कुम्हलाई कलियाँ- सीमा शर्मा (संपादन)

यह कोई गर्व या खुशी की नहीं बल्कि लानत..मलामत और शर्म की बात है कि भारत जैसे जनसँख्या बहुल देश में, जो कि आबादी के मामले में पूरे विश्व में दूसरा स्थान रखता है, सैक्स को देश..समाज द्वारा एक निकृष्ट.. छुपा कर रखे जाने या हेय दृष्टि से देखी जाने वाली याने के बुरी चीज़ समझा जाता है। इसे एक ऐसा हौव्वा बना कर रखा गया है जिस पर खुलेआम.. खुले मन से बात करना..चर्चा या गुफ्तगू करना तक समाज के स्वयंभू ठेकेदारों द्वारा सही नहीं समझा जाता। हालांकि इन्हीं सब बातों को इन्ही स्वयंभू समाज के ठेकेदारों द्वारा एक दूसरे से कान में मज़े ले ले फुसफुसाते या या चटखारे लेते हुए अक्सर देखा जाता है।

साथ ही जहाँ एक तरफ़ ये सार्वभौमिक सत्य है कि जिस काम या चीज़ को बुरा कह..उसे करने से सबको रोका जाता है, उसी निषिद्ध..उसी वर्जित काम को करने के लिए इनसान का मन उसे बार बार उद्वेलित..प्रोत्साहित करता है..ललचाता रहता है। दरअसल एक तरह से तयशुदा नियमों को तोड़ने में मानव मन एक उपलब्धि ..एक संतुष्टि..एक खुशी..एक कामयाबी का एहसास प्राप्त करता है। 

वहीं दूसरी तरफ़ यह भी सच है कि इनसान की ताकत..उसका ज़ोर उसी पर चलता है जो उससे कमज़ोर हो..अपने हक़ में आवाज़ उठा पाने में..अपना विरोध जता पाने में सक्षम ना हो। ऐसे में सैक्स के पीछे पागल हो चुके कुंठित मनोवृत्ति के लोगों के लिए छोटे बच्चे एक आसान टॉरगेट होते हैं क्योंकि उनकी अपने ही घर-परिवार..दोस्तों या नज़दीकी रिश्तेदारों के घरों में मौजूद बच्चों तक आसानी से पहुँच होती है। जो स्वयं अपना अच्छा बुरा सोचने में तथा विरोध करने अथवा अपना बचाव कर पाने में सक्षम नहीं होते। ऐसे हादसे 
उन बच्चों के लिए उम्र भर का ऐसा नासूर बन जाते हैं कि उस दर्द..उस दुख..उस वेदना से वे कभी उबर नहीं पाते।

दोस्तों..आज दुख और विषाद से भरी बातें इसलिए कर रहा हूँ कि आज मैं इसी विषय को ले कर 'कुम्हलाई कलियाँ' के नाम से विभिन्न लेखिकाओं के आए एक कहानी संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसका संपादन सीमा शर्मा ने किया है। 

इस संकलन की 'सुधा ओम ढींगरा' द्वारा रचित कहानी 'टॉरनेडो' में सिंगल मदर जैनेफर की बेटी क्रिस्टी अपनी माँ से जॉन अंकल की शिकायत तो करती है मगर जॉन के साथ डेटिंग कर रही जैनेफर अपनी बेटी की शिक़ायत पर ध्यान नहीं देती। इसी वजह से जॉन की हरकतें इस हद तक बढ़ जाती हैं कि तंग आ कर मजबूरन क्रिस्टी को एक दिन घर छोड़ने का फैसला करना पड़ता है। 

इसी संकलन की 'मनीषा कुलश्रेष्ठ' द्वारा रचित 'लापता पीली तितली' नामक कहानी कुत्सित मानसिक प्रवृति के उन मृदभाषी व्यक्तियों की बात करती है जो देखने में तो मिलनसार..सभ्य एवं दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर दिखाई देते हैं मगर भीतर ही भीतर वे तमाम ज़िन्दगी के लिए ऐसी ग़हरी चोट दे जाते हैं जो तमाम ज़िन्दगी भुलाए नहीं भूलती।

इसी संकलन की 'योगिता यादव' द्वारा लिखी गयी कहानी 'ताऊ जी कितने अच्छे हैं' में पिता के बड़े भाई याने के ताऊ जी के छोटे छोटे अहसानों तले दबे होने की वजह से कोई उनकी ग़लत हरकतों की तरफ़ तवज्जो नहीं दे पाता लेकिन घर की छोटी बेटी अपना विरोध प्रकट करने का अपनी समझ से कोई ना कोई ज़रिया फिर भी निकाल ही लेती है। 

इसी संकलन की 'अंजू शर्मा' द्वारा लिखी गयी 'उसके हिस्से का आसमान' नामक कहानी में बचपन से बुरे सपने देखती आ रही ट्रेनी एडवोकेट तृषा को घर के स्टोर की पुरानी अलमारी में दादी की मेडिकल फ़ाइल खोजते वक्त कुछ ऐसा मिलता है जिसकी वजह से उसके सारे संशय..सारे डर..सारी दुविधाएँ..सारे असमंजस दूर होने लगते हैं कि क्यों उसकी माँ अपने बच्चों के प्रति अतिरिक्त सुरक्षा बरतती थी या सदा उदास रहने वाले उसके पिता की उदासी का कारण क्या था।

लेखिका नीलिमा शर्मा द्वारा लिखी गयी 'उत्सव' नामक कहानी में एक युवती को जब अपने मायके के व्हाट्सएप ग्रुप में अपने दिवंगत पिता के खास क़रीबी..पिता समान दोस्त की तबियत खराब होने और फिर उनके देहांत की ख़बर मिलती है। अफ़सोस के लिए मायके पहुँचने पर घर के सदस्यों के आम मानवीय व्यवहार एवं धारणा के ठीक विपरीत, वो दुखी हो..अफ़सोस प्रकट करने या सांत्वना देने के बजाय हर समय पुलकित एवं खुश नज़र आती है।

इसी संकलन की विभा रानी द्वारा रचित 'होंठों की बिजली' नामक एक अलग़ तरह की कहानी में फ्लैशबैक के दौरान अस्पताल में भर्ती अपनी छह वर्षीया बलत्कृत बेटी चींचीं की बुरी हालत के लिए शानो स्वयं को ज़िम्मेदार मान रही है कि उसके सगे भाई याने के चींचीं के मामा ने ही उसका ऐसा हाल किया है। इसके साथ ही दूसरी तरफ़ वह बेटी के प्रति अपने पति याने के चींचीं के पिता की बेरुखी से भी चिंतित है। वहीं वर्तमान में वह चींचीं के भविष्य को ले कर चिंतित है कि उसके होने वाले पति को जब पुरानी बातों का पता चलेगा तो भी क्या उसके मन में चींचीं के प्रति पहले जैसा प्यार बना रहेगा अथवा नहीं। 

इसी संकलन की जयश्री रॉय द्वारा रचित एक रौंगटे खड़े कर देने वाली कहानी तलाकशुदा माँ की अंतर्मुखी स्वभाव की उस अभागी बेटी की बात करती है जिसका कभी माँ के दोस्त द्वारा तो कभी स्कूल के चपरासी द्वारा दैहिक शोषण किया गया। यहाँ तक कि ब्लैकमेलिंग का शिकार हो..वो अपने ही स्कूल के एक प्रभावशाली ट्रस्टी के बेटे से गर्भवती भी हो गयी।

इसी संकलन की सपना सिंह द्वारा लिखी गयी को पढ़ने पर ऐसा भान हुआ जैसे उसे वॉयस टाईपिंग के ज़रिए जल्दबाजी में टाइप करने के बाद बिना ग़लतियों की तरफ़ ध्यान दिए जस का तस आगे छपने के लिए भेज दिया गया और वह बिना किसी प्रकार की प्रूफ़रीडिंग के इस संकलन के ज़रिए छप भी गयी। इस कहानी में मुझे काफ़ी ग़लतियाँ दिखाई दीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर एक 113 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'क्यों न की होगी रुचिका ने आत्महत्या?'

कहानी के हिसाब से यहाँ रुचिका ने आत्महत्या की है। इसलिए यह वाक्य सही नहीं है। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'क्यों की होगी रुचिका ने आत्महत्या?'

इसी कहानी में आगे चल कर एक और वाक्य पेज नंबर 114 पर लिखा दिखाई दिया। जिसका मतलब मैं समझ नहीं पाया। वाक्य इस प्रकार है..

 'ईश्वर ने सृष्टि रचते हुए ये जो इतने सारे तरह- तरह के जीव जंतु बनाए उन सब में उसके जैसा, 
 बिल्कुत्ल उसका दूसरा काम उसका पूरक उसी की नस्ल का।'

इसी पैराग्राफ में आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'और ताना जिंदगी के उम्र का कोई पड़ाव इस डर से अछूता बचा है क्या?'

यह वाक्य भी सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..

'और तमाम ज़िन्दगी की उम्र का कोई पड़ाव इस डर से अछूता बचा है क्या?'

इसके आगे इसी पैराग्राफ़ में लिखा दिखाई कि..

'वह तान पड़ी है कमरे में'

इसका मतलब भी मैं समझ नहीं पाया। 

इसी कहानी में वर्तनी की भी बहुत सी त्रुटियाँ दिखाई दीं जैसे कि..

*मूड़ ऑफ- मूड ऑफ
*मूढ- मूड
*बेतरीन- बेहतरीन
*खिन्नीता- खिन्नता
*ड्रायपर- डायपर
*प्लॉउट- प्लॉट
*स्वेहटर- स्वेटर
*सुंदतर- सुंदर
*वक़्तर- वक्त
*बरदात- वारदात
*अनुतरिंत- अनुत्तरित
*स्वन- स्वर
*झुझलाना- झुंझलाना
*प्रत्युक्षत: - प्रत्यक्षतः
*आँखो- आँखों
*बिल्कुत्ल- बिल्कुल
*अस्तित्वर- अस्तित्व
*सत्तास- सत्ता
*स्कूबल- स्कूल
*व्योवस्थित- व्यवस्थित
*आश्वआस्त- आश्वस्त
*प्रत्यास- प्रत्यक्ष

इसी संकलन की मीनाक्षी स्वामी द्वारा रचित कहानी में सर्दियों की एक शाम नर्सरी में खेलने गए हमउम्र कुछ बच्चों में से सरला की अज्ञात मोटरसाइकिल सवारों द्वारा बलात्कार करने के बाद हत्या कर दी जाती है और उसे बचाने के प्रयास में नर्सरी संभालने वाला वृद्ध भी घायल हो कोमा में पहुँच जाता है। इस सब से अनजान बच्चे परेशान हैं कि उनके अभिभावकों द्वारा उनका बाहर घूमना फिरना और खेलना कूदना..सब बंद करवा दिया गया है। 

एम जोशी हिमानी द्वारा रचित कहानी 'गुठलियाँ' में गरीब पिता की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद तीन बेसहारा रह गयी बच्चियों के साथ अकेली रह गयी माँ का सहारा उसका जवान भाई बनता तो है मगर बड़ी बेटी सुमन को उसका महीने महीने भर तक उनके घर में टिके रहना पसन्द नहीं। 

इस संकलन की कहानियाँ जहाँ एक तरफ़ अपने पाठकों को अवसाद..वेदना की तरफ़ ले जाती हैं तो दूसरी तरफ़ गहनता से सोचते हुए स्वयं अपने अंतर्मन में झाँकने पर मजबूर करती दिखाई दे देती हैं कि वास्तव में जो कुछ भी हो रहा या फिर हो चुका है..उस सब के लिए वे भी कहीं ना कहीं इस वजह से ज़िम्मेदार हैं कि उन्होंने इस तरह की घटनाओं को रोकने के मकसद से मुखर हो कर अपना विरोध नहीं जताया बल्कि मौन रह कर एक तरह से ऐसे कुकृत्यों को समर्थन अथवा प्रोत्साहन दिया। 

इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे बेहद पसंद आई जिनके नाम इस प्रकार हैं।

*टॉरनेडो- सुधा ओम ढींगरा
* लापता पीली तितली- मनीषा कुलश्रेष्ठ
* ताऊजी कितने अच्छे हैं- योगिता यादव
* उसके हिस्से का आसमान - अंजू शर्मा
* होठों की बिजली - विभा रानी
* दुःस्वप्न- जयश्री रॉय

कुछ जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त काफी जगहों पर शब्द भी आपस में जुड़े हुए दिखाई दिए। जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला।

*गाड- गॉड
*हतप्रभत- हतप्रभ
*शकल- शक्ल
*शाप- श्राप
*(अभी-अभे)- अभी-अभी
*बहसियों- वहशियों 
*बहसी- वहशी
*बेतहासा- बेतहाशा


132 पृष्ठीय इस बेहद ज़रूरी कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है शिवना पेपरबैक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 200/- रुपए। जो कि कंटैंट और क्वालिटी को देखते हुए जायज़ है। सभी लेखिकाओं..संपादक समेत प्रकाशक को आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएँ।

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