चौसर - जितेन्द्र नाथ


थ्रिलर उपन्यासों का मैं शुरू से ही दीवाना रहा हूँ। बचपन में वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों से इस क़दर दीवाना बनाया की उनका लिखा 250-300 पेज तक का उपन्यास एक या दो सिटिंग में ही पूरा पढ़ कर फ़िर अगले उपन्यास की खोज में लग जाया करता था। इसके बाद हिंदी से नाता इस कदर टूटा कि अगले 25-26 साल तक कुछ भी नहीं पढ़ पाया। 2015-16 या इससे कुछ पहले न्यूज़ हंट एप के ज़रिए उपन्यास का डिजिटल वर्ज़न ख़रीद कर फ़िर से वेदप्रकाश शर्मा जी का लिखा पढ़ने को मिला। उसके बाद थ्रिलर उपन्यासों के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के लेखन ने ऐसा दीवाना बनाया कि 2020 के बाद से मैं उनके लगभग 100 उपन्यास पढ़ चुका हूँ। इस बीच कुछ नए लेखकों के थ्रिलर उपन्यास भी पढ़ने को मिले। आज उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए मैं एक ऐसे तेज़ रफ़्तार थ्रिलर उपन्यास 'चौसर' का यहाँ जिक्र करने जा रहा हूँ जिसे अपनी प्रभावी कलाम से लिखा है जितेन्द्र नाथ ने। 

इस उपन्यास के मूल में कहानी है कॉन्फ्रेंस पर मुंबई आए हुए विस्टा टेक्नोलॉजी के पंद्रह एम्प्लॉईज़ के अपने होटल में वापिस ना पहुँच एक साथ ग़ायब हो जाने की। जिसकी वजह से मुम्बई पुलिस से ले कर दिल्ली तक के राजनैतिक गलियारों में हड़कंप मचा हुआ है। अहम बात यह कि उन पंद्रह इम्प्लाईज़ में से एक उत्तर प्रदेश के उस बाहुबली नेता का बेटा है जिसकी पार्टी के समर्थन पर केंद्र और राज्य की सरकार टिकी हुई है। इंटेलिजेंस और पुलिस की विफलता के बाद बेटे की सुरक्षित वापसी को ले कर चल रही तनातनी उस वक्त अपने चरम पर पहुँचने लगती है जब इसकी वजह से सरकार के अस्तित्व पर ख़तरा मंडराने लगता है। 

इसी उपन्यास में कहीं किसी बड़े राजनीतिज्ञ के बेटे के अपहरण की वजह से राजनीतिक गलियारों में चल रही सुगबुगाहट बड़ी हलचल में तब्दील होती नज़र आती है। तो कहीं अपहर्ताओं को पकड़ने में हो रही देरी की वजह से सरकार चौतरफ़ा घिरती नज़र आती है कि उसके वजूद पर ही संकट मंडराता मंडराने लगता है। इसी किताब में कहीं कोई संकटमोचक बन कर सरकार बचाने की कवायद करता नज़र आता है तो कहीं कोई तख्तापलट के ज़रिए सत्ता पर काबिज होने के मंसूबे बनाता दिखाई देता है।

इसी उपन्यास में कहीं देश के जांबाज़ सिपाही अपनी जान को जोख़िम में डाल देश के दुश्मनों का ख़ात्मा करते नज़र आते हैं तो कहीं कोई टीवी चैनल अपनी टी आर पी के चक्कर में पूरे मामले की बखिया उधेड़ता नज़र आता है। कहीं अपहरण का शक लोकल माफ़िया और अंडरवर्ल्ड से होता हुआ आतंकवादियों के ज़रिए पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई की तरफ़ स्थान्तरित होता दिखाई देता है। तो कहीं किसी बड़ी कंपनी को हड़पने की साजिशों के तहत किसी की शह पर कंपनी के शेयरों को गिराने के लिए मंदड़ियों हावी होते दिखाई देते हैं। राजनीति उतार चढ़ाव से भरपूर एक ऐसी घुमावदार कहानी जो अपनी तेज़ रफ़्तार और पठनीयता भरी रोचकता के चलते पाठकों को कहीं सोचने समझने का मौका नहीं देती। 

कुछ एक जगहों पर प्रूफरीडिंग की कमियों के अतिरिक्त इस उपन्यास के शुरू और अंत के पृष्ठ मुझे बाइंडिंग से उखड़े हुए दिखाई दिए। इस ओर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। 

पेज नंबर 103 में लिखा दिखाई दिया कि..

'स्वर्ण भास्कर के प्रोग्राम में नीलेश के साथ एक दर्जन से ज़्यादा कर्मचारियों के अगवा होने के साथ डेढ़ हज़ार करोड़ की फ़िरौती की बात को भी बहुत तूल दिया गया था'

जबकि इससे पहले पेज नंबर 52, 68 और 90 पर इस रक़म को एक हज़ार करोड़ बताया गया है यानी कि फ़िरौती की रक़म में सीधे-सीधे 500 करोड़ का फ़र्क आ गया है। इसी बाद इसी बात को ले कर फ़िर विरोधाभास दिखाई दिया कि पेज नंबर 116 में अपहर्ताओं का आदमी मुंबई पुलिस कमिश्नर से एक हज़ार करोड़ रुपयों की फ़िरौती माँगते हुए उन्हें एक ईमेल भेजी होने की बाबत बताता है लेकिन अगली पेज पर फिर जब उस रक़म का जिक्र ईमेल में आया तो उसे एक हज़ार करोड़ से बढ़ा कर फ़िर से एक हज़ार पाँच सौ करोड़ रुपए कर दिया गया। हालांकि इस पेज पर इस बाबत सफ़ाई भी दी गयी है कि अपहर्ताओं ने माँग की शर्तों में बदलाव कर दिया लेकिन इस तरह की बातों ने बतौर पाठक मुझे थोड़ा सा कन्फ्यूज़ किया। 

साथ ही इस तेज़ रफ़्तार रोचक उपन्यास में एक बात और ख़ली कि फ़िरौती की रक़म भारतीय रुपयों में क्यों माँगी जा रही है? पाकिस्तानियों के सीधे-सीधे तो वो काम नहीं आने वाले। बेहतर होता कि फ़िरौती की रक़म को भारतीय रुपयों के बजाय किसी अंतरराष्ट्रीय करैंसी मसलन अमेरिकन डॉलर या फ़िर यूरो में माँगा जाता । 

हालांकि 279 पृष्ठीय यह बेहद रोचक उपन्यास मुझे लेखक की तरफ़ से उपहार स्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इसके पेपरबैक संस्करण को छापा है सूरज पॉकेट बुक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 225/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

0 comments:

 
Copyright © 2009. हँसते रहो All Rights Reserved. | Post RSS | Comments RSS | Design maintain by: Shah Nawaz