काग़ज़ के फूल - संजीव गंगवार

ज़िंदा रहा तो मिली गालियाँ
मरने के बाद मिली  तालियाँ

दोस्तों... जाने क्या सोचकर यह टू लाइनर आज से कुछ वर्ष पहले ऐसे ही किसी धुन में लिख दिया था मगर अब अचानक यह मेरे सामने इस रूप में फ़िर सामने आ जाएगा, कभी सोचा नहीं था। तब भी शायद यही बात ज़ेहन में थी कि बहुत से लोगों के काम को उनके जीते जी वह इज़्ज़त..वह मुकाम..वह हक़ नहीं मिल पाता, जिसके वे असलियत में हक़दार होते हैं। मगर उनके इस दुनिया से रुखसत हो जाने बाद लोगों की चेतना कुछ इस तरह जागृत होती है कि उन्हें उनकी..उनके काम की अहमियत और कीमत का एहसास हुए बिना नहीं रह पाता। ऐसा किसी लेखक, कवि , चित्रकार, नग़मा निगार या किसी फ़िल्मकार के साथ भी हो सकता है। विज्ञान अथवा राजनीतिशास्त्र के लोग भी इस सबसे अछूते नहीं रह पाए हैं। 

साहित्य के क्षेत्र की अगर बात करें तो मेरे ख्याल से प्रेमचंद जी से बड़ा इसका कोई उदाहरण नहीं हो सकता। जिनका पूरा जीवन मुफ़लिसी और फ़ाका कशी में बीता लेकिन उनके जाने के बाद उनकी किस्मत ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि अब हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनका नाम एवं काम एक मिसाल बन चुका है। इसी तरह के कुछ अन्य उदाहरण विश्व साहित्य तथा फ़िल्मों के क्षेत्र में भी मिल जाएँगे।

 बॉलीवुड की अगर बात करें तो यहाँ भी प्रसिद्ध एक्टर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर राजकपूर तथा गुरुदत्त के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। राजकपूर की फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' और गुरुदत्त की फ़िल्म 'कागज़ के फूल' ऐसी ही फ़िल्मों के उदाहरण हैं। दोनों की दोनों फिल्में अपनी रिलीज़ के वक्त डिज़ास्टर साबित हो बहुत बड़ी फ़्लॉप साबित हुईं मगर इन्हीं फिल्मों ने बाद में ऐसा नाम कमाया कि हर तरफ़ इन्हीं की धूम मच गई।बॉक्सऑफिस पर 10-12 दिन भी न चलने वाली 'कागज़ के फूल' को आज संसार के लगभग 12 विश्वविद्यालयों में कोर्स के रूप में पढ़ाया जा रहा है।


दोस्तों... आज मैं गुरुदत्त के जीवन और उनकी फिल्मों से जुड़ी जिस शोधपत्र रूपी किताब की मैं यहाँ बात करने जा रहा हूँ, उसे 'काग़ज़ के फूल' के नाम से लिखा है लेखक संजीव गंगवार ने। गुरुदत्त के आरंभिक जीवन से लेकर उनकी मृत्यु तक के सफ़र को कवर करती इस किताब में जहाँ एक तरफ़ उनके तंगहाली भरे बचपन और अभिनय, नृत्य एवं संगीत से उनके लगाव की बातें हैं तो दूसरी तरफ़ इसी किताब में सिनेमा के प्रति उनकी लगन... ज़ुनून एवं पैशन की बातें हैं। 

इसी किताब में जहाँ एक तरफ़ गीतादत्त से उनके प्रेम..विवाह और बिछोह से जुड़ी बातों पर लेखक प्रकाश डालते नज़र आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ वे वहीदा रहमान से अकस्मात हुई उनकी मुलाक़ात के बाद उसके स्टार बनने की कहानी कहते दिखाई देते हैं। इसी किताब में कहीं वे गीतादत्त और वहीदा के बीच सैंडविच बने गुरुदत्त की मनोस्थिति पर मनन एवं चिंतन करते दिखाई पड़ते हैं तो कहीं वे प्यासा फ़िल्म के लिए दिलीप कुमार के हाँ करने के बावजूद भी शूटिंग पर ना आने और गुरुदत्त के मजबूरी में स्वयं नायक बनने की कहानी कहते नज़र आते हैं। 

कहीं वे गुरुदत्त की फिल्मों के सूक्ष्म निरीक्षण के बहाने उनकी कहानियों एवं एक-एक करके सभी दृश्यों की विभिन्न आयामों एवं नज़रिए से गहन पड़ताल करते नज़र आते हैं। तो कहीं वे उनकी फिल्मों में व्याप्त भ्रष्टाचार समेत अनेक मुद्दों पर पूरे समाज को ही कठघरे में खड़े करते दिखाई देते हैं। कहीं वे इस किताब के बहाने स्त्रियों के हक़ में अपनी आवाज़ उठाते दिखाई देते हैं तो बहुत सी जगहों पर वे उनकी फिल्मों में उठाए गए मुद्दों को विस्तार दे पाठकों पर अपनी सोच..अपना एजेंडा थोपते हुए से भी दिखाई देते हैं। 

कई बार लेखक/निर्देशक किसी वाकये या दृश्य को अपनी समझ के अनुसार लिख/फिल्मा तो लेता है मगर पढ़ने/देखने वाले उन्हीं दृश्यों या वाक्यों में से कुछ ऐसा खोज लेते हैं जिसके बारे में स्वयं लेखक/निर्देशक ने भी नहीं सोचा होता है। इन्हीं अनचीन्ही..अनछुई बातों से रु-ब-रु करवाती इस ज़रूरी किताब में पाठकों को बहुत कुछ ऐसा मिल जाता है जिस पर उन्होंने उस अलहदा नज़रिए से कभी सोचा...समझा एवं चिंतन नहीं किया होता। काग़ज़ के फूल, प्यासा और साहब बीवी गुलाम समेत उनकी सभी फिल्मों की बेहतरीन अंदाज़ में विस्तृत समीक्षा से सजी यह किताब बहुत सी जगहों पर दोहराव की भी शिकार हुई। जिससे बचा जाना चाहिए था। 

■ किस तरह एक छोटी सी चूक या शब्दों के हेरफेर से अर्थ का अनर्थ होने में देर नहीं लगती, इसका उदाहरण भी इस किताब में पेज नंबर 196 में देखने को मिला।

यहाँ लिखा दिखाई दिया कि..

'यह फिर "काग़ज़ के फूल" को तुम्हारा वेस्ट वर्क मान लिया जाये'

पहले बात तो ये कि यहाँ 'यह' की जगह 'या' आना चाहिए और दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि यह पूरी किताब गुरूदत्त के काम को 'कागज़ के फूल' के ज़रिए महिमामंडित किए जाने के लिए लिखी गयी है लेकिन यहाँ ग़लती से 'कागज़ के फूल' को ही उनका 'वेस्ट वर्क' यानी कि बेकार या वाहियात काम करार दिया जा रहा है। 

यहाँ सही वाक्य के लिए इसमें 'वेस्ट' शब्द की जगह 'बेस्ट/बैस्ट' शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था।

■ तथ्यात्मक ग़लती के रूप में मुझे पेज नंबर 29 में लिखा दिखाई दिया कि..

'और फिर वर्मा शेल कंपनी में क्लर्क की नौकरी की'

यहाँ ग़ौरतलब है कि कंपनी का नाम 'वर्मा शेल कंपनी' नहीं बल्कि 'बर्मा शेल कंपनी' था।


पेज नंबर 80 में लिखा दिखाई दिया कि..

'75000 से एक लाख की मामूली सैलरी वाले प्रशासनिक लोग महज़ कुछ वर्षों में ही करोड़ों की संपत्ति के मालिक हो जाते हैं'

यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ बेरोज़गारी के अपने चरम पर होने की वजह से लोग दस-पंद्रह हज़ार रुपए महीने तक की नौकरी करने तक के लिए भी मारे-मारे फिर रहे हैं मगर उन्हें काम नहीं मिल रहा है। वहीं लेखक को जाने किस हिसाब से 75000/- से लेकर 1 लाख रुपए प्रति महीने तक का मेहनताना मामूली लग रहा है। भले ही वह किसी प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों ना हो लेकिन उसे मामूली करार नहीं दिया जा सकता।


इसी तरह पेज नंबर 124 में लिखा दिखाई दिया कि..

'तुम्हारा गरम कोट कहाँ है'

उसके बाद इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'सिन्हा अपना गरम कोट उतार कर शान्ती को दे देते हैं और कहते हैं कि मैंने ब्राण्डी पी रखी है इसलिए मुझे कुछ नहीं होगा'

इसके बाद आगे चलने पर यही गरम कोट जाने कैसे पेज नंबर 149 में एक रेनकोट में तब्दील हो गया।

इस पेज पर लिखा दिखाई दिया कि..

'एक रेनकोट से शुरू होकर एक स्वेटर तक की यात्रा करने वाली कितनी प्रेम कहानियाँ हमने देखी हैं'

इसी पेज के अंत में लिखा दिखाई दिया कि..

'शान्ती और सिन्हा की यह प्रेम कहानी एक रेनकोट से लेकर एक स्वेटर तक का सफ़र तय करती है'

इसके बाद पेज नंबर 170 में लिखा दिखाई दिया कि..

'अर्थात यह जमींदार खानदान लूट के पैसे का कोई हिसाब-किताब नहीं रखता। बड़ा ही इज्जतदार घराना है और मजे की बात यह कि स्त्रियों की हालत इस इज्जतदार घराने में सोचनीय है'

यहाँ पहली बात तो यह कि यहाँ 'सोचनीय' की जगह 'शोचनीय' आएगा और दूसरी बात के रूप में यहाँ मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि स्त्रियों की शोचनीय हालत किसी के भी लिए मज़े की बात कैसे हो सकती है?

■ वाक्य विन्यास की दृष्टि से भी इस किताब में कुछ कमियाँ नज़र आईं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 31 में लिखा दिखाई दिया कि..

'गुरुदत्त अपने कैमरे के प्रति मामा बेनीवाल की सख्ती के बाबजूद उनका कैमरा इस्तेमाल कर लेते थे'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..

''गुरुदत्त कैमरे के प्रति अपने शौक़ की वजह से मामा बेनीवाल की सख्ती के बावजूद उनका कैमरा इस्तेमाल कर लेते थे'

पेज नंबर 105 में लिखा दिखाई दिया कि..

'माँ अपने बड़ो बेटों के व्यवहार से खुश नहीं थी'

यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..

'माँ अपने बड़े बच्चों (बेटों) के व्यवहार से ख़ुश नहीं थी। 

इस किताब को पढ़ते वक्त इसमें कुछ जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त प्रूफरीडिंग की भी कमियाँ दृष्टिगोचर हुईं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 13 में लिखा दिखाई दिया कि..

'उसके कपड़े और ओढ़ी हुई साल गीली हो गई थी'

यहाँ 'ओढ़ी हुई साल' की जगह 'ओढ़ी हुई शॉल' आएगा। 

पेज नंबर 24 में लिखा दिखाई दिया कि..

'गुरु ने वहीदा को 'प्यासा' में अभिनय दिया'

यहाँ 'वहीदा को 'प्यासा' में अभिनय दिया' की जगह 'वहीदा को 'प्यासा' में अभिनय का मौका/अवसर दिया' आना चाहिए। 

पेज नंबर 60 में लिखा दिखाई दिया कि..

'यह अलग बात है कि आज भी इस फ़िल्म को ठीक से समझा न गया हो'

यहाँ 'आज भी इस फ़िल्म को ठीक से समझा न गया हो' की जगह 'आज भी इस फ़िल्म को ठीक से समझा नहीं गया है' आना चाहिए।

पेज नंबर 90 के पहले पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..

'यहां तक की उनके घर-परिवार, बच्चे, मित्र और समाज में सभी लोग प्रतिदिन नियम से उनकी आलोचना करते हैं' 

यहाँ 'यहां तक की उनके घर-परिवार' में 'की' की जगह 'कि' आएगा। 

पेज नंबर 107 में लिखा दिखाई दिया कि..

'उसके निहत्थे प्रश्न समाज के प्रभु वर्ग में हलचल पैदा करते हैं'

यहाँ 'प्रभु वर्ग' की जगह 'प्रबुद्ध वर्ग' आएगा। 

इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'जहां उसकी बुत की पूजा हो रही है'

यहाँ 'उसकी बुत की पूजा हो रही है' की जगह 'उसके बुत की पूजा हो रही है' 

या फ़िर यहाँ 'बुत' की जगह 'प्रतिमा' शब्द का इस्तेमाल किया जाता तो यह वाक्य सही रहता। 

पेज नंबर 119 में लिखा दिखाई दिया कि..

'अर्थात रॉकी की भूमिका हास्य उत्पन्न करके फ़िल्म के निराशावाद को कम करना है'

यहाँ 'रॉकी की भूमिका हास्य उत्पन्न करके फ़िल्म के निराशावाद को कम करना है' की जगह 'रॉकी की भूमिका ने/को हास्य उत्पन्न करके फ़िल्म के निराशावाद को कम करना है' आएगा।

पेज नंबर 159 में लिखा दिखाई दिया कि..

'बाकी दुनिया के दिखाबे तो ढकोसले हैं'

यहाँ 'दिखाबे' की जगह 'दिखावे' आएगा। 

इसी तरह की एक कमी पेज नंबर 160 में भी छपी दिखाई  कि..

'अब सिन्हा साहब के इस वक्तव्य का जबाब शान्ती देवी क्या देती हैं'

यहाँ 'शान्ती' की जगह 'शांति' और 'जबाब' की जगह 'जवाब' आएगा। 

पेज नंबर 172 में लिखा दिखाई दिया कि..

'पुरुष पुरुष प्रधान वर्चस्व का समाज' 

इस वाक्य में 'पुरुष' शब्द ग़लती से दो बार छप गया है।

पेज नंबर 177 के अंतिम पैराग्राफ में लिखा दिखाई दिया कि..

'छोटी बहू के मुंह में जबरन शराब की बोतल उड़ते हैं'

यहाँ 'मुंह में जबरन शराब की बोतल उड़ते हैं' की जगह 'मुँह में जबरन शराब की बोतल उड़ेलते हैं' आएगा। 

पेज नंबर 180 में लिखा हुआ दिखाई दिया कि..

'लेकिन छीनी गई संपत्ति की यही नियत होती है जैसा कि फ़िल्म में दिखाया गया है'

यहाँ 'लेकिन छीनी गई संपत्ति की यही नियत होती है' की जगह 'लेकिन छीनी गई संपत्ति की यही नियति होती है' आएगा।

पेज नंबर 183 के शुरू में लिखा दिखाई दिया कि..

'आज सभी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संदर्भों में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना की फ़िल्म में'

यहाँ 'जितना की फ़िल्म में' में 'की' की जगह 'कि' आएगा। 

पेज नंबर 194 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'दुनिया का कोई भी बड़ा सेफ़ कोई स्त्री नहीं है'

यहाँ 'सेफ़' की जगह 'शेफ़' आएगा। 

पेज नंबर 196 में दिखा दिखाई दिया कि..

'जबकि सुरेश सिन्हा को ट्रेजडी सामाजिक ट्रेजडी थी जिसे तुमने कितने यत्न से गढ़ा था' 

यहाँ 'सुरेश सिन्हा को ट्रेजडी' की जगह 'सुरेश सिन्हा की ट्रेजडी' आएगा। 

पेज नंबर 199 में लिखा दिखाई दिया कि..

'ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज़ उसे मीरव वातावरण को कोलाहल से भर रही थी'

यहाँ 'मीरव वातावरण को कोलाहल से भर रही थी' की जगह 'नीरव वातावरण को कोलाहल से भर रही थी' आएगा।

• फ़्लॉफ - फ़्लॉप
• ओढ़ी हुई साल - ओढ़ी हुई शॉल
• शाप - श्राप 
• बेबड़ा - बेवड़ा
• शान्ती - शांति
• बाबजूद - बावजूद
• खीचँता - खींचता
• अंशका - आशंका
• जुआँ - जुआ
• आत्यन्तिक - अत्याधिक
• व्यंग - व्यंग्य
• हूनर - हुनर 
• प्रभु वर्ग - प्रबुद्ध वर्ग
• आसूँ - आँसू
• ऊचाइयों - ऊँचाइयों
• शिगार - सिगार
• सोचनीय - शोचनीय 
• अबरार अल्बी - अबरार अल्वी 
• पर्तें - परतें 
• दिखाबे - दिखावे
• जबाब - जवाब 
• सड़ाँद - सड़ांध
• खुद व खुद - खुद-ब-खुद
• सेफ़ - शेफ़ (शेफ़)- [रसोइया] 
• गाडियाँ - गाड़ियाँ
• मीरव - नीरव 
• जागिंग - जॉगिंग

महत्त्वपूर्ण विषय पर गहन शोध के साथ को लिखी गयी इस ज़रूरी किताब के 200 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है बोधरस प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 349/- रुपए। किताब की बढ़िया क्वालिटी होने के बावजूद भी मुझे इसके दाम थोड़े ज़्यादा लगे। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को
बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

कथाओं का आँगन - पूजा मणि

आप सबने ये पुरानी कहावत सुनी तो होगी ही कि..'सहज पके सो मीठा होय' अर्थात किसी भी चीज़ को परिपक्व होने अर्थात पकने के लिए पर्याप्त समय की ज़रूरत होती है। मगर आजकल के ज़माने में सब्र कहाँ। जल्दबाज़ी के चक्कर में जहाँ एक तरफ़ कैमिकल के प्रयोग से फल कभी ज़्यादा पक कर गल जाता है तो कभी बाहर से पका और भीतर से कच्चा या फ़ीका रह जाता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ इस जल्दी से जल्दी और ज़्यादा से ज़्यादा पा लेने की  भेड़चाल से हमारा साहित्यजगत भी अछूता नहीं रह पाया है। इस हफ़ड़ा-धफड़ी (आपाधापी) के आलम में सबको इतनी जल्दी होती है कि उनके पास वर्तनी की त्रुटियों को सुधारने के साथ-साथ अपने खुद के लिखे की ही सही से प्रूफ़रीडिंग करने या कराने तक का भी समय नहीं होता कि जब तक इन्हें सुधरेंगे तब तक तो हम एक किताब और लिख मारेंगे। ख़ैर.. इस बारे में और बातें फ़िर कभी। 
अब बात करते हैं एक नयी किताब की तो जैसा कि आप सबने देखा, सुना एवं महसूस किया होगा कि आमतौर पर किस्से-कहानियों का जन्म हमारे आसपास के माहौल से प्रेरित होकर ही होता है। 
कई बार इनके गवाह हम ख़ुद होते हैं तो कई बार इधर-उधर से कुछ किस्से गुफ़्तगू करने के लिए हमारे कानों में कभी चुपचाप तो कभी शोर मचाते हुए आ धमकते हैं। उन्हीं किस्सों में से कुछ किस्सों को अपने आँगन में इस बार सजाया है पूजा मणि ने अपनी कहानियों की किताब 'कथाओं का आँगन' में। जिससे रूबरू होने का मुझे मौका मिला।
दोस्तों..इस संकलन की किसी कहानी में जहाँ एक तरफ़ मामूली नोकझोंक के बाद प्रेमी-प्रेमिका बने आर्यन और गहना जब अपने हनीमून पर आगरा जाते हैं तो ताजमहल भ्रमण के दौरान कुछ ऐसा घटना है कि आगरा के हर अख़बार में गहना की तस्वीर छपी नज़र आने लगती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी मृत्युशैया पर पड़ी उस सुगना अम्मा की व्यथा व्यक्त करती दिखाई देती है, जिसका कम उम्र में ही दो जवान बच्चों के पिता से ब्याह कर दिया गया। अपने स्वयं के तीन बच्चों और दो सौतेले बेटों के होने के बावजूद भी उसके अंत समय में उनमें से कोई भी उसके साथ नहीं था।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अपनी माँ की मृत्यु के बाद अकेली रह गई ध्रुवी, ईर्ष्यावश अपने पिता की दूसरी पत्नी, सुमन को कभी दिल से अपना नहीं पाती मगर शादी के पाँच वर्षों बाद कुछ ऐसा घटता है कि..
इसी संकलन की एक कहानी में जहाँ एक तरफ़ प्रकृति और जंगल से प्रेम करने वाली अपनी बचपन की मित्र गौरैया से विवाह कर चुका अरण्य, वकालत की पढ़ाई करने के लिए शहर जाने के बाद, उसे भूल वहीं एक अन्य लड़की शरण्या से शादी कर लेता है मगर फ़िर कुछ ऐसा घटता है कि उसे लौट कर वापिस अपने गाँव, गौरैया के पास आना पड़ता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में नरेश जी असमंजस में हैं कि क्या उन्होंने अपने दोस्त कपिल को मुसीबत में देख, उसकी प्यार में धोखा खा, किसी और से गर्भवती हो चुकी बेटी, भूमि का विवाह अपने बेटे अंबर से करने का निर्णय लेकर सही किया अथवा ग़लत।
इसी संकलन की अन्य कहानी के माध्यम से लेखिका, जहाँ अपनी ज़मीन में मोबाइल टॉवर लगवा कर मोटी कमाई का लालच देने वाले ठगों के प्रति अपने पाठकों को आगाह करने का प्रयास करती नज़र आती हैं। तो वहीं एक अन्य कहानी मध्यमवर्गीय परिवार की उस तेज़तर्रार और महत्त्वकांक्षी लड़की नीरू की कहानी कहती है जो लड़कों को अपनी उँगलियों पर नचा अपना हर काम निकालना जानती है। इसी नीरू के साथ कुछ ऐसा घटता है कि सबके सामने उसकी पोल खुल जाती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में नदियों को साफ़ रखने की बात होती दिखाई देती हैं तो कहीं किसी दूसरी कहानी में लेखिका लोगों को ऑनलाइन ठगी के प्रति आगाह करती नज़र आती हैं। 
अच्छे एवं ज़रूरी विषयों को लेकर लिखी गयी इस किताब में मुझे तथ्यात्मक ग़लतियाँ दिखाई दीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 15 में लिखा दिखाई दिया कि..
'ताजमहल का प्रतिबिम्ब खरीदने के लिए आर्यन से वो उलझ पड़ी थी'
यहाँ ग़ौर करने वाली बात ये है कि आईने में दिख रही प्रतिछाया को प्रतिबिंब कहा जाता है जबकि यहाँ बात ताजमहल की रेप्लिका अर्थात उसकी ही शक्ल के खिलौने या उसके जैसी ही मूर्ति (प्रतिमूर्ति) को खरीदने की हो रही है। अतः यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'ताजमहल की रेप्लिका/खिलौना खरीदने के लिए वो आर्यन से उलझ पड़ी थी'
पेज नंबर 37 में लिखा दिखाई दिया कि…
‘मैं एक करोड़ दूँगा बस जमीन मेरे नाम हो जाए। कहता हुआ पच्चीस लाख पैसों से भरा बैग उसके तरफ बढ़ा दिया’
यहाँ इस घटना में बात लाखों रुपयों की हो रही है लेकिन यहाँ लिखा हुआ है कि..
‘पच्चीस लाख पैसों से भरा बैग उसके तरफ बढ़ा दिया’ 
जो कि महज़ पच्चीस हज़ार रुपयों की रकम बनती है। इसलिए सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘पच्चीस लाख रुपयों से भरा बैग उसकी तरफ़  बढ़ा दिया।
पेज नंबर 79 के अंत में लिखा दिखाई दिया कि..
‘समीर के एक कदम आगे बढ़ते ही एक सनसनाती गोली उसके साथ खड़े दोनों सिपाहियों को लगी और वो गिर गए’
यहाँ सोचने वाली बात ये है कि एक ही गोली, एक साथ दो सिपाहियों को कैसे लग सकती है?
पेज नंबर 101 के एक दृश्य में विवाह के लिए लड़की देखने के इरादे से निवेश अपनी दादी के साथ लड़की वालों के घर जाता है। वहाँ उसके द्वारा गोद ली हुई बच्ची, रावी के बारे में जब सवाल उठता है तो भड़क कर निवेश कह उठता है कि..
'अरे आप क्या रिश्ता तोड़ेंगे मैं ऐसे मतलबी घर की बेटी को अपनी जीवन संगिनी के रूप में कभी भी नहीं अपनाऊंगा'
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि अभी तो उनकी लड़की का निवेश से रिश्ता जुड़ा ही नहीं है। ऐसे में रिश्ता तोड़ने की बात कैसे की जा सकती है?
पेज नंबर 103 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सारी बच्चियों ने अपने दिए गए विषय पर अपना वक्तव्य रख दिया'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए था कि..
'सारी बच्चियों ने दिए गए विषयों पर अपना-अपना वक्तव्य दिया'
यहाँ यह बात भी ध्यान देने लायक है कि इस दृश्य में बात छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाली बच्चियों की हो रही है। अतः उनकी छोटी उम्र के हिसाब से 'वक्तव्य' एक बहुत ही भारी भरकम शब्द है। यहाँ इसकी जगह किसी आसान शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था।
■ अब बात वाक्यों की सही बुनावट की तो उस दृष्टि से भी इस संकलन की कहानियों में काफ़ी कमियाँ नज़र आयीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 17 में लिखा दिखाई दिया कि..
'जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला कि जैसा उसने सोचा था आर्यन आराम से घोड़े बेचकर सोया हुआ था'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'जैसे ही उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला तो उसने पाया कि उसकी सोच के अनुसार ही आर्यन आराम से घोड़े बेचकर सोया हुआ था'
पेज नंबर 18 में लिखा दिखाई दिया कि..
'आज शाम को उड़ान है मेरे भोले-भाले पतिदेव'
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि 'उड़ान' शब्द का प्रयोग पक्षियों के उड़ने के सिलसिले में किया जाता है।
जहाज़ के उड़ने के लिए मेरे ख्याल से अँग्रेज़ी का 'फ्लाइट' शब्द ही सबसे उत्तम है। इसलिए सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'आज शाम को हमें जहाज़ से जाना है मेरे भोले-भाले पतिदेव' या फ़िर 'आज शाम की हमारी फ्लाइट है मेरे भोले-भाले पतिदेव'
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'जाओ-जाओ मुझे तुम्हारी रक्षा नहीं करनी पड़ जाए'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'जाओ-जाओ कहीं मुझे तुम्हारी ही रक्षा नहीं करनी पड़ जाए'
पेज नंबर 29 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘बचपन में तुम्हें छोड़कर दूजा विवाह रचा लिया होता सुगना ने तो तुम कम से कम दर-दर की ठोकर खाते फिरते’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
‘सुगना ने बचपन में ही तुम्हें छोड़कर दूसरा विवाह रचा लिया होता तो तुम दर-दर की ठोकरें खाते फ़िरते’
पेज नंबर 32 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘अपने आँख पर से हर हाल में औरत ग़लत होती है ये पट्टी उतार कर देखिए’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि…
‘अपनी आँखों से ये पट्टी उतार कर देखिए कि हर हाल में औरत ग़लत होती है’
इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘इसे कोख से जन्म भर नहीं दिया है बाकी कलेजा भी काट कर रख दूँ इसके लिए’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘इसे कोख से जन्म भर ही नहीं दिया है मगर फ़िर भी इसके लिए मैं अपना कलेजा काट कर रख दूँ’
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि…
‘इतना कहकर सुमन अपना मोबाइल फोन निकाली गगन और शोभा देवी को आनंद की करतूत दिखा दी’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि…
‘इतना कहकर सुमन ने अपना मोबाइल फोन निकाला और गगन और शोभा देवी को उसने आनंद की करतूत दिखा दी’
पेज नंबर 35 में लिखा दिखाई दिया कि…
‘गगन हड़बड़ाकर गाना बंद कर कर, अरण्य के सामने फाइल लेकर भागा’ 
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘गगन ने हड़बड़ाते हुए गाना बंद किया और भाग कर अरण्य के पास फ़ाइल लेकर आया’
इसी पैराग्राफ में आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘वहाँ का विधायक जंगल कटवा कर कृषि अनुसंधान लगवाना चाहता है’
यहाँ ‘कृषि अनुसंधान लगवाना चाहता है’ की जगह कृषि अनुसंधान संस्थान/केन्द्र बनवाना चाहता है’ आएगा।
इसी पैराग्राफ में आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘इसलिए अब आपसे बड़ा वकील तो कोई है नहीं।आज विधायक अपने दल बल के साथ आया था, मुंहमांगी रकम देने को तैयार है’
मेरे हिसाब से ये दोनों वाक्य सही नहीं बने। सही वाक्य इस प्रकार होने चाहिए कि.. 
‘अब आपसे बड़ा वकील तो कोई है नहीं। इसलिए आज विधायक अपने दल बल के साथ आया था और आपको मुंहमांगी रकम देने को तैयार है’
पेज नंबर 36 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘इस स्थिति को समझने का नाकामयाब कोशिश करने लगा और सोचते सोचते चाय मंगाने के लिए फोन उठा लिया’
वाक्य विन्यास की दृष्टि से यह वाक्य भी सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘इस स्थिति को समझने की नाकामयाब कोशिश करने लगा और सोचते-सोचते चाय मँगाने के लिए उसने फ़ोन उठाया’
पेज नंबर 39 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘अरे पगले! तू कितना अभागा है। तूने इसका प्रेम ठुकरा दिया। हो सके ये अभागी रही होगी लेकिन इस जंगल और इस पूरे गाँव को माँ की तरह संरक्षण करती है तो इस जंगल की भांति घना और गहरा है इसका विश्वास और प्रेम दोनों’
यह पूरा पैराग्राफ़ बहुत ही अटपटा लिखा गया है। इसी बात को कम और साधारण शब्दों में इस प्रकार लिखा जाना चाहिए था कि..
‘अरे पगले! तू कितना अभागा है। तूने इस अभागी का, जो इस जंगल और पूरे गाँव की रक्षा करती है, का प्रेम ठुकरा दिया। इस जंगल की भांति ही घना और गहरा है इसका तेरे प्रति प्यार।
पेज नंबर 42 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘ज़ब पेट में भूख से मरोड़ उठने लगी तब उसने पके आम की खुशबू से अपनी पेट की आग मिटाने की इच्छा जाहिर की’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘जब पेट में भूख से मरोड़ उठने लगे, तब उन्होंने पके आमों से अपनी पेट की आग मिटाने की इच्छा ज़ाहिर की’
पेज नम्बर 44 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘मैं आपके हर फैसले को सर झुकाकर सुनना अपना कर्तव्य मानता हूँ’
यहाँ ‘हर फैसले को सर झुकाकर सुनना अपना कर्तव्य मानता हूँ’ की जगह ‘हर फैसले को सर झुकाकर मानना अपना कर्तव्य मानता हूँ’ आएगा।
पेज नंबर 45 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘एक पल के लिए जो पछतावे का ख्याल नरेश जी के मन में आया था, कन्यादान करते समय सारे आँखों से बह रहे मोती के साथ चमकने लगे’
यह वाक्य बहुत ही अटपटा बना है। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
‘एक पल के लिए जो पछतावे का ख्याल नरेश जी के मन में आया, वह कन्यादान करते समय आँखों से बह रहे मोतियों के साथ ही बह गया’
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘चल मेरे साथ थोड़ी देर तुम दोनों से एक साथ कुछ बात करनी है’
यह वाक्य भी सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘चलो मेरे साथ थोड़ी देर के लिए। तुम दोनों से एक साथ कुछ बात करनी है’ 
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘अंबर बेटा, थोड़ा स्वार्थी ही सही समझ लो, अब जो हाथ थाम लिया है तो मेरे समाज में मान बने रहने देना’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘अंबर बेटा, बेशक मुझे थोड़ा स्वार्थी ही समझ लो मगर अब जो हाथ थाम लिया है तो समाज में मेरा मान बने रहने देना’
पेज नंबर 46 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘लाल बनारसी साड़ी में भरी माँग केसरिया सिंदूर से भूमि का चेहरा बिल्कुल दमक रहा था’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘लाल बनारसी साड़ी में केसरिया सिंदूर से भरी माँग के बीच भूमि का चेहरा बिल्कुल दमक रहा था’
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘मायके की दहलीज से विदा होकर भूमि अब अपने ससुराल के दहलीज पर अपने स्वागत के इंतजार में खड़ी थी। उसकी सासू मां राधा जी आरती की थाल लिए उसके स्वागत में खड़ी थी। भूमि की आरती के बाद उसकी शानदार स्वागत उसकी ननद अन्या ने किया’
वाक्य विन्यास की दृष्टि से ये सभी वाक्य सही नहीं बने। सही वाक्य इस प्रकार होंगे कि..
‘मायके की दहलीज से विदा होकर भूमि जब अपनी ससुराल पहुंची तो उसकी सासू मां राधा, आरती का थाल लिए उनके  स्वागत में खड़ी थी। आरती उतारने के बाद भूमि का उसकी ननद अन्या ने शानदार स्वागत किया’
पेज नंबर 53 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सामने वाला दगाबाज और फरेबी निकला तो इसमें उसका कसूर है, मेरा नहीं। समझे मेरे जीवन के घुसपैठिये महान इंसान'
यहाँ इस वाक्य 'समझे मेरे जीवन के घुसपैठिये महान इंसान' को हटा ही दिया जाए तो बेहतर।
पेज नंबर 55 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'कपिल जी और नरेश जी अपने बाग के इस फूल को एक साथ खेलते देखकर आशीर्वाद देकर प्रसन्न हो रहे थे'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'कपिल जी और नरेश जी अपने बाग के इन फूलों को एक साथ खिलते देखकर प्रसन्न थे'
पेज नंबर 61 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'सर से बहते खून की धारा के बावजूद राधिका के होंठ मुस्कान और आँखें जलधारा बरसा रही थी'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'सर से बहती खून की धारा के बावजूद राधिका के होठों से मुस्कान और आँखों से जलधारा बह रही थी'
पेज नंबर 85 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘बाहर मीडिया का जमावड़ा और अस्पताल में मौत का शोर इतना कुछ झेलते हुए अपने बुढ़ापे की लाठी के छीन जाने का दर्द सब एक साथ वो झेल नहीं पाई और अचेत होकर जमीन पर गिर पड़ी’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
‘बाहर मीडिया का जमावड़ा और अस्पताल में मौत का शोर। और अब अपनी बुढ़ापे की लाठी के छिन जाने का दर्द, सब एक साथ वो झेल नहीं पाई और अचेत होकर जमीन पर गिर पड़ी’
पेज नंबर 89 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘सड़क पर जमे पानी से गाड़ी के पहिए से उसके मुंह पर जोर से पानी उसके मुँह पर आया’
वाक्य-विन्यास की दृष्टि से यह वाक्य बिलकुल भी सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘सड़क पर जमा हुए पानी में गाड़ी के पहियों के पड़ने से पानी ज़ोर से उछल कर उसके मुँह पर आया’
पेज नंबर 98 में लिखा दिखाई दिया कि..
‘खाना खाकर और बच्ची को सुलाकर बाजार जाकर अपनी कागजात की प्रतिलिपि करवा कर जब वो घर लौटा’ 
वाक्य विन्यास की दृष्टि से यह वाक्य बिलकुल भी सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘खाना खाने और बच्ची को सुलाने के बाद वो अपने ज़रूरी कागज़ात की फोटोकॉपी करवा कर जब घर लौटा’
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
‘पुलिस बच्ची के परिवार वालों को ढूंढ नहीं पाती है तो क्या आप इसे बच्चों को देख-रेख कर रही संस्था को बच्ची को सौंप देंगे’
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
‘पुलिस अगर बच्ची के परिवार वालों को ढूँढ नहीं पाती है तो क्या आप इसे बच्चों की देख-रेख करने वाली संस्था को सौंप देंगे”
पेज नंबर 100 में लिखा दिखाई दिया कि..
'अचानक उसकी नजर बच्चों के झूले पर पड़ी और उसने उसे खरीद कर घर ले गया'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
' उसकी नज़र बच्चों के झूले बेचने वाली एक दुकान पर पड़ी तो उसने एक झूला ख़रीद लिया'
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'धीरे-धीरे समय गुजरने लगा और रावी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'धीरे-धीरे समय गुजरने लगा और रावी बड़ी होने लगी'
इससे अगली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'निवेश का हाथ पकड़कर उसके अँगने में वो धीरे-धीरे चलना सीख रही थी'
यह वाक्य भी सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'निवेश का हाथ पड़कर वह आंगन में धीरे-धीरे चलना सीख रही थी'
इसी पेज पर और आगे बढ़ने पर लिखा दिखाई दिया कि..
'एक संस्थान की मदद से रावी की गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दिया था'
यहाँ 'रावी की गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दिया था' की जगह 'रावी को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी' आएगा। 
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'निवेश, रावी के लालन-पालन के साथ अपनी पढ़ाई भी तन-मन से करता रहता था। उसके परिणाम स्वरुप उसे उसके शहर के बीडीओ के पोस्ट पर नौकरी लग गई'
यहाँ 'उसके परिणाम स्वरुप उसे उसके शहर के बीडीओ के पोस्ट पर नौकरी लग गई' की जगह 'जिसके परिणाम स्वरूप उसकी, उसी के शहर में बीडीओ की पोस्ट पर नौकरी लग गई' आए तो बेहतर। 
पेज नंबर 101 में लिखा दिखाई दिया कि..
'आपने गोद लिया बच्ची को बहुत ही नेक काम किया है'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'आपने बच्ची को गोद लेकर बहुत ही नेक काम किया है'
पेज नंबर 103 में लिखा दिखाई दिया कि..
'इतना सुनते ही पास खड़ी नियति उसकी पीठ पर खड़े होकर, उसका हाथ पकड़ कर उसे वहाँ से हटाने लगी'
यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि यहाँ बच्ची(रावी) को उसकी टीचर (नियति) द्वारा स्टेज से हटाने की बात हो रही है। ऐसे कोई भी टीचर भला एक छोटी बच्ची की पीठ पर क्यों चढ़ेगी या चढ़ने के प्रयास करेगी? 
😊
इसी वजह से यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'इतना सुनते ही पास खड़ी नियति ने उसका हाथ पकड़ कर उसे वहाँ से हटाने का प्रयास किया'
पेज नंबर 109 में लिखा दिखाई दिया कि..
'मैं अपने गुनाह की सजा सात साल जेल की सजा काटकर भुगत चुका हूँ' 
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'मैं सात साल जेल में रहकर अपने गुनाह की सज़ा भुगत चुका हूँ'
पेज नंबर 113 में लिखा दिखाई दिया कि..
'रूपा को लगा जैसे भूमि ही उसके अमावस्या वाली रातों के बाद आने वाली पूर्णमासी की चांद है'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'रूपा को लगा कि जैसे भूमि ही उसकी अमावस्या वाली रातों के बाद आने वाला पूर्णमासी की चांद है'
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'सुबह जब रूपा उठी तब उसकी नजर आईने पर पड़ी और वह खुद पर मुस्कुरा उठी'
परिस्थितियों के हिसाब से यहाँ रूपा को मुस्कुराना नहीं बल्कि रोना चाहिए। इसलिए यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होना चाहिए कि..
'सुबह जब रूपा सोकर उठी, तब उसकी नज़र आईने पर पड़ी और उसे खुद पर रोना आया'
पेज नंबर 119 में लिखा दिखाई दिया कि..
'तीनों अपने में मगन अपने मोबाइल पर ध्यान नहीं दिया और कैंटीन में बैठी गप्पे हाँक रही थीं'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'तीनों अपने में इस हद तक मग्न थीं कि किसी ने भी अपने मोबाइल पर ध्यान नहीं दिया और कैंटीन में बैठी आपस में गप्पें हाँकती रहीं'
■ बहुत से लेखक अपनी भाषा पर क्षेत्रीयता के असर की वजह से स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में या फ़िर एकवचन और बहुवचन में आसानी से भेद नहीं कर पाते हैं। यह किताब भी इन कमियों से बच नहीं पाई है। यहाँ मैं कुछ शुरुआती कमियों के ही जिक्र कर रहा हूँ जैसे कि..
पेज नम्बर 16 में लिखा दिखाई दिया कि..
'आगरा में ताजमहल की गुम्बद से भी ऊँची आपकी अकड़ लगती है मैडम'
यहाँ 'ताजमहल की गुम्बद से भी ऊँची आपकी अकड़ लगती है' की जगह 'ताजमहल के गुम्बद से भी ऊँची आपकी अकड़ लगती है' आना चाहिए।
पेज नंबर 17 में लिखा दिखाई दिया कि..
'पूर्णिमा की चाँद के साथ भी दूध सी संगमरमर की सफेदी को अपने अंदर उतारा है'
इस वाक्य में 'पूर्णिमा की चाँद के साथ भी' की जगह 'पूर्णिमा के चाँद के साथ' आएगा तथा 'दूध सी संगमरमर की सफेदी को अपने अंदर उतारा है' की जगह 'दूध सी संगमरमर की सफेदी को भी अपने अंदर उतारा है' आएगा।
पेज नंबर 21 में लिखा दिखाई दिया कि..
'गहना के अस्पताल पहुंचने के बाद ही पुलिस भी उसके पीछे-पीछे आ गई'
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि गहना अपने घायल पति आर्यन को लेकर अस्पताल गई थी। इसलिए यहाँ
'पुलिस भी उसके पीछे-पीछे आ गई' की जगह 'पुलिस भी उनके पीछे-पीछे आ गई' आएगा।
पेज नम्बर 24 में लिखा दिखाई दिया कि..
'ये जो यहाँ ममतामयी माँ के रूप में खड़ी जिस विशालकाय वृक्ष की छाया में तुम फ़ल-फूल रही हो, वो अन्दर से खोखली है'
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि यहाँ ममतामयी माँ की तुलना एक विशालकाय वृक्ष से की जा रही है इसलिए यहाँ 'ममतामयी माँ के रूप में खड़ी जिस विशालकाय वृक्ष की छाया में' की जगह 'ममतामयी माँ के रूप में खड़े जिस विशालकाय वृक्ष की छाया में' आएगा तथा 'वो अन्दर से खोखली है' की जगह 'वो अन्दर से खोखला है' आएगा।
* घुंघट - घूँघट
* पढाई - पढ़ाई
* वारिश - वारिस
* बोरबेल - बोरवैल/बोरवेल
* गुगुनाती - गुनगुनाती
* बड़बडाए - बड़बड़ाए
* खिंचकर - खींचकर
* तपीश - तपिश
* चलाक - चालाक
* बिगड - बिगड़
* (साजो-सज्जा) - साज-सज्जा
* बूंदें (कानों में पहनने वाले) - बुंदे (कानों में पहनने वाले)
* (हालए - दिल) - (हाल-ए-दिल)
* सासस सुर - सास ससुर
* (कर्तव्य-निष्ठ) - कर्तव्यनिष्ठ
* समाज़ - समाज
* सिपाहीयों - सिपाहियों
* आतंकवादीयों - आतंकवादियों
* फूस्स - फुस्स
* खूद - ख़ुद
* बढा - बढ़ा
* बढाया - बढ़ाया
* सीखाने - सिखाने
* छीन जाने - छिन जाने
* फक्र - फ़ख्र
* मिडिया - मीडिया
* भींगती - भीगती
* गिले कपड़े - गीले कपड़े
* पीछले - पिछले
* चिढाते - चिढ़ाते
* शरी - शरीफ़
* बैलगाडी - बैलगाड़ी
* अलमीरा - अलमारी
* गस्त - गश्त
* एनथिसिया - एनस्थीसिया
* (डेट्स लाइक ए गुड गर्ल) - (दैट्स लाइक ए गुड गर्ल)
* डिलवरी - डिलीवरी
* मेँ - में
* मे - में
* ज़ब - जब
* उसमेँ - उसमें
* लडके - लड़के
*ज़ब - जब
यूँ तो यह कहानी संकलन मुझे लेखिका की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इसके 163 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है Shopizen. in ने और इसका मूल्य रखा गया है 335/- रुपये जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट की दृष्टि से बहुत ज़्यादा है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

ये इश्क़ नहीं आसां - संजीव पालीवाल


लगभग 3 साल पहले कॉलेज के मित्रों के साथ जोधपुर और जैसलमेर घूमने के लिए जाने का प्रोग्राम बना। जहाँ अन्य दर्शनीय स्थानों के साथ-साथ जैसलमेर के शापित कहे जाने वाले गाँव कुलधरा को भो देखने का मौका मिला। लोक कथाओं एवं मान्यताओं के अनुसार जैसलमेर में कुलधरा नाम का एक पालीवाल ब्राह्मणों का गाँव था जो राजस्थान के पाली क्षेत्र से वहाँ आ कर बसे थे। उन्होंने कुलधरा समेत 84 गांवों का निर्माण किया था। कहा जाता है कि 19वीं शताब्दी में घटती पानी की आपूर्ति के कारण यह पूरा गाँव नष्ट हो गया।


एक अन्य मान्यता  यह भी है कि जैसलमेर के अय्याश एवं अत्याचारी दीवान सालम सिंह द्वारा उन्हें इस हद तक पर शोषित, प्रताड़ित एवं अपमानित किया गया कि उससे तंग आ कर एक रात संयुक्त पंचायत के बाद सभी 84 गांवों के बाशिंदे अचानक अपना सब कुछ वहीं छोड़, गाँव खाली कर के चले गए।  किवंदंतियों के अनुसार कि उस गांव में छोड़ी गई दौलत पर जिस किसी ने अपना हाथ साफ़ किया, वो बरबाद हो गया। तब से यह गाँव शापित कहलाता है। 


दोस्तों..आज कुलधरा के इस शापित कहे जाने वाले गाँव की बात इसलिए कि आज मैं यहाँ जिस उपन्यास की बात करने जा रहा हूँ, उसे इसी कहानी को केंद्र में रख कर एक प्रेम कहानी के रूप में लिखा है लेखक संजीव पालीवाल ने। इससे पहले वे दो थ्रिलर उपन्यास लिख चुके हैं।


इस उपन्यास के मूल में कहानी है एक कहानीकार/यूट्यूबर अमन और जैसलमेर के एक होटल की मालकिन अनन्या के बीच पनप रही प्रेम की। तो दूसरी तरफ़ इस उपन्यास में कहानी है अमन की नाराज़गी झेल रहे उस व्यवसायी पिता राज सिंह चौधरी की, जिसकी कंस्ट्रक्शन कम्पनी जल्द ही अपना आईपीओ लाने वाली है और इससे संबंधित ज़रूरी कागज़ात पर उन्हें अपने बेटे के हस्ताक्षर चाहिए। मगर उनके लाख चाहने के बावजूद भी उनसे अलग रह रहा अमन उनके पास लौट कर आने को राज़ी नहीं है कि वह अपनी बीमार माँ की मौत का ज़िम्मेवार अपने पिता को मानता है। 


साथ ही इस उपन्यास में कहानी है बैंक से लोन के रूप में बड़ी रकम उधार ले चुकी उस मजबूर अनन्या की जो इस वक्त 'करो या मरो' की परिस्थिति में इस हद तक फँस चुकी है कि लोन चुकता ना कर पाने की स्थिति में बैंक द्वारा उसका होटल कुर्क कर लिया जाएगा। 


इस उपन्यास में लेखक कहीं जैसलमेर के किले के वैभवशाली इतिहास से अपने पाठकों को रूबरू करवाते नज़र आते हैं तो कहीं उनके शब्दों के ज़रिए जैसलमेर के महल से सूर्योदय के नज़ारे का आनंद साक्षात प्रकट होता दिखाई देता है। कहीं जैसलमेर के किले को लाइव फोर्ट का दर्ज़ा दिया जाता दिखाई देता है कि इस किले बारहवीं शताब्दी से लगातार लोग रहते आ रहे हैं तो कहीं महल के सुरक्षा प्रबंधों से पाठकों को अवगत कराया जाता नज़र आता है। 


इसी उपन्यास में कहीं जैसलमेर के शापित गाँव कुलधरा सहित पालीवालों के सभी 84 गाँवों के इतिहास के बारे में जानने का मौका मिलता है तो कहीं

पोखरण के नज़दीक भादरिया राय माता मंदिर में बनी एशिया की सबसे बड़ी भूमिगत लाइब्रेरी से लेखक अपने पाठकों का परिचय करवाते नज़र आते हैं। कहीं जैसलमेर के किले में स्थित उस सात मंज़िले शीशमहल की बात होती दिखाई देती है जिसकी उपरली दो मंज़िलों को तोड़ने का आदेश जैसलमेर के महाराजा ने इस वजह से दिया था कि उसकी ऊँचाई उनके किले से भी ज़्यादा हो गयी थी।


इसी उपन्यास में कहीं हमारे देश में पालीवालों द्वारा व्यर्थ बह जाने वाले बरसाती पानी को बचा कर रखने की मुहिम के रूप में पहले पहल रेन हार्वेस्टिंग शुरू किए जाने की बात का पता चलता है तो कहीं ठाकुर जी के उस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में पढ़ने को मिलता है जहाँ पर सालिम सिंह के अत्याचारों से आहत पालीवालों की आख़िरी पंचायत हुई थी। जिसके बाद 84 गाँवों के पालीवालों ने एक साथ सारा इलाका छोड़ दिया था। 


सीधी-साथी इस प्रेम कहानी में दर्ज कुलधरा गाँव और पालीवालों के इतिहास को अगर उस समय के घटनाक्रम एवं किरदारों के द्वारा स्वयं अपने शब्दों में फ्लैशबैक के ज़रिए बयां किया जाता तो उपन्यास और ज़्यादा प्रभावी एवं दमदार बनता। 


बेहद सावधानी के साथ की गयी प्रूफरीडिंग के बावजूद भी इस उपन्यास में मुझे कुछ कमियाँ दिखीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 12 में लिखा दिखाई दिया कि..


'अमन का मन कर था कि इससे बात करता रहे' 


यहाँ ''अमन का मन कर था कि' की जगह 'अमन का मन कर रहा था कि' आएगा। 


पेज नंबर 42 में लिखा दिखाई दिया कि..


'जैसे पूरी कायनात को समटे लेना चाहती हो अपनी आगोश में'


यहाँ 'समटे लेना चाहती हो' की जगह 'समेट लेना चाहती हो' आएगा तथा 'अपनी आगोश में' में की जगह 'अपने आग़ोश में' आए तो बेहतर।


इसके बाद पेज नम्बर 65 में लिखा दिखाई दिया कि..


'क्या आपको पता है कि हम लोग, यानी पालीवाल रक्षाबंधन का त्योहार क्यों नहीं मानते'


यहाँ 'त्योहार क्यों नहीं मानते' की जगह 'त्योहार क्यों नहीं मनाते' आएगा। 


पेज नम्बर 100 में लिखा दिखाई दिया कि..


'ज़िन्दगी को दखने के दो ही नज़रिये हैं'


यहाँ 'दखने' की जगह 'देखने' आएगा। 


पेज नंबर 141 में दिखा दिखाई दिया कि..


'पूछो भी तो कई जवाब नहीं मिलता था'


यहाँ 'कई जवाब' की जगह 'कोई जवाब' आएगा। 


170 पृष्ठीय इस उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है eka ने और इसका मूल्य रखा गया है 170/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट की दृष्टि से जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।





ख़्वाबगाह - सूरज प्रकाश

सृष्टि के अन्य जीवों की भांति ही इंसान भी बारिश, तूफ़ान जैसी प्राकृतिक अवस्थाओं से ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए कोई न कोई ऐसी पनाह..ऐसा घर..ऐसा नीड़ चाहता है जहाँ निजता के साथ रहते हुए वह अपनों का अपनापन महसूस कर सके। रिश्तों के स्थायित्व से भरा एक ऐसा घरौंदा जहाँ वह स्वतंत्रता से विचर सके..अपने मन की कह और अपनों की सुन सके। 

हर इंसान अपनी रुचि, ख्वाहिश एवं हैसियत के हिसाब से अपने सपनों का घर..अपनी ख़्वाबगाह का निर्माण करता है। ख़ास कर के स्त्रियाँ एक ऐसा घर..ऐसी ख़्वाबगाह चाहती हैं जिसे वे अपनी रुचि के अनुसार सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा सकें। दोस्तों आज घर यानी कि ख़्वाबगाह से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं जिस लघु उपन्यास की बात करने जा रहा हूँ, उसे 'ख़्वाबगाह' के ही नाम से लिखा है प्रसिद्ध लेखक सूरज प्रकाश जी ने। 

मोनोलॉग शैली में लिखे गए इस रोचक उपन्यास में मूलतः कहानी है एक ऐसी नायिका की है जो पति और प्रेमी नाम के दो पाटों बीच इस प्रकार भंवर में फँसी हुई है कि चाह कर भी किसी एक से मुक्त नहीं हो पा रही। एक तरफ़ उसके मन में अपने प्रेमी से मुक्त हो, अपने परिवार को बचाने की जद्दोजहद चल रही है। तो दूसरी तरफ़ अपमान सहते हुए हुए भी अपने उस तथाकथित प्रेमी के मोह से आज़ाद नहीं हो पा रही है जिसने पहले से शादीशुदा होते हुए भी उसे अपने प्रेमजाल में फँसाया। 

रोचक ढंग से लिखे गए इस बेहद उम्दा उपन्यास में प्रिंटिंग की कमी के रूप में काफ़ी जगहों पर शब्द आपस में जुड़े हुए दिखाई दिए। साथ ही प्रूफरीडिंग की छोटी-छोटी कमियां भी दिखाई दीं जैसे कि..

पेज नम्बर 7 में लिखा दिखाई दिया कि..

'हंस कर टल जाती थी'

कहानी के हिसाब से यहाँ 'हंस कर टल जाती थी' की जगह 'हँस कर टाल जाती थी' आना चाहिए। 

पेज नंबर 13 में लिखा दिखाई दिया कि..

'बहुत देर तक तो मुझे देर तक समझ में नहीं आया कि हो क्या गया है'

यहाँ 'बहुत देर तक तो मुझे देर तक समझ में नहीं आया कि हो क्या गया है' की जगह 'बहुत देर तक तो मुझे समझ में नहीं आया कि हो क्या गया है'
आए तो बेहतर। 

पेज नंबर 15 में लिखा दिखाई दिया कि..

'हमारी हम मुलाक़ात समय की सारी सीमाएं लांघ जाती थी'

यहाँ 'हमारी हम मुलाक़ात समय की सारी सीमाएं लांघ जाती थी' की जगह 'हमारी हर मुलाक़ात समय की सारी सीमाएं लांघ जाती थी' आएगा। 

पेज नंबर 36 में लिखा दिखाई दिया कि..

'और मैं हर दिन सिर भारी होने और नींद पूरी होने के कारण कुछ भी काम न कर पाती'

कहानी के हिसाब से यहाँ नींद पूरी ना हो पाने की बात की जा रही है। इसलिए यहाँ 'और मैं हर दिन सिर भारी होने और नींद पूरी होने के कारण कुछ भी काम न कर पाती' की जगह 'और मैं हर दिन सिर भारी होने और नींद पूरी न होने के कारण कुछ भी काम न कर पाती' आना चाहिए। 

पेज नंबर 60 में लिखा दिखाई दिया कि..

'एक दूसरे को छेड़ रहे थे, मजेदार खेल रहे थे, और पुरानी बातें याद कर करके ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे'

यहाँ 'मजेदार खेल रहे थे' की जगह 'मज़ेदार खेल, खेल रहे थे' आना चाहिए। 

पेज नंबर 78 की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'तभी उसने पैग तैयार करके कुल्लड़ मेरी तफ बढ़ाया'

यहाँ 'मेरी तफ बढ़ाया' की जगह 'मेरी तरफ़ बढ़ाया' आएगा। 

पेज नंबर 86 में लिखा दिखाई दिया कि..

'तो जवाब की नीयत खराब हो रही है'

यहाँ 'जवाब की नीयत खराब हो रही है' की जगह 'जनाब की नीयत ख़राब हो रही है' आएगा। 

पेज नंबर 94 में लिखा दिखाई दिया कि..

'वह ठीक मेरे सामने बैठा धीरे अपनी बीयर सिप कर रहा था'

यहाँ 'वह ठीक मेरे सामने बैठा धीरे अपनी बीयर सिप कर रहा था' की जगह 'वह ठीक मेरे सामने बैठा धीरे-धीरे अपनी बीयर सिप कर रहा था' आना चाहिए। 

पेज नंबर 96 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'उसका सब चले तो मुझे बैकलेस या स्लीवलेस ब्लाउज भी ना पहनने दे'

यहाँ 'उसका सब चले तो' की जगह 'उसका बस चले तो' आएगा। 

पेज नंबर 107 में लिखा दिखाई दिया कि..

'और यह दूसरी संयोग था कि उधर विनय से अरसे से रुकी मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा था'

यहाँ 'और यह दूसरी संयोग था' की जगह 'और यह दूसरा संयोग था' आएगा। 

पेज नंबर 109 में लिखा दिखाई दिया कि..

'सारी बातें सोचने के बाद कुछ अरसे बाद हम से फ़िर पहले की तरह ख़्वाबगाह में मिलने लगे थे'

यहाँ 'सारी बातें सोचने के बाद कुछ अरसे बाद हम से फ़िर पहले की तरह ख़्वाबगाह में मिलने लगे थे' की जगह 'सारी बातें सोचने के कुछ अरसे बाद से हम फ़िर पहले की तरह ख़्वाबगाह में मिलने लगे थे' आना चाहिए। 

पेज नंबर 110 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'मुकुल क जब घर पर ड्रिंक करने का मूड होता है'

यहाँ 'का' की जगह ग़लती से 'क' छप गया है। 

पेज नंबर 111 में लिखा दिखाई दिया कि..

'जब तक कोई मेरे बालों में कोई उंगलियां ना फेरे, मुझे नींद नहीं आती'

यहाँ 'जब तक कोई मेरे बालों में कोई उंगलियां ना फेरे' की जगह 'जब तक कोई मेरे बालों में उंगलियां ना फेरे' आएगा। 

• छूआ - छुआ 
• जीएगी - जिएगी
• सिंगापूर - सिंगापुर
• कूआं - कुआं (कुआँ)

उम्दा एवं धाराप्रवाह शैली में लिखे गए इस 112 पृष्ठीय बेहद रोचक के पेपरबैक संस्करण को छापा है इंडिया नेटबुक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है मात्र 120/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट की दृष्टि से बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
 
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