मेरी सातवीं कहानी नवभारत टाईम्स पर

पहली कहानी- बताएँ तुझे कैसे होता है बच्चा

दूसरी कहानी- बस बन गया डाक्टर

तीसरी कहानी- नामर्द हूँ,पर मर्द से बेहतर हूँ

चौथी कहानी- बाबा की माया

पाँचवी कहानी- व्यथा-झोलाछाप डॉक्टर की

छटी कहानी-काश एक बार फिर मिल जाए सैंटा

सातवीं कहानी-थमा दो गर मुझे सत्ता

 

नोट: इस कहानी के एक हिस्से को लिखने के लिए मुझे 'बामुलाहिज़ा' वाले श्री क्रितिश भट्ट जी के नैनो वाले कार्टूनों से प्रेरणा मिली।मैँ उनका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे अपने कार्टूनों को तथा आईडिए को इस्तेमाल करने की इज़ाज़त दी।

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थमा दो गर मुझे सत्ता


2 Feb 2009, 1259 hrs IST,नवभारतटाइम्स.कॉम 

राजीव तनेजा

' ओफ्फो ! पता नहीं , कब अक्ल आएगी तुम्हें ? चलते वक्त देख तो लिया करो कि पैर कहां पड़ रहे हैं और नज़र कहां ?' बीवी चिल्लाई , ' कुछ तो शर्म करो ! दिखाई नहीं देता कि तुम्हारी बच्ची की उम्र की है। किसी को तो बख्श दिया करो कम से कम। तुम्हें तो बस लड़की दिखनी चाहिए , भले ही जैसी भी हो। क्यों , है ना ?

' लड़की दिखी नहीं कि बस , चल दिए नाक की सीध में मुंह उठाकर। उसने मुस्कुरा कर क्या देख लिया , हो गए झटाक से फ्लैट। पहले नज़र फिसला करती थी जनाब की , अब तो खुद ही फिसलने लगे हैं। माशा अल्लाह , क्या तरक्की हो रही है ! आ गए मज़े ? गिर पड़े ना धड़ाम से !

' अब उसी को बुला लेना यह गोबर से लिपे - पुते जूते साफ करने के लिए ,' बीवी बोले चली जा रही थी , जैसे आज रुकने का नाम न लेना चाहती हो। ' मैं पूछता हूं कि इन गाय - भैंसों को मैंने कहा है कि यूं रास्ते में गोबर करती फिरे ?' मुझे भी ताव आ गया , अच्छी - भली डेरियां बसा कर दी हैं सरकार ने। अपना आराम से दुहो और लोड कर ले आओ दूध शहर में। लेकिन नहीं , लोगों को कीड़ा जो काटता है कि ' प्यॉर ' माल होना चाहिए।

खाक मिलता है प्योर ! पता है , कितना पानी पहले से मौजूद रहता है इन दूधियों के डोल्लू में ? पब्लिक को तो बस थन से धार निकलती दिखाई देनी चाहिए। डिरेक्ट फ्रॉम द सोर्स। भले ही सुबह - शाम इंजेक्शन ठुकवा - ठुकवा कर क्यों न भैंस बेचारी का पिछवाड़ा सूजा पड़ा हो। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पता नहीं , अपनी मेनका कहां गायब हो जाती है ऐसे वक्त ?

शायद उसे भी डिरेक्ट फ्रॉम द सोर्स की आदत पड़ी हो। बीवी उसकी भद्द पीटती हुई बोली। इंसान भी ना , पैसों के लालच में कितना अंधा हो गया है। पता नहीं क्या - क्या ( स्टेरॉयड ) मिलाते हैं चारे में दूध बढ़ाने के वास्ते। कोई शराफत नाम की चीज़ ही नहीं बची है दुनिया में। दूध तो बच्चों को पीना होता है , उनके भविष्य के साथ तो खिलवाड़ न करें कम से कम , बीवी तमक कर बोली।

बस , तुम्हें कोई टॉपिक मिलना चाहिए , हो जाती हो शुरू। अब , गाय - भैंस को क्या पता कि कहां गोबर करना है और कहां नहीं। बस हूक उठी और उन्हें पूंछ उठा देनी है। तुम गाय - भैंस का रोना रो रहे हो , सामने देखो दीवार कैसी सनी पड़ी है , बीवी इशारा करती हुई बोली।

साले ! न दिन देखते हैं न रात , जहां खाली दीवार देखी कि बेशर्मों की तरह पैंट की ज़िप पर हाथ गया , मैंने हां में हां मिलाई। कोई कंट्रोल - शंट्रोल भी होता है कि नहीं ? बीवी खुंदक भरे स्वर में बोली। लाख लिखवा दो कि यहां पेशाब करना मना है , लेकिन बेवकूफ वहीं खड़े होकर शुरू हो जाएंगे। मैं भी शुरू हो गया।

औरत - मर्द में कोई फर्क ही नहीं करते। यह भी नहीं देखते कि कौन गुज़र रहा है पास से। शर्म - वर्म तो बेच खाई है सबने , मुंह बनाते हुए बीवी बोली। इन्होंने तो पूरे देश को खुले शौचालय में तब्दील कर रखा है। किसी और देश में कर के दिखाएं ऐसा , तो पता चले , मैं भी भड़कता हुआ बोला। काट कर नहीं रख देगा वहां का कानून , बीवी हंसते हुए बोली। बिना डंडे के कोई नहीं सुधरता है। इन्हें बस डंडे का डर दिखे , तभी सीधे होंगे। मेरा पारा भी लाल हो चला था। तुम भी कौन सा कम हो ? तुम भी तो कई बार ...

अरे ! तब तो मेरी तबियत ठीक नहीं थी। मैं झेंपता हुआ बोला। एक - आध दिन की बात हो तो अलग है , यहां तो रोज़ की आदत बना रखी है इन्होंने। ऊपर से ज़ुबान पर गालियां ऐसी छाई रहती है कि बस पूछो मत। छोटी - मोटी गाली देना तो शान के खिलाफ समझते हैं ये लोग। बीवी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। मां - बहन की गाली तो आजकल प्रसाद स्वरूप देने लगे हैं लोग , मैं हंसता हुआ बोला।

रहने दो , तुम भी कुछ कम नहीं हो , बीवी ताना मारते हुए बोली। तुम तो हर चीज़ में मुझे ही घसीट लिया करो। क्या , मैं कहता - फिरता हूं लोगों से कि यूं सड़क पर कूड़ा फेंकते फिरो या थूक - थूक कर पूरी दिल्ली को यूं थूकदान बना डालो ? अपने ऊपर आरोप लगता देख मेरा भड़कना जायज़ था।

क्या मैं कहता फिरता हूं , इन पैसों के लालची गुटखा - खैनी वालों से कि बच्चे - बच्चे को चस्का लगवाकर नशेड़ी बना दो ? मेरा बस चले तो सब सालों को जेल की चक्की पीसने पर मजबूर कर दूं। दूसरों पर कीचड़ उछालना कितना आसान है ? तुम्हारे हाथ में पावर हो तो तुम ही क्या उखाड़ लोगे ?

मैं ? हां तुम ! बीवी मखौल उड़ाते हुए बोली। अरे , मैं तो दो दिन में सुधार कर रख दूं पूरी दिल्ली को। एक बार मुझे सत्ता थमा कर तो देखो , उम्मीदों पर खरा न उतरूं तो कहना। यूं ! चुटकी में। हां ! चुटकी में दिल्ली का चौखटा ठीक न कर दूं तो मेरा भी नाम राजीव नहीं। ये , इन्हें तो मैं एक ही दिन में सिखा दूं कि दिल्ली में कैसे रहा जाता है। कैसे सड़कों पर चला जाता है ? कैसे सड़कों पर थूका जाता है ? कैसे कचरा फैलाकर दिलवालों की दिल्ली का बेड़ा गर्क करते हैं ये लोग ? मैं बोलता चला गया।

कैसे सरेआम कानूनों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं ? कैसे खुलेआम सिगरेट - बीड़ी के कश लगाकर सबकी नाक में दम किया जाता है ? मैं आखिरी कश लगाकर सिगार पैर से मसलते हुए बोला। सालों को नाम के लिए भी ट्रैफिक सेंस नहीं है। न पैदल चलने की अक्ल है , ना गाड़ी - घोड़ा दौड़ाने की। बस मुंह उठाते हैं और चल देते हैं सीधा नाक की सीध में। भले ही कोई पीछे सौ - सौ गाली बकता फिरे , इन्हें कोई मतलब नहीं। कोई सरोकार नहीं कि पीछे , कोई इनकी गाड़ी के नीचे आते - आते बचा।

या ये खुद ही किसी गाड़ी से कुचले जाते अभी , बीवी ने बात पूरी की। ऊपर से ये पैदल चलने वाले ... उफ ! तौबा। पता नहीं , कौन सी दुनिया में खोए रहते हैं ? ये तो ग्यारह नम्बर की बस पर सवार होते हैं , यानी कि पैदल चलते हैं और गलती तो हमेशा बड़ी गाड़ी की ही मानी जाती है। मैं व्यंग्यपूर्वक चिढ़ता हुआ बोला। उल्टा , मुआवज़ा और ले मरते हैं साले। बीवी का पारा भी हाई हो चला था।

अरे ! हाथ में सत्ता आ जाए एक बार , इन्हें तो दिल्ली का रुख करना तक भुलवा दूं। हुंह ! थोथा चना , बाजे घना। क्या ? हां , क्या कर लोगे तुम ? बीवी मानो मुझे जोश दिलाने पर तुली थी। मेरा बस चले तो सबसे पहले इन फाइनैंस कम्पनियों को ही ताला लगवा दूं , जहां न बंदा देखते हैं , न बंदे की जात। बस फाइल बनवाओ और ले जाओ। साले , पांच - पांच हज़ार में स्प्लैंडर बांटते फिरते हैं कि ले बेटा , मौज कर। बाकी के देते रहियो किश्तों में। नहीं दे पाएगा तो फिक्र नॉट कर। हमने गुंडे - पहलवान भी पाल रखे हैं।

उफ ! रिकवरी एजंट पाले हुए हैं इसी खातिर। पता भी है कुछ ? अब तो नया स्यापा खड़ा होनेवाला है। बीवी तपाक से बोल पड़ी। वह क्या ? इस टाटा की ' नैनो ' ने तो और नाक में दम कर दिया है। वह कैसे ? इतना अच्छा काम कर रहा है और ऊपर से दुनिया की सबसे सस्ती कार। वही तो ! बीवी के चेहरे पर असमंजस का भाव था। जिसे देखो , वही ' नैनो ' पर सवार दिखाई देगा। फिर बुरा क्या है इसमें ?

भला क्या फर्क रह जाएगा अमीर और गरीब में ? बीवी अपनी मंहगी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए बोली , दोनों एक ही गाड़ी में घूमते नज़र आएंगे। कोई स्टेटस भी होता है कि नहीं ? काम वाली बाइयां तक घरों में काम करने गाड़ी से ही आया करेंगी , मैं मुस्कुराता हुआ बोला। नए बहाने मिल जाएंगे उन्हें कामचोरी के , कभी टायर पंक्चर तो कभी ट्रैफिक जाम। बीवी बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली।

ऊपर से पुलिस का चलान हो गया तो समझो दो दिन की छुट्टी , मैंने मन ही मन सोचा। अभी तो हर किसी को नया - नया चाव चढ़ रहा है ना ' नैनो ' का। पता तब चलेगा बच्चू , जब पार्किंग की समस्या सर चढ़कर बोलेगी , बीवी मानो भविष्य की तरफ ताकती हुई बोली। अभी से बुरे हाल हैं , आगे रखने के लिए जगह तक नहीं मिलेगी। इस मामले में ये जापान वाले सही हैं , पूरी दुनिया को गाड़ियों पर सवार कर दिया और खुद घूमते हैं साइकिल पर।

ऊपर से तुर्रा ये कि सेहत ठीक रहती है। साले , कंजूस कहीं के ! मैं बीच में ही बोल पड़ा। सुना है ! वहां बन्दे को गाड़ी तब मिलती है जब वह पक्का सबूत दे कि इसे रखेगा कहां। पर , बीवी के चेहरे पर प्रश्नवाचक चिन्ह मंडरा रहा था। और नहीं तो क्या ? मैं उसकी जिज्ञासा शांत करता हुआ बोला। अभी नौकरियों में रिजर्वेशन मांगा जा रहा है। आनेवाले समय में पार्किंग कोटा फिक्स करने की डिमांड उठने लगे तो कोई ताज्जुब नहीं , बीवी बोली।

ताजुब्ब नहीं कि कल को कोई जेबों में हाथ डाले मज़े से यूं ही टहलता - टहलता शो - रूम जा पहुंचे और जेब से दो तीन बंडल मेज़ पर रखते हुए बोले , दो नैनो देना डीलक्स वाली। जय शनिदेव , जय बजरंग बली का हुंकारा लगाते भिखारी तक नैनो में भीख मांगते नज़र आएंगे। आनेवाले समय का मंज़र मेरी आंखो के सामने नाचने लगा। कल को नज़र बट्टू के नाम पर दफ्तर - दुकानों में नींबू - मिर्च टांगने वाले भी नैनो पर आने लग जाए तो कोई अजीबोगरीब बात न होगी।

बस ! स्टाइल कुछ यूं होगा। गले में सोने की चेन , माथे पर गॉगल , धन्धे का नाम मॉडीफाई करके ' लैमन चिली ' हो जाएगा। बीवी मज़ाक में बोली। मुझे तो अपने पप्पू की चिंता हो रही है , बीवी परेशान होकर बोली। वह क्यों ? मेरे चेहरे पर सवाल था। कल को वह भी खिलौनों से आज़िज आकर नैनो की ही डिमांड न करने लगे , मेरी तरफ देख बीवी बोली।

कोई बड़ी बात नहीं। मैंने जवाब दिया। कहीं बच्चों के लिए सस्ते पेट्रोल की डिमांड भी न उठने लगे। उफ ! क्या ये नैनो का पंगा लेकर बैठ गए ? जब आएगी , तब की तब देखी जाएगी। तुम तो बात कर रहे थे दिल्ली सुधारने की , क्या हुआ उसका ? बस ! बातों - बातों में ही हवा कर दी बात। अरे , हवा कहां ? पहले मौका मिले तो सही। सिखा दूंगा इन्हें कि कैसे थूका जाता है खुलेआम। वहीं थूके हुए को चटवा न दिया , तो मेरा भी नाम राजीव नहीं।

अपने घरों में , दफ्तरों में थूक कर देखो तब पता चलेगा। खुद से ही घिन न आ जाए तो कहना। बता दूंगा इन ठेकेदारों को कि कैसे लूटा जाता है सरकारी माल। हथकड़ियां न लगवा दी तो कहना। डंडा चलेगा जब मेरा तो बड़े - बड़े सीधे हो जाएंगे। किसे सुधारोगे तुम ? सारा ढांचा ही बिगड़ा पड़ा है दिल्ली का। अब , इन रिक्शे को ही लो , रोज़ तो जब्त करते - फिरते हैं एमसीडी वाले इसे।

मगर , अगले दिन फिर सड़क पर नाचते नज़र आते हैं ये। रिक्शेवालों की मनमानी से त्रस्त एक आम भारतीय नारी की आवाज़ थी यह। सुना है , पूरा माफिया होता है इस गोरखधन्धे के पीछे। रजिस्ट्रेशन के नाम पर एक - एक पर्ची पर बीस - बीस रिक्शे को रजिस्टर करवा रखे हैं सालों ने। अरे , लाखों का खेल है ये। एक - एक के पास हज़ार - हज़ार रिक्शे हैं।

बीस रुपए प्रति रिक्शे के हिसाब से लगा लो कि कितने का गेम बजता होगा हर रोज़। लेकिन , जो हो गया सो हो गया। सारी माफियागिरी धरी की धरी रह जाएगी , जब मेरा कटर चलेगा। कटर चलेगा ? बीवी चौंकती हुई पूछी। हां , कटर। कटर चलवा दूंगा , इन अवैध रिक्शों पर। ये नहीं कि जब्त कर गोदाम में फिकवा दूं सड़ने के लिए , ताकि कुछ ले - देकर सड़कों पर फिर से वे उछल - कूद मचाते फिरें।

एक ही बार में टंटा खत्म कर दूंगा इनका। न रहेगा बांस और न ही बजने दूंगा इनकी बांसुरी। काट के इतने टुकड़े करवा दूंगा कि कबाड़ी भी दो रुपए किलो से ऊपर का भाव न लगाए। यह सब तो ठीक है , लेकिन इन पैदल चलने वालों का क्या करोगे ? कैसे सिखाओगे इन्हें तमीज़ से चलना।

लठैत पहलवानों की भर्ती करूंगा , इन साले सड़क पार करने वालों के लिए। इधर गलत तरीके से सड़क पार की कि उधर लट्ठ बरसा , दे दनादन। पट्ठों को हथकड़ी लगवाकर वहीं रेलिंग से ही बंधवा न दिया तो मेरा नाम भी राजीव नहीं। फोटो अलग से खिचवाई जाएगी ऐसे नमूनों की , ताकि जान ले पूरा इंडिया।

पूरा इंडिया ? फिर बीवी के चेहरे पर सवाल था। हां , पूरा इंडिया। देख लो , जान लो कि क्या हश्र होने जा रहा है अब बददिमागों का। इससे फायदा ? फायदा तो बहुत है। पड़ेगी एक को , लगेगी सबको। सभी सीधे हो जाएंगे। बहुत देख लिया आराम से समझा - समझाकर। हम लातों के भूत बातों से भला कब माने हैं , जो अब मानेंगे ?

बिल्कुल , यही इलाज है इनका। डंडा सर पर हो तो बड़े - बड़े सीधे हो जाते हैं। यहां न डर है और न ही कानून की परवाह है किसी को। यहां साला जुर्म आज करो , सज़ा का कोई पता नहीं होता कि कब मिले ? मिले या न भी मिले , कोई गारंटी नहीं। सालों तक लंबे केस चलते हैं , किसी को सज़ा होते देखा है ? नहीं न ? इसी से तो बेड़ा गर्क हुए जा रहा है , पूरे हिन्दुस्तान का।

आम जनता भी तो इन्हीं नेताओं से सबक लेती है। देखती है कि जब इनका बाल भी बांका नहीं हो पा रहा , तो अपना क्या बिगड़ेगा। बीवी भी मेरे रंग में रंग चुकी थी। मुझे तो अरब देशों का कानून बहुत पसन्द है जी। जैसा जुर्म , वैसी सज़ा। चोरों के हाथ काट दिए जाते हैं। बीवी की आवाज़ में आवेग था। नशे के सौदागरों को पूरी ज़िन्दगी जेलों में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है और बलात्कारियों को ... मैंने बात अधूरी छोड़ दी।

पता नहीं , क्या मिलता है लोगों को अच्छी खासी चल रही लाइफ को बिगाड़ कर। किसकी बात कर रही हो ? अब प्रश्न मेरे चेहरे पर नजर आ रहा था। बेड़ा गर्क करके रख दिया है , इन मसाज पार्लरों ने। मेरी बात सुने बिना ही बीवी बोलती चली गई। दिन पर दिन ये कुकुरमुत्तों की तरह गली - गली उगते जा रहे हैं। कोई गली , कोई मोहल्ला तक अछूता नहीं है इनसे। पता नहीं , कहां से ये फिरंगी कल्चर इंडिया का नाश करने पर तुला है।

पता नहीं , क्या आग लगी है आज के नौजवानों को ? बीवी का आवेश बढ़ता ही जा रहा था। पार्लर की आड़ में सारे उल्टे काम। मेरे हाथ में पावर आ जाए तो पुलिस का पहरा न बिठवा दूं , इन मसाज पार्लरों पर। एक - एक की ऐसी ठुकाई करवाऊंगा कि आनेवाली सात नस्लें तक जान जाएंगी कि मसाज कैसे करवाई जाती है।

मेरा बस चले तो सबसे पहले यह सब लेटेस्ट मोबाइल बन्द करवाऊंगी। बड़े गंदे - गंदे एमएमएस बनाने का चलन चल निकला है आजकल। हर बंदा मोबाइल में कुछ न कुछ पुट्ठा सामान लिए फिरता है। मैंने बात पूरी की। जिसे देखो चोरी से किसी न किसी लड़की की छिपाकर फोटो खींच रहा होता है। सही है , मैंने सहमति जता दी। तुम कौन सा कम हो , तुमने भी तो उस दिन ... बीवी आंखे तरेर मुझसे बोली।

वो ? वो तो बस ! ऐसे ही मज़ाक - मज़ाक में ... मैं झेंपता हुआ बोला। बस ऐसे ही ? सभी मज़ाक - मज़ाक में ही खींच लिया करते हैं। यह तो सोचो कि कोई इसी तरह तुम्हारी भी मां - बहन या बीवी एक कर रहा होगा। बीवी भड़कते हुए बोली। ये साले , सभी मर्द एक से होते हैं। लड़की देखी नहीं कि लार टपकना शुरू। काबू में नहीं रख पाते अपने जज़्बात। अरे ! तुम भी कौन सी बात लेकर बैठ गई ?

अगर सामने से थोड़ी - बहुत लिफ्ट मिलती है , तभी हम मर्दों की हिम्मत होती है। वर्ना हमारे जैसा दब्बू , पूरे जहां में कोई नहीं मिलेगा। मैं बिगड़ी बात संभालता हुआ बोला। तुम भी न , उल्टे - सीधे टॉपिक बीच में छोड़कर असली बात ही गोल कर देती हो। बात हो रही थी दिल्ली सुधारने की। तो सुनो , सब साले कामचोर बाबुओं को सस्पेंड कर बता दूंगा कि कैसे बिना ड्यूटी पर आए हाज़री लगवाई जाती है।

वो सब तो ठीक है , पर इन नेताओं का क्या करोगे ? जीना हराम कर रखा है , इन्होंने आम पब्लिक का। इन्हें तो बस पैसेवाले ही नज़र आते हैं। इनकी तो मैं ... बिना बोले मैंने बात अधूरी छोड़ दी। जेल की रोटी खाने और चक्की पीसने पर मजबूर ना कर दिया तो कहना। सब सीख जाएंगे कि कैसे बड़ी - बड़ी मॉलों को लाइसेंस देकर , छोटे दुकानदारों से जीने का लाइसेंस ही छीन लिया जाता है।

कैसे बडे़ - बडे़ लाल , हरे , नीले स्टोरों को कोठियों में खोलने की इज़ाज़त देकर आम आदमी की रोज़ी - रोटी पर लात मारी जाती है। सिखा दूंगा कि कैसे गिने - चुने निशानों का डिमॉलिशन कर पूरी पैसे वाली जमात को बचाया जाता है। सिखा दूंगा कि कैसे अपने धूल फांकते उजाड़ बंजर खेतों पर सरकारी पैसे से हॉट बज़ार या सुभाष चन्द्र बोस स्मारक बनवाकर अपनी तिजोरियां भरी जाती हैं।

कैसे सरकारी गोपनीय दस्तावेजों का नाजायज़ इस्तेमाल कर गरीब किसानों से कौड़ियों का दाम लेकर उसी जमीन से बाद में लाखों करोडों नहीं , बल्कि अरबों रुपए कमाए जाते हैं। कैसे अपने नेम - फेम की खातिर मेट्रो का रूट तब्दील करवाया जाता है। बीवी भी पिल पड़ी। कैसे सौ के ऊपर , सीधा पांच सौ का टैक्स लगाकर ट्रैफिक चलान की फीस को बढ़ाया जाता है। कैसे सरकारी जमीन पर रातों - रात झुग्गी बस्तियां बसवा कर अपना वोट बैंक मज़बूत किया जाता है।

कैसे सरकारी ड्रॉ में मलाईदार प्लॉट अपनों के नाम किए जाते हैं। बीवी का गुस्सा कम होने को ही नहीं था। कैसे पैसे ले लेकर कुक्करमुत्ते की भांति उगने वाली जाली फ्रॉड कंपनियों को राज्य में काम करने की छूट दी जाती है। कैसे प्राइवंट बिजली कम्पनी को नए तेज़ भागते मीटर लगाने की छूट देकर करोड़ों के वारे - न्यारे किए जाते हैं। कैसे ऑटो , टैक्सी के इलेक्ट्रॉनिक मीटरों के जरिए पब्लिक की जेब से पैसा खींचा जा सकता है , बिना रुके मैं भी बोलता रहा।

इतना सबकुछ हो रहा है , लेकिन पब्लिक कुछ कहती ही नहीं। अरे ! पिद्दू पब्लिक है , ये कुछ नहीं जानती है। हमारे यहां डर नहीं है , न किसी को कानून का और न ही समाज का डर है। मौका मिले कि हर बंदा कानून तोड़ने से परहेज नहीं करता। मज़ा आता है , शेखी दिखाई देती है इसमें। भीड़ में सबसे अलग , सबसे जुदा होने की चाहत होती होगी शायद। अब ये ट्रैफिक पुलिस वालों का आलम तो देखो - हर एंट्री के नाम पर जहां पचास का पत्ता झटकते थे , टैम्पो वालों से सरकारी चालान बढ़ने के कारण इन्होंने भी अपना रेट बढ़ा दिया है।

ऊपर से सीनाजोरी देखो इनकी , कहते हैं कि हम यहां क्या मुफ्त में ... मेरा बस चले तो इन सभी रिश्वतखोरों के एमएमएस बनवा कर इनके दूध धुले चेहरों का लाइव टेलीकास्ट करवा दूं। खुदा समझते हैं अपने आपको। जिसे देखो ! वही दिल्ली की कब्र खोदने पर उतारू हैं।

अब इन ब्लूलाइन वालों को ही लो , बंदे की जान की कोई कीमत ही नहीं है इनकी नज़र में। जब चाहे रौंद डालते हैं। ब्लूलाइन वालों की तो मैं ... । सुना है , सब बड़े नेताओ की करनी है। इसीलिए लाख इनके खिलाफ आवाज़ें उठने के बावजूद भी बसें रौंदे चली जा रही हैं पब्लिक को। बस एक बार मेरे हाथ में ताकत आ जाए। सारे परमिट कैंसल करवा के दिल्ली से बाहर फिंकवा दूंगा कि चलो अब यूपी , बिहार। अरे ! तब तो बहुत दिक्कत हो जाएगी। इतनी भीड़ , इतनी पब्लिक ... । बाप रे !

होती रहे मेरी बला से। कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी ज़रूरी होता है। इतना भी नहीं जानती ? तुम तो बुद्धू हो। अरे ! एक ही झटके में नहीं साफ होगा पत्ता इन ब्लूलाइनों का , बल्कि सिलसिलेवार ढंग से कुछ ही महीनों में सबकी बत्ती गुल कर दूंगा दिल्ली से।

तब तक पब्लिक क्या घर बैठी रहेगी ? अरी बेवकूफ ! कॉर्पोरट सिस्टम लागू करूंगा मुम्बई के माफिक। एक ही कम्पनी की दो - दो हज़ार बसें होंगी कम से कम। पब्लिक भी खुश , कम्पनी भी खुश और लगे हाथ हम भी खुश। अब कौन हर बस से अलग - अलग मंथली इकट्ठी करता फिरे ? हमें तो बस एक मुश्त रकम मिल जाए पूरे साल भर की तो ही जा के चैन पड़े।

एक बार में ही पूरे मिल जाए तो कहीं ढंग से ठिकाने भी लगे। छोटे - मोटे बंडल तो वैसे ही बियर बार - बालाओं को ही खुश करने में साफ हो जाएंगे। मेरे चेहरे पर वासना चमक उठी थी। ये क्या कि खेत का खेत जुता , फसल की फसल कटी और अनाज कब चूहे ले गए पता भी नहीं चला। मैं दिखाउंगा पूरी दिल्ली को कि कैसे खेला जाता है खेल।

कैसे सबकी नज़रें बचाकर लाखों करोड़ों के वारे - न्यारे किए जाते हैं। मेरी आंखों की शैतानी चमक सारी कहानी खुद बयां कर रही थी। कैसे हर छोटी - बड़ी ठेकेदारी में अपना हिस्सा फिट किया जाता है। सही कह रहे हो , बीवी की आंखों में भी लालच का परचम लहरा चुका था। कैसे पुलिस और ट्रैफिक की कमाई में अपनी गोटी फिट की जाती है ! कैसे नौकरी जाने के साथ - साथ जेल जाने का डर दिखा बेईमान अफसरों से अपनी मंथली सेटिंग की जाती है ! कैसे हर फैक्ट्री वाले की बैलन्स शीट के हिसाब से अपना परसेंट तय किया जाता है।

बातें तो तुम सारी एकदम सही कर रहे हो , लेकिन सत्ता हाथ आएगी कैसे ? इसके लिए तो बहुत नोटों की ज़रूरत पड़ेगी और वो तो है नहीं ना अपने पास। ज़्यादा उड़ो मत , बड़ी पावर की बातें किए जा रहे हो। यहां रिलायंस की पावर खरीदने लायक पैसे भी नहीं हैं , बीवी बैंक की पासबुक देख निराश होते हुए बोली। बस यही तो एक कमी रह गई। बाकी सारा मास्टर प्लैन तो मुंहज़बानी रटा पड़ा है हम दोनों को। मेरी आवाज़ में हताशा का पुट था।

काश ! कहीं से पैसा आ जाए इलेक्शन लड़ने के लिए , मैं ठंडी आह भरता हुआ बोला। बस पैसा आ जाए किसी तरह , बाकी सब दांवपेच पता है कि कैसे लड़ा जाता है चुनाव ? कैसे झटके जाते हैं विरोधी खेमे के वोट ? कैसे दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाई जाती है ? अरे ! बैंक से याद आया , अपने गुप्ता जी तो बैंक में ही हैं न ! पता करो , कोई लोन - शोन का ही जुगाड़ बन जाए शायद। आजकल तो धड़ाधड़ बांट रहे हैं ये बैंक वाले लोन। रोज़ ही तो लोन ले लो , लोन ले लो कह कर सिर खा रही होती हैं फोन पर।

दुनिया भर की तो छम्मक छल्लो भर्ती कर रखी हैं इन्होंने इसी खातिर। एक मिनट रुको , कहकर मैं अपने मोबाइल की फोन बुक खंगालने में जुट गया। अभी परसों ही तो फोन आया था रूबी का। अरे वही ! बैंक वाली , और कौन ?

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5 comments:

Udan Tashtari said...

आप तो नभाटा में छाये हुए हो भई..बहुत बधाई. मिठाई तो खिलाओ यार!!

संगीता पुरी said...

बहुत बहुत बधाई.....कहानी फुर्सत में पढूंगी।

सुशील छौक्कर said...

वाह क्या बात है। सबसे पहले तो जी बधाई। और जी ये सब आपके सटीक व्यंग्य का कमाल है जो सातँवी कहानी नवभारत पर छपी। तुसी छा गए जी।

निर्झर'नीर said...

rajiv jii

bandhaii ho

aapka koi javab nahii ..katu satya ko vyang roop dene mein

योगेन्द्र मौदगिल said...

तनेजा जी, हर रचनाकार कहीं न कहीं से प्रेरणा पाकर ही कुछ कह पाता है. आपने कृतीश जी का आभार प्रकट किया वह प्रणम्य एवं अनुकरणीय है. वाह..... और कथानक अच्छा बांधा है आप ने.. बधाई......

 
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