"क्या मालूम कल हो ना हो?"

"क्या मालूम कल हो ना हो?"

"राजीव तनेजा "


"अजी सुनते हो!..."

"चुप कराओ अपने इस लाडले को"

"रो-रो के बुरा हाल करे बैठा है"

"चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा"

"लाख कोशिशे कर ली पर ना जानें आज कौन सा भूत सवार हुए बैठा है कि...

उतरने का नाम ही नहीं ले रहा"


"अब क्या हुआ?"...

"सीधी तरह बताती क्यों नहीं?"


"जिद्द पे अड़े बैठे है जनाब!..कि'चाकलेट'लेनी है और वही लेनी है जिसका'ऐड'बार-बार'टीवी'पे आ रहा है"


"तो दिलवा क्यों नहीं दी?"


"अरे!...मैने कब ना करी है?"...

"कईं बार तो भेज चुकी हूँ'शम्भू'को बाजार"...

"खाली हाथ लौट आया हर बार"


"खाली हाथ लौट आया?"


"और नहीं तो क्या?"....


"साले!...के भाव बढ़े हुए हैं आजकल"...

"बैठ गया होगा कहीं पत्ते खेलने और बहाना बना दिया कि...नहीं मिली"..

"घड़ी-घड़ी'ड्रामा'करता फिरता है"....

"साला!...'नौटंकी'कहीं का"


"अब नहीं मिली तो!..मैं क्या करुं?"


'चाकलेट'नहीं मिली?"...

"अब तुम भी ना इतनी भोली हो कि कोई भी बस मिनट भर में ही तुम्हारा फुद्दू खींच डालता है"...

"कभी तो अक्ल से काम लिया करो"


"तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?"


"मैने ऐसा कब कहा?"


"मतलब तो यही है तुम्हारा"...

"अरे!...सगी माँ हूँ...कोई सौतेली नहीं कि अपने ही बेटे की खूशीयों का ख्याल ना रखुँ"


"शर्मा की दूकान पे जाना था ना"


"अरे'शर्मा'क्या?और...'वर्मा'क्या?...

सब जगह धक्के खा आई पर ना जाने क्या हुआ है इस मुय्यी'चाकलेट'को"...

"जहाँ जाती हूँ पता चलता है कि'माल'खत्म"


"अब बस का नहीं है मेरे,खुद ही काबु करो अपने इस नमुने को"


"मैँ तो तंग आ चुकी हूँ तुम्हारे इन'सैम्पलों'की फरमाईशें पूरी करते करते"

"किसी को कुछ चाहिये तो किसी को कुछ"


"कितनी बार कहा था कि "बस अब और नही" लेकिन...

तुम मानो तब ना"...


"बडा'वारिस'चाहिए था तुम्हारे माँ-बाप को"

"रट लगा के बैठे हुए थे कि बेटा चाहिए...बेटा चाहिए..."


"हुँह!...बेटा चाहिए"...

"सेवा तो की नहीं गयी ज़रा सी भी और इस कम्भख्त बेटे-बेटे के चक्कर में लगातार तीन लडकियाँ हो गयी"


"इतना ही चाव चढा हुआ था तो खुद ही क्यों नहीं जन लिया?"


"तुम तो बेकार में ही बात का बतंगड बनाने पे तुली हो और...

ऊपर से कह रही हो कि माल खत्म?"मेरे चेहरे पे हैरत का भाव था


"कहीं वो मुय्ये'चाकलेट'फ़िल्म वाले ही तो नहीं उठा ले गये सब?"...

"आजकल 'पब्लिसिटी' के चक्कर में पता नहीं क्या-क्या पापड़ बेलते रहते है"मैनें हँसते हुए कहा


"अरे नहीं बाबा!...बस नाम ही है फ़िल्म का'चाकलेट'बाकि...

पूरी फ़िल्म में'चाकलेट'का नामो-निशान भी नहीं है"

"अगर विश्वास नहीं हो रहा है तो खुद ही तसल्ली कर लो अपनी"

"बाज़ार क्यों नहीं हो आते आप खुद ही ?"...

"थोड़ी वर्जिश भी हो जाएगी इसी बहाने"...

"खाली बैठे-बैठे वैसे भी कौन सा तीर ही मार रहे हो?"


"बीवी की बात मानते हुए चल पड़ा बाज़ार"...

"हैरानी की बात तो ये कि जहाँ-जहाँ गया हर जगह सब कुछ मौजूद लेकिन 'चाकलेट'नदारद"

"पता नहीं ऐसे कौन से सुरखाब के पर लगे हैँ इसमें कि पूरी दिल्ली बावली हो उठी इस...

'चाकलेट'के चक्कर में?"मेरे मुह से निकला ही था कि कहीं से आवाज आई


"दिल्ली?"..

"अरे बाबूजी!...पूरे हिन्दोस्तान की बार करो पूरे हिन्दोस्तान की"

'बिहार'क्या...

'यू.पी'क्या...

'दिल्ली'क्या॰॰॰

'मुम्बई'और'कलकत्ता'क्या"

"हर जगह से माल गायब"..

"सुना है!...अब तो'ब्लैक'में भी नहीं मिल रही"...


"कोई तो ये भी कह रहा था कि'पड़ोसी मुल्क'में भी इसके दिवाने पैदा हो चले हैं अब तो"

"कहीं वहीं तो नहीं'सप्लाई'हो गया सब का सब?"

"बात कुछ समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर...

हुआ क्या है?...

माज़रा क्या है?"


"कईं-कईं तो खाली हाथ बैरंग लौट गये आठ-आठ घंटे लाईन में लगने के बाद"

"जब तक नम्बर आया तब तक झाड़ु फिर चुका था माल पे"वही आवाज फिर सुनाई दी


"अरे!..'चाकलेट'ना हुई अफीम की गोली हो गई"


"आज की तारीख में अफीम से कम भी नहीं है"


"पता नहीं क्या धरा है इस कम्बखत मारी में?"मेरे मुह से निकला ही था कि किसी ने कमेंट पास कर दिया -

"बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद"


"अब अगर सचमुच में कुछ तनिक सा भी मालुम होता तो...

'मुह तोड़'जवाब देता"

"उत्सुकता बढ़ती जा रही थी लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था कि...

आखिर चक्कर क्या है?"


"यह चक्कर मुझे घनचक्कर बनाये जा रहा था"

"क्यों दिवाने हो चले हैं सब के सब?"

"जितने मुँह उतनी बातें सुनने को मिल रही थी"


"कोई कह रहा था कि इससे'डायबिटिज'गायब हो जाती है कुछ ही हफ्तों में"..

"किसी को कहते सुना कि इससे'मर्दानगी'बढ़ती है"..

"सबकुछ नया-नया सा लगने लगता है"...

"तो कोई कह रहा था कि'यादाश्त भी तेज होती है"

"इससे!...'पेपर'में अच्छे नम्बर आते है"...

"बंदा बिमार नहीं पड़ता"...

"और न जाने क्या-क्या?"

'सौ बातों की एक बात कि'चीज़'एक लेकिन फ़ायदे अनेक"

"ना पहले कभी सुना...ना पहले कभी जाना"

"अब पता नहीं क्या सच है और क्या झुठ"

"भाई!..मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा"

"अब आप भले ही मानो या ना मानो लेकिन बाकि सब बावले थोड़े ही है जो...

आँखे मुंदे विश्वास करते चले गये"


"कुछ थोड़ा-बहुत...कम या ज़्यादा सच तो होगा जरूर"


"अरे!..कुछ क्या?...

"सोलह आने सही बात है"...

"खुद आजमाई हुई है"एक आवाज सुनाई दी


"सबकी मुंडी उधर ही घूम गई"

"देखा..तो एक सज्जन बड़े ही मजे से सीना ताने खड़े थे"


"हाथ कंगन को आरसी क्या?और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या?"

"साबित कर सकता हूँ"वो झोले की तरफ इशारा करते हुए बोले


"सब कौतूहल भरी निगाहों से उसी की तरफ ताकने लगे"


"हाँ!...अभी तो मौजुद नहीं है मेरे पास लेकिन उसका खाली'रैपर'ज़रूर है मेरे पास"उन्होंने झोले में हाथ घुमाते हुए कहा

"अगर उसी भर से दिवाने ना हो गये तो मेरा नाम'झुनझुनवाला'नहीं"


"बस उसका झोले से'रैपर'निकालना था और सबका उतावलेपन में उस पर झपटना था"


"छीना-छपटी में किसी के हाथ कुछ नही लगा"


"चिथड़े-चिथड़े हो चुके थे उस 'रैपर' के"

"मेरी किस्मत कुछ बुलन्द थी जो सबसे बड़ा टूकड़ा मेरे ही हाथ लगा"

"देखते ही दंग रह गया"

"सचमुच में 'काबिले तारीफ"

"जिसे मिल जाये उसकी तो सारी तकलीफें,सारे दुःख-दर्द...

"सब मिनट भर में गायब"

"स्वाद ऐसा कि कुछ याद ना रहे"...

"चारों तरफ़ खुशियाँ ही खुशियाँ"


"वाह ॰॰॰ क्या'चाकलेट'थी"

"वाह!...वाह!.."

"खाली'रैपर'से भी खूशबू के झोंके हवा को खुशनुमा किये जा रहे थे"

"अब यार!..क्या सोच रहे हैं आप?"

"थोड़ा नीचे जाओ और खुद भी दर्शन कर ही डालो"

इस'चाकलेट'के"....


"दर्शन कर लो जी...कर लो...किसने रोका है?"


"ऊप्स!...सारी!....

'चाकलेट'नहीं तो उसका'रैपर'ही सही...बोतल नहीं तो अद्धा ही सही"


"माल जो खत्म हो गया है...समझा करो...


"क्या मालूम?...'रैपर'भी...कल हो ना हो"





***राजीव तनेजा***

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