तेरी दुनिया से हो के मजबूर...

***राजीव तनेजा***

suicide-bear

"तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला...मैँ चला....बहुत दूर….चला"...

"रुकिए तनेजा जी!...रुकिए"...

"ओ...आज पुरानी राहों से...कोई मुझे आवाज़ ना दे"....

"ठीक है तनेजा जी!...आईन्दा से आपको आवाज़ नहीं दूँगा लेकिन अभी आप रुकिए तो सही"...

"जी!..कहिए?...क्या काम है?"...

"ये आप ऐसे बुझे-बुझे..थके-थके कदमों से कदमताल करते हुए कहाँ चले जा रहे हैँ?"...

"तुमसे मतलब?"...

"मतलब तो खैर मुझे क्या होना है? लेकिन फिर भी...पता तो चले"...

"कुछ खास नहीं....बस!..ऐसे ही"...

"अगर कोई बात नहीं है तो फिर आपका चेहरा ऐसे मुर्झाए हुए कुकुरमुत्ते जैसा क्यों दिखाई पड़ रहा है?"...

"आपके मन का वहम है...ऐसी कोई बात नहीं है"...

"माना कि मेरी उम्र साठ के पार हो गई है तनेजा जी!...लेकिन यकीन मानिए अभी तक सठियाया नहीं हूँ और ना ही अगले पाँच-सात बरस तक ऐसा कोई इरादा है"....

"मुझ पर विश्वास कीजिए...मैँ सच कह रहा हूँ"...

"तो इसका मतलब!...आप नहीं बताएँगे?"...

"अरे यार!...कुछ बताने लायक हो...तभी तो बताऊँ"मैँ झुँझला कर झल्लाता हुआ बोला...

"ठीक है!...तो फिर जाओ भाड़ में...मैँ नहीं बोलता"...

"कुट्टी...कुट्टी....कुट्टी....पक्की कुट्टी"शर्मा जी दूसरी तफ मुँह फेर के खड़े हो गए...

"क्या शर्मा जी?..आप तो ज़रा-ज़रा सी बात पे ऐसे मुँह फुला के बैठ जाते हैँ जैसे कोई दूध पीते बच्चे हों"...

"माना कि फिलहाल मेरा मूड...ज़रा सा अपसैट है लेकिन...क्या दिक्कत है?"...

"ऐसा तो आजकल आए दिन मेरे साथ हो रहा है"...

"ओह!...

"अपने आप अपसैट होता है...अपने आप सैट भी हो जाता है..नार्मल सी बात है"....

"नार्मल?...आपके चेहरे का इतनी बुरी तरह से बैण्ड बजा पड़ा है और आप हैँ कि ...माथे पे एक शिकन तक नहीं"...

"मजे से ऐसे बतिया रहे हैँ...मानों कुछ हुआ ही ना हो"...

"तो क्या नगाड़ा ले के...ढोल पीटता हुआ...करुण स्वर में हर तरफ मुनादी करता फिरूँ कि....

आज मैँ ऊपर ..आसमाँ नीचे"...

"मतलब?"...

"यही कि आज मैँ  बड़ा ही...घनघोर रूप से अपसैट हूँ...परेशान हूँ?"...

"तनेजा जी!...कोई भी दुख या तकलीफ हो...उसे दूसरों के साथ शेयर अवश्य कर लेना चाहिए...मन हलका हो जाता है"...

"जी"...

"तो फिर खुल के ब्याँ कीजिए....आराम मिलेगा"...

"लेकिन मेरी वाली कंडीशन में इस सब टोने-टोटके से कोई फायदा नहीं होने वाला"...

"यकीन मानिए...दाई से पेट छुपाने पर भी आपका दर्द कम नहीं होने वाला है"...

"शर्मा जी!...आपकी बात मैँ समझ रहा हूँ लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि आपको बताने से मेरी तकलीफ...मेरे पहाड़ समान दुख का अंत हो जाएगा?"...

"गारंटी तो आजकल शाहरुख की भी नहीं रही लेकिन फिर भी प्रोड्यूसर उसे अपनी फिल्मों में ले रहे हैँ कि नहीं?"...

"जी!...ले तो रहे हैँ लेकिन...

"तो बस!...खुले मन से..खुले शब्दों में...खुल के बोलिए कि क्या परेशानी आपको ऐसे खुलेआम...खुल के खाए जा रही है?"....

"जी"...

"बड़े बोल तो मैँने कभी बोले नहीं लेकिन तनेजा जी!...इतना दावा ज़रूर कर सकता हूँ कि मेरे जरिए आपकी समस्या का भले ही कोई सटीक हल निकले...या ना निकले लेकिन आपके दिल से हमेशा के लिए ये बोझ ज़रूर उतर जाएगा कि आपने किसी को कुछ बताया नहीं"...

"जी"...

"तो फिर बताएँ"...

"क्या?"...

"यही कि किस सोच को सोच-सोच के आप अधमरे हुए जा रहे हैँ?"...

"बूझो तो जानें?"...

"मतलब?"...

"बूझो!...तो जानें ....तुम्हें अक्लमन्द एवं समझदार मानें?"...

"ओ.के!...ओ.के"...

"तो...यू वाँट मी टू प्ले दा गेम ऑफ गैस्स?"…

(You want me to play the Game Of Guess?)…

"जी!...टाईम पास करने का एक बढिया साधन"...

"ओ.के"....

"दैन लैट मी गैस्स!.....कहीं 'जिन्ना' प्रकरण की वजह से आप 'भाजपा' के भविष्य को लेकर चिंतित तो नहीं?"...

"अरे!...उसे लेकर मैँ भला क्यों चिंतित होने लगा?...परेशान होंगे तो 'अडवाणी' जी और 'राजनाथ' जी...मैँ भला व्यर्थ में क्यों परेशान हो अपना बूत्था आप सुजाने लगा?"...

"लेकिन फिर भी!...पुराने संघी होने के नाते कुछ तो कर्तव्य बनता है ना आपका?"..

"वैरी फन्नी!...खाकी निकर पहन के दो-चार बार उनके साथ इधर-उधर...लैफ्ट-राईट करते हुए ठुमके क्या लगा लिए?...आप तो मुझे पक्का जनसंघी साबित करने पे तुल गए"...

"तो क्या आप उनकी विचारधारा के समर्थक नहीं हैँ?"...

"जी नही!...कतई नहीं...बिलकुल नहीं"....

"लेकिन मैँने तो जब भी आपको मन्दिर में देखा....तिलक लगा चन्दन घिसते देखा"...

"तो?...उससे क्या फर्क पड़ता है?"...

"क्या देश के सभी हिन्दु भाजपा को सपोर्ट करते हैँ?"...

"नहीं ना?"...

"जी"...

"हाँ!...पिछले चुनावों से पहले तो मैँ 'बी.जे.पी' का कट्टर समर्थक हुआ करता था लेकिन अब नहीं"...

"वो क्यों?"...

"मैँने काँग्रेस जॉयन कर ली है"...

"वाह!...तनेजा जी वाह!...गिरगिट की तरह रंग बदलना तो कोई आपसे सीखे...जब 'बी.जे.पी' मैजॉरिटी में थी तो आप उसके गुण गाते नहीं थकते थे और अब जब उसका डब्बा गोल होने वाला है तो उसे धकिया काँग्रेस की झोली में जा बैठे हैँ"...

"तो क्या सूखे भुट्टे को बिना किसी मतलब के पूरी ज़िन्दगी चूसता फिरूँ?"...

"और वैसे भी अब बचा ही क्या है उस जंग लगी पार्टी में?...प्रमोद महाजन जी रहे नहीं...जसवंत सिंह जी को खुद उन्होंने निकाल दिया और महारानी इस्तीफा देने को तैयार नहीं"...

"लेकिन....

"और वैसे भी जिस पार्टी की रक्षा स्वंय भगवान 'राम' और वीर बजरंगी नहीं कर सके...उसकी रक्षा मैँ नाचीज़ भला क्या खा कर सकता हूँ?"...

"हुँह!...कर नहीं सकते"...

"डूब के मर तो सकते हो?"...

"वो भी कर के देख लिया शर्मा जी!...वो भी कर के देख लिया लेकिन कोई फायदा नहीं"....

"मतलब?"...

"जैसा कि आपने अभी कहा कि मुझे डूब कर मर जाना चाहिए"...Depression Man

"तो?"...

"यही सब करने के लिए तो मैँने प्रेमबाड़ी वाली  नहर में छलांग लगाई थी"....

"ओह!...

"लेकिन जिसकी किस्मत फूटी हो ना शर्मा जी!...उसे तो स्वयं भगवान भी अपने घर आसरा नहीं देते"..

"मतलब?"....

"मेरे कूदने से पहले ही सारा का सारा पानी...सुखा मारा"...

"चुल्लू भर भी नहीं छोड़ा उस %$#@#$%  ने कि मैँ कम से कम शर्म से ही मर जाऊँ"...

"ओह!...

"लेकिन वो कहते हैँ ना कि....जिसका कोई नहीं...उसका तो खुदा है यारो"...

"मतलब?"...

"मैँने इस्लाम को अपनाने का निर्णय ले लिया है"...

"ओह!...लेकिन अचानक इतना बड़ा और महत्वपूर्ण कायाकल्प कैसे?"..

"अरे!...भगवान ने साथ ना दे मुझ मासूम को दुत्कार दिया तो क्या?...ऊपर बैठे उस परवरदिगार याने के खुदा ने तो मुझ गले से लगा...दिल से अपना बना लिया"...

"मतलब?"...

"मरने का नया आईडिया दे दिया"...

"क्या सच?"...

"बिलकुल सच"...

"गुड!...वैरी गुड"...

"तो अभी आप कहाँ से आ रहे हैँ?"...

"प्रेमबाड़ी के पुराने पुल से"...

"और जा कहाँ रहे हैँ?"...

"आज़ादपुर की रेलवे लाईन की तरफ"...

"तनेजा जी!..दोस्त होने के नाते आप कहें तो एक सलाह दूँ?"...

"जी ज़रूर!...जैसा कि आप ही जानते हैँ शर्मा जी!..कि इस दुनिया में महिलाओं से अधिक मुझे कोई  प्यारा नहीं"...

"जी"...

"लेकिन उनके बाद अगर मैँने किसी को इज़्ज़त बक्शी है तो वो शर्मा जी आपको...सिर्फ आपको"...

"थैंक्स!...कि आपने मुझे इस लायक समझा"...

"थैंक्स मेरा नहीं बल्कि उस ऑल माईटी गॉड का कीजिए जिसने आपको ऐसे लावण्यमयी रूप और यौवन के भरपूर खजाने से मालामाल किया"...

"जी!...मेरी माँ भी कहा करती थी कि अपने टाईम में ऊपरली मंज़िल वाले गुप्ता जी बड़े ही हैण्डसम और क्यूट हुआ करते थे"...

"ओह!...दैट्स दा रीज़न बिहाइंड यूअर ब्यूटी?"...

"जी!...सब उन्हीं की असीम कृपा...मेहरबानी और मेहनत का नतीजा है"...

"ओ.के"...

"हाँ! ...तो आप कौन सी राय देने की कह रहे थे?"...

"वही छप्पन नम्बर वाली"...

"मतलब?"...

"मतलब कि आप आज़ादपुर वाली साईड से रेलवे लाईन की तरफ जाने के बजाए शालीमार बाग वाला रास्ता क्यों नहीं ट्राई करते?"...एक तो छोटा भी है...दूसरे साफ-सुथरा भी है"...

"नॉट ए बैड आईडिया"...

"जी"...

"अच्छा तो हम चलते हैँ"...

"जी ज़रूर!....

"ओ.के...बॉय"...

"ब्बॉय"....

"विश यू ऐ वैरी हैप्पी एण्ड प्रास्परस डैथ"...

"थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट"...

"आपका अंतिम सफर मंगलमय हो"...

"जी!...शुभकामना के लिए धन्यवाद"...

"बॉय"...

"मैँ चली...मैँ चली...देखो मौत की गली...कोई रोके ना मुझे...हो!..कोई टोके ना मुझे"...

"एक मिनट!...तनेजा जी...एक मिनट रुकिए"...

"ओफ्फो!...फिर टोक दिया ना?"...

"सॉरी!..आई एम रियली वैरी सॉरी फॉर दैट"...

"ओ.के"...

"क्या आप सचमुच में मरने जा रहे हैँ?"...

"जी!...बिलकुल"...

"कहीं बीच रस्ते से लौट तो नहीं आएँगे?"...

"सवाल ही नहीं पैदा होता"...

"ओ.के"...

"लेकिन आपके मन में ये संशय क्यों उत्पन्न हुआ?"...

"दरअसल!...क्या है कि दीन-दुनिया से दुखी हो कर हम कई बार जोश-जोश में आत्महत्या करने की सोच तो लेते हैँ लेकिन वो कहते हैँ ना कि दूर के ढोल सुहावने होते हैँ"...

"मतलब?"...

"ऐन मौके पे क्या होता है कि....

  • हमारा हलक सूखने लगता है...
  • चेहरा पीला पड़ जाता है...
  • ज़बान लड़खड़ाने लगती है....
  • बदन कंपकपा कर थरथराने लगता है
  • सीना घबराहट के मारे घर्र-घर्र कर घरघराने सा लगता है और....
  • हमारे पाँव एक कदम आगे बढते हुए डगमगा कर काँपने लगते हैँ...वगैरा...वगैरा"

"शर्मा जी!...क्या आपने मुझे इतना  बुज़दिल और कायर समझ रखा है कि ऐन टाईम पे मैँ मरने के बजाय जीने की सोचने लगूँ?"...

"लेकिन....

"और वैसे भी आजकल की राजनीति इतनी दूषित और कलुषित हो गई है कि बंदा मरे नहीं तो और क्या करे?"...

"जी!...ये तो है"...

"आजकल के राजनैतिक अखाड़े में जो-जो...जैसा-जैसा चल रहा है...उसको देख के तो मेरे मन में भी कई बार निराशा के भाव उत्पन्न हो जाते हैँ"...

"गुड!...हमारे ख्यालात कितने मिलते-जुलते हैँ?"...

"जी!...लेकिन आप में और मुझ में एक बहुत बड़ा फर्क है"....

"क्या?"...

"यही कि जहाँ एक तरफ मैँ निडर...साहसी एवं जोश से भरा हुआ जिम्मेदार इनसान हूँ...वहीं दूसरी तरफ ठीक इसके विपरीत आप बुज़दिल...कायर ...डरपोक एवं गैरजिम्मेदाराना किस्म के दब्बू टाईप इनसान हैँ"...

"क्या बक रहे हो?"...

"बक नहीं रहा हूँ...सही कह रहा हूँ...ये सरासर बुज़दिली नहीं तो और क्या है? कि आप ज़रा सी राजनैतिक उठापटक भी झेल नहीं पाए और घबरा कर...निराश हो आत्महत्या जैसे घिनौने...निकृष्ट एवं दोयम दर्ज़े के कृत्य को करने की सोचने लगे"...

"शर्मा जी!...पहली बात तो ये कि राजीव कुछ सोचता नहीं और अगर गलती से कुछ सोच भी लेता है तो फिर उसे अमल में लाए बिना नहीं रहता"...

"मतलब?"...

"ये सच है कि मैँ अपने दुखों से निराश हो आत्महत्या करने की सोच रहा हूँ लेकिन इसके लिए आप राजनीति जैसी पवित्र एवं पावन चीज़ को व्यर्थ में बदनाम ना करें"...

"?...?...?...?...

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"मेरे आत्महत्या करने की वजह ...देश के नेताओं के चरित्र में आई गिरावट नहीं है बल्कि मैँ किसी अन्य निजी कारण से मजबूर हो कर आत्महत्या करने की सोच रहा हूँ"...

"मतलब?"...

"इस से पहले कि कोई और मुझे मार डाले...मैँ खुद क्यों नहीं?"...

"मतलब?"...

"मेरे होते हुए मेरी मौत का सेहरा किसी गैर के माथे क्यूँ बन्धे?"...

"गुड!...वैरी गुड"...

"तो फिर इसके लिए क्या सोचा आपने?"...

"यही कि इससे पहले कि कोई मुझ पर वार कर मेरा काम तमाम करे....क्यों ना अपने हाथों... अपना ही कत्ल कर....वीरगति को प्राप्त होने का सारा श्रेय और सुख मैँ खुद ही ले मरूँ?"...

"तो इसका मतलब कोई आदमी तुम्हें मारना चाहता है?"....

"जी!...लेकिन आदमी नहीं...औरत"...

"क्या?...लेकिन तुम्हें इतना...पक्की तरह से यकीन कैसे है कि कोई औरत ही तुम्हें मारना चाहती है?"...

"यकीन कैसे है?"...

"शर्मा जी!...वो कहते हैँ ना कि जिस तन लागे...वोही तन जाने"...

"जी"...

"मुझ पर बीत रही है...इसलिए मैँ ही जानता हूँ"...

"क्या?"...

"यही कि पिछली कई रातों से मैँ ढंग की नींद सो नहीं पाया हूँ...ज़रा सी आहट होते ही चौंक के उठ बैठता हूँ...कभी पलंग के नीचे तो...कभी पर्दे के पीछे अपने उस अदृश्य दुश्मन को तलाशता रहता हूँ"...

"ओह!...

"हर पल भय सताता रहता है कि मैँ अब मरा..कि मैँ अब मरा"...

"मेरे सपनों में कभी वो मुझ पर ईंट से हमला कर रही होती है तो कभी मुझे गहरे खड्ढ में धकेलने की पुरज़ोर कोशिश कर रही होती है"...

"कई बार तो वो मुझे अपने फरसे की धार भी तेज़ करती दिखाई देती है"...

"फरसा?"...ओह मॉय गॉड"...

"बस!...आपको इतने में ही...ओह!...

ओह!...माई गॉड याद आने लगा?"...

"अब क्या कहूँ तनेजा जी!..मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है...किसी का तनिक सा भी ...ज़रा सा भी दुख देख लूँ तो मेरी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते हैँ...रुलाई फूट पड़ती है"शर्मा जी रुमाल से अपनी आँखे पोंछते हुए बोले...

"ओ.के..ओ.के...प्लीज़!...चुप हो जाईए...चुप हो जाईए"...

"लेकिन एक बात समझ नहीं आ रही"...

"क्या?"...

"यही कि तुमने भला किसी का क्या बिगाड़ा है?...को कोई तुम्हें मारना चाहता है"...

"जी!...अफसोस तो यही है कि लाख चाहने के बावजूद मैँ अपनी पूरी ज़िन्दगी में  किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाया"...

"ओह!...हाल-फिलहाल में किसी से तुम्हारा कोई झगड़ा वगैरा तो नहीं हुआ?"...

"नहीं!...बिलकुल नहीं"...

"कोई पुरानी दुश्मनी?"...

"क्या बात कर रहे हैँ शर्मा जी?...अपनी तो कभी ऐसी हैबिट रही ही नहीं"....

"प्रभु ने इस धरती पे मुझे प्रेम...सच्चा प्रेम करने के लिए भेजा है...कोई झगड़ा या दुश्मनी वगैरा करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता"...

"अरे हाँ!...प्रेम से याद आया...तुम्हारे तो कई लड़कियों के साथ अफेयर रहे हैँ ना?"...

"जी!...रहे तो हैँ"...

"तो बेवाकूफ!...पहले क्यों नहीं बताया?"...

"अब अपने मुँह से अपनी तारीफ करता क्या मैँ अच्छा लगता हूँ?"...

"लेकिन फिर भी...बताना तो चाहिए था"...

"जी"...

"तो फिर बताओ"...

"अपने टाईम में मैँने

  • "क्या मोटी? और क्या पतली?...
  • क्या गोरी? और क्या काली?...
  • क्या लम्बी? और क्या नाटी?...किसी के साथ किसी किस्म का कोई भेदभाव नहीं रखा"...

"मतलब?"....

"किसी को नहीं बक्शा"...

"ओह!...लेकिन सभी की अपनी-अपनी खूबियाँ होती हैँ और सभी की अपनी-अपनी कमियाँ होती हैँ"...

"जी"...

"तो फिर सभी को एक ही फीते से कैसे नापा जा सकता है?"...

"मतलब?"...

"सभी को समान दर्जा कैसे दिया जा सकता है?"...

"यही तो अपना कमाल है बच्चू कि मैँने कभी किसी को...किसी कमतर नहीं आंका..सभी को बराबर का दर्ज़ा दे अपने पास बिठाया..यहाँ तक कि किसी बेकार सी को भी अपनी गोद में बिठाने से गुरेज़ नहीं किया"...

"गुड!...लेकिन क्या कभी ...मोटी महिलाओं वगैरा को गोद में बिठाते वक्त आपका कलेजा...तनिक सा भी... ज़रा सा भी नहीं कांपा?"...

"एकचुअली!...क्या है कि मैँ ज़रा पुराने ख्यालात का हूँ?"...

"मतलब?"...

"दरअसल!...मेरी फिलॉसफी कुछ-कुछ साउथ वालों की तरह की है"...

"ओह!..तो आपके हिसाब से मोटी लड़कियों में मर्दों को लुभाने का पोटैंशियल कुछ ज़्यादा होता है?"...

"जी!...ज़्यादा नहीं...बहुत ज़्यादा"...

"लेकिन अब तो साउथ के फिल्म वाले भी स्लिम और ट्रिम लड़कियों को ज़्यादा चाँस दे रहे हैँ"...

"मैँने कहा ना कि मैँ ज़रा पुराने ख्यालात का आदमी हूँ"...

"गुड!...वैरी गुड"...

"लेकिन !...सभी को राज़ी?....कैसे?"शर्मा जी की आवाज़ में असमंजस था....

"एक्चुअली!...क्या है कि शुरू-शुरू में तो नई-नई जवानी का ताज़ा-ताज़ा जोश होता है ना?"...

"जी"...

"और आपने ये भी सुना होगा कि जोश में बन्दा होश खो बैठता है"...

"ओह!...तो इसका मतलब आप जल्दी ही टैं बोल गए?"...

"अजी!...ऐसे-कैसे टैं बोल गए?"...

"बेशक जितनी मर्ज़ी कड़की रही हो...लेकिन मैँने रोज़ाना...तीनों वक्त(सुबह...दोपहर और शाम) शिलाजीत युक्त च्यवनप्राश के सेवन को नहीं छोड़ा"...

"गुड!...वैरी गुड....सेहत अच्छी...तो सब अच्छा"...

"उसके बाद क्या हुआ?"...

"उसके बाद तो जनाब!...उम्र बढती गई...उम्र बढती गई"...

"और ताकत घटती गई...ताकत घटती गई?"...

"जी!...सही पहचाना"...

"फिर तो आपने सब कुछ छोड़-छाड़ दिया होगा?"...

"अजी!...ऐसे-कैसे छोड़-छाड़ दिया होगा?"....

"मतलब?"...

"वो तुमने ऐड नहीं सुनी कि...उम्र बढे तो रसायनवटी लें...थकावट लगे तो  रसायनवटी लें"..

"जी!...कई बार"...

"बस!...उसी के सेवन से मैँ अब तक मौज ले रहा हूँ"...

"गुड"...

"उसी की वजह से तो मैँ तीन-तीन दफा बैंकाक की सैर कर के आ चुका हूँ"...

"क्या सच?"...

"और नहीं तो क्या झूठ?"..

"लेकिन आपकी शादी हुए तो कई साल हो गए ना?"...

"जी"...

"तो घर में बीवी-बच्चों से क्या कह के जाते थे?"...

"कहना क्या है?...एक बार काम के सिलसिले में शिमला जाने का बहाना बनाया तो दूसरी बार बिज़नस को एक्सपैंड करने के लिए इंगलैंड जाने का"...

"और तीसरी बार?"...

"तीसरी बार की तो नौबत ही नहीं आई ना"...

"मतलब?"...

"उससे पहले बीवी जो घर छोड़ के भाग गई"...

"किसके साथ?"..

"उसी कलमुँहे के साथ!...जो मुझे रसायनवटी सप्लाई करता था"...

"गुड!...वैरी गुड"...

"कमाल है!...मेरी बीवी भाग गई और तुम गुड...वैरी गुड कर रहे हो?"...

"नहीं-नहीं!..मेरा ये मतलब नहीं था....आपको गलतफहमी हुई है"...

"तो फिर क्या मतलब था तुम्हारा?"...

"मैँ आपके लिए नहीं बल्कि रसायनवटी को उसके गुणों के लिए मुबारकबाद दे रहा था"...

"ओ.के..ओ.के..मॉय मिस्टेक"...

"मैँने सुना है कि वहाँ कि थाई मसाज बड़ी ही हॉट और ठाँ-ठाँ और फूँ-फाँ टाईप की होती है?"....

"जी हाँ!...थाई मसाज बहुत ही फैंटास्टिक और बढिया होती है लेकिन पर्सनली मुझे सैण्डविच मसाज बहुत पसन्द है"...

"सैण्डविच मसाज?...ये कौन सी मसाज होती है?"...

"अरे!..तुम्हें सैण्डविच मसाज मसाज का पता नहीं?...इसमें तो ऐसा लगता है...ऐसा लगता है कि जैसे चक्की के दो पाटों की बीच आप फँसे हुए हों और....

"बस-बस!...बस भी करिए तनेजा जी...क्यों बुढापे में मेरा दिमाग घुमाने पे तुले हैँ?"...

"ही...ही...ही"...

"हम्म!...अब समझा"...

"क्या?"...

"यही कि आप आत्महत्या करने की क्यों सोच रहे हैँ?"...

"क्यों सोच रहा हूँ?"...

"वहीं से आपको कोई ....

"क्या बकवास कर रहे हो?...अब तो हर जगह मिलता है"...

"मतलब?"...

"मैँ कोई अनपढ या गंवार नहीं जो नासमझी में आ के अपनी...खुद की सेफ्टी का ध्यान ना रखूँ"...

"फॉर यूअर काईंड इनफारमेशन!...बारिश से बचने के लिए मैँने हमेशा छतरी का इस्तेमाल किया"...

"गुड!...वैरी गुड"...

"लेकिन फिर ऐसा कौन सा बदनसीब शक्स हो सकता है जो आपसे दुखी हो आपका कत्ल करने की सोच रहा है?"..

"अजी!..शक्स कहाँ?...मेरा कत्ल तो कोई औरत ही करेगी"...

"औरत?"...

"जी हाँ!...औरत"...

"आप इतना यकीन के साथ कैसे कह सकते हैँ?"...

"पहलेपहल तो मुझे आने वाले सपनों में अपने कातिल का कुछ धुंधला सा...कुछ अजीब सा चेहरा दिखाई देता था"...

"ओ.के"...

"लेकिन मौसम बदलने के साथ-साथ मुझे उसका चेहरा एकदम क्लीयर कट...बैक टू बैक दिखाई दे रहा है"...

"बैक टू बैक?....माने?"...

"मैँ हमेशा उसे पीछे से ही देखा है ना"..

"ओह!..

  • कानों में लटकते अमेरिकन डॉयमण्ड के चमचमाते चमकीले झुमके...
  • नीचे जाँघे दर्शाती हुई मिनी स्कर्ट...
  • ऊपर आंशिक रूप से पारदर्शी ..गुलाबी रंग की डिब्बीदार टीशर्ट...
  • कमर तक लम्बी ...लाल रंग के रिबन से सुसज्जित दो फूलवाली टाईप चोटियाँ...
  • पैरों में छम्म...छम्म करती चाँदी की पायल...

"ओह!...तो क्या उसका चेहरा कभी दिखाई नहीं दिया?"...

"नहीं?"...

"आपने देखने की कोशिश भी नहीं की?"..

"बेवाकूफ समझ रखा है क्या? जो मैँ इतनी बम्ब-पटाखा आईटम का चेहरा देखने की कोशिश नहीं करूँगा?"...

"ओ.के"...

"लेकिन हर बार सपने में जैसे ही मैँ उसके पास जा...उसकी नशीली आँखों में अपनी आँखे डाल...खुद को उसके  हवाले करना ही चाहता हूँ कि अचानक....

धांय़...धांय....ढिच्चकियाऊँ...ढिच्चकियाऊँ 

की ज़ोरदार आवाज़ के साथ उसकी नज़रों से एक तेज़...चौंधियाती हुई चमकदार सी रौशनी निकल कर डाईरैक्ट मेरे सीने में समा जाती है"...

"ओह!...उसके बाद क्या होता है?"...

"उसके बाद खुद को देखता हूँ तो पाता हूँ कि मेरा सीना गोलियों से छलनी हुआ पड़ा है...मैँ पीड़ा के मारे ...दर्द से तड़प-तड़प कर कराह रहा हूँ"...

"ओह!...

"मैँ आहिस्ता से स्लो मोशन में नीचे गिर रहा हूँ और वो अपने चेहरे पे कुटिल मुस्कान लिए मुस्कुरा रही है"....

"ओह!...दैन व्हाट?...उसके बाद क्या होता है?"...

"मैँ आँखों में अविश्वास और हैरत भरे एक्सप्रैशन लिए फर्र-फर्र कर के कुछ देर फड़फड़ाता हूँ और फिर....

"और फिर?"....

"राम नाम सत्य"...

"ओह!...मॉय गुडनैस"...

"लेकिन ऐसे अनहोने और अनोखे टाईप के सपने आपको कब से आ रहे हैँ?"...

"जब से मैँने टी.वी पर गोविन्दा की फिल्म देखी है"...

"कौन सी फिल्म?"..

"नाम तो याद नहीं लेकिन हाँ!..फिल्म की हिरोईन थी अपनी रवीना टण्डन"...

"ओ.के"...

"और हाँ!...फिल्म में एक बड़ा ही मस्त गाना भी तो है"...

"कौन सा?"...

"लड़की कमाल रे....कि अँखियों से गोली मारे"...

"लड़की कमाल रे....कि अँखियों से गोली मारे"...

***राजीव तनेजा***

Rajiv Taneja

Delhi(India)

rajiv.taneja2004@gmail.com

rajivtaneja2004@gmail.com

+919810821361

+919213766753


 

16 comments:

निर्मला कपिला said...

vवाह राजीव जी क्या धमाकेदार पोस्ट है बधाई

Anonymous said...

अरे! मैं तो पूरी पोस्ट पढ़ता ही चला गया। बीच-बीच में कटाक्ष भी खूब भाए मन को।

अंत में, हँसते रहा, खिलखिलाता रहा

Udan Tashtari said...

बहुत मजेदार..

राज भाटिय़ा said...

सुबह लगा था... ओर अब जा कर खत्म हुयी आप की पोस्ट, मजेदार जी.धन्यवाद

सुशील छौक्कर said...

चटकदार पोस्ट। वाह क्या गाने है।

Unknown said...

बहुत घुमाया ...बहुत घुमाया
आपने आज तो कमल कर दिया.........
भाई मज़ा ही आ गया.............हा हा हा हा
___ज़बरदस्त !
_______धमाकेदार छक्का !

विनोद कुमार पांडेय said...

मजेदार!!!

Mithilesh dubey said...

मजेदार रचना......

राजीव तनेजा said...

ईमेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी
शेफाली पांडेय

pande.shefali@gmail.com


सच है बिलकुल ....आपकी अनोखी शैली में मजेदार व्यंग्य पढ़कर आनंद आ गया ..... वर्तमान राजनीति का
चेहरा आपने सही दिखाया है ...

Publisher said...

ओ तनेजा जी, आप वी ना कमाल करदे हो, जितना छप्पर फाड़ के लिखते हो, उतना ही छप्पर फाड़ के हंसाते भी हो। इतना समय कैसे देते हो, हर बार पढ़ते-पढ़ते सोचने लग जाता हंू। सलाम तनेजा जी आपकी वाणी को।

Arshia Ali said...

Hanste hanste pet men bal pad gaye.
( Treasurer-S. T. )

jamos jhalla said...

Rajiv ji Hue Mehnge Bahut Chiraag
Taneja ji chota chittha likha karo
jhalli-kalam-se
jhalli gallan
angrezi-vichar.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

MAJEDAAR POST HAI ...... VYANG KI ADAAYGI HAIM .......

राजीव तनेजा said...

ई-मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी


from:Loksangharsha Patrika loksangharsha@gmail.com

nice

राजीव तनेजा said...

ई-मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी


from RAJEEV THEPRA

bhootnath.r@gmail.com


baap re baap...................main to tharrrrrrrrrrra hi gayaa.......yah gosip padhte-padhte.....matlab yah nahin samajh lenaa kee kharaab bataa rahaa hoon.....matlab apne dil kaa haal bataa rahaa hun......baap re baap......!!

मीत said...

वाह राजीव जी...
आज के बाद गोविंदा की उस फिल्म पर बैन लगवा दिया जाये भाई वैसे सपने अगर हमें भी आ गए तो...
बढ़िया पोस्ट...
मीत

 
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