नागाओं का रहस्य- अमीश त्रिपाठी

अमीश द्वारा लिखी गयी “शिव रचना त्रयी” का दूसरा उपन्यास “नागाओं का रहस्य” उनके पहले उपन्यास “मेलूहा के मृत्युंजय” की भांति ही बेहद रोचक एवं दिलचस्प है। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस उपन्यास में आप कदम कदम पर विस्मित होते हैं, चौंकते हैं, मंद-मंद मुस्कुराते हैं और किसी-किसी पल एकदम से उत्साहित हो तनाव वश अपने शरीर को उत्सुकतापूर्ण ढंग से अकड़ा लेते हैं।

इसमें ‘शिव’ के साधारण मनुष्य से ईश्वर बनने की कहानी को बेहद दिलचस्प अंदाज़ से इस प्रकार लिखा गया है कि पढ़ते वक्त आप खुद को एक अलग ही दुनिया में पाते हैं मानों सब कुछ आपके समक्ष प्रत्यक्ष रूप से घटित हो रहा हो।

आंकड़ों के हिसाब से अगर देखा जाए तो मूल रूप में अंग्रेजी में लिखे गए इस उपन्यास की 40 लाख से ज्यादा प्रतियाँ अब तक बिक चुकी हैं और गिनती अभी भी बढ़ रही है. 19 भाषाओं में अब तक इसका अनुवाद हो चुका है. 
नोट: 
मूल रूप में अंग्रेजी में लिखा और उसका हिंदी में अनुवाद होने के कारण कई जगह आपको कुछ नए शब्दों का सामना करना पड़ सकता है। कुछ जगहों पर आपको भाषा थोड़ी सी असहज लग सकती है जिसे खैर..अनुवाद होने के कारण आसानी से नज़रंदाज़ कर उपन्यास का पूरा आनंद लिया जा सकता है। 

कम शब्दों में अगर कहें तो...आपके कीमती समय और पैसे की पूरी-पूरी वसूली।

1 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-07-2022) को चर्चा मंच      "सिसक रही अब छाँव है"   (चर्चा-अंक 4489)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

 
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