कर्ज़ा वसूली- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

आमतौर पर आप सभी ने कभी ना कभी देखा होगा कि आप किसी को कोई बात याद दिलाएँ या पूछें तो मज़ाक मज़ाक में सामने से ये सुनने को मिल जाता है कि हमें ये तक तो याद नहीं कि कल क्या खाया था? अब बरसों या महीनों पुरानी कोई बात भला कोई कैसे याद रखे? अच्छा!..क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप अचानक अपने किसी परिचित से मिलें और बात करते करते उसका नाम भूल जाएँ? ऐसा औरों के साथ तो पता नहीं मगर मेरे साथ तो एक आध बार ज़रूर हो चुका है।

ख़ैर.. इनसानी यादाश्त में वक्त के साथ इतनी तब्दीली तो ख़ैर आती ही है कि देर सवेर हम कुछ न कुछ भूलने लगते हैं। इसलिए बढ़िया यही है कि जहाँ तक संभव हो काम की बातें हम लिख कर रखा करें। 

दोस्तों..आज याददाश्त से जुड़ी बातें इसलिए कि आज मैं जिस किताब के बारे में बात करने वाला हूँ। उसे मैंने 2 मई, 2022 को ही पढ़ लिया था लेकिन तब पता नहीं कैसे उस किताब में काफ़ी कुछ लिख लेने के बाद भी उस पर अपनो पाठकीय प्रतिक्रिया पोस्ट करना भूल गया। अब दो दिन पहले इस किताब को फ़िर से पढ़ने के लिए उठाया तो पहले दो पेज पढ़ते ही महसूस हुआ कि इस कहानी को तो मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ। फ़िर लगा कि शायद किसी साझा कहानी संग्रह में ये कहानी पढ़ी हो। अपने नोट्स को खंगाला तो पाया कि इस पूरी किताब पर मेरे नोट्स की आख़िरी एडिटिंग की तारीख 2 मई, 2022 है। 

😊

दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ लेखिका गिरिजा कुलश्रेष्ठ के 'कर्ज़ा वसूली' के नाम से आए एक उम्दा कहानी संकलन की। 

अपने आसपास के माहौल एवं समाज में घट रही घटनाओं को आधार बना कर धाराप्रवाह शैली में लिखे गए इस कहानी संकलन में कुल 13 कहानियाँ हैं जिन्हें पढ़ कर आसानी से जाना जा सकता है कि लेखिका, विस्तृत शब्दकोश के साथ साथ पारखी नज़र की भी स्वामिनी है।

इसी संकलन की एक कहानी जहाँ एक तरफ़ इस बात की तस्दीक करती नज़र आती है कि मन में अगर किसी काम करने की जब तक ठोस इच्छा ना हो..तब तक वह कार्य सिद्ध नहीं हो पाता। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी इस बात को स्थापित करती नज़र आती है कि किसी को उधार देना तो आसान है मगर उस दिए गए ऋण की वसूली करना हर एक के बस की बात नहीं। 

इसी संकलन की किसी कहानी में जब अध्यापक स्वयं अपने बेटे की उच्च शिक्षा के लिए अपने प्रोविडेंट फंड का एक हिस्सा निकलवा पाने में नाकामयाब हो जाते हैं तो अंत में उन्हें बिगड़ते काम को बनवाने के लिए भ्रष्ट सरकारी तंत्र के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो जाना पड़ता है। तो वहीं एक अन्य कहानी में अपने छोटे..अबोध बच्चे को लिखना पढ़ना एवं अनुशासन सिखाने के लिए उसके माँ उसे जब तब मारने से भी नहीं चूकती। मगर एक दिन अपने बेटे की प्रथम मार्मिक अभिव्यक्ति, जो उसने कमरे के फ़र्श पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखी होती है, को देख कर वह चौंक जाती है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ स्कूल में नए एडमिशन के रूप में एक अनगढ़ या फैशन और नए जमाने के तौर तरीकों से अनजान लड़की को देख कर क्लास के बाकी विद्यार्थी इस हद तक उसकी खिल्ली उड़ाते..उसे तंग करते हैं कि आखिरकार वह स्कूल छोड़ कर चली जाती है। मगर भविष्य के गर्भ में भला क्या लिखा है..यह तो किसी को पता ना था। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी बूढ़े बाप के जवान बेटे की मौत के कारणों का विश्लेषण करते उन रिश्तेदारों और परिचितों की बात करती है जिनमें से कोई इसके लिए उसकी उसकी पत्नी को दोष देता है तो कोई पीलिया बीमारी से हुई मौत का हवाला देता दिखाई देता। कोई अत्यधिक शराब को इसका कारण बताता दिखाई देता है तो कोई घर में उसकी पत्नी के कदमों को अशुभ मानता नज़र आता है। मगर असली वजह तो सिर्फ़ मृतक या उसकी पत्नी ही जानती थी। 


इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ  अध्यापकों द्वारा कम समय में अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ के मद्देनज़र उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच में हो रही भारी लापरवाही के ख़िलाफ़ जब वसन्तलाल आवाज़ उठाता है। तो उसे ही कठघरे में खड़ा कर उसकी मामूली सी ग़लती को बलन्डर मिस्टेक करार दे उसे ही सस्पैंशन लैटर थमाने की कवायद शुरू होने के आसार दिखने लगते हैं। तो वहीं एक अन्य कहानी में घर की मेहनती.. सब काम काज संभालने वाली सुघड़ बड़ी बहू सीमा को ससुराल में हमेशा छोटी बहु की बनिस्बत पक्षपात झेलना पड़ता है कि उसकी देवरानी, अमीर घर से है जबकि वह स्वयं गरीब घर से। ऐसे में जब एक बार उसकी गरीब माँ अपनी ज़रुरतों को नज़रंदाज़ कर उसके ससुरालियों के लिए बहुत से गिफ्ट भेजती तो है मगर क्या इससे उसे ससुराल में वैसा ही सम्मान प्राप्त हो पाता है जैसा कि छोटी बहू को शुरू से मिलता आया है?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि नाकारा और शराबी व्यक्ति अगर सही बात भी कर रहा हो तो भी ना कोई उसे गंभीरता से लेता है और ना ही उसकी बात का विश्वास करता है। तो एक अन्य कहानी परदेस में भाषा की दिक्कत के साथ महानगरीय जीवन की उन सच्चाइयों को उजागर करती है कि यहाँ सब अपने मतलब से मतलब रखते हैं और कोई अपने आस पड़ोस में रहने वालों के नाम तक नहीं जानता।

धाराप्रवाह शैली में लिखी गयी इस रोचक किताब में काफी जगहों पर शब्द आपस में जुड़े हुए या फ़िर ग़लती से दो दो बार छपे हुए दिखाई दिए। जिससे कुछ एक जगहों पर तारतम्य टूटता सा प्रतीत हुआ और एक जगह अर्थ का अनर्थ भी होता दिखाई दिया। उदाहरण के तौर पर पेज नम्बर 124 में लिखा दिखाई दिया कि..

'अब भी उसने छुट्टी मनाली थी और कथरी बिछा कर बरांडे में पड़ा था।' 

वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला। प्रूफरीडिंग के स्तर पर भी छोटी छोटी खामियाँ दिखाई दी जिन्हें दूर किए जाने की ज़रूरत है।

यूँ तो सहज..सरल भाषा में लिखी गयी रोचक कहानियों से लैस ये कहानी संकलन मुझे लेखिका की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा की इस बढ़िया कहानी संग्रह के 172 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है बोधि प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 175/- जो कि क्वालिटी एवं कंटेंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभ कामनाएँ।

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