नवभारत टाईम्स पर मेरी कविता-सौगंध राम की खाऊँ कैसे

नवभारत टाईम्स पर मेरी कविता-सौगंध राम की खाऊँ कैसे

 

नोट:कल नवभारत टाईम्स ऑनलाईन की सर्च में ऐसे ही अचानक जब मैँने अपना नाम टाईप किया तो इस कविता के लिंक के मुझे दर्शन हुए,तो सोचा कि क्यों ना इसे आप सभी के साथ शेयर किया जाए ताकि प्रसाद स्वरूप कुछ अतिरिक्त टिप्पणियाँ हासिल हो सकें। :-)

तत्कालीन घटनाओं पर आधारित मेरी यह कविता लगभग एक साल पहले नवभारत टाईम्स ऑनलाईन पर आई थी,जिसका मुझे तब पता नहीं चला क्योंकि नवभारत टाईम्स वाले अपनी व्यस्त्तता के चलते लेखकों को उनके लेख छपने की सूचना नहीं देते हैँ या फिर ऐसा करना वे उचित नहीं समझते।हाँ!..वैसे उनके पास इतना समय अवश्य होता है कि किसी लेख पर आपके द्वारा की गई टिप्पणी के छपने की सूचना आपको तुरंत ई मेल द्वारा भेज देते हैँ।

 


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सौगंध राम की खाऊं कैसे


3 Feb 2008, 1257 hrs IST 

राजीव तनेजा


करास्तानी कुछ बेशर्मों की
शर्मसार है पूरा इंडिया
अपने में मग्न बेखबर हो
वीणा तार झनकाऊँ कैसे


नव वर्ष की है पूर्व सन्ध्या
नाच नाच कमर मटकाऊँ कैसे


ह्रदयविदारक द्र्श्य देख बार बार
मीडिया की कमर थपथपाऊँ कैसे

झूठे नकली स्टिंग ऑप्रेशन देख
स्वच्छ मीडिया के गुण गाऊँ कैसे


बगल में कत्ल होता लोकतंत्र
सपुर्द ए खाक होती बेनज़ीर देख
दुखी हूँ भयभीत हूँ लाचार हूँ
जग जहाँ को बतलाऊँ कैसे


नन्दी ग्राम जलते देख
चीतकार करते मन को समझाऊँ कैसे
नतीजन...एकजुट हो
समर्थन में लाल झण्डे के हाथ उठाऊँ कैसे


करुणानिधी और बुद्धदेव की कथनी देख
तडपते दिल को समझाऊँ कैसे
राम सेतू रूपी आस्था को टूटता देख
गुजरात हिमाचल विजयी बिगुल बजाऊँ कैसे


अपने देश में अपनों से
अपनों को ही मिटता देख
मैँ खुश हो खुशी के गीत गाऊँ कैसे
हिन्दी हूँ मैँ वतन है हिन्दोस्ताँ मेरा
निष्ठा पे अपनी प्रश्न चिन्ह लगवाऊँ कैसे


लम्बा है सफर कठिन है डगर
अपनों के बीच स्वदेश में
सरेआम खुलेआम
सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे


***राजीव तनेजा***

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7 comments:

राजीव तनेजा said...

रंजना भाटिया:लम्बा है सफर कठिन है डगर
अपनों के बीच स्वदेश में
सरेआम खुलेआम
सौगन्ध राम की खाऊँ कैसे

बहुत सही लफ्ज़ दिए हैं आपने इस सच को बढ़िया लगी आपकी यह रचना

विजयराज चौहान "गजब" said...

aap sobhagya saali hae jo aapki rachnaye ko navbharat me sthan milta hae |
Subhkamnaye!

आलोक साहिल said...

bahut achhe bhai ji, sundar.....
sath hi badhai bhi
ALOK SINGH "SAHIL"

संजय बेंगाणी said...

अच्छा लिखा है.

वैसे राम का नाम लेना अब खतरनाक हो गया है.

शोभा said...

अपने देश में अपनों से
अपनों को ही मिटता देख
मैँ खुश हो खुशी के गीत गाऊँ कैसे
हिन्दी हूँ मैँ वतन है हिन्दोस्ताँ मेरा
निष्ठा पे अपनी प्रश्न चिन्ह लगवाऊँ कैसे
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

सुशील छौक्कर said...

बेहतरीन रचना।

स्वप्न मञ्जूषा said...

अपने देश में अपनों से
अपनों को ही मिटता देख
मैँ खुश हो खुशी के गीत गाऊँ कैसे
हिन्दी हूँ मैँ वतन है हिन्दोस्ताँ मेरा
निष्ठा पे अपनी प्रश्न चिन्ह लगवाऊँ कैसे
bahut hi khoobsurat panktiyan..
sundar hridaysparshi kavita..
main to pahli baar aapke blog par aayi hun aur bahut hi jyada prabhavit hokar jaa rahi hun..
badhai sweekar karein hamara..

 
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