नई इबारत - सुधा जुगरान

जब भी मैं किसी कहानी संकलन या उपन्यास को पढ़ने का विचार बनाता हूँ तो अमूमन सबसे पहले मेरे सामने ये दुविधा उत्पन्न हो जाती है कि मैं किस किताब से अपने नए साहित्यिक सफ़र की शुरुआत करूँ? एक तरफ़ वे किताबें होती हैं जो मुझे अन्य नए/पुराने लेखकों अथवा प्रकाशकों ने बड़े स्नेह और उम्मीद से भेजी होती हैं कि मैं उन पर अपनी पाठकीय समझ के हिसाब से कोई सारगर्भित प्रतिक्रिया अथवा सुझाव दे सकूँ। तो वहीं दूसरी तरफ़ मुझे अपनी ओर वे किताबें भी खींच रही होती हैं जिन्हें मैंने अपनी समझ के अनुसार इस आस में खरीदा होता है कि मुझे उनसे मुझे कुछ ना कुछ सीखने को अवश्य मिलेगा। 


दोस्तों..आज मैं जिस कहानी संग्रह की बात करने जा रहा हूँ उसे 'नई इबारत' के नाम से लिखा है सुधा जुगरान ने। 


इस कहानी संग्रह की एक कहानी 'अनाम रिश्ता', उस सविता की व्यथा व्यक्त करती है जो अपने दो बेटों, निक्की और सुहेल को किसी न किसी वजह से खो चुकी है। निक्की को अपने पहले पति अनुपम की अकाल मृत्यु के बाद, अपने दूसरा विवाह करने के निर्णय से और अश्विनी से उत्पन्न, सुहेल को एक बस एक्सीडेंट की वजह से। ऐसे में अपने बच्चों के वियोग में तड़पती सविता की बरसों बाद मुलाक़ात निक्की से होती तो है मगर..


इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'अपना-अपना नज़रिया' में लेखिका हाउसवाइफ भाभी और कामकाजी ननद के आपसी रिश्ते के ज़रिए इस बात को समझाने का प्रयास करती दिखाई देती हैं कि अपने-अपने कार्यक्षेत्र में किसी की किसी से कोई तुलना नहीं की जा सकती। घरेलू कामकाज के ज़रिए घर संभालना और बाहर जा कर जीविका अर्जित करने जैसे कामों का एक जैसा ही महत्व है। इनमें से कोई भी किसी से कमतर नहीं है। इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'अपना घर' में अमीर घर द्वारा गोद ली गयी स्मृति अपने असली माता-पिता के बारे में जानने..समझने के लिए बेचैन है कि उन्होंने उसे पैदा कर के उससे किनारा क्यों कर लिया। गोद लेने वाले माता-पिता से जब उसे उनके बारे में पता चलता है तो वह उनसे मिलने और उनके साथ रहने के लिए उतावली हो उठती है।


इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'आशियाना' में अपनी पत्नी, रूमा के निधन के बाद अकेले रह गए 62 वर्षीय योगेश, अपना समय व्यतीत करने के अपने नौकर के बच्चों को पढ़ाना शुरू तो करते हैं मगर बेटे-बहू की ज़िद पर उन्हें मुंबई, उनके पास रहने के लिए जाना पड़ता है। अब देखना ये है कि बड़े शहर की आबोहवा रास आती है या नहीं। इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'एक साथी की तलाश' में दो दिन पहले रिटायर हुए मधुप उस वक्त परेशान हो जाते हैं जब बरसों से उनकी सेवा कर रहा बिस्वा हमेशा-हमेशा के लिए अपने गाँव जाने की बात करता है। अब देखना यह है कि अपने अहम की वजह से बरसों से अपनी पत्नी श्यामला से अलग रह रहे मधुप क्या अपनी ग़लती महसूस कर अपनी पत्नी के पास वापिस लौट पाएँगे या नहीं।


इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'ख़ामोश कोलाहल' में प्रेम विवाह के बावजूद तन्वी और देवांश के रिश्ते में विवाह के तीन वर्षों के भीतर ही अजनबियत भरा सूनापन अपने पैर पसार चुका है। जिसे दूर करने के लिए दोनों के परिवार मिल कर कुछ ऐसा करते हैं कि उनका आपसी रिश्ता फ़िर से पटरी पर लौट आता है। एक अन्य कहानी 'तार-तार रिश्ते' में 

13 वर्षीय संधू और उसका छोटा भाई बंटी उस वक्त खुशी के मारे पुलकित हो उठते हैं जब उन्हें पता चला है कि उनका 20 वर्षीय मामा सोनू, शहर में पढ़ाई के इरादे से उनके घर रहने के लिए आ रहा है। मगर देखना यह है कि दिन पर दिन समझदार होती संधू की वक्ती खुशी बरक़रार रह पाती है अथवा नहीं। 


एक अन्य कहानी 'दूर के दर्शन का सुख' में जहाँ 10वीं पास करने के बाद ग़रीब घर का बसंत अपने परिवार का सहारा बनने के इरादे से एक जानकार की मदद से दुबई में नौकरी करने चला जाता है। मगर अब देखना यह है कि घर-परिवार की ज़िम्मेदारी निबटाने के बाद भी वह वापिस घर लौट कर आता है या फ़िर वहीं का हो कर रह जाता है। तो वहीं एक अन्य कहानी 'नई इबारत' एक तरह से स्त्री अधिकारों की पैरवी सी करती हुई प्रतीत होती है। जिसमें घरेलू कामकाज के लिए लेखिका के घर सर्वेंट क्वाटर में रंजना नाम की एक पहाड़ी लड़की अपने तीन बच्चों के साथ रहने के लिए आती है। जिसे उसके पति ने एक तरह से छोड़ रखा है। उसके संघर्ष की कहानी सुनकर लेखिका मन ही मन अपनी बेटी से उसकी तुलना करने लगती है।


इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'नया दौर' में जहाँ एक तरफ़ जब निविधा अपने पति को बताती है कि उसका उपन्यास साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हो रहा है तो वह हर्षित होने के साथ-साथ अपने भीतर ग्लानि का अनुभव भी करता है कि विवाह के बाद वर्षों तक उसने अपनी पत्नी के हुनर को उभरने का मौका नहीं दिया। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी 'फ़क़त रेत' में लेखिका ने एक डायनिंग टेबल के चार पायों के माध्यम से स्त्रियों की स्थिति में पीढ़ियों के साथ आए बदलाव को बतलाने का प्रयास किया है कि किस तरह पहले की स्त्रियाँ अपने माता-पिता एवं पति की बात मान उनकी इच्छानुसार ही चला करतीं थीं। समय के साथ आए बदलाव में अगली पीढ़ी अपने मन की इच्छा का करने का प्रयास तो करती रही मगर पूर्णतया कभी सफ़ल नहीं हो पाई जबकि आज की स्त्री अपने हक़ की लड़ाई को सफलतापूर्वक लड़ने के साथ-साथ सवाल भी कर रही है। 


एक अन्य कहानी 'मन भये न दस बीस' में जहाँ 49 वर्षीय उस अविवाहित आरुषि की बात करती है जिसने कैरियर की चाह में अब तक विवाह नहीं किया है। अब उम्र के इस मुकाम पर जब वह एक साथी चाहती तो है मगर हर बार उसकी अफ़सरी की ठसक के बीच में आ जाने से कहीं भी उसकी बात नहीं बन पा रही। तो वहीं इस संकलन की अंतिम कहानी 'रिश्तों का आत्मघात' में जब शरद को उसके पिता की मृत्यु की बाद मकान के स्वामित्व को लेकर चाचा की तरफ़ से कानूनी नोटिस मिलता है वह हैरान रह जाता है कि जिस चाचा को बचपन से उसके पिता ने अपने पिता की मृत्यु के बाद पढ़ा-लिखा कर कमाने-धमाने लायक काबिल बनाया, उसी ने उस मकान पर अपने स्वामित्व के लिए नोटिस भेजा है जिसको बनाने के लिए सारा पैसा उसके पिता ने खर्च किया था। 


धाराप्रवाह शैली में लिखे गए इस कहानी संग्रह की कुछ कहानियाँ मुझे थोड़ी सतही या फ़िर भाषण देतीं सी भी लगीं। पढ़ते वक्त कुछ एक जगहों पर प्रूफ़रीडिंग की कमियों के अतिरिक्त कुछ वर्तनी की त्रुटियाँ भी दिखाई दीं।



पेज नंबर 13 में लिखा दिखाई दिया कि..


'उन्हें ऐसा लग रहा था... उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं'


इस वाक्य में 'उन्हें ऐसा लग रहा था' ग़लती से दो बार छप गया है। 


पेज नंबर 64 में लिखा दिखाई दिया कि..


'इतने वर्षों बाद अकेले घर में उनका दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था'


यहाँ 'कौतूहल' की जगह ग़लती से 'कुतूहल' छप गया है। 


पेज नंबर 68 पर लिखा दिखाई दिया कि..


'दोनों अब पाँच साल के रिश्ते को नाम देने का शिद्दत से सोचने की कोशिश कर रहे थे पर सोच पुख़्ता नहीं हो पा रही थी'


यह वाक्य सही नहीं बना। मेरे हिसाब से सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..


'दोनों अब पाँच साल के रिश्ते को नाम देने के बारे में शिद्दत से सोचने की कोशिश कर रहे थे पर सोच पुख़्ता नहीं हो पा रही थी'


पेज नंबर 69 में लिखा दिखाई दिया कि..


'वह कुछ-कुछ छिड़ता हुआ बोला'


यहाँ 'छिड़ता हुआ बोला' की जगह 'छेड़ता हुआ बोला' आएगा। 


पेज नंबर 87 में लिखा दिखाई दिया कि..


'पहली बार बसंत के तयेरे भाई मातवर ने यह जानकारी बसंत को दी थी'


इस वाक्य में ग़लती से शायद 'चचेरे भाई' की जगह 'तयेरे भाई' छप गया है क्योंकि 'तयेरे भाई' जैसा शब्द कभी मेरे पढ़ने में नहीं आया। 


इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..


'वहाँ यहाँ कि तरह छोटे-मोटे ढाबे नहीं होते'


यहाँ 'कि' की जगह 'की' आएगा। 


पेज नंबर 89 में लिखा दिखाई दिया कि..


'दुबई का ऐसा नशा चढ़ा था बसंत को कि ख़्वाबों में भी ख़्याली दुबई ही दिखता'


यहाँ 'ख़्याली दुबई ही दिखता' की जगह 'ख़ाली दुबई ही दिखता' आए तो बेहतर।


इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..


'बस आने के कुछ दिन मातवर भाई ने थोड़ा बहुत घुमा दिया था ख़ास-ख़ास जगह'


यह वाक्य मेरे हिसाब से सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..


'बस आने के कुछ दिनों बाद तक मातवर भाई ने थोड़ा बहुत घुमा दिया था ख़ास-ख़ास जगहों पर' 


इससे अगली पंक्ति मुझे सही से समझ नहीं आयी कि उसमें लिखा था कि..


'इस चमकती सुविधा-संपन्न दुबई में साधनहीन भला सामने कहाँ दिखेगा'


पेज नंबर 90 में लिखा दिखाई दिया कि..


'दो साल बाद बसंत का 10वीं पूरा हुआ'


यहाँ 'बसंत का 10वीं पूरा हुआ' की जगह 'बसंत की 10वीं पूरी हुई' आएगा।


इससे अगली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..


'उसके आसपास के जानने में कई लड़के बहरीन, क़तर वगैरह खाड़ी के कई दूसरे देशों में कुक, ड्राइवर, क्लीनर आदि की नौकरी के लिए गए हुए थे'


इस वाक्य में 'उसके आसपास के जानने में कई लड़के' की जगह 'उसके आसपास के जानने वालों में कई लड़के' आएगा। 


पेज नंबर 91 में लिखा दिखाई दिया कि..

'जब वह दुबई पहुँचा तो कुछ ही दिनों में उसकी नौकरी एक मॉल के 'कैरफ़ोर' में लग गई'


यहाँ 'उसकी नौकरी एक मॉल के 'कैरफ़ोर' में लग गई' की जगह 'उसकी नौकरी एक मॉल, 'कैरफ़ोर' (कैरिफोर) में लग गई' आएगा।


पेज नंबर 101 में लिखा दिखाई दिया कि..


'और गाहे-बगाहे रंजना के ननद का पति भी'


यहाँ 'रंजना के ननद का पति भी' की जगह 'रंजना की ननद का पति भी' आएगा। 


पेज नंबर 104 में लिखा दिखाई दिया कि..


'एक नाबालिग़ से बयान ने उसे इतने वर्षों का वनवास दे दिया'


यहाँ 'एक नाबालिग़ से बयान ने' की जगह 'एक नाबालिग़ के बयान ने' आएगा। 


पेज नंबर 105 में लिखा दिखाई दिया कि..


'लेकिन इसके तबके की बात यदि छोड़ दी जाए तो'


यहाँ 'लेकिन इसके तबके की बात यदि छोड़ दी जाए तो' की जगह ''लेकिन इस तबके की बात यदि छोड़ दी जाए तो' आएगा। 


पेज नंबर 108 में लिखा दिखाई दिया कि..


'35 की हो गई अनाया को माँ भी नहीं बनना है अभी भी'


यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि 


'35 की हो गई अनाया को माँ नहीं बनना है अभी'


पेज नंबर 116 का दिखाई दिया कि..


'उसके हाथ तो खज़ाने का नक्शा हाथ लग गया था'


इस वाक्य में दूसरी बार आए 'हाथ' शब्द की ज़रूरत ही नहीं है।


पेज नंबर 122 में लिखा दिखाई दिया कि..


'आज की लड़की माँ ही नहीं बनना चाहती... यह काफी सोचनीय प्रसंग है'


यहाँ 'सोचनीय प्रसंग है' की जगह 'शोचनीय प्रसंग है' आएगा। 


पेज नंबर 132 में लिखा दिखाई दिया कि..


'यह एक नई प्रकार के असंतुलन को जन्म दे रहा है'


यहाँ 'नई प्रकार के असंतुलन को जन्म दे रहा है' की जगह 'नए प्रकार के असंतुलन को जन्म दे रहा है' आएगा।


पेज नंबर 132 में आगे लिखा दिखाई दिया कि..


'स्त्रियों से उनकी मनसा नहीं पूछी जाती थी'


यहाँ 'मनसा नहीं पूछी जाती थी' की जगह 'मंशा नहीं पूछी जाती थी' आएगा। 


* रोब (जमाना) - रौब (जमाना) 

* कुतूहल - कौतूहल

* कोराना काल - कोरोना काल

* अज़माया - आज़माया


अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि 157 पृष्ठीय इस बढ़िया कहानी संग्रह के पेपरबैक संस्करण को छपा है अद्विक प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 240/- रुपए। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।



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