कुदरती तौर पर हर लेखक/कवि या किसी भी अन्य विधा में लिखने वाले साहित्यकार में यह गुण होता है कि वह अपने आसपास घट रही साधारण से दिखने वाली घटनाओं से भी कुछ न कुछ ग्रहण कर, उसे अपनी कल्पना एवं लेखनशक्ति के मिले-जुले श्रम से संवार कर किसी न किसी रचना का रूप दे देता है। अब यह उस लेखक या कवि पर निर्भर करता है कि उसने किस हुनर एवं संजीदगी से अपने रचनाकर्म को अंजाम दिया है। कई बार एक जैसा विषय होने पर भी किसी-किसी की रचना अपने धाराप्रवाह लेखन, भाषाशैली एवं ट्रीटमेंट की वजह से औरों की रचना से मीलों आगे पहुँच कामयाबी को प्राप्त करती है तो किसी-किसी की रचना में कोई न कोई ऐसी चूक हो जाती है कि रचना औंधे मुँह धड़ाम जा गिरती है।
दोस्तों ..आज मैं जिस कहानी संग्रह की यहाँ बात करने जा रहा हूँ उसे 'काला सोना' के नाम से लिखा है रेनु यादव ने।
इस संकलन की पहली कहानी 'नचनिया' में जहाँ अपने अभिनय के शौक को पेशा बना चुका राजन, गाँव-देहात की दावतों में 'सोनपरी' के छद्म नाम से नारी वेश में नाच कर अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता है जबकि उसकी पत्नी को इस सब की जानकारी नहीं है। तो वहीं अगली कहानी 'काला सोना' देह व्यापार करने वाले 'बाछड़ समुदाय' की उस बच्ची, सुलेखा की व्यथा कहती है , जो 10-11 वर्ष की अवस्था में ही घरवालों के द्वारा देह व्यापार के धंधे में धकेले जाने पर घर छोड़ कर भाग जाती है और अनेक बुरे अनुभवों से गुज़रते हुए अंततः एक भले घर में शरण पाती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ गाँव की होनहार, मेधावी लड़की वसुधा तमाम चेतावनियों के बावजूद अपने माँ-बाप से ज़िद कर के आगे पढ़ने के दिल्ली चली तो जाती है मगर दिल्ली जैसे बड़े शहर की आबोहवा क्या उसे रास आ पाती है? तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी घर से दूर रहकर अपनी ड्यूटी कर रहे उन सैनिकों की पत्नियों की व्यथा कहती है जो पीछे घर में अकेली रह जाती हैं। इस कहानी में कहीं कम तनख्वाह की वजह से घर में होने वाली दिक्कतों की बात होती नज़र आती है तो कहीं घर में रोज़मर्रा के खर्चों के लिए पैसों की किल्लत तो कहीं अकेली रह रही उन औरतों के पराए मर्दों की गिध्द दृष्टि का शिकार होने की बात होती दिखाई देती है। इसी कहानी में कहीं किसी कहानी में सेना के अफ़सरों द्वारा घर के निजी कामों के लिए भी सेना के सिपाहियों के इस्तेमाल होने की बात होती दिखाई देती है तो कहीं भरे-पूरे घर में केवल एक ही व्यक्ति के कमाने से होने वाली दिक्कतों का जिक्र होता नज़र आता है।
एक अन्य कहानी 'छोछक' एक तरफ़ कुरीतियाँ बन चुके पुराने रीति-रिवाज़ों पर प्रहार करती नज़र आती है तो दूसरी तरफ़ व्यर्थ के दिखावे और बिना हैसियत के अनाप-शनाप खर्च करने की आदतों के दुष्परिणामों के बारे में भी पाठकों को आगाह करने का प्रयास करती नज़र आती है कि किस तरह दिखावे के चक्कर में इस कदर कर्ज़े की चपेट में आ जाता है कि अंततः घर के मुखिया की चिंता की वजह से मृत्यु हो जाती है। एक अन्य कहानी जहाँ दस साल की छोटी उम्र में ही ब्याही जा चुकी उस फुलमतिया की व्यथा कहती है जिसके पेट में पनप रहे बच्चे को उसके सास-ससुर द्वारा जबरन गिरवा दिया गया। बच्चा गिराने के बाद जब वह दोबारा माँ ना बन सकी तो उसे गाँव वालों द्वारा एक ऐसी बाँझ का नाम दे दिया गया जो टोना टोटका करती है। अब तक गाँव वालों की गिद्ध नज़र से खुद को बचाती आ रही विधवा फुलमतिया, तानों से तंग आ कर एक बाबा की शरण में जाती है कि वह फ़िर से माँ बन सके।
एक अन्य कहानी 'अमरपाली' में छोटी जाति की सोनवा पर गाँव का अधेड़ ठाकुर और उसका जवान बेटा, दोनों के दोनों मोहित हो उठते हैं। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि सोनवा बड़े ठाकुर की रखैल बन कर हर तरह के सुख पा तो लेती है मगर क्या उसकी ऐशोआराम भरी ज़िन्दगी कायम रह पाती है? इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ बिना गौना हुए ही विधवा हो चुकी नीलम पर उसकी माँ, एक पाँच साल के बच्चे से ब्याह करने के लिए दबाव डालने लगती है कि उसके ससुराल वाले बाद में नीलम की छोटी बहन के ब्याह एवं दोनों भाइयों की पढ़ाई का सारा खर्चा भी वहन कर लेंगे। मगर अब देखना ये है कि क्या नीलम बिना आगा-पीछा सोचे माँ के इस फ़ैसले पर अपनी रज़ामंदी दे देगी।
एक अन्य कहानी में बड़े घर में बहु बन कर आने के बावजूद भी वो पैसे-पैसे की मोहताज रही कि घर की सारी आमदनी पर पुरुषों का ही कब्ज़ा रहता था। इसी वजह से वह अपनी बहुओं को कभी उनकी मुँह-दिखाई तक नहीं दे पाई, जिसका उसे मलाल था। अब देखना ये है कि क्या उसका यह दुख कभी दूर हो पाएगा।
अच्छे विषय और बढ़िया ट्रीटमेंट होने के बावजूद भी अगर किसी किताब में हद से ज़्यादा कमियाँ नज़र आने लग जाएँ तो पाठकों का मज़ा किरकिरा होने में देर नहीं लगती। इस संकलन में ऐसी कमियाँ बहुत ज़्यादा दिखीं। लेखिका एवं प्रकाशक को चाहिए कि इस तरह की कमियों पर गौर कर इन्हें दूर करने का प्रयास करें।
पढ़ते वक्त इस संकलन में आवश्यकता ना होने पर भी बहुत से शब्दों के ऊपर बिंदी लगी दिखाई दी। उदाहरण के तौर पर पेज नम्बर 63 में लिखा दिखाई दिया कि..
'कहाँ रह गयें भाई साहब'
यहाँ 'गयें' की जगह 'गए'/'गये' आना चाहिए।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'हरिराम भी पीछे-पीछे लिफ्ट की ओर बढ़ गयें'
यहाँ भी 'गयें' की जगह 'गए'/'गये' आना चाहिए।
इसी पेज पर आगे एक जगह 'रुके' शब्द की ज़रूरत होने पर भी 'रुकें' शब्द छपा दिखाई दिया।
साथ ही आजकल के बहुत से लेखक स्त्रीलिंग और पुल्लिंग और एकवचन और बहुवचन के भेद में अंतर नहीं कर पाते और पुल्लिंग की जगह स्त्रीलिंग और स्त्रीलिंग की जगह पुल्लिंग का इस्तेमाल करने लग गए हैं। इस तरह की कमियाँ इस किताब में भी बहुत ज़्यादा दिखीं। जिन्हें ठीक किए जाने की ज़रूरत है।
पेज नंबर 8 में लिखा दिखाई दिया कि...
'पूरे नाच के दौरान उसकी एक गीत का सबको इंतजार रहता'
यहाँ 'उसकी एक गीत का' की जगह 'उसके एक गीत का' आएगा।
पेज नंबर 9 में लिखा दिखाई दिया कि..
'यह नचनिया की बड़ी कामयाबी मानी जाती है जब उसकी धड़कन के साथ होश होकर थिरक उठें'
यहाँ 'होश होकर थिरक उठें' की जगह 'होश खो कर थिरक उठें' आएगा।
पेज नंबर 15 में लिखा दिखाई दिया कि..
'उस समय रेखा की एक-एक बातें दीए की रोशनी की तरह लगने लगीं'
यहाँ 'एक-एक बातें' की जगह 'एक-एक बात' आएगा।
पेज नंबर 17 में लिखा दिखाई दिया कि..
'आज उसकी नाच कजरी के रोकने से भी नहीं रुक रही'
यहाँ 'आज उसकी नाच कजरी के रोकने से भी नहीं रुक रही' की जगह 'आज उसका नाच कजरी के रोकने से भी नहीं रुक रहा' आएगा।
पेज नंबर 19 में लिखा दिखाई दिया कि..
'और फिर डाइनिंग टेबल पर तीन-चार मुँह में हड्डियाँ कड़-कड़ तरड़-तरड़ करते हुए चूर-चूर होने लगीं'
यहाँ 'तीन-चार मुँह में हड्डियाँ कड़-कड़ तरड़-तरड़ करते हुए चूर-चूर होने लगीं' की जगह 'तीन-चार मुँहों में हड्डियाँ कड़-कड़ तरड़-तरड़ करते हुए चूर-चूर होने लगीं' आएगा।
पेज नंबर 20 में लिखा दिखाई दिया कि..
'इसलिए उसने नल की धार तेज़ कर लिया ताकि गाना सुनाई ना दे'
यहाँ 'नल की धार तेज़ कर लिया' की जगह 'नल की धार को तेज़ कर लिया' आएगा।
पेज नंबर 24 में लिखा दिखाई दिया कि..
'दूसरे दिन मैंने घर पर नज़र रखा'
यहाँ 'दूसरे दिन मैंने घर पर नज़र रखा' की जगह 'दूसरे दिन मैंने घर पर नज़र रखी' आएगा।
पेज नंबर 31 में लिखा दिखाई दिया की ..
'गहरी विषाद से भर गई वसुधा'
यहाँ 'गहरी विषाद से भर गई वसुधा' की जगह 'गहरे विषाद से भर गई वसुधा' आएगा।
पेज नंबर 35 में लिखा दिखाई दिया कि..
'हॉस्टल! एक दूसरी दुनिया की शुरुआत... खासकर हम जैसे गाँव से जाने वालों के लिए'
यहाँ 'गाँव से जाने वालों के लिए' की जगह 'गाँव से आने वालों के लिए' आएगा।
पेज नंबर 46 में लिखा दिखाई दिया कि..
'इस समय उसे सब दिलासा देने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन झूठी'
यहाँ 'झूठी' नहीं बल्कि 'झूठा' आएगा।
इसके बाद इसी पैराग्राफ में आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'कोई तो ऐसी तीर थी जो सीधा उसके दिल को चीर गई और खून भी नहीं निकला'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'कोई तो ऐसा तीर था जो सीधा उसके दिल को चीर गया और ख़ून भी नहीं निकला'
पेज नंबर 64 में लिखा दिखाई दिया कि..
'देश-दुनियाँ की बातें करते हुए लोगों ने घंटों गुजार दी'
यहाँ 'दुनियाँ' की जगह 'दुनिया' आएगा और 'घंटों गुजार दी'
की जगह 'घंटों गुज़ार दिए' आएगा।
इसके बाद पेज नंबर 65 में लिखा दिखाई दिया कि..
'वह अपने आप को झटकने की पूरी कोशिश कर रहा है पर शरीर पथरा गयी है'
यहाँ 'शरीर पथरा गयी है' की जगह 'शरीर पथरा गया है' आएगा।
पेज नंबर 65 में दिखा दिखाई दिया कि..
'हरिराम सोने का बहाना बहुत देर तक नहीं कर सकें'
यहाँ 'सकें' की जगह 'सके' आएगा।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'जिस लड़की की शादी है अगर सिर्फ उसके बारात और रिश्तेदारों को देखना हो तो अलग बात'
यहाँ 'अगर सिर्फ उसके बारात और रिश्तेदारों को देखना हो तो अलग बात' की जगह 'अगर सिर्फ़ उसकी बारात और रिश्तेदारों को देखना हो तो अलग बात' आएगा।
इसी पेज पर आगे दिखा दिखाई दिया कि..
'उन्हें तो सोने की चेन देने ही थे फिर तीन बहनों के साथ नाइंसाफी कैसे किया जा सकता था'
यहाँ 'उन्हें तो सोने की चेन देने ही थे' की जगह 'उन्हें तो सोने की चेन देनी ही थी' आएगा। साथ ही 'फिर तीन बहनों के साथ नाइंसाफी कैसे किया जा सकता था' की जगह 'फ़िर तीन बहनों के साथ नाइंसाफी कैसे की जा सकती थी' आएगा।
पेज नंबर 66 में लिखा दिखाई दिया कि..
'मेरा भी चेन देखकर लोग कहते कि क्या चेन मिला है'
यहाँ 'क्या चेन मिला है' की जगह 'क्या चेन मिली है' आएगा।
पेज नंबर 67 में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसी से अधिकतर लोगों ने आलीशान बंगला बनवा लिया'
यहाँ 'आलीशान बंगला बनवा लिया' की जगह 'आलीशान बंगले बनवा लिए' आएगा।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि शेखर ने अपनी दायीं पैर के ऊपर बायीं पर चढ़ाते हुए कहा'
यहाँ 'दायीं पैर के ऊपर बायीं पर चढ़ाते हुए कहा' की जगह 'दाएं पैर के ऊपर बायां पेअर चढ़ाते हुए कहा' आएगा।
पेज नंबर 68 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सस्ता सस्ता सामान भी अगर खरीदेंगे तब भी नहीं हो पाएगा'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि 'सस्ते से सस्ता सामान खरीदेंगे तब भी नहीं हो पाएगा'।
इससे अगली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसके घर में आदमी कितने हैं और औरत कितनी'
यहाँ 'औरत कितनी' की जगह 'औरतें कितनी' आएगा।
पेज नंबर 69 में लिखा दिखाई दिया कि..
'शर्मा के रह गए हरिराम'
यहाँ 'शर्मा' की जगह 'शरमा' आएगा।
पेज नंबर 69 में लिखा दिखाई दिया कि..
'अच्छा बताओ कितने दिन बचा है कुँआ पूजन में'
यहाँ 'कितने दिन बचा है कुँआ पूजन में' की जगह 'कितने दिन बचे हैं कुआँ पूजन में' आएगा।
पेज नंबर 72 में लिखा दिखाई दिया कि..
'यह सब सुन कर फुले नहीं समा रही प्रेमवती'
यहाँ 'फुले नहीं समा रही प्रेमवती' की जगह 'फूले नहीं समा रही प्रेमवती' आएगा।
पेज नंबर 73 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'हरिराम के हाथों से चाय का प्याला छुटकर नीचे गिर चुका था'
यहाँ 'छुटकर नीचे गिर चुका था' की जगह 'छूट कर नीचे गिर चुका था' आएगा।
पेज नंबर 83 में लिखा दिखाई दिया कि..
'हरिया ने भी पूरी ज़ोर लगा दी'
यहाँ ये ध्यान देने वाली बात है कि 'ताकत' लगाई जाती है जबकि 'ज़ोर' लगाया जाता है। इसलिए यहाँ 'पूरी ज़ोर लगा दी' की जगह 'पूरा ज़ोर लगा दिया' आएगा।
पेज नंबर 85 में दिखा दिखाई दिया कि..
'मैं तुम्हें मरने दुँगा तब तो मरोगी मेरी जान'
यहाँ 'मैं तुम्हें मरने दुँगा' की जगह 'मैं तुम्हें मरने दूँगा' आएगा।
पेज नंबर 85 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसके मुँह में घुँट-धुँट करके पानी डाला जा रहा था'
यहाँ 'घुँट-धुँट करके पानी डाला जा रहा था' की जगह 'घूँट-घूँट करके पानी डाला जा रहा था' आएगा।
पेज नंबर 86 में लिखा दिखाई दिया कि..
'बस पुक्का फाड़कर रोना बाकी था'
यहाँ 'पुक्का फाड़कर रोना बाकी था' की जगह 'बुक्का फ़ाड़कर रोना बाक़ी था' आएगा।
पेज नंबर 90 में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसका मुँह ठीक उन हाँफती साँसों की ओर था जिसे देख हाँफती साँसें हक्का-बक्का रह गयीं'
यहाँ 'हाँफती साँसें हक्का-बक्का रह गयीं' की जगह 'हाँफती साँसें हक्की-बक्की रह गयीं' आएगा।
इसी पेज पर आगे दिखा दिखाई दिया कि..
'दोनों पड़ोसी हैं और यहाँ इ गुड़ खिला रहे हैं'
यहाँ 'गुड़ खिला रहे हैं' की जगह 'गुल झील रहे हैं' आएगा।
इसके अगले पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..
'फुलमतिया जोर से उबकाई लेते हुए घर की ओर भागी और सीधे घर में पहुँचकर कूंड़ी मार ली'
यहाँ 'कूंड़ी मार ली' की जगह 'कुंडी मार ली' आएगा।
इसी पेज पर आगे दिखा दिखाई दिया कि..
'उसने अपने को पानी से तर करना चाहा लेकिन पानी भी आग ऊगल रहा था'
यहाँ 'पानी भी आग ऊगल रहा था' की जगह 'पानी भी आग उगल रहा था' आएगा।
पेज नंबर 92 में लिखा दिखाई दिया कि एक दिन तो शिवरात्रि की मेला से खूब सुन्दर-सी गुड़िया भी लाया'
यहाँ 'शिवरात्रि की मेला से' की जगह 'शिवरात्रि के मेले से' आएगा।
पेज नंबर 94 में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसकी देह पर काले-लाल चकत्ते पड़े थे, जो लाठी घूसे के निशान थे'
यहाँ 'लाठी घूसे के निशान थे' की जगह 'लाठी घूसों के निशान थे' आएगा।
पेज नंबर 104 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'बिस्तर पर करवट बदल बदल कर उसकी शरीर दुखने लगती'
यहाँ ' उसकी शरीर दुखने लगती' की जगह 'उसका शरीर दुखने लगता' आएगा।
पेज नंबर 107 में लिखा दिखाई दिया कि..
'खेतों में मजूरी करने के लिए उसने दूसरे गाँव के चमार बस्ती से गुहार लगाई'
यहाँ 'दूसरे गाँव के चमार बस्ती से गुहार लगाई' की जगह 'दूसरे गाँव की चमार बस्ती से गुहार लगाई' आएगा।
पेज नंबर 117 की प्रथम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'कहीं बवंडर तो कहीं सोंय सोंय कर ऊबड़-खाबड़ पर पसरी हवा'
यहाँ 'सोंय सोंय कर ऊबड़-खाबड़ पर पसरी हवा' की जगह 'सांय सांय कर ऊबड़-खाबड़ पर पसरी हवा' आएगा।
इसी वाक्य में आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'मानो उसने सारी धरती और आसमान को किसी वियोगात्मक जिद्द में जाकर मेल कराने की ठान लिया हो'
यहाँ ' वियोगात्मक जिद्द में आकर मेल कराने की ठान लिया हो' की जगह 'वियोगात्मक ज़िद में आकर मेल कराने की ठान ली हो' आएगा।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'एक के बाद एक चीख और उसके ऊपर से बादलों की कड़कड़ाहट-गड़गड़ाहट कानों को फाड़े जा रहे हैं'
यहाँ 'कानों को फाड़े जा रहे हैं' की जगह 'कानों को फाड़े जा रही है' आएगा।
इसी पेज के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..
'सर्प उसके सीने पर डंक मारने की खातिर मुँह उचका कर आगे की ओर बढ़ें कि सुधीर चिल्ला उठा'
यहाँ 'मुँह उचका कर आगे की ओर बढ़ें कि सुधीर चिल्ला उठा' की जगह 'मुँह उचका कर आगे की ओर बढ़े कि सुधीर चिल्ला उठा' आएगा।
पेज नंबर 119 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'वह उन भभाते और खुजलाते जगहों को सहला नहीं सकता'
यहाँ 'भभाते और खुजलाते जगहों को सहला नहीं सकता' की जगह 'भंभाती और खुजलाती जगहों को सहला नहीं सकता' आएगा।
पेज नंबर 120 में लिखा दिखाई दिया कि किसी को उनके मकानमालीक ने तो किसी को नौकरी से ही निकाल दिया गया है'
यह सही वाक्य नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि 'किसी को उनके मकान मालिक ने नौकरी से ही निकाल दिया है'
पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'उस मृतक व्यक्ति का फोटो और उसके घर वालों का रोना- बिलखना सुधीर को देखा नहीं जा रहा'
यहाँ 'उसके घर वालों का रोना- बिलखना सुधीर को देखा नहीं जा रहा' की जगह 'उसके घर वालों का रोना- बिलखना सुधीर से देखा नहीं जा रहा' आएगा।
पेज नंबर 123 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सब्र की बाँध टूट गई'
यहाँ 'सब्र की बाँध टूट गई' की जगह 'सब्र का बाँध टूट गया' आएगा।
पेज नंबर 124 में लिखा दिखाई दिया कि..
'घर में रखे राशन-पानी अब समाप्त हो चुके हैं'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'घर में रखा राशन-पानी अब समाप्त हो चुका है'
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'शायद इस देश के न्यूज़ चैनल पर प्रतिबंध लग गया है'
यहाँ 'न्यूज़ चैनल पर प्रतिबंध लग गया है' की जगह 'न्यूज़ चैनलों पर प्रतिबंध लग गया है' आएगा।
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'लेकिन सांकेतिक रूप से कभी कभार कुछ रिपोर्टर्स आ जाते हैं कि उन सप्लाई का फायदा सबसे पहले मददगार देश के सैनिकों और नागरिकों को दी जाने लगी है'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
''लेकिन सांकेतिक रूप से कभी कभार कुछ रिपोर्टर्स आ जाते हैं कि उस सप्लाई का फायदा सबसे पहले मददगार देश के सैनिकों और नागरिकों को दिया जाने लगा है' आएगा।
यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि लेखिका की कहानी के हिसाब से कोरोना काल में कोई मददगार देश भारत को खाना और दवाइयाँ इत्यादि दे कर हमारी मदद कर रहा है लेकिन उपरोक्त वाक्य में लेखिका खुद कंफ्यूज़न का शिकार हो गयी हैं कि मददगार देश आखिरकार किसकी मदद कर रहा है। उनके लिखे अनुसार मददगार देश हमारे देश की मदद करने के बजाय खुद अपने ही देश के सैनिकों एवं नागरिकों
को आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई कर रहा है।
पेज नंबर 124 में आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'मददगार देश ने इस देश के लोगों को घर से निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है'
यहाँ 'इस देश के लोगों को घर से निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है' की जगह 'इस देश के लोगों पर घर से निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है' आएगा।
पेज नंबर 125 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'मददगार देश के सैनिकों ने एक साथ पूरे परिवार की लाश निकाली'
यहाँ 'एक साथ पूरे परिवार की लाश निकाली' की जगह 'एक साथ पूरे परिवार की लाशें निकालीं' आएगा।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'लेकिन उसे पता है कि हर जगह मददगार देश सी.सी.टी.वी कैमरे के जरिए घात लगाए बैठी है'
यहाँ 'मददगार देश सी.सी.टी.वी कैमरे के जरिए घात लगाए बैठी है' की जगह 'मददगार देश सी.सी.टी.वी कैमरे के जरिए घात लगाए बैठा है' आएगा।
पेज नंबर 130 में लिखा दिखाई दिया कि..
'बुढ़ापे में पैसों की इतनी लालच कहाँ से घेर लिया मलिकाइन को'
यहाँ 'पैसों की इतनी लालच कहाँ से घेर लिया मलिकाइन को' की जगह 'पैसों का इतना लालच कहाँ से घेर लिया मलिकाइन को' आएगा।
पेज नंबर 132 में लिखा दिखाई दिया कि..
'अपमान से उपजे बदले की भावना को सकारात्मक रूप में स्थानांतरित कर दो'
यहाँ ''अपमान से उपजे बदले की भावना को' की जगह ''अपमान से उपजी बदले की भावना को' आएगा।
पेज नंबर 136 में लिखा दिखाई दिया कि..
'इसलिए उसने अपने विषय में लोगों के सोच की कभी परवाह नहीं की'
यहाँ 'लोगों के सोच की कभी परवाह नहीं की' की जगह 'लोगों की सोच की कभी परवाह नहीं की' आएगा।
पेज नंबर 138 में लिखा दिखाई दिया कि..
'लड़कियों पर लगाम लगाना ही चाहिए'
यहाँ 'लगाम लगाना ही चाहिए' की जगह 'लगाम लगानी ही चाहिए' आएगा।
पेज नंबर 139 में लिखा दिखाई दिया कि..
'इतनी तकलीफ तो एसिड ने भी नहीं दिया जितना कि पंचायत ने'
यहाँ 'इतनी तकलीफ तो एसिड ने भी नहीं दिया जितना कि पंचायत ने' की जगह 'इतनी तकलीफ तो एसिड ने भी नहीं दी जितनी कि पंचायत ने' आएगा।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'यह जान लो, कानून तुम्हारी मुट्ठी में होगी लेकिन मेरा कानून अब मैं खुद लिखूँगी'
यहाँ 'कानून तुम्हारी मुट्ठी में होगी' की जगह 'कानून तुम्हारी मुट्ठी में होगा' आएगा।
इसी पैराग्राफ में आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'द्रौपदी की तरह महाभारत करवा के सब का नाश नहीं कर दी, तो मेरा नाम भी रूपा नहीं'
यहाँ 'द्रौपदी की तरह महाभारत करवा के सब का नाश नहीं कर दी' की जगह 'द्रौपदी की तरह महाभारत करवा के सब का नाश नहीं कर दिया' आएगा।
पेज नंबर 140 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'पहली बार महसूस हुआ कि भगवान कहे जाने वाले पवित्र आत्माएँ ऊँचे चबूतरे पर बैठकर भी डरते बहुत हैं।
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'पहली बार महसूस हुआ कि भगवान कही जाने वाली पवित्र आत्माएँ भी पंचायत के ऊँचे चबूतरे पर बैठकर डरती बहुत हैं।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'अपनापन के लिए रूपा तरसकर रह गई'
यहाँ 'अपनापन के लिए रूपा तरसकर रह गई' की जगह 'अपनेपन के लिए रूपा तरस कर रह गई' आएगा।
पेज नंबर 141 के शुरू में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसके चेहरे पर खिंचीं हजारों रेखाएँ उभर आयीं और हजारों रेखाएं मन पर खींच आयीं'
यहाँ 'हजारों रेखाएं मन पर खींच आयीं' की जगह ' हज़ारों रेखाएँ मन पर खिंच आयीं' आएगा।
पेज नंबर 142 में लिखा दिखाई दिया कि..
'हमें खुद को तीसरे की नज़रिए से बचाना होगा'
यहाँ 'तीसरे की नज़रिए से बचाना होगा' की जगह 'तीसरे के नज़रिए से बचाना होगा' आएगा।
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'ईज़्जत और प्यार के नाम पर अपने खिलाफ रचे जा रहे साजिशों को रोकना होगा'
यहाँ 'ईज़्जत और प्यार के नाम पर अपने खिलाफ रचे जा रहे साजिशों को रोकना होगा' की जगह 'इज़्ज़त और प्यार के नाम पर अपने खिलाफ़ रची जा रही साज़िशों को रोकना होगा' आएगा।
इसी किताब में वर्तनी की त्रुटियाँ भी हद से ज़्यादा दिखाई दीं। जिन्हें ठीक किए जाने की ज़रूरत है।
* मूर्ती - मूर्ति
* तीरछे - तिरछे
* फूर्ती - फुर्ती
* कूर्सी - कुर्सी
* ढीबरी का तेल - ढिबरी का तेल
* दूबारा - दुबारा
* मेकप - मेकअप
* बेतहासा- बेतहाशा
* बारीश - बारिश
* बारीस - बारिश
* बेवशी- बेबसी
* कूकर- कुक्कर
* ससूर जी - ससुर जी
* भलेमानूष - भलेमानस/भलेमानुष
* साफ-सूथरा - साफ़-सूथरा
* तुफान- तूफ़ान
* कूल्फी - कुल्फ़ी
* महिने - महीने
* खुंखार - खूँखार
* टिसती - टीसती
* बेवश - बेबस
* बेवस - बेबस
* मूर्गी - मुर्गी
* नोएड़ा - नॉएडा/नोएडा
* सूनसान - सुनसान
* नाबालिक - नाबालिग़
* किडनैपिक - किडनैपिंग
* ससूर - ससुर
* खुशीहाली - खुशहाली
* खातीर - खातिर
* (हाड-माँस) - (हाड़-माँस)
* घुमती - घूमती
* घुमने - घूमने
* घुमते - घूमते
* (टीप-टॉप) - (टिप-टॉप)
* सपाचट्ट - सफ़ाचट
* घुमना - घूमना
* जिंस - जीन्स
* (वेश-भुषा) - वेशभूषा
* इक्ज़ाम - एग्ज़ाम
* आतूर - आतुर
* आश्रीत - आश्रित
* ईज्ज़त - इज़्ज़त
* दुसरे दिन - दूसरे दिन
* किसमत - किस्मत
* खींचवा - खिंचवा
* एड़मिशन - एडमिशन
* दुनियाँ - दुनिया
* रूक - रुक
* ठंड़ी - ठंडी
* बुढ़ी - बूढ़ी
* बुढ़ा - बूढ़ा
* टूकड़ा - टुकड़ा
* श्वसूर - श्वसुर
* जाय - जाए
* ठड़ें - ठंडे
* महिने - महीने
* पूरखों - पुरखों
* बरक्कत - बरक़त
* कोल्ड्रिंक - कोल्ड ड्रिंक
* मुँछें - मूँछें
* मुँछ - मूँछ
* बुजूर्गों - बुज़ुर्गों
* खेल-खुद - खेलकूद
* चुल्हे चूल्हे
* निर्भिक - निर्भीक
* दूलराने - दुलराने
* पूचकारने - पुचकारने
* छूआ - छुआ
* चुम - चूम
* गुडिया - गुड़िया
* चेकप - चेकअप
* होठ - होंठ
* भष्म - भस्म
* मालीक - मालिक
* ठाकूरों - ठाकुरों
* भलेमानूस - भलेमानुस
* बेहुदगी - बेहूदगी
* शुकून - सुकून
* खातीर - ख़ातिर
* दूलहे - दूल्हे
* घुँट - घूँट
* सटिक - सटीक
* जबाब - जवाब
* (खुसूर-फुसूर) - (खुसर-फुसर)
* दूआरे - दुआरे
* बिमारी - बीमारी
* जूटाने - जुटाने
* जिद्द - ज़िद
* फण (साँप का) - फन (साँप का)
* जीव्हाएँ - जिव्हाएँ
* झाँग (विष की) - झाग
* झाँगों (विष भरे) - झागों
* डंसने - डसने
* भनभना - भिनभिना
* भनभनाती - भिनभिनाती
* फूँफकार (साँप की) - फुँफकार
* फूँफकारी - फुँफकारी
* जिह्वा - जिव्हा
* बेड़रूम - बैडरूम
* चेहरा भभा रहा है - चेहरा भंभा रहा है
* भभाते - भंभाते
* नज़र गडाए - नज़र गड़ाए
* मकानमालीक - मकान मालिक
* नास्ता - नाश्ता
* सदमें - सदमे
* जीवन बीता दिया - जीवन बिता दिया
* (कूल-खानदान) - (कुल-खानदान)
* मुर्छित - मूर्छित
* अर्धमुर्छित - अर्धमूर्छित
* (लात-घुसों) - लात-घुसों
* नातीनों - नातिनों
* नातीन - नातिन
* मसक्कत - मशक्क़त
* रिक्वेष्ट - रिक्वेस्ट
* घुँघट - घूँघट
* शकी - शक्की
* ऊभर - उभर (उभरना)
* (ऊल-जलुल) - (ऊल-जलूल)
1 comments:
सच्ची समीक्षा
व सीख लेखक को
सादर
Post a Comment