अक्षरों की मेरी दुनिया - विपिन पवार

समाज में अपटुडेट रहने के लिए ज़रूरी है कि हमें देश दुनिया की हर अहम ख़बर या ज़रूरी बात की सही एवं सटीक जानकारी हो। मगर बहुधा यह जानकारी थोड़ी नीरस और उबाऊ प्रवृति की होती है। जिसकी वजह से वह जानकारी या अहम बात आम जनमानस पर अपना समुचित प्रभाव नहीं छोड़ पाती। मगर वही जानकारी अगर रोचक एवं आसान शब्दों में हमारी जिज्ञासा को संतुष्टि के मुकाम पर ले जाए तो हम खुद ही और अधिक जानने..समझने के लिए प्रेरित होते हैं। 

दोस्तों..आज इस तरह की जानकारी भरी बातें इसलिए कि आज मैं आपके सामने ऐसी ही रोचक एवं ज़रूरी जानकारी से लैस किताब 'अक्षरों की मेरी दुनिया' की बात कर रहा हूँ। जिसके लेखक विपिन पवार हैं। इस किताब में एक तरह से उन्होंने अपने संस्मरणों..अपने अनुभवों एवं अपनी घुमक्कड़ी के किस्सों को निबंध के रूप में एक जगह एकत्र किया है।

रेल मंत्रालय में बतौर निदेशक(राजभाषा) कार्यरत विपिन पवार जी की इस किताब के ज़रिए पता चलता है कि उन्हें अध्यन एवं पठन पाठन का काफ़ी शौक है। किताब के लिए लिखे गए लेखों के अंत में दिए गए संदर्भ स्रोतों के ज़रिए भी इस बात की तस्दीक एवं पुष्टि होती है। 

 इस किताब में बातें हैं 1865 में जन्मी उस आनंदी बाई जोशी की जिसे भारत की पहली महिला डॉक्टर होने का खिताब प्राप्त है।  जिन्हें घर..समाज और रिश्तेदारों के विरोध के बावजूद उनके अनुशासनप्रिय मगर गुस्सैल पति ने पढ़ने के लिए अमेरिका भेजा। वहाँ जा कर उन्होंने डॉक्टर की डिग्री हासिल तो कर ली मगर अफ़सोसजनक बात ये है कि मानवता की सेवा करने से पहले ही 21 साल की छोटी उम्र में ही आनंदी बाई की मृत्यु हो गयी थी क्योंकि बीमार पड़ने पर भारत के डॉक्टरों ने उनका इलाज महज़ इसलिए नहीं किया कि उन्होंने परदेस जा कर पढ़ने की जुर्रत की और अंग्रेज डॉक्टरों ने इसलिए उनका इलाज नहीं किया कि उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ ईसाई धर्म को अपनाने से इनकार कर दिया था।

इसमें बातें है बाघों के सरंक्षण के लिए मशहूर महाराष्ट्र के सबसे पुराने एवं बड़े ताडोबा नैशनल पार्क की खूबसूरती एवं विशेषताओं की। इसमें बातें हैं सरकारी दफ़्तरों में राजभाषा हिंदी के प्रचार..प्रसार एवं इस्तेमाल में आने वाली बाधाओं..समस्याओं और उनके समाधान की। 

 इस किताब में बातें हैं बुक बाइंडिंग करने एवं अखबारें बेचने वाले पुणे के 103 वर्षीय विश्वप्रसिद्ध युवा गोखले बुवा और मैराथन दौड़ सहित अनेक अन्य क्षेत्रों में उनके बनाए एक से बढ़ कर एक कीर्तिमानों की। इसमें बातें हैं पुराने किलों..सहकर्मियों..और मुक्तिबोध की कविताओं की। इस संकलन में बातें हैं छत्रपति शिवाजी महाराज के जासूस 'बहिर्जी नाइक' और उनके गुप्तचरों के सामूहिक कौशल एवं अद्वितीय प्रयासों की। जिनकी कार्य कुशलता एवं सटीकता की वजह से शिवाजी महाराज को दुश्मन से होने वाली मुठभेड़ से पहले ही उसकी सेना..युद्धकौशल..लड़ने की क्षमता एवं कमज़ोरियों की पूरी जानकारी मिल जाती थी।
 
इस किताब में बातें हैं सम्मोहक समुद्र तटों..जंगलों और खेत खलियानों की। इसमें बातें हैं पहाड़ों की ऊंचाइयों और समुद्र की गहराई में अटखेलियाँ करते पर्यटकों से भरे महाराष्ट्र के देखे..अनदेखे पर्यटनस्थलों की। इस संकलन में बातें हैं मुंबई की गगनचुंबी इमारतों और वहाँ की प्राचीन गुफाओं एवं प्राचीरों की। इसमें बातें हैं कंप्यूटर को आसान बनाते कीबोर्ड शॉर्टकटों के साथ साथ लेखक के लिखे संपादकीयों की। इसमें बातें हैं इंद्रायणी नदी और हाथरस की खासियतों की। 

कुछ जगहों पर या जहाँ कहीं भी किताब में आँकड़ों की बात आती थी तो आम पाठक के नज़रिए से मेरे ज़हन में ये अहम सवाल उठ खड़ा हुआ  कि..ये सब आँकड़े मेरे या किसी भी आम अन्य पाठक के भला किस काम के? क्या किताब को छपवाने का लेखक का तात्पर्य या मंतव्य महज़ अपने अब तक के लिखे गए लेखों के मात्र दस्तावेजीकरण ही है?

कुछ जगहों पर वर्तनी की छोटी छोटी त्रुटियों के अतिरिक्त जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना होना थोड़ा खला। इसके अतिरिक्त पेज नंबर 49 पर लिखा दिखाई दिया कि...

'मुंबई के उपनगर कल्याण में उन्होंने फ्लैट खरीदा उस समय का मनोरंजन वाक्य याद आता है।'

यहाँ 'मनोरंजन' के बजाय 'मनोरंजक' आना चाहिए था।

कंप्यूटर संबंधी जानकारी से जुड़े एक अध्याय में Shift+Delete ऑप्शन को दो अलग अलग पेज 85 और 86 में दे दिया गया है।

उम्दा कागज़ पर छपी इस 111 पृष्ठीय किताब के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है प्रलेक प्रकाशन, मुंबई ने और इसका मूल्य रखा गया है 300/- रुपए। जो कि आम पाठकीय नज़रिए से ज़्यादा है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

#समीक्षा #राजीव_तनेजा #प्रलेक_प्रकाशन #विपिन_पवार

1 comments:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

किताब रोचक लग रही लेकिन कीमत वाकई ज्यादा है। कभी सस्ता संस्करण आया तो इसे एक बार जरूर पढ़ना चाहूँगा। अगर अन्यथा न लें तो क्या आप ब्लॉग में मौजूद टेक्स्ट का आकार बढ़ा सकते हैं। टेक्स्ट का फॉन्ट कम होने के वजह से लैपटॉप पर लेख पढ़ने में दिक्कत होती है।

 
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