जुहू चौपाटी- साधना जैन

मायानगरी बॉलीवुड और उससे जुड़ी कहानियाँ सदा से ही हमारे चेतन/अवचेतन में आकर्षण का केंद्र रही हैं। फिल्मी सितारों का लक्ज़रियस जीवन, लैविश रहनसहन, लंबी चौड़ी गाड़ियाँ, उनकी मस्ती, नोक झोंक, गॉसिप, जलन, प्रतियोगिता/प्रतिस्पर्धा के चलते रंजिशें, साजिशें, बंदिशें और रोज़ाना होते करोड़ों के हेरफेर के साथ साथ हर समय असुरक्षा की बातें कभी अफ़वाह बन कर तो तड़के मिश्रित सच्ची/झूठी खबर बन कर टीवी चैनलों, अखबारों और  पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हमारा ध्यान तो अपनी तरफ़ खैर..खींचती ही है। इसमें कभी कोई रातों रात अर्श से फर्श पर पहुँच खुदकुशी कर बैठता है तो कोई अचानक कामयाबी पा..सीधा आसमानी बुलंदियों की ऊँची ऊँची बातें कर खुद को खुदा समझने लगता है।

अब यही सब अगर पढ़ने की रुचि रखने वालों को किसी उपन्यास की शक्ल में नज़र आ जाए तो फिर कहने ही क्या। दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ बॉलीवुडीय पृष्ठभूमि पर लिखे गए साधना जैन के उपन्यास 'जुहू चौपाटी' की, जो संयोग से उनकी पहली किताब भी है। पहली किताब के नज़रिए से देखें तो उनका लेखन काफ़ी परिपक्व एवं कसावट लिए हुए नज़र आता है।

कहानी की शुरुआत में ही एक नामी हीरोइन का कत्ल हो चुका है जो कैरियर की चाह में पंद्रह साल पहले शिमला से दिल्ली और फिर मुंबई आ कर बसी थी। इस कत्ल और उसके पीछे की वजहों को तलाशने की कहानी है "जुहू चौपाटी" जिसमें अधिकांश लोगों का मत है कि उसने आत्महत्या की है। मगर जो बात इस कहानी को ख़ास बनाती है, वो है कि हत्या या आत्महत्या के बीच पशोपेश में झूल रही पुलिस के अलावा खुद हीरोइन की आत्मा भी अपने कातिल को ढूँढ़ रही है क्योंकि खुद उसका खुद का मानना है कि वह आत्महत्या जैसे कायराना काम को किसी भी सूरत में अंजाम नहीं दे सकती।

हिरोइन के आत्मकथ्यात्मक नज़रिए से कहानी चलते हुए बार बार पाठकों को फ्लैशबैक में ले जा कर  पुनः वर्तमान परिस्थितियों में ले आती है। अपनी मौत की वजह को तलाशने के संदर्भ में लेखिका हमें हीरोइन के बचपन, दोस्तों से ले कर उसकी अच्छी बुरी आदतों, पिता से बनते बिगड़ते रिश्तों के अतिरिक्त ज़िन्दगी को ले कर उसके नज़रिए..उसकी सोच से भी रूबरू करवाती है।

इस उपन्यास एक तरफ कास्टिंग काउच और मी.टू जैसी घटनाएँ हैं तो दूसरी तरफ बेशुमार पैसा और शोहरत को  ले कर अभिनेता/अभिनेत्रियों के बीच स्ट्रगल, जलन, प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या, असुरक्षा , द्वेष, ग़लतफ़हमी जैसी आम मानवीय भावनाएँ भी अपने पूरे शबाब पर हैं।

इसमें अगर एक तरफ कला के सच्चे पारखी नज़र आते हैं तो दूसरी तरफ खूबसूरत लड़कियों को कॉन्ट्रैक्ट/पैसे का लालच दे शोषण के अवांछित..अनैतिक प्रस्ताव रखने वाले प्रोड्यूसरों /फाइनेन्सरों की भी कमी नहीं है।
 
इसमें मातहतों से बनते बिगड़ते रिश्तों की अगर बात है तो दोस्ती को नयी सोच..नए आयाम..नयी मंज़िल तक पहुँचाने की भी बात है। इसमें कला के उम्दा पारखी हैं तो झूठे आश्वासनदाताओं का भी जिक्र है। इसमें अगर ब्लैकमेलिंग के साथ साथ धमकाते राजनीतिज्ञों का दबंगपना भी है।

इसमें किसी को जुनून की हद तक चाहने, खून से खत लिखने की बात कहीं कहीं 'डर' फ़िल्म से प्रेरित लगी।

सधी हुई मोहक शैली में लिखे गए इस रहस्य..रोमांच और उत्सुकता से भरे कंप्लीट पैकेज में कहीं कहीं बुद्धिजीवी टाइप की बातें लिखी भी दिखाई जिन्हें सही अर्थों एवं संदर्भों में समझने के लिए उन्हें फिर से पढ़ना पड़ा। उपन्यास के कुछ पृष्ठों में एक विदेशी किरदार के आ जाने से दोनों किरदारों के संवाद सिर्फ़ अंग्रेज़ी में लिखे दिखाई दिए। अधिकतम पाठकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए उन वाक्यों का सरल हिंदी अनुवाद भी साथ में दिया जाना चाहिए था। 

इनके अलावा कुछ छोटी छोटी कमियां भी दिखाई दी जैसे..

• पेज नम्बर 32 पर एक जगह हीरोइन अपने हीरो के बारे में बता रही है कि.."फलाने हीरो के साथ मेरी सारी फिल्में सुपरहिट रही हैं।" 

जबकि अगले ही पेज पर वह कहती है कि.."हमारी फ़िल्म पहले ही दिन दर्शकों ने नकार दी थी।" 

• पेज नम्बर 59 पर बताया है कि अपने मम्मी पापा की शादी के दो वर्षों बाद वह पैदा हुई याने के कुल मिला कर तीन सदस्य जबकि इसके अगले पैराग्राफ में लिखा है कि..

"हर रविवार को हम चारों माल रोड और रिज पर घूमने जाया करते थे।" 

मेरे हिसाब से किसी भी किताब की तरफ पाठकों की उत्सुकता जगाने एवं उसके ध्यानाकर्षण के लिए किताब के कवर का आकर्षक एवं लुभावना होना बेहद ज़रूरी है। इस कसौटी पर यह उपन्यास मात खाता दिखा। साथ ही उपन्यास पर लेखिका का नाम थोड़ा बोल्ड और बड़े अक्षरों में होता तो बेहतर था। 
खैर..इस तरह की छोटी छोटी कमियों की तरफ ध्यान देने पर इन्हें आगामी संस्करणों में आसानी से दूर किया जा सकता है। 

हालांकि यह उपन्यास मुझे लेखिका से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इस 172 पृष्ठीय बढ़िया उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म ने और इसका दाम रखा गया है 150/- जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (01-04-2022) को चर्चा मंच       "भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान"   (चर्चा अंक-4387)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख।

Gajendra Bhatt "हृदयेश" said...

सुन्दर समीक्षा!

 
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