पे इस पोस्ट-वोस्ट के चक्कर से अपनी रोज़ी-रोटी चलने से रही "...
"कई बार तो!..बीवी भी तुनक के कह उठती है कि....
अब इस मुय्यी 'रोज़ी'से ही पकवाओ रोटी"
"मैँ तो चली मायके"
"लौट के न आऊँगी ...जब तक ये मुय्या नैट नहीं कटवाओगे"
"खैर छोडो मियाँ!...किसकी याद दिला दी?"
"अब इस रोज़ी के चक्कर में...
ऊप्स!...
सॉरी...
रोटी के चक्कर में कोई ना कोई काम-धाम तो करना ही पडेगा"
"हाँ!..तो मैँ कहाँ रहा था कि अब ये 'सलाम-नमस्ते'आप हमसे ना ही करवाओ तो बेहतर"...
"पूछो भला क्यूँ?"
"तो भैय्या मेरे!...
पहले आप हमसे नमस्ते बुलवाओगे...
फिर कोई जान-पहचान निकालोगे...
फिर फोन-शोन...
फिर एस.एम.एस....
फिर डेटिंग-शेटिंग"
"हॉय!..मैँ मर जावाँ गुड खा के"
"अब!..अगर अपोज़िट ग्रुप के निकले तो ठीक...
काम चल जाएगा लेकिन...भगवान ना करे अगर कहीं...
गल्ती से भी सेम ग्रुप के निकल गए तो?"...
")*&(ं%$##@@#$$)"
"आखिर!...समझ क्या रखा है आपने मुझे?"...
"हिम्मत कैसे हो गई आपकी...ऐसा सोचने भर की?"
"अरे भाई!...
हिन्दी हूँ मैँ और....
वतन है'हिंदोस्ता'हमारा"...
"कोई चलता-फिरता फिरंगी नहीं कि...
ये भी ठीक है और वो भी ठीक है"...
"हुँह!...बिना किसी लाग-लपेट के जो आता है...आने दूँ? और..
जो जाता है...जाने दूँ?"..
"वैसे...एक बडा ही फैंटास्टिक आईडिया भेज डाला है ऊपरवाले ने अपुन के भेजे में अभी-अभी "
"आप कहें तो!...बतलाऊँ?"
"अब यार!...आप सब तो सोचते ही रह जाओगे...
लगता है मुझे ही पहल करनी पडेगी"
"और!...करूँ भी क्यों ना?"....
"मेरा...ब्लॉग"...
"मेरा...टाईम"...
"मेरा...कम्प्यूटर"...
"मेरा....की-बोर्ड"
"लेकिन!..शायद समय तो आपका भी ज़ाया जा रहा है ना?"...
"सॉरी यार!...इसका तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा"
इसी को सही मायने में कहते हैँ...
"छोटी सी...बहुते बडी गल्ती"
"दर असल वैसे तो मैँ *&ं%$#@ हूँ नहीं लेकिन...
कभी-कभार &ं%$#@ बनने में कुछ बुराई भी नहीं"
दिल ये कहता है कि...
"वो भी अपने ही हैँ...पराए नहीं"
"थोदा चेंज-वेंज भी होता रहना चाहिए लाईफ में"
"तो फिर '*&ं%$#@@' बनने में आखिर हर्ज़ा ही क्या है?"
"अब यार!...सच्ची बात तो ये है कि...
'मेरे'....
'आपके'...
'बडे के'...
'छोटे के'...
'काले के'...
'गोरे के'...
'मोटे के'..
'पतले के'...
यानी हम सब के कभी ना कभी तो '@#$%ं' ज़रूर ही बजते हैँ"...
"भले ही कोई माने या ना माने"
"तो फिर!...यूँ समझ लो मेरे प्यारे 'बंटुकनाथ' कि अपुन के तो '@#$%ं'बज ही गए"
"लेकिन...चिंता करने की कौनू ज़रूरत नाही"...
"अब चाहे 'चिंता' और 'चिता' में सिर्फ बिन्दी भर का ही फर्क हो लेकिन...
मतलब में ज़मीन-आसमान का फर्क है बाबू!..."
"चिंता जो है..वो सोने नहीं देती और...चिता जो है....वो हमेशा के लिए सुला डालती है"
"कहत राजीव...सुनो भी साधो...
"लकडी जल..कोयला भय्यी,कोयला जल...भय्या राख...
चिंता न कर रे बन्धु मेरे ..हो जाएगा तू पल भर में ही राख"
"ये जो चिंता नाम की चिडिया होती है,वो है चिता नाम के घोंसले की जननी"...
"जननी का मतलब जानत हो ना बाबू?के....
वो भी हम हीं खुल के बतलाएँ इसी पोस्ट में?"
"छडडो यार!...क्या रखा है इन बेफिजूल के बातों में?"
"काम की बाता करते हैँ"
"तो आपके भी ऊपरवाले की दुआ से जल्द ही '@#$%ं'बजेंगे"...
"मेरा आशीर्वाद और ऊपरवाले की दुआएँ आपके साथ है"
"इंशा अल्लाह!...आपकी ये दिली तमन्ना ज़रूर पूरी होगी"
"अरे!..घबरात काहे हो?"...
"हमेशा थोडी ही बजेंगे आपके?"
"बस कभी-कभार..यूँ ही जब थोडा ऊपर-नीचे हो जाएगा...तब"
"समझे!..मेरे बबलू मियाँ?"
"अब यार!...इतना तो लाईफ में एडजस्ट करना सीख ही लो अब"
"कौन जाने कब कैसा वक्त आन पडे"
"धत तेरे की!..."
"आप भी ना!...बस तौबा हो...तौबा"...
"बात हो रही थी सलाम-नमस्ते की और पहुँच गई कहाँ की कहाँ?लेकिन...
मजाल है जो आपने तनिक सी भी चूँ तक की हो"
"सब्र की भी इंतहा है ये तो"...
"लेकिन एक शिकायत तो आपसे ज़रूर है दोस्त!...के...
आप भी मुझे नादान को रोकने के बजाय ये बेफिजूल की बातें पढने में ऐसे मस्त हुए जा रहे थे जैसे...
मॉबदोलत सिहांसन पे विराजमान हों और साक्षात मल्लिका ठुमके लगा रही हो आपके सामने"
"अरे बाबा!..हमारी तुम्हारी तरह ही हाड-माँस की आम इंसान है वो भी"
"कौनु आसमान से नहीं टपकी है वो कि आप पलक-पावडे बिछाते फिरें उसके लिए"...
"छत्तीस टकराएँगी रोज़...बस अपनी पारखी नज़र दौडाते फिरो...चहूँ ओर(चारों तरफ)"
"उफ!...बहुत हो गया ये मल्लिका-वल्लिका का चक्कर" ...
"सीधे ही पते की बात पे आए देत हैँ बिकाझ...
"टाईम वेस्ट इझ मनी वेस्ट"
"तो पते की बात ये है मित्रवर मेरे कि...
बिना किसी लाग-लपेट और औपचारिकता से निर्वाह करते हुए सीधे -सीधे यही बोले देता हूँ मैँ कि...
"सत श्री अकाल एण्ड ....सिंगल-सिंगल फोटोकॉपी टू ऑल "
"जय हिन्द!..."...
"भारत माता की जय"
***राजीव तनेजा***