नतीजा फिर भी वही…ठन्न…ठन्न…. गोपाल-राजीव तनेजा

ट्रिंग…ट्रिंग….ट्रिंग…ट्रिंग…

“ह्ह….हैलो…श्श….शर्मा जी?”…

“हाँ!…जी….बोल रहा हूँ…आप कौन?”…

“मैं…संजू”…..

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“संजू?”…..

“जी!….संजू…..पहचाना नहीं?…..राजीव तनेजा की वाईफ"….

“ज्ज…जी भाभी जी….कहिये…क्या हुक्म है मेरे लिए?…..सब खैरियत तो है ना?”…

“अरे!…खैरियत होती तो मैं भला इतनी रात को फोन करके आपको परेशान क्यों करती?”….

“अरे!…नहीं…इसमें परेशानी कैसी?…अपने लिए तो दिन-रात…सभी एक बराबर हैं….आप बस…हुक्म कीजिये"….

“तुम कई दिनों से इन्हें छत्तीसगढ़ आने का न्योता दे रहे थे ना?”…

“जी!…दे तो रहा था लेकिन….

“लेकिन अब मना कर रहे हो?”…

“न्न्…नहीं!…मना तो नहीं कर रहा लेकिन मौसम थोडा और खुशगवार हो जाता तो….

“तब तक तो मैं ही मर लूंगी…फिर घुमाता रहियो इन्हें आराम से अपना छत्तीसगढ़"…

“न्न्…नहीं!….ऐसी बात नहीं है लेकिन…..

“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं…किसी तरीके से बस…अभी के अभी आ के ले जाओ इन्हें कुछ दिनों के लिए तो मेरी जान छूटे...तंग कर मारा है"…..

“ओह!….ऐसी क्या बात हो गई भाभी जी कि अचानक….

“अचानक नहीं….पिछले कई दिनों से दुखी कर मारा है इन्होने… ना तो खुद ढंग से जी रहे हैं और ना ही मुझे चैन से जीने दे रहे हैं…बच्चों को बिना बात  डपटते रहते हैं अलग से"…

“ओह!….लेकिन ऐसा क्या हो गया अचानक कि…

“अब क्या बताऊँ कि क्या हो गया?…पता नहीं किस तरह का अजीबोगरीब दौरा चढा हुआ है इन्हें आजकल….ना ठीक से खा-पी रहे हैं और ना ही किसी से ढंग से बात कर रहे हैं"…

“ओह!…

"पिछले चार दिनों से तो नहाए तक नहीं हैं"....

"ओह!...

“जब भी नहाने के लिए साबुन की बट्टी हाथ में थमाती हूँ…उठा के बालकनी से बाहर सड़क पे फैंक देते हैं"….

“ओह!….

“हर टाईम बस... उल-जलूल बकवास कि मैं ये कर दूंगा…मैं वो कर दूंगा….मैं अपने खून से…..

“आसमान पर ‘क्रान्ति' लिख दूंगा?”…

“जी!….ऐसा ही कुछ बडबडाते रहते हैं हर हमेशा"…

“ओह!…मनोज कुमार की कोई पुरानी फिल्म वगैरा तो नहीं देख ली है इन्होने कहीं?”…..

“पता नहीं लेकिन जब से ये उस मुय्ये बाबा के अनशन में भाग ले के लौटे हैं…तब से अंट-संट ही बके चले जा रहे हैं"…

“ओह!….किसी डाक्टर वगैरा को दिखाया?”…

“जी!....कई बार कोशिश कर ली लेकिन जाने के लिए राजी हों…तब ना"…

"ये क्या बात हुई की जाने के लिए राज़ी हों तब ना?...अपना हाथ पकड़ के बैठा देना था गाड़ी में किसी बहाने से कि...चलो!..लॉन्ग ड्राईव पे कहीं घूम के आते हैं"...

"यही कह के तो पटाया था बड़ी मुश्किल से इन्हें लेकिन...

"लेकिन?"....

"पहले तो बिना किसी हील-हुज्जत के आराम से चुपचाप गाड़ी में बैठ गए लेकिन जैसे ही मैंने सेल्फ़ लगा के गाड़ी को ज़रा सा आगे बढ़ाया...अचानक ज़ोर-ज़ोर से चीखने-चिल्लाने लग गए....रोको...रोको... गाड़ी को रोको…भाई…..ए भाई!…ज़रा गाड़ी को रोको"…..

"ओह!...

"फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ कि ज़ोर-ज़ोर से चिंघाड़े मार रोने लगे और फिर रोते-रोते अचानक एकदम से हँसते हुए उचक के लात मार गाड़ी का काँच तोड़ दिया"...

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"ओह!....माय गाड….फिर क्या हुआ?"...

"होना क्या था?...मैं एकदम से हक्की-बक्की ये सब देख ही रही थी कि इन्होने अचानक से बाहर निकल टायरों की हवा निकालनी शुरू कर दी"...

"गाड़ी के?"...

"नहीं!...मेरे"…

“उअ…आ…आपके?”…

“मेरे टायर लगे हुए हैं?”…

"ओह!...सॉरी…..ये तो बड़ा ही सीरियस मामला है"...

"जी!...तभी तो मैंने आपको फोन किया कि एक आप ही हैं जो इन्हें ठीक से संभाल सकते हैं"...

"जी!...ज़रूर...आप चिंता ना करें...अगले हफ्ते तो मुझे दिल्ली आना ही है अपनी किताब छपवाने के सिलसिले में...तभी मैं इन्हें भी कुछ दिनों के लिए अपने साथ लेता चला जाऊँगा...थोड़ी आब औ हवा भी बदल जाएगी और थोड़ा चेंज वगैरा भी हो जाएगा"…

“तब तक तो तुम्हारी ये भाभी मर लेगी"….

“शुभ-शुभ बोलो भाभी जी…मरें आपके दुश्मन…मैं कल की ही टिकट कटवा लेता हूँ…आप चिंता ना करें"….

“जी!…शुक्रिया"….

“शुक्रिया कैसा भाभी जी?…ये तो मेरा फ़र्ज़ है"….

“जी!….

“लेकिन मेरे ख्याल से अगर ये डाक्टर के पास जाने से इनकार कर रहे थे…मना कर रहे थे तो डाक्टर को ही फोन करके घर बुलवा लेना था…थोड़े पैसे ही तो ज्यादा लगते"…

“अरे!…बुलवाया था ना…मेरी मति मारी गई थी जो मैंने शहर के सबसे बड़े और महँगे अस्पताल के डाक्टर को फोन करके घर बुलवा लिया”….

“तो?”…

“तो क्या?….आते ही उसका गिरेबाँ पकड़ के लटक गए”…

“ओह!…

“इन्हीं के कारण देश का बेडागर्क हुए जा रहा है…लूट लो…खून चूस लो हम गरीबों का"कह उसके गंजियाते सर के बचे-खुचे बाल तक नोच डाले इन्होने….

“ओह!…शायद किसी चीज़ का गहरा सदमा पहुंचा है इन्हें"…

“जी!….शायद…लगता तो यही है लेकिन अपने मुँह से भी तो कुछ बकें…तभी तो पता चले कि चोट कहाँ लगी है और मरहम कहाँ लगाना है?”……

“जी!…बिना रोए तो माँ भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाती है…फिर यहाँ तो पुचकारने और सहलाने वाली बात थी"…

“जी!…

“पिछली कहानी पे इन्हें कमेन्ट वगैरा  तो ठीक-ठाक मिल गए थे ना?”…

“कमैंट्स का क्या है ललित बाबु?…जितने मिल जाएँ…लेखक को तो हमेशा थोड़े ही लगते हैं"….

“जी!…ये बात तो"…

“लेकिन एक बात का मलाल तो इन्हें हमेशा ही रहता था"…

“किस बात का?”…

“पिछली कहानी को लिखते वक्त भी बडबडा रहे थे कि….मैं दस-दस…पन्द्रह-पन्द्रह घंटे तक लगातार लिख के एक कहानी को….एक नाटक को जन्म देता हूँ…उसका श्रंगार करता हूँ लेकिन फिर भी किसी में इतनी शर्म नहीं है कि ज़रा सी…बित्ते भर की टिपण्णी ही कर दे"…

“जी!…टिप्पणियों का ये रोना तो उम्र भर चलता ही रहेगा लेकिन इसके लिए….ऐसी हालत?….मैं सोच भी नहीं सकता"…

“आप तो इतनी दूर बैठ के सोच भी नहीं सकते ललित बाबू लेकिन मेरी सोचिये…जो इस सब को यहाँ….इनके साथ अकेली झेल रही है"…

“मेरे होते हुए आप अकेली नहीं हैं संजू जी….आपका ये देवर दिन-रात एक कर देगा लेकिन आपके पति को….अपने भाई को कुछ नहीं होने देगा"…

“जी!…शुक्रिया…मुझे आपसे ऐसी ही उम्मीद थी"….

“मैं कल शाम तक हर हालत में पहुँच जाऊँगा तब तक आप कैसे ना कैसे करके उन्हें शांत रखने का प्रयास करें"…

“जी!…

“हो सकते तो टी.वी….रेडियो वगैरा से उनका मन बहलाने की कोशिश करें"…..

“अरे!…काहे के टी.वी….रेडियो वगैरा से मन बहलाऊँ?….वो तो ये कब का रिमोर्ट से निशाना मार तोड़ चुके"…

“टी.वी?”…

“जी!….

“ओह!…ये कब हुआ?”…

“पहले ही दिन…इसी से तो शुरुआत हुई थी उन्हें दौरा पड़ने की"…

“ओह!….

“अच्छे-भले कच्छा-बनियान पहन के मूंगफली चबाते हुए मल्लिका सहरावत के ‘जलेबी बाई' वाले आईटम नम्बर का आनंद ले रहे थे कि अचानक पता नहीं क्या मन में आया कि पागलों की तरह बडबडाने लगे और देखते ही देखते….

“उनके शरीर पे ना कच्छा था और ना ही बनियान?”…

“नहीं!…

“नहीं था?”…

“नहीं!…ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया था बल्कि उन्होंने तो….

“रिमोट से निशाना लगा टी.वी की पिक्चर ट्यूब तोड़ दी?”…

“जी!…आपको कैसे पता?”…

“अभी कुछ देर पहले आप ही ने तो बताया कि वो तो कब का रिमोर्ट से निशाना मार तोड़ चुके"…

“ओह!…

“शुक्र है कि उन्होंने अपने कच्छे-बनियान के साथ कोई छेड़खानी नहीं की"…       

“ये तुमसे किसने कहा?”…

“क्या?”…

“यही कि उन्होंने अपने कच्चे-बनियान के साथ कोई छेड़खानी नहीं की"…

“मैं कुछ समझा नहीं"…

“एक मिनट में ही लीडे-लीडे(तार-तार) कर के रख दिया उन्होंने अपनी नई-नवेली बनियान को”…

“ओह!…लेकिन कच्छा तो साफ़ बच गया ना?”…

“साफ़ बच गया?….चिन्दी-चिन्दी करके उसकी तो ऐसी दुर्गत बनाई….ऐसी दुर्गत बनाई कि बस…पूछो मत"…

“ओह!…दिमाग गर्म हो गया है उसका….काबू में नहीं है वो खुद के….कुछ ठण्डा-वण्डा पिला के जैसे मर्जी राजी रखो उसको….मैं जितनी जल्दी हो सकता है….आने की कोशिश करता हूँ"…

“ख़ाक राजी रखूँ उसको….ठण्डे के नाम से तो ऐसे बिदकता है मानों पूर्ण नग्नावस्था में साक्षात कपिल सिब्बल को अपने सामने देख लिया हो”…

“ओह!….

“ये तो शुक्र है ऊपरवाले का जो इनका निशाना ज़रा कच्चा निकला वर्ना मैं तो वक्त से पहले ही हो गई थी राम नाम को प्यारी"……

“ओह!…हुआ क्या था?”…

“होना क्या था?….आपकी तरह मैंने भी सोचा कि कुछ ठण्डा-वण्डा पिला के इन्हें किसी तरीके से राजी कर लूँ लेकिन जैसे ही मैं इनके आगे ठण्डे की बोतल रख किचन की तरफ जाने के लिए मुडी कि अचानक पीछे से फSsssचाक….फचाक की आवाज़ के साथ दनदनाते हुए बोतल मेरे सामने आ सीधा दीवार से जा टकराई"…

“ओह!…इसका मतलब आप तो बाल-बाल बच गई"….

“और नहीं तो क्या?”…

“आप चिंता ना करें…मैं अपना सामान अभी ही पैक कर लेता हूँ"….

“जी!…

“आप तक तक जैसे भी हो…इन्हें शांत रखें….गुस्सा ना आने दें”….

“जी!….

“हो सके तो किसी ठण्डे….कूल-कूल तेल वगैरा से  इनके सर और माथे की हौले-हौले से बैंकाक स्टाईल में मसाज करें…इससे इनके तन और रूह को राहत मिलेगी"…

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“ख़ाक!…राहत मिलेगी…इससे तो आफत मिलेगी…आफत"….

“मैं कुछ समझा नहीं"…

“ये सब टोने-टोटके तो मैं कब के कर के देख चुकी हूँ…नतीजा वही सिफर  का सिफर याने ठन्न ठन्न गोपाल”….

“ओह!…

“पूरे 400 मि. लीटर की नवीं-नकोर बोतल गटर में बहा दी इस बावले ने"…

“ओह!….तो इसका मतलब लगता है कि शायद….आपके यहाँ का पानी ही खराब है जो इसे रास नहीं आ रहा है”….

“जी!….

“आप लोग पानी तो फ़िल्टर का ही इस्तेमाल करते हैं ना अपने रोज़मर्रा के कार्यों के लिए?”…

“जी!…पिछले कई दिनों से लगवाने की सोच तो रहे थे लेकिन….

“लेकिन लगवाया नहीं?”…

“जी!…..

“ओह!….अब समझा….इसका मतलब दूषित पानी चढ गया है अपने राजीव के दिमाग में तभी वो ऐसी उल-जलूल हरकतें कर रहा है"…

“पता नहीं….शायद"….

“शायद क्या?….पक्की बात है….इसी वजह से दिमाग खराब हो गया होगा इसका वर्ना पहले तो ये आदमी था कुछ काम का"…

“ओह!…इस तरफ तो मेरा ध्यान गया ही नहीं……ज़रूर यही हुआ होगा"….

“बिलकुल यही हुआ होगा"…

“जी!….

“खैर!….आप चिंता ना करें….मैं कल आ रहा हूँ…सब ठीक हो जाएगा"….

“जी!….लेकिन फिर जब मैंने इन्हें फ़िल्टर वाली कंपनी का पैम्फलेट दिखाया था तब इन्होने उसे गुस्से से फाड़ के क्यों फैंक दिया था?”…

“अब ये तो पता नहीं लेकिन आप चिंता ना करें….मैं आ रहा हूँ ना?……सब ठीक हो जाएगा"…

“जी!….

“अच्छा!…अब मैं फोन रखता हूँ….सफर की तैयारी भी करनी है"…

“जी!…

“आप बस…अपना ध्यान रखें और साथ ही साथ जितना भी हो सके …राजीव को डिस्टर्ब ना होने दें"…

“जी!…

“ओ.के…..बाय"….

“बाय"….

{अगले दिन करीब बारह घंटे के बाद}

डिंग डोंग…..ओ बेबी….सिंग ए सोंग…. डिंग डोंग…..ओ बेबी….सिंग ए सोंग….

“कौन?”…

“जी!…मैं ललित”…

“ओह!…शर्मा जी आप आ गए?…थैंक्स….आपको बड़ा कष्ट दिया"…

“अरे!…इसमें कष्ट कैसा?…देवर ही भाभी के काम नहीं आएगा तो और किसके काम आएगा?”…

“जी!…

“अभी राजीव कहाँ है?”…

“बड़ी मुश्किल से सोए हैं….पूरे तीन दिन तक कभी इधर उछलकूद….तो कभी उधर उछलकूद…मैं तो परेशान हो गई हूँ"…

“जी!…चिंता ना करें….मैं आ गया हूँ….अब सब ठीक हो जाएगा"….

“जी!….

“मुझे बड़ी चिंता हो रही थी आप सबकी….इसीलिए ट्रेन…बस…मोटर गाड़ी वगैरा सब छोड़…सीधा फ्लाईट पकड़ के आ गया हूँ"….

“जी!….शुक्रिया….आप अगर ना होते तो बड़ी मुश्किल हो जाती"….

“अरे!…कोई मुश्किल नहीं होती….वो ऊपर बैठा परम पिता परमात्मा है ना?…बस…कोई भी मुसीबत पड़े….उसे याद किया कीजिये…सब कुछ अपने आप ठीक होता चला जाएगा"…

“जी!…आप सफर वगैरा से थक गए होंगे…थोड़ा आराम कर लें….फिर मैं उठाती हूँ राजीव को"….

“नहीं!…उसे कुछ देर आराम करने दें…तब तक मैं भी नहा-धो के फ्रेश हो लेता हूँ"….

“जी!…तब तक मैं भी खाना बनाने की तैयारी कर लेती हूँ"….

“जी!…

{दो-अढाई घंटे के अंतराल के बाद}

“ओए!…राजीव….देख तो कौन आया है?”…

“क्क….कौन?”मेरा आँख मिचमिचा कर उठ बैठना…

“ओए!…मैं तेरा ढब्बी….तेरा जिगरी यार….तेरा अपना ललित शर्मा"….

“ल्ल…ललित शर्मा?…..छ्त्तीसगढ़ से?”….

“हाँ!…ओए…छत्तीसगढ़ से"…

“ओह!….अच्छा….तू  कब आया?”…

“अभी दो घंटे पहले….खास तेरे लिए आया हूँ….तुझे अपने साथ ले जाने के लिए"…

“अच्छा किया यार जो तू आ गया….मेरा यहाँ बिलकुल भी मन नहीं लग रहा….सब मुझे ही बुरा कहते हैं….सब मेरी ही गलती निकालते हैं"…

“चिंता मत कर ओए….अब मैं आ गया हूँ ना तेरे पास?…अब कोई तेरी गलती नहीं निकालेगा…..कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा”….

“अच्छा किया यार जो तू आ गया"…

“लेकिन एक बात बता"….

“क्या?”…

“यही कि ये पिछले कई दिनों से तूने क्या हंगामा मचा रखा है"…

“जा….चला जा यहाँ से….दफा हो जा यहाँ से….तू भी सबके जैसा है….सबके साथ मिला हुआ है….जा…भाग यहाँ से”….

“रुक!….रुक….धक्का क्यों दे रहा है?……पहले…पहले…...म्म…मेरी बात तो सुन"….

“भाड़ में गई दोस्ती….और भाड़ में गया तू…..कोई बात नहीं सुननी है मुझे….कुछ कहना नहीं है मुझे…बस…..दफा हो जा यहाँ से”मैं गुस्से के अतिरेक से चिल्लाता हुआ बोला……

“ल…लेकिन पहले मेरी बात तो…(ललित पलंग पे बैठ मुझे समझाने की कोशिश करता हुआ बोला)…

“उठ!…उठ जा मेरे पलंग से……निकल जा मेरे घर से…मेरे कमरे से…मेरे दिल औ दिमाग से”….

“लेकिन…मैं तो तेरा सच्चा दोस्त……सच्चा हमदर्द….

“दोस्ती गई तेल लेने….कोई नहीं है दोस्त मेरा…कोई नहीं है हमदर्द मेरा…..तू भी सबके जैसा है…कोई मुझे नहीं समझता…कोई मुझे नहीं समझता"मेरा सुबक-सुबक कर रोते हुए ललित के पैरों में गिर पड़ना….

“उठ!…पागल….शेर मर्द ऐसे भी कहीं रोते हैं क्या?”…

{सुबकते हुए मैं चुप होने की कोशिश करने लगा}….

“बता!…बता मुझे सारी बात बता कि आखिर तुझे हुआ क्या है?…चुप…चुप हो जा….सब…सब ठीक हो जाएगा….मैं आ गया हूँ ना?”….

“बस!…यार…क्या बताऊँ?…किस्मत ही खराब है मेरी….ग्रह बुरे चल रहे हैं मेरे….शुभ लग्न-महूरत देख के जिस किसी भी काम में भी हाथ डालता हूँ......दो-चार महीने बाद उसी में फेल होता नज़र आता हूँ"...

"वजह?"...

"कंपीटीशन ही इतना है मार्किट में कि बिना बेईमानी किए कामयाबी हासिल होने का नाम ही नहीं लेती है और यही बात अपने बस की नहीं"....

"कामयाब होना?"...

"नहीं!...बेईमानी करना".... 

"ओह!...तो फिर तू एक काम क्यों नहीं करता?...पुरखों की छोड़ी हुई इतनी लंबी प्रापर्टी है...एक-आध को बेच-बाच के अपना आराम से चैन की नींद सोते हुए प्यार से बाँसुरी बजा"….

"बात तो यार तेरी बिलकुल सही है लेकिन लोग क्या कहेंगे?"...

"क्या कहेंगे?"...

"यही कि बाप-दादा के कमाए पैसे पे ऐश कर रहा है"....

"तो?...इससे क्या फर्क पड़ता है?"...

"हर किसी को पड़े ना पड़े लेकिन मेरी तरह जो इज्ज़त वाले होते हैं... .उन्हें बहुत फर्क पड़ता है"...

"हम्म!...ये बात तो है"....

"हाँ!…

"तो फिर डट के मुक़ाबला क्यों नहीं करता उन कमबखमारों से जो तुझे चैन से जीने नहीं दे रहे हैं?"......

"कैसे करूँ मुक़ाबला यार?…कैसे मुकाबला करूँ?…. वो स्साले कई हैं और मैं अकेला एक"....

"तो?...उससे क्या फर्क पड़ता है?…उन्होने अपना काम करना है और तूने अपना"...

"सब कहने की बातें हैं कि उन्होने अपना काम करना है और मैंने अपना...यहाँ अपनी मार्किट तो ऐसी है कि कोई किसी के चलते काम में जब तक टांग ना अड़ाए...उसे रोटी हजम नहीं होती है"....

“ओह!…

“इस गलाकाट प्रतियोगिता से किसी तरह बच-बचा के निकलूँ तो घर-बाहर के बढे खर्चे ही दम निकाल देते हैं"….

“तो इस सब की खुन्दक तुम भाभी जी पर निकालोगे?….घर के साजोसामान पर निकालोगे?”…

“व्व….वो तो दरअसल….

“बताओ….तुमने उस ठण्डे की बोतल को भाभी जी के सर पे क्यों मारा था?”….

“झूठ…झूठ….बिलकुल झूठ…मैंने तो बोतल को दीवार पर मारा था…वो ऐसे ही खामख्वाह बीच में घुसने की कोशिश कर रही थी"…

“लेकिन मारा क्यों था?”…

आमिर से जा के पूछो"…

“कौन से आमिर से?”….

आमिर खान से"…

“क्या?”…

“यही कि वो उसकी एड क्यों करता है?”…

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“इससे तुम्हें क्या दिक्कत है?”…

“दिक्कत ही दिक्कत है"….

“वो तुम्हें पसन्द नहीं?”…

“बहुत पसन्द है"…

“फिर क्या दिक्कत है?”….

“मैं तुम्हें क्यों बताऊँ?”…

“अच्छा!…मत बताओ लेकिन ये तो बताओ कि टी.वी क्यों तोड़ा था तुमने?”कमरे के अंदर आते हुए संजू अपनी कमर पे हाथ रख तैश भरे स्वर में बोली…

“उसमें ‘डिश टी.वी' जो लगा हुआ था"….

“तो?…उससे क्या दिक्कत थी तुम्हें?”…

“उसकी एड ‘शाहरुख खान' करता है…इसलिए"…

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शाहरुख खान'  एड करता है इसलिए तुने टी.वी तोड़ डाला?”…

“हाँ!….

“अजीब पागल आदमी है"संजू अपने माथे पे हाथ मार बडबडाती हुई बोली… ….

“मैं पागल नहीं हूँ….तुम सब पागल हो…महा पागल"…

“हम पागल हैं?”…

“हाँ!…तुम सब पागल हो"…

“अच्छा!…ये बताओ कि गाड़ी का काँच भी तुमने तोड़ा था और हवा भी तुमने ही निकाली थी?”ललित संयत भरे स्वर में मुझसे पूछते हुए बोला……

“हाँ!…निकाली थी…मैंने ही निकाली थी”मैं गर्व से उछलता हुआ बोला……

“लेकिन क्यों?”….

“क्योंकि वो ‘सैंट्रो' थी"…

“तुम्हें ‘सैंट्रो' पसंद नहीं?”…

“बहुत पसंद है"…

“लेकिन फिर तुमने उसे तोडा क्यों?”…

“क्योंकि उसकी एड भी ‘शाहरुख खान' करता है"संजू ने तपाक से जवाब दिया…

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“हाँ!……

“अच्छा!…चलो…ठीक है लेकिन ये कच्छे-बनियान का क्या मामला था?…इन्हें क्यों तुमने तार-तार कर बाहर बालकनी में तार पे टांग दिया था?”…

“और क्या करता?….इन सबकी एड भी तो…..

शाहरुख करता है?”…

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“हाँ!….

“और वो साबुन की बट्टी…उस बेचारी से क्या दुश्मनी थी तुम्हारी?”संजू गुर्राती हुई बोली …

“उसे बेचारी ना कहो….ये ‘शाहरुख' उसकी भी एड करता था”मैं संजू के कान में धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला….….

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“ओह!…अब समझा ….तो इसका मतलब तुम्हारी दुश्मनी ‘शाहरुख' से है"…

“सिर्फ ‘शाहरुख' से ही नहीं बल्कि हर उस खान’ से…हर उस कपूर’ से….हर उस ‘बच्चन’ से…हर उस सेलिब्रिटी से जो इन घरेलू चीज़ों की….आम ज़रूरत की चीज़ों की एड कर-कर के…एड कर-कर के उनके दामों को इतना ज्यादा महँगा कर देते हैं कि उन्हें खरीदना आम आदमी के बस की बात ही नहीं रहती”….

“ओह!….

“आपसी भेडचाल में ….देखादेखी में फँस कर वो पागलों की तरह दिन-रात अपने काम में खटता रहता है कि किसी भी जायज़-नाजायज़ तरीके से वो अपने मध्यमवर्गीय परिवार को सुखी रख सके लेकिन नतीजा वही का वही याने के ठन्न ठन्न गोपाल”…

“ओह!…लेकिन एक बात बताओ…..इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति अब तुम्हें….ऐसे अचानक कैसे प्राप्त हो गई"….

“कुछ अचानक नहीं हुआ है….रोज तो इसी तरह की खबरें पढ़-पढ़ के मेरा दिमाग भन्ना जाता था कि फलाने-फलाने मोहल्ले में रहने वाले पूरे परिवार ने आर्थिक तंगी के चलते ट्रेन से कट कर जान दे दी….या ज़हर खाकर पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली"…

“ओह!….(कहते हुए ललित अपना माथा पकड़ कर धम्म से वहीँ ज़मीन पे बैठ गया)…

“क्क…क्या हुआ भाई साहब?…तबियत तो ठीक है ना आपकी…..उठिए…उठिए…खड़े होइए….म्म…मैं पानी लाती हूँ(संजू हडबडाहट में किचन की तरफ पानी लाने के लिए दौडती है}….

“य्य्य…ये क्या कर रहे हैं भाई साहब?…छोडिये….छोडिये….कमीज़ को क्यों फाड़ रहे हैं?”आते हुए संजू से पानी का गिलास गिर जाता है… ….

“क्योंकि…..इसकी एड फरदीन’ ने की थी…हा…हा…हा”मैं जोर से ठहाके लगता हुआ बोला….

“और इस पैंट की….हा….हा….हा….(ललित का स्वर भी मेरे स्वर में सम्मिलित हो जाता है)

“ह्ह…हैलो….अनु जी…म्म…मैं संजू बोल रही हूँ…शालीमार बाग से….आपके ये दोनों भाई पागल हो गए हैं….इन्हें प्लीज़ यहाँ से ले जाइए कुछ दिनों के लिए वर्ना मैं भी पागल हो जाउंगी"….

“बब….ब्ब…बहुत समझा के देख लिया लेकिन नतीजा फिर भी वहीँ…ठन्न…ठन्न…. गोपाल”….

{कथा समाप्त}

***राजीव तनेजा***

rajivtaneja2004@gmail.com

http://hansteraho.com

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+919213766753

+919136159706

दोस्तों!…इस कहानी को मैंने लगातार साढे छह घंटे तक बिना रुके लिखा है…जल्दबाजी का मेरा ये प्रयास आपको कैसा लगा?…ज़रूर बताएँ

32 comments:

Gyan Darpan said...

आपने इस कहानी को बिना रुके लिखा और हम बिना रुके पूरा पढ़ गए |
मजेदारी लगी पूरी कहानी|

Laxman Bishnoi Lakshya said...

majaa aa gaya rajiv ji kya keyboard tod ke likha hai. kyonki uska ad bhi------------- karta hai.

Gyan Darpan said...

@ संजू भाभी ,
अब दोनों भाइयों को ठीक करने के लिए अविनाश जी को बुलाया जाये :)

Shah Nawaz said...

Khatarnaak! Behtreen! Zabardast!

Khushdeep Sehgal said...

ब्लॉगिंग पर मर-मिटने वालों का यही बाक़ी निशां होगा...

जय हिंद...

योगेन्द्र मौदगिल said...

Sanju ji.....aapki himmat hai jo itne jabardast kahaanikaar ko jhel rahi ho...... aapke liye shubhkamnaen or rajiv ji aap agli baar vichitraasan me baith kar kahani likhna laptop par pyaj ke ras ka chhiinta maar ke..... Jai ho...

vijay mehta said...

आपने धाराप्रवाह लिखा और आँखें गडाए हमने पढ़ा ...एक क्षण रुकना नागवार लग रहा था.. बीवी ने चाय की प्याली रखी वो टेबल पर कोल्ड टी बनी पड़ी है उसका बार बार याद दिलाना की ऐसा क्या पढ़ रहे हो चाय तो पी लो हमारे कानों में रास्ता नहीं बना सका ... मतलब किसी फिल्म के अगले सीन की कल्पना की तरह जब तक पूरा नहीं पढ़ा चैन नहीं आया ......भाई वाह..... लाजवाब .......

S.M.Masoom said...

पिछली कहानी पे इन्हें कमेन्ट वगैरा तो ठीक-ठाक मिल गए थे ना?”…हा हा हा
भाई कमेन्ट पहले दे दूं पूरा बाद मैं पढूंगा.

आज तो भाई मज़ा आ गया इसे पढके.

vandana gupta said...

हा हा हा…………संजू जी ठीक तो हो ना……………पहले तो एक ही था अब तो दो दो हो गये हैं सच कैसे संभाल रही होंगी……………बहुत ही मज़ेदार्। ऐसे पागल पल्ले पड जायें तो बस भगवान ही बचाये।

vijay kumar sappatti said...

haay re blogging ....

haay re shopping ....

haay re facebooking ...

haay re googling ....

rajeeev ji aur lalit ji , aap dono chinta na karo ... maine ranchi aur aagra me baat kar rakha hai 4 bando ke admission ke liye .. do aap hai , tisra main hoon . chautha jo bhi aa jaaye ...

jai ho

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! ब्लोगिंग करने वालों की बात ही कुछ और है । कब क्या हो जाये , पता ही नहीं चलता ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उपयोगी आलेख है मगर कुछ ज्यादा लम्बा हो गया है!

ताऊ रामपुरिया said...

ये तो पूरा तिलस्म रच डाला, अब आगे किसकी रहस्यमयी इंट्री होगी? इसे आगे बढाईये, तिलस्म रचने का आपको पूरा तजुर्बा है, आनंद आयेगा.

रामराम.

Anju (Anu) Chaudhary said...

हा हा हा हा हा हा हा ...........हँस हँस के बुरा हाल है राजीव जी ....भाई कमाल है..बेचारी संजू का क्या हाल होगा
''अरे संजू भाभी....आप ठीक तो है ना..'''
कमाल है सच में ......मज़ा आ गया पढ़ के
पर इस में छिपे सच से हम लोग नहीं भाग सकते भाई....
जय हो.............ऐसे ही लिखते रहो
anu

बाल भवन जबलपुर said...

तभी तो अब समझा उदय की बात उदय ने बताया था "गिरीश दद्दा जी, अभनपुर में कुछ दिनों से शांति पसरी है..."

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

व्यंग में भी गहन बात ..

अविनाश वाचस्पति said...

महंगाई की रेल
बिना पानी तेल
यूं ही गुजरती जाएगी
सबके सीनों पर कहर ढाएगी
ऐसे कितने जो नहीं रो रहे हैं
उन्‍हें सीधा श्‍मशान पहुंचाएगी।

तरूण जोशी " नारद" said...

are Avinashji ko bulate par vo bhi bimar padhe hai
lagta hai hame hi aana padhega aapke ilaj ko.......................

Unknown said...

mera delhi aane ka man to hai aur sanju bhabhi ko musibat mai dekhkar to apne ko rok bhi nahi pa raha par man mai ek khatkaa hai jo lagaa hua hai kahi aisa to nahi ki unhe 2 ke bajaaty 3 ko sambhaalna pade. achcha ye hai ki sanju bhabhi ki madad ke liye anu ko bhi bula liya jaye aur mai bhi wife ko le aau.

vaise is desh mai samvedansheel aadmi ke paagal hone ka khatra har samay bana rahta hai. tajmahal usi shahar mai hai jahaa kaa pagalkhana bahut mashhoor hai. kuchh yaad aa raha hai.

jheel par pani barasta hai hamaare desh mai
khet paani ko tarasta hai hamaare desh mai
jindgi ka haal khasta hai hamaare desh mai
doodh mahanga khoon sasta hai hamaare desh mai
bas bazeero afsaro yaa paagalo ko chhodkar
aur khulkar kaun hans sakta hamaare desh mai.

jo bhi ho rajeev bhai ki likhi is tarah ki sabhi natya rupantarit kahaniyo mai mujhe ye sabse achchi lagi.

punasch: sanju bhabhi mai aa raha hu.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

किसी ने कहा है--

"इस सदी में तेरे होठों पे हंसी की नमूद,
हँसने वाले तेरा कलेजा पत्थर का होगा॥

मंहगाई ने जनता का बुरा हाल कर रखा है। उपर से जिन्हे उस प्रोडक्ट से मतलब ही नहीं वे उसका विज्ञापन कर रहे है। क्या अमिताभ ने कभी नवरतन तेल लगाया होगा? क्या आमिर 50 रुपए का लक्स का कच्छा पहनता होगा? सब तरफ़ फ़रेब का माया जाल है। ऐसी स्थिति में पागलपन के दौरे पड़ना लाजमी है।

आपने हास्य के माध्यम से कड़वी गोली चाशनी चढा कर दी। शायद मर्ज ठीक हो जाए।

सार्थक संदेश देते हुए जानदार हास्य कथा के लिए आभार

मिलते हैं ब्रेक के बाद

baljit kumar said...

it is really nice humor , vary identical,sarcastic and full of objective but its end up unexpectedly. good luck for next episode.

masoomshayer said...

is baar bhee padh ke bahut achaa lagaa kuch alag bhee aap ne apanee ek jagah bana lee hai

Arvind Nahar said...

काश बाबा के अनसन से आते ही साथ में Dr.मनमोहन जी कि तस्वीर राजीव जी से चिपका मरते तो प्रोब्लम इतनी बढती ही .... अपने आप घुघू बन के रहा जाते

सुशील छौक्कर said...

एकदम झकास, धांसू लिखा है।

तरूण जोशी " नारद" said...

main aa gaya hun....................................................................

Dr.Sushila Gupta said...

kya tareef karu rajeevji!!!

has- haskar lot pot ho gaee mai,

avarnneeya anubhuti.

thanks.

तरूण जोशी " नारद" said...

http://allindiabloggersassociation.blogspot.com/2011/08/blog-post_3946.html

मीनाक्षी said...

साढ़े छह घंटे का प्रयास लाजवाब है...संवाद शैली में लिखी इस रचना को अगर पॉडकास्ट में बदल दिया जाए तो यकीनन सोने पे सुहागा हो जाएगा...जाने कैसे इधर आ पहुँचे लेकिन आना व्यर्थ नहीं गया...शुक्रिया...

Rashmi Garg said...

very well done sir...especially the effort that you put..heads off..sade 6 ghnte..lgatar..bina ruke...mainn to 3 ghnte ke paper main 1 ghnta soti hun...

Asha Joglekar said...

राजू भी ललित भी आई अब अन्नू की बारी ।

परमजीत सिहँ बाली said...

तनेजा जी आपकी मार्मिक कहानी पढ कर मन द्रवित हो गया...आपने इतना कुछ अकेले कैसे झेला...;))

Gyan Darpan said...

इतनी बड़ी बड़ी कहानियां पढ़वायेंगे तो कईयों का भाई साहब जैसा हाल हो जायेगा !!

 
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