लेडीज़ सर्कल- गीताश्री

 कुछ कहानियाँ तुरत फुरत में पढ़ कर बस निबटा भर दी जाती हैं और कुछ को पढ़ते समय आपको अतिरिक्त रूप से सजग हो कर कुछ एक्स्ट्रा प्रयास करना पड़ता है कि कहीं कुछ..थोड़ा सा भी छूट ना जाए और वो कहानी अपनी तमाम विषमताओं, संवेदनाओं एवं आवेगों के साथ आपके दिमाग में  भीतर..गहरे तक अपनी पैठ बना सके। 
 
हमारे बीच ऐसे ही गहन  विषयों को ले कर रची गयी कहानियों की रचियता हैं गीताश्री। उनकी कहानियों में हर बार मुझे एक अलग वेवलेंथ...एक अलग ट्रीटमेंट दिखाई देता है। विषयानुसार अपनी कहानियों में वो स्थानीय भाषा तथा वहाँ की भाषायी टोन का प्रचुर मात्रा में इस्तेमाल करती हैं जिससे कहानी का प्रभाव कई गुणा ज़्यादा बढ़ कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होता है। 

अभी फिलहाल में मुझे उनका कहानी संग्रह "लेडीज़ सर्कल" पढ़ने का मौका मिला। पढ़ने से पहले मन में दुविधा तो नहीं मगर हाँ..संशय ज़रूर था  ल कि इसमें  सिर्फ  और सिर्फ  स्त्री मन की ही कहानियाँ होंगी  लेकिन  यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ  की स्त्री मन की कहानियों के होने के बावजूद  इसमें  पुरुष चरित्रों को भी  उभरने का  पूरा-पूरा मौका दिया गया है। 

 विविध विषयों की इस किताब में कुल 8 कहानियां हैं और हर कहानी अपने में अलग अलग विषय संजोय हुए है। किसी कहानी में पैसा कमाने परदेस गए पति की नव ब्याहता पत्नी की व्यथा है तो किसी कहानी में अतृप्त पत्नी की दबी कुचली इच्छाओं का जिक्र है। किसी कहानी में एनकाउंटर और उसके पीछे की कहानी का वर्णन है तो किसी कहानी में स्त्रियों द्वारा ही स्त्रियों के सपनों को उभरने ना देने की चाही-अनचाही कोशिशों का जिक्र है। किसी कहानी में रेप विक्टिम,उसकी बहादुरी, उसकी तथा उसके परिवार की मनोदशा का विस्तार से वर्णन है तो किसी कहानी में यायावरों की अपनी दुनिया झलकती है। और अंतिम कहानी में यौन संबन्धों का स्त्रियों के बीच आपसी हँसी मज़ाक से होते हुए उनकी परेशानी का हल जैसा कुछ खोजने का प्रयास किया गया है। 

एक अच्छे लेखक या लेखिका होने के लिए उसका एक अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अच्छा श्रोता ही विषय को सही से समझ कर उस पर प्रभावी तरीके से किसी कहानी को रच सकता है। इस किताब में उनके द्वारा लिखी गयी भूमिका से भी यह बात सिद्ध होती है की वह खुद भी एक अच्छी श्रोता हैं। 140 पृष्ठीय इस किताब का प्रकाशन राजपाल एण्ड संस द्वारा किया गया है और इसका मूल्य Rs.195/- जो किताब की क्वालिटी तथा कंटैंट को देखते हुए ज़्यादा प्रतीत नहीं होता है। उम्दा क्वालिटी का कंटैंट देने के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को बहुत बहुत बधाई। 

 

1 comments:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

यह पुस्तक मेरे पास काफी वक्त से पढ़ी है। लॉकडाउन के चलते दूसरे घर में रह गयी और फिर इसे लाने का मौका मिला ही नहीं। मौका मिलेगा तो लाने की कोशिश रहेगी। आपके लेख ने किताब के प्रति उत्सुकता जगा दी है।

 
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