"सलाम-नमस्ते"


"सलाम-नमस्ते"


***राजीव तनेजा***


"हॉय!...."..

"हैलो!...."..

"सलाम!...."..

"नमस्ते!..."...

"आदाब!...."

"इन सब में से दोस्तों!...मैँ आपको कुछ भी नहीं कहने वाला"...

"वो दर असल बात कुछ यूँ है कि अब ये अपने हिन्दी ब्लॉग तो ऊपरवाले की दया से और....

आप जैसे दोस्तों की कडी मशक्कत से दिन दूनी रात चौगुनी तेज़ी से बढते ही जा रहे हैँ और...

अपुन के ब्लॉग पे भी ट्रैफिक कुछ बढता ही जा रहा है"


"ब्लागज़ पे ट्रैफिक यूँ ही बढता रहेगा गर...तुम पढोगे प्यार से लेकिन...

एक चीझ नोट किया हूम ने कि सिर्फ 'तीने ठौ डॉलर' भर ही इकट्ठा हो पाया है...

पूरे तीन महीने कीबोर्ड पे उंगलियाँ चटखाने के बाद"...


"उसके बाद भी भेजवा में कुलबुलाती हुई कशम्कश जारी के...

"ई 'गूगल' वाले 'चैक' भेजेंगे के 'कैश' भेजेंगे?"

"कौनु खबर नाही"...

"के बेरा घर के पते पे भेजेंगे के आफिसवा के पते पे?"


"और अगर नहीं भेजेंगे तो हम उनका!...कॉ उखाड लेंगे?"


"बहुत ना इंसाफी करत हैँ ई गूगल वाले तो...

किसी को रबडी और मॉल-पुआ तो...किसी के पल्ले सूखी जलेबी भी नहीं"

"तो भैय्या मेरे!...गाँठ में तनिक सी बात बाँध लो कि जहाँ भी जाओ...

'एडसैंस' की 'ऐडज़' पे चटखा ज़रूर लगाओ और अपुन जैसे महारथियों से भी लगवाओ"


"कहीं इन एडज़ को'एडस'बिमारी समझ के ही ना बिदक लेना दूर से"

"क्योंके!..क्या कर बैठो..कुछ पता नहीं तुम्हारा"


"समझा करो यार!...पापी पेट का सवाल जो है"

"कहाँ तक अपुन अकेला बोझा ढोता फिरेगा अपने सभी खर्चो का?"


"भाई-बन्दी भी कोई चीज़ होती है कि नहीं?"


"एक अकेला थक जाएगा...मिलकर बोझ उठाना". ..

"साथी हाथ बढाना...साथी रे!..."


"और ऊपर से मुय्ये दिन रात हैँ कि...

दिन पर दिन छोटे होते जा रहे हैँ अपनी बॉलीवुड सुन्दरियों के कपडों की तरह"


"अब!..ये सिर्फ बॉलीवुड सुन्दरियों को ही नाहक बदनाम क्योंकर करें अपुन लोग?"...

"ये सीरियल वाली मेनकाएँ भी तो इसी ढर्रे पे चल निकली हैँ" ...

"और तो और उनके पीछे-पीछे अपने गली-मोहल्ले की बालिकाएँ भी...

इन खरबूजियों को देख-देख उन्हीं के माफिक रंग बदलते हुए हम मर्दों की ऐसी-तैसी करने पे उतारू हैँ... .

खम्बा उखाड के"


"अब यार!...अगर मैँ यूँ ही मुफ्त में ज्ञान बाँटता फिरा तो फिर हो ली कमाई इस ब्लॉग-व्लॉग से"


"और फिर बाकि बचे हुए कामों को क्या गुरूद्वारे से ग्रंथी आ के करेगा?"


"वैसे भी यार!...ब्लॉग-व्लोग पे इस पोस्ट-वोस्ट के चक्कर से अपनी रोज़ी-रोटी चलने से रही "...

"कई बार तो!..बीवी भी तुनक के कह उठती है कि....

अब इस मुय्यी 'रोज़ी'से ही पकवाओ रोटी"

"मैँ तो चली मायके"

"लौट के न आऊँगी ...जब तक ये मुय्या नैट नहीं कटवाओगे"


"खैर छोडो मियाँ!...किसकी याद दिला दी?"

"अब इस रोज़ी के चक्कर में...

ऊप्स!...

सॉरी...

रोटी के चक्कर में कोई ना कोई काम-धाम तो करना ही पडेगा"


"हाँ!..तो मैँ कहाँ रहा था कि अब ये 'सलाम-नमस्ते'आप हमसे ना ही करवाओ तो बेहतर"...

"पूछो भला क्यूँ?"

"तो भैय्या मेरे!...

पहले आप हमसे नमस्ते बुलवाओगे...

फिर कोई जान-पहचान निकालोगे...

फिर फोन-शोन...

फिर एस.एम.एस....

फिर डेटिंग-शेटिंग"


"हॉय!..मैँ मर जावाँ गुड खा के"


"अब!..अगर अपोज़िट ग्रुप के निकले तो ठीक...

काम चल जाएगा लेकिन...भगवान ना करे अगर कहीं...

गल्ती से भी सेम ग्रुप के निकल गए तो?"...


")*&(ं%$##@@#$$)"


"आखिर!...समझ क्या रखा है आपने मुझे?"...


"हिम्मत कैसे हो गई आपकी...ऐसा सोचने भर की?"


"अरे भाई!...

हिन्दी हूँ मैँ और....

वतन है'हिंदोस्ता'हमारा"...


"कोई चलता-फिरता फिरंगी नहीं कि...

ये भी ठीक है और वो भी ठीक है"...


"हुँह!...बिना किसी लाग-लपेट के जो आता है...आने दूँ? और..

जो जाता है...जाने दूँ?"..


"वैसे...एक बडा ही फैंटास्टिक आईडिया भेज डाला है ऊपरवाले ने अपुन के भेजे में अभी-अभी "

"आप कहें तो!...बतलाऊँ?"


"अब यार!...आप सब तो सोचते ही रह जाओगे...

लगता है मुझे ही पहल करनी पडेगी"

"और!...करूँ भी क्यों ना?"....


"मेरा...ब्लॉग"...

"मेरा...टाईम"...

"मेरा...कम्प्यूटर"...

"मेरा....की-बोर्ड"

"लेकिन!..शायद समय तो आपका भी ज़ाया जा रहा है ना?"...

"सॉरी यार!...इसका तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा"

इसी को सही मायने में कहते हैँ...

"छोटी सी...बहुते बडी गल्ती"


"दर असल वैसे तो मैँ *&ं%$#@ हूँ नहीं लेकिन...

कभी-कभार &ं%$#@ बनने में कुछ बुराई भी नहीं"


दिल ये कहता है कि...

"वो भी अपने ही हैँ...पराए नहीं"

"थोदा चेंज-वेंज भी होता रहना चाहिए लाईफ में"


"तो फिर '*&ं%$#@@' बनने में आखिर हर्ज़ा ही क्या है?"


"अब यार!...सच्ची बात तो ये है कि...

'मेरे'....

'आपके'...

'बडे के'...

'छोटे के'...

'काले के'...

'गोरे के'...

'मोटे के'..

'पतले के'...

यानी हम सब के कभी ना कभी तो '@#$%ं' ज़रूर ही बजते हैँ"...

"भले ही कोई माने या ना माने"

"तो फिर!...यूँ समझ लो मेरे प्यारे 'बंटुकनाथ' कि अपुन के तो '@#$%ं'बज ही गए"

"लेकिन...चिंता करने की कौनू ज़रूरत नाही"...

"अब चाहे 'चिंता' और 'चिता' में सिर्फ बिन्दी भर का ही फर्क हो लेकिन...

मतलब में ज़मीन-आसमान का फर्क है बाबू!..."


"चिंता जो है..वो सोने नहीं देती और...चिता जो है....वो हमेशा के लिए सुला डालती है"


"कहत राजीव...सुनो भी साधो...

"लकडी जल..कोयला भय्यी,कोयला जल...भय्या राख...

चिंता न कर रे बन्धु मेरे ..हो जाएगा तू पल भर में ही राख"


"ये जो चिंता नाम की चिडिया होती है,वो है चिता नाम के घोंसले की जननी"...

"जननी का मतलब जानत हो ना बाबू?के....

वो भी हम हीं खुल के बतलाएँ इसी पोस्ट में?"


"छडडो यार!...क्या रखा है इन बेफिजूल के बातों में?"

"काम की बाता करते हैँ"

"तो आपके भी ऊपरवाले की दुआ से जल्द ही '@#$%ं'बजेंगे"...

"मेरा आशीर्वाद और ऊपरवाले की दुआएँ आपके साथ है"

"इंशा अल्लाह!...आपकी ये दिली तमन्ना ज़रूर पूरी होगी"

"अरे!..घबरात काहे हो?"...

"हमेशा थोडी ही बजेंगे आपके?"

"बस कभी-कभार..यूँ ही जब थोडा ऊपर-नीचे हो जाएगा...तब"


"समझे!..मेरे बबलू मियाँ?"

"अब यार!...इतना तो लाईफ में एडजस्ट करना सीख ही लो अब"

"कौन जाने कब कैसा वक्त आन पडे"


"धत तेरे की!..."

"आप भी ना!...बस तौबा हो...तौबा"...


"बात हो रही थी सलाम-नमस्ते की और पहुँच गई कहाँ की कहाँ?लेकिन...

मजाल है जो आपने तनिक सी भी चूँ तक की हो"


"सब्र की भी इंतहा है ये तो"...

"लेकिन एक शिकायत तो आपसे ज़रूर है दोस्त!...के...

आप भी मुझे नादान को रोकने के बजाय ये बेफिजूल की बातें पढने में ऐसे मस्त हुए जा रहे थे जैसे...

मॉबदोलत सिहांसन पे विराजमान हों और साक्षात मल्लिका ठुमके लगा रही हो आपके सामने"


"अरे बाबा!..हमारी तुम्हारी तरह ही हाड-माँस की आम इंसान है वो भी"

"कौनु आसमान से नहीं टपकी है वो कि आप पलक-पावडे बिछाते फिरें उसके लिए"...

"छत्तीस टकराएँगी रोज़...बस अपनी पारखी नज़र दौडाते फिरो...चहूँ ओर(चारों तरफ)"

"उफ!...बहुत हो गया ये मल्लिका-वल्लिका का चक्कर" ...

"सीधे ही पते की बात पे आए देत हैँ बिकाझ...

"टाईम वेस्ट इझ मनी वेस्ट"


"तो पते की बात ये है मित्रवर मेरे कि...

बिना किसी लाग-लपेट और औपचारिकता से निर्वाह करते हुए सीधे -सीधे यही बोले देता हूँ मैँ कि...


"सत श्री अकाल एण्ड ....सिंगल-सिंगल फोटोकॉपी टू ऑल "


"जय हिन्द!..."...

"भारत माता की जय"


***राजीव तनेजा***

"चौथा खड्डा"

"चौथा खड्डा"



बंता:संता सिंह जी!..ये खड्डा किसलिए खोदा जा रहा है?"

संता:ओ!..कुछ नहीं जी मुझे अमेरिका जाना है ना...इसलिए"

बंता:अमेरिका जाना है?"

संता:हाँ जी!.."

बंता:अमेरिका जाने के लिए खड्डा खोदना जरूरी है?

संता:ओ!..कर दी ना तूने सरदारों वाली गल्ल...

बेवाकूफ पॉसपोर्ट बनवाने के लिए फोटो चाहिए होती है कि नहीं?

बंता:फोटो तो चाहिए होती है लेकिन...फोटो से खड्डे का क्या कनैक्शन है?

संता:अरे बेवाकूफ!पॉसपोर्ट फोटो में कमर के ऊपर का हिस्सा आना चाहिए...

इसलिए कमर तक गहरे खड्डे खोद रहा हूँ ताकि नीचे का हिस्सा कैमरे में न आए

बंता:लेकिन यहाँ तो आप आलरैडी तीन खड्डे पहले ही खोद चुके हो...फिर ये चौथा क्यों?

संता:बेवाकूफ पॉसपोर्ट में चार फोटो लगानी पडती हैँ"

***राजीव तनेजा***

"गधे के पीछे गधा"

"गधे के पीछे गधा"

"सरदार संता सिंह अँग्रेज़ी का माना हुआ टीचर था"

"उनके विधार्थी हमेशा अव्वल आते थे"

"एक दिन स्कूल की इंस्पैकशन थी"....

"इंस्पैक्टर ने अँग्रेज़ी कक्षा का इम्तिहान लेने की सोची और...

वो चुपचाप क्लास के बाहर खडा होकर सुनने लगा कि...

संता सिंह क्या पढा रहा है?"


"इंस्पैक्टर बेचारा परेशान कि ये कैसी...किस तरीके की पढाई हो रही है?"

संता सिंह:"बोलो बच्चो!...'गधा'..."


सभी बच्चे:"गधा"...


संता सिंह:"बोलो बच्चो!...गधा..गधे के पीछे गधा"


सभी बच्चे:"गधा...गधे के पीछे गधा"


संता सिंह:"बोलो बच्चो!...गधा..गधे के पीछे गधा,गधे के पीछे मैँ"



सभी बच्चे:"गधा..गधे के पीछे गधा,गधे के पीछे मैँ"



संता सिंह:"बोलो बच्चो...गधा..गधे के पीछे गधा,गधे के पीछे मैँ...मेरे पीछे सारा देश"



सभी बच्चे:"गधा..गधे के पीछे गधा,गधे के पीछे मैँ...मेरे पीछे सारा देश"


"सुनकर दिमाग का दही होने लगा"...

"चक्कर खा गया कि ये पढई हो रही या मज़ाक?"...

"या!..ऐसे ही की जाती है पढाई?"

"ऐसे सैकडों सवाल उसके दिमाग में गुटरगूं करने लगे"

"जब रहा न गया तो वो गुस्से में दनदनाता हुआ सीधा...

प्रिंसिपल साहब के कमरे में जा घुसा और एक ही साँस में सारा वाक्या सुनाया"


"प्रिंसिपल साहब भी सुन कर हैरान-परेशान हो उठे"...

"उन्होने संता को नीचा दिखाने की सोची और बे-इज़्ज़ती करने के खातिर उसे तुरंत ही बुलवा लिया"

"संता के आते ही सीधा बिना रुके झाड पिलानी शुरू कर दी"...

"तुमने मज़ाक बना रखा है स्कूल का..वगैरा..वगैरा"...

संता"ऐसी कोई बात नहीं है जी"...

"आप गल्त सोच रहे हैँ"...

" मैँ तो बच्चों को पढा ही रहा था"...


"हुह!...ऐसे 'गधा-गधा'कर के होती है पढाई?"

"वाह!...क्या स्टाईल हमारे 'संता'का....वाह"


संता:"जी!...मैँ बच्चो को बस 'ASSASSINATION' के स्पैलिंग सिखा रहा था"


"ASS-ASS-I-NATION"


***राजीव तनेजा***

"शाही पनीर या फिर दाल मक्खनी"

"शाही पनीर या फिर दाल मक्खनी"

***राजीव तनेजा***


"बहुत दिनों बाद एक दोस्त मिला...

आँखे सूजी हुई....

चेहरा पीला पडा हुआ....

थकान के मारे बुरा हाल...

नींद के नशे में ऐसे चूर...मानों कई बोतल एक साथ चढा रखी हों"


"मैँ चकराया कि ये बन्दा तो ऊपरवाले ने बडा ही नेक बनाया था"...

"इसे क्या हो गया?"

"खैर!..आराम से बिठाया अपने पास"...

"फिर एक 'डबल डोज़'वाली कडक'कॉफी'बना के पेश की तो थोडी देर में आँखे खुलने लायक हुई"

मैने पूछ डाला"ये क्या हाल बना रखा है?"...

"कुछ लेते क्यूँ नहीं?"


वो चौंक के बोला"कैसा हाल बना रखा है?"...

"और..मैँ कुछ लूँ भी तो क्यूँ लूँ?"

"अगर कुछ लेना भी है तो...लें मेरे दुशमन"

"मैँ भला कुछ क्यूँ लेने लगा?"


अब मेरा दिमाग घूमा,बोला"अरे वाह!...

लडखडा रहे तुम,..

झूम रहे तुम,...

नशे में तुम,...

बावले हुए जा रहे तुम...और अगर कुछ लेना है तो...

वो मैँ लूँ?"

"वाह!...भाई वाह"


"अब उसके हँसने की बारी थी"....

ज़ोर से हँसता हुआ बोला"अरे...कुछ नहीं यार...

"अपुन का तो ये रोज़ का टंटा है"

"सुबह आँख बाद में खुलती है और....'कम्प्यूटर' पहले चालू होता है"


"कभी इस लडकी से 'चैट'करो तो कभी उस लडकी से"...

"किसी को अपना कुछ नाम बताओ तो किसी को कुछ"...

"किसी को कोई 'प्रोफैशन' बताओ तो किसी को कोई"


"बस इसी चक्कर में कब सुबह से दोपहर और...

दोपहर से शाम होते हुए रात हो जाती है पता ही नहीं चलता"


"जब चारों तरफ तितलियाँ ही तितलियाँ मंडरा रही हों तो....

नींद किस कम्भखत को आ सकती है भला?"मैँ बोल पडा


"बिलकुल सही बात"दोस्त हाँ में हाँ मिलता हुआ बोला


"किसी का नाम तो बताओ"मेरी उत्सुकता बढती ही जा रही थी


"बस यार!...क्या बताऊ?"..

"इन कम्भखत मारियों के नाम याद करते-करते और.....

इन्हें अपने अलग-अलग नाम बताते बताते लगता है कि...

कहीं किसी दिन मैँ अपना असल नाम ही ना भूल बैठूँ"...


"किसी को कोई शहर बताओ तो किसी को कोई"

"भले ही कभी अपुन ने कभी अपना मोहल्ला तक न लांघा हो लेकिन कहना तो यही पडता है कि...

"आई एम फ्रॉम कैलीफोर्निया"

"या फ्रॉम फलाना....या फ्रॉम ढीमका"


"किसी को 'अनमैरिड'तो किसी को 'मैरिड'...

"किसी के साथ'विज़िबल'तो किसी के साथ'अनविज़िबल'...

"किसी को'नो किडज़'तो किसी को..सौ 'किडज़'


"सौ किडज़?"...

"ये ध्रितराष्ट्र कब से बन गए तुम?"


"ऊप्स!...सॉरी...'टू किडज़'


"सच क्यों नहीं बता दिया करते?"मेरे चेहरे पे असमंजस का भाव था


"अब यार!...अपुन के तो ऊपरवाले की मर्ज़ी से पूरे के पूरे आठ हैँ"....

"तो क्या सब का सब सच-सच बता कर अपना बनता काम बिगाड दूँ?"

"भाग नहीं खडी होंगी क्या?"

"अब इतना भी बावला नहीं हूँ मैँ कि खुद ही अपना बेडागर्क कर डालूँ"



"पता नहीं इन लडकियों को ये शायरी का शौक क्यूँ चढा फिरता है आजकल?"

"जिसे देखो..सब काम-धन्धा छोड शायरी में मशगूल"

"जब से ये मुय्या घरों में 'फुल टाईम मेड'रखने का फैशन चल निकला है"..

"कोई काम-धाम ही नहीं रह गया है इन लडकियों के लिए"

"ये नहीं कि बैठ के झाडू पोंछ करें आराम से"....

"डायटिंग की डायटिंग...और ...काम का काम"

"झाडने चाहिए इन्हें दरवाज़े और खिडकियाँ...उल्टे झाडने लगती हैँ शायरी हरदम"


"सुना है कि कुछ को तो दिन-रात शायरी के ही सपने आते रहते हैँ"मैने कहा


"यहाँ साला!...अपुन के पूरे खानदान में कोई शायर तो क्या उसका दूर का रिश्तेदार तक पैदा नहीं हुआ और....

ऊपर से इन बावलियों को गोली देते फिरो कि...

"हमारी 'फेवरेट हॉबी'शायरी है"

"दिल बेशक करे न करे...फिर भी इनकी खातिर इधर-उधर से शायरी इकट्ठी करते फिरो जैसे...

ये छोटे-छोटे बच्चे गली-गली दिन-रात कचरा बीनते नज़र आते हैँ"...


"कुछ यहाँ से उठा और...कुछ वहाँ से मार"


"सच पूछो तो यार!..बडा ही कोफ्त भरा काम होता है ये"

"कई बार तो उन कचरा बीनने वालों में और इन 'चैट' करने वालों में कोई फर्क़ ही महसूस नहीं होता"

"लगता है जैसे वो और ये एक ही थैली के चट्ते-बट्टे हों"

"मानों कभी कुम्भ के मेले में बिछुड गये थे कभी ..सोलह साल पहले"


"यार!...क्या बात कर रहे हो?"..

"कहाँ वो छोटे-छोटे बच्चे और कहाँ ये मुस्सटंडे?"


"अब मुझे क्या पता?कि कैसे वो तो छोटे के छोटे रह गए और..

ये साले!...ऊपरवाले की मर्ज़ी से पूरे के पूरे लुच्चे बन गए"दोस्त झेंपता हुआ बोला


"अब यार ये चैट भी बडा थकाने वाला काम है"

"ऊपर से नीचे तक निचोड डालता है बन्दे को"


"वो कैसे?"


"यार!..जब कोई ऑनलाईन नहीं मिले तो नए शिकार की तलाश में एक के बाद एक....

'चैट रूम' खंगालते फिरो कि शायद कहीं कोई बात बन जाए"


"शिकार?"...

"कैसा शिकार?"...

"किसका शिकार?"मैने एक साथ कई सवाल दाग दिए


"अब ये तो पता नहीं कि कौन किसका शिकार करता है"

"हम उनका...या फिर वो हमारा?"


"जैसे ही 'चैट रूम'में कोई लडकी या उसकी परछाई दिखे भर सही...

दुनिया भर के कम्प्यूटरों पर बैठे हम मुसटण्डे....

बावले सांडो की तरह 'मैसेज' पे 'मैसेज' दागते हुए उस बेचारी का जीना हराम कर डालते हैँ"


"कई बार हमारी इन्ही हरकतों की वजह से दुम दबाते हुए'चैट रूम'छोडने पे मजबूर हो जाती हैँ बेचारी लडकियाँ"



"इसका मतलब पाँचो उंगलियाँ घी में हैँ आजकल?"


"बस सर के कढाई में जाने की कसर है"दोस्त कुछ बुझे-बुझे से स्वर में बोला


मेरे चेहरे पे सवालिया निशान देख दोस्त बोला

"अरे!...कई बार तो बडा ही बुरा हश्र होता है अपुन लोगों का जब...

पूरे आठ दिनों तक घंटो चैट करने करने के बाद पता चलता है कि...

"हम समझे कुछ और..वो निकले कुछ"


"मतलब?"

"अरे यार!...सीधी सी बाता है...इधर भी और उधर भी 'सेम टू सेम'...


समझ गए ना?"

मैने अपनी हँसी दबाते हुए धीमे से मुण्डी हिला दी


"अब पता नहीं इन नाकाबिल लडकों को जब कुछ बोलने का नहीं सूझेगा तो पूछ बैठेंगे कि...

"आज क्या बनाया है?"


"अरे!...तुम्हें टट्टू लेना है?"

"उसकी मर्ज़ी जो मर्ज़ी खाए पकाए "

"तुम्हें राशन डलवाना है तो बताओ"


"फिर उधर से क्या जवाब मिलता है?"


"उधर से जवाब में कम से कम 'शाही पनीर' या फिर'दाल मक्खनी'ही निकलता है"

"भले ही पिछले तीन दिनों से वही 'मूंग धुली'दाल...वो भी बिना तडके वाली"

"समझ गए ना?"

"या फिर दो दिन की बची हुई सूखी 'ब्रैड'खा रही होंगी तो यही कहेंगी कि...

"आई लाईक डामिनो पिज़्ज़ा"

"बस फोन घुमाओ और हाज़िर"


"बस यार!..बहुत हो गया"...

"अब चोंच बन्द"

"ज़्यादा बोलुंगा तो सभी नाराज़ हो जाएंगी"


"लेकिन सच तो सच ही रहेगा ना?"


मैँने हाँ में हाँ मिला दी


"एक ज़रूरी बात बताना तो मैँ भूल ही गया कि...

हर बन्दा या बन्दी कम से कम सात या फिर आठ 'आई डी'ज़रूर बनाता है अपनी"


"सात या आठ?"मैँ हैरान होता हुआ बोला

"हाँ भाई!..सात या आठ...कोई कोई तो पूरी दर्जन भर ही बना डालता है"


"वो किसलिए?"

"यार!...सिम्पल सी बात है...

"एक'मेन'वाली 'आई डी'तो रिश्तेदारों के लिए"...

"एक-दो आल्तू-फाल्तू लोगों के लिए"...

"दो-तीन 'टाईम पास'...


"अब यार!..इतनी 'आई डी'तो बनानी ही पडती है कि अगर कोई कभी-कभार बिदक भी जाए तो उसे...

नए नाम,...

नए शहर,...

नए प्रोफैशन और...

कम उम्र के जरिए फिर से लपका जा सके"


"सही फण्डा है ये तो"


"और हाँ!..जो जितना कमीना और लुच्चा होगा,वो अपनी 'आई डी' उतनी ही प्यारी बनाएगा मानों..

खुद को किसी नकाब या फिर 'मास्क' के पीछे छुपाने की कोशिश कर रहा हो"


"मतलब कि..जो जितना 'अनडीसेंट' होगा वो...

अपनी'आई डी'के आगे-पीछे ...

ऊपर-नीचे कहीं न कहीं 'डीसेंट'शब्द का इस्तेमाल ज़रूर करेगा ?"मैँ पूछ बैठा


"बिलकुल...अब सही पकड में आई तुम्हारे बात"


"और तो और...जिसे देख गली-मोहल्ले के बच्चे तक डरते हों....

वो अपनी'आई डी'के साथ 'क्यूट'या फिर'हैंडसम'शब्द लगाना कभी नहीं भूलता"..

"अपने आप ही समझ जाओ कि वो कितना 'क्यूट' और 'हैंडसम'होगा"


"अब अपने मुँह से कैसे कहूँ कि...ऐसा होगा या फिर वैसा होगा"


ये सब सुन मैंने कहा"मैँ तो चला"

"मेरे चेहरे पे शरारती मुस्कान थी"

उसने पूछा"कहाँ?"


"मैंने जवाब दिया"कम्प्यूटर खरीदने..और कहाँ"

"अब यार!कम्प्यूटर तो लेना ही पडेगा अब...

तुमने जो अपने साथ-साथ मेरे भी दिमाग का बंटाधार कर डाला है"


"अभी चलता हूँ ...

लौट के फिर पता नहीं कब मिलता हूँ"मैँ हँसता हुआ बोला


"बहुत काम करने हैँ"....

"कंप्यूटर खरीदना है"...

"नैट चालू करके 'मैसैंजर'डाउनलोड करना है"


"सात-आठ....नहीं-नहीं ...सात-आठ से मेरा क्या होगा?"


"पूरी एक दर्जन 'आई डी'बनाउंगा"यही बुदबुदाता हुआ मैँ अपने रस्ते हो लिया


"अब कुछ करो तो जी खोल के करो..

वैसे भी इसमें भला कौन सा'टैक्स'लग रहा है?"

"बस 'याहू'और 'गूगल'भाईयों का हाथ अपने सर पे रहना चाहिए"..


"देखें कौन किसका शिकार करता है?"



"समझा करो यार...चाहे खरबूजा छुरी पे गिरे या फिर छुरी खरबूजे पे...

कटना तो खरबूजे को ही पडता है"

यहाँ तो चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी"


***राजीव तनेजा***

"स्टिंग आप्रेशन"

"स्टिंग आप्रेशन"

***राजीव तनेजा***


"हद हो गयी इन'स्टिंग आप्रेशनों'की"..

"किसी को भी नहीं बक्शते"

"पता नहीं क्या मिलता है इनको गडे मुर्दे उखाडने से?"या फिर...

"क्या मिल जाएगा इस सब से?"

"किसी की इज़्ज़त-आबरू को कुछ समझते ही नहीं ये'मीडिया'वाले"


"इन्हें तो बस अपनी'टी.आर.पी'की पडी होती है कि...

'कैसे भी'...

'किसी भी जायज़-नाजायज़ तरीके से बस बढनी चाहिए"


"पता नहीं किसका हाथ है इस सब के पीछे?"...

"कौन करवा रहा है ये सब?"


"ऐसे कई सवाल हमारे-आपके दिमाग में किलोल करते है हरदम लेकिन...

कोई उत्तर नहीं शांत कर पाता हमारी जिज्ञासाओं को"


"किसी भी'चैनल'को देख लो..

पडा होगा हाथ धो के किसी ना किसी मशहूर हस्ती के पीछे "...

मानों पिछले जन्म का कर्ज़ा वसूलना हो जैसे"


"अब अपने'बिग बी'को ही लो...

एक विवाद से पीछा छूटता नहीं है कि दूसरा आ दामन थाम बैठता है"...


"कभी किसान विवाद"तो कभी...

"अन्धविश्वास विवाद"...


"कभी ये देश भर के मन्दिरों में माथा टिकाए नज़र आते हैँ तो कभी...

अपनी बहू का किसी'पेड'तो कभी किसी'पत्ते'से विवाह रचा रहे होते है ग्रह शांति के लिए"


"अब उनकी मर्ज़ी"...

"जिएँ चाहे मरें"...

"मर्ज़ी हो तो लाख बार रचाएं'विवाह'"..


"मीडिया को इसमें टट्टू लेना है?"...


"लेकिन नहीं ...चोली-दामन का साथ जो है इनका'बिग बी'और उनके परिवार के साथ"...

"तो कैसे पीछा छोड दें?"


"कोई और'टापिक'मिला नहीं होगा तो सोचा कि...

भैय्या!..चलो कुछ गडे मुर्दों पर ही हाथ साफ कर लिया जाए"...


"इसमें नया क्या है?"...


"पता है सबको कि...

'रानी'और'ऐश'के बीच छत्तीस का आँकडा है आजकल"...


"सो!..इसे ही भुना लो...

'करैंट अफेयर'भी हो जाएगा और मनोरंजन भी"...


"सभी'चैनल'भी तो यही जुगत भिढा रहे हैँ'पापुलर'होने के लिए"...


"हमने कर दिखाया तो!..गुनाह हो गया?"...

"पाप!..हो गया?"

"अरे वाह!..?"


"दो चार दिन इसी के बलबूते बढा ली जाए अपनी'टी.आर.पी'...

"फिर की फिर सोचेंगे"



"हद है यार!...

ये मुय्या'स्टिंग'ना हुआ'आफत'का तूफान हो गया"...


"पड गये अपनी'बबली'के पीछे"...


"खोद के निकाल लाए छुपती-छुपाती खबर"


"पता नही कहाँ से हाथ लग गयी इनके अपने'बँटी'और'बबली'की'एक्सक्लूसिव'तस्वीर"


"अब तमाशा बनाए फिर रहे हैँ"

"देख के ही माथा सनक गया अपुन का"...

"झटका लगा तगडा"..

"हम भी आ गए ताव में"

"सोचा कि चलो आज इन मुय्ये'चैनल'वालों की ही पोल खोल डालें"...

"लेकिन फिर सोच के सोचा कि क्यूँ ना मैँ भी बहती गंगा में हाथ धो लूँ?"

और लगे हाथ बढा डालूँ अपने ब्लाग की'टी.आर.पी'?"

"अपुन के बाप का क्या जाता है?"


"वैसे भी ये अपने'सैलीब्रिटीज़'तो तरसते फिरते हैँ'पब्लिसिटी'के लिए"..


"अब बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा?"

"तो भैय्या मेरे!..आप भी खुल के ...'खुल्ले दर्शन'कर लो"...

"क्या मालुम कल को अपने'बिग बी'का रसूख क्या रंग लाए?और...

मेरा भी किसी'स्टिंग आप्रेशन'के दौरान'एंकाउंटर'हुआ पाए"





बन+टी+बबली(पैपसी)


***राजीव तनेजा***

"दुनिया आपकी जेब में"

"दुनिया आपकी जेब में"

***राजीव तनेजा***

"हाँ!. ..हाँ!....

"जी हाँ"...

"एक रास्ता".....

"सिर्फ'एक-इकलौता'रास्ता....

इस गलाकाट प्रतियोगिता से निबटने का"...


"जी हाँ!..."

"सिर्फ एक कदम"...

"या फिर"...

"एक सही फैसला"...और

"आप दुनिया की भीड में'सबसे अलग'...

'सबसे जुदा'...

'सबसे आगे'होंगे"


"मीलों आगे"...

"कोई'कम्पीटीटर'आस-पास भी नहीं फटक पाएगा


"बस एक!..'सीधा-सरल'रास्ता और....

"दुनिया आपकी मुट्ठी में"या यूँ कहें कि....

"दुनिया आपकी जेब में होगी"



.......



.....


.....


.....


.....






***राजीव तनेजा***

"क्या मालूम कल हो ना हो?"

"क्या मालूम कल हो ना हो?"

"राजीव तनेजा "


"अजी सुनते हो!..."

"चुप कराओ अपने इस लाडले को"

"रो-रो के बुरा हाल करे बैठा है"

"चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा"

"लाख कोशिशे कर ली पर ना जानें आज कौन सा भूत सवार हुए बैठा है कि...

उतरने का नाम ही नहीं ले रहा"


"अब क्या हुआ?"...

"सीधी तरह बताती क्यों नहीं?"


"जिद्द पे अड़े बैठे है जनाब!..कि'चाकलेट'लेनी है और वही लेनी है जिसका'ऐड'बार-बार'टीवी'पे आ रहा है"


"तो दिलवा क्यों नहीं दी?"


"अरे!...मैने कब ना करी है?"...

"कईं बार तो भेज चुकी हूँ'शम्भू'को बाजार"...

"खाली हाथ लौट आया हर बार"


"खाली हाथ लौट आया?"


"और नहीं तो क्या?"....


"साले!...के भाव बढ़े हुए हैं आजकल"...

"बैठ गया होगा कहीं पत्ते खेलने और बहाना बना दिया कि...नहीं मिली"..

"घड़ी-घड़ी'ड्रामा'करता फिरता है"....

"साला!...'नौटंकी'कहीं का"


"अब नहीं मिली तो!..मैं क्या करुं?"


'चाकलेट'नहीं मिली?"...

"अब तुम भी ना इतनी भोली हो कि कोई भी बस मिनट भर में ही तुम्हारा फुद्दू खींच डालता है"...

"कभी तो अक्ल से काम लिया करो"


"तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?"


"मैने ऐसा कब कहा?"


"मतलब तो यही है तुम्हारा"...

"अरे!...सगी माँ हूँ...कोई सौतेली नहीं कि अपने ही बेटे की खूशीयों का ख्याल ना रखुँ"


"शर्मा की दूकान पे जाना था ना"


"अरे'शर्मा'क्या?और...'वर्मा'क्या?...

सब जगह धक्के खा आई पर ना जाने क्या हुआ है इस मुय्यी'चाकलेट'को"...

"जहाँ जाती हूँ पता चलता है कि'माल'खत्म"


"अब बस का नहीं है मेरे,खुद ही काबु करो अपने इस नमुने को"


"मैँ तो तंग आ चुकी हूँ तुम्हारे इन'सैम्पलों'की फरमाईशें पूरी करते करते"

"किसी को कुछ चाहिये तो किसी को कुछ"


"कितनी बार कहा था कि "बस अब और नही" लेकिन...

तुम मानो तब ना"...


"बडा'वारिस'चाहिए था तुम्हारे माँ-बाप को"

"रट लगा के बैठे हुए थे कि बेटा चाहिए...बेटा चाहिए..."


"हुँह!...बेटा चाहिए"...

"सेवा तो की नहीं गयी ज़रा सी भी और इस कम्भख्त बेटे-बेटे के चक्कर में लगातार तीन लडकियाँ हो गयी"


"इतना ही चाव चढा हुआ था तो खुद ही क्यों नहीं जन लिया?"


"तुम तो बेकार में ही बात का बतंगड बनाने पे तुली हो और...

ऊपर से कह रही हो कि माल खत्म?"मेरे चेहरे पे हैरत का भाव था


"कहीं वो मुय्ये'चाकलेट'फ़िल्म वाले ही तो नहीं उठा ले गये सब?"...

"आजकल 'पब्लिसिटी' के चक्कर में पता नहीं क्या-क्या पापड़ बेलते रहते है"मैनें हँसते हुए कहा


"अरे नहीं बाबा!...बस नाम ही है फ़िल्म का'चाकलेट'बाकि...

पूरी फ़िल्म में'चाकलेट'का नामो-निशान भी नहीं है"

"अगर विश्वास नहीं हो रहा है तो खुद ही तसल्ली कर लो अपनी"

"बाज़ार क्यों नहीं हो आते आप खुद ही ?"...

"थोड़ी वर्जिश भी हो जाएगी इसी बहाने"...

"खाली बैठे-बैठे वैसे भी कौन सा तीर ही मार रहे हो?"


"बीवी की बात मानते हुए चल पड़ा बाज़ार"...

"हैरानी की बात तो ये कि जहाँ-जहाँ गया हर जगह सब कुछ मौजूद लेकिन 'चाकलेट'नदारद"

"पता नहीं ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैँ इसमें कि पूरी दिल्ली बावली हो उठी इस...

'चाकलेट'के चक्कर में?"मेरे मुह से निकला ही था कि कहीं से आवाज आई


"दिल्ली?"..

"अरे बाबूजी!...पूरे हिन्दोस्तान की बार करो पूरे हिन्दोस्तान की"

'बिहार'क्या...

'यू.पी'क्या...

'दिल्ली'क्या॰॰॰

'मुम्बई'और'कलकत्ता'क्या"

"हर जगह से माल गायब"..

"सुना है!...अब तो'ब्लैक'में भी नहीं मिल रही"...


"कोई तो ये भी कह रहा था कि'पड़ोसी मुल्क'में भी इसके दिवाने पैदा हो चले हैं अब तो"

"कहीं वहीं तो नहीं'सप्लाई'हो गया सब का सब?"

"बात कुछ समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर...

हुआ क्या है?...

माज़रा क्या है?"


"कईं-कईं तो खाली हाथ बैरंग लौट गये आठ-आठ घंटे लाईन में लगने के बाद"

"जब तक नम्बर आया तब तक झाड़ु फिर चुका था माल पे"वही आवाज फिर सुनाई दी


"अरे!..'चाकलेट'ना हुई अफीम की गोली हो गई"


"आज की तारीख में अफीम से कम भी नहीं है"


"पता नहीं क्या धरा है इस कम्बखत मारी में?"मेरे मुह से निकला ही था कि किसी ने कमेंट पास कर दिया -

"बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद"


"अब अगर सचमुच में कुछ तनिक सा भी मालुम होता तो...

'मुह तोड़'जवाब देता"

"उत्सुकता बढ़ती जा रही थी लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि...

आखिर चक्कर क्या है?"


"यह चक्कर मुझे घनचक्कर बनाये जा रहा था"

"क्यों दिवाने हो चले हैं सब के सब?"

"जितने मुँह उतनी बातें सुनने को मिल रही थी"


"कोई कह रहा था कि इससे'डायबिटिज'गायब हो जाती है कुछ ही हफ्तों में"..

"किसी को कहते सुना कि इससे'मर्दानगी'बढ़ती है"..

"सबकुछ नया-नया सा लगने लगता है"...

"तो कोई कह रहा था कि'यादाश्त भी तेज होती है"

"इससे!...'पेपर'में अच्छे नम्बर आते है"...

"बंदा बिमार नहीं पड़ता"...

"और न जाने क्या-क्या?"

'सौ बातों की एक बात कि'चीज़'एक लेकिन फ़ायदे अनेक"

"ना पहले कभी सुना...ना पहले कभी जाना"

"अब पता नहीं क्या सच है और क्या झुठ"

"भाई!..मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा"

"अब आप भले ही मानो या ना मानो लेकिन बाकि सब बावले थोड़े ही है जो...

आँखे मुंदे विश्वास करते चले गये"


"कुछ थोड़ा-बहुत...कम या ज़्यादा सच तो होगा जरूर"


"अरे!..कुछ क्या?...

"सोलह आने सही बात है"...

"खुद आजमाई हुई है"एक आवाज सुनाई दी


"सबकी मुंडी उधर ही घूम गई"

"देखा..तो एक सज्जन बड़े ही मजे से सीना ताने खड़े थे"


"हाथ कंगन को आरसी क्या?और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या?"

"साबित कर सकता हूँ"वो झोले की तरफ इशारा करते हुए बोले


"सब कौतूहल भरी निगाहों से उसी की तरफ ताकने लगे"


"हाँ!...अभी तो मौजुद नहीं है मेरे पास लेकिन उसका खाली'रैपर'ज़रूर है मेरे पास"उन्होंने झोले में हाथ घुमाते हुए कहा

"अगर उसी भर से दिवाने ना हो गये तो मेरा नाम'झुनझुनवाला'नहीं"


"बस उसका झोले से'रैपर'निकालना था और सबका उतावलेपन में उस पर झपटना था"


"छीना-छपटी में किसी के हाथ कुछ नही लगा"


"चिथड़े-चिथड़े हो चुके थे उस 'रैपर' के"

"मेरी किस्मत कुछ बुलन्द थी जो सबसे बड़ा टूकड़ा मेरे ही हाथ लगा"

"देखते ही दंग रह गया"

"सचमुच में 'काबिले तारीफ"

"जिसे मिल जाये उसकी तो सारी तकलीफें,सारे दुःख-दर्द...

"सब मिनट भर में गायब"

"स्वाद ऐसा कि कुछ याद ना रहे"...

"चारों तरफ़ खुशियाँ ही खुशियाँ"


"वाह ॰॰॰ क्या'चाकलेट'थी"

"वाह!...वाह!.."

"खाली'रैपर'से भी खूशबू के झोंके हवा को खुशनुमा किये जा रहे थे"

"अब यार!..क्या सोच रहे हैं आप?"

"थोड़ा नीचे जाओ और खुद भी दर्शन कर ही डालो"

इस'चाकलेट'के"....


"दर्शन कर लो जी...कर लो...किसने रोका है?"


"ऊप्स!...सारी!....

'चाकलेट'नहीं तो उसका'रैपर'ही सही...बोतल नहीं तो अद्धा ही सही"


"माल जो खत्म हो गया है...समझा करो...


"क्या मालूम?...'रैपर'भी...कल हो ना हो"





***राजीव तनेजा***

"हर फिक्र को धुएँ में उडाता चला गया"

"हर फिक्र को धुएँ में उडाता चला गया"

***राजीव तनेजा***

'गान्धी जी'भी नहीं रहे....

'सुभाष जी'भी चल बसे...

'जवाहरलाल जी'भी कब के ऊपर पहुँच गए...


"मेरी भी तबियत कुछ ठीक नहीं रहती...

"ना जाने कब लुढक जाऊँ"

"पता नहीं इस देश का क्या होगा?"


"अब रोज़-रोज़ बिना रुके लगातार'सूटटे'मारुंगा तो तबियत तो बिगडनी ही है लेकिन...

क्या करूँ ये साला!...दिल है के मानता नहीं"


"बहुत कोशिश कर ली...लेकिन ये मुय्यी ...ऐसी लत लगी है कि इसको सहा भी नहीं जाता और ...

इसके बिना रहा भी नहीं जाता"...


"अब तो आँखों के आगे अन्धेरा सा भी छाने लगा है"....


"पता है!...पता है बाबा...

'सिग्रेट'और'गुटखे'से कैंसर होता है"...लेकिन...

"क्या करूँ?"...

"कैसे समझाऊँ इस दिल-ए-नादां को?"

"काबू में ही नहीं रहता"


"कब और कैसे इस सब की लत लगी मुझे?"


"बताता हूँ"...

"बात कुछ ही साल पुरानी तो है...अपना एक फटीचर दोस्त था"...

"ना कोई काम...ना कोई धाम"...

"हर वक़्त बस...खाली का खाली"...

"जब देखो...किसी ना किसी का फुद्दू खींचने की फिराक में ही लगा रहता"

"एक दिन,अचनक उसी का फोन आ गया कि...

"बस!..आधे घंटे में ही पहुँच रहा हूँ...जुगाड-पानी तैयार रखना"


"मेरे कुछ कहने से पहले ही फोन कट गया"

"मैँ घबरा उठा कि कहीं कुछ...माँग ही ना बैठे"

"ऐसे लोगों का कुछ पता नहीं"..

"पता नहीं कितना खर्चा करवा डाले"...

"इसलिए...चुपचाप'कलटी'होना ही बेहतर लगा मुझे"


"फटाफट सारा का सारा कीमती सामान इधर-उधर छुपाया कि कहीं हाथ ही साफ ना कर डाले"...


"कोई भरोसा नहीं"


"घर को ताला लगा मैँ खिसकने ही वाला था कि...एक लम्बी गाडी दनदनाती हुई मेरे सामने आ रुकी"


"मैँ चौका कि ..कौन कम्भखत टपक पडा?"


"अभी सोच ही रहा था कि....इतने में गाडी में से एक लम्बा चौडा ...हट्टा-कट्ता आदमी निकला"...

'महँगा सूट'...

'गले में सोने की पट्टेदार चेन(कुत्ते के गले में डालने वाले पट्टे जैसी मोटी)"

'रंग रूप जैसे...'तवे का पुट्ठा पासा'...

'मुँह में सोने के दाँत चमकते हुए'...

'इम्पोर्टेड जूते'...वगैरा...वगैरा...


"वाह!...

क्या ठाठ थे बन्दे के...वाह!..."

"ध्यान से देखा तो वही पुराना अपना लँगोटिया यार'मुस्सदी लाल'निकला"

"अब यार!...उसके ठाठ देखने के बाद उसे लँगोटिया ना कहूँ तो फिर क्या कहूँ?"


"मैँ हैरान-परेशान कि इसके डर से तो मैँ अपने घर की मामुली से मामुली चीज़ें इधर-उधर कर रहा था और...

ये चाहे तो बेशक मुझे अभी का अभी..खडे-खडे ही मुँह मागे दाम पर खरीद ले"

"बाप रे!...क्या किस्मत पाई है पट्ठे ने"...


"मैँ गश खा के गिरने ही वाला था कि वो बोला"घर को ताला लगा कहाँ खिसक रहे थे?"


"जी!...कुछ आपके लिए ही मिठाई वगैरा ही लेने जा रहा था"मैँ खिसियाता हुआ बोला


"छड्ड यार!...ये मिठाई वगैरा भी कोई खाने की चीज़ होती है?"...


"अपुन को तो बस यही एक शौक है"...वो'टिंड बीयर'का सील तूदता हुआ बोला


"शौक क्या?....अब तो आदत सी हो गयी है इन सब की...

रहा नहीं जाता इनके बिना"वो सिग्रेट के पैकेट की तरफ इशारा करता हुआ बोला


"और रहा भी क्यों जाए भला?"...

"आम के आम और गुठलियों के दाम जो हैँ"


मैँ चौंका..."आम के आम और गुठलियों के दाम?"

"ना तो मुझे वहाँ कोई आम दिख रहा था और ना ही कोई गुठली"


"मेरा अचरज भरा चौखटा देख के वो ज़ोर से हँसा...

"बेवाकूफ!...मुहावरा है ये"....

"तुम तो यार अभी भी हिन्दी में पैदल ही हो"..

"क्या होता जा रहा है इस देश के लोगों को?"...


"राष्ट्र भाषा है हमारी ...कुछ तो कद्र करो"..

"पता नही कब अक्ल आएगी?"


"ऊपर से कहते हैँ कि हमारा देश तरक्की नहीं करता"

"अरे!...खाक तरक्की करेगा?"

"जब अपने ही बे-कद्री पर उतर आए तो बाहर वालों से उम्मीद रखना भी बेकार है"


"साले!...अँग्रेज़ अपनी विरासत छोड चले गये कि...

"लो बच्चो...अब इसे ही गाओ-बजाओ"...

"अपनी मिट्टी की सौंधी खुश्बू भूल बाहर की सुगन्ध चाट रहे हैँ"


"अरे बेवाकूफो...ये तो सोचो कम से कम कि...जिस भी देश ने तरक्की की है...

वो की है अपनी ही भाषा के इस्तेमाल से"...


"क्या कभी किसी'चीनी'...

'जपानी'...या फिर..

'फ्राँस'के राष्ट्र्पति या प्रधान मंत्री को'अंग्रेज़ी'में भाषण देते सुना है?


"नहीं ना!...."..


"फिर अपने आप समझ लो"...

"हम'हिन्दी'बोलते हैँ...'हिन्दी'में सोचते हैँ...

फिर बेकार में ही'अँग्रेज़ी'में तर्ज़ुमा कर अपने साथ-साथ दूसरे को भी बावला बनाते है"



"ये बेमतलब की बातें मेरे सर के ऊपर से निकले जा रही थी...

बीच में ही टोकता हुआ बोल पडा"तुम तो बात कर रहे थे'आम'और'गुठली'की"


"अरे बाबा!...थोडा सब्र तो रख...सब बताता हूँ"वो एक साथ तीन गुटखे मुँह में उडेलता हुआ "


"लेकिन अब सब्र किस कम्भख्त को था?"

"सो!..बार-बार पूछता चला गया मैँ"


तो वो सिग्रेट के लम्बे-लम्बे कश मारता हुआ बोला...."यार अपनी तो सारी की सारी कमाई इसी की बदोलत है"

"कहते हुए उसने अपना अटैची खोल के मुझे दिखाया"


"देखते ही दंग रह गया...दिमाग मानों सुन्न सा हुए जा रहा था"...

"अन्दर'नोट'ही'नोट'भरे पडे थे बेशूमार"


"अरे यार!...ये तो कुछ भी नहीं"

असली माल तो अपन अंडर ग्राउन्ड कर चुका है"


"लेकिन ये सब हुआ कैसे?"


"कुछ खास नहीं बस ऐसे ही मोहल्ले के कुछ डाक्टरों को जैसे ही पता चला कि मैँ'चेन स्मोकर'हूँ...

बस समझो!...अपनी तो निकल पडी"...

वो मेरे पास आए और बोले"अगर ये सूट्टे तुम खुलेआम भीडभाड वाली जगहों पर मारो तो तुम्हारा'गान्धी'का'नोट'पक्का"


"गान्धी तो आजकल हर'नोट'पे दिखाई दे रहा है"...

"खुल के बताओ कितने दोगे?"और...क्यूँ दोगे?"


"पाँच सौ का'नोट'पक्का और रही बात'क्यों'कि...

तो अमाँ यार'आम'खाओ...'गुठलियाँ'क्यों गिनते हो?"


"फिर भी"...

"पता तो चले कि इतनी मेहरबानी किस खुशी में हो रही है?"


"वो बात दर असल ये है कि..आप जैसों की वजह से हमारा ठंडा पडा धन्धा चल निकला है"


"मतलब?"

"आजकल'टीवी',...

'रेडियो'और'अखबार'वगैरा पर तो...

'सिग्रेट'और'गुट्खे'की'एड'आ नही सकती है ना खुलेआम"


"और...चोर दरवाज़े से'एंट्री'में कुछ दम शम नहीं दिखा'कम्पनी'वालों को"...

"तो उन्होने'मैनुअल एड'करने की सोची ....


"मैनुयल एड...माने?"


"अरे बेवाकूफ!...'मैनुयल एड'माने...'चलता फिरता विज्ञापन'"


"तुम उनके'रोल माडल'में फिट बैठ रहे हो"....

"अगर सही तरीके से'कैम्पेनिंग'करते रहे तो बहुत ऊपर जाओगे"


"किसी ना किसी'कम्पनी'के'ब्रांड अम्बैस्डर'भी बना दिए जाओगे जल्द ही"


"बिना'एड-वैड'के हमारे धन्धे पे मन्दे का काला साया मंडराने लगा था"...

"धीरे-धीरे मरीज़ कम होने लगे थे हमारे"...



"तुम तो जानते ही होगे कि बन्दा हर'ज़ुल्म-ओ-सितम'बर्दाश्त कर लेता है लेकिन...

जब उसकी रोज़ी-रोटी पे आ बनती है तो वो हाथ-पाँव ज़रूर मारता है"


"पापी पेट का सवाल जो है भैय्या"....


"सो...'सिग्रेट'और'गुटखे'की कम्पनी के साथ साथ हम भी जुड गए इस'धन्धा बचाओ'अभियान में"...

"अब तुम्हें ढूढ निकाला है...धीरे-धीरे और साथी भी जुडते चले जाएंगे"....

"साथी हाथ बढाना...साथी रे..."


"इंशा अल्लाह!...हम होंगे कामयाब एक दिन"...

"हो!...हो!..मन में है विश्वास ...पूरा है विश्वास"...


"आप जैसे लोगों का साथ मिल जाए तो यकीनन कामयाबी हमारे कदम चूमेगी"...


"आप जैसो की बदोलत हमारा धन्धा दिन दूनी रात चौगुनी तेज़ी के साथ प्रगति के पथ पर आगे बढेगा..

ऐसा हमारे एक्सपर्टस का मानना है"


"मेरे चेहरे पर असमंजस का भाव था"....


"अरे यार!...वैरी'सिम्पल'...आपको तो बस धुयाँ भर ही छोडना है" ...

"बाकि का सब काम तो खुद-बा-खुद होता चला जाएगा"


"धुयाँ छोडने से लोग बिमार पडेंगे...तो अपुन की ही शरण में आएंगे ना"

"और कहाँ जाएंगे बेचारे?"....

"ही!..ही!..ही!.."डाक्टर खिसियानी हँसी हँसता हुआ बोला


"ये सब सुन मन डोल गया मेरा"....

"पाँच सौ से ज़्यादा की'दारू'तो मै अकेला ही पी जाता हूँ,'गुटखे'और'सिग्रेट'के पैसे अलग से"


"एक मिनट...तुम भी क्या याद करोगे कि किसी दिलदार से पाला पडा है"

"कह कर उसने एक दो फोन घुमाए"...

"थोडी'गिट्टर-पिट्टर'की ...

"कुछ ही देर में एक'सिग्रेट'कम्पनी का'एम.डी'अपने साथ...

'कैमिस्ट ऐसोसियेशन'के प्रधान और...

'लैबोटरी टैस्ट'वालों को साथ में लिए हाज़िर था"


"पीछे-पीछे कुछ ही देर में'गुटखे'वाले भी आ धमके"...

उन सब ने आपस में कुछ सैटिंग की और मेरी तरफ मुखातिब होते हुए हाथ मिला बोले....

"आज से हमारी'कम्पनी'की'सिग्रेट'पिओ और इनका'गुटखा'चबाओ और फिर तमाशा देखो"....

"मालामाल कर देंगे"

"नाच मेरी बुलबुल के पैसा मिलेगा....कहाँ कद्र्दान ऐसा मिलेगा"


"हर महीने आपका हिस्सा आपको पहुँच जाएगा बिन माँगे ही"




"और हाँ!...एक बात का खास ख्याल रखना है कि'सिगरेट'या'गुटखा'जो भी इस्तेमाल करो...

उसकी खाली'पैकिंग'कूडेदान में तो बिलकुल नही फैंकनी है"


"मतलब?"


बेवाकूफ!...उसे ऐसे ही खुलेआम सडक पर ही फैंक देना"...

"हमने जमादारों के प्रधान को भी अंटी में लिया हुआ है कि सफाई का तो नामोंनिशा भी नहीं होना चाहिए पूरे इलाके में"


मै बोला"कुछ गडबड है...बात हज़म नही हो रही है"

"इस सब से आपको क्या फायदा?"


"जब सारी'कुतिया'अगर'काशी'चली जाएंगी तो यहाँ भौंकेगा कौन?"एक कैमिस्ट बुदबुदाता हुआ बोला

"अरे यार!...सीधी-सीधी ही तो बात है...

"द होल थिंग इज़ दैट के भईय्या....सबसे बडा रुपईय्या"


"जितनी ज़्यादा गन्दगी उतनी ज़्यादा कमाई"...

"सिम्पल सा फण्डा है अपुन भाईयों का"


"जगह-जगह हमारे नाम का कचरा पडा होगा तो अपना ही नाम होगा ना?"

"गर बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा?"


"हमारी कम्पनी का माल पिओगे और चबाओगे तो हमारी कमाई बढेगी" ....

"साथ ही साथ ज़्यादा लोग बिमार पडेंगे"...

"जिस से इन'डाक्टर'भाईयों की कमाई में इज़ाफा होगा"...

'दवाइयाँ ज़्यादा बिकेंगी तो'कैमिस्टों'के वारे-न्यारे"

"और जो'टैस्ट'लिखे जाएँगे करवाने के लिए उसमें तो ये सब साझीदार हैँ ही". ...

'सिग्रेट कम्पनी'वाला बाकी सब की तरफ इशारा करता हुआ बोला


"इस कलयुग के ज़माने में कहीं देखा है ऐसा प्यार भरा माहौल?"


"हूँ!...इसका मतलब इस हमाम में सभी नंगे हैँ"


"बस यही समझ लो"डाक्टर आँखों में शैतानी चमक लिए हुए बोला


"फिर?"....


"बस यार!...तब से उनके कहे पे अमल करता जा रहा हूँ और...

ज़िन्दगी के मज़े लूट रहा हूँ"दोस्त ज़ोर से खाँसता हुआ बोला


"उसको यूँ खाँसता देख माथे पे एक हल्की सी शिकन तो उभरी ज़रूर लेकिन...

उसके ठाठ देख अगले ही पल वो भी गायब हो चुकी थी दूर कहीं "


"यार!..कुछ मेरा भी जुगाड-पानी हो सकता है क्या?"मैँ धीमे से बोला


"इसीलिए तो तेरे पास आया हूँ"वो मुस्कुराता हुआ बोला

"दर असल बात ये है कि मुझे एक दूसरी'कम्पनी'वाले बुला रहे हैँ अपने खेमे में"

"पट्ठे तगडा दाना डाल रहे हैँ"...


"फिर?"....


"लेकिन अफसोस!...पुराने ग्रुप को कैसे छोड दूँ?"

"कैसे गद्दारी करूँ अपने'गाड फादर'के साथ?"

"सालों!...ने पक्का'एग्रीमैंट'जो कर रखा है मेरे साथ"

"वरना सगा तो मै अपने बाप का भी नहीं हूँ"


"इसलिए फायदा इसी में है कि तुम नई'कम्पनी'का काम सम्भाल लो"


"मुझे कुछ नहीं चाहिए"...

"बस मेरी'बीस टका'....'कमीशन'मुझे अपने आप मिल जानी चाहिए"...


"टोकना ना पडे कभी बीच-बाज़ार"


"उसकी तो तुम बिलकुल ही फिक्र ना करो"

"इधर महीना पूरा हुआ और उधर तुम्हारा हिस्सा तुम्हारे पास"


"हूँ!...फिर ठीक है"


"मेरी बाँछे खिल उठी थी"

"लग गया उसके बताए हुए रास्ते पर और...


"हर फिक्र को..धुँए में उडाता चला गया"...


"लग गया'दिन-दूनी'...'रात-चौगुनी'तेज़ी से माल बटोरने "

"दे दनादन...सूट्टे पे सूट्टा"


"और अब तो दोस्त सचमुच बहुत ऊपर पहुँच चुका है"...

"बहुत ऊपर!....

सीधा'अल्लाह'के पास"...


"वो कैसे?"...


"कैंसर जो हुआ था उसे"


"पैसा खूब बहाया कि ठीक हो जाए किसी तरह लेकिन....कोई फायदा नहीं"


"सभी'कम्पनी'वाले भी मुँह फेर चुके थे उस से"...

"काम का जो नहीं रहा था वो अब उनके"...

"साले!...मतलबी इनसान"...


"नई भर्ती कर रहे है धडाधड और पुरानों की कोई खोज खबर भी नहीं"

"लेकिन!..इस सब से मैँ कहाँ रुकने वाला था भला?"...

"पैसे के आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था"...

"माया ही कुछ ऐसी है इसकी"...

"बडे-बडे अन्धे हो हो घूमते है इसके आगे-पीछे"..

"तो मेरी भला क्या बिसात?"


"कुछ दिन बाद पता चला कि मेरा नम्बर भी बस ...अब आया...तब आया"

"अब तो बडे'डाक्टर'ने भी साफ-साफ कह दिया है कि...

"जो बचे-खुचे दिन बचे हैँ...पूजा-पाठ में ध्यान लगाओ"..

"जितना मर्ज़ी पैसा खर्चा कर लो...कोई फायदा नहीं"

"कोई इलाज नहीं है'कैंसर'का"


"बस अब और ज़्यादा क्या कहूँ?"...

"आप खुद ही इतने समझदार इंसान हैँ"...


"कम कहे को ही ज़्यादा समझना और जितना हो सके इस लानत से दूर रहना"


"इसका साया भी अपने तथा अपने आस-पास वालों पर ना पडने देना"


"मेरा तो पता नहीं लेकिन आप इस देश का नाम ज़रूर रौशन करना"..

"और हाँ!..याद रखना कि'हिन्दी'हमारी राष्ट्र भाषा है...

इसको साथ लिए बिना हम उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ सकते"


"हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा"


"जय हिन्द"





***राजीव तनेजा***

क्या से क्या हो गया?"

"क्या से क्या हो गया?"

***राजीव तनेजा***

"मैने उसे क्या समझा?और...वो क्या निकली"


"दिल ऐसा किसी ने मेरा तोडा...बरबादी की तरफ ला के छोडा"


"शायद ही इस पूरे जहाँ में मुझे कोई इतना प्यारा था लेकिन...

"जिस से जितना प्यार करो...वो उतना ही दूर भागता है"...

"ये बुज़ुर्गों का कहा आज मुझे समझ आया लेकिन क्या फायदा जब..

"चिडिया चुग गयी खेत"


"जिस कम्भख्त मारी के नाम मैने अपनी तमाम ज़िन्दगी कर दी...

उसी ने मुझे'दगा'दिया"


"काश!....एक बार"...

"बस एक बार वो मुझ से कह के तो देखती"....

"मै खुद ही अपने आप सब कुछ'सैटल'कर देता"

"आखिर प्यार जो उस से करता था"

"लेकिन..उस'बेवफा'ने मेरे विश्वास को तोडा"....

"मैँ किसी को मुँह दिखाने के काबिल ना रहा"...

"अब तो बाहर निकलते हुए शर्म सी आती है कि...

'लोग क्या कहेगे?"...

"कैसी-कैसी बातें करेंगे?"

"कैसे उनके चेहरे पे उभरते सवालों का जवाब दूंगा?"


"जानता हूँ....जानता हूँ...उसे'औलाद'चाहिये थी"...

"तो क्या मुझे'बाप'बनने का चाव नहीं था?"

"ये सही है कि वो ज़माने के तानों से तंग आ चुकी थी लेकिन...

थोडा सब्र तो उसे रखना ही चाहिए था कम से कम"


"मैने भी तो उसी की खातिर'ओवर टाईम'करना शुरू कर दिया था"..

"देर सवेर हमारी इच्छा ज़रूर पूरी होती"...

"लेकिन उसे मुझ पर विशवास हो तब ना"...

"कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी उसे'माँ'बनने की...

"लेकिन...इसका ये मतलब तो नहीं कि कहीं भी मुँह मारो जा के "

"कुछ'कंट्रोल-शंट्रोल'भी तो होता है कि नहीं?"


"हमें तो अपनों ने लूटा...गैरों में कहाँ दम था?"...

"अपनी कश्ती तो वहाँ डूबी...जहाँ पानी कम था"


"अब तो दिल में आग लगी हुई है कि...

अगर वो मेरी नहीं हो सकती तो फिर वो किसी की भी ना हो पाएगी"...


"अगर मैँ उसके साथ नहीं जी सकता तो...

किसी और को भी उसके साथ जीने-मरने का कोई हक नहीं है"...


"आँखो देखे कैसे मक्खी निगलूँ मै?"....

"वो मेरे ही सामने किसी और के संग गुलछर्रे उडाती फिरे और मैँ खडा तमाशा देखता रहूँ चुपचाप?"


"कम से कम'जात-बिरादरी'का तो ख्याल किया होता"....

"ना'जात'देखी और ना ही'पात'देखी उस'हवस'की पुजारिन ने"


"अगर उसे चक्कर चलाना ही था तो कम से कम अपनी'बिरादरी'में ही मुँह मारती कम्भख्त"...


"उस बावली को सब के सब निठल्ले जो नज़र आ रहे थे अपनी बिरादरी में इसलिए...

भाग खडी हुई बाहर वाले के साथ"


"ना तो अपना'साईज़'देखा और ना ही उसके'साईज़'पे गौर किया"

"कहाँ ये और कहाँ वो?"...

"कहाँ'राजा भोज'और कहाँ'गंगू'तेली?"

"कोई मेल भी तो हो"

"जोडीदार तो ढंग का ढूंढना था"


"दिमाग से पैदल तो वो थी ही...

साथ-साथ आँखो से भी अन्धी हो उठी जो उसे. ..

'अच्छा-बुरा'...

'भला चंगा'....

'ऊंच-नीच'...कुछ भी ना दिखाई दिया"


"जी में तो आता है कि'खुदकुशी'कर लूँ...

'डूब के मर जाऊँ कहीं"लेकिन...

'इतना कमज़ोर नहीं मैँ"

"मैँ क्यों'खुदकुशी'करूँ भला?"


"अगर किसी को दुनिया से जाना होगा तो वही जाएगी....मैँ नहीं"


"ये भला क्या बात हुई कि...'करे कोई और भरे कोई'?"

"अब इतना बावला भी नहीं हूँ कि ये भी ना जान सकूँ कि ...

मेरे लिए भला क्या है और बुरा क्या है"


"एक'बेवफा'के लिये अपनी ज़िन्दगी ही तबाह कर लूँ?"


"कभी नहीं!...कभी नहीं!..."


"और हिम्मत तो देखो उस...'नामुराद'की....

अपनी'नाजायज़'औलाद को मेरे पास ही लिए चली आई कि...

मैँ ही इसे अपना'नाम'दे दूं"जैसे...

मैने पूरी दुनिया का ठेका ले लिया हो"


"मेरा पारा सातवें आसमान तक जा पहुँचा"....

"नाम दे दूँ?"....

"इस...'@#$%ं&'..को?"


"भले ही सारी ज़िन्दगी बिन'औलाद'के बैठा रहूँ लेकिन...

'नाम'देने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता"


"ये...'@#$% ं&'साला!....लावारिस की मौत मरेगा"...

"लावारिस की..."


"ये सब सुन...वो गुस्से से बिफरते हुए बोली"लावारिस की मौत ये नहीं....तुम मरोगे"

"कोई कन्धा देने वाला नहीं होगा"


'$%#@'में दम नहीं ....हम किसी से कम नहीं"


"मेरा गुस्सा काबू में नहीं रहा"...

"झट से उस'बेवफा'की गर्दन दबोच ली और लगा ज़ोर से दबाने कि ...

आज ही सारा का सारा टंटा खत्म कर देता हूँ"


"इस...'&ं%$#@'को ज़िन्दा नहीं छोडूगा"


"दिल रो रहा था"...

"आँखो से झर-झर आँसू बहे चले जा रहे थे"...


"आखिर करता भी क्या मैँ?"....

"क्या कोई और चारा छोडा था उसने मेरे लिए?"...

"या तो मैँ..उसकी'बेशर्मी'को चुप-चाप देखता रहता और वो...

'बेहय्या'मेरे ही सामने अपने'आशिक'के साथ...


"नहीं....ऐसा कैसे सह सकता था मै?"...


"उसने'सरेआम'मेरी'मर्दानगी'को ललकारा था"...

"सबक सिखाना'निहायत'ही ज़रूरी हो गया था "...

"ताकि आज के बाद कोई भी ऐसा करने जुर्रत ना करे"..

"ऐसा सोचने से भी पहले उसकी'रूह'तक काँप उठे"


"क्या से क्या हो गया?...'बेवफा'...तेरे प्यार में"...

"चाहा क्या?...क्या मिला?...तेरे प्यार में"





***राजीव तनेजा***
 
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